भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने विदेशी धरती पर भारतीय टीम के प्रदर्शन की समीक्षा करने का फैसला किया है। बीते तीन साल में भारत ने विदेशों में एक भी श्रृंखला नहीं जीती है।
बीसीसीआई के शीर्ष अधिकारी जल्द ही कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और कोच डंकन फ्लेचर से मिलने वाले हैं। दोनों से यह जानने का प्रयास किया जाएगा कि बीते तीन साल में विदेशों में भारत के प्रदर्शन में लगातार गिरावट क्यों आई है?
बकौल बोर्ड अधिकारी, हम हालात का जायजा लेना चाहते हैं। हम जानना चाहते हैं कि आखिरकार गलती कहां हो रही है। हम उनसे यह भी जानना चाहेंगे कि सुधार के क्या रास्ते हैं। फ्लेचर ने 2011 में इंग्लैंड दौरे के साथ भारत के कोच के तौर पर काम करना शुरू किया था। उस श्रृंखला में भारत को 0-4 से हार मिली थी और उसके बाद के तीन सालों में भारत ने घर में तो कई श्रृंखलाएं जीती हैं लेकिन विदेशोें में उसे लगातार हार मिली है। अधिकारी ने कहा कि न्यूजीलैंड के हाथों मिली हार के बाद लोगों में टीम के प्रदर्शन को लेकर गुस्सा था और वे चाहते थे कि कप्तान और कोच को हटाया जाए लेकिन इसके बावजूद बोर्ड ने उन पर विश्वास कायम करते हुए उन्हें आगे की जिम्मेदारी सौंपी है। धोनी की कप्तानी में भारतीय टीम विदेशों में लगातार चार टेस्ट श्रृंखला गंवा चुकी है। विदेशी धरती पर खेली गई किसी टेस्ट श्रृंखला में भारत को अंतिम जीत जून 2011 में मिली थी। भारतीय टीम ने तीन मैचों की श्रृंखला में वेस्टइंडीज को 1-0 से हराया था लेकिन उसके बाद से सूखा सा आ गया है। इस दौरान भारत ने अपने घर में चार श्रृंखलाएं जीतीं लेकिन विदेशों में जीत का उसका मंसूबा धरा ही रह गया है।
न्यूजीलैंड ने मंगलवार को समाप्त दो मैचों की टेस्ट श्रृंखला में भारत को 1-0 से हराया। उसने आॅकलैंड टेस्ट में जीत हासिल की थी। वेलिंगटन में भारतीय टीम तीसरे दिन तक जीत की स्थिति में थी लेकिन चौथे और पांचवें दिन के खेल के दौरान वह बैकफुट पर नजर आई और एक समय टेस्ट गंवाने की स्थिति में दिख रही थी लेकिन विराट कोहली ने नाबाद 105 रन बनाकर उसे इस फजीहत से बचा लिया। न्यूजीलैंड दौरे से पहले भारत ने दक्षिण अफ्रीका दौरा किया था और वहां उसे दो मैचों की टेस्ट श्रृंखला में 0-1 से मुंह की खानी पड़ी थी। उससे पहले 2013-14 और 2012-13 सत्रों में भारत ने दो लगातार घरेलू श्रृंखलाएं जीतीं। उसने वेस्टइंडीज को दो मैचों की श्रृंखला में पारी के अंतर से हराया। यह सचिन तेंदुलकर की विदाई श्रृंखला थी। उससे पहले भारत ने बार्डर-गावस्कर ट्रॉफी के तहत आस्टेलिया के साथ खेली गई चार मैचों की श्रृंखला में 4-0 से जीत हासिल की थी। उस श्रृंखला में भारतीय टीम का प्रदर्शन काबिलेतारीफ था लेकिन उसे उतना प्रभावशाली नहीं