Friday 30 September 2016

सारे जहां की रोशनी बनी डॉ. सुनीता कृष्णन


बलात्कार की बर्बरता ने बनाया फौलादी
शायद ही कोई महिला होगी जो अपने साथ हुए बलात्कार के बारे में दुनिया को बताना चाहेगी लेकिन डॉ. सुनीता कृष्णन ने न सिर्फ अपने साथ हुई ज्यादती के बारे में सबको बताया  बल्कि उस लड़ाई को भी नहीं छोड़ा, जिसके कारण उनका गैंगरेप किया गया था। हजारों लड़कियों की जिन्दगी में रोशनी की किरण बनकर आई डॉ. सुनीता कृष्णन को उनके महान कार्य के लिए अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं। भारत की यह बेटी अदम्य साहस से भरपूर है,  बिल्कुल निडर। इसी साहस और निडरता की वजह से वह मानव तस्करी जैसे बड़े संगठित अपराध को खत्म करवाने के लिए जी-जान लगाकर लड़ रही है।
बेंगलुरू में जन्मी डॉ. सुनीता कृष्णन की जिन्दगी बहुत जटिलताओं से भरी रही है। समाजसेवा के प्रति उनके जज्बे का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वे आठ साल की उम्र में ही मानसिक रूप से कमजोर बच्चों को डांस सिखाने लगी थीं। जब वह महज 12 साल की थीं,  तभी से उन्होंने हैदराबाद की झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाली बच्चियों को पढ़ाने का बीड़ा उठाया। 15 साल की उम्र तक आते-आते सुनीता ने दलित बच्चियों के उद्धार के लिए काम करना शुरू कर दिया।
सुनीता का यही काम वेश्यावृत्ति कराने वालों व मानव तस्करी में लिप्त माफियों को नागवार गुजरा। इन माफियों के गुंडों ने सुनीता को गरीब बच्चियों को पढ़ाने का सपना छोड़कर उनसे दूर रहने की धमकी दी। लेकिन धमकियों को नजरअंदाज कर सुनीता कृष्णन अपने मिशन को कामयाब बनाने की कोशिश में जुटी रहीं। एक रात घनघोर अंधेरे में कुछ लोगों ने सुनीता पर माफियों ने हमला बोल दिया और उन्हें अगवा कर किया। फिर आठ लोगों ने उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया। सुनीता कृष्णन पंद्रह साल की उम्र में अत्याचार और बलात्कार का शिकार हुईं। इस बर्बरता ने उसे तोड़कर रख दिया लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी।
सुनीता कृष्णन के लिए वह दौर बहुत ही चुनौतियों भरा था। गैंगरेप के बाद दो साल तक लोगों ने उसे इस तरह दुत्कारा मानो गैंगरेप की दोषी वह खुद ही हो। उस बर्बर घटना से पहले वह अपने माता-पिता की चहेती संतान थी। घटना के बाद मां-बाप, दूसरे रिश्तेदारों को नजर से वह गिर गई। जिन कामों के कारण कभी उसकी तारीफ की जाती थी, वे सभी तरह-तरह से सुनीता को गलत कहने-समझने लगे, लेकिन फौलादी इरादों वाली सुनीता ने कभी भी जीवन में निराशा को पनपने नहीं दिया और खुद को कभी दोषी नहीं माना। दरअसल, इस घटना ने उसे फौलाद का बना दिया। सामूहिक बलात्कार की घटना के कुछ ही दिनों बाद सुनीता कृष्णन ने फैसला किया कि वह बलात्कार की शिकार हुई दूसरी लड़कियों और महिलाओं से मिलेगी और उनका दुःख-दर्द समझेगी। इसी मकसद से वह वेश्यालय जाने लगी। वेश्यालयों में लड़कियों और औरतों की हालत देखकर उसे यह आभास हुआ कि इन लड़कियों और औरतों की पीड़ा के सामने उसकी पीड़ा तो कुछ भी नहीं है। वह तो एक बार बलात्कार का शिकार हुई लेकिन समाज में ऐसी कई सारी लड़कियां हैं, जिनके साथ रोज बलात्कार होता है। उसी दिन एक मानसिक रूप से विकलांग लड़की को वेश्यालय से मुक्ति दिलाने के बाद सुनीता कृष्णन के लिए पीड़िताओं की मुक्ति और उनका पुनर्वास जीवन का सबसे महत्वपूर्ण काम बन गया।
