22 साल
बाद वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैम्पियन बनी भारत की बेटी
श्रीप्रकाश शुक्ला
22 साल पहले जो काम कर्णम मल्लेश्वरी
ने किया था वैसा ही कारनामा जोश और जुनून का दूसरा नाम सैखोम मीराबाई चानू ने कर
दिखाया। भारत की इस बेटी के लिए इस स्वर्णिम सफलता तक पहुंचना आसान नहीं था लेकिन
गुरबत और गरीबी को धता बताते हुए उसने साबित कर दिया कि इरादे मजबूत हों तो असम्भव
कुछ भी नहीं। लड़ना, गिरना, सम्हलना और फिर लक्ष्य को हासिल करना क्या होता है यह
सैखोम मीराबाई चानू से बेहतर भला कौन बता सकता है। इस लड़की ने वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग
चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर न केवल देश का नाम रोशन किया है बल्कि अपने
निराश पिता के चेहरे पर भी मुस्कान लौटा दी है। यह वही चानू हैं जिन्होंने अपने
पिता से इस शर्त पर इम्फाल में रहकर ट्रेनिंग लेने की छूट मांगी थी कि अगर उनको
रियो में होने वाले ओलम्पिक में भारत का प्रतिनिधत्व करने का मौका नहीं मिला तो वह
इस खेल से हमेशा हमेशा के लिए ही तौबा कर लेंगी।
इरादे की मजबूत 48
किलोग्राम की सैखोम मीराबाई चानू ने रियो ओलम्पिक खेलने की पात्रता तो हासिल कर ली
लेकिन अपने खराब प्रदर्शन से भारतीय खेलप्रेमियों को खासा निराश किया था। आशा-निराशा
के भंवरझाल में फंसी इस भारतीय बाला ने वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैम्पियनशिप में अपने
वजन से करीब चार गुना अधिक वजन (194 किलोग्राम) उठाकर भारत की झोली में
स्वर्ण पदक डाल दिया। सैखोम यह उपलब्धि हासिल करने वाली भारत की दूसरी महिला बन
गईं। इसके पहले कर्णम मल्लेश्वरी ने 1994-95 में विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक
जीता था। मजे की बात तो यह है कि 1994 में ही सैखोम मीराबाई चानू का जन्म
हुआ था। दो दशक से अधिक समय में भारत की कई भारोत्तोलकों ने विश्व चैम्पियनशिप में
भार उठाए लेकिन कोई भी स्वर्ण पदक नहीं जीत सका। करीब 22 साल के लम्बे
अंतराल के बाद मणिपुर की सैखोम ने भारत को पुनः इस श्रेणी में विश्व चैम्पियन
बनाया है जोकि गौरव की बात है।
सैखोम का जीवन बहुत उतार-चढ़ाव भरा रहा
है। भारत की इस बेटी ने वर्ष 2014 में ग्लासगो में हुए कॉमनवेल्थ खेलों की
48 किलो वजन वाली श्रेणी में रजत पदक जीता था, तब वह अपने ही राज्य की
खुमुकचम संजीता से पिछड़ गयी थीं जिसने वहां स्वर्ण पदक जीता था। उसके बाद सैखोम
मीराबाई ने 2016 में हुए रियो ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई तो किया
लेकिन वह अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकीं। हुआ यह था कि सैखोम रियो में अच्छा
प्रदर्शन करने के लिए इम्फाल में रहकर तैयारी करना चाहती थी पर उनके परिवार के पास
पैसा नहीं था। सैखोम मीराबाई को उन हालातों का भी सामना करना पड़ा जब उनके पास
डाइट को पर्याप्त पैसे नहीं होते। रियो ओलम्पिक से पहले सैखोम के पिता ने स्पष्ट
कर दिया था कि अगर वह ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई नहीं करती तो उसे इस खेल से हमेशा
के लिए तौबा करनी होगी।
सैखोम बताती हैं कि उनके पास और कोई
चारा भी नहीं था। एक तरफ घर की आर्थिक तंगहाली थी तो दूसरी तरफ उनका ओलम्पिक में
खेलने का सपना था। उसने शर्त स्वीकार की और जीजान से तैयारी में लग गई। सैखोम को ओलम्पिक
में भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिल गया। सैखोम कहती हैं कि हर खिलाड़ी की
भांति मैं भी चाहती थी कि ओलम्पिक में देश का प्रतिनिधित्व करूं। सैखोम के परिवार
की माली हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खेल के लिए उन्हें जो जरूरी
भोजन सुझाया गया था, (दूध, अंडा, चिकेन) वह भी उसे नसीब नहीं था। प्रैक्टिस करने
के लिए भी उसे रोज मीलों साइकिल से यात्रा करनी होती थी। इन्हीं परेशानियों के
चलते ही सैखोम इम्फाल में रहना चाहती थी।
महज नौ साल की उम्र में ही इस लड़की ने
खेल को अपने जीवन का हिस्सा बनाने का सपना देख लिया था। वर्ष 2004 के
सिडनी ओलम्पिक में कर्णम मल्लेश्वरी को टेलीविजन पर पदक लेते हुए इस लड़की ने देखा
और तय किया कि एकदिन वह भी इसी तरह पोडियम पर खड़ी होकर पदक लेगी। सैखोम का संघर्ष
शुरू हुआ ट्रेनिंग के लिए साइकिल चलाकर दूर तक जाने से। शुरुआती छह महीने तक सैखोम
मीराबाई को लोहा उठाने ही नहीं दिया गया। इन छह महीनों में उसे बांस उठाने को कहा
जाता था। घर की माली हालत खराब होने के बावजूद इस लड़की ने संघर्ष जारी रखा क्योंकि
उसका मानना था कि यह एक दौर है जो गुजर जाएगा। जुनूनी सैखोम ने ग्यारह साल की
अवस्था में सब-जूनियर तो वर्ष 2011 में जूनियर लेवल पर स्वर्ण पदक जीतकर
अपने स्वर्णिम भविष्य की आहट छोड़ी थी। उसके बाद इस जुझारू वेटलिफ्टर ने पीछे
मुड़कर नहीं देखा। सैखोम मीराबाई चानू के इस शानदार प्रदर्शन ने वेटलिफ्टिंग में
गिरती भारत की साख को एक नया आयाम दिया है। गौरतलब है कि शक्तिवर्द्धक दवाओं का
सेवन कर हमारे वेटलिफ्टरों ने पूरी दुनिया में भारत को लजाया है। डोपिंग की काली
करतूतों के चलते हमारे वेटलिफ्टरों को हमेशा संदेह की नजर से देखा जाता है। सैखोम
मीराबाई चानू के नायाब प्रदर्शन से जहां भारतवासी खुश हैं वहीं अंतरराष्ट्रीय
वेटलिफ्टिंग फेडरेशन के लोग हैरान हैं। भारत की इस बेटी को शाबासी देने की बजाय
उसके जगह-जगह सैम्पल लिए जा रहे हैं।
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