Thursday 24 April 2014

नजीर बनें खाप पंचायतें

समय दिन और तारीख देखकर आगे नहीं बढ़ता। वह गतिमान है। उसकी गति पर लाख रुकावट डालने की कोशिश की जाए, वह कभी नहीं रुकेगा। भारत जज्बाती युवाओं का देश है। उसे अपनी इच्छा के विपरीत कुछ भी स्वीकार नहीं है। आज वह अपने निर्णय स्वयं लेना चाहता है। उसे रूढ़िवादी परम्पराओं से नफरत है। युवाओं की नफरत में सिर्फ गुस्सा ही नहीं बल्कि नसीहत भी छिपी होती है। ऐसा नहीं है कि खाप पंचायतें हमेशा अनिर्णय का शिकार रही हैं पर पिछले कुछ वर्षों पर नजर डालें तो मुल्क में खाप पंचायतों ने प्रेम विवाह, अंतरजातीय सम्बन्ध, आधुनिक पोशाक और युवाओं की जीवनशैली को लेकर कई तरह के तुगलकी फरमान सुनाए हैं। इन फरमानों से न केवल युवाओं की हसरतों पर पाबंदी लगी बल्कि उनके मन-मानस में एक अनचाहा खौफ भी पैदा हुआ।
भारत में खाप पंचायतों का चलन बहुत पुराना है। यह खाप पंचायतें थाना-पुलिस यहां तक कि न्यायपालिका से भी अधिक अस्तित्व रखती हैं। ये पहले भी अपनी संकुचित मानसिकता और बहुत हद तक पुरुषवादी सोच का परिचय देती रही हैं जिसका असर महिलाओं पर अधिक पड़ता है। यह बात सही है कि दशकों पहले पंचायतों के निर्णय क्षेत्र विशेष तक सीमित होते थे लेकिन सूचना क्रांति के बाद खाप पंचायतों के फैसलों की अनुगूंज दूर-दूर तक सुनाई देने लगी है। अब पंचायतों के निर्णयों पर आंख मूंदकर चलने के दिन नहीं रहे। अब उसके निर्णयों पर पक्ष व विपक्ष में माहौल बनने लगा है। रूढ़िवादी परम्पराओं को खत्म करने के पक्षधर इज्जत के नाम पर हत्या जैसे प्रकरणों के खिलाफ आवाज उठाने का साहस दिखाने लगे हैं।
युवाओं के इसी साहस का ही परिणाम है कि अब खाप पंचायतें न केवल समय के बदलाव की पदचाप सुनने लगी हैं बल्कि अपनी प्रचलित रूढ़िवादिता और परम्पराओं को बदलने की दिशा में भी सोचने लगी हैं। खाप पंचायतों के इस बदलाव को नजीर बनने की जरूरत है। एक सुधरेगा तो तय है दूसरा भी सुधार की दिशा में चलने के बारे में जरूर सोचेगा। कुछ महीनों पहले खाप पंचायतों ने कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ आवाज बुलंद की थी, जिसकी सर्वत्र प्रशंसा हुई थी। अब सतरोल खाप पंचायत ने अपनी साढ़े छह सौ साल पुरानी परम्परा को बदलते हुए अंतरजातीय विवाह को मंजूरी देने का ऐतिहासिक कदम उठाया है। उसके इस कदम को दूर-दूर तक सराहा जा रहा है।
दरअसल, खाप पंचायतों का गठन गांव-गली की आपसी खुन्नस और मतभेदों को मिल-बैठकर सुलझाने,आपसी भाईचारा बढ़ाने आदि के लिए किया गया था। इसके मूल में व्यक्ति से ऊपर समाज को तरजीह देने की सोच थी। मुल्क में 643 ईस्वी में राजा हर्षवर्द्धन के शासनकाल में सर्वखाप पंचायत प्रणाली की स्थापना हुई। सात गांवों को साथ में लेते हुए सर्वखाप ने कार्य करना प्रारम्भ किया। धीरे-धीरे इसका दायरा बढ़ता गया और सतरोल खाप का गठन हुआ। इस वक्त सतरोल खाप में 42 गांव आते हैं। अब तक इन 42 गांवों मेंं भाईचारे के कारण 60-70 गोत्रों में आपसी विवाह की अनुमति नहीं थी। इससे न केवल लिंगानुपात बिगड़ा बल्कि युवक-युवतियों