Sunday 28 December 2014

साल भर छाए रहे पहलवान

भारतीय कुश्ती के लिए वर्ष 2014 काफी अच्छा रहा और इस साल ओलंपिक के नायक सुशील कुमार और योगेश्वर दत्त ने फिर से अच्छा खेल दिखाया जिससे भारत एशियाई खेलों में 28 साल बाद इस स्वर्ण पदक जीतने में सफल रहा।
लंदन ओलंपिक 2012 के बाद पहली बार खेलने और फीला के भार वर्ग में तब्दीली के कारण बढ़े वजन वर्गों में भाग लेने वाले सुशील और योगेश्वर ने इस साल जिस टूर्नामेंट में हिस्सा लिया उसमें खुद को साबित किया। योगेश्वर ने तो इंचियोन एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता। यह पिछले 28 वर्षों में कुश्ती में भारत का पहला स्वर्ण पदक था। उनकी निगाहें अब रियो ओलंपिक पर टिकी हैं।
योगेश्वर को ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों में 60 के बजाय 65 किग्रा भार वर्ग में भाग लेना पड़ा जिसमें उन्होंने सोने का तमगा जीता, जबकि दो बार के ओलंपिक चैंपियन सुशील ने 74 किग्रा में सोने का तमगा हासिल किया। उन्होंने फाइनल में पाकिस्तान के कमर अब्बास को चित करके अपनी बादशाहत साबित की थी। इसके बाद सुशील और योगेश्वर ने सितंबर में ताशकंद में विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा नहीं लिया। सुशील बाद में एशियाई खेलों में भी नहीं गये, लेकिन योगेश्वर इंचियोन पहुंचे और वहां उन्होंने इतिहास रचा।
इस बीच भारत के युवा पहलवानों अमित कुमार, बजरंग, राजीव तोमर और महिला पहलवान बबिता कुमारी और विनेश फोगाट ने उन प्रतियोगिताओं में भारतीय तिरंगा ऊंचा रखा जहां सुशील और योगेश्वर ने हिस्सा नहीं लिया। इन सबके अच्छे प्रदर्शन से भारत ने राष्ट्रमंडल खेलों में पांच स्वर्ण सहित 13 पदक जीते।
भारत ने जूनियर एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में भी एक स्वर्ण, तीन रजत और एक कांस्य पदक हासिल किया। विनेश (51 किग्रा) ने ग्रीको रोमन में स्वर्ण पदक हासिल किया। एशियाई खेलों में भारतीय पहलवानों ने पांच पदक हासिल किये, लेकिन फीला विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में उन्हें कोई पदक नहीं  मिला। 

भारतीय फुटबाल के लिए नई उम्मीद बना आईएसएल

भारत में फुटबाल को बढ़ावा देने और लोकप्रिय बनाने के मकसद से शुरू हुआ इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) का पहला संस्करण बहुत हद तक सफल रहा। इसका एक सबूत वे भारतीय फुटबाल प्रशंसक हैं जो इस टूर्नामेंट के बाद यूरोपीय स्टार खिलाड़ियों के अलावा कुछ भारतीय खिलाड़ियों के नाम से भी परिचित नजर आने लगे हैं।
आईएसएल की सफल शुरुआत के बाद हालांकि कई प्रश्न भी सामने खड़े हो चुके हैं। इसमें सबसे बड़ा सवाल इस टूर्नामेंट के जारी रहने को लेकर है। साथ ही यह प्रश्न भी महत्वपूर्ण है कि विदेशी खिलाड़ियों के सामने भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन टूर्नामेंट में कैसा रहा। ऐसी खबरें भी आर्इं कि स्पेन केअग्रणी क्लब और मौजूदा ला लीग चैम्पियन एटलेटिको मेड्रिड ने एटलेटिका डी कोलकाता के डिफेंडर अर्नब मंडल पर विशेष नजर रखी है। वैसे, यह अलग बात है कि कोई भी भारतीय खिलाड़ी टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा गोल करने के मामले में शीर्ष पांच की सूची में शामिल नहीं रहा लेकिन फाइनल में कोलकाता के लिए इंजुरी टाइम में निर्णायक गोल कर भारतीय खिलाड़ी मोहम्मद रफीक हीरो जरूर बन गए। भारत के पूर्व खिलाड़ी शिशिर घोष के मुताबिक भारतीय डिफेंडरों ने टूर्नामेंट में सराहनीय प्रदर्शन किया।
घोष ने कहा, ‘सभी भारतीय खिलाड़ियों ने अच्छा किया। नारायण दास, हरमनजोत खाबड़ा और अनर्ब मंडल तथा देबनाथ किंग्शुक जैसे डिफेंडरों ने सराहनीय खेल दिखाया।’ यह भी गौर करने वाली बात है कि टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ियों में सम्मिलित रूप से ब्राजील और भारत के खिलाड़ी रहे। दोनों देशों के खिलाड़ियों ने 26-26 गोल किए। ब्राजील के इलानो ब्लूमर ने टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा आठ गोल दागे और गोल्डन बूट का पुरस्कार अपने नाम किया। सर्वाधिक गोल करने के मामले में भारत की ओर से जेजे लालपेखुला सबसे आगे रहे और उन्होंने 13 मैचों में चेन्नइयन एफसी के लिए कुल चार गोल किए। वह सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ियों की सूची में नौवां स्थान पाने में सफल रहे। इसके अलावा एफसी गोवा के रोमियो फर्नांडीज ने भी 11 मैचों में तीन गोल किए। कोलकाता के बलजीत साहनी ने भी दो गोल दागे।
गोल करने में मदद करने के मामले में भी भारतीय खिलाड़ियों ने अपनी छाप छोड़ी। सूची में तीसरे स्थान पर मौजूद दिल्ली डायनामोज के फ्रांसिस फर्नांडीज ने 11 मैचों में तीन बार गोल में सहयोग किया। बलवंत सिंह और खाबड़ा ने भी चेन्नई के लिए क्रमश: पांच और छह बार गोल में सहायता की। खेल के अन्य क्षेत्रों में भी भारतीय खिलाड़ियों ने बेहतर प्रदर्शन किया। भारतीय खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी विश्वजीत भट्टाचार्य ने अपनी राय जाहिर करते हुए कहा, ‘‘भारत के खिलाड़ियों ने विश्व फुटबाल को स्पष्ट संदेश दिया है। साथ ही यह भी जता दिया है कि वह भी अच्छा फुटबाल खेलते हैं।’ भट्टाचार्य के अनुसार भारतीय खिलाड़ियों और विदेशी खिलाड़ियों में एकमात्र अंतर तकनीक और निपुणता का है। विदेशी खिलाड़ी बड़ी-बड़ी टीम और यूरोपीय क्लबों के लिए खेल चुके हैं और इसी कारण वे अभी बेहतर हैं।

