
जीता पदकों का खजाना, नहीं भर पेट खाना
पद्मश्री कृष्णा पूनिया को
मानती है अपना आदर्श
श्रीप्रकाश शुक्ला
भारत गांवों का देश
है। गांवों में खेल प्रतिभाएं भी हैं लेकिन उन्हें उचित परवरिश और सही मार्गदर्शन
न मिलने से वे अपना तथा देश का सपना साकार करने से वंचित रह जाती हैं। उदीयमान
डिस्कस थ्रोवर किसान की बेटी मनीषा शर्मा को ही लें उसने भूखे पेट जूनियर नेशनल
स्तर पर 15 स्वर्ण, 5 रजत और दो कांस्य पदक उस हरियाणा राज्य की झोली में डाले
जिसे खेलों और खिलाड़ियों का सबसे बड़ा पैरोकार माना जाता है। अफसोस हरियाणा सरकार
की उपेक्षा के चलते वह आज खेतों में काम करने को मजबूर है। पद्मश्री कृष्णा पूनिया
को अपना आदर्श मानने वाली झज्जर जिले के गांव अकेहरी मदनपुर की यह बेटी दुखी मन से
कहती है कि सरकार ने आश्वासन तो बहुत दिए लेकिन उसे न नौकरी मिली और न ही भर पेट फूड
सप्लीमेंट।


मनीषा कहती है कि
मैं अपने प्रशिक्षक पिता की खुशी और उनके सपने को साकार करने के लिए खेलना चाहती
हूं। मेरा परिवार तंगहाली के दौर से गुजर रहा है। पिताजी चाहते हैं कि मैं देश के
लिए खेलूं और दर्जनों मैडल जीतूं लेकिन जब खिलाड़ी को पर्याप्त डाइट ही नहीं
मिलेगी तो वह भला देश का मान कैसे बढ़ा सकता है। मैं अपने पिता के साथ खेतों में
काम करती हूं ताकि परिवार को दो जून की रोटी मयस्सर हो। मनीषा बताती है कि नेशनल
में मैडल जीतने पर मुझे राज्य सरकार की तरफ से कई बार सम्मानित किया गया। सम्मान
से कुछ पल के लिए खुशी तो मिली लेकिन उससे पेट नहीं भरा जा सकता। समय रहते यदि
हरियाणा सरकार का ध्यान राष्ट्रीय स्तर पर दो दर्जन पदक जीत चुकी मनीषा की तरफ
नहीं गया तो उसका आगे खेल पाना मुश्किल होगा।
भारत सरकार 2020 में
होने वाले ओलम्पिक खेलों के लिए प्रतिभाएं तलाश रही है जबकि मनीषा जैसी प्रतिभाशाली
बेटियों को एक अदद नौकरी और भर पेट भोजन का मलाल है। यहां ध्यान देने वाली बात यह
भी है कि यदि एक मामूली किसान अपने प्रशिक्षण और जुनून से देश को सितारा खिलाड़ी
दे सकता है तो हमारा खेल तंत्र उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर का क्यों नहीं बना सकता।
क्या केन्द्र और राज्य सरकार मनीषा और मोनिका जैसी बेटियों का हौसला बढ़ाएगी या
फिर किसान की ये बेटियां असमय ही खेलों से नाता तोड़ लेंगी।
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