Saturday, 10 November 2012

राजा रणधीर को चौटाला की चुनौती


एक तरफ देश दीपोत्सव की तैयारी में तल्लीन है तो दूसरी तरफ 25 नवम्बर को होने जा रहे भारतीय ओलम्पिक संघ के चुनाव के लिए खेलों के तहखाने में सियासत की सरगर्मी तेज हो गई है। नाक का सवाल बने इन चुनावों में राष्ट्रमण्डल खेलों का दागी सुरेश कलमाडी गुट जहां इण्डियन एमेच्योर बॉक्सिंग फेडरेशन के चेयरमैन अजय चौटाला की पीठ थपथपा रहा है वहीं देश के नामचीन हॉकी ओलम्पियन भारतीय ओलम्पिक संघ के प्रधान सचिव व कोषाध्यक्ष राजा रणधीर सिंह का हौसला बढ़ा रहे हैं। खेलों में सियासत का ऊंट किस करवट बैठेगा इस बात का पता तो चुनाव के बाद चलेगा पर मौजूदा दौर में भारतीय खेल मंत्रालय ने अभय चौटाला के वोट पर सवालिया निशान लगाकर शांत प्याले में तूफान ला दिया है।
भारतीय ओलम्पिक संघ भारत की राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति है। इसका कार्य ओलम्पिक, राष्ट्रमंडल, एशियाई व अन्य अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाड़ियों का चयन और भारतीय दल का प्रबंधन करना है। वर्ष 1927 से अस्तित्व में आए भारतीय ओलम्पिक संघ ने देश को अब तक नौ अध्यक्ष दिये हैं। दोराबजी टाटा (1927-1928) भारतीय ओलम्पिक संघ के पहले अध्यक्ष रहे हैं, इनके प्रयासों से ही 1928 के ओलम्पिक खेलों में भारतीय दल शिरकत कर सका था। भारतीय ओलम्पिक संघ में इसके बाद लगातार 47 साल तक राजा रणधीर सिंह के परिवार का ही राज रहा है। टाटा के बाद 1928 से 1938 तक रणधीर के बाबा महाराजा भूपिन्दर सिंह अध्यक्ष की आसंदी पर बिराजे तो उसके बाद 1938 से 1960 तक यानि पूरे 22 साल उनके चाचा महाराजा यादविन्द्र सिंह आईओए के अध्यक्ष रहे। यादविन्द्र के हटने के बाद रणधीर सिंह के पिता भालिन्द्र सिंह (1960-1975) ने अध्यक्ष की कुर्सी सम्हाली।
देखा जाए तो जिस तरह भारतीय लोकतंत्र की सियासत पर वंशवाद हावी है कमोबेश उसी तरह यहां खेल भी परिवारवाद की परिधि में ही परवान चढ़ रहे हैं। भारतीय ओलम्पिक संघ तो सिर्फ एक उदाहरण है। देश के अधिकांश खेल संघों पर उन खेलनहारों का कब्जा है जिनके बाप-दादा भी कभी नहीं खेले। जो भी हो 1996 के बाद भारतीय ओलम्पिक संघ के होने जा रहे इन चुनावों में कुछ नए समीकरण बन सकते हैं। भारतीय खेल मंत्रालय व अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति ने यदि कानूनी डंडा चला दिया तो कई खेल संघ पदाधिकारी न केवल स्वयं के वोट से वंचित होंगे बल्कि उन्हें हमेशा के लिए खेल संघों से किनारा करना पड़ सकता है।