नए लीग टूर्नामेंटों, आईपीएल विवाद ने बटोरी सुर्खियां


भारतीय खेलों के लिए जहां यह साल कुछ उपलब्धियों और नए लीग टूर्नामेंटों की शुरुआत का रहा, वहीं इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में कथित सट्टेबाजी, फिक्सिंग सहित भारतीय हॉकी में टेरी वॉल्श की बतौर मुख्य कोच विवादास्पद विदाई भी सुर्खियों में बनी रही।
कॉरपोरेट घरानों, बॉलीवुड और खेल जगत की हस्तियों के सहयोग ने विभिन्न खेलों में लीग प्रारूप का एक नया अध्याय जुड़ा। यह सभी लीग पेशेवर तरीके से आयोजित किए गए और भारतीय दर्शकों ने खेलों का एक नया रंग देखा। फुटबाल की देश में दशा और दिशा बदलने के मकसद से इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) की शुरुआत हुई। बॉलीवुड, देश की पूर्व खेल हस्तियों, अंतरराष्ट्रीय फुटबाल सितारों के जुड़ने से आईएसएल ने खूब चर्चा भी बटोरी। टूर्नामेंट बहुत हद तक सफल भी रहा और इसने बड़ी संख्या में दर्शकों को स्टेडियम की ओर भी खींचा।
देश के टेनिस प्रेमियों के लिए भी यह साल यादगार रहा। भारत में टेनिस से संबंधित दो लीग शुरू हुए। बड़े सितारों जैसे रोजर फेडरर, नोवाक जोकोविक के पहली बार भारत आगमन के कारण इंटरनेशनल प्रीमियर टेनिस लीग (आईपीटीएल) ने मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरीं। वहीं, देशी फ्रेंचाइजी टीमों के साथ शुरू हुए विजय अमृतराज के चैम्पियंस टेनिस लीग (सीटीएल) ने भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया।
इसी साल भारतीय दर्शकों ने दो कबड्डी लीग भी देखे। प्रो कबड्डी लीग और विश्व कबड्डी लीग, दोनों ही लोकप्रियता के मामले में सफल रहीं और बड़ी संख्या में खेल प्रेमियों को अपनी ओर खींचा। जहां तक भारतीय क्रिकेट की बात है तो मैदान और इससे बाहर दोनों ही जगहों पर इसके लिए यह साल उथल-पुथल वाला रहा। खासकर आईपीएल के छठे संस्करण में हुए कथित स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाजी की खबरों ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को परेशानी में डाला। बीसीसीआई के निर्वासित अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन के दामाद गुरुनाथ मयप्पन की सट्टेबाजी में भूमिका के सामने आने के बाद इस मामले ने और तूल पकड़ा और विभिन्न मौकों पर बोर्ड को सर्वोच्च न्यायालय से फटकार सुननी पड़ी।
इस बीच न्यूजीलैंड और इंग्लैंड दौरे पर भारत की विदेशी धरती पर नाकामी जारी रही, साथ ही एशिया कप और टी-20 विश्व कप फाइनल में भी टीम को हार का सामना करना पड़ा। भारत दौरे पर आई वेस्टइंडीज टीम के बीच में दौरा छोड़कर चले जाने के कारण भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) और वेस्टइंडीज क्रिकेट बोर्ड (डब्ल्यूआईसीबी) के बीच संबंध खट्टे हुए।
भारतीय क्रिकेट टीम के लिए वर्ष तमाम उतार-चढ़ाव वाला रहा, हालांकि श्रीलंका के खिलाफ कोलकाता एकदिवसीय में रोहित शर्मा की 264 रनों की पारी ने भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को जश्न मनाने का मौका भी दिया। भारतीय बैडमिंटन के लिए यह साल अच्छा रहा। महिला टीम ने उबेर कप में पहली बार कांस्य पदक जीता। देश की शीर्ष महिला खिलाड़ी सायना नेहवाल के लिए वर्ष की शुरुआत अच्छी नहीं रही लेकिन बाद में उन्होंने शानदार वापसी करते हुए चीन ओपन सुपर सीरीज जीतने वाली वह पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनने का गौरव हासिल किया।
पुरुष वर्ग से भी भारत के लिए अच्छी खबर आई। इसी साल विश्व में चौथी वरीयता प्राप्त करने वाले किदांबी श्रीकांत ने पांच बार के विश्व चैम्पियन और दो बार के ओलम्पिक चैम्पियन लिन डैन को हराकर चीन ओपन खिताब जीता। दूसरी ओर, 32 साल बाद राष्ट्रमंडल खेलों में भारत को स्वर्ण पदक दिलाकर पारुपल्ली कश्यप ने भी देश का मान बढ़ाया। भारतीय हॉकी के लिए भी यह साल नई आशा लेकर आया। भारत ने 16 साल बाद एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता। साथ ही टीम राष्ट्रमंडल खेलों में भी उपविजेता रही। विश्व चैम्पियन आस्ट्रेलिया को उसके घर में हराना भी भारतीय टीम की उपलब्धियों में शामिल रहा। इसके बाद हालांकि मुख्य कोच टेरी वॉल्श की विदाई विवाद का एक बड़ा मुद्दा बनी। भारतीय एथलीटों ने सराहनीय प्रदर्शन करते हुए राष्ट्रमंडल खेलों में 15 स्वर्ण, 30 रजत और 19 कांस्य सहित कुल 64 पदक जीते। एशियाई खेलों में भी भारत ने कुल 57 पदक हासिल किए जिसमें 11 स्वर्ण, 10 रजत और 36 कांस्य शामिल हैं। इंचियोन में महिला मुक्केबाज सरिता देवी की विवादास्पद हार भी एक बड़ा मुद्दा बनी। उनके द्वारा पदक ठुकराने और खेल भावना का सम्मान नहीं करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ (एआईबीए) ने उन पर एक साल प्रतिबंध भी लगाया।

Saturday 27 December 2014

वाजपेयी, मालवीय को मिलेगा देश का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’

स्वतंत्रता सेनानी मदन मोहन मालवीय की जयंती और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन से एक दिन पहले उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से विभूषित किए जाने की घोषणा की गई है।
राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी बयान के अनुसार, ‘‘राष्ट्रपति को पंडित मदन मोहन मालवीय (मरणोपरांत) और अटल बिहारी वाजपेयी को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित कर खुशी हो रही है।’  संयोगवश वाजपेयी और मालवीय का जन्म 25 दिसम्बर को ही हुआ था। मालवीय का जन्म 25 दिसम्बर, 1861 को इलाहाबाद में और वाजपेयी का जन्म 1924 को ग्वालियर में हुआ था। सरकार ने उनके जन्मदिवस को ‘सुशासन दिवस’ घोषित किया है।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नेताओं ने इस घोषणा का स्वागत किया। कांग्रेस ने भी इस घोषणा का स्वागत किया।
प्रधानमंत्री ने एक बयान में कहा, ‘‘पंडित मदन मोहन मालवीय तथा अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न दिया जाना बेहद खुशी की बात है। इन महान विभूतियों को देश का सर्वोच्च सम्मान दिया जाना राष्ट्र के प्रति की गई इनकी सेवाओं को पूर्णत: मान्यता प्राप्त करता है।’’ ग्वालियर में जन्मे वाजपेयी वर्ष 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने थे। इसके बाद 1998-2004 तक वह प्रधानमंत्री पद पर आसीन रहे। काफी दिनों से इन्हें भारत रत्न दिए जाने की मांग की जा रही थी।  मोदी की अगुवाई वाली सरकार के पहले वर्ष में ही यह घोषणा हुई है। दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी सहित कई भाजपा नेता कई वर्षों से उन्हें भारत रत्न देने की मांग कर रहे थे। 90 वर्षीय वाजपेयी ने 1980 में भारतीय जनसंघ को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के रूप तब्दील कर दिया था और वह गैर कांग्रेसी पार्टी के पहले प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया था। वह 1957 से 2009 के बीच 10 बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे। प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के शासनकाल में एक बेहतरी वक्ता वाजपेयी ने विदेश मंत्री के रूप में काफी ख्याति अर्जित की थी। इस दौरान उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में भाषण दिया था, जिसकी बेहद सराहना हुई थी।
इलाहाबाद में जन्मे मालवीय ने दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली थी और वह दक्षिण-पंथी हिंदू महासभा के पहले नेताओं में से एक थे। स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ के अतिरिक्त वह एक महान शिक्षाविद थे। उन्होंने 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। भारत की आजादी के एक साल पहले उनका निधन हो गया।  वाजपेयी तथा मालवीय को भारत रत्न देने के फैसले का कांग्रेस ने स्वागत किया। कांग्रेस के महासचिव अजय माकन ने ट्वीट कर कहा, ‘‘पंडित मदन मोहन मालवीय तथा अटल बिहारी वाजपेयी को भारत रत्न प्रदान करने का हम स्वागत करते हैं। हम बधाई देते हैं।’’केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति से दो नेताओं को भारत रत्न देने का आग्रह किया था और उन्होंने खुशीपूर्वक सहमति जता दी। राजनाथ ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘मैं देश के तमाम लोगों को बधाई देता हूं।’’ केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि वाजपेयी उत्कृष्ट प्रधानमंत्रियों तथा भारतीय राजनीतिक नेताओं में से एक रहे हैं। जेटली ने कहा, ‘‘अटल जी देश एक मजबूत राष्ट्रवादी रहे हैं तथा वह देश के लिए प्रतिबद्ध रहे हैंं।’’इसके अलावा, केंद्रीय मंत्रियों -रविशंकर प्रसाद, नितिन गडकरी, हर्षवर्धन तथा प्रकाश जावडेÞकर- ने सरकार के इस फैसले पर प्रसन्नता जताई।

स्वच्छ भारत अभियान से जुड़ रहे खिलाड़ी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वच्छ भारत अभियान से खिलाड़ी न केवल खुश हैं बल्कि वे स्वयं झाड़ू हाथ में लेकर उतर चुके हैं। अब तक सफाई अभियान में बैडमिंटन की प्रख्यात खिलाड़ी सायना नेहवाल, विख्यात टेनिस खिलाड़ी महेश भूपति, लोकप्रिय बिलियर्ड खिलाड़ी पंकज आडवाणी, लोकप्रिय क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली, रोहित शर्मा,  विराट कोहली आदि शामिल हैं। इन खिलाड़ियों ने अपने-अपने क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि हासिल की है और भारत के लोगों के लिए सम्मान और खुशियां लेकर आए हैं। उन्होंने स्वेच्छा से स्वच्छ भारत अभियान से जुड़ने का फैसला किया है। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर वह स्वच्छ भारत अभियान से जुड़ने को तैयार हैं लेकिन उनका राजनीति में आने का फिलहाल कोई इरादा नहीं है। मोदी ने वाराणसी में स्वच्छ भारत अभियान के तहत गांगुली को नामित किया। गांगुली के अलावा मोदी ने कई अन्य चर्चित हस्तियों को इस काम के लिए नामित किया है। अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के एक दिवसीय दौरे पर पहुंचे मोदी ने जनसभा को सम्बोधित करते हुए गांगुली को स्वच्छ भारत अभियान में शामिल होने का न्यौता दिया। मोदी के न्यौते को स्वीकार करते हुए गांगुली ने कहा, ‘यह एक अच्छा काम है। मैं जब स्वदेश लौटूंगा तब उपयुक्त तरीके से इस अभियान में हिस्सा लूंगा।’ गांगुली अभी बतौर कमेंटेटर आस्टेÑलिया में हैं। वह भारत तथा आस्टेÑलिया की क्रिकेट टीमों के बीच जारी चार मैचों की टेस्ट सीरीज के तीसरे मैच के कमेंटरी के लिए मेलबर्न में हैं। गांगुली ने कहा, ‘हमारा देश विशाल है। यहां सफाई एक प्रमुख मुद्दा है। सफाई जरूरी है। मैं सफाई अभियान से जुड़ने के लिए तैयार हूं लेकिन राजनीति में आने का मेरा कोई इरादा नहीं है।’ इससे पहले भी मोदी कई खेल हस्तियों को इस काम के लिए नामित कर चुके हैं। इनमें भारत रत्न से अलंकृत महान क्रिकेट स्टार सचिन तेंदुलकर, सुरेश रैना, मोहम्मद कैफ आदि प्रमुख हैं।

