समाजवादी पार्टी (सपा) ने ‘उम्मीद की साइकिल’ का नारा देकर 2012 के विधानसभा चुनाव में 224 सीटें जीतीं और उत्तर प्रदेश में स्पष्ट बहुमत की सरकार बनाई। अब लोकसभा चुनाव का वक्त है तो एक बार फिर चुनावी फिजां में पूरे देश में कई नारे हवा में तैरते नजर आ रहे हैं।
दरअसल, नारे चुनावी फिजां में रंग भरते हैं और चुनाव की दिशा-दशा बदलने की ताकत रखते हैं। चंद शब्दों से बने इन नारों में बड़ा संदेश देने व विरोधियों को बेनकाब करने का माद्दा होता है। चुनावों में नारों के इतिहास पर नजर डालें तो जीत के लिए इसका जोर-शोर से प्रचलन इंदिरा गांधी ने तेज किया था। निजी बैंकों के राष्ट्रीयकरण जैसे बड़े निर्णय के बाद इंदिरा गांधी जब वर्ष 1971 में लोकसभा के मध्यावधि चुनाव में गई तो उन्होंने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया। इस नारे से उनकी छवि गरीबों की मसीहा की तरह उभरी। गरीबों में उनकी बनती पैठ से चिंतित विरोधियों ने ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के काउंटर के लिए नया नारा गढ़ा ‘इंदिरा हटाओ-देश बचाओ’, जो कारगर साबित नहीं हुआ। इस मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस ने 352 संसदीय क्षेत्रों में जीत दर्ज कर ताकतवर सरकार बनाई। इंदिरा गांधी की यह जीत विरोधियों से ज्यादा उन बागी नेताओं को करारा जवाब थी, जिन्होंने पार्टी तोड़ी और कांग्रेस के समानान्तर संगठन खड़ा किया। हालांकि बहुमत के बावजूद इस सरकार को चलाना इंदिरा गांधी के लिए आसान नहीं रहा, क्योंकि गैर कांग्रेसी दलों ने विभिन्न आंदोलनों के माध्यम से घेराबंदी जारी रखी।
इसी दौरान कांग्रेस की हुकूमत के खिलाफ ‘संपूर्ण क्रांति’ का नारा देश में गूंजा। इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल घोषित कर आंदोलन की रहनुमाई कर रहे नेताओं को जेल में डाल दिया, इनमें जयप्रकाश नारायण, विजयाराजे सिंधिया, राजनारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, चौधरी चरण सिंह, आचार्य कृपलानी आदि शामिल थे। 22 महीने के आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी ने 23 जनवरी, 1977 को देश में चुनाव कराने का ऐलान किया। इस चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ ‘लोकतंत्र बनाम तानाशाह’ और जेपी के आंदोलन के दौर में दिए ‘सम्पूर्ण क्रांति’ नारे को पसंद किया गया, क्योंकि आपातकाल की ज्यादतियां लोगों के जेहन में ताजा थीं।
नतीजतन, कांग्रेस बुरी तरह ध्वस्त हो गई। यहां तक कि इंदिरा गांधी और संजय गांधी चुनाव में पराजित हुए। कांग्रेस के हारने वाले दिग्गजों में रामपुर के नवाब जुल्फिकार अली, कुंवर जितेंद्र प्रसाद, राजा दिनेश सिंह, शीला कौल, आनंद सिंह आदि के नाम शामिल थे। जनता पार्टी के नेतृत्व में मोरारजी देसाई की सरकार बनी, जो आपसी खींचतान के कारण अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। पर इस सरकार ने इंदिरा गांधी को एक सप्ताह के लिए जेल भेजकर सनसनी फैला दी। वर्ष 1980 के लोकसभा चुनाव में प्रचार अभियान के दौरान इंदिरा गांधी ने ‘मजबूत सरकार’ का नारा दिया। इस नारे और इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी से उपजी सहानुभूति ने विरोधियों का सूपड़ा साफ कर दिया। वोट की इस जंग में कांग्रेस ने 356 लोकसभा क्षेत्रों में सफलता पायी। इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के बाद पार्टी की कमान राजीव गांधी ने संभाली। उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने 1984 में आठवीं लोकसभा के लिए चुनाव लड़ा।
