Thursday, 20 March 2014

हॉकी में बेईमानों का बोलबाला

चौथी हॉकी इण्डिया प्रतियोगिता में कई राज्यों के पास खिलाड़ियों का टोटा
आगरा। चौथी हॉकी इण्डिया प्रतियोगिता बेईमानी के साये में खेली जा रही है। कई राज्य यूनिटों के पास खिलाड़ी ही नहीं हैं बावजूद वे खिलाड़ियों की अदला-बदली कर प्रतियोगिता में दम ठोक रहे हैं। हॉकी में यह नंगनाच किसकी शह पर चल रहा है यह तो हॉकी इण्डिया के महासचिव नरिन्दर बत्रा ही जाने पर ऐसी प्रतियोगिताएं धन और समय की बर्बादी के सिवाय कुछ भी नहीं हैं।
इस समय देश के तीन प्रमुख शहरों लखनऊ, भोपाल और मैसूर में चौथी हॉकी इण्डिया प्रतियोगिता खेली जा रही है। यह प्रतियोगिता जिस तरह बेईमानी के साये में खेली जा रही है उससे आयोजन पर ही प्रश्नचिह्न लग रहा है। यह प्रतियोगिता इस साल प्रत्येक आयु समूह में दो वर्गों में खेली जा रही है। ए और बी समूह में परवान चढ़ रही इस प्रतियोगिता में जो नहीं होना चाहिए वह हो रहा है। पिछले सप्ताह जूनियर बालिका वर्ग के बी समूह में छत्तीसगढ़ ने केरल को 6-1 से पराजित कर अगले साल ए समूह से खेलने की पात्रता हासिल कर ली। इस विजय से बेशक छत्तीसगढ़ की जय-जयकार हो रही हो पर अफसोस इस विजेता टीम के पास सलीके की 11 खिलाड़ी भी नहीं थीं फिर भी वह ग्वालियर (मध्यप्रदेश) की 10 खिलाड़ियों के बूते चैम्पियन बन गई।
खिलाड़ियों की अदला-बदली के लिए सिर्फ छत्तीसगढ़ ही गुनहगार नहीं है बल्कि महाराष्ट्र पुरुष टीम भी मुकम्मल नहीं थी पर वह भी सेना, रेलवे और पुलिस के खिलाड़ियों को बटोर कर मैदान फतह करने उतरी। कमोबेश यही हाल सीनियर महिला हॉकी में भोपाल टीम का है। इस टीम में रेलवे सहित उत्तर प्रदेश की खिलाड़ी खेल रही हैं। यही हाल मध्यप्रदेश राज्य पुरुष हॉकी टीम का भी है। लखनऊ में यह टीम भी आयातित खिलाड़ियों के बूते पाला फतह करने तो उतरी पर सेमीफाइनल में भी नहीं पहुंच सकी। अब सवाल यह उठता है कि जब राज्य यूनिटों के पास खिलाड़ी ही नहीं हैं तो राष्ट्रीय प्रतियोगिता के क्या मायने?
देश में जहां तक महिला हॉकी की बात है यह कुछ शहरों तक सीमित है। फिलवक्त महिला हॉकी का गढ़ शाहाबाद मारकंडा (हरियाणा) है। यहां द्रोणाचार्य अवार्डी बल्देव सिंह की देखरेख में एक से बढ़कर एक कुड़ियां निकल रही हैं। बल्देव ने देश को 40 से अधिक महिला खिलाड़ी दी हैं। शाहाबाद के बाद ग्वालियर स्थित राज्य महिला हॉकी एकेडमी में भी युवा तरुणाई पुश्तैनी खेल की बारीकियां सीख रही है। मध्यप्रदेश सरकार के शानदार प्रयासों का ही नतीजा है कि सात-आठ साल में ही यहां से एक दर्जन से अधिक खिलाड़ियों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का गौरव बढ़ाया है। झारखण्ड और राउरकेला में भी महिला हॉकी की तरफ ध्यान दिया जा रहा है। मुल्क के अन्य क्षेत्रों में हॉकी मर चुकी है। हॉकी इण्डिया फिलवक्त इसके दफन की तैयारी कर रही है।
इस प्रतियोगिता ने इस साल कई समीकरण बदल दिए हैं। मसलन जो मुम्बई की महिला टीम हर प्रतियोगिता में मजबूत टीमों में शुमार की जाती रही वह इस साल खिलाड़ियों की अदला-बदली की छूट के चलते भोपाल में अपने तीनों मुकाबले हारकर अगले साल बी डिवीजन से खेलेगी। दरअसल मुम्बई की टीम हमेशा सेण्ट्रल रेलवे और वेस्टर्न रेलवे की खिलाड़ियों से लैश रहती रही। इस बार सेण्ट्रल रेलवे की अधिकांश खिलाड़ियों के भोपाल टीम से जुड़ जाने से मुम्बई टीम अदनी टीमों में शुमार हो गई। हॉकी के इस नंगनाच की प्रमुख वजह विभिन्न राज्यों द्वारा दी जा रही प्राइज मनी है। खिलाड़ियों के मन में लालच इस कदर समा गया है कि उन्हें अपनी जन्मभूमि से भी लगाव नहीं रहा। लालची खिलाड़ी अपनी टीमों से तौबा कर दूसरे राज्यों से पाला लड़ा रहे हैं। जो भी हो राष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिता का अपने मकसद से भटकना आठ बार के ओलम्पिक चैम्पियन भारत के लिए शर्मनाक फलसफा है।
इस हमाम में सब नंगे हैं..
इस गड़बड़झाले पर जब हॉकी इण्डिया के जवाबदेह लोगों से बात की तो उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हम लोग हॉकी इण्डिया से जुड़े होने के चलते कुछ नहीं बता सकते पर इस हमाम में सभी नंगे हैं। यह आयोजन सिर्फ पैसे की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है। हॉकी इण्डिया खेल संस्था नहीं बल्कि एक कम्पनी बन गई है। 

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