Wednesday 14 May 2014

प्रतिभाओं की खान, नहीं हैं खेल मैदान

उत्तर प्रदेश की प्रतिभाएं चमका रहीं दूसरे राज्यों का नाम
आगरा की उपासना, गोरखपुर की दीक्षा और प्रीति का जलवा
आगरा, इलाहाबाद, झांसी, गोरखपुर, कानपुर, मऊ, गाजीपुर में है हॉकी का भविष्य
आगरा। पुश्तैनी खेल हॉकी का गौरवमयी इतिहास अपने अंतस में समेटे देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश प्रतिभाओं के लिहाज से कभी भी कमतर नहीं रहा। आज भी यहां एक से बढ़कर एक प्रतिभाएं हैं लेकिन मुकम्मल मैदानों और उचित परवरिश के अभाव में वे न केवल पलायन कर रही हैं बल्कि दूसरे राज्यों का गौरव भी बढ़ा रही हैं। खिलाड़ियों के इस पलायन पर प्रदेश के खेल विभाग का जरा भी ध्यान नहीं है।
प्रतिभाओं के पलायन को रोकने के लिए प्रदेश सरकार को न केवल उनके पेट की तरफ ध्यान देना चाहिए बल्कि जहां प्रतिभाएं हैं वहां खेल मैदानों की भी व्यवस्था जरूरी है। हॉकी को अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पण करने वाले खिलाड़ियों का मानना है कि प्रदेश में खेल सुविधाएं नाकाफी हैं तो खेल बजट भी खिलाड़ियों को मुंह चिढ़ा रहा है। जहां प्रतिभाएं हैं वहां मैदान नहीं हैं और जहां कुछ नहीं है वहां आंख मूंदकर पैसा जाया किया जा रहा है। अतीत के नायाब हॉकी खिलाड़ियों का मानना है कि प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव चाहें तो हॉकी की दिशा और दशा दोनों बदल सकती है। इतने बड़े प्रदेश में सिर्फ सात कृत्रिम हॉकी मैदानों से काम नहीं चलने वाला। फिलवक्त उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में दो, वाराणसी, सैफई, रामपुर, बरेली तथा रायबरेली में एक-एक हॉकी मैदान है। इनमें भी दो हॉकी मैदान भारतीय खेल प्राधिकरण के हैं।
प्रदेश में आगरा, इलाहाबाद, झांसी, गोरखपुर, कानपुर, मऊ, गाजीपुर (अजगांवा) आदि में हॉकी का भविष्य तो है लेकिन मुकम्मल मैदान नहीं हैं। पूर्व खिलाड़ियों का कहना है कि प्रदेश सरकार यदि इन जिलों में कृत्रिम हॉकी मैदानों की व्यवस्था कर दे तो एक बार फिर दुनिया में उत्तर प्रदेश और भारतीय हॉकी की तूती बोल सकती है। मैदानों के अभाव में जिस तरह प्रदेश की प्रतिभाएं पलायन कर रही हैं वह खेलों के लिहाज से बेहद दु:खद बात है। ये हॉकी प्रतिभाएं न केवल खेल के लिए अपने मां-बाप से दूर हो रही हैं बल्कि दूसरे राज्यों का नाम भी रोशन कर रही हैं। देखा जाए तो प्रदेश में सिर्फ हॉकी ही नहीं दूसरे खेलों में भी प्रतिभा पलायनवाद जारी है।
क्या करें पलायन हमारी मजबूरी है
अपने प्रदेश के लिए भला कौन नहीं खेलना चाहता, पर क्या करें उत्तर प्रदेश में खेल संस्कृति दम तोड़ रही है। खेलने को मैदान नहीं हैं तो डाइट के रूप में भी सिर्फ 100 रुपये मिलते हैं। खेलना है तो मां-बाप और अपने परिजनों से दूर रहने की पीड़ा तो सहन ही करनी होगी। पुष्प सवेरा से यह पीड़ा गोरखपुर की दीक्षा तिवारी, प्रीति दुबे और आगरा की उपासना सिंह ने व्यक्त की। भारतीय जूनियर हॉकी शिविर के लिए चयनित हॉकी बेटियों ने कहा कि यदि वे ग्वालियर में स्थापित मध्यप्रदेश राज्य महिला हॉकी एकेडमी से नहीं जुड़तीं तो शायद उनकी किस्मत कभी नहीं बदलती। करमपुर (गाजीपुर) की जमीला बानो, नुसरत जहां आदि एक दर्जन यूपी की प्रतिभाएं भी एमपी एकेडमी में अपना खेल निखार चुकी हैं।
एमपी में हैं नौ कृत्रिम हॉकी मैदान
आबादी के लिहाज से छोटे से राज्य मध्यप्रदेश में नौ कृत्रिम हॉकी मैदान हैं, जिनमें चार भोपाल तो तीन मैदान ग्वालियर में हैं। बैतूल और सिवनी में एक-एक मैदान है। प्रदेश सरकार ने 15 और आधुनिक मैदानों की अधोसंरचना को हरी झण्डी दिखा दी है। इस तरह मध्यप्रदेश में अब 24 कृत्रिम हॉकी मैदान हो जाएंगे, जोकि एक कीर्तिमान होगा।
हॉकी में इनकी भी बोली तूती
कालजयी मेजर ध्यानचंद, केडी सिंह बाबू, ए.डब्ल्यू. कैलब, मोहम्मद शाहिद, जगबीर सिंह, सैयद अली, रविन्द्र पाल, सुरजीत कुमार, दानिश मुज्तबा आदि ने जहां पुरुष हॉकी में अपने खेल-कौशल की धूम मचाई वहीं महिला हॉकी में गोरखपुर की प्रेममाया (पहली अर्जुन अवॉर्डी), मेरठ की सुधा चौधरी, उपाक्षी पाली, रजिया जैदी, रंजना गुप्ता, मंजू विष्ट, पुष्पा श्रीवास्तव, रजनी जोशी आदि का लोहा दुनिया ने माना। 

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