Sunday 30 November 2014

नौ दिन चले अढ़ाई कोस

देश की सल्तनत सम्हालने के बाद से ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने स्वभाव से विपरीत हर राष्ट्र से दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं। विपक्ष को उम्मीद थी कि मोदी के सत्तासीन होने के बाद राजधर्म में अड़चनें आएंगी लेकिन उनके छह माह के शासन ने सभी विपक्षी दलों को हैरत में डाल दिया है। पड़ोसियों का आपस में मिलना, एक-दूसरे के सुख-दु:ख में सहभागी होना, आपसी लेन-देन और दीर्घकालीन सम्बन्ध निभाना समझदारी का कार्य है। मोदी के दोस्ताना प्रयासों और उनकी कार्यशैली का ही नतीजा है कि आज पाकिस्तान को छोड़कर दुनिया का हर राष्ट्र भारत की बलैयां ले रहा है।
हाल ही पड़ोसी देश नेपाल की राजधानी काठमांडू में आयोजित 18वें सार्क सम्मेलन में नरेन्द्र मोदी ने वही किया जो उन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के राष्ट्रध्यक्षों से कहा था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पड़ोसी देशों के साथ विभिन्न मतभेदों व विवादों के बावजूद बेहतर सम्बन्ध बनाने के पक्ष में हैं। अपने छह माह के शासनकाल में मोदी ने दुनिया के सामने एक नजीर पेश की है। उन्होंने अपनी कार्यशैली से न केवल लोगों का दिल जीता है बल्कि इस बात का एहसास भी कराया कि वह जो कहते हैं वही करते हैं। सार्क सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान की तल्खी को यदि हम भुला दें तो सब कुछ मोदीमय ही रहा। इस सम्मेलन को भारत और पाकिस्तान के सन्दर्भ में देखना उचित नहीं होगा। वजह, जो भी तल्खी है वह पाकिस्तान निर्मित है। पाकिस्तान की ओर से तोड़ा गया युद्ध विराम और फिर संयुक्त राष्ट्र के मंच से कश्मीर का मुद्दा उठाना मोदी को ही नहीं हर भारतवासी को नागवार गुजरा है।
नवाज शरीफ बेशक भारत से दोस्ताना सम्बन्ध बनाने के पक्षधर हों पर   वहां की सेना और आईएसआई चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच मनमुटाव हमेशा बना रहे, उसी के मुताबिक वे चुनी हुई सरकार को निर्देशित भी करते हैं। यह संयोग ही था कि मुम्बई हमले की आठवीं बरसी के दिन ही 18वें सार्क सम्मेलन का आगाज हुआ। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह कहना कि भारत उस हमले की पीड़ा भूला नहीं है, सौ फीसदी सच है। हर हिन्दुस्तानी आज पाकिस्तान को यदि धोखेबाज मानता है तो इसमें कोई बुराई भी नहीं है। सार्क सम्मेलन में आतंकवाद का मुद्दा उठना स्वाभाविक ही था। आतंकवाद अकेले भारत की ही समस्या नहीं है बल्कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल सभी इससे पीड़ित हैं। कालांतर में जिस आतंकवाद को पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल किया था वही आज उसके लिए कब्रगाह साबित हो रहा है। आतंकवादी किसी का सगा नहीं होता इस बात का इल्म पाकिस्तान को होना चाहिए। आतंकवाद का खात्मा अकेला भारत नहीं कर सकता।  यदि आतंकवाद का सफाया करना ही है तो सभी देशों को एकजुट होकर, खुफिया सूचनाएं साझा कर मानवता की रक्षा का संकल्प लेना चाहिए। सामूहिक प्रयासों से ही आतंकवाद के पैर उखाड़े जा सकते हैं।
मोदी ने सम्मेलन में अपने चिर-परिचित अंदाज में सार्क देशों को जहां कई सपने दिखाए, कई फलसफे बयां किए वहीं कई घोषणाएं भी कीं। सार्क सम्मेलन के बहाने दूसरी बार नेपाल यात्रा पर गये मोदी ने अपने पड़ोसी  मुल्क को कई सौगातें भेंट कीं। मोदी के इन प्रयासों से भारत-नेपाल सम्बन्धों के और पुख्ता होने की उम्मीद बंधी है। मोदी को यही रवैया श्रीलंका, बांग्लादेश के साथ भी रखना चाहिए। इन देशों का भी हमारे क्षेत्रीय और जातीय राजनीति पर खासा प्रभाव है। अफगानिस्तान निरंतर संघर्षरत है, उसे भी आर्थिक, सामरिक सहयोग के साथ ही राजनीतिक स्थिरता कायम करने का सम्बल चाहिए। दुनिया की महाशक्ति चीन लम्बे समय से सार्क देशों में शामिल होने को लालायित है।  सार्क के वर्तमान सदस्य यह सुनिश्चित करें कि इसमें अमीर-गरीब सभी सदस्य देशों को बराबरी का न केवल दर्जा मिले बल्कि एक-दूसरे की कमियों को एक-दूसरे की ताकतों से भरने की कोशिश भी हो।
दुनिया के अतिविकसित, अल्पविकसित और विकासशील देशों में भी आपस में मिलकर काम करने की परम्परा दिनोंदिन प्रगाढ़ हो रही है। इंसान  हो या मुल्क, अकेले कोई भी आगे नहीं बढ़ सकता। सफलता के लिए  किसी न किसी की मदद लेनी ही होती है। सार्क के गठन का अभिप्राय भी कुछ यही है। जब तक पड़ोसी धर्म प्रगाढ़ नहीं होगा सारे प्रयास अकारथ साबित होंगे। सार्क के गठन का उद्देश्य दक्षिण एशियाई लोगों का कल्याण, उनकी जीवनशैली में सुधार, क्षेत्र का आर्थिक विकास, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास में तेजी, सामूहिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा, आपसी विश्वास, एक-दूसरे की समस्याओं के प्रति समझ, साझाहित के मामलों पर अंतरराष्ट्रीय मंचों में मजबूत सहयोग, समान लक्ष्य तथा उद्देश्य के साथ अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना शामिल है। इन तमाम उद्देश्यों पर यदि ईमानदारी से अमल होता तो आज दुनिया के इस हिस्से की तस्वीर कुछ और होती।
यह कटु सत्य है कि आज भी सार्क देश अपनी प्रासंगिकता बरकरार रखने को संघर्षरत हैं। अब तक हुए सभी सम्मेलन औपचारिकता मात्र साबित हुए हैं। सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष एक मंच पर कुछ औपचारिक घोषणाएं तो करते हैं लेकिन उन पर अमल कभी नहीं होता। यही कारण है कि इन देशों के बीच न आर्थिक सहयोग मेंं उल्लेखनीय वृद्धि हुई और न ही एक-दूसरे की समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता बढ़ी है। सार्क ही नहीं दुनिया के विभिन्न हिस्सों में भी ऐसे संगठन गतिशील हैं। उनका आर्थिक, व्यापारिक, राजनीतिक यहां तक कि सामरिक व्यवहार भी सार्क से कहीं अधिक विकासमूलक  है। यूरोपियन यूनियन, नाफ्टा और आसियान के सदस्य देशों का आपसी व्यापार सार्क देशों के व्यापार से कहीं ज्यादा है। सार्क सदस्य देशों की जनसंख्या लगभग डेढ़ अरब है। इस जन समुदाय की माली हालत भाषणबाजी से नहीं बल्कि मजबूत इरादों से ही सुधर सकती है।

Saturday 29 November 2014

दलालों के दलदल में क्रिकेट

अगर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को भ्रष्टाचार के दलदल से निजात मिल पाती है तो उसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय को जायेगा। दुनियाभर में भद्रजनों का खेल माने गये क्रिकेट को इस बोर्ड ने न सिर्फ कारोबार, बल्कि सट्टेबाजी समेत कई तरह की आपराधिक गतिविधियों का जरिया बना दिया है। यही कारण है कि जो एक बार बोर्ड पर काबिज हो जाता है, फिर वहां से जाना नहीं चाहता। खेल की बदनामी और अपनी फजीहत के बावजूद एन. श्रीनिवासन अगर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष बने रहना चाहते हैं तो उसके मूल में भी निहित स्वार्थ ही हैं, वरना विशुद्ध कारोबारी इस शख्स का क्रिकेट से क्या रिश्ता? किसी भी कीमत पर बोर्ड पर अपना कब्जा बनाये रखने की श्रीनिवासन की तिकड़मों पर अब देश की सर्वोच्च अदालत ने अंतत: विराम लगा दिया लगता है। बोर्ड की लाड़ली क्रिकेट स्पर्धा आईपीएल में स्पॉट मैच फिक्सिंग और सट्टेबाजी के मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को बहुत साफ कर दिया कि न सिर्फ श्रीनिवासन, बल्कि उनकी पूरी टीम को ही बोर्ड से विदा होना चाहिए। यह भी कि ये लोग बोर्ड के नये चुनाव में हिस्सा न लें, नया खून देश में क्रिकेट प्रबंधन संभाले और आईपीएल में स्पॉट मैच फिक्सिंग व सट्टेबाजी की बाबत जस्टिस मुद‍्गल समिति की रिपोर्ट पर कार्रवाई भी करे। श्रीनिवासन की आईपीएल टीम चेन्नई सुपरकिंग्स को अयोग्य साबित करने का स्पष्ट संकेत भी सर्वोच्च अदालत ने दे दिया है। ऐसा नहीं है कि बोर्ड के वकील ने श्रीनिवासन की पैरवी में कोई कसर छोड़ी हो, लेकिन कभी न कभी तो अति का अंत होता ही है, जो अकसर बुरा ही होता है। स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी के चलते पूरी दुनिया में भारतीय क्रिकेट को बदनाम करवाने के बावजूद श्रीनिवासन जिस तरह इस कलंक कथा और इसके खलनायकों पर पर्दा डालने की कोशिश करते रहे हैं, उससे साफ है कि खुद उनका दामन भी बेदाग नहीं है। श्रीनिवासन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के भी अध्यक्ष रहे और आईपीएल में भाग लेने और जीतने वाली टीम चेन्नई सुपरकिंग्स के मालिक भी। क्या यह हितों के टकराव का स्पष्ट और पुष्ट उदाहरण नहीं है?
कानूनी दांवपेचों के तहत कागज पर जो भी स्थिति हो, पर व्यावहारिक रूप से चेन्नई सुपरकिंग्स के कर्ताधर्ता नजर आने वाले मयप्पन, जो श्रीनिवासन के दामाद हैं, को मैच फिक्सिंग और सट्टेबाजी में फंसने पर महज क्रिकेट प्रेमी बताकर अदालत को भी गुमराह करने की कोशिश की गयी। यही नहीं, भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी चेन्नई सुपरकिंग्स के भी कप्तान ही नहीं हैं, बल्कि श्रीनिवासन के स्वामित्व वाली इंडिया सीमेंट कंपनी के अधिकारी भी हैं। क्या यह घालमेल ही नहीं है, जिसमें न कोई पैमाना है और न ही पारदर्शिता। लगता है कि देश में क्रिकेट को निजी जागीर की तरह चलाया जा रहा है, जिसमें न किसी की जिम्मेदारी है और न ही किसी के प्रति जवाबदेही। पहले शरद पवार सरीखे चतुर राजनेता से भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड कब्जाने और फिर इस कलंक कथा के चलते श्रीनिवासन का जो चरित्र उजागर हुआ है, उससे लगता है कि वह आसानी से मानने वाले नहीं हैं, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के सख्त रुख के बाद शायद उनके पास कोई और विकल्प भी नहीं बचा है। शायद इसीलिए अब बोर्ड पर अप्रत्यक्ष नियंत्रण की रणनीति बनायी जा रही है, ताकि चेहरे बदल जाने के बावजूद अपनी करतूतों की कड़ी सजा पाने से बचा जा सके। नये चेहरों के रूप में जो भी नाम उभर कर सामने आ रहे हैं, उनके न तो क्रिकेट से किसी संबंध का साक्ष्य है और न ही प्रबंधन क्षमता का कोई प्रमाण। इनमें से ज्यादातर चेहरे भारतीय क्रिकेट के बदनाम कारोबार में तबदील हो जाने के लिए जिम्मेदार रहे हैं और खुद उनकी छवि संदेहास्पद है। ये चेहरे सत्ता गलियारों से लेकर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड तक हर उस जगह पाये जा सकते हैं, जहां से दौलत और शोहरत हासिल की जा सकती हो। सर्वोच्च न्यायालय के लिए शायद यह उपयुक्त न हो कि वह ऐसे तमाम बदनाम या संदेहास्पद चेहरों के ही चुनाव लड़ने पर रोक लगा दे, लेकिन श्रीनिवासन की कलंक कथा के विरुद्ध आवाज उठाने वालों और खेल की छवि के प्रति चिंतित लोगों की यह जिम्मेदारी बनती है कि देश में क्रिकेट प्रबंधन की सफाई के इस अवसर को हाथ से न जाने दें।

