Saturday, 4 January 2014

खेलों में चुनौतियों का साल

यह साल भारतीय जनमानस के लिए खास है। इस साल मुल्क की सल्तनत के लिए जहां हमारा जनतंत्र अपनी समझदारी की परीक्षा देगा वहीं खेलतंत्र अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति के रहमोकरम पर आश्रित होगा। हमारे खेलनहार यदि दुनिया के लिए नजीर साबित नहीं हुए तो सच मानिए भारत अंतरराष्ट्रीय खेल बिरादर से अलग-थलग पड़ सकता है। वैसे भी हमारे खिलाड़ी दिसम्बर 2012 से बिना तिरंगे के खेल रहे हैं। भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन पर अपने ऊपर लगे निलम्बन के दाग को धोने का अंतिम अवसर नौ फरवरी मुकर्रर है। इस तिथि तक भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन को न केवल अपने चुनाव कराने हैं बल्कि इन चुनावों से दागियों को भी दरकिनार रखना है। भारत को इस साल राष्ट्रमण्डल और एशियाई खेलों में पिछले प्रदर्शन को दोहराने की चुनौती के साथ-साथ अन्य खेलों में भी अपनी खोई साख को वापस पाने की पुरजोर कोशिश करनी होगी।
देखा जाए तो वर्ष 2013 में आईओए के निलम्बन को हटाने को लेकर भारत सरकार ने अपनी तरफ से पुरजोर कोशिश की और बात बनती दिखी भी लेकिन हमारे खेलनहारों ने अपने अड़ियल रवैये से सब कुछ अकारथ कर दिया। अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति ने भारत को नौ फरवरी तक नए संशोधन के साथ आईओए के चुनाव कराने और दागियों को इन चुनावों से दूर रखने का अल्टीमेटम दिया है। आईओए ओलम्पिक आंदोलन में फिर से वापस लौटे इसके लिए दागियों ने सरकार को चुनाव से दूर रहने का भरोसा दिया है। भारतीय खिलाड़ी राष्ट्रमण्डल और एशियाई खेलों में तिरंगे तले हिस्सा लें, इसके लिए यह बेहद जरूरी भी है कि उस पर लगा निलम्बन जल्द से जल्द खत्म हो। आईओए में अच्छे लोग नहीं आए तो भारत पर लगा निलम्बन नहीं हटेगा और मुल्क ओलम्पिक आंदोलन तथा खेल बिरादर से अलग-थलग पड़ जाएगा।
आईओए के निलम्बन को हटाने के साथ-साथ इस साल भारत पर हॉकी में भी अच्छे प्रदर्शन का दबाव है। विश्व खेल पटल पर यूं तो अधिकांश खेलों में भारत की हालत खराब है और वे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं पर पुश्तैनी खेल हॉकी को इस साल करो या मरो के दौर से गुजरना होगा। इस साल भारतीय हॉकी को एशियाई खेलों के साथ-साथ राष्ट्रमण्डल और विश्व कप जैसे बड़े खेल आयोजनों में अपने पुराने चावल होने का बोध कराने का दबाव होगा। भारत ने विश्व पटल पर हॉकी में 33 साल से कोई पदक नहीं जीता है। आलम यह है कि आठ बार की ओलम्पिक और एक बार की विश्व चैम्पियन भारतीय हॉकी अर्श से फर्श पर आ चुकी है। 2008 के ओलम्पिक के लिए जहां भारतीय हॉकी टीम क्वालीफाई नहीं कर सकी थी वहीं 2012 के लंदन ओलम्पिक में वह एक दर्जन टीमों में अंतिम पायदान पर रही। सम्पूर्ण प्रतियोगिता में भारत एक भी मुकाबला नहीं जीत सका। हॉकी के लिए 2013 भी खुशफहमी वाला नहीं रहा। भला हो भारतीय बालाओं का जिन्होंने जूनियर प्रतियोगिता में भारत की रीती झोली में कांस्य पदक डालकर हॉकी इण्डिया को खुश होने का मौका दिया। कहने को हॉकी इण्डिया ने बीते साल हॉकी की सेहत सुधारने को ऊपर से नीचे तक चोला बदला और टीम प्रबंधन से लेकर प्रशिक्षक तथा स्पोर्टिंग स्टाफ में गोरी चमड़े वाले नियुक्त कर दिये पर उन्होंने खेल-खिलाड़ियों की दशा सुधारने की बजाय भारत को हॉकी का एक बड़ा बाजार बना दिया। इस बाजार में खिलाड़ी ही नहीं भारतीय ईमान भी बिक रहा है। ओलम्पिक में अंतिम और जूनियर विश्व कप हॉकी में 10वां स्थान हमारी हॉकी की हिकारत नहीं तो आखिर क्या है?