                               जब जाना पड़ा जेल
1996 में बैंगलूरु में मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता के आयोजन की तैयारियां जोरों पर थीं। सुनीता कृष्णन ने इस प्रतियोगिता को रुकवाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। सुनीता का मानना था कि कुछ लोग महिलाओं को भोग की वस्तु मानते हैं और ऐसे ही लोग सौंदर्य प्रतियोगिताओं का आयोजन करते हैं। बड़े पैमाने और पूरे जोर-शोर के साथ आयोजित की जा रही इस प्रतियोगिता का विरोध करने पर पुलिस ने सुनीता कृष्णन को गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के बाद उन्हें जेल में बंद कर दिया गया  ताकि वह बाहर आकर फिर उसका विरोध न कर सके। पूरे दो महीने तक सुनीता कृष्णन को जेल में रखा गया। जेल से बाहर आने के बाद सुनीता ने अपने भाई के साथ मिलकर एक संस्था बनाई, जिसका नाम रखा- प्रज्वला।नाम के अनुरूप ही इसका काम था नारी को भोग की चीज समझने वालों को नारी शक्ति का वास्तविक अर्थ समझाना। संस्था का उद्देश्य देह के दलालों, कोठा मालिकों, पोर्न फिल्म बनाने वालों के शिकंजे से मासूम बच्चियों, युवतियों और महिलाओं को आजाद कराना और उन्हें एक नई जिंदगी देना था।
                            हर तीसरे दिन मुक्त कराती हैं एक बच्ची
प्रज्वलाआज इस मुकाम पर है कि अब तक 8,000 से अधिक बच्चियों को दरिंदों के चंगुल से मुक्त करा चुकी है, जिनकी उम्र दस साल से कम थी। सुनीता की बात करें तो औसतन उन्होंने हर साल 128 बच्चियों को आजाद कराया यानी औसतन हर तीन दिन में एक बच्ची। मानव तस्करी और देह व्यापार विरोधी यह संस्था अब तक लगभग 12,000 महिलाओं को भी कोठों, मानव तस्करों और बलात्कारियों के शिकंजे से निकाल चुकी है। मतलब अब तक 20,000 बच्चियों और महिलाओं को सुनीता की संस्था ने नई जिंदगी दी है।
                                   इसी विषय पर की पीएचडी
सुनीता की पढ़ाई बैंगलूरु और भूटान में हुई। ग्रेजुएशन करने के बाद सुनीता ने मंगलौर से एमएसडब्ल्यू यानी मास्टर इन सोशल वर्क में स्नातकोत्तर किया। इसके बाद उन्होंने समाज सेवा और सेक्स वर्कर्स की जिन्दगी को समझने, उनको मुक्त कराने के दौरान आने वाली समस्याओं और कानूनी पेंचीदगियों को समझने के लिए इसी विषय में पीएचडी भी की।
                                     पद्मश्रीसे सम्मानित
सुनीता कृष्णन प्रज्वलाके बैनर तले शोषित और पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष कर रही है। जिस्म के कारोबारियों, दलालों, गुंडों-बदमाशों, बलात्कारियों जैसे असामाजिक तत्वों और अपराधियों के चंगुल से लड़कियों और महिलाओं को मुक्ति दिलाकर उनका पुनर्वास करवाने में प्रज्वलासमर्पित है। समाज-सेवा और महिलाओं के उत्थान के लिए किए जा रहे कार्यों की सराहना स्वरूप भारत सरकार ने सुनीता कृष्णन को देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्रीसे नवाजा है। इसके अलावा सुनीता 14 डॉक्यूमेंट्री बना चुकी हैं, अनेक पुस्तकें लिख चुकी हैं और दो दर्जन से अधिक पुरस्कार पा चुकी हैं। भारत की इस बेटी की जितनी भी सराहना की जाए वह कम है।


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