आस्ट्रेलियाई मेम ने चुना ‘बिहारी’ दूल्हा

आजकल इस आधुनिकता के दौर में जहां भारतीय पाश्चात्य संस्कृति के कायल होते जा रहे हैं, वहीं विदेशियों को भारतीय संस्कृति खूब भा रही है। यही कारण है कि विदेशी मेमों (लड़कियों) को अब भारतीय दूल्हा भी खूब पसंद आने लगा है।
ऐसा ही एक विवाह बिहार के गया जिले के विश्व प्रसिद्ध पर्यटक स्थल बोधगया के एक मंदिर में संपन्न हुआ, जहां बोधगया के न्यू तारीडीह गांव निवासी 30 वर्षीय अनिरुद्ध कुमार आस्ट्रेलियाई लड़की  मिरिंडा मिल्सन के साथ पूरे हिंदू रीति-रिवाज के साथ परिणय सूत्र में बंध गए। इस मौके पर अनिरुद्ध के पूरे परिजन भी उपस्थित थे। बोधगया स्थित जगन्नाथ मंदिर में दोनों ने सात फेरे लिए और जन्मों तक एक-दूसरे के साथ रहने की कसमें खार्इं।
अनिरुद्ध बताते हैं कि भारतीय संस्कृति के कायल मिरिंडा को पढ़ाई के दौरान ही भारतीय संस्कृति एवं पवित्र ग्रंथों का अध्ययन करने का मौका मिला था। उसके बाद वे भारतीय संस्कृति से काफी प्रभावित हुई। मिरिंडा करीब डेढ़ वर्ष पूर्व पर्यटक के तौर पर बोधगया घूमने आई थी। इसी दौरान गाइड का काम कर रहे अनिरुद्ध से उसकी दोस्ती हुई। इस दौरान परिचय हुआ और ई-मेल और मोबाइल नम्बर का आदान-प्रदान हुआ। उस समय मिरिंडा करीब 15 दिनों तक बोधगया के आसपास घूमते रहीं। इसके बाद मिरिंडा वापस आस्ट्रेलिया चली गर्इं, मगर दोनों के बीच मोबाइल और ई-मेल के जरिए बात होता रहा।
इस दौरान उनकी दोस्ती प्यार में बदल गई। प्रीत की डोरी में बंधी मिरिंडा इसके बाद लगातार भारत आने लगी और दोनों में मुलाकात होती रही। इस दौरान दोनों परिणयसूत्र में बंधने का फैसला ले लिया। दोनों 14 सितंबर को कोलकता की अदालत में हिंदू मैरेज एक्ट के तहत शादी कर ली। इस बीच मिरिंडा ने अपना नाम परिवर्तन कर प्रेमतीर्थ बन गई। अब मिरिंडा को प्रेमतीर्थ से ही पुकारा जाना अच्छा लगता है। प्रेमतीर्थ कहती हैं कि भारत में की गर्इं शादियां सात जन्मों तक का साथ होता है। प्रेमतीर्थ ने कहा, ‘मेरे परिजन इस विवाह में भले ही शरीक नहीं हुए हैं, लेकिन उनकी रजामंदी से ही यह विवाह हुआ है।’ इधर, अनिरुद्ध के परिजन भी इस विवाह से खुश हैं। उनके पिता वासुदेव का कहना है, ‘हमारा परिवार इस विवाह से खुश है। मिरिंडा के साथ जीवन तो मेरे बेटे को गुजारना है। उसकी पसंद परिजनों की भी पसंद है।’ इस विवाह में स्थानीय कुछ लोग बराती बने और कुछ सराती बन गए। महिलाओं ने मंगल गीत गाए और सिंदूरदान का रिवाज भी निभाया गया। मंदिर के प्रबंधक हरेंद्र कुमार कहते हैं कि दोनों ने रजामंदी से विवाह के लिए आवेदन दिया था। विवाह के बाद दरिद्र नारायण भोज का आयोजन किया गया। इसी तरह एक वर्ष पूर्व बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के मधुकुंज निवासी मयंक ने दक्षिण कोरियाई युवती सोंगा से विवाह किया था।

अखिलेश ने 6 महीने में मोदी को लिखे 66 पत्र

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को छह महीने में 66 पत्र लिखे हैं। यह बात भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर नागवार गुजरी। पार्टी ने आरोप लगाया कि अखिलेश अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए प्रधानमंत्री को लगातार पत्र लिख रहे हैं, यह ठीक बात नहीं है।
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता ने कहा कि प्रदेश में अराजकता अपने चरम पर है। प्रदेशवासी दहशत में हैं। विकास कार्य ठप हैं। व्यवस्था सुधारने के नाम पर सिर्फ अधिकारियों का स्थानांतरण किया जा रहा है। रामपुर और सैफई महोत्सव में प्रदेश की गाढ़ी कमाई बर्बाद हो रही है। विजय बहादुर पाठक ने कहा कि केंद्र में संप्रग सरकार के दौरान और प्रदेश में सपा सरकार के ढाई वर्षों में उत्तर प्रदेश को क्या मिला, इसका जबाब प्रदेश की जनता चाहती है। प्रवक्ता ने कहा, ‘मुख्यमंत्री अभी भी लड़कपन छोड़ नहीं पा रहे हैं और अपनी जिम्मेदारियों से भाग रहे हैं। मुख्यमंत्री केवल कुर्तकों का सहारा लेते हंै और राजनैतिक मयार्दाओं का भी ध्यान नहीं रखते।’ उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव के शासनकाल में किसान त्रस्त है, बिजली आपूर्ति बदहाल है, उर्वरक की उपलब्धता नहीं हो पा रही है और किसानों को बकाये का भुगतान नहीं हुआ है। सही तरीके से धान की खरीद भी नहीं हो पा रही है। उल्लेखनीय है कि समाजवादी पार्टी ने सवाल उठाया है कि देश की सबसे संसद में ज्यादा सांसद भेजने वाले उत्तर प्रदेश को केंद्र की भाजपा सरकार ने छह महीने में अब तक क्या दिया है?  

घर वापसी मोदी के विकास एजेंडे में सहायक: विहिप

विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुरेंद्र जैन कहते हैं कि बुर्का पहनने वाली लड़कियां जिन्हें सीमित शिक्षा उपलब्ध है तथा वैसे लड़के जो मदरसा में आतंकवादी बनते हैं, उन्हें हिंदू बन जाने पर ‘घर वापसी’ कार्यक्रम से लाभ मिलेगा।
घर वापसी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्रीय विकास के एजेंडे का एक अनुपूरक बताते हुए जैन ने कहा कि मुस्लिम लड़के अगर घर वापसी कार्यक्रम के जरिए हिंदू धर्म अपनाएंगे तो वह देशभक्त बन जाएंगे। हरियाणा के रोहतक कॉलेज के सेवानिवृत्त प्राध्यापक जैन ने कहा, ‘घर वापसी मोदी के विकास एजेंडे को सकारात्मक रूप में प्रभावित करेगा। मुस्लिम लड़कियां जिन्हें शिक्षा नहीं मिली और बुर्का पहनती हैं, जब वे हिंदू बनेंगी और शिक्षित होंगी, वे देश के विकास में योगदान देंगी।’ उन्होंने कहा कि मदरसा में आतंकवादी बनने वाले मुस्लिम हिंदू बनने के बाद देश भक्त बन जाएंगे और देश के विकास में योगदान देंगे, जिसके कारण केंद्र सरकार को आतंकवाद के खिलाफ अभियान में पैसे खर्च नहीं करने पड़ेंगे। जैन ने कहा कि 1964 से विहिप के गठन के बाद घर वापसी इसके सामाजिक सेवा कार्यक्रम का मुख्य हिस्सा रहा है।
हिंदू धर्म से निकल कर अन्य धर्म अपनाने वालों के दोबारा हिंदू धर्म अपनाने से संबंधित घर वापसी कार्यक्रम को जैन वैध ठहराते हैं। जैन ने कहा, ‘भारत में मौजूद करीब 90-95 फीसदी ईसाई और मुस्लिम मुख्यत: हिंदू थे, क्योंकि उनके पुरखे या उनका जबरन या लालच देकर धर्मांतरण कराया गया। हम अब उन्हें सिर्फ उनकी जड़ और जमीन से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।’ फतेहपुर जिले में विहिप के साल भर चलने वाले स्वर्ण जयंती के जश्न को लेकर 14 जनवरी से 16 फरवरी तक घर वापसी के कई कार्यक्रम आयोजित होंगे। पिछले सप्ताह गुजरात में 200 जनजाति ईसाईयों को रीति-रिवाज के साथ हिंदू धर्म में परिवर्तित किया गया। केरल और पूर्वी उत्तर प्रदेश से भी ऐसी ही खबरें आ रही हैं, जहां 100 मुस्लिम परिवारों का धर्मांतरण कराया गया।
जैन ने कहा, ‘विहिप घर वापसी किसी भी तरह के दबाव या लालच में नहीं करा रहा। इसके विपरीत इस्लामिक संगठन जिसे खाड़ी के देशों से पैसे मिलते हैं, और ईसाई मिशीनरीज जिसे  यूरोप और अमेरिका से समर्थन मिलता है, उसके विपरीत हम किसी को प्रलोभन नहीं दे रहे, क्योंकि न तो हमारे पास पैसा और ताकत है। फिर ऐसी सेवा किस प्रकार गलत और अवैध हो सकती है।’ उन्होंने कहा, ‘घर वापसी वैध है। आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण विरोधी कानून मौजूद हैं।’ जैन ने कहा कि घर वापसी कार्यक्रम उस वक्त भी होते थे, जब जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी की केंद्र में सरकार थी। उन्होंने कहा, ‘अब इस मुद्दे को क्यों उठाया जा रहा है?’ उन्होंने धर्मांतरण के मुद्दे पर मोदी के इस्तीफे देने की धमकी की अफवाह को आधारहीन करार देते हुए कहा कि घर वापसी प्रधानमंत्री के सलाह मशविरे पर कभी आयोजित नहीं की गई है। उन्होंने कहा, ‘यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया है जो भविष्य में भी जारी रहेगी।’

राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ रहा कश्मीर?