प्रिंस ऑफ चेस- मैग्नस कार्लसन

केवल 22 वर्ष की उम्र में अपना मायलापोर चेन्नई का घर छोड़कर शतरंज के टूर्नामेंट में खेलने के लिए लगातार घूमने वाले और सतत 5 वर्ष तक शतरंज की खेल में विश्व विजेता रहने वाले विश्वनाथ आनंद को हाल ही में नार्वे के मैग्नस कार्लसन ने चेन्नई में ही हरा दिया। कार्लसन आनंद से आधी उम्र के हैं। इतनी छोटी सी उम्र में इतनी बड़ी उपलब्धि प्राप्त करने वाले कार्लसन ने सभी का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है। ऑल इंडिया चेस फेडरेशन के प्रमुख भरत सिंह चौहान के अनुसार इस मैच को विश्व के करीब दो करोड़ लोगों ने टीवी और इंटरनेट के माध्यम से देखा। स्वयं विश्वनाथ का कहना था कि मैं तो उनका खेल समझ ही नहीं पाया। सचमुच कार्लसन महान है। विश्वनाथ ने कार्लसन ने मोजार्ट ऑफ चेस कहा है। चेस के विजेता चेम्पियन को ग्रांड मास्टर कहा जाता है। यह पद ग्रांड मास्टर कार्लसन ने केवल 13 वर्ष की उम्र में 2004 में प्राप्त कर लिया था। गेरी कास्पारोव रुस के शतरंज के बादशाह है। 2004 में जब उनके सामने कार्लसन खेलने बैठे, तो उस समय कार्लसन अपनी चाल चलकर आराम से चहलकदमी करते रहे और गेरी कास्पारोव जैसे महारथी अपनी चाल चलने के लिए मशक्कत कर रहे थे। उस समय की वीडियो क्लिपिंग यू टयूब पर काफी हिट हुई। कार्लसन जिस तेजी से आगे बढ़ रहे थे, उससे उस पर यह आरोप लगा कि वे प्रतिद्वंद्वी को वशीभूत कर लेते हैं। इस वहम या कहे कि डर से अमेरिका के चेस चेम्पियन हीकारु नाकामुरा कार्लसन के सामने काले रंग का चश्मा पहनते। ऐसा नहीं है कि कार्लसन केवल शतरंज ही खेलते हैं, वे फुटबॉल, बास्केट बॉल और टेनिस के अच्छे खिलाड़ी भी हैं। अपनी फिटनेस को बनाए रखने के लिए वे सख्त मेहनत करते हैं। जिस टूर्नामेंट में कार्लसन ने विश्वनाथ को हराया, उसके लिए विश्वनाथ ने लगातार तीन महीने तक चेस का प्रशिक्षण लिया, जबकि कार्लसन ने इस दौरान खूब आराम किया। कार्लसन की शक्तियां कितनी विशिष्टताओं से भरी हैं। वे अपनी चाल पूरे गणित के साथ प्यादाओं से खेलने के बजाए अपनी अंतरूप्रेरणा से काम लेते हैं। अंत:प्रेरणा से काम करने वाले अक्सर सफल होते हैं। अपनी इसी शक्ति के बदौलत वे एक साथ दस लोगों के साथ चेस खेल सकते हैं। उनकी स्मरणशक्ति इतनी प्रबल है कि हजारों चालें उन्हें याद रहती हैं। केवल अपनी ही नहीं, बल्कि अन्य विश्व चेम्पियनों की चालें भी उन्हें याद हैं। उनका खेल एक तरह से एकसूत्रता में बांधाने वाला है। कार्लसन के प्रशंसकों को जितनी खुशी उनके खेल देखकर होती है, उससे अधिक खुशी उसके बोलने से होती है। नार्वे की राजधानी ओस्लो में रहने वाले कार्लसन की पिता हेनरीफ भी शतरंज के खिलाड़ी रह चुके हैं। सामान्य रूप से जिस खेल को खेलना हो, उसमें पूरी तरह से रम जाने की प्रवृत्तिा के कारण कार्लसन भी पिता की तरह शतरंज में रम गए। अपनी जबर्दस्त याददाश्त के चलते ही उसे बचपन में ही देशों के नाम और वहां की आबादी की जानकारी मुंह जबानी रखते थे। आठ वर्ष की उम्र में जब उन्होंने अपनी बहन को चेस में हराया, तब तक उनकी प्रतिभा की ओर किसी का ध्यान ही नहीं था। 19 वर्ष की अवस्था में वह सबसे अधिक धन कमाने वाले खिलाड़ियों में शुमार गए थे। कास्मोपोलिटन नामक एक अंतरराष्ट्रीय मैग्जिन निकलती है, इसे 2013 के सेक्सियेस्ट पर्सन पुरुषों की श्रेणी में रखा है। दुनिया भले ही उन्हें जीनियस माने, पर अपने बारे में वे कहते हैं कि जो मैं कर रहा हूं, उसमें मैं सच्च हूं, बस यही मेरी चाहत है। उनके पिता हेनरीफ कहते हैं कि जब कार्लसन 15 वर्ष के थे, तब तक उसने चेस के पीछे अपने 10 हजार घंटे खर्च किए। उन दिनों वह चेस खेलने के लिए वर्ष के 200 दिनों की यात्रा करते। चेस के खेल के लिए उसकी निष्ठा और त्याग लाजवाब है। कार्लसन से पूछा गया कि खेल जीतने के लिए आपकी व्यूह रचना कैसी है, तो उनका जवाब होता है बस केवल चेस खेलना। शतरंज खेलने की आपकी स्टाइल क्या है, तो वे कहते-बस केवल चेस खेलना। आप शतरंज की शिक्षा किस तरह से लेते हैं, तो वे कहते-बस केवल चेस खेलना। जब वे 13 वर्ष के थे, तब उनका नाम नार्वे के घर-घर में पहुंच चुका था। उन्हें पढ़ने का शौक नहीं था, पर माता-पिता चाहते थे कि वह पढ़ाई करे। फिर भी वे कॉलेज और यूनिवर्सिटी का शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए।
खेलते समय अपना प्यादा किस तरह से चलना है, यह वे दस सेकंड में ही तय कर लेते हैं, उसके बाद उस पर मनन करते हैं। विश्वनाथन को हराने पर उन्हें 9 करोड़ रुपए मिले। वे अब तक शतरंज से 90 लाख डॉलर तक कमा चुके हैं। अल्ट्रा लो पॉवर वायलेस सिस्टम ऑन चिप्स के वे ब्रांड एम्बेसेडर हैं। यह कंपनी नार्वे की है। यह कंपनी वायरलेस माउस, की बोर्ड और खेल उपकरणों आदि का निर्माण करती है। कार्लसन पर केंद्रित लर्न चेस विद कार्लसन किताब का प्रकाशन हो चुका है। इस किताब की बिी धाड़ल्ले से जारी है। एक और किताब है - मैग्नस कार्लसन द वर्ल्ड वेस्ट चेस प्लेयर, उन पर एक फिल्म भी बनी है, जिसका नाम है - प्रिसं ऑफ चेस।

Thursday 27 November 2014

ह्यूज के निधन से दुनिया दुखी

दुनिया भर के क्रिकेट समुदाय ने आस्ट्रेलियाई बल्लेबाज फिलिप ह्यूज के दुखद निधन पर आज शोक जताया। फिलिप ह्यूज ने शेफील्ड शील्ड मैच के दौरान बाउंसर लगने के बाद सिर की चोट के कारण आज सिडनी में आखिरी सांस ली।
भारत के खिलाफ आगामी टेस्ट श्रृंखला के लिये टीम में वापसी की दहलीज पर खडेÞ फिलिप ह्यूज ने सेंट विंसेंट अस्पताल में दम तोड़ा। उन्हें न्यू साउथ वेल्स और साउथ आस्ट्रेलिया के बीच घरेलू मैच के दौरान सीन एबट का बाउंसर सिर में लगा था। बीसीसीआई ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए अपने ट्विटर पेज पर लिखा, फिलिप ह्यूज के परिवार के प्रति हमारी संवेदनायें। ईश्वर उसकी आत्मा को शांति दे।
चैम्पियन बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर ने लिखा, फिल के बारे में सुनकर स्तब्ध हूं। क्रिकेट के लिये दुखद दिन। उसके परिवार, दोस्तों और शुभचिंतकों के प्रति हमदर्दी। आस्ट्रेलिया के खिलाफ ब्रिसबेन में चार दिसम्बर से शुरू हो रहे पहले टेस्ट में भारत की कप्तानी करने जा रहे विराट कोहली ने इसे क्रिकेट के लिये भयावह दिन कहा। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, फिलिप ह्यूज की खबर सुनकर दुखी और स्तब्ध हूं। क्रिकेट के लिये यह भयावह दिन है। ईश्वर फिल की आत्मा को शांति दे और उनके परिवार को इस दुख से उबरने की शक्ति दे। भारतीय बल्लेबाज रोहित शर्मा ने सीन एबट के प्रति भी हमदर्दी जताई है। उन्होंने कहा, क्रिकेट जगत में दुखद दिन। ईश्वर फिल की आत्मा को शांति दे और सीन एबट को शक्ति दे। हरफनमौला युवराज सिंह ने फिलिप ह्यूज की मौत को खेल के लिये काला दिन कहा। उन्होंने लिखा, क्रिकेट के लिये काला दिन। यकीन नहीं होता कि फिलिप ह्यूज नहीं रहा। उसके परिवार के प्रति मेरी संवेदनायें।
सुरेश रैना ने ट्वीट किया, दुखी और स्तब्ध हूं। फिलिप ह्यूज तुम हमारे दिलों में रहोगे। विश्व क्रिकेट के लिये सबसे खराब दिन। आस्ट्रेलियाई कोच डेरेन लीमैन ने लिखा, आरआईपी लिटिल चैम्प। हम तुम्हे भुला नहीं सकेंगे। ह्यूज परिवार के लिये प्यार और दुआयें। पूर्व कप्तान और विकेटकीपर एडम गिलक्रिस्ट ने इस खबर पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, नहीं, नहीं, नहीं, नहीं। आरआईपी फिलिप ह्यूज। आस्ट्रेलिया के महान तेज गेंदबाज ग्लेन मैकग्रा और पूर्व सलामी बल्लेबाज मैथ्यू हेडन ने भी उनके परिवार के प्रति सहानुभूति व्यक्त की। मैकग्रा ने लिखा, फिलिप ह्यूज की मौत की दुखद खबर मिली। हमारी संवेदनायें उसके परिवार के प्रति है। हेडन ने ट्विटर पर लिखा, छोटे भाई ईश्वर तुम्हारी आत्मा को शांति दे। ईश्वर तुम्हे हमेशा अपनी हथेली पर बिठाये। ह्यूज परिवार के प्रति सहानुभूति।
दक्षिण अफ्रीका के हरफनमौला जेपी डुमिनी ने ट्विटर पर लिखा, ह्यूज ईश्वर तुम्हारी आत्मा को शांति दे। इस समय शब्दों से किसी की भावनाओं को व्यक्त नहीं किया जा सकता। उसके परिवार, दोस्तों और टीम के लिये दुआयें। दक्षिण अफ्रीका के पूर्व कप्तान ग्रीम स्मिथ ने और मौजूदा कप्तान एबी डिविलियर्स भी इस खबर से काफी दुखी हैं। स्मिथ ने लिखा, भीतर से काफी टूटा हुआ महसूस कर रहा हूं। मेरे पास शब्द नहीं है। उसके परिवार और दोस्तों के बारे में सोच रहा हूं।
डिविलियर्स ने कहा, दिल टूट गया है। बहुत काला दिन है यह। फिल फिलिप ह्यूज, तुम बहुत याद आओगे। मेरी दुआयें उसके परिवार और दोस्तों के साथ है। दक्षिण अफ्रीका के पूर्व विकेटकीपर मार्क बाउचर ने सीन एबट और फिलिप ह्यूज के परिवार के प्रति संवेदनायें व्यक्त कीं। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, अल्फाज नहीं बचे हैं। ईश्वर तुम्हारी आत्मा को शांति दे। सीन और फिलिप ह्यूज के परिवार के बारे में सोच रहा हूं। श्रीलंका के पूर्व कप्तान और बल्लेबाजी स्टार माहेला जयवर्धने, वेस्टइंडीज के क्रिस गेल और पाकिस्तान के शाहिद अफरीदी ने भी ट्विटर पर प्रतिक्रिया व्यक्त की। जयवर्धने ने कहा,अभी अभी यह बुरी खबर सुनी। फिल, उसके परिवार और दोस्तों के प्रति संवेदनायें। गेल ने लिखा, सुबह सुबह बुरी खबर सुनी। तुम्हारी कमी खलेगी फिल। फिल के परिवार के प्रति हमदर्दी है। अफरीदी ने लिखा, आस्ट्रेलियाई क्रिकेटर फिलिप ह्यूज के परिवार के प्रति हमदर्दी।

Wednesday 26 November 2014

मोदी सरकार के छह माह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के छह महीने पूरे हो गए हैं। इस दौरान उन्होंने शासन की एक नई शैली का प्रदर्शन किया है। शासन के दौरान अनदेखी किए गए लोगों के बीच एक आशा की एक किरण जगाने में भी वह कामयाब हुए हैं।
इंदिरा गांधी के बाद उन्हें सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्री के रूप में देखा जा रहा है। उन्होंने शासन में सुधार, रोजगार सृजन, बुनियादी सुविधाओं को बढ़ावा तथा स्वच्छ भारत का वादा किया है। 26 मई को पदभार ग्रहण करने के बाद उन्होंने नौकरशाही से आलस त्यागने की बात कही थी, ताकि सरकार को लक्ष्य संचालित तथा निर्णायक बनाया जा सके। पूर्व कैबिनेट सचिव प्रभात कुमार ने मोदी को एक निर्णायक नेता की संज्ञा देते हुए कहा कि उन्होंने कुछ बड़ी पहल की है, लेकिन इतनी जल्दी सरकार के प्रदर्शन को आंकने की यह जल्दबाजी होगी।  कुमार ने कहा, ‘बीते 25 वर्षों में मैंने उनके जैसा निर्णायक नेता नहीं देखा। उनका जो सपना है, वह भारत का भविष्य लग रहा है।’ कुमार को लगता है कि अगले वर्ष आने वाला बजट एक प्रमुख नीतिगत दस्तावेज होगा। उसके बाद ही परिणाम सामने आएंगे। भाजपा नेतृत्व वाली सरकार ने जन धन योजना, श्रमेव जयते, संसद आदर्श ग्राम योजना, पंडित दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना, सरदार पटेल आवास योजना तथा जीवन प्रमाण जैसी योजनाएं शुरू की हैं।
मोदी के आलोचक उन्हें सारी शक्तियों को एक हाथ में केंद्रित करने का आरोपी ठहराते हैं। कांग्रेस नेता एम.वीरप्पा मोइली कहते हैं कि मोदी सरकार बातों की शेर है, काम की नहीं। मोइली ने कहा, ‘यदि आप भाषणों तथा नारों पर जाएं, तो मोदी का प्रदर्शन बेहद बढ़िया है।’ चेन्नई के राजनीतिक विश्लेषक एम.आर. वेंकटेश ने कहा, ‘सरकार में शीर्ष स्तर पर भ्रष्टाचार अब लगभग समाप्त हो गया है।’ कालेधन के मुद्दे पर वेंकटेश ने कहा, ‘जब सत्ता में नहीं थी तब पार्टी ने कालेधन को बड़ा मुद्दा बनाया। हालांकि वह जानती थी कि कानूनी कारणों से सरकार नामों का खुलासा नहीं कर सकती।’ राजनीतिक समीक्षक एस.निहाल सिंह ने कहा,‘मोदी ने घरेलू नीतियों की अपेक्षा विदेश नीतियों के लिए ज्यादा काम किया है।’
मोदी सरकार की मुख्य पहल
-पांच साल में स्वच्छता में सुधार के लिए स्वच्छ भारत अभियान।
-हर परिवार को कम से कम एक बैंक खाता सुनि>ित करने के लिए प्रधानमंत्री जन धन योजना।
-भारत को एक निवेश गंतव्य दिखाने के लिए ‘मेक इन इंडिया’ अभियान।
-पेशेवर प्रशिक्षण को दुरुस्त करने के लिए श्रमेव जयते।
-आदर्श गांव तैयार करने के लिए सांसदों द्वारा गांव को गोद लेने के लिए सांसद आदर्श ग्राम योजना।
-डिजिटल इंडिया पहल के जरिए नीति निर्माण में आम लोगों की आवाज का समावेशीकरण।
-कौशल विकास के लिए नए विभाग का गठन।
-तीन साल में 10 लाख ग्राम युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए पंडित दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना।
-लाइसेंसिंग प्रक्रिया और प्रमाणीकरण की प्रक्रिया में सुधार। श्रम कानून अनुपालन के लिए एकीकृत वेब पोर्टल।
-शहरी जीवन स्तर में सुधार के लिए 100 स्मार्ट शहर के विकास की योजना।
-तेज रफ्तार रेलगाड़ी, तेज रफ्तार वाला सड़क गलियारा।
-गंगा पुनरुद्धार कार्यक्रम।
-हर किसान को मृदा स्वास्थ्य कार्ड का वितरण।
-2022 तक सबको आवास उपलब्ध कराने के लिए सरदार पटेल आवास योजना।
-आॅनलाइन सुविधा से पर्यावरण मंजूरी अब आसान और पारदर्शी।
-गांवों में बिजली पहुंचाने के लिए दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना।

क्या है स्पॉट फिक्सिंग, कैसे होती है फिक्सिंग?

