Sunday 4 May 2014

हॉकी थामी, जीत की ठानी

मध्यप्रदेश महिला हॉकी: प्रतिभाओं की खान, हर राज्य परेशान
परिवर्तन प्रकृति का नियम ही नहीं मनुष्य के लिए एक चुनौती भी है। जो चुनौतियों से पार पाता है वही सिकंदर कहलाता है। मध्यप्रदेश ने खेलों के समुन्नत विकास की चुनौती स्वीकारी है तो उसके मुखिया शिवराज सिंह और खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया पुश्तैनी खेल हॉकी के गौरवशाली अतीत को पुन: जीना चाहते हैं। मध्यप्रदेश खेलों में आज कहां है, यह सवाल करने से पहले 10 साल पूर्व हम कहां थे, पर नजर डालना जरूरी है। बीमारू मध्यप्रदेश को एक दशक में कुछ क्षेत्रों में कायाकल्प का श्रेय मिलना उसके जुनून का प्रतिफल है। खेलों खासकर महिला हॉकी के उत्थान की दिशा में शिवराज सिंह और कर्मठ यशोधरा राजे सिंधिया ने एक मील का पत्थर स्थापित किया है।
आठ साल पहले दूसरे राज्यों की प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के सहारे मध्यप्रदेश में चला हॉकी का कारवां आहिस्ते-आहिस्ते ही सही अपनी मंजिल की ओर अग्रसर है। ग्वालियर के जिला खेल परिसर कम्पू में स्थापित देश की सर्वश्रेष्ठ महिला हॉकी एकेडमी खिलाड़ियों की प्रथम पाठशाला ही नहीं ऐसी वर्णमाला है जिसके बिना महिला हॉकी की बात पूरी नहीं होती। सच कहें तो यह खेलों की ऐसी कम्पनी है जहां खिलाड़ी का खेल-कौशल ही नहीं निखरता बल्कि उनका जीवन भी संवरता है। आठ साल में खेलों के इस संस्थान ने मुल्क को जहां दर्जनों नायाब खिलाड़ी दिए हैं तो 31 बेटियों को रेलवे में रोजगार भी मिला है, इनमें पांच बेटियां मध्यप्रदेश की भी हैं।
खेलों से वास्ता या यूं कहें नजदीकी नजर न रखने वाले प्राय: यह सवाल करते हैं कि प्रदेश में स्थापित विभिन्न खेल एकेडमियों से मध्यप्रदेश को क्या मिला? यह सच है कि शुरूआती दौर में विभिन्न एकेडमियों में दीगर राज्यों के खिलाड़ियों को निर्धारित 50 फीसदी कोटे से अधिक अवसर मिले पर आज यह बात नहीं है। प्रतिद्वंद्विता सफलता का मूलमंत्र है। दूसरे राज्यों के खिलाड़ियों के प्रवेश को अपने हकों के खिलाफ मानना नासमझी भरी बात है। दूसरे राज्यों के खिलाड़ियों से मध्यप्रदेश के खिलाड़ियों को प्रतिद्वंद्विता ही नहीं सफलता का मंत्र भी मिला, जोकि जरूरी था। महिला हॉकी की बात करें तो आज मध्यप्रदेश की प्रतिभाशाली जूनियर और सब जूनियर बेटियां राष्टÑीय क्षितिज पर अपने गौरवशाली भविष्य की आहट दे रही हैं।
कल तक मध्यप्रदेश महिला हॉकी पर बात न करने वाले राज्य आज मध्यप्रदेश की तरफ ताक रहे हैं। उन्हें मध्यप्रदेश से ईर्ष्या हो रही है। आज मध्यप्रदेश की 1-2 बेटियां नहीं बल्कि लगभग तीन दर्जन प्रतिभाशाली लाड़लियां मादरेवतन को ललकार रही हैं।  इनकी इस ललकार में दम न होता तो वे राष्ट्रीय स्तर पर कभी चैम्पियन न बनतीं। मध्यप्रदेश की ये बेटियां अपने राज्य के साथ हिन्दुस्तान का भी स्वर्णिम भविष्य हैं। कुछ बेटियां टीम इण्डिया के दरवाजे पर दस्तक दे चुकी हैं तो कुछ के पदचाप सुनाई देने लगे हैं। मध्यप्रदेश में खेलों के प्रति आई जागृति सुखद लम्हा है। कामयाबी के इस सिलसिले को जारी रखने के लिए प्रदेश की आवाम को नकारात्मक सोच से परे इन बेटियों का करतल ध्वनि से इस्तकबाल करना चाहिए क्योंकि इन्होंने खेलों को अपना करियर बनाने की जो ठानी है। अभी जश्न मनाने का समय नहीं आया, मंजिल अभी कुछ दूर है। मंजिल मिलेगी और जरूर मिलेगी क्योंकि अपनी बेटियों ने न केवल हॉकी थामी है बल्कि जीत का संकल्प भी लिया है।