माना गया क्योंकि आस्टेलियाई टीम संक्रमणकाल से गुजर रही थी और वह अपनी क्षमता के अनुरूप नहीं खेल सकी थी। आस्टेलिया पर फतह से पहले 2012-13 सत्र में ही भारत ने इंग्लैंड की मेजबानी की थी, जो उसके लिए नाक कटाने वाला साबित हुआ था। इंग्लिश टीम ने भारत को उसके घर में 2-1 से हराकर अपना वर्चस्व कायम किया था। इस श्रृंखला से पहले भारत ने न्यूजीलैंड टीम की मेजबानी की थी और दो मैचों की श्रृंखला में 2-0 से जीत हासिल की थी। उस हार से ही तमतमाई कीवी टीम ने अपने घर में न सिर्फ भारत को एकदिवसीय श्रृंखला में हराया बल्कि टेस्ट मैचों में पटखनी दी। जून 2011 में वेस्टइंडीज पर मिली अंतिम विदेशी टेस्ट श्रृंखला के बाद भारत ने इंग्लैंड का दौरा किया था। यह दौरा भारत के दिग्गजों के लिए आंख खोलने वाला साबित हुआ था। एशेज में कई मौकों पर आस्टेलिया को पटखनी देने वाली इंग्लिश टीम ने खेल के हर विभाग में भारत को दोयम साबित करते हुए चार मैचों की श्रृंखला 4-0 से अपने नाम की थी। 2011-12 सत्र में जब वेस्टइंडीज टीम भारत दौरे पर आई तो भारत ने उसे एक बार फिर तीन मैचों की श्रृंखला में 2-0 से हराकर इंग्लैंड के हाथों बीती हार का गम भुलाने का प्रयास किया लेकिन उसकी अगली परीक्षा आस्टेÑलिया दौरे पर होनी थी। तमाम दिग्गजों से लैस भारतीय टीम को आस्टेÑलिया में अगले ही दौरे में 4-0 की हार मिली। इसी ने शायद भारत को 2012-13 सत्र में अपने घर में आस्टेÑलिया को इसी अंतर से हराने की प्रेरणा दी थी।
बीसीसीआई के शीर्ष अधिकारी जल्द ही कप्तान महेंद्र सिंह धोनी और कोच डंकन फ्लेचर से मिलने वाले हैं। दोनों से यह जानने का प्रयास किया जाएगा कि बीते तीन साल में विदेशों में भारत के प्रदर्शन में लगातार गिरावट क्यों आई है?
बकौल बोर्ड अधिकारी, हम हालात का जायजा लेना चाहते हैं। हम जानना चाहते हैं कि आखिरकार गलती कहां हो रही है। हम उनसे यह भी जानना चाहेंगे कि सुधार के क्या रास्ते हैं। फ्लेचर ने 2011 में इंग्लैंड दौरे के साथ भारत के कोच के तौर पर काम करना शुरू किया था। उस श्रृंखला में भारत को 0-4 से हार मिली थी और उसके बाद के तीन सालों में भारत ने घर में तो कई श्रृंखलाएं जीती हैं लेकिन विदेशोें में उसे लगातार हार मिली है। अधिकारी ने कहा कि न्यूजीलैंड के हाथों मिली हार के बाद लोगों में टीम के प्रदर्शन को लेकर गुस्सा था और वे चाहते थे कि कप्तान और कोच को हटाया जाए लेकिन इसके बावजूद बोर्ड ने उन पर विश्वास कायम करते हुए उन्हें आगे की जिम्मेदारी सौंपी है। धोनी की कप्तानी में भारतीय टीम विदेशों में लगातार चार टेस्ट श्रृंखला गंवा चुकी है। विदेशी धरती पर खेली गई किसी टेस्ट श्रृंखला में भारत को अंतिम जीत जून 2011 में मिली थी। भारतीय टीम ने तीन मैचों की श्रृंखला में वेस्टइंडीज को 1-0 से हराया था लेकिन उसके बाद से सूखा सा आ गया है। इस दौरान भारत ने अपने घर में चार श्रृंखलाएं जीतीं लेकिन विदेशों में जीत का उसका मंसूबा धरा ही रह गया है।
