भारतीय लोकतंत्र ने आजादी की सांस लेने के बाद से हर क्षेत्र में कामयाब दस्तक दी है। उसे कई क्षेत्रों में जहां आशातीत सफलता मिली है तो कई आज भी सुखद पड़ाव की बाट जोह रहे हैं। हाल ही भारत ने पोलियो पर फतह हासिल की है। बीते तीन साल में मुल्क में एक भी पोलियो का प्रकरण सामने न आने से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत की न केवल मुक्तकंठ से सराहना की बल्कि 24 फरवरी को भारत का नाम पोलियो की संचरण सूची से हटाने का निर्णय भीलिया है। भारत ने 1980 में चेचक पर फतह हासिल की थी तो 33 साल बाद पोलियो उन्मूलन में उसे कामयाबी मिली है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में दो महत्वपूर्ण सफलताओं के बाद भी देश से भुखमरी तथा कुपोषण दूर होना निहायत जरूरी है, क्योंकि लोकतंत्र और भूखतंत्र साथ-साथ नहीं चल सकते।
कहने को हम 21वीं सदी में विकास की नई पटकथा लिख रहे हैं पर गांवों में घोर गरीबी के साथ ही अशिक्षा आज भी बड़े पैमाने पर व्याप्त है। रूढ़िवादी परम्पराएं, अंधविश्वास और टोने-टोटके ग्रामीणों के अंत:मन से अभी दूर नहीं हुए हैं। मुल्क की बहुसंख्य आबादी आज भी सीलन भरे अंधेरे कमरों में रहने को मजबूर है। आम जनजीवन को पौष्टिक भोजन, दूध व फल तो दूर, उसे भर पेट भोजन भी मयस्सर नहीं है। गरीबी और कुपोषण का सम्बन्ध लोकतंत्र में वोट की तरह है। वोट नहीं तो लोकतंत्र के सारे प्रयास अर्थर्हीन हो जाते हैं। किसी परिवार की अच्छी आर्थिक दशा ही कुपोषण का खात्मा कर सकती है। देश में वन्य जीवन और प्राकृतिक परिस्थितियों के निरंतर दोहन से कुपोषण ग्रामीण क्षेत्रों में निरंतर पैर पसार रहा है।
देश में हर साल पैदा होने वाले 2.6 करोड़ बच्चों में से लगभग 19 लाख बच्चे अपना पहला जन्मदिन भी नहीं देख पाते। आधे नौनिहाल तो जन्म के बाद एक माह में ही दुनिया को अलविदा कर जाते हैं। यह मां-बच्चों के स्वास्थ्य और कुपोषण का मुल्क में वीभत्स चेहरा है। आम आवाम को स्वस्थ बनाए रखना और उसका पेट भरना सरकार की पहली शर्त होनी चाहिए। हमारी सरकारें वोट की फसल काटने के लिए नित नये-नये सब्जबाग तो दिखाती हैं लेकिन लचर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा और सार्वजनिक खाद्य वितरण प्रणाली की बदहाल स्थिति पर आज तक गौर नहीं किया गया। हाल ही भारत का पोलियो मुक्त देशों में शुमार होना बड़ी खुशखबर है। भारत के लिए यह उपलब्धि काफी मायने रखती है, क्योंकि तीसरी दुनिया के देशों में चेचक, पोलियो, मलेरिया, बर्ड फ्लू, क्षय रोग और एड्स जैसी बीमारियों का डर लम्बे समय से कायम है।
स्वास्थ्य सेवा का चरमराता ढांचा, गरीबी, कुपोषण, बीमारियों के प्रति अज्ञानता, साफ-सफाई का अभाव ऐसे कई कारण हैं जिनके चलते आम आवाम के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। भारत की ही बात करें तो बरसात के मौसम में यहां मलेरिया, डेंगू और मस्तिष्क ज्वर के मरीजों से अस्पताल पट जाते हैं तो भीषण ठण्ड में फ्लू की शिकायत आम हो जाती है। लाख प्रयासों के बावजूद मुल्क में कुपोषण लाइलाज बीमारी होती जा रही है। लोगों को इससे निजात तो नहीं मिल रही अलबत्ता मच्छर भगाने के स्प्रे, तरह-तरह के लोशन आदि का कारोबार खूब फल-फूल रहा है। सच कहें तो भारत में आमतौर पर पायी जाने वाली बीमारियां कुछ खास उद्योगों के लिए मुनाफे का कारण बन गई हैं। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि स्वास्थ्य सेवा का ढांचा मजबूत करने के लिए यहां पर्याप्त कोशिशें नहीं हुर्इं। चेचक और पोलियो की तरह मुल्क से कुपोषण भी छूमंतर हो सकता है बशर्ते इसके लिए भी जमीनी प्रयास हों।
