ऊंची कूद में लगाई
स्वर्णिम छलांग
तमिलनाडु के मरियप्पन थंगावेलु ने रियो पैरालम्पिक में टी-42 ऊंची कूद में स्वर्णिम छलांग लगाकर देश का नाम
रोशन कर किया है लेकिन सोने की छलांग वाले मरियप्पन के जीवन में यहां तक पहुंचना
कितना कष्टदायक रहा उसकी कल्पना मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते हैं। रियो पैरालम्पिक्स
में ऊंची कूद में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने वाले मरियप्पन थंगावेलु को पूरा देश
सराह रहा है। लेकिन उसकी इस जीत के पीछे बहुत मुश्किल मेहनत छुपी है जो हर कोई
नहीं जानता। एक गरीब परिवार के मरियप्पन के लिए यह सब इतना आसान भी नहीं था। तमिलनाडु
के सालेम जिला निवासी मरियप्पन की मां सरोजा सब्जियां बेचती हैं और उन्होंने अकेले
ही अपने बच्चों की परवरिश की है। दिन में सौ रुपए कमाने वाली सरोजा अपने बेटे की
जीत पर बहुत खुश हैं। इससे पहले सरोजा दिहाड़ी मजदूर थीं और ईंट उठाने का काम करती
थीं। वह कहती हैं जब मुझे छाती में दर्द की शिकायत हुई तो मरियप्पन ने किसी से 500
रुपये उधार लेकर मुझसे कहा कि मैं सब्जियां बेचने का काम कर लूं। मरियप्पन के संघर्ष
और शानदार उपलब्धियों पर अब एक फिल्म भी बनने जा रही है। इस फिल्म के प्रसारण के
बाद निःसंदेह दिव्यांग लोगों के जीवन में कुछ न कुछ परिवर्तन जरूर आएगा।
मरियप्पन ने बीबीए की पढ़ाई एवीएस कॉलेज से पूरी की जहां के शारीरिक शिक्षा
निदेशक ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और मरियप्पन को आगे बढ़ाया। वह करो या मरो क्लब
का हिस्सा भी था जहां उसे प्रोत्साहन मिला करता था। मरियप्पन के भाई टी. कुमार
बताते हैं कि बाद में बैंगलुरू के सत्यनारायण ने उसे दो साल तक ट्रेनिंग दी और साथ
में 10 हजार रुपए का मासिक वेतन (स्टायपेंड) भी दिया। 1995 में जब मरियप्पन महज
पांच साल के थे तब स्कूल के पास एक सरकारी बस से टक्कर होने के बाद अपना पैर खो
बैठे लेकिन वह रुके नहीं। 17 साल की लम्बी कानूनी लड़ाई के बाद उनके परिवार को दो
लाख रुपए का मुआवजा मिला। मरियप्पन की मां सरोजा ने कानूनी खर्चों के लिए एक लाख रुपए
भरे और बाकी एक लाख रुपये अपने बेटे के भविष्य के लिए जमा कर दिए। मरियप्पन के तीन
भाई और एक बहन है जिसकी शादी हो गई है। गरीबी की वजह से बड़े भाई टी. कुमार को
पढ़ाई अधूरी छोडऩी पड़ी। दूसरा भाई स्कूल के आगे पढ़ ही नहीं पाया। सबसे छोटे भाई ने
इसी साल 12वीं की परीक्षा पास की है। उनकी मां कहती हैं कि अगर मदद मिले तो वह
अपने बेटों को कॉलेज भेजना चाहेंगी। पति द्वारा परिवार को कथित तौर पर छोड़ देने
के बाद सरोजा ने अकेले ही अपने बच्चों की परवरिश की है।
सरोजा कहती हैं मेरे कई रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने मुझे अपमानित किया। यहां
तक कि मेरा बहिष्कार भी किया गया क्योंकि मैं एक विकलांग बच्चे को पाल रही थी। ऐसे
मुश्किल वक्त में पति ने भी मेरा साथ छोड़ दिया था। मरियप्पन की मां सरोजा बताती
हैं कि मेरे लिए किराए का घर लेना भी मुश्किल हो गया था। ज्यादातर मकान मालिक ऐसे
थे जो मेरी जैसी हालात की मारी औरत को घर नहीं देना चाहते थे। दो वक्त की रोटी का
इंतजाम करने लिए जूझना पड़ रहा था। ऐसे भी दिन थे जब मेरे पास अपने बच्चों को
खिलाने के लिए सिर्फ थोड़ा सा दलिया हुआ करता था। वे दोपहर में स्कूल में सरकार की
ओर से मिलने वाले खाने पर पले-बढ़े हैं। आज सरोजा का सिर गर्व से ऊंचा है। एक परम्परागत
समाज में अकेली मां के तौर पर उनके लिए जिन्दगी चुनौतियों से भरी थी। इन चुनौतियों
के साथ उन्होंने लगातार जीवन भर संघर्ष किया। उनका कहना है कि वे इन मुसीबतों का
सामना इसलिए कर पाईं क्योंकि तीन बेटों वाले उनके परिवार में आपस में बहुत प्यार
