क्या ऐसे ही होगा खेलों में देश का भला
श्रीप्रकाश शुक्ल
ग्वालियर। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के
कायाकल्प को दिन-रात एक कर रहे हैं तो दूसरी तरफ उनके मंत्रिमण्डल के सहयोगी आरामतलब
हैं। खेल मंत्री विजय गोयल को ही लें उन्होंने पदभार ग्रहण करते समय खेलों को देश
के कोने-कोने तक पहुंचाने का संकल्प व्यक्त किया था। तब उन्होंने कहा था कि वह खेलों
के कायाकल्प को चौबीसों घण्टे काम करेंगे, पर आज ऐसा नहीं है। गतदिनों ग्वालियर आए
खेल मंत्री गोयल से कुछ खेल शुभचिन्तकों ने वक्त मांगा। इन खेल शुभचिन्तकों में
केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के पुत्र देवेन्द्र प्रताप सिंह रामू भी
शामिल थे। रामू ने परम्परागत तरीके से गोयल का गुलदस्ता भेंटकर स्वागत किया और
जैसे ही उन्होंने खेलों के विकास पर बात करनी चाही गोयल बोले जल्दी बोलो मुझे आराम
करना है और वह चले भी गये। गोयल से मिलने वाली तीनों शख्सियत तरनेश तपन
मुक्केबाजी, परमजीत सिंह बरार हाकी और देवेन्द्र प्रताप सिंह अमूमन हर खेल के
विकास को गम्भीर हैं। खेल मंत्री का ऐसा व्यवहार इस बात का ही सूचक है कि उनके पास
खेलों के विकास का कोई विजन नहीं है, वह सिर्फ वक्त जाया कर रहे हैं। ग्वालियर प्रवास पर खेल मंत्री विजय गोयल को लक्ष्मीबाई
राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा संस्थान के कुलपति की खेल विरोधी कारगुजारियों से भी
अवगत कराया गया लेकिन गोयल कान में रूई डाले दिखे।
भारतीय खेल मंत्रालय और उनका
विजन क्या है, यह हर भारतीय देख रहा है। खिलाड़ी बेहतर प्रदर्शन के लिए शक्तिवर्धक
दवाएं गटक रहे हैं और खेल मंत्री आरामतलबी में वक्त जाया कर रहे हैं। बकौल खेल
मंत्री गोयल खेल मेरे दिल के काफी करीब हैं। मैं अब भी टेनिस खेलता हूं और भारतीय
खेलों और खिलाड़ियों से जुड़ी समस्याओं को समझता हूं। मैं अपनी सीमाओं को भी समझता
हूं। ग्वालियर में गोयल की जो कार्यशैली देखी गई उससे तो हर खेलप्रेमी निराश है। विजय
गोयल अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में भी खेल मंत्री रहे लेकिन तब भी कुछ नहीं हुआ
था। अपने पूर्ववर्ती जितेंद्र सिंह से पदभार ग्रहण करने के बाद गोयल ने कहा था कि
यह गर्व की बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस जिम्मेदारी के लिये मुझे
चुना। मुझे पूरा विश्वास है कि हम कुछ नया करने में सफल रहेंगे। मैं इसलिए भी खुश
हूं कि मैं तब पदभार सम्हाल रहा हूं जबकि रियो ओलम्पिक पास में है। इस बार हमारा
सबसे बड़ा दल वहां जा रहा है। उम्मीद है कि वे अच्छा प्रदर्शन करेंगे। गोयल ने जो
कहा था रियो में उसका उल्टा हुआ। उन्होंने अपनी बंदरकूद कार्यशैली से न केवल भारत
को शर्मसार किया बल्कि भारतीय खिलाड़ी लंदन ओलम्पिक का प्रदर्शन भी नहीं दोहरा सके।
भला हो भारतीय बेटियों शटलर पी.वी. सिन्धु और पहलवान साक्षी मलिक का जिन्होंने
अपने शानदार कौशल से मादरेवतन की नाक कटने से बचाई थी। गोयल की प्राथमिकता की जहां
तक बात है वह जब अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में खेल मंत्री थे तब दिल्ली को 2010 राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी मिली थी और वह
चाहते हैं कि भारत एक और बड़ी खेल प्रतियोगिता की मेजबानी करे, ताकि उनकी
बल्ले-बल्ले हो जाए।
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