इस चुनाव में कांग्रेस ने नारा दिया ‘जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा।’ यह नारा जनता में सहानुभूति लिए हुए लोगों के मन में ऐसा उतरा कि विरोधियों का सफाया हो गया। प्रचार के दौरान कांग्रेस की ओर से एक और नारा ‘इंदिरा तेरा यह बलिदान याद करेगा हिन्दुस्तान’ दिया गया, जो बड़ी संख्या में मतदाताओं को कांग्रेस के पक्ष में मतदान स्थल तक ले जाने में कामयाब रहा। इस चुनाव में कांग्रेस ने न केवल पड़े वोटों का 50 प्रतिशत हिस्सा प्राप्त किया, बल्कि सर्वाधिक 404 सीटें जीत कर एक कीर्तिमान भी बनाया। वर्ष 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में वीपी सिंह ने बोफोर्स के मुद्दे पर गैर-कांग्रेसी दलों का मोर्चा जनता दल की शक्ल में बनाया, जिसने नारा दिया ‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है’।
प्रचार के दौरान जनता दल की ओर से बोफोर्स के मुद्दे को इतना गरमाया गया कि जनता के बीच राजीव गांधी अलोकप्रिय होते चले गए। नतीजतन उनकी पार्टी सिमट कर 197 लोकसभा क्षेत्रों में रह गई और वीपी सिंह के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी। वर्ष 1991 में देश को मध्यावधि चुनाव का सामना करना पड़ा, जिसमें वी.पी. सिंह की हुकूमत में मंडल कमीशन सिफारिश पर लागू आरक्षण व्यवस्था से नाराज लोगों ने भारतीय जनता पार्टी के नारे ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ पर भरोसा किया। इस चुनाव में भाजपा 120 सांसदों की ताकत लेकर लोकसभा पहुंची, जिससे राष्ट्रीय राजनीति में उसकी बड़ी पहचान बनी। वर्ष 1996 में ग्यारहवीं लोकसभा चुनाव में दो नारों की धूम रही, कांग्रेस का नारा ‘जात पर न पात पर मुहर लगेगी हाथ पर’ और भाजपा का ‘अबकी बारी अटल बिहारी’। भाजपा ने यह नारा अटल बिहारी वाजपेयी की लखनऊ की चुनावी सभा में दिया, जिसकी देश में गूंज हुई, लेकिन दोनों ही दलों को खंडित जनादेश मिला। इस चुनाव में भाजपा गठबंधन को 161 और कांग्रेस को 140 लोकसभा क्षेत्रों में सफलता मिली। 12वीं लोकसभा के चुनाव में भाजपा ने हिंदुत्व को उभारने के लिए एक बार फिर ‘रामलला हम आएंगे’ नारा बुलंद किया और कांग्रेस ने ‘स्थायित्व’ के नारे पर वोट मांगा लेकिन जनता प्रभावित नहीं हुई। देश को एक बार फिर खंडित जनादेश का सामना करना पड़ा। वर्ष 1999 के चुनाव में जिस नारे के सहारे भाजपा ने देश में हुकूमत बनायी, उससे उसे स्पष्ट बहुमत तो नहीं मिला, पर वह 269 सदस्यों के साथ सबसे बड़े गठबंधन के रूप में उसे ताकत मिली। कांग्रेस सोनिया गांधी के नेतृत्व में यह चुनाव लड़ रही थी। भाजपा ने ‘स्वदेशी बनाम विदेशी’ का नारा देकर चुनावी जंग को अटल और सोनिया के बीच ला खड़ा किया। भाजपा की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज ने यहां तक ऐलान कर दिया कि अगर सोनिया गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं तो वह अपना सिर मुड़वा देंगी। यह फायर ब्रांड नारा भी देश की जनता को भाजपा के पक्ष में एकतरफा खड़ा करने में कामयाब नहीं हो सका। देश में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्टÑीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार बनी, जिसने कार्यकाल पूरा किया।