और एक-दूसरे का ख्याल रखने की भावना है।
सरोजा बताती हैं कि मुझे पता चल गया था कि मेरे बच्चों को खेल-कूद में विशेष
रुचि है। मुझे लगा कि मेरे पास इसके सिवा कोई चारा नहीं है कि मैं अपने बच्चों को
वही करने दूं जो उन्हें पसंद है। जब मरियप्पन ईनाम जीतता था तब मेरे पास इतना समय
नहीं होता था कि मैं उसके पुरस्कार वितरण समारोह में जा सकूं। उस समय मैं दिहाड़ी
मजदूरी करने में लगी रहती थी। वह कहती हैं कि एक समय ऐसा भी आया जब मैं गरीबी और
समाज के ताने से परेशान होकर खुदकुशी करने के बारे में सोचने लगी थी। मेरे बेटे ने
कई प्रतियोगिताओं में जीत हासिल की थी और ढेर सारे मैडल भी घर ला चुका था, फिर भी
समाज की ओर से खारिज किए जाने के रवैये से हम निराश थे। सामाजिक हैसियत में अब भी
हम नीचे थे लेकिन हमने अपने अच्छे दिनों के आने का इंतजार किया। मरियप्पन जब ब्राजील
जा रहे थे तब सरोजा ने उन्हें दस रुपये का नोट दिया था। उन्होंने यह नोट ऐसे ही
किसी बड़े दिन के लिए बचाकर रखा था। जब मरियप्पन भारत लौटे तब उन्हें उपहार और
अवार्ड देने का तांता लग गया। केन्द्र सरकार ने 75 लाख तो तमिलनाडु सरकार ने मरियप्पन
को दो करोड़ रुपये का पुरस्कार दिया है। सरोजा खुश हैं कि अब जब मरियप्पन कहीं
बाहर जाएगा तो वह उसे दस की नोट से ज्यादा दे पाएंगी।
पेरियावादागामपट्टी गांव के जांबाज मरियप्पन थंगावेलु का जन्म 28 जून, 1995 को हुआ था। उसने वर्ष 2015 में ही बिजनेस एडमिस्ट्रेशन की अपनी डिग्री पूरी की। नौकरी
तो हालांकि उसे अभी नहीं मिली लेकिन नाम और पहचान जरूर मिल गई है। मरियप्पन के कोच
सत्यनारायण बैंगलूरु के रहने वाले हैं। उन्होंने ही मरियप्पन को प्रशिक्षण दिया और
कुछ बड़ा करने का सपना भी दिखाया। मार्च, 2016 में मरियप्पन थंगावेलु ने 1.78 मीटर की छलांग
लगाकर रियो के लिए क्वॉलीफाई किया था जबकि क्वॉलीफिकेशन मार्क 1.60 मीटर था। मरियप्पन के शानदार प्रदर्शन से इस बात का अंदाजा लग गया था कि ओलम्पिक
का पदक उनकी पहुंच से दूर नहीं है। भारत को 2016 पैरालम्पिक खेलों में स्वर्ण पदक दिलाने वाले मरियप्पन
थंगावेलु का कहना है कि उन्होंने अपने जीवन पर फिल्म बनने के बारे में कभी सोचा भी
नहीं था। फिल्मकार ऐश्वर्य धनुष की आगामी तमिल फिल्म मरियप्पन के जीवन पर आधारित
है। मरियप्पन वर्तमान में आगामी एशियन खेलों की तैयारी कर रहे हैं। भारतीय एथलीट
मरियप्पन ने का कहना है कि मैं इस फिल्म को लेकर काफी खुश हूं। मैंने सपने में भी
अपने जीवन पर फिल्म बनने के बारे में नहीं सोचा था। मरियप्पन ने कहा कि मेरे लिए
यह सपने जैसी बात है। इससे मुझे और भी कड़ी मेहनत करने की प्रेरणा मिलेगी। ऐश्वर्य
की मरियप्पन पर बनने वाली फिल्म का नाम मरियप्पन है और इसका पहला पोस्टर सुपरस्टार
शाहरुख खान ने जारी किया है।
मरियप्पन ने अपनी फिल्म के बारे में कहा कि मैंने अभी इस फिल्म पर आधिकारिक
रूप से हस्ताक्षर नहीं किए हैं। अगर मेरी कहानी ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले
पिछड़े वर्ग के लोगों को प्रेरित करती है तो इससे बड़ी खुशी मेरे लिए कुछ नहीं
होगी। फिल्म में संगीत सीन रोल्डन देंगे। सिनेमाटोग्राफी वेलराज की होगी और संवाद
फिल्मकार राजू मुरुगन लिखेंगे। पोस्टर से यह भी खुलासा हुआ कि फिल्म अंग्रेजी में
भी बनेगी। इस फिल्म में किस अभिनेता को अपना किरदार निभाते देखेंगे, इस बारे में
मरियप्पन ने कहा कि मैं इस बात को फिल्म की टीम पर छोड़ रहा हूं कि वे इसके लिए
सही कलाकार का चयन करें। यह मायने नहीं रखता कि मेरा किरदार कौन निभा रहा है लेकिन
मैं चाहता हूं कि मेरी कहानी अधिक लोगों को प्रेरित करे ताकि हमारा समाज
दिव्यांगता को अभिशाप न माने।
No comments:
Post a Comment