जयपुर। आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी के मामले में मुकुल मुद्गल कमेटी की रिपोर्ट पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई को कड़ी फटकार लगाई।
कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि क्रिकेट इस देश में धर्म की तरह है। करोड़ों लोग इस खेल के दीवाने हंै, लेकिन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड इस खेल को तबाह कर रहा है। इसके साथ ही आईसीसी प्रमुख एन. श्रीनिवासन के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संदेह का लाभ खेल को मिलना चाहिए ना कि व्यक्ति को, कोर्ट ने सवाल करते हुए कहा कि क्या बीसीसीआई के मुखिया का आईपीएल टीम का मालिक होना हितों का टकराव नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने किया आठ नामों का खुलासा
आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले में बड़ा खुलासा 14 नवम्बर को हुआ। सुप्रीम कोर्ट में पेश मुद्गल कमेटी की रिपोर्ट में श्रीनिवासन, मयप्पन और राज कुन्द्रा सहित आठ लोगों के नाम फिक्सिंग के दोषियों के तौर पर सामने आए हैं। लिस्ट में तीन क्रिकेटरों के नाम भी शामिल हैं लेकिन कोर्ट ने इनके नामों का खुलासा नहीं करने के आदेश दिए।
अदालत ने कहा है कि रिपोर्ट में खिलाड़ियों की भूमिका साफ नहीं है। फिक्सिंग मामले में खुलासा होने से क्रिकेट जगत में हड़कंप मचा हुआ है। बीसीसीआई की एजीएम 28 नवंबर को होनी थी लेकिन बोर्ड ने अब इसे चार हफ्ते के लिए टालने का फैसला किया है। कोर्ट ने कहा कि बीसीसीआई के चुनाव पर कोई पाबंदी नहीं लगाई जाएगी। लेकिन सलाह दी कि बीसीसीआई फैसले के बाद ही चुनाव करे।
क्या है पूरा मामला
आईपीएल-6 के दौरान स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में राजस्थान रॉयल्स के तीन खिलाडियों एस. श्रीसंत, अजीत चंदीला और अंकित चव्हाण को गिरफ्तार किया था। इनके अलावा चेन्नई सुपर किंग्स के तत्कालीन टीम प्रिंसीपल गुरूनाथ मयप्पन और अभिनेता बिंदू दारा सिंह को सट्टेबाजी में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए जस्टिस मुकुल मुद्गल की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया था।
क्या होती है स्पॉट फिक्सिंग
सबसे पहली बात तो यह है कि स्पॉट फिक्सिंग, मैच फिक्सिंग से कुछ अलग होती है। जहां मैच फिक्सिंग के लिए पूरी टीम को राजी करना पड़ता है, वहीं स्पॉट फिक्सिंग किसी एक खिलाड़ी के जरिए भी हो सकती है। मैच फिक्सिंग पूरे मैच की हार या जीत के लिए होती है, जबकि स्पॉट फिक्सिंग आमतौर पर एक बॉल या एक ओवर के लिए भी हो सकती है। वैसे सिर्फ गेंदबाज ही नहीं, स्पॉट फिक्सिंग बल्लेबाजों और फील्डरों के साथ भी की जाती है, लेकिन बुकीज का सबसे आसान निशाना गेंदबाज होते हैं। आमतौर पर बुकीज ओवर के हिसाब से बॉलर के साथ सौदा करते हैं, और यह तय किया जाता है कि किस ओवर में कितने रन दिए जाने हैं, या किस गेंद पर छक्का या चौका लगेगा, या कौन-सी गेंद नो बॉल या वाइड बॉल होगी।
बुकी को कैसे होता है फायदा
बुकी पहले से खिलाड़ियों से फिक्सिंग कर लेता है। उस आधार पर सट्टा मार्केट में हर गेंद पर सट्टा लगता है। सट्टा यह लगता है कि यह गेंद नो बॉल होगी या वाइड, फिर इस गेंद पर या इस ओवर में इतने रन बनेंगे। बुकी को तो पहले से पता रहता है, इस आधार पर वह सट्टा लगवाकर पैसे बनाता है।
फटाफट क्रिकेट में आसान होती है फिक्सिंग
माना जाता है कि फटाफट क्रिकेट यानि ट्वेंटी-20 मैच में स्पॉट फिक्सिंग बहुत आसान होता है। क्रिकेट के इस वर्जन में सब कुछ बहुत जल्दी जल्दी होता है, इसलिए कुछ खास पता नहीं चल पाता। वैसे भी आईपीएल इंटरनेशनल गेम नहीं है, इसलिए इसमें संभावना ज्यादा होती है।
आईपीएल में पहली बार स्पॉट फिक्सिंग
आईपीएल और स्पॉट फिक्सिंग का रिश्ता पहली बार 2012 में सामने आया था जब एक टीवी चैनल के स्टिंग आॅपरेशन में 5 खिलाड़ियों टी.पी. सुधीन्द्र, मोहनीश मिश्रा, अमित यादव, शलभ श्रीवास्तव और अभिनव बाली ने स्पॉट फिक्सिंग करने के बदले में पैसे लेने की बात कबूली थी। इसके बाद बीसीसीआई ने इन सभी पर हर प्रकार की क्रिकेट से प्रतिबंधित कर दिया था।
वनडे मैचों में पहली स्पॉट फिक्सिंग
स्पॉट फिक्सिंग का सबसे बड़ा मामला 2010 में सामने आया था, जब इंग्लैंड दौरे पर गई पाकिस्तानी टीम के तीन खिलाड़ियों कप्तान सलमान बट्ट, तेज गेंदबाज मोहम्मद आमिर और मोहम्मद आसिफ पर स्पॉट फिक्सिंग में शामिल होने के आरोप लगे थे। एक अखबार द्वारा किए गए स्टिंग आॅपरेशन में इन तीनों को स्पॉट फिक्सिंग करने में लिप्त पाया गया था और फिर इन्हें जेल की हवा भी खानी पड़ी।
आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग की पूरी कहानी, जानिए कब क्या हुआ?
बीसीसीआई के कामकाज से निर्वासित चल रहे अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन की मुश्किलें अभी कम नहीं हुई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने मुद्गल समिति की जांच रिपोर्ट पर  सुनवाई के दौरान कई सवाल उठाए। कहा, क्या श्रीनिवासन खुद को बरी हुआ मान रहे हैं?
बीसीसीआई अध्यक्ष खुद अपनी टीम कैसे रख सकता है? आप आईपीएल की चेन्नई सुपर किंग्स के मालिक हैं। क्या यह हितों का टकराव नहीं है? जस्टिस टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, क्रिकेट सज्जनों का खेल है। इसे उसी भावना से खेला जाना चाहिए। यदि आप इस खेल में फिक्सिंग जैसी चीजें होने देंगे तो क्रिकेट नष्ट हो जाएगा। क्या आप इसे नष्ट होते हुए देखना चाहते हैं।
कोर्ट ने कहा कि श्रीनिवासन की टीम के कुछ लोग सट्टेबाजी में लिप्त थे। इसलिए उनकी जवाबदेही बनती है और वह खुद को इस मामले से अलग नहीं कर सकते हैं। श्रीनिवासन को हितों के टकराव के सवालों का जवाब देना होगा। कोर्ट ने कहा कि संदेह का लाभ खेल को दिया जा सकता है, लेकिन किसी व्यक्ति विशेष को नहीं।
क्या है मामला
श्रीनिवासन ने सुप्रीम कोर्ट से एक बार फिर अध्यक्ष बनने की अनुमति मांगी थी। श्रीनिवासन ने कहा था कि मुद्गल रिपोर्ट में उनके खिलाफ भ्रष्टाचार में लिप्तता के सबूत नहीं मिले हैं, इसलिए उन्हें एक बार फिर बोर्ड प्रमुख की भूमिका निभाने की अनुमति दी जाए। श्रीनिवासन को आईपीएल-6 मामले की जांच पूरी होने तक सुप्रीम कोर्ट ने बीसीसीआई के कामकाज से दूर रहने को कहा था।
स्पॉट फिक्सिंग मामले में कब-कब क्या हुआ?
16 मई 2013 : राजस्थान रॉयल्स के तीन खिलाड़ी एस श्रीसंत, अंकित चव्हाण और अजित चंदेला स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में गिरफ्तार किए गए।
21 मई 2013 : बॉलीवुड कलाकार विंदू दारा सिंह सट्टेबाजों के साथ रिश्ते के आरोप में मुंबई में गिरफ्तार किए गए।
24 मई 2013 : मयप्पन मुंबई पुलिस के सामने हाजिर हुए। पुलिस ने पूछताछ के लिए उन्हें हिरासत में लिया।
2 जून 2013 : बीसीसीआई की बैठक में फ्रेंचाइजी की जांच के लिए दो रिटायर्ड जजों की कमेटी बनाई गई।
30 जुलाई 2013 : बिहार क्रिकेट संघ के अध्यक्ष आदित्य वर्मा ने बीसीसीआई के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की।
05 अगस्त 2013 : बीसीसीआई ने दो जजों की कमेटी की जांच रिपोर्ट को खारिज करने के बॉम्बे हाईकोर्ट के फै सले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
13 सितंबर 2013 : बीसीसीआई ने श्रीसंत और चव्हाण पर आजीवन प्रतिबंध लगाया।
07 अक्टूबर 2013 : सुप्रीम कोर्ट ने फिक्सिंग मामले की जांच के लिए जस्टिस मुद्गल कमेटी बनाई।
10 फरवरी 2014 : मुद्गल कमेटी ने रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी।
01 सितंबर 2014 : सुप्रीम कोर्ट ने मुद्गल समिति को अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए दो महीने का और समय दिया।
03 नवंबर 2014 : मुद्गल कमेटी ने रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी।
24 नवंबर 2014 : सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई हुई। बीसीसीआई को लगाई फटकार।
सचिन ने साधी चुप्पी
सचिन तेंदुलकर ने फिक्सिंग मामले की जांच करने वाली मुद्गल समिति की रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि इस बारे में कुछ भी कहना अनुचित होगा, क्योंकि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है।

नृत्य साम्राज्ञी सितारा देवी ने छोड़ दी दुनिया

मुंबई। तीन घंटे की एकल प्रस्तुति से कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर को प्रभावित करने वाली प्रख्यात कथक नृत्यांगना सितारा देवी का लम्बी बीमारी के बाद मुंबई के जसलोक अस्पताल में निधन हो गया। वह अपने पीछे शोक संतृप्त साथी कलाकारों और प्रशंसकों की एक आकाश गंगा छोड़ गई हैं। उनके परिजनों ने बताया, वह 94 वर्ष की थीं, और लम्बी बीमारी से जूझने के बाद उनका 25 नवम्बर 2014 को निधन हो गया।
कलाकारों और अभिनेताओं के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांस्कृतिक प्रतीक सितारा देवी को श्रद्धांजलि अर्पित की और कथक में उनके सराहनीय योगदान को भी याद किया। सितारा देवी जसलोक अस्पताल में वेंटिलेटर पर थीं। उनकी हालत ज्यादा बिगड़ गई थी। इससे पहले वह कम्बाला हिल हॉस्पिटल एण्ड हर्ट इंस्टीट्यूट में भर्ती थीं। नृत्यांगना सितारा देवी के दामाद राजेश मिश्र ने बताया, ‘वह अपने पीछे एक बेटा और बेटी छोड़ गई हैं। उनका एक बेटा एक शो के लिए विदेश गया है, उसके वहां से आने के बाद उनका अंतिम संस्कार होगा।’ संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्मश्री और कालिदास सम्मान जैसे पुरस्कारों से सम्मानित सितारा देवी का जन्म 1920 में कोलकाता के कथक नर्तक पंडित सुखदेव महाराज के परिवार में धनलक्ष्मी के रूप में हुआ था।
सितारा 11 वर्ष की थीं, तभी उनका परिवार मुंबई आकर बस गया था। यहां उन्होंने अपने तीन घंटे के एकल गायन से नोबेल पुरस्कार विजेता टैगोर को प्रभावित किया था। अगले छह दशकों में वह कथक नृत्य शैली की दिग्गज नृत्यांगना बन गर्इं। बॉलीवुड में कथक शैली को लाने का श्रेय सितारा देवी को ही दिया जाता है। प्रसिद्ध कथक नर्तक पंडित बिरजू महाराज ने कहा, ‘अपने भाई-बहनों और समकालीनों के बीच अपने नाम के जैसे ही वह एक सितारे की तरह चमकती थीं।’
सितारा देवी ने कथक अपने पिता अच्छन महाराज और अपने चाचा लच्छू और शंभू महाराज से सीखा था। 1932 के करीब उन्होंने एक फिल्म निर्माता और नृत्य निर्देशक निरंजना शर्मा ने उन्हें काम पर रखा। उन्होंने ‘ऊषा हरण’ (1940), ‘नगीना’ (1951), ‘रोटी’ और ‘वतन’ (1954), ‘अंजली’ (1957) और महाकाव्य ‘मदर इंडिया’ (1957) में उन्होंने नृत्य दृश्य किए। मदर इंडिया में उन्होंने एक होली  के गाने पर लड़के के परिधान पहनकर नृत्य किया था। हिंदी फिल्म दुनिया से दिग्गज लता मंगेशकर, अमिताभ बच्चन, मनोज कुमार, सरोज खान समेत कई अन्य लोगों ने नृत्यांगना सितारा देवी के योगदान को याद किया। सितारा देवी ने बीच में ही अपनी स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी और ढेरों विषम परिस्थितियों के बाद भी उन्होंने अपने द्वारा चुनी गई विधा में उत्कृष्टता हासिल की। और कथक को लड़कियों के नाचने के प्रक्षेत्र से उसे वैश्विक परिदृश्य में लाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। 16 साल की आयु में भारत के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता टैगोर के सामने सितारा के प्रदर्शन ने उन्हें स्तब्ध कर दिया था, जिसके बाद उन्होंने सितारा देवी को ‘नृत्य साम्राज्ञी’ की उपाधि से नवाजा था। सितारा देवी वाराणसी के एक साधारण लेकिन बहुत ही प्रतिभावान ब्राह्मण परिवार की थीं। उनका परिवार पहले कोलकाता में रहता था, बाद में मुंबई जाकर बस गया।  सितारा देवी को पद्मश्री समेत कई सम्मान मिले। लेकिन उन्होंने पद्मभूषण स्वीकार करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया था कि कथक में उन्होंने अपार योगदान दिया है, इसीलिए उन्हें भारतरत्न मिलना चाहिए। ऐसा हालांकि हो नहीं पाया और कथक नाट्य शैली का एक सितारा मंगलवार की सुबह धुंधला गया। 

हॉकी इंडिया को वॉल्श की जरूरत नहीं : बत्रा

नई दिल्ली। हॉकी इंडिया (एचआई) के अध्यक्ष नरेन्द्र बत्रा ने साफ कर दिया कि उनके संगठन को भारतीय सीनियर टीम के पूर्व कोच टेरी वॉल्श के सेवाओं की जरूरत नहीं है। बत्रा ने कहा कि वह भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) की संतुति पर नया कोच खोजना चाहेंगे।
साई निदेशक जिजि थॉमसन को लिखे एक पत्र में बत्रा ने साफ किया कि उन्हें हॉकी यूएसए से एक कांफिडेशियल मेल प्राप्त हुआ है, जिसमें कहा गया है कि वॉल्श तथा उसके बीच की वित्तीय अनियमितता का मामला अभी सुलझा नहीं है। बत्रा ने लिखा है, ‘हॉकी इंडिया को अब वॉल्श की सेवाओं की जरूरत नहीं है। हम साई की संतुति के बाद नया कोच खोजना चाहेंगे।’ उल्लेखनीय है कि थॉमसन ने कहा था कि हॉकी इंडिया अगर सहमति जताता है तो वॉल्श को दोबारा भारतीय सीनियर पुरुष टीम के कोच पद पर नियुक्त किया जा सकता है। थॉमसन ने कहा था, ‘हमने सभी साझेदारों के साथ वॉल्श के विभिन्न प्रस्तावों पर चर्चा की है। एचआई ने वॉल्श के खिलाफ वित्तीय संबंधी कुछ विरोध जताए हैं। हमें इसके बारे में और विस्तृत जानकारी प्राप्त करनी है। इस मुद्दे पर वॉल्श द्वारा सफाई दिए बगैर एचआई उन्हें स्वीकार नहीं करेगा और हम भी चाहते हैं कि इस मुद्दे का हल निकाला जाए।’
‘कोच ने इस पर जवाब देने के लिए दो दिनों का समय मांगा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि वह एक कमाल के कोच है लेकिन मुद्दा हमारे और वाल्श के बीच का नहीं है। एचआई अगर उनसे खुश नहीं हो तो हमारे लिए उनकी नियुक्ति करना मुमकिन नहीं। अगर एचआई कहता है कि वह कोच से खुश है तो हम भी उनकी नियुक्ति के लिए तैयार हैं। अब गेंद एचआई के पाले में है और उसे ही इस बारे में निर्णय लेना है।’ बत्रा ने एक हफ्ते पहले आरोप लगाया था कि आस्ट्रेलियाई निवासी वॉल्श अमेरिकी हॉकी संघ के साथ अपने कार्यकाल के दौरान 1,76,000 डॉलर की वित्तीय अनियमितता में शामिल थे।

