Friday 30 September 2016

हाथों से नहीं पैरों से लिखी सफलता की गाथा


प्रेरणा बनीं सुधा चंद्रन
श्रीप्रकाश शुक्ला
अगर आपको जीवन में थोड़ी प्रेरणा की तलाश है तो ह्यूमंस ऑफ बॉम्बे फेसबुक पेज आपके लिए मददगार साबित हो सकता है। इस पन्ने पर मशहूर भरतनाट्यम डांसर एवं अभिनेत्री सुधा चंद्रन ने अपने जीवन से जुड़ी एक बेहद ही प्रेरणादायी कहानी साझा की है। इसमें उन्होंने बताया है कि एक हादसे में अपने पैर गंवाने के बाद कैसे उन्होंने दोबारा स्टेज पर नाटक और नृत्य करना शुरू किया। अपने पोस्ट में 51 वर्षीय चंद्रन ने नृत्य के प्रति अपने जुनून को बयां किया है और साथ ही बताया कि कैसे एक हादसे ने उनकी जिंदगी और कला को लेकर संजोये उनके सपने को झकझोर कर रख दिया।
सड़क हादसे में अपने पैर गंवाने के बाद के जद्दोजहद को बयां करते हुए चंद्रन लिखती हैं कि वह अक्सर लोगों को यह कहते सुनती थीं, कितने दुख की बात है तुम्हारा सपना पूरा नहीं हो पाएगा या हमारी इच्छा थी कि तुम डांस कर सको। वह लिखती हैं पैर गंवाने के बाद मैंने जयपुर फुट की मदद से दोबारा चलना और फिर उसके बाद डांस करना सीखा, जोकि मैं अपनी पूरी जिंदगी जीना चाहती थी। वह लिखती हैं, मैंने साढ़े तीन साल की उम्र में डांस करना सीखा था। मैं स्कूल के बाद डांस सीखने जाती और वहां से रात साढ़े नौ बजे लौटती थी। यही मेरी जिंदगी थी। इसके साथ ही वह बताती हैं कि त्रिची में बस से सफर के दौरान हुए एक भयानक हादसे ने उनकी जिंदगी ही बदल कर रख दी। हालांकि इसके बाद उन्होंने दोबारा डांस करना सीखा और जब उन्होंने कृत्रिम पैरों के साथ स्टेज पर पहली पर डांस किया तो लोगों की प्रतिक्रिया प्रेरणादायी थी। इसके बाद उन्होंने एक फिल्म नाचे मयूरी में भी काम किया जोकि उनके ही जीवन पर आधारित थी। इस फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
जयपुर फुट की जहां तक बात है, इसने भारत ही नहीं दुनिया भर में अपने पैर खो चुके लोगों को सम्बल दिया है। लेकिन सुधा चंद्रन जैसे कुछ लोग हैं, जिन्होंने कृत्रिम पैर के जरिए जिस्मानी कमी को एक काबिलियत में तब्दील कर दिया और ऐसा किरदार खड़ा किया जो औरों के लिए मिसाल बन गया। सुधा ने जयपुर फुट के सहारे नाचे मयूरी फिल्म में अपने नृत्य से सबका मन मोह लिया। सुधा को जयपुर अपना दूसरा घर लगता है क्योंकि यहीं उन्हें जयपुर फुट लगा। एक दिन जब जयपुर में सुधा चंद्रन ने नृत्य पेश किया तो भारी भीड़ उमड़ी। ना ये सावन था, ना घटाएँ और ना आसमान में कोई बादलों का बसेरा। लेकिन सुधा जब मंच पर आईं तो लगा सैकड़ों बिजलियां आसमान में कौंध रही हैं। सभागार में समाया हर जिस्म रोमांचित था और हर हाथ तालियों से ध्वनि कर सुधा की नृत्य प्रस्तुति की दाद दे रहा था। सुधा ऐसे नाचीं जैसे कोई आराधना स्थल पर इबादत कर रहा हो। फिर सुधा लोगों से मुखातिब हुईं और कहा- जन्म मेरा मुंबई में हुआ लेकिन जयपुर ने मुझे दूसरी जिन्दगी दी है। इतने सालों से मैं नृत्य कर रही हूँ लेकिन यह पहला मौका है जब मुझे जयपुर में नृत्य करने का अवसर मिला है। यह बहुत ही खुशगंवार मौका है, मेरे लिए इससे बड़ा कोई सम्मान नहीं हो सकता।
