क्रिकेट अब न धर्म रही, न ही इसे खेलने वाला भगवान, इस सच से पर्दा उठ चुका है। सर्वोच्च न्यायालय को सौंपी गई फिक्सिंग रिपोर्ट इस बात का चीख-चीख कर खुलासा कर रही है कि धन कुबेर क्रिकेट के मुखिया के सगे-सम्बन्धी ही नहीं बल्कि दुनिया के कई खिलाड़ी भी उसकी आड़ में अनैतिक कार्यों को अंजाम दे रहे हैं। भद्रजनों के खेल क्रिकेट में बेईमानी कोई नई बात नहीं है। गाहे-बगाहे इस खेल से कई बार बेईमानी का जिन्न बाहर निकला पर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद की भ्रष्टाचार रोधी इकाई की विभिन्न जांचों पर कठोर कार्रवाई करने की बजाय धनलोलुपता के फेर में इन पर पर्दा डाले रखा। नतीजन भ्रष्टाचार की जड़ें इस कदर गहरे पहुंच गर्इं कि अब उन्हें उखाड़ फेंकना दुरूह कार्य लगने लगा है। भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड की बात करें तो 1990 के दशक से ही इस पर कब्जे को लेकर धनकुबेरों की महत्वाकांक्षा परवान चढ़ने लगी थी। आश्चर्य की बात है कि भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड अपने आपको मुल्क की सल्तनत से बड़ा मानता है। उसके मुखिया की आसंदी सरकारी दिशा-निर्देशों को रद्दी की टोकरी में डालने की हिमाकत के बावजूद सुरक्षित रहती है। यह सब क्यों और किसकी शह पर होता है यह जानकर भी अनजान बनना भारत सरकार की मजबूरी है। भला हो न्यायालय का जिसने समय-समय पर भ्रष्टाचार के समूल नाश के न केवल प्रयास किए बल्कि हठधर्मियों को ताकीद किया कि कानून के हाथ कितने लम्बे हैं।
भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड की आसंदी का मोह कितना प्रबल होता है, इसका ताजा प्रमाण एन. श्रीनिवासन को देखकर सहज लगाया जा सकता है। पिछले साल इण्डियन प्रीमियर लीग में स्पॉट फिक्सिंग से निकले जिन्न ने टीमों के मालिकानों और कई क्रिकेटरों को बेनकाब किया था पर बीसीसीआई प्रमुख श्रीनिवासन उन पर कठोर कार्रवाई करने की बजाय कसूरवारों को बचाने में ही लगे रहे। इसकी वजह उनके दामाद गुरुनाथ मयप्पन की मैच फिक्सिंग में संलिप्तता रही है। क्रिकेट में फिक्सिंग से पहले खेल मुरीद बड़े चाव से हर गेंद और बल्ले के धमाल को देखते तथा हर चौके-छक्के पर तालियां पीटते थे पर मैच फिक्सिंग मामले के बाद हर मन में एक शक घर कर गया है। अब मैच कैसा भी हो, कितना भी रोमांचक हो, एकबारगी यह सवाल मन में अवश्य पैदा होता है कि कहीं ये भी तो फिक्स नहीं? स्पॉट फिक्सिंग में संलिप्त हर शख्स खेलभावना ही नहीं बल्कि खेलप्रेमियों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ का भी कसूरवार है।
आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग में श्रीसंत, अंकित चव्हाण और अजीत चण्डीला जैसों को तो दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया पर इस खेल में शामिल बड़ी मछलियां आज भी क्रिकेट के महासमुद्र में बेखौफ तैर रही हैं। श्रीसंत और अंकित चव्हाण पर तो भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड ने आजीवन प्रतिबंध लगा दिया पर उन बड़ी मछलियों पर कार्रवाई कब होगी जो आज भी क्रिकेट को कलंकित कर रही हैं। पिछले साल कई सटोरिए भी पुलिस की गिरफ्त में आए थे। मुम्बई पुलिस ने रुस्तमे हिन्द दारा सिंह के बेटे विन्दू दारा सिंह और श्रीनिवासन के दामाद गुरुनाथ मयप्पन को भी गिरफ्तार किया था लेकिन इन पर रसूखदारों का वरदहस्त होने के चलते ये जमानत पर स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं। फिक्सिंग के सच को सामने लाने की खातिर एक टेलीविजन चैनल ने आईपीएल पर स्टिंग आॅपरेशन भी किया था, जिसमें विन्दू दारा सिंह ने जो कुछ कहा उसे देख कर नहीं लगा कि उन्हें अपने किए पर कोई पछतावा है या फिक्सिंग को वे कुछ गलत मानते हैं। यह सच है कि आज सट्टेबाजी क्रिकेट का हिस्सा बन गई है। टी-20 क्रिकेट पर घर-घर, गांव-गांव दांव लग रहे हैं। दुर्भाग्य की