वर्ष 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की उपलब्धियों को भाजपा ने ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा दिया, जो मतदाताओं को पसंद नहीं आया और राजग 181 सीटों पर सिमट कर रह गई। इस चुनाव में संप्रग को 218 सीटों पर सफलता मिली और कांग्रेस के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनाई। 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने संप्रग-1 की उपलब्धियों पर वोट मांगा। कहा गया ‘जो कहा वो कर दिखाया’ और फिर संप्रग की सरकार बनी। ‘युवा जोश’ की टक्कर में गूंजा ‘कांग्रेस मुक्त’ नारे के बीच देश में 16वीं लोकसभा के लिए चुनाव की तैयारी चल रही है। राजनीतिक दल मतदाताओं का भरोसा जीतने के लिए हर कोशिश में जुटे हैं।
पार्टी और नेतृत्व के समर्थन में नारे दिए जा रहे हैं। कांग्रेस ने ‘कट्टर सोच नहीं युवा जोश’ नारे से यह संदेश देने की कोशिश की है कि उनका नेतृत्व कल भी धर्मनिरपेक्ष था और आज भी है। पार्टी की ओर से एक और नारा ‘हर हाथ शक्ति-हर हाथ तरक्की’ गढ़ा गया है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ‘भारत निर्माण’ के स्लोगन के साथ किये गये जनकल्याण के कार्यों का ब्योरा दे रही है तो भाजपा की ओर से ‘कांग्रेस मुक्त’ नारा दिया जा रहा है। समाजवादी पार्टी ने ‘देश बचाओ-देश बनाओ’ का नारा लगाया है। चुनाव प्रचार के दौरान अभी और नारे गढ़े जाएंगे और हवा में गूंजेंगे। देखना यह होगा कि किस नारे की गूंज मतदाताओं के कानों के जरिए दिलो-दिमाग में उतरती है और कौन से नारे सिर्फ शोर मचाकर उड़ जाते हैं।
दरअसल, नारे चुनावी फिजां में रंग भरते हैं और चुनाव की दिशा-दशा बदलने की ताकत रखते हैं। चंद शब्दों से बने इन नारों में बड़ा संदेश देने व विरोधियों को बेनकाब करने का माद्दा होता है। चुनावों में नारों के इतिहास पर नजर डालें तो जीत के लिए इसका जोर-शोर से प्रचलन इंदिरा गांधी ने तेज किया था। निजी बैंकों के राष्ट्रीयकरण जैसे बड़े निर्णय के बाद इंदिरा गांधी जब वर्ष 1971 में लोकसभा के मध्यावधि चुनाव में गई तो उन्होंने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया। इस नारे से उनकी छवि गरीबों की मसीहा की तरह उभरी। गरीबों में उनकी बनती पैठ से चिंतित विरोधियों ने ‘गरीबी हटाओ’ के नारे के काउंटर के लिए नया नारा गढ़ा ‘इंदिरा हटाओ-देश बचाओ’, जो कारगर साबित नहीं हुआ। इस मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस ने 352 संसदीय क्षेत्रों में जीत दर्ज कर ताकतवर सरकार बनाई। इंदिरा गांधी की यह जीत विरोधियों से ज्यादा उन बागी नेताओं को करारा जवाब थी, जिन्होंने पार्टी तोड़ी और कांग्रेस के समानान्तर संगठन खड़ा किया। हालांकि बहुमत के बावजूद इस सरकार को चलाना इंदिरा गांधी के लिए आसान नहीं रहा, क्योंकि गैर कांग्रेसी दलों ने विभिन्न आंदोलनों के माध्यम से घेराबंदी जारी रखी।
