Monday, 25 July 2016

लाइलाज शहरों का जलभराव

केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा जोर-शोर से प्रचार-प्रसार किया जा रहा है कि देश तरक्की के नए-नए कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। जनमानस को स्मार्ट सिटी के सपने दिखाए जा रहे हैं लेकिन हकीकत पर गौर करें तो विकास की लौ सतही धरातल पर कहीं भी टिमटिमाती नहीं दिख रही। सच कहें तो हमारी हुकूमतें जनमानस को दिवा स्वप्न दिखा रही हैं और विकास के नाम पर फिजूल का ढिंढोरा पीटा जा रहा है। महंगाई निरंतर बढ़ रही है। गरीब व्यक्ति के लिए रोटी, कपड़ा और मकान जुटाना दुरूह कार्य हो रहा है तो शहर बदइंतजामी का शिकार हैं। विकास की रफ्तार इतनी धीमी है कि जनसाधारण को उसका कुछ भी फायदा मिलता नहीं दिख रहा। जनमानस रो रहा है तो नीरो बंशी बजाने में मस्त है।
पिछले सप्ताह की ही बात है, कुछ घण्टे की बारिश से मथुरा और आगरा जैसे जगप्रसिद्ध शहर जलभराव से ठिठक गए तो जनमानस सहम गया। सड़क पर दरिया था तो उफनते नाले किसी प्रलय का संकेत दे रहे थे। ब्रज मण्डल का कोई ऐसा शहर नहीं था जो घुटने-घुटने पानी में डूबता न दिखा हो। शहर की घनी बस्तियां ही नहीं उसके हृदयस्थल भी जलप्रलय से सिहर उठे थे। शहरों में जलभराव की समस्या ब्रज मण्डल तक ही सीमित नहीं है, देश की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के शहरों सहित भोपाल-इंदौर जैसे शहर और उनकी सड़कें जरा सी बरसात में जलमग्न हो जाती हैं। ऐसे ही जलभराव की आफत से लखनऊ, गोंडा, औरैया, गुवाहाटी और मुंबई भी त्राहिमाम-त्राहिमाम करते दिखे। बीते सप्ताह जिसने भी इन शहरों में कदम रखा हो उसका दिल गर्मी से निजात के आनंद की कल्पना से परे अब बारिश के नाम से ही डर गया है।
इसे विडम्बना और सरकारी तंत्र की निष्क्रियता ही कहेंगे कि हर बरसात में शहरों का जलभराव कई अनुत्तरित सवाल छोड़ जाता है। जलभराव पर सफेदपोश सारा दोष नालों की सफाई न होने, बढ़ती आबादी, घटते संसाधनों और पर्यावरण से छेड़छाड़ पर थोप देते हैं। कोई भी जनप्रतिनिधि इस बात का जवाब नहीं दे पाता कि नालों की सफाई सालभर क्यों नहीं होती और इसके लिए मई-जून का ही इंतजार क्यों होता है। यह सभी जानते हैं कि छोटे शहरों और महानगरों में बने ढेर सारे पुलों के निचले सिरे, अंडरपास और सब-वे हल्की सी बरसात में जलभराव के स्थाई स्थल हैं लेकिन कभी कोई यह जानने का प्रयास नहीं करता कि आखिर निर्माण में कोई कमी है या फिर उसके रखरखाव में।
देखा जाए तो देश भर के शहरों में बढ़ते यातायात को सुव्यवस्थित करने की खातिर बीते एक दशक में लाखों फ्लाई ओवर और अंडरपास बने। बावजूद इसके हर शहर में हर साल बार-बार जाम के झाम से जनमानस को जूझना पड़ता है। ब्रज मण्डल के आगरा शहर में तो प्रतिदिन चार से पांच छोटे-बड़े जाम लगना आम बात सी हो गई है। बरसात में यही संरचनाएं जाम का कारण बनती हैं।
बारिश के दिनों में अंडरपास में पानी भरना हमारे नीति-निर्माताओं की सोच पर ही सवाल उठाता है। देखा जाए तो शहरों के यातायात को सिग्नल मुक्त बनाने के नाम पर हर साल अरबों रुपए खर्च किया जाता है लेकिन बरसात होते ही यही अंडरपास कोढ़ में खाज का काम करने लगते हैं। बरसात में अधिकांश अंडरपास नाले में तब्दील हो जाते हैं और हमारा जवाबदेह तंत्र पानी निकालने वाले पम्पों के खराब होने का बहाना बनाता है तो सड़क डिजाइन करने वाले नीचे के नालों की ठीक से सफाई न होने का रोना रोते हैं। अंडरपास की समस्या केवल बारिश के दिनों में ही नहीं है। आम दिनों में भी यदि यहां कोई वाहन खराब हो जाए या दुर्घटना हो जाए तो उसे खींचकर ले जाने का काम इतना जटिल है कि जाम लगना आम बात हो जाती है। सच कहें तो जमीन की गहराई में जाकर ड्रेनेज किस तरह बनाया जाए कि पानी की हर बूंद बह जाए, यह तकनीक अभी तक हमारे इंजीनियर नहीं सीख पाए हैं।
मोदी सरकार जिन शहरों को स्मार्ट सिटी बनाने को आतुर है उन्हीं शहरों के बीआरटी कॉरीडोर थोड़ी सी बरसात में ही नाव चलाने लायक हो जाते हैं। ठीक ऐसे ही हालात फ्लाईओवरों के भी हैं। जहां जरा सा भी पानी बरसा कि उसके दोनों ओर पानी जमा हो जाता है। कारण वहां बने सीवरों की ठीक से सफाई न होना बता दिया जाता है। असल में तो इनके डिजाइन में ही कमी होती है। कई स्थानों पर इन पुलों का उठाव इतना अधिक है कि आएदिन इन पर भारी मालवाहक वाहन लोड न ले पाने के कारण खराब हो जाते हैं और जाम की स्थिति बन जाती है। इसे विडम्बना ही कहेंगे कि हमारे नीति-निर्धारक यूरोप या अमेरिकी देशों की सड़क व्यवस्था का अध्ययन करते हैं जहां न तो भारत की तरह मौसम होता है और न ही एक ही सड़क पर विभिन्न तरह के वाहनों का संचालन। हमारे देश के अधिकांश शहरों का सीवर सिस्टम बरसात के जल का बोझ उठाने लायक ही नहीं है। साथ ही उसकी सफाई महज कागजों पर होती है।

