घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूं मैं....
बेहद गुणी संगीतकार रवीन्द्र जैन अब हमारे बीच नहीं रहे।
उनके बारे में एक बार स्वर्गीय राज कपूर ने बेहद खास टिप्पणी की थी। मुझे कई बार
यकीन नहीं होता कि वह नेत्रहीन होने के बावजूद संगीत को इतने करीब से कैसे देख
लेते हैं। मैं इसे एक ईश्वरीय वरदान मानता हूं। सच रवीन्द्र जैन यानी फिल्म
इंडस्ट्री के दद्दू बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। किन-किन फिल्मों और उनके किन-किन
गानों का जिक्र किया जाए। जब तक फिल्म संगीत है, उन गीतों का सुरीलापन संगीत
रसिकों को विभोर करता रहेगा। पहली बार फिल्म कांच और हीरा के एक गाने नजर
आती नहीं मंजिल... के जरिए उन्होंने फिल्म संगीत के क्षेत्र में जबरदस्त दस्तक दी
थी। इसके गायक रफी साहब ने भी इसे अपना पसंदीदा गाना बताया था। लेकिन उनकी किस्मत
खुली एन.एन. सिप्पी की फिल्म चोर मचाए शोर.. से। इस फिल्म का एक गाना घुंघरू की
तरह बजता ही रहा हूं... तो हमेशा के लिए अमर बन गया।
असल में उनके फिल्म संगीत में एन.एन. सिप्पी, राजश्री
पिक्चर्स और राज कपूर तीन अहम पड़ाव थे। खासतौर से राजश्री पिक्चर्स की लगभग दो
दर्जन से ज्यादा फिल्में उनके फिल्म संगीत का नायाब भंडार बन गईं। गीत गाता चल,
अंखियों के झरोखों से, सौदागर, नदिया के पार, नैया आदि यह फेहरिस्त बहुत लम्बी है।
उनकी हर सुर रचना में उनकी बहुमुखी प्रतिभा छिपी रहती थी। वह न सिर्फ तर्ज बनाते
थे बल्कि गीत भी लिखते थे और कई बार कुछ अपने मन मुताबिक गाने वह खुद गा भी देते
थे। 71 की उम्र में
मृत्यु से कुछ दिनों पहले भी वह सुर रचना को लेकर मशगूल थे। जीवन के अंतिम दिनों
में उनके पास फिल्मों के प्रस्ताव कम आने लगे थे लेकिन सुर रचना को लेकर वह लगातार
व्यस्त थे। खासतौर से भक्ति संगीत को लेकर उनकी सक्रियता लाजवाब थी। भजन, कीर्तन
और दोहों में उनका मन खूब रमता था।
फिल्मी गीतों में शब्दों का जाल बुनना उन्हें बखूबी आता था।
इसके लिए फिल्म सौदागर का एक गाना सजना है मुझे सजना के लिए... का उदाहरण देना ही
काफी होगा। ऐसे ढेरों गाने हैं जिसमें उन्होंने अलंकार, छंद आदि का बहुत कुशलता के
साथ उपयोग किया। राजश्री प्रोडक्शंस की तो कई फिल्मों की सफलता सिर्फ उनके संगीत
पर ही आश्रित हो गई थी। इसी तरह से राज कपूर ने कई संगीतकारों को नजरअंदाज करते
हुए उन्हें राम तेरी गंगा मैली.. की जिम्मेदारी सौंपी थी। दद्दू ने उन्हें निराश
भी नहीं किया था। आज इतने साल बाद भी इस फिल्म के हर गाने की कशिश कायम है। यही
वजह है कि राज कपूर ने अपनी अगली महत्वाकांक्षी फिल्म हिना का संगीत भी उन्हें
सौंपा। मगर यह फिल्म फ्लोर में जाने से पहले ही राज जी का निधन हो गया। उनके बेटे
रणधीर कपूर ने इसे पूरा किया। इस फिल्म का संगीत भी बहुत सराहा गया।