जम्मू एवं कश्मीर में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलने के कारण त्रिशंकु विधानसभा में सरकार गठन को लेकर असमंजस जारी है। हिंदू मुख्यमंत्री की शर्त रखने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन को लेकर न तो पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और न ही नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) उत्सुक दिख रही है। गतिरोध यूं ही जारी रहा तो राज्य में राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति शासन के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचता।
सरकार बनाने को लेकर कोई आश्वस्त नहीं दिख रहा है। किसी को यह भी मालूम नहीं कि कौन-सी पार्टी या कौन-सा गठबंधन मिलकर 87 सीटों वाली त्रिशंकु विधानसभा में सरकार बनाने की पहल करेगा। विधानसभा चुनाव में पीडीपी को 28, भाजपा को 25 तथा सत्तारूढ़ नेकां को 18 और कांग्रेस को 12 सीटें मिलीं। छोटी पार्टियां तथा निर्दलीय को सात सीटें मिली हैं।
‘मिशन 44+’ के साथ चुनाव में उतरी भाजपा भले ही 25 सीटों पर सिमट गई हो, मगर सत्ता पाने की सबसे ज्यादा ललक यही पार्टी दिखा रही है। राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्व प्रवक्ता और अब भाजपा के महासचिव राम माधव इन दिनों कश्मीर में डेरा डाले हुए हैं। वह सरकार बनाने की संभावनाएं तलाश रहे हैं और गुरुवार को केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली भी पर्यवेक्षक बनकर यहां पहुंचे थे। चुनाव के पहले सभी पार्टियों के अपने-अपने दावे थे, लेकिन नया जनादेश आने के बाद सबके मंसूबों पर पानी फिर गया है।
राज्य विधानसभा में बहुमत के लिए 44 सीटें चाहिए। अब सवाल यह उठता है कि सरकार बनाने के लिए कौन सी दो पार्टियां गलबहियां करेंगी। शुरुआत में लगा कि नेकां और भाजपा किसी समझौते पर पहुंच चुकी है। उमर अब्दुल्ला के 24 दिसंबर को दिल्ली जाने को लेकर कई अटकलें लगाई गर्इं, लेकिन जब उमर श्रीनगर पहुंचे, तो उनके कुछ विधायकों ने भाजपा के साथ गठबंधन का विरोध किया। इसके अलावा, हिंदू मुख्यमंत्री की भाजपा की शर्त को लेकर भी कश्मीर घाटी में असमंजस है।
इसके बाद मीडिया का ध्यान महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी पर गया। गुरुवार को भाजपा महासचिव राम माधव के श्रीनगर पहुंचने के बाद वरिष्ठ पीडीपी नेता तथा सांसद मुजफ्फर हुसैन बेग ने उनके साथ दो दौर की बातचीत की। पीडीपी प्रवक्ता बेग ने स्पष्ट किया कि वह राम माधव से व्यक्तिगत तौर पर मिले थे, न कि पीडीपी के मध्यस्थ के तौर पर।
मगर बात बनती नजर नहीं आ रही है। असमंजस की बात यह है कि नेकां और पीडीपी दोनों का जनाधार मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी में है। ऐसे में वह हिंदू बहुल जम्मू क्षेत्र से मुख्यमंत्री की भाजपा की शर्त मानकर अपने मतदाताओं को नाराज कैसे करे। यही वजह है कि भाजपा के साथ गठबंधन की बात स्वीकार करने में दोनों पार्टियां संकोच बरत रही हैं। हालांकि भाजपा को उनसे हाथ मिलाने में कोई संकोच नहीं है, क्योंकि उसे किसी भी तरह सत्ता चाहिए। नेकां तथा पीडीपी के तेवर देखकर जम्मू एवं कश्मीर में तत्काल सरकार गठन की संभावना नजर नहीं आ रही है।
सवाल कई हैं। घाटी के लोगों के समर्थन की कीमत पर क्या दोनों पार्टियां भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर तैयार होंगी? भाजपा को सत्ता से अलग रखने के लिए क्या पीडीपी, नेकां तथा कांग्रेस आपस में हाथ मिलाएंगे, जैसा कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने सुझाव दिया है? इन सवालों के जवाब तभी मिलेंगे, जब जम्मू एवं कश्मीर में सरकार बनाने की कोई पहल करे। मौजूदा हालात तो राष्टÑपति शासन की ओर ही इशारा कर रहे हैं।

ताजमहल और हुमायूं के मकबरे के लिए ई-टिकटिंग शुरू

केन्द्रीय संस्कृति (स्वतंत्र प्रभार), पर्यटन (स्वतंत्र प्रभार) तथा नागर विमानन राज्य मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने शुक्रवार को आगरा के ताजमहल और नई दिल्ली के हुमायूं के मकबरे के लिए ई-टिकटिंग लांच किया।
उन्होंने नौ अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों पर आने वाले विदेशी पर्यटकों के लिए विशेष वेलकम कार्ड के साथ 247 का अतुल्य भारत हेल्पलाइन भी लांच किया। नई दिल्ली में एक समारोह में शर्मा ने गुड गवर्नेंस दिवस समारोह के हिस्से के रूप में अतुल्य भारत कलेंडर-2015 का उद्घाटन भी किया।
इस अवसर पर डॉ. शर्मा ने कहा कि आज उठाए गए कदमों से पर्यटन को फिर से लांच करने तथा दुनिया के सभी कोनों में भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को ले जाने की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई। उन्होंने कहा कि जनवरी-नवम्बर-2014 में कुल 6.8 लाख यात्री भारत आए, यह संख्या पिछले एक दशक में नवम्बर महीने तक आने वाले यात्रियों की सबसे अधिक संख्या है। यह पिछले वर्ष की तुलना में 7.1 प्रतिशत की वृद्धि दिखाती है। इसी तरह 2014 की जनवरी से नवम्बर अवधि में पर्यावरण से विदेशी मुद्रा आय एक लाख करोड़ रुपये को पार कर गई। पिछले वर्ष इसी अवधि की विदेशी मुद्रा आय की तुलना में यह 12.1 प्रतिशत की वृद्धि है।
पर्यटन मंत्री ने कहा कि 2014 पर्यटन उद्योग के लिए ऐतिहासिक वर्ष बना रहेगा क्योंकि सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक ट्रेवल आॅथराइजेशन (ईटीए) के जरिए आगमन पर पर्यटक वीजा (टीवीओए) का पहला चरण लागू किया। इसके परिणामस्वरूप 27 नवम्बर, 2014 को लांच किए जाने के बाद से लगभग 16 हजार वीजा जारी किए गए। उन्होंने कहा कि सरकार 5 टूरिस्ट सर्किट-गंगा सर्किट, कृष्णा सर्किट, बुद्ध सर्किट, पूर्वोत्तर सर्किट तथा केरल सर्किट विकसित करेगी। इनके लिए चालू वर्ष के बजट में 500 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। अध्यात्म से जुड़े पर्यटन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए डॉ. शर्मा ने कहा कि धार्मिक यात्रा के कायाकल्प तथा आध्यात्मिक सुदृढ़ीकरण और हेरिटेज सिटी विकास के लिए सरकार ने दो नई योजनाएं- प्रसाद और हृदय बनायी हैं।
उन्होंने जोर देते हुए कहा कि पर्यटन और संस्कृति के क्षेत्र में सुरक्षा, स्वच्छता और आतिथ्य सत्कार के मामले में कोई समझौता नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार का विजन पर्यटन के जरिए आतंकवाद का मुकाबला करने का है। संस्कृति और पर्यटन मंत्री ने आज स्वच्छ भारत स्वच्छ स्मारक ई-पोस्टर, बढ़ते कदम-हुनर से रोजगार विषय पर पुस्तिका, स्वच्छ भारत स्वच्छ पकवान (हुनर जायका), ग्वालियर गंतव्य विकास मेगा परियोजना, दिल्ली के स्मारकों पर ब्रेल पुस्तक और 25 स्मारकों वाली आदर्श स्मारकें पहल को भी लांच किया।