शहरों का जलभराव रोकने के लिए सबसे पहला काम तो वहां के पारम्परिक जलस्रोतों में पानी की आवक और निकासी के पुराने रास्तों में बन गए स्थाई निर्माणों को हटाने का होना चाहिए। यह काम भेदभाव से परे हो तो शासन-प्रशासन को भी दिक्कत नहीं होगी। महानगरों में भूमिगत सीवर जलभराव का सबसे बड़ा कारण है। पालीथिन, घर से निकलने वाले रसायन और नष्ट न होने वाले कचरे की बढ़ती मात्रा कुछ ऐसे कारण हैं, जो गहरे सीवरों के दुश्मन हैं। महानगरों में सीवर और नालों की सफाई भ्रष्टाचार का बड़ा माध्यम हैं। यह कार्य किसी जिम्मेदार एजेंसी को सौंपना आवश्यक है वरना आने वाले दिनों में महानगरों का यह जलभराव महामारी का रूप ले लेगा। शहरों का सुन्दर और सुव्यवस्थित होना ही नहीं जलनिकास व्यवस्था सुदृढ़ होना भी बेहद जरूरी है। केन्द्र और राज्य सरकारों को आम आवाम को स्मार्ट सिटी का सपना दिखाने से पहले शहरों की बदहाल स्थिति कैसे सुधरे इस पर मंथन करना जरूरी है। शहरों में जलभराव की समस्या बेशक मोदी सरकार की देन न हो लेकिन जनमानस को सब्जबाग दिखाने से पहले सरकार को शहरों की प्रमुख समस्याओं के समाधान की पहल तो करनी ही चाहिए।  

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