इस साल खेलों में भारत अपना आगाज क्रिकेट से करेगा। टीम इण्डिया इसी महीने न्यूजीलैण्ड की अबूझ पट्टियों पर अपने पट्ठों का इम्तिहान देगी। धोनी के धुरंधरों को दक्षिण अफ्रीकी दौरे में मिली शर्मनाक पराजय के बाद न्यूजीलैण्ड दौरे में यह साबित करना होगा कि वे सिर्फ घरू शेर नहीं हैं बल्कि विदेशी जमीन पर भी जीतने की क्षमता रखते हंै। न्यूजीलैण्ड से इतर इस साल बंगलादेश में होने वाला ट्वंटी-20 विश्व कप भी टीम इण्डिया के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। आईपीएल के सातवें संस्करण का साफ-सुथरा आयोजन भी अग्निपरीक्षा ही है। बात बैडमिंटन की करें तो इस साल साइना नेहवाल को पिछले साल के अपने खराब प्रदर्शन में आशातीत सुधार तो शटलर पीवी सिंधु को यह दिखाना होगा कि वह अब चीन की दीवार तोड़ने का माद्दा रखती है। पिछले साल एक अदद खिताब की तलाश में जूझती रही बैडमिंटन स्टार सायना नेहवाल ने नए साल में कम टूर्नामेंट खेलने का फैसला किया है लेकिन वह चाहेंगी कि साल के अपने पहले टूर्नामेंट में खिताबी सफलता हासिल करें। बैडमिंटन में इस साल थामस और उबेर कप भी किसी चुनौती से कम नहीं होंगे।
शतरंज में विश्व खिताब गंवाने वाले विश्वनाथन आनंद को मार्च में चैलेंजर मुकाबले में दिखाना होगा कि वही सर्वकालीन महान शातिर हैं। आनंद अपना विश्व खिताब गंवाने के बाद 2014 में इसे वापस पाने के लिए कैसी चालें चलते हैं, इस पर खेलप्रेमियों की खास दिलचस्पी होगी। जहां तक कुश्ती की बात है इस साल हमारे पहलवानों को नए नियमों और नए वजन वर्गों में दांव-पेच दिखाने होंगे। भारतीय पहलवानों के लिए नया साल काफी चुनौतीपूर्ण होगा। यह देखना दिलचस्प होगा कि ओलम्पिक पदक विजेता सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त खुद को नए वजन वर्गों में किस तरह समायोजित कर पाते हैं। नये   नियमों के मुताबिक लंदन ओलम्पिक के बाद पदक विजेता सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त अमेरिका के कोलोराडो स्प्रिंग में 30 जनवरी से एक फरवरी तक होने जा रही कुश्ती प्रतियोगिता में अपना जौहर दिखाएंगे। सुशील कुमार अब 66 की जगह 74 किलो में तो अब तक 60 किलो भार वर्ग में दम दिखाने वाले योगेश्वर दत्त 65 किलो वजन वर्ग में दांव-पेच चलाएंगे।
चालू साल में भारत युवाओं में लॉन टेनिस के प्रति दिलचस्पी जगाने के लिए एक नई मुहिम शुरू करने जा रहा है। उम्मीद है कि पहली बार ब्रिटेन से बाहर भारत में अगस्त महीने में जूनियर विम्बलडन का आगाज हो जाए। द रोड टू विम्बलडन लांच करने के लिये 11 बार के टूर चैम्पियन हेनमैन इसी महीने के आखिर में दिल्ली और मुम्बई का दौरा करेंगे और दिल्ली के आरके खन्ना टेनिस सेण्टर तथा मुंबई के एमएसएलटीए टेनिस सेण्टर में अंडर 14 राष्ट्रीय एकल टूर्नामेंट पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगाएंगे। इन दोनों टूर्नामेंटों के शीर्ष 16 लड़के और लड़कियों को दिल्ली में अप्रैल में विम्बलडन फाउण्डेशन जूनियर मास्टर्स में खेलने का मौका मिलेगा। इसमें से दो लड़के और दो लड़कियों को विम्बलडन के ग्रासकोर्ट पर यूके एचएसबीसी नेशनल फाइनल्स के लिये चुना जायेगा। टेनिस में यदि ऐसा हुआ तो यह भारतीय बच्चों की पूरी पीढ़ी के लिये नयी शुरुआत होगी। खेलों में लाख जद्दोजहद के बाद भी भारत के लिए दिल्ली राष्ट्रमण्डल खेलों में 38 स्वर्ण सहित कुल 101 पदकों की अपनी ऐतिहासिक सफलता की पुनरावृत्ति जहां एक बड़ी चुनौती होगी वहीं एशियाड भारतीय खिलाड़ियों के घटते-बढ़ते पराक्रम की बानगी पेश करेगा।

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