Friday 26 December 2014

असम में जख्म बनता नासूर

हमें आजादी की सांस लिए 67 साल हो गये हैं। इस बीच देश की आवाम को तरह-तरह के प्रयोगों से गुजरने को बाध्य होना पड़ा है। पड़ोसी राष्ट्रों से तीन-तीन युद्ध, अभिव्यक्ति के अपहरण वाला आपातकाल, खालिस्तान निर्माण का शंखनाद, बाबरी मस्जिद विध्वंस, मण्डल आयोग और कट््टर जातिवादी राजनीति के प्राकट्य के साथ ही छत्तीसगढ़ और असम जैसी दुर्दान्त वारदातों ने राष्ट्र-राज्य के नरम नहीं, बल्कि देशवासियों के भी निहायत कमजोर होने के प्रमाण दिए हैं।
आज राष्ट्र और राष्ट्रवाद दोनों ही शब्द खुली लूट का पर्याय बन चुके हैं। राजनीति में तुष्टिकरण जाति और धर्म के आधार पर इतना बढ़ा कि बहुसंख्यक नागरिक समाज को लगा कि उसका सांस्कृतिक प्रभुत्व खतरे में है। मुल्क में घुसपैठ के चलते हम अपनी अस्मिता की सनातन पहचान भी खोते जा रहे हैं। पिछले कुछ दशकों से देश में हिन्दुत्ववाद का एजेंडा राजनीति में प्रायोजित तरीके से लाया गया है। एक सतही किस्म के राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक बोध ने सत्ता को साम, दाम, दण्ड, भेद के कुटिल प्रतिमानों में बदल दिया है, जिसकी परिणति हम अयोध्या और गुजरात प्रकरण में देख चुके हैं। असम के गैर बोडो आदिवासियों के खिलाफ नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आॅफ बोडोलैण्ड के हालिया हमलों ने एक बार फिर हमें बहुत कुछ सोचने को विवश कर दिया है। देखा जाए तो हम सीमा पार से चलाए जा रहे आतंकवाद की बात तो करते हैं लेकिन मुल्क में सक्रिय आंतरिक आतंकवाद को गम्भीरता से कभी नहीं लेते। यही वजह है कि कई दशकों से हिंसा की आग में झुलस रहे असम के इस नासूर को जड़ से खत्म करने की ईमानदार कोशिश कभी नहीं हुई। देखा जाए तो एनडीएफबी (एस) की बर्बरता किसी मायने में तालिबान से कम नहीं है क्योंकि इसमें निर्दोष महिलाओं और बच्चों को निशाना बनाया जा रहा है। इसे विडम्बना ही कहेंगे कि दशकों से हिंसा से जूझ रहे असम की समस्याओं को केन्द्र सरकार ने कभी गम्भीरता से नहीं लिया। यहां तक कि हमारा मीडिया भी इन क्रूरतम वारदातों को ज्यादा तरजीह नहीं देता। देखा जाए तो असम में इतने चरमपंथी धड़े सक्रिय हो गये हैं कि एक गुट से बात की जाए तो दूसरा हथियार उठा लेता है। यही वजह है कि असम जैसे राज्यों में हत्या, आगजनी, अपहरण और विस्फोटों का सिलसिला अनवरत जारी है। अब सवाल यह उठता है कि असम जैसे छोटे से राज्य में हथियारों का बड़ी मात्रा में जखीरा कहां से उपलब्ध हो रहा है? कौन इन चरमपंथी संगठनों को धन मुहैया करा रहा है?
यह सिर्फ असम की शांति का ही प्रश्न नहीं है बल्कि इससे देश की सुरक्षा को भी गंभीर खतरा पैदा हो गया है। असम में घुसपैठ की आग आज दावानल बन चुकी है। इस आग में लम्बे अर्से से निर्दोष लोग हताहत हो रहे हैं। सितम्बर 2012 के नरसंहार की वेदना से लोग अभी उबरे भी नहीं  कि एक बार फिर बोडो बाहुल्य इलाका खूनी मंजर से दहल उठा है। प्रथम दृष्टया इसे लोग महज एक आतंकी करतूत मान रहे हैं लेकिन इसके मूल में बोडो टेरीटोरियल डेवलपमेंट अथॉरिटी चुनाव में बोडो उम्मीदवार की सम्भावित पराजय का अंदेशा ही है। असम में बार-बार आतंकी वारदातों की वजह हमारी हुकूमतों की अकर्मण्यता और बांग्लादेश से हो रही घुसपैठ मुख्य वजह है। असम में आतंकी करतूतों पर नकेल कसने के लिए 15 अगस्त, 1985 को केन्द्र सरकार के साथ असम समझौता हुआ था। इस समझौते में जनवरी 1966 से मार्च 1971 के बीच असम में आए लोगों को यहां रहने की इजाजत तो थी लेकिन उन्हें आगामी 10 साल तक मत देने का अधिकार नहीं था।  इतना ही नहीं समझौते में यह भी तय हुआ था कि 1971 के बाद राज्य में घुसे बांग्लादेशियों को यहां से खदेड़ा जाएगा। अफसोस 29 साल बीत जाने के बाद भी उस समझौते पर अमल नहीं हुआ। अलबत्ता असम में बांग्लादेश और म्यांमार से घुसपैठ निरंतर जारी है। चौंकाने वाली बात तो यह है कि ये घुसपैठिये भारतीय नागरिकता भी आसानी से हासिल कर रहे हैं। असम में घुसपैठ की मुख्य वजह 170 किलोमीटर का स्थल और 92 किलोमीटर की खुली जल सीमा है जिसके जरिए लम्बे समय से मुल्क में घुसपैठ जारी है। इस खुली सीमा का न केवल घुसपैठिये फायदा उठा रहे हैं बल्कि बेखौफ खून की होली भी खेल रहे हैं। असम में बाहरी घुसपैठ का सिलसिला एक सदी से भी अधिक पुराना है। सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि 1951 से 1971 के बीच दो दशक में 37 लाख से अधिक बांग्लादेशी मुसलमान न केवल असम में प्रवेश पाने में सफल हुए बल्कि यहीं उन्होंने अपना ठौर-ठिकाना भी बना लिया। 1970 के दशक में घुसपैठियों को असम से खदेड़ने के लिए कुछ सार्थक प्रयास हुए थे लेकिन राज्य के कोई तीन दर्जन मुस्लिम विधायकों ने देवकांत बरुआ को आगे कर मुख्यमंत्री विमल प्रसाद चालिहा के खिलाफ आवाज बुलंद कर दी। उस वाक्ये के बाद असम और केन्द्र की किसी हुकूमत ने इतने बड़े वोट बैंक को भारत से खदेड़ने की हिम्मत नहीं जुटाई। आज असम में जारी घुसपैठ मुल्क के लिए नासूर बन चुकी है। देश में अवांछित लोगों की वजह से न केवल संसाधनों का निरंतर टोटा पड़ रहा है बल्कि हमारी पारम्परिक संस्कृति, संगीत और लोकाचार भी प्रभावित हो रहा है। असम में स्थितियां अनियंत्रित हैं, तो दूसरी तरफ हमारी हुकूमतों में इच्छाशक्ति का बेहद अभाव है। यह स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। असम में दो साल पहले हुए खूनी खेल और आज का नरसंहार मामूली अपराध नहीं है। सच तो यह है कि असम में जो आज हो रहा है वह दो संस्कृतियों के टकराव का ऐसा विद्रूप चेहरा है जिसे समय रहते नहीं रोका गया तो ये खूनी कारगुजारियां दूसरे सूबों को भी अपनी जद में ले लेंगी। हमारे राजनीतिज्ञों को कुर्सी की जगह वतन की फिक्र करनी चाहिए। रोज-रोज का यह खून-खराबा जिस तरह मुल्क को कमजोर कर रहा है वह किसी मायने में लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है।