सानिया बनीं संयुक्त राष्ट्र सद्भावना दूत

हैदराबाद। लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तीकरण की दिशा में काम करने वाले संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठन ‘संयुक्त राष्ट्र महिला’ ने भारतीय टेनिस स्टार सानिया मिर्जा को दक्षिण एशिया में अपना सद्भावना दूत नियुक्त किया।
भारत की सर्वोच्च महिला टेनिस खिलाड़ी सानिया विश्व टेनिस संघ (डब्ल्यूटीए) की शीर्ष 50 खिलाड़ियों में शामिल होने वाली पहली भारतीय महिला हैं। संयुक्त राष्ट्र महिला की तरफ से सद्भावना दूत बनने वाली सानिया पहली दक्षिण एशियाई महिला हैं। संयुक्त राष्ट्र महिला ने एक वक्तव्य जारी कर कहा, ‘वह बड़ी संख्या में बच्चों की आदर्श बन चुकी हैं, जिसमें लड़कियां भी शामिल हैं। उन्होंने अपनी पेशागत उपलब्धियों के बल पर मिली शोहरत का उपयोग भारत में अधिकांश लोगों की चिंता का सबब हो चुके सामाजिक मुद्दों के प्रति जागरूकता लाने के लिए किया।’ वक्तव्य के अनुसार, ‘सानिया ने कन्या भ्रूण हत्या रोकने और भारत में घट रहे लिंगानुपात पर आवाज उठाई।’ संयुक्त राष्ट्र की सहायक महासचिव एवं संयुक्त राष्ट्र महिला की कार्यकारी उप निदेशक लक्ष्मी पुरी ने कहा, ‘सानिया भारत और पूरे विश्व में लड़कियों की आदर्श बन चुकी हैं। हम सानिया जैसी ऊर्जावान हस्ती को दक्षिण एशिया में अपना सद्भावना दूत नियुक्त करते हुए खुद को सम्मानित महसूस कर रहे हैं।’ सानिया ने सद्भावना दूत चुने जाने पर कहा, ‘दक्षिण एशिया में संयुक्त राष्ट्र महिला सद्भावना दूत के रूप में सेवा प्रदान करना सम्मान की बात है। इससे मुझे और कठिन मेहनत करने की प्रेरणा मिलती है। खेलों में महिला को समान अधिकार मिलना और खेलों का उपयोग कर समाज में महिलाओं के समान अधिकारों के लिए आवाज उठाना बेहद जरूरी है।’ केंद्रीय खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा, ‘सानिया भारत में लड़कियों की आदर्श बन चुकी हैं और उनका संयुक्त राष्ट्र महिला सद्भावना दूत चुना जाना देश के गर्व की बात है।’

बड़ा सवाल, सपने सच होते हैं या झूठे

जयपुर। यह सवाल बड़ी बहस की वजह रहा है कि सपने सच होते हैं या झूठ? वैज्ञानिक इसके कुछ खास कारण गिनाते हैं तो धर्मग्रंथ और लोगों के अनुभव इस गुत्थी को अपने नजरिए से सुलझाते हैं।
वैज्ञानिक अध्ययन और परंपरागत चिंतन के बीच दुनिया में कई बार ऐसी घटनाएं होती हैं, जिनकी एक झलक देखने का दावा लोगों ने सपनों के जरिए किया था। सपने में बनाया विमान हकीकत में उड़ाया। एक ऐसे व्यक्ति के बारे में जानना दिलचस्प होगा जिसने बचपन में कभी हवाई जहाज की सवारी नहीं की थी, लेकिन वह अक्सर रात को आने वाले सपनों में हवाई जहाज उड़ाता था। उसका नाम जेडब्ल्यू डन था। इसी सिलसिले में कई साल बीत गए।
अब डन बड़ा हो चुका था। युवावस्था में सरकार की ओर से उसे हवाई जहाजों के मॉडल तैयार करने की जिम्मेदारी मिली और एक दिन आसमान में उड़ने का उसका सपना सच साबित हुआ। डन का सपना यहीं खत्म नहीं हो जाता। 1914 में जब दुनिया पर पहले महायुद्ध के बादल मंडराने लगे थे, तब डन के मॉडल से तैयार किए गए जंगी विमानों का ब्रिटिश सेना ने भरपूर इस्तेमाल किया लेकिन डन को सपनों में दिखने वाली घटनाएं बदस्तूर जारी रहीं।
युद्ध से पहले एक रात उसे सपना आया कि उसका बनाया एक हवाई जहाज नष्ट हो गया है। वह उसे देखने के लिए दौड़ता है। कबाड़ हो चुके उस जहाज से एक युवक बाहर निकलता है। वह बहुत उदास दिखाई देता है। डन उसे पहचानने की कोशिश करता है लेकिन उसे युवक की शक्ल ठीक से याद नहीं रहती। तभी उसकी नींद खुल जाती है। अगले दिन उसने ब्रिटिश सेना के अधिकारियों से सपने की चर्चा की। अधिकारियों ने सपने को बुरा ख्याल समझकर भूल जाने का सुझाव दिया। इसी दौरान एक संदेशवाहक आया और उसने यह दुखद खबर दी कि सेना का एक हवाई जहाज हादसे का शिकार हो गया। जब डन और उसके अधिकारियों ने लाश की शक्ल देखी तो यह वैसा ही युवक था जिसका जिक्र डन ने किया था।
मौत की झलक ने बचाई जिंदगी
ब्रिटिश शासन के दौरान भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल रहे लॉर्ड डफरिन ने एक रात विचित्र सपना देखा। उन्होंने इस सपने का जिक्र अपने परिजनों और करीबी लोगों से भी किया था। सपने के मुताबिक डफरिन की मौत हो जाती है। उनका ताबूत एक गाड़ी में रखा जाता है और लोग उन्हें कब्रिस्तान ले जा रहे हैं। रास्ते में कुछ लोग उनकी शांति के लिए पवित्र प्रार्थनाएं भी कर रहे हैं। डफरिन गाड़ी के पीछे चल रहे लोगों की शक्ल देखने की कोशिश करते हैं लेकिन वे इसमें कामयाब नहीं हो पाते। वे गाड़ी के ड्राइवर की ओर देखते हैं। वे उसे देख लेते हैं और उसकी शक्ल उन्हें याद रह जाती है। कुछ दिनों बाद डफरिन एक होटल में गए। वे लिफ्ट का इस्तेमाल करना चाहते थे लेकिन तभी उनकी नजर वहां बैठे होटल के एक कर्मचारी पर पड़ी। वह बिल्कुल वैसा ही दिखाई दे रहा था जैसा उनके सपने में दिखा ड्राइवर। डफरिन ने लिफ्ट के इस्तेमाल का इरादा बदल दिया।
वहां कतार में खड़े लोग लिफ्ट में सवार हो गए और वह ऊपर की मंजिल की ओर चल पड़ी। तभी एक तेज धमाका हुआ। लिफ्ट में एक तकनीकी खराबी आ गई थी और उसमें सवार सभी लोग नीचे आ गिरे। उन सबकी मौत हो गई थी। बहरहाल सपने में मिली मौत की वजह से डफरिन अपनी जिंदगी बचाने में कामयाब रहे।
चिट्ठी में लिखा कब्र का हाल
यह घटना 1937 की है। जर्मनी की जेना यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे- फ्रांज मेयर। उनका एक विद्यार्थी बहुत बीमार था। मर्ज पूरे शरीर में फैल चुका था और बचने की कोई उम्मीद नहीं थी। वे उस विद्यार्थी के पास गए।  विद्यार्थी ने उनसे कहा, मेरा बचना अब मुमकिन नहीं लग रहा। मैं आपको एक चाबी देता हूं। यह उस संदूक की है जो मेरे बिस्तर के नीचे रखा है। मेरी एक शर्त है कि आप इस संदूक को तब तक नहीं खोलेंगे जब तक कि मैं जिंदा हूं। अगले दिन विद्यार्थी की मौत हो गई। उसे दफनाने के बाद प्रोफेसर ने वहां मौजूद लोगों के सामने संदूक खोला। संदूक में एक चिट्ठी थी। उसे पढ़कर सब चकित रह गए। उस विद्यार्थी ने मौत से पहले ही मरने की तारीख और दफनाने की जगह के बारे में लिखा था। दोनों बातें सही पाई गई। उसने कब्र का आंखों देखा हाल लिखा था जो बिल्कुल हक ीकत जैसा था।
सपना बना अखबार की खबर
मशहूर उपन्यासकार जेवी प्रीस्टले की पत्नी ने भी ऐसे ही एक सपने का जिक्र किया था। एक रात उन्हें सपना आया कि सड़क दुर्घटना में उनकी मौत हो गई है। ऐसा भयानक सपना देखने के बाद वे काफी घबरा गई थीं। उन्हें रातभर नींद नहीं आई। उन्होंने सुबह का इंतजार करना बेहतर समझा। सवेरे उनका हॉकर अखबार डाल गया। मिसेज प्रीस्टल ने पहले पन्ने से खबरें पढ़नी शुरू कीं। अचानक उनकी नजर एक खबर पर गई। इसमें एक महिला की सड़क दुर्घटना में मौत के बारे में बताया गया था। उस महिला के नाम के साथ उनकी अद्भुत समानता थी। महिला का शादी से पहले वही नाम था जो मिसेज प्रीस्टले का था।
दुनिया में ऐसे लोगों की बड़ी तादाद है जो सपनों की दुनिया को सिरे से खारिज करते हैं, वहीं उन लोगों की फेहरिश्त भी काफी लम्बी है जिन्हें भविष्य की एक झलक का आभास इसी दुनिया से हुआ था। बहरहाल, लोग इसे सच या झूठ से जोड़कर अपना नजरिया बयान करते रहेंगे, लेकिन सपनों का अस्तित्व फिर भी बना रहेगा। 

Tuesday 25 November 2014

क्रिकेट का नायक बना खलनायक

श्रीनिवासन का आसन बचाने की बेहूदा दलीलें
आगरा। क्रिकेट भद्रजनों का खेल था पर अब नहीं है। यह इस खेल के मुरीद नहीं बल्कि आईपीएल-6 में हुई स्पॉट फिक्सिंग की रिपोर्ट चीख-चीख कर बता रही है। यह खेल अब न ही धर्म है और न ही इसे खेलने वाले भगवान। सोमवार को जस्टिस मुकुल मुद्गल समिति की रिपोर्ट पर गौर करने की बजाए जिस तरह कपिल सिब्बल ने श्रीनिवासन को आसन पर पुन: बिठाने की दलीलें दीं उससे साफ हो गया कि क्रिकेटर ही नहीं इस खेल के खेलनहार भी पदलोलुप और बेईमान हैं।
भारतीय क्रिकेट को दहला देने वाली इस कलंक गाथा की जांच चूंकि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर उसी की निगरानी में हो रही है, शायद इसीलिए यह शर्मनाक सच लोगों के सामने भी आ पा रहा है, वरना हमारे यहां वही कातिल, वहीं मुंसिफ वाली व्यवस्था की विडम्बना किसी से छिपी नहीं है। क्रिकेट की यह कालिख उसी ताबड़तोड़ आईपीएल की देन है, जिसे क्रिकेट को नया जीवनदाता बताया जाता है। यह सच है कि इस ताबड़तोड़ क्रिकेट से दौलत की बेइंतहा बारिश हुई लेकिन उससे क्रिकेट का कितना भला हुआ, उसे स्पॉट फिक्सिंग के खुलासे ने और भी शर्मनाक मोड़ दे दिया है।
क्रिकेट फिक्सिंग की इस फांस में चार खेल मठाधीश ही नहीं नौ खिलाड़ी भी फंसे हुए हैं। मठाधीशों के नाम तो अदालत ने सार्वजनिक कर दिये हैं, लेकिन बेईमान खिलाड़ियों के नाम उजागर न करने की कुछ खास वजह है। सर्वोच्च न्यायालय में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन, उनके दामाद गुरुनाथ मयप्पन, राजस्थान रॉयल्स के सह-मालिक राज कुन्द्रा और आईपीएल के मुख्य कार्यकारी सुन्दर रमन के नामों के खुलासे से साफ जाहिर है कि अब तक बागड़ ही बाड़ चट कर रहे थे। क्रिकेट की कलंक गाथा पर सोमवार को हुई सुनवाई में बचाव पक्ष की यह दलील कि श्रीनिवासन चूंकि निर्दोष हैं लिहाजा उन्हें अध्यक्ष पद पर बहाल किया जाए, अदालत को नागवार गुजरा। दलील देते समय कपिल सिब्बल शायद यह भूल गये कि जिस समय की यह कलंक गाथा है, उस समय श्रीनिवासन ही भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष थे।  इतना ही नहीं उनके दामाद गुरुनाथ मयप्पन आईपीएल में चमत्कारिक प्रदर्शन करने वाली चेन्नई सुपर किंग्स के कर्ताधर्ता थे, जबकि फिल्म अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के पति राज कुन्द्रा उस राजस्थान रॉयल्स के सह मालिक हैं, जिसके तीन खिलाड़ी स्पॉट फिक्सिंग में जेल की हवा खा चुके हैं। चौथे व्यक्तिसुन्दर रमन हैं, जोकि श्रीनिवासन के न केवल नजदीकी हैं बल्कि उन पर क्रिकेट को पाक-साफ रखने की जवाबदेही थी।
स्पॉट फिक्सिंग के खुलासे के बाद भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने को मजबूर हुए श्रीनिवासन फिलवक्त अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद के अध्यक्ष हैं। वे जिस तरह फिर से बीसीसीआई का अध्यक्ष बनने पर आमादा हैं, उससे क्रिकेट प्रबंधन के नाम पर हमारे यहां पनपे निहित स्वार्थ-तंत्र का ही पता चलता है। यह तंत्र कितना आत्मकेन्द्रित है, इसका अनुमान बचाव पक्ष की दलीलों से सहज ही लगाया जा सकता है। क्रिकेट से यदि किसी का निहित स्वार्थ नहीं है तो फिर श्रीनिवासन अपने आसन के लिए इतना लालायित क्यों हैं? जाहिर है, क्रिकेट में ऐसा निहित स्वार्थ और आत्मकेन्द्रित तंत्र एक दिन में पल्लवित और पोषित नहीं हुआ। खैर क्रिकेट की काली करतूत उजागर होने के बाद देश का हर खेलप्रेमी यह चाहता है कि सर्वोच्च न्यायालय क्रिकेट मठाधीशों ही नहीं उन क्रिकेट कपूतों के नाम भी सार्वजनिक करे जिन्होंने भद्रजनों के खेल को कलंकित किया है। खलनायकों को बेनकाब किये बिना इस खेल की छवि और साख कभी बहाल नहीं हो पायेगी।

Monday 24 November 2014

परवेज रसूल की निगाह विश्व कप टीम में चयन पर

जम्मू एवं कश्मीर क्रिकेट टीम के कप्तान परवेज रसूल का लक्ष्य अगले वर्ष होने वाले विश्व कप के लिए भारतीय टीम में जगह बनाना है।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की आधिकारिक वेबसाइट पर रसूल के हवाले से कहा गया, ‘अब मेरा अगला लक्ष्य विश्व कप टीम में जगह बनाना है। आने वाले दिनों में मुझे कई दिनों तक चलने वाले टेस्ट मैचों में हिस्सा लेना है और मेरा लक्ष्य उनमें अच्छा प्रदर्शन करने पर है। मुझे एक टीम के तौर पर और साथ ही निजी तौर पर भी अच्छा प्रदर्शन करना है। मेरा लक्ष्य भारतीय राष्ट्रीय टीम में फिर से वापसी करना है।’ बीसीसीआई ने 21 नवम्बर को रसूल को रणजी ट्रॉफी में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले हरफनमौला खिलाड़ी के लिए लाला अमरनाथ पुरस्कार से नवाजा।
रसूल ने कहा कि यह सम्मान पाने के बाद उनकी जिम्मेदारी और बढ़ गई है। रसूल ने रणजी ट्रॉफी 2013-14 सत्र में 663 रन बनाए और 27 विकेट हासिल किए। रसूल ने कहा, ‘लाला अमरनाथ पुरस्कार का मिलना किसी भी क्रिकेट खिलाड़ी के लिए बड़े सम्मान की बात है। इस पुरस्कार ने मेरी जिम्मेदारियां बढ़ा दी हैं। इससे मेरा हौसला बढ़ा है और हमें पहचान मिलने लगी है, जिससे हमें भारत-ए, भारतीय राष्ट्रीय टीम और इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में मौका मिल सकता है।’ रसूल ने भारत के लिए 15 जून को ढाका में बांग्लादेश के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय एकदिवसीय में पदार्पण किया और पर्दापण मैच में दो विकेट चटकाए। हालांकि रसूल उसके बाद फिर राष्ट्रीय टीम में वापसी नहीं कर सके हैं।