इसी दौरान कांग्रेस की हुकूमत के खिलाफ ‘संपूर्ण क्रांति’ का नारा देश में गूंजा। इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल घोषित कर आंदोलन की रहनुमाई कर रहे नेताओं को जेल में डाल दिया, इनमें जयप्रकाश नारायण, विजयाराजे सिंधिया, राजनारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, चौधरी चरण सिंह, आचार्य कृपलानी आदि शामिल थे। 22 महीने के आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी ने 23 जनवरी, 1977 को देश में चुनाव कराने का ऐलान किया। इस चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ ‘लोकतंत्र बनाम तानाशाह’ और जेपी के आंदोलन के दौर में दिए ‘सम्पूर्ण क्रांति’ नारे को पसंद किया गया, क्योंकि आपातकाल की ज्यादतियां लोगों के जेहन में ताजा थीं।
नतीजतन, कांग्रेस बुरी तरह ध्वस्त हो गई। यहां तक कि इंदिरा गांधी और संजय गांधी चुनाव में पराजित हुए। कांग्रेस के हारने वाले दिग्गजों में रामपुर के नवाब जुल्फिकार अली, कुंवर जितेंद्र प्रसाद, राजा दिनेश सिंह, शीला कौल, आनंद सिंह आदि के नाम शामिल थे। जनता पार्टी के नेतृत्व में मोरारजी देसाई की सरकार बनी, जो आपसी खींचतान के कारण अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी। पर इस सरकार ने इंदिरा गांधी को एक सप्ताह के लिए जेल भेजकर सनसनी फैला दी। वर्ष 1980 के लोकसभा चुनाव में प्रचार अभियान के दौरान इंदिरा गांधी ने ‘मजबूत सरकार’ का नारा दिया। इस नारे और इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी से उपजी सहानुभूति ने विरोधियों का सूपड़ा साफ कर दिया। वोट की इस जंग में कांग्रेस ने 356 लोकसभा क्षेत्रों में सफलता पायी। इंदिरा गांधी की निर्मम हत्या के बाद पार्टी की कमान राजीव गांधी ने संभाली। उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने 1984 में आठवीं लोकसभा के लिए चुनाव लड़ा।
इस चुनाव में कांग्रेस ने नारा दिया ‘जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिरा तेरा नाम रहेगा।’ यह नारा जनता में सहानुभूति लिए हुए लोगों के मन में ऐसा उतरा कि विरोधियों का सफाया हो गया। प्रचार के दौरान कांग्रेस की ओर से एक और नारा ‘इंदिरा तेरा यह बलिदान याद करेगा हिन्दुस्तान’ दिया गया, जो बड़ी संख्या में मतदाताओं को कांग्रेस के पक्ष में मतदान स्थल तक ले जाने में कामयाब रहा। इस चुनाव में कांग्रेस ने न केवल पड़े वोटों का 50 प्रतिशत हिस्सा प्राप्त किया, बल्कि सर्वाधिक 404 सीटें जीत कर एक कीर्तिमान भी बनाया। वर्ष 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में वीपी सिंह ने बोफोर्स के मुद्दे पर गैर-कांग्रेसी दलों का मोर्चा जनता दल की शक्ल में बनाया, जिसने नारा दिया ‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है’।
प्रचार के दौरान जनता दल की ओर से बोफोर्स के मुद्दे को इतना गरमाया गया कि जनता के बीच राजीव गांधी अलोकप्रिय होते चले गए। नतीजतन उनकी पार्टी सिमट कर 197 लोकसभा क्षेत्रों में रह गई और वीपी सिंह के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनी। वर्ष 1991 में देश को मध्यावधि चुनाव का सामना करना पड़ा, जिसमें वी.