Friday 16 May 2014

चमका हीरा का हीरा

किस्मत की फटी चादर का कोई रफूगर नहीं होता यह बात लोकतंत्र के सोलहवें आम चुनाव में मुल्क की आवाम ने यूपीए के खिलाफ अपने जनादेश से सिद्ध कर दिखाया है। भारतीय लोकतंत्र में हीरा बेन का हीरा नरेन्द्र मोदी ऐतिहासिक पटकथा लिखेगा इस बात को लेकर तरह-तरह की आशंकाएं थीं। सल्तनत की जंग में मोदी को सिर्फ विरोधियों ने ही नहीं अपनों ने भी खूब ललकारा लेकिन लोकतंत्र के चक्रव्यूह में फंसे मोदी ने कभी आपा नहीं खोया बल्कि अपनी आदत के विपरीत सौम्य, शांतचित अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ते रहे। उनके खिलाफ वह कुछ बोला गया जोकि न केवल अमर्यादित था बल्कि मानवीय दृष्टि से भी दिल दुखाने वाला रहा। संकट की इस घड़ी में मोदी का सारथी कोई और नहीं बल्कि मुल्क की आवाम बनी।
चुनावी महासमर में प्रतिद्वन्द्वी राजनीतिज्ञों ने मोदी विजन की जमकर खिल्ली उड़ाई पर मोदी के कहे हर अल्फाज पर देश की आवाम को यकीन था। देश का यही यकीन आज हकीकत में बदल चुका है। मोदी तो जीते ही मुल्क का खण्डित जनादेश भी हार गया। इस बार मतदाताओं ने अपनी समझदारी से कई छोटे दलों को सबक सिखाते हुए उन्हें चेताया है कि अब मुल्क में जाति-धर्म की राजनीति नहीं चलने वाली। लोकतंत्र के सोलहवें महाकुम्भ में अकेले मोदी ही नहीं देश की चुनावी प्रक्रिया भी कसौटी पर रही। इसके लिए मतदाताओं को न केवल जागरूक किया गया बल्कि इसके लिए करोड़ों रुपये भी खर्च हुए। चुनाव आयोग को इसमें काफी हद तक सफलता भी मिली। वर्ष 2009 के पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार जहां मतदान का प्रतिशत बढ़ा वहीं नये मतदाताओं ने इन चुनावों को उत्सव या यूं कहें एक अभियान सा बना दिया। इन युवाओं ने खुद तो बढ़-चढ़कर मतदान किया ही, सोशल मीडिया के जरिये अन्य मतदाताओं को भी प्रेरित किया।
युवाओं को मोदी का विकास एजेण्डा इतना भाया कि उसने जाति-धर्म से परे अपना फैसला सुनाकर कमल दल की बांछें खिला दीं। कहते हैं कि सफलता के कई बाप होते हैं लेकिन नरेन्द्र मोदी की इस ऐतिहासिक सफलता का सारा श्रेय युवाओें को जाता है। हर-हर मोदी, घर-घर मोदी के अल्फाजों से युवा ही नहीं, गरीबी और भुखमरी का दंश झेल रहे लोग भी खासे प्रभावित हुए। यही वजह रही कि इस बार जो लोग मतदान के महत्व से बेखबर थे उन्होंने भी उत्साह से मताधिकार का प्रयोग किया। नौ चरणों में हुए लोकतंत्र के इस पुनीत कार्य में प्रतिद्वन्द्वी राजनीतिज्ञों में मोदी के नाम का डर था तो देश की आवाम में मोदी को एक अवसर देने का जुनून साफ देखा गया। कहना नहीं होगा कि चुनाव आयोग और मतदाताओं के शानदार प्रदर्शन पर ग्रहण लगाने का काम राजनीतिक दलों और नेताओं ने भी अपने कदाचरण से खूब किया। उनकी बेलगाम बयानबाजी ने जहां राजनीतिक बहस के स्तर को गिराया वहीं जाति-सम्प्रदाय के आधार पर मतों के धु्रवीकरण की कोशिश से लोकतंत्र की साख भी संदेह के दायरे में आई बावजूद इसके मतदाताओं ने न सिर्फ संयम बरता, बल्कि अपने मताधिकार का उपयोग कर लोकतंत्र की मजबूती और स्थिर सरकार के चयन की प्रक्रिया में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई। एक माह से भी अधिक समय तक चली इस कवायद और प्रचार अभियान में भाजपा और उसके प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी हमेशा दूसरों पर भारी नजर आये। समय दिन-तारीख देखकर आगे नहीं बढ़ता। जनता ने कांग्रेस के कुशासन और मोदी के सुशासन पर जो अटूट भरोसा दिखाया है उसके बदले में उसे रामराज्य नहीं बल्कि रोटी, कपड़ा और मकान चाहिए। मुल्क की आम आवाम ने यही भरोसा 2004 और 2009 में मनमोहन सिंह से भी किया था। लोगों को उम्मीद थी कि एक विश्वस्तरीय अर्थशास्त्री भारत को सुपर पॉवर बनाएगा, कोई भूखा नहीं सोयेगा पर अफसोस 10 साल के यूपीए के कार्यकाल में राजनीतिज्ञ तो मालामाल हुए पर गरीब भुखमरी का शिकार हो गया।
अपने 10 साल के कार्यकाल में मनमोहन सिंह निरंकुश महंगाई पर अंकुश लगाने में सफल नहीं हुए। इसी का नतीजा है कि जनता ने यूपीए को पूरी तरह से खारिज कर दिया। कहते हैं कि गेहूं के साथ घुन भी पिस जाता है और कभी-कभी अच्छाई को एक दाग खण्डित कर देता है। कांग्रेस के साथ भी यही हुआ। यूपीए-दो के कार्यकाल में लगातार संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा का हृास होने के साथ संसदीय समितियों का जमकर राजनीतिकरण किया गया। घोटालों की जहां बाढ़ सी आई वहीं लोकपाल जैसे आंदोलन में आम आवाम की आवाज को दबाने की भी पुरजोर कोशिश हुई। यूपीए सरकार को 2009 के बाद भ्रष्टाचार खत्म करने के साथ ही नौकरशाही में बदलाव लाने और उनकी जिम्मेदारी निर्धारण के उपाय के साथ नक्सल समस्या की धार को निस्तेज करना था। असफल योजनाएं कैसे सफल हों, उसकी रणनीति बनानी थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
किसी भी सरकार के काम के आकलन के लिए लम्बे वक्त की आवश्यकता होती है। 21 मई को मुल्क की बागडोर सम्हालने जा रहे नरेन्द्र मोदी को बिरासत में समस्याओं का अम्बार मिला है। मुल्क के अधिसंख्य लोग महंगाई से त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रहे हैं। उन्हें उस मोदी से भरोसा है जिसने अपनी तीन लाख किलोमीटर की थकाऊ यात्रा और हजारों जनसभाओं में लोगों को खुशहाली का सब्जबाग दिखाया था। नरेन्द्र मोदी से लोगों को उम्मीद है कि वे किसी को भूखा नहीं सोने देंगे। उनके शासनकाल में न केवल गुनहगार को सजा मिलेगी बल्कि कोई बेवजह जुल्मो-सितम का सामना नहीं करेगा। देश की जनता ने उस मोदी को अपना भाग्यविधाता चुना है जोकि बिना किसी दबाव के अपने काम को अंजाम देने की क्षमता रखता है। यह मोदी ही नहीं बल्कि भारत की जीत है लिहाजा हिन्दुत्व के इस अलम्बरदार को यह साबित करना चाहिए कि वह जो कहता है सिर्फ वही करता है।

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