श्रीप्रकाश
शुक्ला
अनादिकाल से भारत वीरांगनाओं का देश रहा है और
आगे भी रहेगा। भारत में अब नारी शक्ति को अबला नहीं कह सकते वजह बेटियां हर
क्षेत्र में ऐसा करिश्मा कर रही हैं जिसे दुरूह माना जाता रहा है। ब्राजील में
दुनिया ने देखा कि भारतीय बेटियों में बला की शक्ति है। वे फौ
लाद की बनी हैं।
हरियाणा की साक्षी मलिक ने कुश्ती में भारत का मान बढ़ाकर इस बात के संकेत दिए कि
यदि बेटियों को और प्रोत्साहन तथा आजादी मिले तो वे पुरुषों को भी मात दे सकती
हैं। भारत बदल रहा है। उसकी कारोबारी विकास के साथ सामाजिक मान्यताएं भी बदल रही
हैं। एक वक्त था जब कहा जाता था कि बेटियां पहलवानी करती अच्छी नहीं लगतीं। पिछले
कुछ समय में साक्षी मलिक जैसी अनेक होनहारों की ऐसी पौध तैयार हुई है, जिन्होंने
पुरानी मान्यताओं का लबादा उतार फेंका है। ओलम्पिक खेलों में कर्णम मल्लेश्वरी के
फौलादी प्रदर्शन के बाद से तो मैदानों का नजारा ही बदल गया है। बेटियां न केवल
मौका जुटा रही हैं बल्कि उन्हें भुना भी रही हैं।
एक समय वह भी था जब आमतौर पर गांवों के पास बने
अखाड़ों में लंगोट कसे पहलवान ही अपना दमखम दिखाते नजर आते थे। महिलाओं का अखाड़ों
की तरफ न केवल प्रवेश वर्जित था बल्कि वे उधर देख भी नहीं सकती थीं। अब बेटियां
देश का नाम ऊंचा कर रही हैं। फोगाट बहनों के बाद तो महिला कुश्ती में पहलवानों की
बाढ़ सी आ गई है। ओलम्पिक में साक्षी ने कांस्य पदक जीतकर ऑनरकिलिंग जैसे जुमले से
बदनाम हरियाणा प्रदेश की बेटियों के लिए एक नयी राह बना दी है। साक्षी का भी
अखाड़े की तरफ रुख करना उतना आसान नहीं था लेकिन इस बेटी को मां का प्रोत्साहन
मिला और उसने वह कर दिखाया जिसे आज तक कोई नहीं कर सका। साक्षी के पहलवान बनने के
पीछे एक खास वजह यह भी रही है कि उनके दादा बदलू भी नामी पहलवान रहे हैं। पिता
समेत परिवार के दूसरे सदस्यों का भी कुश्ती से विशेष लगाव रहा है।
साक्षी के मन में कुश्ती का प्रेम 2004 में पैदा हुआ। पहले तो बेटी को पहलवान बनाने
में परिवार के लोग हिचक रहे थे लेकिन जब साक्षी ने अपनी मां सुदेश को अपनी इच्छा
बतायी तो मां उसे रोहतक के छोटूराम स्टेडियम ले गईं। वहां उसे जिमनास्टिक खेलने के
लिए कहा गया लेकिन साक्षी ने साफ इंकार कर दिया। फिर एथलीट व अन्य कई खेलों के
खिलाड़ियों को दिखाया गया और सबसे आखिर में सुदेश साक्षी को लेकर रेसलिंग हाल
पहुंचीं। वहां साक्षी को पहलवानों की ड्रेस अच्छी लगी और उसने कुश्ती को ही
आत्मसात करने की इच्छा जताई। सुदेश ने बताया कि उस समय साक्षी को पहलवानों की ड्रेस
अच्छी लगी थी और उसने कहा था कि यह ड्रेस अच्छी है, इसलिए वह कुश्ती ही लड़ेगी। उस
समय लगा कि बेटी की इच्छा है तो खेलने देते हैं, जब तक मन होगा खेलती रहेगी लेकिन
एक दिन साक्षी से कहा गया कि वह जो भी काम करे उसे पूरी मेहनत से करे। चाहे पढ़ाई
हो या फिर कुश्ती। उस दिन से साक्षी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
साक्षी ने बहुत छोटी उम्र में ही सब जूनियर
एशियन चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर अपने सुनहरे भविष्य की आहट छोड़ दी थी। उस
स्वर्णिम सफलता के बाद परिजनों को भी लगा कि उनकी बेटी ने सही खेल चुना है। फिर