Wednesday 24 December 2014

अटल्ला से अटल तक

ग्वालियर और बहादुरा के लड्डू
समय दिन-तारीख देखकर आगे नहीं बढ़ता। वह चलायमान है। 90 साल पहले ग्वालियर में जिस अटल्ला का अवतरण हुआ था वह शख्स आज भारतीय राजनीति का अजातशत्रु है। हर साल 25 दिसम्बर की तारीख आती है। दुनिया क्रिसमस का त्योहार तो राजनीतिज्ञ भारतीय राजनीति के अटल पुरोधा अटल बिहारी बाजपेयी का जन्मोत्सव मनाना नहीं भूलते। भारतीय राजनीति के क्षितिज पर अटल का अवतरण एक सुखद लम्हे की मानिंद है। स्वच्छ छवि, कविमना, पत्रकार, सरस्वती पुत्र अटल बिहारी वाजपेयी, एक व्यक्तिका नाम नहीं वरन उस राष्ट्रीय विचारधारा का नाम है, जिसने अपनी कार्यशैली से राजनेताओं को नैतिकता का न केवल पाठ पढ़ाया बल्कि उसे ताउम्र जिया भी।
अटल जी के जन्मदिन को लेकर बेशक भ्रांतियां हों पर सरकारी दस्तावेजों में अटल जी का जन्म 25 दिसम्बर, 1924 को ब्रह्ममुहूर्त में ग्वालियर में हुआ था। पुत्र होने की खुशी में जहां बाजपेयी परिवार में फूल की थाली बजाई जा रही थी वहीं पास के गिरजाघर में घंटियों और तोपों की आवाज के साथ प्रभु ईसा मसीह का जन्मोत्सव मन रहा था। अटल नाम उनके बाबा श्यामलाल बाजपेयी का दिया हुआ है। उनकी मां कृष्णादेवी प्यार-दुलार से उन्हें अटल्ला कहकर पुकारती थीं। अटल के पिता पंडित कृष्ण बिहारी बाजपेयी न केवल शिक्षक थे बल्कि उनकी हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी भाषाओं में मजबूत पकड़ थी। विद्वान पंडित कृष्णबिहारी बाजपेयी का ग्वालियर राज्य के सम्मानित कवियों में भी शुमार था। कालान्तर में उनके द्वारा रचित ईश प्रार्थना मध्यप्रदेश के सभी विद्यालयों में कराई जाती थी। डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन कविमना पंडित कृष्णबिहारी बाजपेयी के शिष्य थे। यह कहना अतिश्योक्तिन होगी कि अटल जी को कवि रूप विरासत में मिला है।
अटल जी की शिक्षा-दीक्षा ग्वालियर में ही हुई। 1939 में जब वे ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज (अब एसएलबी) में अध्ययन कर रहे थे तभी से वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में जाने लगे थे। वह अपने मित्र खानवलकर के साथ प्रत्येक रविवार को आर्यकुमार सभा के कार्यक्रमों में भाग लेते थे। यहीं उनकी मुलाकात शाखा के प्रचारक नारायण जी से हुई। अटल जी उनसे बहुत प्रभावित हुए और रोज शाखा जाने लगे। 1942 में लखनऊ शिविर में अटल जी ने अपनी कविता हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, जिस ओजस्वी और तेजस्वी शैली में पढ़ी थी उसकी अनुगूंज आज भी लोगों के जेहन में है। सच कहें तो अटल जी की वाणी ही उनकी पहचान है, यही वजह है कि उनका भाषण सुनने लोग दूर-दूर से आते थे। भाषण के बीच व्यंग्य-विनोद की फुलझड़ियां श्रोताओं के मन में कभी मीठी गुदगुदी तो कभी ठहाकों के साथ प्रफुल्लित कर देती हैं। जनश्रुतियों पर यकीन करें तो अटल जी ने अपना पहला भाषण कक्षा पांच में पढ़ाई के समय दिया था। उस दिन रट कर भाषण देने की अटकन ने ही अटल को अटल वक्ता बना दिया। उच्चकोटि की वक्तव्य शैली के चलते ही अटल जी वाद-विवाद प्रतियोगिताओं के सरताज बने।
मीठा खाए, मीठा बोले
अटल जी स्वादिष्ट भोजन के प्रेमी हैं। मिठाई तो उनकी मानों कमजोरी रही है। वह ग्वालियर में जब भी रहे बहादुरा के लड्डू खाना कभी नहीं भूले। काशी से जब चेतना दैनिक का प्रकाशन हुआ तो अटल जी उसके संपादक नियुक्त किये गये। शाम को प्रेस से लौटते समय राम-भंडार नामक मिठाई की दुकान पड़ती थी। उस दुकान के मीठे परवल सभी को बहुत पसंद थे। अटल जी भी उसके दीवाने थे किन्तु उस समय इतने पैसे नहीं हुआ करते थे कि रोज खाया जाए। यही वजह है कि दुकान आने से पहले ही वह कहने लगते थे कि आंखें बन्द कर लो वरना ये परवल बड़ी पीड़ा देंगे।
लेखन में भी कोई जवाब नहीं
अटल जी का लेखन में भी कोई तोड़ नहीं है। वह लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे और उनका सम्पादन भी किया। ये निर्विवाद सत्य है कि अटल जी नैतिकता का पर्याय हैं। वह पहले कवि और साहित्कार उसके बाद राजनीतिज्ञ हैं। उनकी इंसानियत कवि मन की कायल है।
छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता,
टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता।
मन हार कर मैदान नहीं जीते जाते,
न मैदान जीतने से मन ही जीता जाता है।
अटल जी एक सच्चे इंसान और लोकप्रिय जननायक हैं। वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से परिपूर्ण, सत्यम-शिवम-सुन्दरम के पक्षधर अटल जी का सक्रिय राजनीति में पदार्पण 1955 में हुआ।  वे देशप्रेम की अलख जगाते हुए 1942 में जेल भी गए। अटल जी का सादा जीवन, उच्च विचार, सत्यनिष्ठा और नैतिकता ही वे खूबियां हैं जिनके विरोधी भी हमेशा कायल रहे हैं।
1994 में मिला सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान
अटल जी की साफ-सुथरी छवि और सबको साथ लेकर चलने की इच्छाशक्ति के चलते ही उन्हें 1994 में सर्वश्रेष्ठ सांसद एवं 1998 में सबसे ईमानदार व्यक्ति का सम्मान हासिल हुआ। 1992 में पद्मविभूषण जैसी बड़ी उपाधि से अलंकृत अटल जी को 1992 में ही हिन्दी गौरव के सम्मान से नवाजा गया। राजनीति के क्षेत्र में अटल जी ने कई नए आयाम स्थापित किए। वे देश के पहले विदेश मंत्री हैं जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ मे हिन्दी में भाषण देकर भारत को गौरवान्वित किया था। वह राष्ट्रीय भाषा हिन्दी के प्रबल पक्षधर हैं।
गूंजी हिन्दी विश्व में,
स्वप्न हुआ साकार।
राष्ट्र संघ के मंच से,
हिन्दी का जयकार।
हिन्दी का जयकार,
हिन्द हिन्दी में बोला।
देख स्वभाषा प्रेम,
विश्व अचरज से डोला।
पांच साल रहे जनसंघ के अध्यक्ष
अटल जी भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वालों में से एक हैं और 1968 से 1973 तक उसके अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ किया था और उस संकल्प को उन्होंने पूरी निष्ठा से निभाया।
1955 में लड़ा पहला चुनाव
अटल जी ने सन 1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था परन्तु सफलता नहीं मिली। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और 1957 में बलरामपुर  (उत्तर प्रदेश) से जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में विजयी होकर लोकसभा में पहुंचे। सन 1957 से 1977 तक जनता पार्टी की स्थापना तक वे बीस वर्ष तक लगातार जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। मोरारजी देसाई की सरकार में 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे और विदेशों में भारत की छवि को निखारा। लोकतंत्र के सजग प्रहरी अटल बिहारी वाजपेयी ने 1997 में प्रधानमंत्री के रूप में देश की बागडोर संभाली। 19 अप्रैल, 1998 को पुन: प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और उनके नेतृत्व में 13 दलों की गठबन्धन सरकार ने पांच वर्षों में देश के अन्दर प्रगति के नए आयाम छुए। वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री पद के पांच साल बिना किसी समस्या के पूरे किए। उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मंत्री थे।
कभी न विचलित होने वाला शख्स
परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों की सम्भावित नाराजगी से विचलित हुए बिना उन्होंने अग्नि-दो परमाणु परीक्षण कर देश की सुरक्षा के लिये साहसी कदम भी उठाये। 1998 में राजस्थान के पोखरण में भारत का द्वितीय परमाणु परीक्षण किया जिसे अमेरिका की सीआईए को भनक तक नहीं लगने दी। अटल जी नेहरू युगीन संसदीय गरिमा के स्तम्भ हैं। जननायक अटल जी का उदार मन, आज की गलाकाट संस्कृति से बिल्कुल परे है। आत्मीयता की भावना से ओत-प्रोत, विज्ञान की भी जय-जयकार करने वाले, लोकतंत्र के सजग प्रहरी, राजनीति के मसीहा अटल जी को ईश्वर स्वस्थ दीर्घायु प्रदान करे।

देश का अन्नदाता आत्महत्या को मजबूर

किसानों की आत्महत्या करने की संख्या महज आंकड़े नहीं बल्कि यह त्रासद समय से गुजर रहे किसानों की जिंदगी की भयावह तस्वीर है जो सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि की मार एवं कर्ज के जाल में फंसे देश के अन्नदाता की दयनीय स्थिति बयां करते हैं।
कृषि मंत्रालय एवं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2009 में 17,368, वर्ष 2010 में 15,694, वर्ष 2011 में 14,027, वर्ष 2013 में 11,772 किसानों के आत्महत्या की सूचना मिली। इनमें से कृषि वजहों से 2009 में 2,577, 2010 में 2,359, वर्ष 2011 में 2,449 वर्ष 2012 में 918 और वर्ष 2013 में 510 आत्महत्या के मामले शामिल हैं।
महाराष्ट्र सरकार ने कृषि संबंधी समस्याओं के चलते इस वर्ष अक्टूबर तक 724 किसानों की आत्महत्या करने की सूचना दी है। तेलंगाना में 84 किसानों के आत्महत्या करने, जबकि कर्नाटक में 19 तथा गुजरात, केरल और आंध्रप्रदेश में तीन-तीन किसानों के आत्महत्या करने की सूचना है। वर्ष 2013 में महाराष्ट्र में 511 किसानों के आत्महत्या की सूचना थी जबकि 2012 में इनकी संख्या 407 थी। संसद में भी विभिन्न दलों के नेताओं ने इस विषय को उठाया है। विदर्भ जनांदोलन समिति के संयोजकों में शामिल किशोर तिवारी ने कहा कि तीन दशक पहले तक पारंपरिक खेती होती थी और फसलों का बेहतर संतुलन रहता था। लेकिन फिर सरकार नकदी फसलों की नीति लेकर आई। किसानों को नकदी फसलों की ओर सरकार ने आगे बढ़ाया। लेकिन जब से नकदी फसलों पर सब्सिडी समाप्त हुई तब से किसान पूरी तरह से बाजार की दया पर आ गया है।
बुंदेलखंड विकास समिति के संयोजक आशीष सागर ने कहा कि बुंदेलखंड एवं देश के अन्य क्षेत्रों में सिंचाई के साधनों का अभाव है, लेकिन भूजल का जबर्दस्त दोहन जारी है। जब जमीन के अंदर पानी नहीं होगा और खराब मानसून के कारण बारिश कम होने से सिंचाई नहीं होगी तब फसलें बर्बाद होंगी और इसका सीधा असर किसानों पर पड़ता है और उनके समक्ष कोई विकल्प नहीं बचता।
सागर ने दावा किया कि 20 प्रतिशत किसानों ने ही बैंकों से कर्ज लिया है, जबकि 80 प्रतिशत किसानों ने साहूकारों से कर्ज लिया है। ब्याज की दर इतनी अधिक है कि निरीह किसान कभी भी इनके जाल से नहीं निकल पाता है और आत्महत्या को मजबूर होता है। गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षांे में सरकार ने किसान की ऋण माफी समेत काफी बड़ा पैकेज दिया, लेकिन किसानों की आत्महत्या का सिलसिला नहीं रुक रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, कृषि संबंधी समस्याओं के चलते इस वर्ष 800 से अधिक किसानों के आत्महत्या की सूचना है और ऐसे मामलों की ज्यादातर खबरें महाराष्ट्र से रही हैं। कृषि क्षेत्र के पुनरुद्धार और किसानों की हालत में सुधार के लिए केंद्र सरकार ने कई कदम उठाए हैं जिनमें ग्रामीण क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश बढ़ाना, अवसंरचना विकास, बाजार तक पहुंच बढ़ाना से लेकर विपणन आदि शामिल हैं। कृषि मंत्रालय शीघ्र ही एक नयी फसल बीमा सिंचाई योजना एवं हर खेत को पानी पहुंचाने के लिए सिंचाई योजना शुरू करने जा रही है, ताकि सूखे जैसी स्थिति में किसानों को सुरक्षा प्रदान की जा सके। कृषि मंत्रालय ने साइल हेल्थ कार्ड योजना की पहल की है जिससे किसानों को उर्वरकों का सही चयन करने में मदद मिल सके।