दरअसल, एक हादसे ने सुधा की जिन्दगी में झंझावात ला दिया था। वर्ष 1981 में एक दुर्घटना में सुधा का एक पैर हमेशा के लिए जिस्म से जुदा हो गया। सुधा उन दिनों की याद करते हुए कहती हैं- हादसे ने मेरी जिन्दगी में अँधेरा उतार दिया। मैं भविष्य को लेकर बहुत उदास थी, अपनी माँ के साथ जयपुर आई तो इतनी भर मुराद थी कि मैं चल सकूँ। मैं जयपुर फुट के लोगों से मिली और पूछा क्या मैं कभी चल सकूँगी। सुधा ने पूरे सभागार में अपनी कहानी सुनाई तो हर व्यक्ति ने उन्हें ध्यान से सुना। सुधा कहने लगीं- मैंने पूछा क्या मैं नाच भी सकूँगी, तो डॉक्टरों ने कहा बेशक आप नृत्य कर सकेंगी। ये मेरी जिन्दगी का सबसे अनमोल लम्हा था।
भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति ने जयपुर फुट को दुनिया भर में पहुँचाया है। इस समिति के प्रमुख डी.आर. मेहता ने सुधा को पैर खोकर फिर खड़ी होने का प्रयास करते भी देखा है। लेकिन जब उन्होंने सुधा को नृत्य करते देखा तो अभिभूत हो गए। वे आशीर्वाद भाव से बोले सुधा ने तो कमाल कर दिया। जीवन के हादसे को अभिशाप से वरदान में बदल दिया। वह बाकी लोगों के लिए मिसाल बन गई हैं। सुधा ने नाचे मयूरी फिल्म के जरिए जमाने को अपनी काबिलियत से रूबरू कराया है। कोई उन्हें टीवी सीरियल के रामोला सिकंद के रूप में जानता है तो कई लोग उन्हें अपाहिज जिन्दगियों के लिए एक रोशन किरदार के रूप में देखते हैं। सिलीगुड़ी की सुष्मिता चक्रव्रती के एक पैर में कमी है। लेकिन उन्होंने सुधा के किरदार से प्रेरणा ली और अब वह भी मंच पर बखूबी नृत्य करती हैं।
सुष्मिता का कहना है कि जब मैं उदास होती तो मेरी नानी मुझे सुधा का उदाहरण देतीं। बस उनको देखकर मैं नृत्य करना सीख गई। एक वह वक्त था जब सुधा जयपुर फुट के सहारे जिन्दगी गुजार रही थीं तभी रवि देंग ने उनका हाथ थामा और अपनी जीवन-संगिनी बनाया। वे कहते हैं कि उन्हें सुधा पर बहुत गर्व है। सुधा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। सुधा कहती हैं- मुझे जयपुर फुट से एक पहचान मिली है। हम जैसे लोग इसके सहारे चल रहे हैं। मैं हादसे के वक्त बहुत छोटी थी। मैंने बहुत सपने देखे थे, सहसा यह हादसा हो गया और सपने बिखर गए। मेरी माँ सब्जी लेने रात को जाती थीं क्योंकि लोग मेरी विकलांगता को लेकर अप्रिय सवाल पूछते थे। मेरे माता-पिता ने भी दुख झेला है। तभी मैंने प्रण किया कि मुझे ऐसा करना है कि माँ-बाप गर्व करें और वह मैंने कर दिखाया। सुधा जब बिजली की मानिंद नाचती हैं तो लोग भूल जाते हैं कि उनके कौन से पैर में जयपुर फुट लगा है। दुनिया में लोग अपनी कामयाबी के किस्से हाथों से लिखते हैं लेकिन सुधा चंद्रन ने अपनी सफलता की गाथा पैरों से लिखी है।


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