न्यूजीलैंड ने मंगलवार को समाप्त दो मैचों की टेस्ट श्रृंखला में भारत को 1-0 से हराया। उसने आॅकलैंड टेस्ट में जीत हासिल की थी। वेलिंगटन में भारतीय टीम तीसरे दिन तक जीत की स्थिति में थी लेकिन चौथे और पांचवें दिन के खेल के दौरान वह बैकफुट पर नजर आई और एक समय टेस्ट गंवाने की स्थिति में दिख रही थी लेकिन विराट कोहली ने नाबाद 105 रन बनाकर उसे इस फजीहत से बचा लिया। न्यूजीलैंड दौरे से पहले भारत ने दक्षिण अफ्रीका दौरा किया था और वहां उसे दो मैचों की टेस्ट श्रृंखला में 0-1 से मुंह की खानी पड़ी थी। उससे पहले 2013-14 और 2012-13 सत्रों में भारत ने दो लगातार घरेलू श्रृंखलाएं जीतीं। उसने वेस्टइंडीज को दो मैचों की श्रृंखला में पारी के अंतर से हराया। यह सचिन तेंदुलकर की विदाई श्रृंखला थी। उससे पहले भारत ने बार्डर-गावस्कर ट्रॉफी के तहत आस्टेलिया के साथ खेली गई चार मैचों की श्रृंखला में 4-0 से जीत हासिल की थी। उस श्रृंखला में भारतीय टीम का प्रदर्शन काबिलेतारीफ था लेकिन उसे उतना प्रभावशाली नहीं माना गया क्योंकि आस्टेलियाई टीम संक्रमणकाल से गुजर रही थी और वह अपनी क्षमता के अनुरूप नहीं खेल सकी थी। आस्टेलिया पर फतह से पहले 2012-13 सत्र में ही भारत ने इंग्लैंड की मेजबानी की थी, जो उसके लिए नाक कटाने वाला साबित हुआ था। इंग्लिश टीम ने भारत को उसके घर में 2-1 से हराकर अपना वर्चस्व कायम किया था। इस श्रृंखला से पहले भारत ने न्यूजीलैंड टीम की मेजबानी की थी और दो मैचों की श्रृंखला में 2-0 से जीत हासिल की थी। उस हार से ही तमतमाई कीवी टीम ने अपने घर में न सिर्फ भारत को एकदिवसीय श्रृंखला में हराया बल्कि टेस्ट मैचों में पटखनी दी। जून 2011 में वेस्टइंडीज पर मिली अंतिम विदेशी टेस्ट श्रृंखला के बाद भारत ने इंग्लैंड का दौरा किया था। यह दौरा भारत के दिग्गजों के लिए आंख खोलने वाला साबित हुआ था। एशेज में कई मौकों पर आस्टेलिया को पटखनी देने वाली इंग्लिश टीम ने खेल के हर विभाग में भारत को दोयम साबित करते हुए चार मैचों की श्रृंखला 4-0 से अपने नाम की थी। 2011-12 सत्र में जब वेस्टइंडीज टीम भारत दौरे पर आई तो भारत ने उसे एक बार फिर तीन मैचों की श्रृंखला में 2-0 से हराकर इंग्लैंड के हाथों बीती हार का गम भुलाने का प्रयास किया लेकिन उसकी अगली परीक्षा आस्टेÑलिया दौरे पर होनी थी। तमाम दिग्गजों से लैस भारतीय टीम को आस्टेÑलिया में अगले ही दौरे में 4-0 की हार मिली। इसी ने शायद भारत को 2012-13 सत्र में अपने घर में आस्टेÑलिया को इसी अंतर से हराने की प्रेरणा दी थी।
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