भारतीय ओलम्पिक संघ के चुनाव में नाम वापसी की रस्म पूरी होते ही अभय चौटाला (अध्यक्ष), ललित भनोट (महासचिव), वीरेंद्र नानावटी (वरिष्ठ उपाध्यक्ष) और एन. रामचंद्रन (कोषाध्यक्ष) को बेशक देश भर से जीत की बधाइयां मिलने लगी हों पर इन चुनावों से अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (आईओसी) के रहस्य का पर्दा उठना अभी भी बाकी है। दरअसल इस रहस्य के पर्दे की डोर उन हाथों में है जो भारत की खाते हैं लेकिन आईओसी की बजाते हैं। ये वे लोग हैं जो भारतीय खेल मंत्रालय के साथ मिलकर न केवल चुनावी खेल बिगाड़ने की हरमुमकिन कोशिश कर रहे हैं बल्कि भारतीय अस्मिता की भी इन्हें परवाह नहीं है।
भारतीय ओलम्पिक संघ के चुनाव पांच दिसम्बर को होने हैं। प्रथम दृष्टया इन चुनावों पर भले ही किसी तरह का संकट नजर नहीं आ रहा हो पर आईओए और केन्द्रीय खेल मंत्रालय की आपसी लड़ाई आईओसी को अपना कानूनी डण्डा चलाने को जरूर उकसा रही है। आईओए चुनाव को लेकर भारतीय खेल मंत्रालय ने अन्तरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति के अध्यक्ष जैक्स रोगे को कई परवाने लिखकर स्पष्ट किया है कि उसका आईओए के मामलों में हस्तक्षेप का कोई इरादा नहीं है पर आईओए स्वयं ही पारदर्शिता, सुशासन तथा ओलम्पिक चार्टर का पालन करने में विफल है। भारतीय खेल मंत्रालय द्वारा आईओए पर उंगली उठाना आईओसी को तो नागवार नहीं गुजरा पर आईओए के कार्यवाहक अध्यक्ष विजय कुमार मल्होत्रा इससे जरूर आग-बबूला हैं। श्री मल्होत्रा ने आईओसी अध्यक्ष रोगे को लिखे पत्र में स्पष्ट कहा था कि मंत्रालय उसके मामलों और चुनावी प्रक्रिया में अनावश्यक हस्तक्षेप कर रहा है। मल्होत्रा ने सख्त आपत्ति जताते हुए खेल सचिव प्रदीप के. देव पर आईओसी को सीधे पत्र लिखकर मुल्क के खेल महासंघों की स्वायत्तता पर हमला बोलने की तोहमत भी लगाई।
देश के खेलप्रेमियों को आईओए चुनाव बेशक सामान्य प्रक्रिया नजर आ रहे हों पर आईओए और खेल मंत्रालय की इस लड़ाई से यह तो साफ हो ही गया कि है कि पांच दिसम्बर को होने जा रहे चुनावों में सब कुछ साफ-सुथरा नहीं है। इन चुनावों में अभी भी काफी घटनाक्रम बदल सकते हैं। पहले आईओए के चुनाव 25 नवम्बर को होने थे लेकिन चुनावी कवायद में कुछ अड़चनों के चलते इन्हें पांच दिसम्बर तक आगे बढ़ाया गया। आईओए और खेल मंत्रालय के बीच पर्दे के पीछे जारी नूरा-कुश्ती जहां इन चुनावों को विवादित बना रही है वहीं आईओसी के सदस्य रणधीर सिंह भी चुपचाप नहीं बैठे हैं।
दरअसल इन चुनावों के जरिये भारतीय खेल मंत्रालय जहां अपने खेल विधेयक को अस्तित्व में लाने का प्रयास कर रहा है वहीं आईओसी अपने चार्टर में किसी भी फेरबदल के खिलाफ है। एक तरफ तो सरकार कह रही है कि वह आईओए के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती तो दूसरी तरफ वह इस बात पर जोर दे रही है कि राष्ट्रीय खेल महासंघ तथाकथित खेल संहिता को स्वीकार करें। देखा जाए तो सरकार की खेल संहिता में हर उस चीज का उल्लंघन होता है जो आईओए के संविधान और आईओसी के चार्टर में है। आईओए और सरकार के बीच लड़ाई सिर्फ इस बात पर है कि खेल महासंघ खेल संहिता को सीधे-सीधे नकार चुके हैं जबकि खेल मंत्रालय चाहता है कि चुनाव खेल विधेयक के दायरे में हों। भारतीय खेल संहिता का उद्देश्य आईओए और अन्य खेल संघों के चुनाव निष्पक्ष, पारदर्शी और ओलम्पिक चार्टर के अनुसार कराने पर है। खेल संहिता जहां ओलम्पिक चार्टर के सिद्धांतों की हिमायती है वहीं दिल्ली न्यायालय ने भी संहिता का अनुमोदन किया है।
दुविधा की इस स्थिति में आईओए और खेल मंत्रालय की इस लड़ाई का पांच दिसम्बर को होने वाले चुनावों पर सीधा असर पड़ सकता है। हालांकि अभी आईओसी ने मंत्रालय और आईओए के लिखे गये परवानों पर अपनी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है पर आईओए चुनावों पर संकट अभी भी बरकरार है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के छोटे बेटे अभय खेलप्रेमी हैं, उनमें खेल-खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने का जुनून भी है। वह चाहते हैं कि खिलाड़ी मैदान में अपने शानदार प्रदर्शन से मादरेवतन का नाम रोशन करें पर आईओसी व भारतीय खेल मंत्रालय के कुछ पिछलग्गू नहीं चाहते कि भारतीय ओलम्पिक संघ का माहौल सुधरे। देखा जाए तो अभय सिंह चौटाला के पक्ष में अधिकांश राज्य ओलम्पिक संघों सहित लगभग सभी संघ पदाधिकारी लामबंद रहे हैं। अभय सिंह चौटाला की इसी ताकत के चलते ही रणधीर सिंह को आईओए के चुनावी मैदान से हटना पड़ा है। रणधीर सिंह के मैदान छोड़ने और उनके द्वारा लगातार आईओसी को शह देने से इन चुनावों को आईओसी की मान्यता मिलना दूर की कौड़ी नजर आ रही है। इन चुनावों में फसाद की सबसे बड़ी जड़ ललित भनोट हैं जिनको राष्ट्रमण्डल खेलों में भ्रष्टाचार के चलते लगभग एक साल जेल की सलाखों के भीतर रहना पड़ा है। आईओए चुनाव से पहले ही आईओसी ने स्पष्ट कर दिया था कि राष्ट्रमण्डल के दागी लोग यदि चुनाव में उतरे तो वह इन चुनावों को मान्यता नहीं देगा। आईओए के इन चुनावों में राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे ललित भनोट के भारतीय ओलम्पिक संघ के महासचिव पद पर निर्विरोध निर्वाचित होने से एक बार फिर मामला गर्मा गया है। यद्यपि ललित भनोट को अदालत ने अभी दोषी करार नहीं दिया है ऐसे में आईओसी का रुख क्या होगा यह कहना अभी जल्दबाजी होगी। सच तो यह है कि इस देश का कानून जब तक भनोट को दोषी नहीं ठहराता तब तक उन्हें चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता। जो भी हो इन चुनावों में अभी भी गेंद आईओसी के ही पाले में है। हालांकि आईओए के कार्यकारी अध्यक्ष वीके मल्होत्रा को उम्मीद है कि आईओसी चुनाव को गलत नहीं ठहराएगी।