...जब राजू ने की ह्यूज की मूंछ छूने की हिम्मत

आस्ट्रेलिया के पूर्व तेज गेंदबाज मर्व ह्यूज को उनके  खेले के अलावा शानदार कदकाठी और भारी-भरकम मूंछ के लिए जाना जाता है। ह्यूज मैदान के अंदर जितने गम्भीर खिलाड़ी थे, उतने ही गम्भीर वह मैदान के बाहर भी थे। वह अपनी मूंछ को अपना गुरूर मानते थे और कभी नहीं चाहते थे कि कोई उनकी मूंछों को हाथ लगाए।
सचिन तेंदुलकर ने अपनी जीवनी-प्लेइंग इट माई वे- में इस बात का खुलासा किया है कि 1992 के आस्ट्रेलिया दौरे में जब दोनों टीमें सिडनी से पर्थ जा रही थीं, तब विमान में भारतीय टीम के स्पिन गेंदबाज वेंकटपति राजू ने ह्यूज की मूंछ को छूने की हिम्मत की थी। सचिन लिखते हैं, ‘राजू और ह्यूज अच्छे दोस्त थे। सिडनी से पर्थ की उड़ान चार घंटे की है। हमने राजू को ह्यूज की मूंछ छूने के लिए उकसाया। हमें उम्मीद नहीं थी कि वह ऐसा करेंगे क्योंकि ह्यूज को अपनी मूंछ से काफी लगाव था और वह कभी नहीं चाहते थे कि कोई उनकी मूंछों को हाथ लगाए।’
सचिन ने अपनी पुस्तक के पृष्ठ संख्या-68 पर लिखा है, ‘कदकाठी में राजू ह्यूज के आगे कहीं नहीं टिकते थे। साथ ही ह्यूज को उनके गुस्सैल व्यवहार के लिए भी जाना जाता है। हमने सोचा कि राजू अगर ह्यूज की मूंछ को छूने की हिम्मत करेंगे तो ह्यूज उनका बुरा हाल कर देंगे। हमें यह देखकर हैरानी हुई कि राजू आगे बढ़े और ह्यूज की मूंछ को हाथ से खींच दिया। ह्यूज ने इसे मजाक के तौर पर लिया और हंस पड़े। राजू की इस हरकत ने उन्हें अचानक ही हीरो बना दिया क्योंकि उन्होंने जो किया था, वह कोई और करने की हिम्मत नहीं कर सकता था।’

आस्था से अर्थ बनाने वाले लोग

कबीर दास उच्च स्तर के फक्कड़ संत थे। वह धन-वैभव के मोह से बहुत ऊपर उठ चुके थे। फक्कड़ता ही उनकी पूंजी थी। यही उनकी विशेषता और पहचान थी। वह भौतिकता के पीछे नहीं भागे। उनकी ऐसी कोई चाहत नहीं थी। इसलिए भयमुक्त थे। जो अच्छा लगा, वह कह दिया। वह न हिंदुओं से डरे, न मुसलमानों से। इस संत का पराक्रम देखिए, किसी कट्टरपंथी ने उनका विरोध नहीं किया। वह कट्टरता की आलोचना कर रहे थे, फिर भी सम्मानित बने रहे।
‘चाह गई चिंता मिटी
मनवा बेपरवाह।
जिसको कुछ न चाहिए
वही शाहंशाह।’
कबीर की यही कसौटी थी। उन्हें अपने लिए कुछ नहीं चाहिए था। इसलिए वह किसी शाह या राजा से बड़े थे। क्या हरियाणा के रामपाल में कबीरदास का एक भी लक्षण देखा जा सकता है? वह अपने को कबीर पंथी कहते हैं, अवतार बताते हैं। लेकिन कबीर से उनकी तुलना किसी अपराध से कम नहीं। कबीर तो कहते हैं-‘ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया।’
इस पर अविश्वास का कोई कारण नहीं कि रामपाल की चदरिया कैसी है। इसमें आरोपों के गहरे दाग हैं। आश्रम के नाम पर अधिक से अधिक जमीन पर कब्जा जमाने की आकांक्षा है। इस लालसा की कोई सीमा नहीं। आधुनिक आश्रम बनवाने की बड़ी चाहत है। हथियारों का जखीरा है। कमांडो की टुकड़ी है। वह देश की संवैधानिक व्यवस्था को चुनौती देने का अपने को अधिकारी मानते हैं। क्या इस तरह देश की व्यवस्था चल सकती है। उन्होंने जहां-जहां आश्रम स्थापित किया, वहीं-वहीं विवाद हुआ। विवाद भी सामान्य नहीं। कई लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। उनके साथ अभियुक्त बने एक व्यक्ति ने अदालत के समन का सम्मान किया। वह पेश हुए। जमानत मिल गई। क्या रामपाल खुद ऐसा उदाहरण पेश नहीं कर सकते थे?
लाखों लोगों को परेशानी उठानी पड़ी। कुछ ही समय पहले वहां नई सरकार बनी है। उसे इस मामले में पूरी ऊर्जा लगाने को बाध्य होना पड़ा। यह स्थिति रामपाल के कारण उत्पन्न हुई। रामपाल पर 2006 में अभियोग लगा था। तब रोहतक के करौंधा गांव में वह भव्य और विशाल आश्रम का निर्माण करा रहे थे। करौंधा के ग्रामीण इसका विरोध कर रहे थे। आरोप है कि विरोध कर रही भीड़ पर आश्रम से गोली चलाई गई, जिसमें एक युवक की मौत हो गई। रामलाल सहित उनके संैतीस सहयोगियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ, हिंसक विवाद यहीं समाप्त नहीं हुआ। वर्षों तक विवाद चला। 2013 में फिर गोलीबारी की गयी। इसमें तीन ग्रामीण मारे गए। अंतत: रामपाल को यहां का आश्रम खाली करना पड़ा। इसके बाद उन्होंने बरवाला में आश्रम बनाया। यहां भी लगातार विवाद चलता रहा। न्यायपालिका ने अपने दायित्व का पूरी संवैधानिक मर्यादा से निर्वाह किया। हत्या के मामले में पहले जिला न्यायालय में मुकदमा दर्ज हुआ था। लेकिन वहां रामपाल के समर्थकों ने धाबा बोल दिया। इसके बाद मुकदमा उच्च न्यायालय ने अपने अधिकार में लिया था। यहां भी उच्च न्यायालय ने रामपाल के बीमार होने के तर्क पर संवेदना के साथ विचार किया। उन्हें प्रारंभ में निजी पेशी से छूट दी गई। इसकी मियाद भी पूरी हो गई थी।
उच्च न्यायालय ने उन्हें पेश होने को कहा। एक बार फिर उनके समर्थक उच्च न्यायालय में हंगामा करने पहुंच गए। उन्होंने वकीलों से हाथापाई की। जजों के खिलाफ नारेबाजी की। दो दिन की भारी मशक्कत के बाद हरियाणा में सतलोक आश्रम के मुखिया रामपाल गिरफ्तार हुए। पहला दिन हरियाणा सरकार के लिए अधिक मुसीबत का था। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर पर आरोप लगे। कहा गया कि उनकी सरकार रामपाल को बचा रही है। आलोचकों का तर्क था कि पुलिस को उनके आश्रम में घुसकर गिरफ्तारी को अंजाम देना चाहिए था। इसी दिन पुलिस ने कई पत्रकारों को बेरहमी से पीटा। आश्रम के भीतर से किए गए हमले से अनेक पुलिस कर्मी घायल हुए। यह सब निंदनीय और दुर्भाग्यपूर्ण था। इसका आरोप भी सरकार पर लगा। लेकिन यह नहीं माना जा सकता कि पत्रकारों पर हमले का आदेश मुख्यमंत्री की ओर से आया था।
अफरा-तफरी के माहौल में वहां मौजूद पुलिस अधिकारियों ने ऐसा निर्णय किया होगा। फिर भी इन सबको लेकर सरकार की तीखी आलोचना की गई। इसे ऐसा रूप दिया गया जैसे पूरी समस्या मनोहर लाल खट्टर के शपथ लेने के बाद शुरू हुई, जिसका वह समाधान नहीं कर सके। दूसरे दिन की स्थिति अलग थी। लगा कि सरकार ने बड़ी समझदारी से रणनीति बनाई थी। नुकसान को यथासंभव न्यूनतम रखने का प्रयास किया गया। दूसरे दिन आश्रम से भीड़ को निकालने पर सर्वाधिक जोर दिया गया। हजारों की संख्या में लोगों को बाहर निकाला गया। यदि पहले दिन सुरक्षा बाल आश्रम पर धावा बोल देते, तो भीड़ के कारण धन-जन का बड़ा नुकसान हो सकता था। लोगों का जीवन बचाने पर सर्वाधिक ध्यान रखा गया। इसमें सफलता भी प्राप्त हुई। आश्रम के भीतर जिन चार लोगों की मौत हुई, उसका कारण पुलिस की कार्रवाई नहीं थी। आश्रम के भीतर से भीड़ निकलने के साथ ही उनकी कलई भी खुलने लगी थी। लोग बता रहे थे कि उन्हें जबरदस्ती रोका गया था। रामपाल उन्हें पुलिस बल से बचाव के लिए ढाल बनाए हुए थे। इनमें से कई बीमार बच्चों व महिलाओं को इलाज तक नहीं मिल रहा था। क्या रामपाल को खुद सामने आकर लोगों को मुसीबत से बचाना नहीं चाहिए था? उनकी जिद में कितने लोग घायल हुए। पूरे अभियान में आर्थिक नुकसान भी हुआ। अनुयायियों को जोखिम में डालकर वह अपने को बचाने का प्रयास कर रहे थे। क्या यह संत का लक्षण है?
बताया जा रहा है कि रामपाल इतने बीमार नहीं थे, जो न्यायालय तक जा न सके। फिर बार-बार वह गलतबयानी का सहारा क्यों ले रहे थे। क्या किसी संत को ऐसा आचरण करना चाहिए? वह अपने को निर्दोष मानते हैं तो न्यायालय में पेश होने से बचना क्यों चाहते थे। उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज है। पेशी से बचकर वह आरोपमुक्त नहीं हो सकते। इसके लिए तो न्यायिक प्रक्रिया का पालन करना पड़ेगा। भीड़ के बल पर कोई न्यायिक प्रक्रिया से बच नहीं सकता।
(लेखक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री चर्चित स्तंभकार हैं)

दिल्ली हाफ मैराथन में एडोला, किप्लागेट विजयी


नई दिल्ली। राजधानी दिल्ली में 23 नवम्बर को आयोजित एयरटेल दिल्ली हाफ मैराथन में कोर्स रिकॉर्ड को तोड़ते हुए इथियोपिया के गाइ एडोला ने पुरुष वर्ग में जीत हासिल की जबकि केन्या की फ्लोरेंस किप्लागेट महिला वर्ग में अपना खिताब बचाने में कामयाब रहीं।
एडोला ने हमवतन एत्सेडु सेगे का 59.12 मिनट का रिकॉर्ड छह सेकेंड के अंतर से तोड़ा। इस तरह एडोला ने इनाम स्वरूप 27,000 डॉलर हाफ मैराथन में जीत के लिए जबकि 7,500 डॉलर कोर्स रिकॉर्ड के लिए हासिल किए। मौजूदा चैम्पियन केन्या के ज्योफ्रेकैमवोरर 59.07 मिनट में रेस पूरी कर दूसरे स्थान पर रहे। इथोपिया के ही मोसीनेट गेरेम्यु ने 59.11 मिनट का समय निकालते हुए तीसरा स्थान हासिल किया।
विश्व चैम्पियन-2014 का कांस्य जीतने वाले एडोला ने करियर का चौथा अंतर्राष्ट्रीय हाफ मैराथन जीतने के बाद कहा, मेरी रेस शुरू से ही अच्छी रही। सुबह की ठंड के कारण यहां हालांकि थोड़ी कठिन भी रही। मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के इरादे से उतरा था लेकिन अब खुशी है मैंने नए कोर्स रिकॉर्ड के साथ जीत हासिल की।’ केन्या के साइब्रियन कोटुट 59.12 मिनट के साथ चौथे स्थान पर रहे। इस साल के सबसे तेज हाफ मैराथन धावक अब्राहम केरोबेन (58.48) को 59.21 मिनट के साथ आठवें स्थान से संतोष करना पड़ा। इधर, महिला स्पर्धा में फ्लोरेंस ने एक घंटा 10.04 मिनट में दूरी पूरी की। वहीं विश्व चैम्पियन ग्लैडेज चेरोनो ने एक घंटा 10.05 मिनट में दूरी पूरी कर दूसरा स्थान हासिल किया। पूर्व चैम्पियन केन्या की लुसी काबू ने एक घण्टे और 10.10 मिनट के साथ छठा स्थान हासिल किया। इथोपिया की बेलाएनेस ओलिजिरा और केन्या की सिंथिया लिमो क्रमश: चौथे और पांचवें स्थान पर रही।
भारतीय धावकों में सुरेश, प्रीजा जीते
राष्ट्रीय राजधानी में आयोजित एयरटेल दिल्ली हाफ मैराथन में भारतीय धावकों के पुरुष एवं महिला वर्ग में क्रमश: सुरेश कुमार और प्रीजा श्रीधरण ने जीत हासिल की। सुरेश ने 21 किलोमीटर की दौड़ एक घंटे और 4.38 मिनट में पूरी की जबकि दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे नितेंद्र सिंह रावत और खेताराम ने सुरेश से क्रमश: 16 और 18 सेकेंड बाद लक्षित दूरी पूरी की। सुरेश ने 17वें किलोमीटर में बढ़त बनाई और फिर फासले को और बढ़ाते हुए जीत सुनिश्चित की। सुरेश ने 2.5 लाख रुपये इनाम स्वरूप जीतने के बाद कहा, ‘यह काफी कड़ा मुकाबला रहा। मैं खेताराम और नितेंद्र 16 किलोमीटर तक साथ-साथ थे। इसके बाद मैंने दूरी हासिल करते हुए 20 मीटर की बढ़त बनाई। बाद में इस दूरी को मैं और बढ़ाने में कामयाब रहा। करीब 19 किलोमीटर के आसपास जब मेरी जीत सुनिश्चित हो गई तो फिर मैं धीमा हो गया।’ इधर, महिला वर्ग में प्रीजा ने एक घंटे 19.03 मिनट में रेस पूरी कर प्रथम स्थान हासिल किया। मोनिका अठारे और सुधा सिंह क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर रहीं। प्रीजा ने भी इनाम स्वरूप 2.5 लाख रुपये जीते। मोनिका ने एक घंटे और 19.12 मिनट जबकि लंदन ओलंपिक में हिस्सा ले चुकीं सुधा ने एक घंटे और 19.21 मिनट में दूरी पूरी की। कविता राउत को एक घंटे 19.56 मिनट के साथ चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा।
दिल्ली हाफ मैराथन में नामी हस्तियों ने बढ़ाया जोश
एयरटेल दिल्ली हाफ मैराथन में खेल और मनोरंजन जगत की नामचीन हस्तियों के साथ ही 31,000 से अधिक लोग दौड़े। मैराथन में मशहूर उद्योगपति अनिल अंबानी, बॉलीवुड अभिनेता राहुल बोस एवं अभिनेत्री गुल पनाग, भारतीय क्रिकेटर गौतम गंभीर, शूटर-नेता राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़ और बॉलीवुड की बिंदास बाला बिपाशा बसु भी दौड़ीं। बिपाशा ने कहा, ‘महिला प्रतिभागियों की संख्या में 25 फीसद बढ़ोत्तरी हुई है। यहां तक कि हाफ मैराथन के लिए भी 12,000 से अधिक लोगों ने पंजीकरण कराया है।’ अभिनेता राहुल बोस और अभिनेता गुल पनाग ऐसे आयोजनों के सक्रिय भागीदार रहे हैं। राहुल ने ट्विटर पर बताया कि उन्होंने दौड़ दो घंटे तीन मिनट में पूरी की। उन्होंने बाद में मैराथन की विश्व रिकॉर्ड धारक पुआला रैडक्लिफ के साथ खिंचवाई एक तस्वीर भी साइट पर डाली। वहीं, गुल ने अपनी ट्वीट में लिखा, ‘आज की दौड़ बढ़िया रही। मैदान पर असाधारण जोश रहा। बहुत से दृढ़ धावक अपने सपने पूरे कर रहे हैं। हममें से हर कोई विजेता है। हम दौड़े हैं दिल्ली।’ इस मौके पर अन्य गणमान्य लोगों में केंद्रीय खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल, कार्यक्रम एंबेसडर और महिलाओं की मैराथन की विश्व रिकॉर्ड धारक पाउला रेडक्लिफ और टॉलीवुड स्टार जीत मौजूद रहे। खेल सचिव अजीत एम.शरण भी उपस्थित रहे।