बीते पांच साल खेल जगत में भारतीय खेल-खिलाड़ियों की हनक के रहे हैं। इस बीच भारत ने राष्ट्रमण्डल खेलों की शानदार मेजबानी का श्रेय लूटा तो हमारे सूरमा खिलाड़ियों ने अपने पौरुष से नए आयाम स्थापित किए। हाल ही केन्द्रीय मंत्रिमंडल में हुए फेरबदल के चलते अजय माकन को खेल मंत्री का पद छोड़ना पड़ा। यह वही अजय माकन हैं जिन्होंने अपने पारदर्शी नजरिये व खेल विधेयक के माध्यम से लम्बे समय से खेल संघों में बिराजे पदाधिकारियों की नींद उड़ा दी थी केन्द्र सरकार को यही नागवार गुजरा। भारतीय ओलम्पिक संघ के होने जा रहे चुनाव पर न केवल अंतरराष्टीय ओलम्पिक समिति पैनी नजर रखे हुए है बल्कि उसने साफ-साफ कह दिया है कि कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले के किसी आरोपी को चुनावी दंगल में न उतारा जाए। आईओसी ने तो यहां तक धमकाया है कि यदि सुरेश कलमाड़ी, ललित भनोट या वीके वर्मा में से कोई चुनाव लड़ा और जीता तो वह आईओए के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेगी। राष्ट्रमंडल खेलों में हुए अरबों के घोटाले के बाद जहां भारत की खेल जगत में जमकर किरकिरी हुई वहीं आईओसी ने भारतीय ओलम्पिक संघ के चुनाव में अपना पर्यवेक्षक भेजने का फैसला लेकर  चिन्ता की लकीरें खींच दी हैं। याद नहीं आता कि दुनिया के किसी देश में इससे पूर्व अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति की देखरेख में चुनाव हुए हों। इन चुनावों को लेकर जहां आईओसी के तेवर तल्ख हैं वहीं आईओए के कार्यवाहक अध्यक्ष प्रोफेसर विजय कुमार मल्होत्रा भारतीय खेल मंत्रालय के किसी भी दिशा-निर्देश को न मानने की कसम खा रहे हैं। प्रो. मल्होत्रा का कहना है कि उम्र और कार्यकाल को लेकर कोर्ट ने हमें और खेल फेडरेशनों को चुनाव कराने का जो आदेश दिया है, वह न तो सही है और न ही तथ्यों पर आधारित। मल्होत्रा का कहना है कि सरकारी खेल विधेयक चूंकि कैबिनेट में ही औंधे मुंह गिर चुका है ऐसे में उसके दिशा-निर्देशों के कोई मायने नहीं रह जाते। भारतीय ओलम्पिक संघ के चुनाव से पूर्व चल रही खेलनहारों की नूराकुश्ती इस बात का सूचक है कि भारतीय खेलों में चोर-चोर मौसेरे भाइयों की पैठ होने के चलते भारतीय खेल मंत्रालय को ही बैकफुट पर जाना होगा। खेलों की इस खेमेबंदी ने चूंकि कई बार खेल मंत्रालय को चौंकाया है ऐसे में इस बात की जरा भी गुंजाइश नहीं है कि नए खेल मंत्री जितेन्द्र सिंह कोई बड़ा जोखिम लेंगे। उन्हें पता है कि अजय माकन की पारदर्शिता का हश्र क्या हुआ है। सच्चाई तो यह है कि अजय माकन को खेल मंत्री पद से इसीलिए हटाया गया ताकि अनाड़ियों का खेलों पर कब्जा बरकरार रहे और कांगे्रस के खेलनहारों के दामन पर लगे भ्रष्टाचार के दाग भी आसानी से धुल जाएं। खैर, अध्यक्षी के लिए राजा रणधीर सिंह जहां दक्षिणी राज्यों से समर्थन जुटा रहे हैं वहीं अभय चौटाला दागियों को अभयदान का वास्ता देकर रिझा रहे हैं।
भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष
अध्यक्ष अवधि
दोराबजी टाटा 1927-1928
भूपिन्दर सिंह 1928-1938
यादविन्द्र सिंह 1938-1960
भालिन्द्र सिंह 1960-1975
ओमप्रकाश मेहरा 1976-1980
भालिन्द्र सिंह 1980-1984
विद्या चरण शुक्ला 1984-1987
शिवान्थि अदिथन 1987-1996
सुरेश कलमाड़ी 1996- बर्खास्त

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