Sunday 18 November 2012

टेस्ट क्रिकेट की आत्मा से खिलवाड़


अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने टेस्ट क्रिकेट में दर्शकों की दिलचस्पी बढ़ाने के लिए दिन-रात के टेस्ट मैचों को हरी झण्डी दिखा दी है। 30 अक्टूबर से प्रभावशाली नये नियमों के मुताबिक दो मुल्कों के क्रिकेट बोर्डों की सहमति से अब दूधिया रोशनी में टेस्ट क्रिकेट खेली जा सकती है। क्रिकेट के इस प्रारूप पर आस्ट्रेलिया और इंग्लैण्ड के अधिकांश क्रिकेटर पहले से ही रजामंद हैं तो भारत सहित अन्य टेस्ट बिरादर देशों में आम सहमति और इसके नफा-नुकसान को लेकर बहस चल रही है। आईसीसी का मानना है कि इस प्रयोग से बेशक युवा दर्शक मैदान तक न पहुंचें पर वे अपने घरों में टेलीविजन के माध्यम से टेस्ट क्रिकेट का दीदार अवश्य करेंगे। क्रिकेट आस्ट्रेलिया ने आईसीसी के इस फैसले का न केवल समर्थन किया है बल्कि उसके बोर्ड के चीफ एक्जीक्यूटिव जेम्स सदरलैण्ड ने एशेज 2013 में दूधिया रोशनी में टेस्ट क्रिकेट को आजमाने की सम्भावना भी जता दी है।
दूधिया रोशनी में टेस्ट क्रिकेट को लेकर सभी एकराय नहीं हैं। न्यूजीलैण्ड के पूर्व कप्तान तथा टीम इण्डिया के प्रशिक्षक रहे जॉन राइट, हरफनमौला कपिलदेव आस्ट्रेलियाई क्रिकेटर एडम गिलक्रिस्ट जैसे कई क्रिकेट जानकारों ने इस फार्मेट को बेजा करार दिया है। इनका तर्क है कि आईसीसी के इस प्रयोग के पीछे टेस्ट क्रिकेट की बेहतरी से ज्यादा टेलीविजन प्रसारण से होने वाली कमाई मुख्य वजह है। इस फार्मेट का भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड ने विरोध तो नहीं किया लेकिन वह इसके प्रति ज्यादा उत्साहित नहीं है। आईसीसी के फैसले का विरोध करने वालों का तर्क है कि इससे मूल क्रिकेट (टेस्ट क्रिकेट) की महत्ता खत्म हो जाएगी और वनडे एवं टी-20 की तरह यह भी व्यावसायिकता का लबादा ओढ़ लेगी। दूधिया रोशनी में टेस्ट क्रिकेट के हिमायतियों का कहना है कि दर्शकों की कमी के चलते टेस्ट क्रिकेट अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। युवा पीढ़ी टेस्ट मुकाबले नहीं देख पाती क्योंकि इसकी टाइमिंग उनके लिए अनुकूल नहीं है। दिन-रात के टेस्ट मुकाबलों को देखने जहां दर्शक बढ़ेंगे वहीं मूल क्रिकेट की लोकप्रियता को भी चार चांद लगेंगे। देखा जाये तो जिस दिन-रात टेस्ट क्रिकेट की वकालत आईसीसी आज कर रही है उसका प्रयोग बीसीसीआई 15 साल पहले कर चुकी है। पांच से नौ अप्रैल, 1997 को ग्वालियर के कैप्टन रूप सिंह मैदान में मुम्बई और दिल्ली के बीच रणजी ट्रॉफी का फाइनल मुकाबला दूधिया रोशनी में खेला गया था। पांच दिवसीय इस मुकाबले में मुम्बई ने दिल्ली पर पहली पारी की बढ़त के आधार पर जीत दर्ज की थी। भारत के अलावा आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड भी अपने घरेलू टूर्नामेंटों में दिन-रात के प्रथम श्रेणी मैचों को प्रायोगिक तौर पर आजमा चुके हैं। देखा जाए तो टेस्ट क्रिकेट में दर्शकों के घटते रुझान के पीछे इसके परिणाम से कहीं अधिक वनडे व टी-20 मुकाबलों का होना है। टेस्ट क्रिकेट में दर्शकों की घटती संख्या के