फिल्म संगीत को दी विशेष पहचान
फिल्में चाहें छोटी हों या बड़ी, उनके गीत-संगीत में
विविधता और सरलता बनाए रखना रवीन्द्र जैन की सबसे बड़ी खूबी रही। यही वजह है कि
उनकी लगभग हर फिल्म का गीत-संगीत सराहा गया। यह अलग बात है कि उनकी उपलब्धियों को
ठीक से सम्मानित नहीं किया गया। लेकिन इसकी कभी उन्होंने परवाह नहीं की।
परिस्थितियां कैसी भी रही हों, उन्होंने अपने काम में तल्लीनता और गम्भीरता बनाए
रखी। 1972 में पहली फिल्म कांच
और हीरा में उनका लिखा गीत नजर आती नहीं मंजिल, तड़पने से भी क्या हासिल...तो
लोकप्रिय हुआ लेकिन फिल्म नहीं चल पाई। ऐसे में राजश्री की सौदागर एक बड़ी चुनौती
के रूप में सामने आई। रवीन्द्र जैन लता मंगेशकर के भक्त थे और चाहते थे कि फिल्म
का गीत तेरा मेरा साथ रहे... लता जी गाएं। लता मंगेशकर उन दिनों बेहद व्यस्त थीं।
फिर भी उन्होंने समय दे दिया। रिकार्डिंग से पहले पिता के निधन की खबर आई। जाते तो
गाना छूट जाता। भारी मन से पहले उन्होंने गाना रिकार्ड कराया और फिर अलीगढ़ गए।
सौदागर का वह गीत ही नहीं सजना है मुझे सजना के लिए... भी
काफी लोकप्रिय हुआ। इस फिल्म के साथ राजश्री के साथ रवीन्द्र जैन का ऐसा नाता
जुड़ा कि वह करीब एक दर्जन फिल्मों तक चला। चितचोर के सभी गीत हिट हुए। जब दीप जले
आना, जब शाम ढले आना.. और गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा.. के अलावा तू जो मेरे सुर
में सुर मिला दे.. जैसे गीतों से रवीन्द्र जैन ने यशुदास के रूप में एक नई आवाज से
परिचय कराया। धर्म में गहरी रुचि होने की वजह से रवीन्द्र जैन के संगीत में
आध्यात्मिकता का अहसास भी होता था। गीत गाता चल.. के शीर्षक गीत के अलावा श्याम
तेरी बंसी पुकारे राधा नाम, लोग करें मीरा को यूं ही बदनाम... में इसकी शुरुआती
झलक थी।
आरती मंगल भवन अमंगल हारी... का भी उन्होंने फिल्म में
खूबसूरती से प्रयोग किया। यही हुनर उन्होंने अंखियों के झरोकों से...दोहों का
इस्तेमाल करके दिखाया। तपस्या का गीत जो राह चुनी तूने उसी राह में राही चलते जाना
रे... जितना सफल हुआ उसे देखते हुए और कोई संगीतकार होता तो उसी कथानक पर बनी एक
विवाह ऐसा भी उसी धुन को किसी न किसी रूप में इस्तेमाल करने का मोह नहीं छोड़
पाता। लेकिन रवीन्द्र जैन ने दोनों फिल्मों के संगीत में जमीन आसमान का फर्क
दिखाया। नदिया के पार में उन्होंने आंचलिक संगीत का इस्तेमाल किया। दुल्हन वही जो
पिया मन भाए के सुपर हिट होने का एक बड़ा कारण फिल्म के गीतों की कर्णप्रियता और
कहानी के साथ उनका सटीक सामंजस्य बैठना रहा। इस फिल्म में रवीन्द्र जैन ने खुद भी
एक गीत. रूठ गए विधाता हमार... गाया था।
राजश्री की फिल्मों के अलावा शुरुआती सफर में उन्हें एक
बड़ा मौका 1974 में मिला।
