Tuesday 23 July 2019

हिमा की हिमालयीन सफलता को सलाम


श्रीप्रकाश शुक्ला
भारत में आज एक ही बेटी चर्चा में है। नाम है हिमा दास। हिमा की उपलब्धियों से भारत ही नहीं समूचा खेल-जगत पुलकित है। इस गौरवशाली लम्हे में हम हिमा की हिमालयीन सफलता के साथ उसके प्रशिक्षक निपोन दास को भी सलाम करते हैं। सलामी इसलिए कि उन्होंने ही एक दुबली-पतली बेटी को फौलाद की शक्ल दी है, जोकि ट्रैक पर अपनी बिजली सी फुर्ती से समूचे हिन्दुस्तान को दुनिया भर में गौरवान्वित कर रही है। हिमा दास ने दो जुलाई से 20 जुलाई तक पांच स्वर्ण पदक जीत लेने का ऐसा कारनामा किया है जोकि इससे पहले कभी नहीं हुआ।
19 साल पहले असम के नगांव जिले के एक गांव धींग में जन्मी हिमा के पिता रंजीत दास गांव के मामूली किसान हैं। चावल उगाते हैं। उनके छह बच्चे हैं जिनमें हिमा सबसे छोटी है। घर से स्कूल और खेतों तक दौड़ लगाने वाली लड़की हिमा के बारे में किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन वह ऐसे दौड़ेगी कि दुनिया सांस रोक उसे ही देखेगी और ताली पीटेगी। जैसे उत्तर भारत के लोगों में क्रिकेट का खुमार है उसी तरह असम के लोगों को सिर्फ फुटबाल से प्यार है। गुवाहाटी से काजीरंगा और तेजपुर के रास्ते में जगह-जगह आपको खाली मैदानों में युवा फुटबाल खेलते मिल जाएंगे। हिमा भी पहले फुटबाल ही खेलती थी लेकिन निपोन दास की परख ने उसे एथलीट बनने को प्रेरित किया।
एक सांवली सी मामूली नैन-नक्श वाली लड़की हिमा दास आज हर भारतीय निगाहों का नूर है। दौड़ने से ठीक पहले वह जमीन को हाथों से चूमती है और बंदूक की आवाज सुनते ही ट्रैक पर उसके पराक्रम की बिजली कौंध जाती है। जुलाई के पहले सप्ताह से ही एक तरफ जहां असम बाढ़ की त्रासदी से जूझ रहा था वहीं वहां की एक बेटी यूरोपीय देशों के ट्रैकों पर अपने पराक्रम का जादू बिखेर रही थी। जीत की खुशी के बीच उसने देश की हुकूमतों और उद्योगपतियों से कई दफा असम को बाढ़ से बचाने की करुण पुकार लगाकर खिलाड़ियों के लिए एक नजीर पेश की।  
खेलप्रेमियों ने इस माह पांच बार हिमा दास को हवा की तरह उड़ते, उसके चेहरे की चमक, सौम्यता और  हंसी को देखा है। दुबली-पतली लेकिन मजबूत भुजाओं वाली लड़की के पैरों की गति, उसकी जांघों का बल मानो नारी शक्ति की नई परिभाषा गढ़ रहा था। सच कहें तो हिमा यूरोपीय देशों में एक पिछड़े मुल्‍क की सताई हुई लड़कियों के सपनों की गति लेकर उड़ रही थी। मैं उसकी देह की ताकत, उसकी फुर्ती, तेजी और उसकी हड्डियों के बल से अभिभूत हूं। हिमा से हर भारतीय खेलप्रेमी को उम्मीद बंधी है कि वह देर-सबेर भारतीय रीती झोली को ओलम्पिक पदक से आबाद कर सकती है।  
2016 के पहले तक हिमा स्कूल स्तर तक फुटबाल खेलती थी। आगे उसे प्रोफेशनली खेलने के लिए प्रॉपर ट्रेनिंग चाहिए थी, उसमें पैसे लगते लिहाजा उसने फुटबाल को बाय-बाय कर दिया। आज की दैदीप्यमान हिमा को दौड़ने की सलाह किसी और ने नहीं उसके फुटबाल प्रशिक्षक शमसुल शेख ने दी थी। शमसुल शेख की सलाह पर ही हिमा ने दौड़ में हाथ आजमाया। मिट्टी के ट्रैक पर दौड़-दौड़कर अभ्यास किया और पहुंच गई एक राज्यस्तरीय प्रतियोगिता में हिस्सा लेने। हिमा का राज्यस्तर पर कांस्य पदक जीतना सबकी कौतुक का विषय बन गया। सब हैरान थे, ये लड़की कौन है। पहले कभी न देखा, न सुना, सब चकित हुए और फिर भूल गए।
हिमा के लिए इससे आगे की राह आसान नहीं दिख रही थी लेकिन कहते हैं हिम्मत बंदे मदद खुदा। आखिर एक दिन असम के खेल कल्याण निदेशालय में एथलेटिक कोच निपोन दास की नजर हिमा पर पड़ी। एक स्थानीय स्पर्धा में मामूली से कपड़े के जूतों में हिमा को दौड़ते देख निपोन दास बेहद प्रभावित हुए और उन्होंने इस लड़की की मदद का मन बना लिया। सच कहें तो निपोन दास ही वह जौहरी हैं जिन्होंने हिमा की प्रतिभा को न केवल परखा, सराहा बल्कि उसे प्रशिक्षण से लेकर हर वह सुविधा दी जोकि एक खिलाड़ी के लिए जरूरी होती है।
हिमा की सफलता में प्रशिक्षक निपोन दास ऐसे हैं जैसे किसी वृक्ष की कहानी में मिट्टी हो। संसार में चाहे जितना फरेब, जितना दंद-फंद हो, वक्त की किताब में दर्ज वही जौहरी हुए जिन्होंने हीरों को गढ़ा। एक गरीब किसान की बेटी को जो सम्बल निपोन दास ने दिया, वह काबिलेगौर है। कहते हैं इंसान में हुनर, ईमानदारी, हिम्मत, ताकत, सौम्यता और विनम्रता हो तो उसे उसकी मंजिल से कोई विचलित नहीं कर सकता। हिमा दास का दौड़ना दरअसल सचमुच हिमा दास हो जाना है, उसका खुद को पा लेना है। आओ भारत की इस बेटी को दिल से बधाई दें ताकि अन्य बेटियां भी खेलों में जौहर दिखाने का सपना देख सकें।

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