घाटी में नहीं खिला कमल


कश्मीर में त्रिशंकु विधानसभा
जम्मू एवं कश्मीर में 23 दिसम्बर को आए चुनाव परिणाम बेहद चौंकाने वाले रहे। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) जहां सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, वहीं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर इतिहास रच दिया। सबसे बड़ी बात यह रही कि इस परिणाम में मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी तथा हिंदू बहुल जम्मू क्षेत्र के बीच फर्क साफ नजर आया।
प्रदेश में कोई भी पार्टी बहुमत के आंकड़े को नहीं छू पाई। 87 सीटों वाले विधानसभा में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी 28 सीटें जीतने में कामयाब रही, तो भाजपा ने जम्मू क्षेत्र की 25 सीटों पर कब्जा जमाया। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) 15 सीटें ही जीतने में कामयाब रही। खुद उमर बीरवाह सीट से चुनाव जीते, लेकिन सोनवार से हार गए। नेकां की गठबंधन पार्टी कांग्रेस मात्र 12 सीटों पर ही सिमट गई, जबकि पिछली बार उसने 17 सीटें जीती थी। पूर्व अलगाववादी नेता सज्जाद लोन की पार्टी पीपुल्स कांफ्रेंस दो सीटों सहित निर्दलीय तथा छोटी पार्टियां कुल सात सीटें जीतने में कामयाब रही हैं।
मोदी ने चुनाव परिणामों का स्वागत करते हुए ट्वीट किया, ‘जम्मू एवं कश्मीर में रिकॉर्ड मतदान लोगों का लोकतंत्र में भरोसा दिखाता है।’ वहीं पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने इस सफलता का श्रेय मोदी की छह महीने की सरकार की उपलब्धियों को दिया। प्रधानमंत्री कार्यालय के राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा, ‘यह भाजपा और जम्मू एवं कश्मीर के लिए क्रांतिकारी परिवर्तन है।’ कश्मीर के जम्मू में थोड़ा प्रभाव रखने वाली भाजपा ने इस बार न सिर्फ अपनी सीटें बढ़ार्इं, बल्कि अधिकतम वोट प्रतिशत (23 फीसदी से अधिक) को बढ़ाने में कामयाब रही है। वर्ष 2008 में उसने 11 सीटें जीती थीं, जबकि इस बार 25 सीटें जीतने में कामयाब रही।  पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) नेता महबूबा मुफ्ती ने कहा कि सुशासन प्रदान करने वाली सरकार के गठन में थोड़ा समय लगेगा। उनकी पार्टी के प्रवक्ता समीर कौल ने हालांकि कहा, ‘भाजपा के साथ गठबंधन को खारिज नहीं किया जा सकता।’ उन्होंने कहा, ‘यह खंडित जनादेश नहीं है। हालांकि यह हमारी उम्मीदों के अनुरूप भी नहीं है। जैसी हमने उम्मीद की थी, वैसा परिणाम नहीं आया है।’ उन्होंने कहा कि पीडीपी सरकार बनाने को लेकर जल्दबाजी में नहीं है। उन्होंने कहा, ‘हम ऐसे सरकार के बारे में विचार कर रहे हैं, जो एजेंडे पर आधारित हो। वह एजेंडा सुशासन का होना चाहिए।’ पीडीपी नेता ने कहा, ‘इसमें थोड़ा वक्त लगेगा कि वह फॉर्मूला क्या होगा, जिससे सुशासन सुनिश्चित हो सके। हम थोड़ा समय लेंगे। हमें जल्दबाजी नहीं है।’ उल्लेखनीय है कि भाजपा चुनाव मैदान में किसी वरिष्ठ नेता के चेहरे के साथ नहीं उतरी थी। इसके बदले पार्टी ने कश्मीर की समस्या के समाधान के लिए मोदी को उत्तर के तौर पर पेश किया था। मोदी ने यहां छह चुनावी अभियानों को अंजाम दिया। इस दौरान उन्होंने केवल विकास के मुद्दे को ही प्राथमिकता दी। उन्होंने भ्रष्टाचार तथा वंशवादी शासन पर भी निशाना साधा था। इस बीच निवर्तमान मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि सरकार के गठन के लिए सबसे बढ़िया गठबंधन भाजपा तथा पीडीपी का हो सकता है। उमर ने कहा, ‘मैं जनता के फैसले का सम्मान करता हूं। लेकिन जो यह सोचते थे कि हमारी हालत बेहद बुरी होगी, वे गलत साबित हुए हैं।’ मोदी लहर के रथ पर सवार भाजपा ने जम्मू क्षेत्र में 25 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस को यहां मात्र छह सीटें ही मिलीं। वहीं कश्मीर घाटी में भाजपा को दो फीसदी मत मिले। भाजपा महासचिव पी.मुरलीधर राव ने कहा, ‘जीतने से ज्यादा महत्पूर्ण यह है कि राज्य में भाजपा की स्वीकार्यता में बेहद वृद्धि हुई है।’ उन्होंने कहा, ‘हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण यह होगा कि हम आतंकवाद तथा अलगाववाद से किस प्रकार लडेंÞ। जम्मू एवं कश्मीर अन्य राज्यों की तरह नहीं है। हमें उपलब्ध विकल्प देखने होंगे।’ गठबंधन की संभावना पर भाजपा के जयनारायण व्यास ने कहा, ‘‘राजनीति हमेशा बृहद संभावनाओं का खेल होता है।’
घाटी में पीडीपी को फायदा, उमर को झटका
जम्मू एवं कश्मीर में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे चौंकाने वाले साबित हुए हैं। कश्मीर घाटी में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) तथा नेशनल कांफ्रेंस ने जीत के झंडे तो गाड़े, लेकिन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला खुद दो सीटों में से एक से चुनाव हार गए। त्रिशंकु विधानसभा के कयासों के बीच घाटी में 46 सीटों पर नेकां तथा पीडीपी के बीच सीधा मुकाबला था।
वर्ष 2008 में हुए चुनावों में नेकां 28, जबकि पीडीपी 21 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। बीरवाह से उमर अब्दुल्ला की जीत पीडीपी के लिए चौंकाने वाली है, हालांकि श्रीनगर के सोनवार से वह चुनाव हार गए। पीडीपी के लिए दो बेहद अचरज की बात हुई कि उत्तरी कश्मीर के गांदेरबल जिले से नेकां ने कंगन तथा गांदेरबल दोनों ही सीटों पर जीत दर्ज की। नेकां ने गांदेरबल से मैदान में अशफाक जब्बार शेख को उतारा था। पीडीपी के काजी मुहम्मद अफजल के मुकाबले उन्हें कमजोर उम्मीदवार माना जा रहा था, जिन्होंने वर्ष 2002 में उमर अब्दुल्ला को हराया था, हालांकि वर्ष 2008 में उमर ने उन्हें हराकर अपनी हार का बदला ले लिया था।
मतगणना में अशफाक शेख ने काजी को मात्र 432 मतों से हराकर पीडीपी को चौंकने पर मजबूर कर दिया। वरिष्ठ गुज्जर नेता नेकां के मियां अल्ताफ अहमद को कंगन में तगड़ा मुकाबला मिल रहा था, लेकिन मियां ने राजनीतिक पंडितों को गलत साबित कर दिया और उन्होंने पीडीपी के बशीर अहमद मीर को हरा दिया। श्रीनगर जिले के आठों सीटों पर वर्ष 2008 के चुनावों में नेकां ने जीत दर्ज की थी, लेकिन इस बार पीडीपी ने इन पांच सीटों अमिरा कादल, सोनवार, हजरतबल, बटमालू तथा जादिबल पर जीत दर्ज की। वहीं नेकां ईदगाह, खंयार तथा हब्बा कादल सीट को बचाने में कामयाब रही। हालांकि अनंतनाग जिले में नेकां ने पहलगाम सीट जीतकर यहां अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी। नेकां के लिए अन्य महत्वपूर्ण जीत उत्तरी कश्मीर के बांदिपोरा जिले के सोनावारी में रही।
शिया नेता तथा नेकां विधायक आगा सैयद रूहुल्ला ने भी बड़गाम सीट को बरकरार रखकर पीडीपी को चौंकने पर मजबूर कर दिया। यहां से पीडीपी अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थी। प्रदेश की 87 सीटों वाले विधानसभा में पीडीपी का बहुमत के लिए 44 सीटों तक पहुंचने की भविष्यवाणी गलत साबित हुई।  पीडीपी के वरिष्ठ नेता मुजफ्फर हुसैन बेग ने कहा कि अगर उनकी पार्टी कम से कम 35 सीटें जीतने में कामयाब नहीं हो पाती, तो यह एक आघात की तरह होगा। लेकिन अपने बूते सरकार बनाने लायक सीटें लाने में कोई भी पार्टी कामयाब नहीं हो पाई है।