ये हैं अपनी हॉकी शहजादियां....
जुलाई, 2006 में ग्वालियर में खुली राज्य महिला हॉकी एकेडमी के शुरूआती दो साल तक मध्यप्रदेश में प्रतिभाओं का अकाल सा था। तब लग रहा था कि आखिर प्रदेश किराये की कोख से कब तक काम चलाएगा। अब यह बात नहीं है। शिवराज सिंह की महत्वाकांक्षी हॉकी फीडर सेण्टर योजना का लाभ पुरुष हॉकी एकेडमी को बेशक न मिला हो पर महिला हॉकी एकेडमी की पौ बारह हो गई है। इस एकेडमी में अब अपनी बेटियां न सिर्फ प्रवेश पा रही हैं बल्कि दूसरे राज्यों की खिल्ली भी उड़ा रही हैं। इस सफलता में ग्वालियर के दर्पण मिनी स्टेडियम का जहां सर्वाधिक योगदान है वहीं प्रदेश के दूसरे जिलों से भी प्रतिभाएं अपनी एकेडमी में प्रवेश पा रही हैं। मध्यप्रदेश की इस आशातीत सफलता से हरियाणा, उड़ीसा, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश आदि को रश्क हो रहा है। इन राज्यों की समझ में नहीं आ रहा कि अनायास मध्यप्रदेश महिला हॉकी का गढ़ कैसे बन गया। इन आठ वर्षों में मध्यप्रदेश की हॉकी बेहतरी में कुछ ऐसे लोगों का योगदान है जोकि राष्ट्रीय स्तर पर बेशक बड़े गुरुज्ञानी न माने जाते हों पर उन्होंने दिन-रात एक कर साबित किया कि-
मुसाफिर वह है जिसका हर कदम मंजिल की चाहत हो,
मुसाफिर वह नहीं जो दो कदम चल करके थक जाए।
महिला हॉकी एकेडमी के मुख्य प्रशिक्षक परमजीत सिंह वह मुसाफिर हैं जिन्होंने मुश्किल हालातों में भी हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने स्थानीय खिलाड़ियों के महत्व को न केवल स्वीकारा है बल्कि उन्होंने चाहा कि मध्यप्रदेश की बेटियां हर वय की राष्ट्रीय चैम्पियन बनें। उन्हें भरोसा है कि वह दिन दूर नहीं जब यहां की बेटियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मध्यप्रदेश का नाम रोशन करेंगी। टीम इण्डिया के दरवाजे पर दस्तक देने वाली ग्वालियर की करिश्मा यादव और नेहा सिंह के साथ ही साथ भोपाल की डिफेण्डर सीमा वर्मा आज देश की उदीयमान खिलाड़ियों में शुमार है।
कौन कहां की बेटी...
करिश्मा यादव, नेहा सिंह-स्नेहा सिंह (दोनों बहनें), राखी प्रजापति, प्रतिभा आर्य, इशिका चौधरी, कृतिका चंद्रा, नंदनी कुशवाह, दिव्या थेटे, निशा रजक, योगिता वर्मा उर्फ मुस्कान, अनुजा सिंह, (सभी ग्वालियर)। अंजली मुड़ैया (शिवपुरी), उपासना सिंह (मुरैना). प्रियंका वानखेड़े, श्यामा तिड़गम (सिवनी), निहारिका सक्सेना, प्रियंका चन्द्रावत, नीलू डोडिया (मंदसौर), रीना राठौर, आकांक्षा परमार, बृजनंदनी धूरिया उर्फ खुशबू, विनीता रायकवार, प्रतीक्षा, सोनम तिवारी (सभी छतरपुर), साधना सेंगर (होशंगाबाद), सीमा वर्मा (भोपाल) आदि।
मध्यप्रदेश की इन बेटियों को मिली रेलवे में नौकरी
रैना यादव, जहान आरा बानो, निहारिका सक्सेना, रीना राठौर, प्रीति पटेल।
इस बार इनका भाग्य चमका:- लिली चानू, मनमीत कौर, रेनुका यादव, रमगईज्वाली उर्फ नूते, रीना राठौर, निहारिका सक्सेना, प्रीति पटेल।  
   

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