Saturday, 25 January 2014

आईओए: दागी लड़ेंगे नहीं लड़ाएंगे

नौ फरवरी को होने जा रहे भारतीय ओलम्पिक संघ के चुनाव के लिए खेलों के तहखाने में सियासत तेज हो गई है। अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति के हस्तक्षेप के बाद भारत सरकार और भारतीय ओलम्पिक संघ के सामने यह चुनाव नाक का सवाल बन गए हैं। इन चुनावों को लेकर लाख पारदर्शिता की बातें की जा रही हों पर आईओए को दागियों की घुसपैठ से बचाना आसान नहीं होगा। इन चुनावों में दागी बेशक ताल नहीं ठोकेंगे पर अपने लंगोटियायारों को मैदान में जरूर उतारेंगे। अभय चौटाला और ललित भनोट पर चुनाव लड़ने की मनाही है, लेकिन ये नहीं चाहेंगे कि खेलों के इस भवसागर में दूसरे खेमे के लोग डुबकी लगाएं। चुनावी बिगुल बज चुका है। अभय चौटाला ने भारतीय भारोत्तोलन महासंघ के अध्यक्ष वीरेन्द्र प्रसाद वैश्य और भारतीय स्क्वैश रैकेट महासंघ के अध्यक्ष एन. रामचंद्रन को अध्यक्ष तथा हॉकी इण्डिया के एसोसिएट उपाध्यक्ष राजीव मेहता से महासचिव पद के चुनाव के लिए तैयार रहने को कह दिया है।
भारतीय ओलम्पिक समिति की जहां तक बात है, इसका गठन 1927 में हुआ। इसका कार्य ओलम्पिक, राष्ट्रमंडल, एशियाई व अन्य अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं में भारतीय खिलाड़ियों का चयन और  दल का प्रबंधन करना होता है। 86 साल के आईओए में सर दोराबजी टाटा, महाराजा भूपिन्दर सिंह, महाराजा यादविन्दर सिंह, भालिन्दर सिंह (दो बार), ओमप्रकाश मेहरा, विद्याचरण शुक्ला, सिवंथी आदित्यन, सुरेश कलमाड़ी और अभय चौटाला अध्यक्ष की आसंदी पर बिराज चुके हैं, जिनमें अभय चौटाला को अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति ने अध्यक्ष नहीं माना। सर दोराबजी टाटा (1927-1928) भारतीय ओलम्पिक संघ के पहले अध्यक्ष रहे, इनके प्रयासों से ही 1928 के ओलम्पिक खेलों में भारतीय दल शिरकत कर सका था। भारतीय ओलम्पिक संघ में इसके बाद लगातार 47 साल तक राजा रणधीर सिंह के परिवार का ही राज रहा। टाटा के बाद 1928 से 1938 तक रणधीर के बाबा महाराजा भूपिन्दर सिंह तो उसके बाद 1938 से 1960 तक यानि पूरे 22 साल तक उनके चाचा महाराजा यादविन्दर सिंह ने अध्यक्ष की आसंदी सम्हाली। यादविन्दर के हटने के बाद रणधीर सिंह के पिता भालिन्दर सिंह 15 साल तक आईओए के मुखिया रहे।
देखा जाए तो जिस तरह भारतीय लोकतंत्र पर वंशवाद की बेल दिनोंदिन फैलती जा रही है कमोबेश उसी तरह खेलों में भी भाई-भतीजावाद व्यापक स्तर पर अपनी पैठ बना चुका है। दरअसल खेल संघों को राजनीतिज्ञों ने अपने बुरे वक्त का आरामगाह समझ रखा है। राजनीति में पटखनी खाने के बाद कई सफेदपोशों ने खेलों में अपने रसूख को भुनाया है। खेल-खिलाड़ियों के नाम पर प्रतिवर्ष अरबों रुपये का खेल बजट खिलाड़ियों की जगह खेलनहारों की आरामतलबी पर खर्च हो रहा है। यही आरामतलबी और देश-विदेश की यात्राएं राजनीतिज्ञों को खेल संघों से जुड़ने को लालायित करती हैं। भारतीय ओलम्पिक संघ तो सिर्फ एक उदाहरण है। देश के अधिकांश खेल संघों पर उन खेलनहारों का कब्जा है जिनके बाप-दादा भी कभी नहीं खेले।