राष्ट्रमंडल खेलों में रजत जीता और उसके बाद भी कई मेडलों से अपने गले सजाए। रियो
ओलम्पिक में साक्षी ने कांस्य पदक जीतकर यह साबित कर दिखाया कि मेहनत से कोई भी
मंजिल हासिल की जा सकती है। आज सारा देश गर्व और गौरव से आह्लादित है तो खेलों से
जुड़ी अन्य बेटियां भी पुलकित हैं।
साक्षी मलिक
का जन्म तीन सितम्बर, 1992 को रोहतक जिले के मोखरा गांव में हुआ था। 2004 में 12 साल की उम्र में उसने छोटूराम स्टेडियम स्थित ईश्वर सिंह
का अखाड़ा ज्वाइन किया था। साथ ही साथ वैश्य पब्लिक स्कूल और फिर वैश्य महिला
कॉलेज से पढ़ाई जारी रखी। साक्षी के पिता सुखबीर सिंह मलिक दिल्ली परिवहन निगम में
परिचालक हैं जबकि मां सुदेश आंगनबाड़ी में सुपरवाइजर। साक्षी का एक भाई है। सुखबीर
मलिक और सुदेश मलिक कहते हैं कि उन्हें पूरी उम्मीद थी कि उनकी बेटी अपने दादा
बदलू के सपने को अवश्य साकार करेगी। साक्षी ने रियो ओलम्पिक में पदक जीतकर न केवल
अपने परिजनों का सपना साकार किया बल्कि मुल्क के सामने एक नजीर भी पेश की है।
वर्ष 2011 में जम्मू में हुई जूनियर नेशनल प्रतियोगिता
में साक्षी ने स्वर्ण पदक, जकार्ता में हुई जूनियर एशियन चैम्पियनशिप में कांस्य,
गोंडा में हुई सीनियर नेशनल में रजत, सिरसा में ऑल इंडिया विश्वविद्यालय
प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक, वर्ष 2012 में देवघर में जूनियर नेशनल प्रतियोगिता में स्वर्ण,
कजाकिस्तान में हुई जूनियर एशियन चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक, गोंडा सीनियर नेशनल
में कांस्य, अमरावती ऑल इण्डिया विश्वविद्यालय में गोल्ड, 2013 में कोलकाता में हुई सीनियर नेशनल प्रतियोगिता
में गोल्ड, वर्ष 2014 में यूएसए में
देन सतलुज मेमोरियल प्रतियोगिता में गोल्ड, मेरठ में हुई ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी
प्रतियोगिता में गोल्ड व वर्ष 2016 में रियो ओलम्पिक में कांस्य पदक के साथ ही एशियन कुश्ती चैम्पियनशिप में
चांदी का पदक जीतकर महिला कुश्ती को गौरव दिलाया।
रियो ओलम्पिक में पदक जीतने के बाद अलसुबह जब
साक्षी ने अपनी मां को फोन किया तो खुशी के मारे एक बार तो मां की जुबान ही रुक
गयी। मां-बेटी भावनाओं के समुंदर में बहने सी लगीं। साक्षी ने मां को कहा कि मैंने
अपना वादा पूरा कर दिया है। यह सुन उसकी मां सुदेश की खुशी का ठिकाना नहीं रहा और
बोलीं। वाह साक्षी! कमाल कर दिया। साथ में साक्षी के पिता सुखबीर मलिक भी खड़े थे।
उन्होंने भी बेटी को जीत की बधाई दी। सुदेश मलिक ने बताया कि रियो ओलम्पिक
क्वालीफाई करने के बाद साक्षी ने वादा किया था कि वह मेडल जरूर लेकर आएगी। रियो
में जाने के बाद जब भी साक्षी से बात होती थी तो वह यही कहती थी कि मां बिना पदक
के नहीं लौटूंगी। यह तो अभी शुरुआत है। साक्षी ने जो कमाल किया है उससे इस बात के
संकेत मिलते हैं कि अगले ओलम्पिक में भारत की दूसरी पहलवान बेटियां भी मादरेवतन का
मान बढ़ाएंगी। साक्षी ने अपने पहलवान साथी को ही जीवनसंगी
चुना है। साक्षी को शानदार उपलब्धियों के लिए खेलरत्न से नवाजा जा चुका है।
चुना है। साक्षी को शानदार उपलब्धियों के लिए खेलरत्न से नवाजा जा चुका है।
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