बात तो यह है कि आज क्रिकेट के पट्ठे ही सट्टे में संलिप्त हैं। विचारणीय है कि जिस तमाशा क्रिकेट में धन, ग्लैमर और रोमांच का तड़का पहले से ही चरम पर रहा हो उसमें धनकुबेरों ने अपने हित संवर्धन के लिए अपराध तत्व समाहित करने की निर्लज्ज कोशिश आखिर क्यों की? एन. श्रीनिवासन भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष हैं। उनके स्वामित्व वाली कम्पनी चेन्नई सुपर किंग्स का नाम भी स्पॉट फिक्सिंग में शामिल है। तमाम जांचों के बाद गुरुनाथ मयप्पन और भारतीय टीम के एक बड़े खिलाड़ी सहित कुछ अन्यों के कसूरवार पाये जाने पर उन्हें अपनी आसंदी स्वयं छोड़ देनी थी बावजूद श्रीनिवासन दुशासन बने रहे। कुछ अर्से के लिए कुर्सी से हटे भी पर पुन: जोड़तोड़ कर बीसीसीआई पर कब्जा कर लिया। श्रीनिवासन की इस मंशा के पीछे अपने दामाद को बचाने के साथ ही दुनिया के सबसे धनकुबेर बोर्ड के सहारे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के नियमों में बदलाव कर उसकी आसंदी भी कब्जाना रहा। श्रीनिवासन की आईसीसी के आसन तक पहुंचने की कुचेष्टा यह साबित करती है कि क्रिकेट में पैसे का किस कदर बोलबाला है। क्रिकेट में अकूत पैसे के सामने आचार संहिता और आदर्शवादी बातों का कोई मूल्य नहीं रह जाता। सर्वोच्च न्यायालय क्रिकेट में फिक्सिंग के फसाद की तह तक पहुंच चुका है। उसकी मंशा है कि जब तक मामले का पटाक्षेप नहीं हो जाता तब तक बीसीसीआई प्रमुख श्रीनिवासन अपना आसन छोड़ दें ताकि जांच प्रभावित न हो। पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मुकुल मुद्गल की अध्यक्षता में 2013 में स्पॉट फिक्सिंग की जांच के लिए तीन सदस्यीय एक समिति बनी थी जिसने अपनी जांच रिपोर्ट फरवरी में सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी। जांच के इन दस्तावेजों में श्रीनिवासन के दामाद सहित क्रिकेट के कुछ पट्ठों के नाम शामिल हैं। इन दस्तावेजों में कुछ ऐसी संगीन और गम्भीर सूचनाएं भी हैं, जिनकी निष्पक्ष जांच श्रीनिवासन के रहते सम्भव नहीं दिखती। सर्वोच्च न्यायालय ने इसी गरज से श्रीनिवासन से बीसीसीआई प्रमुख की आसंदी छोड़ने तथा जब तक स्पॉट फिक्सिंग की जांच पूरी न हो जाए पूर्व क्रिकेटर सुनील गावस्कर को इस पद की गरिमा बढ़ाने की इच्छा जताई है। अदालत की फटकार के बाद भी श्रीनिवासन की हठधर्मिता क्रिकेट में बड़े गड़बड़झाले की ओर संकेत करती है। होना तो यह चाहिए कि बीसीसीआई प्रमुख इस मामले में नैतिकता दिखाते हुए स्वयं कुर्सी त्याग देते पर उनके ऐसा न करने से भारतीय क्रिकेट ही नहीं उनकी विश्वसनीयता पर भी सीधे-सीधे प्रश्नचिह्न लग रहा है।
(लेखक पुष्प सवेरा से जुड़े हैं।)
भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड की आसंदी का मोह कितना प्रबल होता है, इसका ताजा प्रमाण एन. श्रीनिवासन को देखकर सहज लगाया जा सकता है। पिछले साल इण्डियन प्रीमियर लीग में स्पॉट फिक्सिंग से निकले जिन्न ने टीमों के मालिकानों और कई क्रिकेटरों को बेनकाब किया था पर बीसीसीआई प्रमुख श्रीनिवासन उन पर कठोर कार्रवाई करने की बजाय कसूरवारों को बचाने में ही लगे रहे। इसकी वजह उनके दामाद गुरुनाथ मयप्पन की मैच फिक्सिंग में संलिप्तता रही है। क्रिकेट में फिक्सिंग से पहले खेल मुरीद बड़े चाव से हर गेंद और बल्ले के धमाल को देखते तथा हर चौके-छक्के पर तालियां पीटते थे पर मैच फिक्सिंग मामले के बाद हर मन में एक शक घर कर गया है। अब मैच कैसा भी हो, कितना भी रोमांचक हो, एकबारगी यह सवाल मन में अवश्य पैदा होता है कि कहीं ये भी तो फिक्स नहीं? स्पॉट फिक्सिंग में संलिप्त हर शख्स खेलभावना ही नहीं बल्कि खेलप्रेमियों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ का भी कसूरवार है।
आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग में श्रीसंत, अंकित चव्हाण और अजीत चण्डीला जैसों को तो दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया पर इस खेल में शामिल बड़ी मछलियां आज भी क्रिकेट के महासमुद्र में बेखौफ तैर रही हैं। श्रीसंत और अंकित चव्हाण पर तो भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड ने आजीवन प्रतिबंध लगा दिया पर उन बड़ी मछलियों पर कार्रवाई कब होगी जो आज भी क्रिकेट को कलंकित कर रही हैं। पिछले साल कई सटोरिए भी पुलिस की गिरफ्त में आए थे। मुम्बई पुलिस ने रुस्तमे हिन्द दारा सिंह के बेटे विन्दू दारा सिंह और श्रीनिवासन के दामाद गुरुनाथ मयप्पन को भी गिरफ्तार किया था लेकिन इन पर रसूखदारों का वरदहस्त होने के चलते ये जमानत पर स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं। फिक्सिंग के सच को सामने लाने की खातिर एक टेलीविजन चैनल ने आईपीएल पर स्टिंग आॅपरेशन भी किया था, जिसमें विन्दू दारा सिंह ने जो कुछ कहा उसे देख कर नहीं लगा कि उन्हें अपने किए पर कोई पछतावा है या फिक्सिंग को वे कुछ गलत मानते हैं। यह सच है कि आज सट्टेबाजी क्रिकेट का हिस्सा बन गई है। टी-20 क्रिकेट पर घर-घर, गांव-गांव दांव लग रहे हैं। दुर्भाग्य की बात तो यह है कि आज क्रिकेट के पट्ठे ही सट्टे में संलिप्त हैं। विचारणीय है कि जिस तमाशा क्रिकेट में धन, ग्लैमर और रोमांच का तड़का पहले से ही चरम पर रहा हो उसमें धनकुबेरों ने अपने हित संवर्धन के लिए अपराध तत्व समाहित करने की निर्लज्ज कोशिश आखिर क्यों की? एन. श्रीनिवासन भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष हैं। उनके स्वामित्व वाली कम्पनी चेन्नई सुपर किंग्स का नाम भी स्पॉट फिक्सिंग में शामिल है। तमाम जांचों के बाद गुरुनाथ मयप्पन और भारतीय टीम के एक बड़े खिलाड़ी सहित कुछ अन्यों के कसूरवार पाये जाने पर उन्हें अपनी आसंदी स्वयं छोड़ देनी थी बावजूद श्रीनिवासन दुशासन बने रहे। कुछ अर्से के लिए कुर्सी से हटे भी पर पुन: जोड़तोड़ कर बीसीसीआई पर कब्जा कर लिया। श्रीनिवासन की इस मंशा के पीछे अपने दामाद को बचाने के साथ ही दुनिया के सबसे धनकुबेर बोर्ड के सहारे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के नियमों में बदलाव कर उसकी आसंदी भी कब्जाना रहा। श्रीनिवासन की आईसीसी के आसन तक पहुंचने की कुचेष्टा यह साबित करती है कि क्रिकेट में पैसे का किस कदर बोलबाला है। क्रिकेट में अकूत पैसे के सामने आचार संहिता और आदर्शवादी बातों का कोई मूल्य नहीं रह जाता। सर्वोच्च न्यायालय क्रिकेट में फिक्सिंग के फसाद की तह तक पहुंच चुका है। उसकी मंशा है कि जब तक मामले का पटाक्षेप नहीं हो जाता तब तक बीसीसीआई प्रमुख श्रीनिवासन अपना आसन छोड़ दें ताकि जांच प्रभावित न हो। पंजाब व हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मुकुल मुद्गल की अध्यक्षता में 2013 में स्पॉट फिक्सिंग की जांच के लिए तीन सदस्यीय एक समिति बनी थी जिसने अपनी जांच रिपोर्ट फरवरी में सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी। जांच के इन दस्तावेजों में श्रीनिवासन के दामाद सहित क्रिकेट के कुछ पट्ठों के नाम शामिल हैं। इन दस्तावेजों में कुछ ऐसी संगीन और गम्भीर सूचनाएं भी हैं, जिनकी निष्पक्ष जांच श्रीनिवासन के रहते सम्भव नहीं दिखती। सर्वोच्च न्यायालय ने इसी गरज से श्रीनिवासन से बीसीसीआई प्रमुख की आसंदी छोड़ने तथा जब तक स्पॉट फिक्सिंग की जांच पूरी न हो जाए पूर्व क्रिकेटर सुनील गावस्कर को इस पद की गरिमा बढ़ाने की इच्छा जताई है। अदालत की फटकार के बाद भी श्रीनिवासन की हठधर्मिता क्रिकेट में बड़े गड़बड़झाले की ओर संकेत करती है। होना तो यह चाहिए कि बीसीसीआई प्रमुख इस मामले में नैतिकता दिखाते हुए स्वयं कुर्सी त्याग देते पर उनके ऐसा न करने से भारतीय क्रिकेट ही नहीं उनकी विश्वसनीयता पर भी सीधे-सीधे प्रश्नचिह्न लग रहा है।
(लेखक पुष्प सवेरा से जुड़े हैं।)
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