15 मई, 2013 को दिल्ली हाईकोर्ट ने सजायाफ्ता राजनीतिज्ञों को चुनाव लड़ने से रोकने की नेक पहल की तो खेल ईमानदार लोगों के हाथ हों, इस बात की पहल का श्रेय अजय माकन को जाता है। अपने खेलमंत्रित्वकाल में माकन ने खेल विधेयक के जरिये लम्बे समय से खेल संघों में बिराजे पदाधिकारियों को हटाने का फरमान जारी कर कई खेलनहारों की नींद उड़ा दी थी। भारतीय खेलप्रेमियों को जब लग रहा था कि माकन खेलों से गंदगी दूर करके ही दम लेंगे, ऐसे नाजुक क्षणों में शीला दीक्षित और सुरेश कलमाड़ी जैसे लोगों को बचाने के लिए केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने उन्हें ही खेल मंत्री पद से हटा दिया।
भारतीय ओलम्पिक संघ के होने जा रहे चुनाव पर अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति पैनी नजर रखे हुए है। उसने साफ-साफ कह दिया है कि यदि चुनाव में घोटालेबाज खेलनहार उतरे तो आईओए को हमेशा-हमेशा के लिए विश्व खेल जमात से बेदखल कर दिया जाएगा। यह स्वतंत्र भारत के लिए शर्मनाक बात है कि उसके खिलाड़ी चार दिसम्बर, 2012 से बिना तिरंगे के आईओसी के बैनर तले खेल रहे हैं। भारतीय ओलम्पिक एसोसिएशन पर लगे प्रतिबंध की मुख्य वजह सुरेश कलमाड़ी, ललित भनोट और वीके वर्मा जैसे लोग हैं जिन्होंने दिल्ली में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में न केवल अरबों का घोटाला किया बल्कि लम्बे समय तक जेल में भी रहे। राष्ट्रमंडल खेलों के घोटाले में इन तीनों के अलावा कई और नाम भी हैं जिनका खुलासा दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल करने को बेताब हैं।
आईओए के चुनावों पर आईओसी के तेवर तल्ख हैं। उसने इन चुनावों के लिए आईओसी के एनओसी सम्बन्धों के निदेशक पेरे मिरो, आईओसी नैतिक आयोग के सदस्य फ्रांसिस्को जे. एलिजाल्डे और एशियाई ओलम्पिक परिषद के महानिदेशक हुसैन अल मुसल्लम को बतौर पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। आईओए के चुनावों की नामांकन प्रक्रिया का श्रीगणेश हो चुका है। इन चुनावों के लिए पीठासीन अधिकारी न्यायमूर्ति एसएन सपरा ने 167 मतदाताओं की सूची जारी की है जिसमें राष्ट्रीय खेल महासंघों के तीन तथा राज्य ओलम्पिक संघों के दो प्रतिनिधियों को नामित किया है। इन चुनावों में 36 राष्ट्रीय खेल महासंघों के 109 सदस्य, भारत में आईओसी के सदस्य रणधीर सिंह और 30 राज्य ओलम्पिक इकाइयों के 58 सदस्य अपने मताधिकार का प्रयोग तो करेंगे ही इसके अलावा भारतीय हॉकी महासंघ और भारतीय जिम्नास्टिक महासंघ के एक अन्य गुट के तीन-तीन सदस्यों को भी अदालती आदेश के तहत मतदान का अधिकार होगा। मतदाता सूची में हरियाणा ओलम्पिक संघ के अन्य गुट के दो सदस्यों को भी अदालत ने मतदान का अधिकार दिया है। अभय चौटाला को भारतीय एथलेटिक्स महासंघ के तीसरे प्रतिनिधि के रूप में मतदान का हक मिला है। चौटाला हरियाणा एथलेटिक्स संघ के भी अध्यक्ष हैं। मौजूदा महासचिव ललित भनोट भी चौटाला की ही तरह चुनाव नहीं लड़ सकते लेकिन उन्हें दिल्ली ओलम्पिक संघ के दूसरे प्रतिनिधि के तौर पर मतदान का अधिकार जरूर मिला है। इन चुनावों में कोई भी जीते या हारे पर मादरेवतन से आईओसी का अतिशीघ्र प्रतिबंध हटे यही खेलनहारों का खेल-खिलाड़ियों पर उपकार होगा।
(लेखक पुष्प सवेरा से जुड़े हैं।)

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