Sunday 23 November 2014

आसान नहीं कंगारुओं का शिकार


भारतीय क्रिकेट टीम ने आजादी के बाद जिस देश का पहला दौरा किया था वह आॅस्ट्रेलिया था, लेकिन वेस्टइंडीज और इंग्लैंड सरीखी टीमों को उनकी सरजमीं पर हराने वाले भारत का 67 साल बाद भी कंगारुआें के देश में टेस्ट शृंखला जीतने का सपना पूरा नहीं हो पाया है।
भारतीय टीम अब टेस्ट शृंखला के लिये 11वें दौरे पर आॅस्ट्रेलिया गयी है और इस बार भी टीम के सामने आखिरी किला फतह करके इतिहास रचने की चुनौती है। भारत ने अब तक आॅस्ट्रेलियाई सरजमीं पर दस टेस्ट शृंखलाएं खेली हैं। इनमें से तीन को वह ड्रॉ कराने में सफल रहा, लेकिन बाकी सात में भारतीय टीम को हार मिली।
भारत ने वेस्टइंडीज और इंग्लैंड जैसी मजबूत टीमों से 1971 में शृंखला जीत ली थी, लेकिन आॅस्ट्रेलिया ऐसा स्थान रहा है, जो हमेशा टीम के लिये अबूझ पहेली बना रहा।  आॅस्ट्रेलिया की धरती पर भारत ने अब तक 40 टेस्ट मैच खेले हैं जिनमें से वह केवल पांच मैचों में जीत दर्ज कर पाया है, जबकि 26 टेस्ट मैचों में उसे हार मिली है बाकी ड्रॉ रहे। भारत ने स्वतंत्रता मिलने के बाद नवम्बर 1947 से फरवरी, 1948 तक आॅस्ट्रेलिया का पहला दौरा किया था। लाला अमरनाथ की टीम के सामने सर डॉन ब्रैडमैन की अजेय टीम थी और परिणाम आशानुकूल रहा। भारत सिडनी में खेला गया दूसरा टेस्ट मैच ड्रॉ कराने में सफल रहा लेकिन बाकी चार मैचों में उसे हार का सामना करना पड़ा।
भारत इस देश का अगला दौरा 20 साल बाद कर पाया। मंसूर अली खां पटौदी के नेतृत्व वाली भारतीय टीम को 1967, 68 में चारों टेस्ट मैच में करारी हार झेलनी पड़ी थी। इनमें से एडिलेड में खेले गये पहले टेस्ट मैच में चंदू बोर्डे ने टीम की अगुआई की थी। इसके दस साल बाद 1977-78 में भारत जब तीसरी बाद आॅस्ट्रेलिया दौरे पर गया तब उसने पहली बार वहां टेस्ट मैच जीता। भारत की आस्ट्रेलियाई सरजमीं पर दर्ज की गयी पहली जीत यादगार थी। भारत ने एमसीजी में 222 रन से जीत दर्ज की। इस जीत के नायक लेग स्पिनर भगवत चंद्रशेखर थे जिन्होंने मैच में 12 विकेट लिये। सुनील गावस्कर ने भी दूसरी पारी में शतक जमाया। आॅस्ट्रेलिया के सामने 387 रन का लक्ष्य था लेकिन बाबी सिम्पसन की टीम 164 रन पर ढेर हो गयी थी। सिडनी में भारत ने पारी और दो रन से जीत दर्ज करके आॅस्ट्रेलियाई क्रिकेट को सन्न कर दिया था। आॅस्ट्रेलियाई बल्लेबाज फिर से चंद्रा, बेदी और ईरापल्ली प्रसन्ना की बलखाती गेंदों के जाल में फंस गये थे।
आॅस्ट्रेलिया ने 2011-12 में 4-0 से क्लीन स्वीप करके भारतीयों को करारा झटका दिया था, क्योंकि भारत के लिये यह जीत का सबसे अच्छा अवसर माना जा रहा था। भारतीय बल्लेबाजी बुरी तरह नाकाम रही जिसका आॅस्ट्रेलिया ने पूरा फायदा उठाकर बोर्डर गावस्कर ट्रॉफी अपने पास रखी। भारत ने एक साल बाद हिसाब बराबर करके 4-0 से क्लीन स्वीप किया, लेकिन बोर्डर-गावस्कर ट्रॉफी बरकरार रखना विराट कोहली और महेंद्र सिंह धोनी जैसे खिलाड़ियों के नेतृत्व वाली टीम के लिये अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगी।

Saturday 22 November 2014

कारपोरेट घरानों की भागीदारी से कबड्डी का स्तर उठा है: अनूप

नई दिल्ली। इंचियोन एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय पुरुष कबड्डी टीम के प्रमुख खिलाड़ी अनूप कुमार मानते हैं कि इस खेल का पेशेवर होना इसके स्तर के लिए अच्छा है और कारपोरेट घरानों की भागीदारी ने देश में खेल का स्तर ऊंचा उठाया है।
भारत की अग्रणी वाहन निर्माता कंपनी महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड द्वारा आयोजित सम्मान समारोह के इतर अनूप ने कहा कि अधिक से अधिक कारपोरेट घरानों का इस खेल में घुसने का सीधा मतलब यह है कि इसका स्तर उठेगा और खिलाड़ी पुरस्कार तथा पैसा पाने के लिए अच्छा से अच्छा प्रदर्शन करना चाहेंगे। प्रो-कबड्डी लीग के मोस्ट वैल्यूबल खिलाड़ी चुने गए अनूप को महेंद्रा ने थार स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल पुरस्कार के तौर पर भेंट किया। अनूप ने इस अवसर पर संवाददाताओं से कहा, ‘कबड्डी खिलाड़ी समाज के निचले वर्ग से आते हैं। उन्हें शोहरत के साथ-साथ पैसे की जरूरत होती है और कारपोरेट घराने इस खेल में पैसा झोंक रहे हैं। इससे खिलाड़ियों का हौसला बढ़ा है और यह खेल गांवों में पहले से अधिक लोकप्रिय हो गया है। अर्जुन पुरस्कार विजेता अनूप ने प्रो-कबड्डी लीग के पहले संस्करण में उपविजेता रही टीम यू मुंबा टीम का नेतृत्व किया। वह इसी साल इंचियोन में हुए एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय टीम के भी सदस्य थे। साथ ही 2006 और 2010 के एशियाई खेलों की चैम्पियन भारतीय टीम में भी वह शामिल रहे। हरियाणा पुलिस में इंस्पेक्टर पद पर तैनात गुड़गांव निवासी अनूप मानते हैं कि एशियाई खेलों और प्रो-कबड्डी लीग के बाद अब लोग उन्हें पहचानने लगे हैं। बकौल अनूप, पहचान मिलने से अच्छा लगता है। मैं इसका लुत्फ ले रहा हूं। हमारे देश ने एशियाई खेलों में अब तक के सभी स्वर्ण जीते हैं लेकिन इसके बावजूद खिलाड़ियों को कोई नहीं पहचानता लेकिन पेशेवर लीग के देश भर में टेलीविजन के माध्यम से पहुंचने के बाद अब खिलाड़ियों को पहचान मिलने लगी है, जो अच्छी बात है।

Friday 21 November 2014

शिक्षा पर अधकचरे सरकारी कदम

भारतीय जनता पार्टी की सरकार जब से देश की सल्तनत पर काबिज हुई है तभी से वह हर कुछ बदल देने को बेताब है। परिवर्तन की हड़बड़ी उसके कामकाज, नीतियों और योजनाओं में स्पष्ट परिलक्षित हो रही है। यह बात सही है कि मोदी सरकार ने कई क्षेत्रों में सराहनीय कार्य किए हैं लेकिन मुल्क के आंतरिक, विदेश, रक्षा, व्यापार, स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में वह कोई क्रांतिकारी परिवर्तन अभी तक नहीं कर पाई है। इसकी वजह देश के उद्योगपतियों, व्यापारियों, देशी-विदेशी निवेशकों, बिचौलियों और अधिकारियों की सशक्त लाबियां हैं जो सरकार को मनमानी करने की छूट नहीं देतीं। इन क्षेत्रों में एक छोटा सा परिवर्तन भी सरकार की पेशानियों में बल डाल देता है। यही वजह है कि वह हर पहलू को ठोक बजाकर देखती है और उस परिवर्तन का असर जिन दिग्गजों पर होने वाला होता है, उन्हें भरोसे में लेकर ही आगे बढ़ती है। इस सबमेंं मोदी सरकार को अपने मतदाताओं का भी ख्याल रखना होता है।
 शिक्षा देश का अति महत्वपूर्ण क्षेत्र है, पर इसकी स्थिति कतई संतोषजनक नहीं कही जा सकती। मोदी सरकार ही नहीं देश की पूर्ववर्ती सरकारों ने भी अब तक साक्षरता की अलख जगाने में अरबों रुपये खर्च किया है लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही है। प्राथमिक स्कूलों में मध्याह्न भोजन का स्याह सच किसी से छिपा नहीं है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी हम बहुत पीछे हैं। दुनिया के 275 सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों तो एक सैकड़ा सर्वश्रेष्ठ तकनीकी संस्थानों में भारत का शुमार न होना हमारी लचर शिक्षा प्रणाली का ही सूचक है। मोदी सरकार बेशक देश को विश्वगुरु बनाने की हड़बड़ी दिखा रही हो पर शिक्षा के क्षेत्र में गुरुता प्राप्त करने की बजाए उसका ध्यान क्षुद्रहितों पर अधिक है। हाल ही केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्रालय ने एक फैसला लिया है जिसके तहत अब केन्द्रीय विद्यालयों में जर्मन शिक्षा बंद कर दी जाएगी और सभी छात्रों के लिए संस्कृत पढ़ना अनिवार्य होगा।
भारत में 2011 में हुए एक एमओयू के तहत देश के करीब 500 केन्द्रीय विद्यालयों में कक्षा छह से आठवीं तक के विद्यार्थियों के लिए जर्मन की शिक्षा प्रारम्भ की गई थी। प्राथमिक शिक्षा के बाद छात्रों के सामने यह विकल्प था कि वे संस्कृत की जगह जर्मन की शिक्षा प्राप्त करें। गोएथे इंस्टीट्यूट मैक्समूलर भवन और केन्द्रीय विद्यालय संगठन के बीच हुए इस समझौते से मुल्क के लगभग 70 हजार छात्रों को बिना खर्च एक विदेशी भाषा सीखने का न केवल नया अवसर मिला था, बल्कि उनके लिए अवसरों के नए आयाम भी खुले। मोदी सरकार के सामने जब इस समझौते के नवीनीकरण की बात आई तो मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इसे खारिज कर दिया।  केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी की अध्यक्षता में केन्द्रीय विद्यालय संगठन के संचालक मंडल ने 27 अक्टूबर को अपनी बैठक में फैसला किया था कि संस्कृत के विकल्प के रूप में जर्मन भाषा की पढ़ाई खत्म की जाएगी।
बैठक में सवाल उठा कि उस एमओयू पर हस्ताक्षर कैसे किए गए जो शिक्षा की राष्ट्रीय नीति का उल्लंघन है। इस पर स्मृति ईरानी का यह कहना कि इससे राज्य और बच्चों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, कतई तर्कसंगत नहीं है। यह मामला सिर्फ संस्कृत को बढ़ावा देने का नहीं बल्कि संवैधानिक अधिकारों की रक्षा का भी है। स्मृति ईरानी का यह कहना कि यह व्यवस्था त्रिभाषा फार्मूले यानी हिन्दी, अंग्रेजी और संस्कृत पढ़ाने का उल्लंघन करती है, किसी के गले नहीं उतर रही। यह अच्छी बात है कि मानव संसाधन मंत्री को बच्चों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा का ख्याल है लेकिन ऐसी चिन्ता और हड़बड़ी उन लाखों बच्चों के लिए क्यों नहीं दिखती जो स्कूलों का मुंह देखने की बजाय कूड़े-कचरे में अपनी उदरपूर्ति का जरिया ढूंढ़ने लगते हैं। इतना ही नहीं सरकार उन बच्चों से मुंह कैसे फेर सकती है जोकि सुविधाहीन सरकारी विद्यालयों में दाखिला लेने की औपचारिकता पूरी करने के बाद शिक्षकों की बेगार करते हैं। मोदी सरकार को उन बच्चों पर भी नजर डालनी चाहिए जोकि मातृभाषा हिन्दी बोलने या उसमें ही पढ़ने के अधिकार से वंचित रह अंग्रेजी में पढ़ने को विवश हैं। देश में ऐसे विद्यालयों की संख्या भी कम नहीं है जहां मातृभाषा या राष्ट्रभाषा बोलने पर न केवल प्रतिबंध है बल्कि बोलने पर अबोध बच्चों को सजा भी दी जाती है। स्मृति ईरानी को ऐसे मसलों पर संवैधानिक अधिकारों का हनन क्यों नहीं दिखाई देता? क्या यह सच नहीं है कि निजी विद्यालय सरकारी नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाते हैं, लेकिन उन पर हमारी सरकारें कोई अंकुश नहीं लगा पातीं। कहने को देश में शिक्षा का अधिकार कानून भी बना लेकिन उसका पालन हो भी रहा है या नहीं, इसे देखने वाला कोई नहीं है।
दरअसल, मोदी सरकार को बच्चों के हितों से अधिक अपने हितों की परवाह है, तभी तो वह मध्य सत्र में जर्मन भाषा से तौबा कर संस्कृत भाषा पढ़ाने का फरमान जारी करती है। सरकार को यह सोचना चाहिए कि देश के नौनिहाल अनायास लिए गए इस परिवर्तन में कैसे ढलेंगे? बच्चे कोई कम्प्यूटर तो नहीं कि एक प्रोगाम डिलीट कर दूसरा फीड कर दिया जाए। दुखद बात तो यह है कि जो भी मोदी सरकार के इस फैसले के खिलाफ बोल रहा है उसे संस्कृत और संस्कृति का विरोधी माना जा रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे इस आमूलचूल परिवर्तन के जरिए भाजपा यह जताने की कोशिश कर रही है कि वही भारतीय संस्कृति की रहनुमा है। चालू शिक्षा सत्र पूरा होने में अब चंद महीने शेष हैं, लिहाजा मोदी सरकार को अधबीच में बच्चों पर संस्कृत भाषा थोपने की जल्दबाजी से बचना चाहिए। यदि ऐसा करना ही है तो सरकार नए सत्र तक इंतजार करे क्योंकि जो बच्चे अब तक जर्मन पढ़ रहे थे, उन्हें संस्कृत पढ़ने में परेशानी होगी। मोदी सरकार को स्वहित की बजाय देशहित की सोच रखनी चाहिए।