पीछे आईसीसी भी कम जवाबदेह नहीं है। सच तो यह है कि क्रिकेट के बढ़ते व्यवसायीकरण के बाद आयोजकों के लिए टेलीविजन के दर्शक स्टेडियम में आने वाले दर्शकों से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गये हैं। दिन में खेले जाने की वजह से टेस्ट मैच को क्रिकेट प्रेमी अपनी व्यस्तताओं के चलते टेलीविजन पर नहीं देख पाते हैं जिसके चलते टेस्ट क्रिकेट को प्रायोजक नहीं मिलते। टेस्ट क्रिकेट भी मालामाल हो इसीलिए क्रिकेट बिरादर के अधिकांश देश चाहते हैं कि टेस्ट क्रिकेट भी दूधिया रोशनी में परवान चढ़े। दूधिया रोशनी से टेस्ट क्रिकेट में दर्शक बढ़ेंगे तो पैसा बढ़ेगा पर गेंदबाजों का क्या होगा जो प्राकृतिक प्रकाश में सुबह के समय पिच से मिलने वाली मदद से पासा पलटने की फिराक में रहते हैं तो बल्लेबाज धूप चटकने के साथ पिच के बदलते मिजाज का फायदा लम्बी पारियां खेलने के लिए करते हैं। दिन-रात के मुकाबले स्पिनरों के लिए भी किसी मुसीबत से कम नहीं होंगे। रात को ओस के चलते स्पिन गेंदबाज न तो ठीक तरह से गेंद को ग्रिप कर पाएंगे और न ही पिच से उन्हें विशेष मदद मिल पाएगी। आईसीसी का यह फैसला स्पिन गेंदबाजी की कला के ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकता है। दिन-रात के टेस्ट मैचों में दोनों टीमों के लिए परिस्थितियां भिन्न-भिन्न होंगी। दिन के समय बल्लेबाजी आसान होगी क्योंकि गेंदबाजों को पिच से अधिक मदद नहीं मिलेगी वहीं रात में पिच में नमी के कारण वह तेज गेंदबाजों के लिए मददगार होगी और बल्लेबाजी करना काफी मुश्किल होगा। ऐसे में यह गैर बराबरी का मुकाबला होगा। पांच दिनी टेस्ट मैचों में हर पल खेल का स्वरूप बदलता रहता है। आखिरी क्षणों में कम होती रोशनी में पराजय टालने की कोशिश करते बल्लेबाज तो दूसरी तरफ आखिरी विकेट लेने की कोशिश करते गेंदबाज, चौथे-पांचवें दिन पिच के बदले मिजाज के चलते पैदा होने वाली अनिश्चितता कई ऐतिहासिक मुकाबलों की गवाह रही है, दिन-रात मुकाबलों के बाद खत्म हो जाएगी। दिन-रात के टेस्ट मुकाबलों में गेंद भी विलेन का रोल अदा करे तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। दरअसल गेंद का रंग ऐसा होना चाहिए जो दिन व रात के समय आसानी से नजर आए और पांच दिनों तक चल सके। वैसे आईसीसी ऐसी गेंद तकनीक की तलाश कर रही है। अभी तक पिंक और आॅरेंज कलर की गेंदों का प्रयोग संतोषजनक नहीं रहा है।
क्रिकेट की जहां तक बात है, 24-25 सितम्बर 1844 को अमेरिका और कनाडा के बीच पहला अन- आॅफिशियल अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच खेला गया  तो 15 से 19 मार्च 1877 को मेलबोर्न क्रिकेट मैदान पर आस्ट्रेलिया और इंग्लैण्ड के बीच पहला आॅफिशियल टेस्ट मुकाबला खेला गया जिसमें आस्ट्रेलिया 45 रन से विजयी रहा। क्रिकेट का यह अजब संयोग है कि 12 से 17 मार्च 1977 को टेस्ट क्रिकेट के 100 साल पूरे होने पर एमसीजी में ही आस्ट्रेलिया और इंग्लैण्ड के बीच खेले गए टेस्ट मुकाबले में एक बार फिर आस्ट्रेलिया ने 45 रन से जीत दर्ज की।

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