के परिणय सम्बन्धों में भी अड़चनें आने लगीं। कई युवा शादी की उम्र निकल जाने के बावजूद कुंवारे रह गए। इनकी संख्या बहुतायत है। समय बदला और लोगों की सोच में भी बदलाव आया। मसलन युवाओं ने शिक्षा की तरफ न केवल रुझान किया बल्कि पढ़-लिखकर रोजगार के लिए गांवों से बाहर भी निकले। युवाओं ने रूढ़िवादिता से परे नई सोच को अपनाते हुए दकियानूसी बातों को मानने से इंकार करने का हौसला भी दिखाया। इस दिशा में सिर्फ लड़कों में ही चेतना का प्रस्फुटन नहीं हुआ बल्कि लड़कियां भी जागृत हुर्इं। आज स्थितियां बेशक पूरी तरह से नहीं बदली हों पर युवा सिर झुकाकर हर फैसले को मानने से पहले सवाल जरूर उठाए लगे हैं। यह अच्छी बात है कि आज का युवा अपने भविष्य के अच्छे-बुरे पर स्वयं विचार करने लगा है तो उसके बहुत से मामलों में परिजन भी साथ देने लगे हैं। यूं तो किसी भी वयस्क का अपनी पसंद से विवाह करना संवैधानिक अधिकार है, वह चाहे अपने गोत्र के भीतर हो या फिर अंतरजातीय लेकिन कई बार परम्पराओं के प्रति सामाजिक जड़ता कानूनी अधिकारों को भी बाधित करती है। इस लिहाज से देखें तो सतरोल खाप का फैसला समय के साथ पारम्परिक धारणाओं के लचीला होने के साथ-साथ संवैधानिक हकों की बहाली की दिशा में भी अपनी भूमिका तय करने की एक अच्छी पहल है। मगर जिस तरह कुछ समूहों ने इस फैसले पर विरोध जताया है, उसे देखते हुए खाप पंचायतों को सर्वसम्मत राय बनाने की दिशा में भी सोचना होगा। सामाजिक और गैरसामाजिक संस्थाओं ने हमेशा खाप की सत्ता पर प्रश्न खड़े किए हैं। इन प्रश्नों का उत्तर एक दिन में देना असम्भव है, पर जिस तरह खाप पंचायतों ने समय के साथ कदमताल करने की सोच अपनायी है, वह प्रशंसनीय है।
हरियाणा के नारनौंद कस्बे में आयोजित महापंचायत में खाप चौधरियों ने एक सुर में ऐलान किया कि अब सतरोल खाप के 42 गांवों के लोग अपनी संतानों के रिश्ते कर सकेंगे। इसके साथ ही जातीय बंधनों को तोड़ते हुए फैसला लिया गया कि कोई भी युवक व युवती अपनी जाति से बाहर भी अपनी मर्जी से शादी कर सकता है बशर्ते ऐसे अंतरजातीय विवाह खुद के गांव, गोत्र व पड़ोसी गांव को छोड़कर हों। बदलाव की इस बयार का मकसद सतरोल खाप के भाईचारे को तोड़ना नहीं बल्कि रिश्ते-नातों के बंधन को खोलना है। महापंचायत का मानना है कि इससे सतरोल खाप का भाईचारा खत्म नहीं होगा बल्कि रिश्तेदारी होने के बाद खाप को और ज्यादा मजबूती मिलेगी। इस निर्णय पर सभी एकराय नहीं हैं, पर यह भी सच है कि हर बड़े परिवर्तन के बाद थोड़ी हलचल मचना स्वाभाविक है। इसलिए ऐसे विरोध होंगे, यह मानकर चलना चाहिए। फिलवक्त महत्वपूर्ण यह है कि खाप पंचायतों ने जो ऐतिहासिक, प्रगतिशील व उदार कदम उठाया है, उसे मजबूती से लागू होने दिया जाए। खाप पंचायत ने जिस तरह युवकों के परिणय बंधन पर जातिगत दायरों को तोड़ने का साहस दिखाया है कुछ उसी तरह उसे कन्या भ्रूण हत्या पर रोक और महिलाओं को बराबरी का अधिकार देने की दिशा में भी सोचना चाहिए।
(लेखक पुष्प सवेरा से जुड़े हैं।)

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