क्रिकेट में सबसे बड़ा संकट है स्पॉट फिक्सिंग: रिचर्ड हेडली

क्राइस्टचर्च (न्यूजीलैंड)। विश्व के महानतम हरफनमौला क्रिकेट खिलाड़ियों में शुमार न्यूजीलैंड के पूर्व कप्तान सर रिचर्ड हेडली का मानना है कि स्पॉट फिक्सिंग आज की तारीख में क्रिकेट में ‘सबसे बड़ा संकट’ है और इसे गम्भीरता से लिया जाना चाहिए।
विश्व कप 2015 के आयोजन स्थलों में से एक-हेगलेओवल स्टेडियम में नवनिर्मित हेडली पवेलियन से दिए गए साक्षात्कार में 63 साल के हेडली ने कहा कि स्पॉट फिक्सिंग जैसी समस्या से गम्भीर प्रतिबंधों द्वारा निपटा जा सकता है। हेडली ने कहा, अगर यह सब चल रहा है तो इसे स्टम्प करना होगा। और जो लोग इसमें शामिल बताए जा रहे हैं, उन पर गम्भीर प्रतिबंध लगाया जाए और इसे काफी गम्भीरता से लिया जाए। हेडली ने कहा कि इस काम में खिलाड़ियों का साथ बहुत जरूरी है। बकौल हेडली, सभी खिलाड़ियों को एक करारनामे पर साइन करना होगा। उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके सामने कोई भी संदेहास्पद बात होगी तो वे इसकी जानकारी देंगे। बात सामने आएगी तो उसकी जांच होगी। लोग जेल जा रहे हैं लेकिन सजा इससे भी गम्भीर होनी चाहिए। हेडली मानते हैं कि क्रिकेट के विकास में टी-20 का अपना अलग योगदान है लेकिन हमें यह सुनिश्चित करके चलना होगा कि यह किसी भी तरह से 50 ओवर के खेल के अस्तित्व को प्रभावित न करे। हेडली ने कहा, ‘मैं मानता हूं कि टी-20 का अपना अलग महत्व है और हमें यह स्वीकार करना होगा कि आज के क्रिकेट में तीनों प्रारूपों के लिए स्थान है लेकिन मैं यह कभी पसंद नहीं करूंगा कि टी-20 को लोकप्रिय करने के लिए 50 ओवर के क्रिकेट के बलि दी जाए।
80 के दशक में कपिल देव, इमरान खान, इयान बॉथम के साथ विश्व के महानतम हरफनमौला खिलाड़ियों के रूप में सक्रिय हेडली को 2015 क्रिकेट विश्व कप के लिए न्यूजीलैंड का ब्रांड एम्बेसेडर नियुक्त किया गया है। विश्व कप का आयोजन फरवरी-मार्च 2015 में आस्टेÑलिया और न्यूजीलैंड की संयुक्त मेजबानी में होना है। हेडली मानते हैं कि आज के टेस्ट क्रिकेट में असल हरफनमौला खिलाड़ियों की कमी सी दिख रही है। हेडली की नजर में दक्षिण अफ्रीका के जैक्स कैलिस विश्व इतिहास के सबसे उम्दा हरफनमौला खिलाड़ी रहे हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या भारतीय टीम अगले साल विश्व कप खिताब के दावेदारों में शामिल है? हेडली ने कहा, ‘निश्चित तौर पर।’ हेडली ने हालांकि कहा कि कई ऐसी टीमें हैं, जो भारत को खिताब बचाने से रोकने का प्रयास करेंगी। भारत ने 1983 और 2011 में विश्व कप खिताब जीता है।

भारत खेलों में कैसे बने सुपर पॉवर?

खेलों में हमारे फिसड्डी होने पर ढेर सारे तर्क-कुतर्क दिए जाते हैं। खिलाड़ी जमात क्रिकेट को अन्य खेलों की राह का रोड़ा मानती है, जोकि सच नहीं है। एक क्षेत्र की उपलब्धियां दूसरे क्षेत्र की कीमत पर नहीं हो सकतीं। अगर क्रिकेट पैसे और लोगों को आकर्षित कर रही है, तो उसी मॉडल पर दूसरे खेल भी वैसी ही कामयाबी हासिल कर सकते हैं। दरअसल खेलों में सबसे जरूरी है, शारीरिक दमखम। इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि आज भी करोड़ों भारतीयों को दो वक्त की रोटी भी मयस्सर नहीं है। ऐसे में जाहिर है कि खेल किसी की भी प्राथमिकता में शामिल नहीं हो सकते। दूसरी वजह भारत में पेशे के तौर पर खेल आज भी मुख्यधारा के करियर विकल्पों में शुमार नहीं है। इन दिक्कतों के बाद भी समाज की सोच, सरकारी नीतियों में बदलाव के साथ ही खेल संगठनों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाकर हम खेलों में सुपर पॉवर बन सकते हैं।

Wednesday 19 November 2014

बॉक्‍सर सरिता देवी को मिला तेंदुलकर का साथ

मुंबई : अस्थायी रुप से निलंबित भारतीय महिला मुक्केबाज सरिता देवी को बल्लेबाजी के बादशाह सचिन तेंदुलकर का समर्थन मिला गया है. सचिन ने इस मामले को लेकर खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवल को पत्र भी लिखा है. सचिन ले सरकार से इस अनुभवी मुक्केबाज का साथ देने का आग्रह किया है ताकि उसका करियर बीच में ही समाप्त नहीं हो. तेंदुलकर ने खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल को 15 नवंबर को लिखे पत्र में कहा है कि वह इन रिपोर्टों से परेशान है कि सरिता पर प्रतिबंध लग सकता है जिससे उसका करियर खतरे में पड़ सकता है. उन्होंने लिखा है, मैं आपसे आग्रह करता हूं कि कृपया तत्काल इस मामले पर गौर करें और यह सुनिश्चित करें कि उन्हें भरपूर समर्थन मिले ताकि उनका करियर खतरे में नहीं पडे और बीच में ही समाप्त नहीं हो. सरिता दक्षिण कोरिया के इंचियोन में खेले गये एशियाई खेलों में महिलाओं के 60 किग्रा के सेमीफाइनल में हार गयी थी. उन्होंने पदक वितरण समारोह में विरोध स्वरुप अपना पदक दूसरी खिलाड़ी को देने की कोशिश की थी. वह विवादास्पद फैसले से निराश थी और उन्होंने पदक के लिये अपनी गर्दन नीचे नहीं की. इसके बाद उन्होंने पदक लिया और उसे अपनी साथी खिलाड़ी पार्क जि ना के गले में डाल दिया जिसे उन दोनों के सेमीफाइनल मुकाबले में विजेता घोषित किया गया था. रजत पदक जीतने वाली दक्षिण कोरियाई मुक्केबाज ने इसके बाद सरिता को कांस्य पदक वापस लौटाने की कोशिश की थी.
 तेंदुलकर ने कहा कि खिलाडी होने के कारण वह सरिता की भावनाओं को समझ सकते हैं. उन्होंने लिखा है, खिलाड़ी होने के कारण मैं समझ सकता हूं कि देवी किस भावनात्मक उथल पुथल से गुजरी होगी जिसके कारण यह दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई. इसके बाद उन्होंने खेद जताया और वह अपना करियर जारी रखने के लिये एक और मौके की हकदार है.
 तेंदुलकर ने कहा कि मणिपुर की इस मुक्केबाज को उच्च स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग लेने की अनुमति मिलनी चाहिए क्योंकि उन्होंने अपने व्यवहार के लिये पहले ही माफी मांग ली है. उन्होंने लिखा है, आपको पता होगा कि उन्होंने अपने खेल भावना के विपरीत किये गये व्यवहार के लिये माफी मांग ली है.
एक देश के रुप में हमें इसके लिये अपनी तरफ से हर तरह के प्रयास करने चाहिए कि देवी को माफ किया जाए और उन्हें उच्च स्तर पर मुक्केबाजी का अपना कौशल दिखाने की अनुमति मिले. तेंदुलकर ने सोनोवाल से आइबा के सामने सरिता का मामला रखने के लिये भारतीय ओलंपिक संघ और मुक्केबाजी महासंघ के सीनियर अधिकारियों की टास्क फोर्स गठित करने पर विचार करने का आग्रह किया.
उन्होंने लिखा है, वर्तमान प्रक्रिया की सीमित जानकारी होने के कारण मैं आपकी अगुवाई में भारतीय ओलंपिक संघ, भारतीय मुक्केबाजी महासंघ के कानूनी जानकारी रखने वाले सीनियर अधिकारियों की टास्क फोर्स गठित करने का आग्रह करता हूं.
इस दिग्गज बल्लेबाज ने कहा, इस टास्क फोर्स का उद्देश्य देवी के बचाव में उचित तर्क पेश करके (मुक्केबाजी की) सर्वोच्च संस्था द्वारा उनके करियर को किसी तरह के नुकसान पहुंचाने के संभावित प्रयास को रोकना होना चाहिए.
यह महत्वपूर्ण है क्योंकि देवी उन खिलाडियों में शामिल है जो देश का प्रतिनिधित्व करने में गर्व महसूस करते हैं और भारत सहित विभिन्न सहयोगियों से हर तरह के समर्थन का हकदार हैं. तेंदुलकर ने मंत्री से जरुरी कदम उठाने का आग्रह किया. उन्होंने कहा, मुझे पूरा विश्वास है कि आप इस मामले पर गौर करके तुरंत कोई कार्रवाई करोगे.

भारतीय बालाओं ने दक्षिण अफ्रीका को एक पारी और 34 रनों से हराया

मैसूर। हरमनप्रीत कौर के नौ विकेट के सहारे भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने 19 नवम्बर को टेस्ट मैच में दक्षिण अफ्रीका को एक पारी और 34 रनों से हरा दिया। भारत ने चौथे और आखिरी दिन यह जीत हासिल की।
इससे पहले तिरुष कामिनी (192) और पूनम राउत (130) की शानदार पारियों के सहारे मेजबान टीम ने अपनी पहली पारी में छह विकेट खोकर 400 रनों पर घोषित की थी और फिर मेहमान टीम को उनकी पहली पारी में 234 रनों पर आॅल आउट कर दिया था। फॉलोआॅन होने के बाद दक्षिण अफ्रीका की पूरी टीम दूसरी पारी में 78.2 में केवल 132 रनों पर सिमट गयी और इस तरह भारत को दोबारा बल्लेबाजी नहीं करनी पड़ी।
बुधवार को अपनी दूसरी पारी छह विकेट के नुकसान पर 83 रनों से शुरू करते हुए दक्षिण अफ्रीका को पारी की हारी से बचने के लिए 83 रन चाहिए थे लेकिन उसके आखिरी चार बल्लेबाज केवल 37.2 ओवरों तक ही टिक पाए और लंच के तुरंत बाद दक्षिण अफ्रीका की पारी खत्म हो गयी। तृषा चेट्टी (35) और क्लो ट्रायोन (30 नाबाद) हालांकि कुछ देर पिच पर डटी रहीं। दोनों ने सातवें विकेट के लिए 53 रनों की साझेदारी की। तृषा के आउट होते ही बल्लेबाजी क्रम दोबारा चरमरा गया और निचले क्रम की तीनों बल्लेबाज केवल 12 रन जोड़कर आउट हो गयीं। पहली पारी में 44 रन देकर पांच विकेट लेने वाली हरमनप्रीत ने अपनी दूसरी पारी में 41 रन देकर चार विकेट लिए। झूलन गोस्वामी (21 रन देकर दो विकेट) और पूनम यादव (22 रन देकर 2 दो विकेट) ने बाकी के चार विकेट आपस में बांट लिए।

नेहरू की विरासत आज अधिक प्रासंगिक: राहुल

मोदी सरकार पर परोक्ष रूप से हमला करते हुए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि देश में पंडित जवाहरलाल नेहरू की विरासत मिटाने की कोशिश की जा रही है, ऐसी कोशिशों को तुरंत रोकने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अतीत की तुलना में यह आज अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू की 125वीं जयंती के मौके पर यहां आयोजित एक अंतर्राष्टÑीय सम्मेलन में राहुल ने कहा, ‘नेहरू एक प्राचीन विचार हैं, लेकिन वह जीवंत भारत का एक हिस्सा भी हैं। उनके विचार और उनकी राजनीति यहां आज ज्यादा मौजूद हैं।’ सम्मेलन में 20 देशों के प्रतिनिधियों और 29 राजनीतिक पार्टियों ने शिरकत की।
राहुल ने कहा, ‘यह महत्वपूर्ण है कि देश के लोग इस शांतिपूर्ण भारत को, नेहरू के भारत को, एक ऐसे भारत को बचाएं, जो धर्मनिरपेक्ष और सहिष्णु है।’ राहुल ने कहा,‘यह विरासत, जिसने किसी महिला या पुरुष की आवाज नहीं दबने दी और जिसके संरक्षण के लिए हम लगभग 70 सालों से संघर्ष कर रहे हैं, आज वह विरासत पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।’ उन्होंने किसी का नाम न लेते हुए कहा, ‘कुछ लोग नेहरू की विरासत को देश से मिटाने की कोशिश कर रहे हैं।’ कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा कि नेहरू विचार पुरुष थे न कि विचारक। उन्होंने कभी किसी पर अपने विचार नहीं थोपे। उन्होंने कहा, ‘भारत एक ऐसा देश है जहां लोकतांत्रिक सिद्धांत गहराई से पोषित हैं। नेहरू ने इन लोकतांत्रिक आदर्शों को विकसित और सुरक्षित किया है। इसीलिए आज भारत एक ऐसा देश है जहां आबादी का छठा हिस्सा शांतिपूर्ण माहौल में रहता है।’ उन्होंने कहा कि नेहरू का संघर्ष पूरी मानवजाति के लिए था। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा, ‘नेहरू भारत में रच-बस गए और भारत नेहरू में। नेहरू ने विपक्ष को हमेशा तरजीह दी और देश के निर्माण में भी उन्हें भागीदार बनाया।’ गांधी ने कहा, ‘ नेहरू ने उनके अधिकारों का भी बचाव किया जो उनसे सहमत नहीं रहते थे।’ उन्होंने कहा कि सच्चा लोकतंत्रीकरण केवल मताधिकार से नहीं होता बल्कि कमजोर का सशक्तीकरण भी जरूरी है। राहुल गांधी ने कहा, ‘लोकतंत्र आस्था का आचरण है। यह कोई भौतिक प्रक्रिया नहीं है जो हर पांच साल में घटती है। अपने पहले प्रधानमंत्री के कारण भारत अपने कानून के शासन के साथ उदार लोकतंत्र बना, स्वतंत्र न्यायपालिका मिली और प्रेस को भी आजादी मिली है। राहुल ने कहा कि भारत में लगभग तीस लाख स्थानीय प्रतिनिधि हैं जिनमें से आधी महिलाएं हैं। उन्होंने कहा कि नेहरू की तैयारियों ने भारत को अपनी नियति खुद तय करने की स्वतंत्रता दी। इसीलिए भारत को आज जहां खड़ा होना चाहिए था वहां खड़ा है। उन्होंने कहा कि यूरोप में लोकतांत्रिक व्यवस्था लाने के लिए दो विश्व युद्ध हुए पर भारत में अहिंसा से लोकतंत्र कायम हुआ।
नेहरूवादी सामंजस्य के सामने चुनौती: सोनिया
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि नेहरूवादी सामंजस्य के सामने आज चुनौती खड़ी है, जबकि देश इसी मजबूत बुनियाद पर खड़ा है। सोनिया ने कहा कि सिर्फ लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और समग्रता के सिद्धांतों का पालन करने की ही आवश्यकता नहीं है, बल्कि उन्हें मजबूत करने की कठिन लड़ाई भी लड़ने की जरूरत है।
गांधी ने कहा, ‘आज के भारत में नेहरूवादी सामंजस्य के सामने चुनौती खड़ी है। यह वह दृढ़ बुनियाद है, जिस पर देख खड़ा हुआ था।’ सोनिया ने कहा कि दो दिवसीय सम्मेलन ने अंतरराष्टÑीय रुचि पैदा की है और सामान्य सत्र में स्वीकृत घोषणा पत्र नेहरू के मूल्यों के प्रति वचनबद्धता जाहिर करता है। इसके पहले पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि नेहरू के स्वतंत्रता सेनानी, एक महान संवेदना और मजबूत प्रतिबद्धताओं के नेता थे।  उन्होंने कहा कि नेहरू ने समाजवाद को सिर्फ आर्थिक सिद्धांतों के रूप में नहीं देखा, बल्कि एक जीवन के तरीके रूप में देखा, जो व्यक्ति की आदतों और प्रवृत्ति में एक प्रभावी बदलाव लाता है। सिंह ने कहा,‘भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू ने सामाजिक न्याय के साथ विकास को बढ़ावा देने के लिए डिजान की गई एक व्यावहारिक कार्ययोजना तैयार की। मिश्रित अर्थव्यवस्था, जनता का सहअस्तित्व और निजी क्षेत्र नेहरू की विचार प्रक्रियाओं के एक महत्वपूर्ण अवयव थे। नेहरू के लिए समाजवाद मुख्यरूप से समता और समानता के लिए एक जुनून था।’ मनमोहन ने कहा कि नेहरू ने अपनी प्रतिभा के जरिए समाजवाद को वैश्विक संदर्भ में भारत के लिए प्रासंगिक बनाया। मनमोहन सिंह ने कहा कि नेहरू का वैश्विक दृष्टिकोण दुनिया के हर कोने में आज भी प्रासंगिक है। पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, ‘जहां संघर्ष और हिंसा मनुष्य के अंदर पैठ बनाती, वहा नेहरू शांति और सद्भाव की बात करते और उन्होंने एक लोकतांत्रिक व बहुपक्षीय वैश्विक व्यवस्था को बढ़ावा देने का प्रयास किया, जहां एकतरफा के बदले सामंजस्य निर्माण निर्दिष्ट सिद्धांत हो।’ मनमोहन ने कहा कि नेहरू ने भारतीयों को सिखाया कि अंतरराष्टÑीय मामलों में बगैर किसी भय या पक्षपात के स्वतंत्र होकर निर्णय लें। उन्होंने कहा, ‘नेहरू जी ने हमें एक व्यवहार्य सामंजस्य निर्माण का मूल्य भी सिखाया। यह अन्य दृष्टिकोण के लिए सहिष्णुता हासिल करने की क्षमता है।’ सिंह ने कहा कि गुटनिरपेक्ष आंदोलन (नाम) के सिद्धांत उभरते और विकासशील देशों को अंतर निर्भर वैश्विक अर्थव्यवस्था व राजनीति के समान प्रबंधन के लिए सहयोग में मददगार हो सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘वास्तव में नाम के प्रमुख सिद्धांत अभी भी प्रासंगिक हैं और 21वीं सदी में विश्व राजनीति में एक अधिक सक्रिय भूमिका निभाने में भारत की मदद कर सकते हैं।’ मनमोहन ने कहा, ‘नेहरू के लिहाज से भारत का विचार अनेकता में एकता का विचार है।’ उन्होंने कहा, ‘बहुलतावाद का विचार, यानी जहां सभ्यताओं का संघर्ष न हो, सभ्यताओं के एक संगम की दिशा में काम करने की संभावना की जड़ में निहित है। इस विचार की सार्वभौमिक प्रासंगिता है। संघर्ष और नफरत से घिरी दुनिया में ये विचार सूर्य की एक किरण की तरह है, जो हममें आशा का संचार करते हैं और आम मानवता में हमारे विश्वास को तरोताजा करते हैं।’