निर्माता एन.एन. सिप्पी और निर्देशक सी.पी. दीक्षित अपनी फिल्म चोर मचाए शोर के
लिए कुछ अलग अंदाज के फड़कते हुए गीत चाहते थे। फिल्म के नायक शशि कपूर भी साथ
बैठे। रवीन्द्र जैन ने एक के बाद एक कई धुन सुनाईं लेकिन बात नहीं जमी। तीस धुनों
के बाद एन.एन. सिप्पी ने फिर इसरार किया तो दिल वाले दुल्हनियां ले जाएंगे... की
धुन उन्होंने सुना दी। बस वहीं सुई अटक गई। फिल्म बनी। सुपरहिट हुई। सिर्फ एक गीत ले
जाएंगे ले जाएंगे दिल वाले दुल्हनियां ले जाएंगे.. ही नहीं घुंघरू की तरह बजता ही
रहा हूं मैं...व एक डाल पे तोता बोले एक डाल में मैना... जैसे फिल्म के गीत भी
काफी सराहे गए। करीब दो दशक बाद तो यश चोपड़ा ने अपने बेटे आदित्य चोपड़ा के
निर्देशन में बनी पहली फिल्म का शीर्षक ही गीत दिल वाले दुल्हनियां ले जाएंगे पर
रख दिया।
शादियों के दौरान यह गीत आज भी बैंडवालों की पहली पसंद है।
बहरहाल, चोर मचाए शोर की सफलता ने शशि कपूर को स्टार बना दिया। इसी टीम ने बाद में
फकीरा में भी यही कमाल दिखाया। वी.आर. चोपड़ा की पति-पत्नी और वो व इंसाफ का तराजू
या एफ.सी. मेहरा की सलाखें अथवा सुनील दत्त की ये आग कब बुझेगी इन फिल्मों और कई
फिल्मों में रवीन्द्र जैन ने विषय के हिसाब से संगीत दिया। रवीन्द्र जैन के करियर
का सबसे बड़ा पड़ाव उस समय आया जब राजकपूर ने अपनी फिल्म राम तेरी गंगा मैली में
संगीत देने का दायित्व उन्हें सौंपा। यह सिलसिला भी संयोग से जुड़ा। राजेंद्र कुमार
के भाई नरेश कुमार की फिल्म दो जासूस का संगीत रवीन्द्र जैन ने ही दिया था। फिल्म में राजकपूर बतौर अभिनेता थे। मुलाकात हुई तो रवीन्द्र जैन ने उनके साथ
काम करने की इच्छा जताई। बात आई गई हो गई। कुछ साल बाद दिल्ली में एक समारोह में
राज कपूर ने रवीन्द्र जैन को एक राधा एक मीरा गाते सुना। तत्काल उन्होंने रवीन्द्र
जैन की हथेली पर सवा रुपया रख दिया और कहा कि यह गीत मेरा हुआ। इस तरह शुरू हुआ राम
तेरी गंगा मैली हो गई, पापियों के पाप धोते धोते.. तो लोकप्रिय हुआ ही महफिल में
उनके गाए जिस गीत ने राज कपूर को मोहा था वह गीत एक मीरा एक राधा दोनों ने श्याम
को चाहा, अंतर क्या दोनों की प्रीत में बोलो... एक प्रेम दीवानी एक दरस दीवानी
फिल्म की जान बन गया।
फिल्म के छह गीत रवीन्द्र जैन ने लिखे थे। राज कपूर ने बाद
में हिना के लिए भी रवीन्द्र जैन को लिया। राज कपूर की असामयिक मौत की वजह से
फिल्म हालांकि उनके बेटे रणधीर कपूर ने निर्देशित की लेकिन फिल्म के संगीत पक्ष
में रवींद्र जैन ने राज कपूर की छाप को मिटने नहीं दी। यसुदास के अलावा जसपाल सिंह,
हेम लता, आरती मुखर्जी, सुरेश वाडकर, चंद्राणी मुखर्जी आदि नई आवाजों को रवीन्द्र
जैन ने मौका दिया और उन्हें उभरने का मंच मुहैया कराया।
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