पी. सिंह की हुकूमत में मंडल कमीशन सिफारिश पर लागू आरक्षण व्यवस्था से नाराज लोगों ने भारतीय जनता पार्टी के नारे ‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’ पर भरोसा किया। इस चुनाव में भाजपा 120 सांसदों की ताकत लेकर लोकसभा पहुंची, जिससे राष्ट्रीय राजनीति में उसकी बड़ी पहचान बनी। वर्ष 1996 में ग्यारहवीं लोकसभा चुनाव में दो नारों की धूम रही, कांग्रेस का नारा ‘जात पर न पात पर मुहर लगेगी हाथ पर’ और भाजपा का ‘अबकी बारी अटल बिहारी’। भाजपा ने यह नारा अटल बिहारी वाजपेयी की लखनऊ की चुनावी सभा में दिया, जिसकी देश में गूंज हुई, लेकिन दोनों ही दलों को खंडित जनादेश मिला। इस चुनाव में भाजपा गठबंधन को 161 और कांग्रेस को 140 लोकसभा क्षेत्रों में सफलता मिली। 12वीं लोकसभा के चुनाव में भाजपा ने हिंदुत्व को उभारने के लिए एक बार फिर ‘रामलला हम आएंगे’ नारा बुलंद किया और कांग्रेस ने ‘स्थायित्व’ के नारे पर वोट मांगा लेकिन जनता प्रभावित नहीं हुई। देश को एक बार फिर खंडित जनादेश का सामना करना पड़ा। वर्ष 1999 के चुनाव में जिस नारे के सहारे भाजपा ने देश में हुकूमत बनायी, उससे उसे स्पष्ट बहुमत तो नहीं मिला, पर वह 269 सदस्यों के साथ सबसे बड़े गठबंधन के रूप में उसे ताकत मिली। कांग्रेस सोनिया गांधी के नेतृत्व में यह चुनाव लड़ रही थी। भाजपा ने ‘स्वदेशी बनाम विदेशी’ का नारा देकर चुनावी जंग को अटल और सोनिया के बीच ला खड़ा किया। भाजपा की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज ने यहां तक ऐलान कर दिया कि अगर सोनिया गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं तो वह अपना सिर मुड़वा देंगी। यह फायर ब्रांड नारा भी देश की जनता को भाजपा के पक्ष में एकतरफा खड़ा करने में कामयाब नहीं हो सका। देश में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में राष्टÑीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की सरकार बनी, जिसने कार्यकाल पूरा किया।
वर्ष 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की उपलब्धियों को भाजपा ने ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा दिया, जो मतदाताओं को पसंद नहीं आया और राजग 181 सीटों पर सिमट कर रह गई। इस चुनाव में संप्रग को 218 सीटों पर सफलता मिली और कांग्रेस के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनाई। 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने संप्रग-1 की उपलब्धियों पर वोट मांगा। कहा गया ‘जो कहा वो कर दिखाया’ और फिर संप्रग की सरकार बनी। ‘युवा जोश’ की टक्कर में गूंजा ‘कांग्रेस मुक्त’ नारे के बीच देश में 16वीं लोकसभा के लिए चुनाव की तैयारी चल रही है। राजनीतिक दल मतदाताओं का भरोसा जीतने के लिए हर कोशिश में जुटे हैं।
पार्टी और नेतृत्व के समर्थन में नारे दिए जा रहे हैं। कांग्रेस ने ‘कट्टर सोच नहीं युवा जोश’ नारे से यह संदेश देने की कोशिश की है कि उनका नेतृत्व कल भी धर्मनिरपेक्ष था और आज भी है। पार्टी की ओर से एक और नारा ‘हर हाथ शक्ति-हर हाथ तरक्की’ गढ़ा गया है। कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ‘भारत निर्माण’ के स्लोगन के साथ किये गये जनकल्याण के कार्यों का ब्योरा दे रही है तो भाजपा की ओर से ‘कांग्रेस मुक्त’ नारा दिया जा रहा है। समाजवादी पार्टी ने ‘देश बचाओ-देश बनाओ’ का नारा लगाया है। चुनाव प्रचार के दौरान अभी और नारे गढ़े जाएंगे और हवा में गूंजेंगे। देखना यह होगा कि किस नारे की गूंज मतदाताओं के कानों के जरिए दिलो-दिमाग में उतरती है और कौन से नारे सिर्फ शोर मचाकर उड़ जाते हैं।
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