भारतीय बल्लेबाजों की सफलता का राज न्यूजीलैंड में

लेवर एण्ड वुड्स के बल्लों की अच्छी मांग
हॉक्स बे (न्यूजीलैंड)। न्यूजीलैंड का नॉर्थ आइलैंड अपनी उम्दा वाइन के लिए दुनिया भर में विख्यात है, लेकिन नॉर्थ आईलैंड के हॉक्स बे में एक छोटा सा कस्बा वाइपावा भारतीय बल्लेबाजों सहित दुनिया के कुछ दिग्गज बल्लेबाजों के रन बनाने का राज छिपाए हुए है।
वाइपावा के जेम्स लेवर सचिन तेंदुलकर, ब्रायन लारा, राहुल द्रविड़ के अलावा कई भारतीय बल्लेबाजों के लिए पिछले दो दशक से विशेष तौर पर डिजाइन बल्ले बनाते आ रहे हैं। लेवर का कहना है कि उनके ग्राहकों में 60 फीसदी भारतीय हैं। यहां यह भी बताते चलें कि बल्लों के उत्पादन में भारत दुनिया में सर्वोपरि है।
लेवर एण्ड वुड्स ब्रांड से बल्ले बनाने वाले लेवर स्वीकार करते हैं कि पिछले 20 वर्षों में बल्लों के उत्पादन में तेजी से बदलाव आया है, लेकिन उनका कहना है कि वह किसी बल्लेबाज के लिए उसके सर्वाधिक अनुकूल बल्लों का निर्माण करते हैं। बल्ले का ब्लेड बनाने में विशेषज्ञ लेवर अपने ग्राहक की जरूरतों के अनुसार हर बल्ला खुद अपने हाथ से तैयार करते हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि बल्लेबाज की जरूरत का आकलन करने के लिए उन्हें सामने होने की आवश्यकता भी नहीं है, बल्कि लेवर फोन पर बातचीत के जरिए, ईमेल के जरिए और यहां तक कि फेसबुक पर चैटिंग के जरिए इसका आंकलन कर लेते हैं। आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की संयुक्त मेजबानी में कुछ ही महीने बाद होने वाले आईसीसी विश्व कप से ठीक पहले हम 6.5 फिट लम्बे लेवर से मिलने पहुंचे। लेवर युवावस्था में एक बार भारत की यात्रा कर चुके हैं।
लेवर ने कहा, ‘मेरे अधिकांश, लगभग 60 फीसदी, ग्राहक भारतीय हैं, हालांकि मेरे ग्राहक पूरी दुनिया में हैं। मेरे ग्राहकों में भारत में रहने वाले बल्लेबाजों की अपेक्षा भारत से बाहर रहने वालों की संख्या अधिक है।’ लेवर ने कहा, ‘मैं एक बार फिर भारत की यात्रा करना चाहता हूं। मेरे पास भारत में निर्मित कुछ बल्ले भी हैं, जो मेरे मित्रों ने मुझे दिए हैं। भारत में बल्ले के निर्माण की तकनीक मुझे हमेशा से अच्छी लगती है।’ उन्होंने कहा, ‘लेकिन कुछ भारतीय बल्ला निर्माता मुझे अपने बल्ले परीक्षण करने के लिए भेजते हैं। मतलब हम बल्ला निर्माण में सलाहकार की भूमिका भी निभा रहे हैं।’ लेवर के ग्राहकों में सामान्य बल्लेबाजों से लेकर बड़े लीग मैच खेलने वाले और प्रथम श्रेणी खेलने वाले बल्लेबाज भी शामिल हैं। भारत के अलावा आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, मलेशिया, ब्राजील और हांगकांग में भी लेवर एण्ड वुड्स के बल्लों की अच्छी मांग है। लेवर का हालांकि कहना है कि वास्तव में उनके ग्राहकों में ऐसे बल्लेबाज शामिल हैं जिन्हें कुछ विशेष और अपने लिए सर्वाधिक अनुकूल बल्लों की जरूरत है। लेवर ने कहा,‘इससे पहले मैं ब्रायन लारा, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और श्रीलंका के अनेक बल्लेबाजों के लिए बल्ले बना चुका हूं। सचिन पिछले कुछ वर्षों से ही मेरे बनाए बल्ले इस्तेमाल कर रहे थे। माहेला जयवर्धने के अलावा सनत जयसूर्या मेरे कुछ सबसे अच्छे ग्राहकों में से रहे हैं।’ लेवर अमूमन हर साल 1,500 बल्ले बनाते आ रहे हैं, लेकिन विश्व कप को देखते हुए उनका अनुमान है कि इस साल वह 1,800 बल्ले बनाएंगे।

Tuesday 18 November 2014

हॉकी कोच टेरी वाल्श ने दिया इस्तीफा

नई दिल्ली। भारतीय हॉकी कोच टेरी वाल्श ने हॉकी इंडिया और भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के साथ अनुबंध संबंधी बातचीत नाकाम रहने के बाद मंगलवार को अपना पद छोड़ दिया, लेकिन इस आॅस्ट्रेलियाई के विचारार्थ नये प्रस्ताव पर काम किया जा रहा है।
वाल्श का अनुबंध समाप्त हो चुका है। उन्होंने पिछले महीने ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया था, क्योंकि हॉकी इंडिया और साई ने टीम फैसलों में उनकी बात को अधिक महत्व देने और उनकी पसंद का सहयोगी स्टॉफ रखने की मांगों को नामंजूर कर दिया था। उनसे पद पर बने रहने के लिये बातचीत चल रही थी और वह खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल से भी मिले थे, लेकिन बातचीत का कोई परिणाम नहीं निकल पाया। इससे वाल्श ने अपना इस्तीफा वापस लिये बिना आॅस्ट्रेलिया लौटने का फैसला कर लिया।
हालांकि उनके पास अगले दो दिनों में नया प्रस्ताव भेजा जाएगा जिससे उनके भारत वापसी के लिये दरवाजे अब भी खुले हुए हैं। वाल्श ने कहा कि वह अब भी भारतीय टीम को कोचिंग देने को लेकर आशावान थे। वाल्श का अपने पद पर बने रहने को लेकर तब संदेह जताया जाने लगा था जब रिपोर्ट आयी कि उनके और हॉकी इंडिया के अध्यक्ष नरिंदर बत्रा के बीच गंभीर मतभेद पैदा हो गये हैं। यदि वाल्श वापस नहीं आते तो इसे भारतीय हॉकी के लिये बड़ा झटका माना जा सकता है, क्योंकि उनके रहते हुए टीम ने अच्छे परिणाम हासिल किये थे। भारतीय पुरुष टीम ने हाल में 16 वर्षों के अंतराल के बाद एशियाई खेलों का स्वर्ण पदक जीता जिससे उसने 2016 में रियो में होने वाले ओलम्पिक खेलों के लिये क्वालीफाई किया। इससे पहले टीम ने ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीता और हाल में विश्व चैम्पियन आॅस्ट्रेलिया से उसकी सरजमीं पर शृंखला जीती। वाल्श की मांगों पर गौर करने के लिये तीन सदस्यीय समिति का गठन भी किया गया था लेकिन वह किसी परिणाम पर पहुंचने में नाकाम रही थी। इस पैनल में पूर्व हॉकी कप्तान अजित पाल सिंह, अशोक कुमार और जफर इकबाल शामिल थे। पैनल ने वाल्श, हाकी इंडिया के परफोरमेन्स निदेशक रोलेंट ओल्टमैन्स और भारतीय खेल प्राधिकरण के अधिकारियों से दो बार बैठक की लेकिन वे किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाये थे। वाल्श ने फैसलों में उनकी बात को तवज्जो देने और अपनी पसंद के सहयोगी स्टॉफ के अलावा 120 दिन के भुगतान अवकाश की भी मांग की थी। उन्होंने कहा कि इस अवकाश के दौरान वह खिलाड़ियों के साथ वीडियो कान्फ्रेंस के जरिये जुड़े रहेंगे।
बत्रा ने वाल्श पर लगाये
वित्तीय गड़बड़ी के आरोप
 हॉकी इंडिया सचिव नरेंद्र बत्रा ने राष्टÑीय टीम के कोच टेरी वाल्श पर वित्तीय गड़बड़ी के आरोप लगाये हैं जिसके बाद पूर्व आॅस्ट्रेलियाई खिलाड़ी के टीम के साथ आगे भी बने रहने को लेकर सवाल खड़े हो गये हैं। बत्रा ने वाल्श पर आरोप लगाते हुये कहा कि यूएस हॉकी के साथ काम करते हुये मौजूदा भारतीय कोच ने एक लाख 76000 डॉलर की राशि में गड़बड़ी की थी। वाल्श पिछले एक वर्ष से भारतीय टीम के कोच की भूमिका निभा रहे हैं।



गावस्कर ने मयप्पन को आड़े हाथों लिया

श्रीनिवासन की चुप्पी पर उठाये सवाल
सरकार को सट्टेबाजी को वैध करने के बारे में सोचना चाहिए
नई दिल्ली। भारत के पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर ने आईसीसी चेयरमैन एन श्रीनिवासन के दामाद गुरुनाथ मयप्पन की सट्टेबाजी में लिप्त रहने के लिये कड़ी आलोचना की और साथ ही स्पाट फिक्सिंग और सट्टेबाजी के सम्पूर्ण मसले पर श्रीनिवासन की चुप्पी पर भी सवाल उठाये।
गावस्कर ने मेलबर्न में कहा कि मयप्पन के खिलाफ कानून को अपना पूरा काम करना चाहिए। गावस्कर ने कहा कि श्रीनिवासन को यह बताना होगा कि यदि वह जानते थे कि खिलाड़ी फिक्सिंग में लिप्त हैं तो उन्होंने उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की? उन्होंने कहा, रिपोर्ट आयी है जिनमें कहा गया है कि मुद्गल समिति की रिपोर्ट में पाया गया है कि श्रीनिवासन सट्टेबाजी के बारे में जानते थे लेकिन उन्होंने इसको लेकर कुछ नहीं किया। श्रीनिवासन को जवाब देना चाहिए कि यदि वह जानते थे कि एक खिलाड़ी दोषी है तो फिर उन्होंने कार्रवाई क्यों नहीं की? गावस्कर मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड पर खास स्वागत समारोह में भाग लेने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आमंत्रण पर आस्ट्रेलिया गये हुए हैं। इस स्वागत समारोह की मेजबानी आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री टोनी एबॉट ने की।
गावस्कर ने कहा कि मैच फिक्सिंग और सट्टेबाजी के खिलाफ शून्य सहिष्णुता की नीति होनी चाहिए और यदि कोई खिलाड़ी गलत कामों में भागीदार रहने का दोषी पाया जाता है तो उसे जेल भेजना चाहिए और रिकार्डों की किताबों से उससे जुड़ी सामग्री हटा देनी चाहिए। गावस्कर ने कहा कि न्यूजीलैंड में सट्टेबाजी को लेकर नया कानून बना है जिसमें कहा गया है कि दोषी खिलाड़ी को जेल भेजा जाएगा। भारत में भी इसी तरह का कानून होना चाहिए।
इस पूर्व कप्तान ने कहा कि सरकार को भारत में सट्टेबाजी को वैध बनाने के बारे में विचार करना चाहिए। गावस्कर ने कहा, कालेधन के जरिये बहुत अधिक सट्टेबाजी होती है। लेकिन यदि आप सट्टेबाजी की आधिकारिक दुकान खोल देते हो फिर इससे सरकार की भी कमाई होगी। यह एक तरह से रोक लगाने का तरीका है। यदि किसी को अवैध तरीके से सट्टा लगाना है तो वह ऐसा करेगा। सरकार को सट्टेबाजी को वैध करने के बारे में सोचना चाहिए। भारतीय टीम के आगामी आस्ट्रेलियाई दौरे के बारे में गावस्कर ने कहा कि भारत को यहां कड़ी चुनौती का सामना करना होगा।
उन्होंने कहा, भारतीय खिलाड़ियों को धैर्य रखना होगा। उन्हें अति उत्साही शाट लगाने से बचना होगा। यह टी20 या वनडे अंतरराष्ट्रीय नहीं है। आस्ट्रेलियाई पिचें बल्लेबाजी के लिये सर्वश्रेष्ठ होती हैं लेकिन खिलाड़ी को संयम रखना होगा। इस बीच गावस्कर ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनकी फोटो को लेकर चुटकी भी ली। दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने यह फोटो विश्व कप और बोर्डर गावस्कर ट्राफी के साथ खिंचवायी है। गावस्कर ने कहा, जब फोटो खिंचवायी जा रही थी तो मैंने देखा कि मोदी ने विश्व कप ट्राफी पकड़ रखी है। एबॉट ने बोर्डर गावस्कर ट्राफी पकड़ रखी थी। मैंने प्रधानमंत्री से कहा कि आपने सही ट्राफी पकड़ी थी। हम अगले साल इसे ही चाहते हैं। भारत के पास बोर्डर गावस्कर ट्राफी पहले से है। हमें अभी इसकी जरूरत नहीं है।