चार साल पहले 2009 में देश में पोलियो के 741 मामले सामने आये थे, तब लगा था कि देश से विकलांगता कैसे दूर होगी? भारत ने सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तमाम अड़चनों के बावजूद पोलियो जैसी बीमारी का उन्मूलन करने में सफलता हासिल की है। यह सम्भव हो पाया है सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति और इसके साथ-साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनीसेफ तथा रोटरी इंटरनेशनल आदि के अंतरराष्टÑीय सहयोग से। देश से चेचक और पोलियो का खात्मा एक-दो दिन में नहीं हुआ बल्कि यह लगभग तीन दशक की अथक मेहनत का सुफल है। अतीत को देखें तो पोलियो उन्मूलन में भारत के कुछ प्रदेशों में जागरूकता का अभाव था तो धार्मिक अड़चनें भी सामने आर्इं, लेकिन मुल्क के लाखों स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं ने हिम्मत न हारते हुए दो बूंद जिंदगी की पिलाने के लिए घर-घर सम्पर्क किया। तो सरकार ने इसके सघन प्रचार-प्रसार में कोई कसर नहीं छोड़ी। इतना ही नहीं पोलियो की दवा पूरे देश में कहीं भी आसानी से नौनिहालों को मिले इसके भी पुख्ता इंतजाम किए गए। कोई बच्चा छूटा तो नहीं इसके लिए दवा पिलाने की तारीख के अगले दिन स्वास्थ्य कार्यकर्ता घर-घर घूमे।
पोलियो यानि इंफेनटाइल पैरालिसिस, पोलियो माइलाइटिस की खोज 1840 में जैकब हाइन ने की थी। भारत में 2009 में 741 मामले सामने आये वहीं 2010 में यह संख्या घटकर 42 रह गई जबकि 2011 में पोलियो का एक मामला पश्चिम बंगाल में मिला था। यह खुशी की बात है कि पिछले तीन साल में देश में पोलियो संक्रमण नहीं हो पाया अन्यथा दूषित पेयजल के सेवन से यह बीमारी नवजातों को आसानी से अपना शिकार बना लेती। देश में पोलियो उन्मूलन के बाद भी हमें निश्चिंत होकर बैठने की जरूरत नहीं है क्योंकि पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों में पोलियो अब भी चिन्ता का सबब है। पाकिस्तान में 2012 में जहां पोलियो के 58 मामले सामने आये थे वहीं 2013 में यह संख्या बढ़कर 83 तक पहुंच गई। बीते साल पश्चिमोत्तर पाकिस्तान के कबायली इलाकों में 59 मामले सामने आये। वजह, वहां कुछ कट्टरपंथी ताकतों ने पोलियो ड्राप्स पिलाने का विरोध किया, जिसका खामियाजा अब नौनिहालों को जिंदगी भर की विकलांगता के रूप में भुगतना पड़ेगा। वर्ष 2013 में दुनिया में पोलियो के 369 मामले सामने आये। नाइजीरिया में फिलवक्त पोलियो महामारी का रूप लिए है। भारत में चूंकि पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आवाजाही बनी हुई है, लिहाजा हमें अभी भी सावधान रहने की जरूरत है। चेचक और पोलियो जैसी बीमारियों पर फतह हासिल करने के बाद मुल्क में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को भी दुरुस्त किया जाना चाहिए ताकि मलेरिया, क्षय, फ्लू, डायरिया और कुपोषण जैसी बीमारियों को छूमंतर किया जा सके।
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