Tuesday 23 December 2014

मुलायम को ‘फादर आॅफ मुस्लिम्स’ की उपाधि

सड़क से लेकर संसद तक मुस्लिमों के वाजिब हक की लड़ाई लड़ने के लिए समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव को ‘फादर आॅफ मुस्लिम्स’ की उपाधि से नवाजने की घोषणा की गई है और उनके ही नक्शे कदम पर चल रहे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को ‘वॉयस एंड फ्रेंड आॅफ मुस्लिम्स’ की उपाधि दी जाएगी। यह घोषणा हिंदुस्तान फ्रंट ने की।
हिंदुस्तान फ्रंट दोनों नेताओं को सम्मान पत्र फरवरी में होने वाले ‘मुस्लिम अधिकार व सम्मान सम्मेलन’ के मौके पर भेंट करेगा। फ्रंट के अध्यक्ष काली शंकर की अध्यक्षता में यूपी कोआपरेटिव बैंक के गेस्ट हाउस में हुई बैठक में मुस्लिम समाज के अधिकार, सम्मान, सुरक्षा पर चर्चा कर रणनीति बनाई गई।  बैठक में काली शंकर ने कहा कि सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव को देश में मुस्लिमों के हितों, सुरक्षा, अधिकारों व सम्मान की लड़ाई लड़ने के लिए ‘फादर आॅफ मुस्लिम्स’ सम्मान से नवाजा जाएगा। उन्होंने बताया कि फरवरी में लखनऊ में आयोजित होने वाले ‘मुस्लिम अधिकार व सम्मान सम्मेलन’ में उन्हें सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया जाएगा। फ्रंट के अध्यक्ष ने कहा कि इसी समारोह में मुस्लिमों के कल्याण व विकास के लिए कई सरकारी योजनाएं चलाने और प्रदेश में हुए दंगों के दौरान मुस्लिमों की हिफाजत के लिए सराहनीय कार्य करने पर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को ‘वॉयस एंड फ्रेंड आॅफ मुस्लिम्स’ की उपाधि से नवाजा जाएगा। बैठक में केंद्र सरकार से आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की मांग की गई। यही नहीं, गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ के भड़काऊ भाषणों पर रोक लगाने और महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को राष्ट्रद्रोही घोषित करने की मांग भी उठाई गई। उल्लेखनीय है कि भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने पिछले दिनों संसद के बाहर मीडिया से बातचीत के दौरान महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताया था। उनके इस बयान पर संसद में भारी हंगामा होने के बाद वह बयान से पलट गए थे।

‘भारत दौरा रद्द करने के लिए ब्रावो ने लिए थे पैसे’

पोर्ट आॅफ स्पेन। कैरेबियाई टीम से बाहर कर दिए गए एक खिलाड़ी ने ड्वेन ब्रावो को वेस्टइंडीज की एकदिवसीय क्रिकेट टीम के कप्तान पद से हटाए जाने को ‘संदेहास्पद’ करार दिया है और कहा है कि भारत के खिलाफ सीरीज बीच में रोकने में ब्रावो को उनकी भूमिका के लिए पैसे दिए गए थे।
समाचार एजेंसी सीएमसी के अनुसार, आगामी सीरीज और आईसीसी विश्व कप के लिए वेस्टइंडीज एकदिवसीय टीम के कप्तान पद से हटाए गए ब्रावो को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अगले महीने होने वाली श्रृंखला के लिए चयनित टीम में भी जगह नहीं दी गई। ब्रावो के अलावा कीरन पोलार्ड और डारेन सैमी को भी टीम से बाहर रखा गया है। कैरेबियाई टीम के लिए चार टेस्ट मैच खेल चुके ब्रायन डेविस ने कहा कि अक्टूबर में भारत दौरे पर गई कैरेबियाई टीम सबसे मजबूत टीम थी और टीम में किए गए मौजूदा बदलाव भारत के खिलाफ सीरीज के दौरान उठे विवाद का नतीजा हैं। डेविस ने कहा, ‘मुझे विश्वास है कि यह सब भारत दौरा बीच में रद्द करने का नतीजा है। ब्रावो को भी उसी का परिणाम भुगतना पड़ा। वेस्टइंडीज क्रिकेट बोर्ड (डब्ल्यूआईसीबी) के भेदभाव न करने वाले बयान के आधार पर ही मैं यह अनुमान लगा रहा हूं।’ डेविस ने कहा, ‘वे इन सब पर पर्दा डाल सकते थे और टीम में बदलाव करने पर बात कर सकते थे, लेकिन यह सब करने के लिए यह सबसे खराब समय था।’

क्रिकेट में अभद्र भाषा, छींटाकशी की जगह नहीं: हेडली

क्राइस्टचर्च। न्यूजीलैंड के पूर्व हरफनमौला खिलाड़ी रिचर्ड हेडली ने मौजूदा दौर में खेल के दौरान खिलाड़ियों द्वारा एक-दूसरे पर छींटाकशी करने की आदत की आलोचना की।
समाचार पत्र ‘सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड’ के अनुसार हेडली ने कहा, ‘मैच लड़ाकू प्रवृत्ति की बजाय ज्यादा लगन और परिश्रम से खेला जाना चाहिए। मैच के दौरान छींटाकशी या खिलाड़ियों के लिए अभद्र भाषा के इस्तेमाल की कोई जगह नहीं है।’ साथ ही हेडली ने आस्ट्रेलियाई बल्लेबाज फिलिप ह्यूज के निधन के बाद पूरे क्रिकेट जगत के एक साथ आने की सराहना भी की। बाउंसर पर रोक लगाने संबंधी चल रही चर्चाओं पर हेडली ने कहा कि यह क्रिकेट का हिस्सा है इसे ऐसे ही जारी रहने देना चाहिए।
टेस्ट मैचों को रात में भी आयोजित किए जाने के विचार पर हेडली ने कहा कि वह इस बारे में बहुत ज्यादा आश्वस्त नहीं हैं। हेडली ने कहा कि इसका बड़ा कारण गेंद का रंग है। टेस्ट मैच में लाल गेंदों का इस्तेमाल होता है और रात में इस रंग की गेंद को खेलना कठिन है। न्यूजीलैंड की ओर से 86 टेस्ट मैचों में 431 विकेट ले चुके हेडली ने यह भी कहा कि दिन-रात के मैच में अन्य हालात भी बदल जाते हैं जिसमें ओस आदि की समस्या भी शामिल है।

सायना मध्य प्रदेश की खेल अकादमियों देख खुश


सायना को मप्र की ओर से 50 लाख का पुरस्कार
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 23 दिसम्बर, 2014 को राज्य के शिखर खेल अलंकरण समारोह में देश की शीर्ष महिला बैडमिंटन खिलाड़ी ओलम्पिक कांस्य पदक विजेता सायना नेहवाल को 50 लाख की पुरस्कार राशि और राज्य की युवा महिला निशानेबाज वर्षा बर्मन को 50 लाख रुपये की छात्रवृत्ति भेंट की।
राजधानी भोपाल के तात्या टोपे नगर स्टेडियम में आयोजित समारोह में चौहान ने कहा है कि भोपाल में राष्ट्रीय खेलों के आयोजन के लिए भारत सरकार से अनुरोध किया जाएगा और इसके लिये सभी आवश्यक व्यवस्थाएं भी की जाएंगी। मुख्यमंत्री ने सायना नेहवाल को बधाई देते हुए कहा, ‘सायना अपने खेल से दुनिया में देश का नाम रोशन कर रही हैं। मध्यप्रदेश से भी सायना नेहवाल और सुशील कुमार जैसे खिलाड़ी निकलें, इसके लिए खिलाड़ियों को सभी सुविधाएं दी जाएंगी। हर खिलाड़ी जिद, जुनून और जज्बे के साथ अभ्यास करें। उनकी बाकी सभी जिम्मेदारियां और आवश्यकताएं राज्य सरकार पूरी करेगा।’
 उन्होंने कहा, ‘प्रदेश में खेलों के लिए धन का अभाव नहीं है। खेलों में जीत देश के सम्मान का विषय है, इसलिए खेलों का वार्षिक बजट चार करोड़ से बढ़ाकर 150 करोड़ कर दिया गया है। विक्रम पुरस्कार की राशि को भी 50000 से बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दी गई है।’ सायना नेहवाल ने इस अवसर पर कहा कि मध्य प्रदेश की खेल अकादमियों को देखकर उन्हें बहुत अच्छा लगा और राज्य के युवा खिलाड़ियों को देखकर वे अत्यंत उत्साहित हैं तथा उनमें भरपूर सम्भावनाएं हैं।
अलंकरण समारोह में नौ खिलाड़ियों को विक्रम पुरस्कार, 13 जूनियर खिलाड़ियों को एकलव्य पुरस्कार, तीन प्रशिक्षकों को विश्वामित्र पुरस्कार, जबलपुर की पुष्पा वर्मा को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड, उज्जैन की यशोदा मदारिया को स्वर्गीय प्रभाष जोशी खेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सायना नेहवाल विदेशी कोच के पक्ष में
भोपाल। भारतीय बैडमिंटन स्टार सायना नेहवाल ने बैडमिंटन खिलाड़ियों के प्रदर्शन में निखार लाने के लिए विदेशी कोच की जरूरत का समर्थन किया है। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित विक्रम पुरस्कार वितरण समारोह में हिस्सा लेने आर्इं नेहवाल ने पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि भारत में बैडमिंटन के अच्छे कोच हैं, लेकिन अगर विदेशी कोच मिल जाएं तो अच्छा है।
बैडमिंटन में भारत और चीन की स्थिति को लेकर किए गए सवाल पर उन्होंने कहा, ‘भारत में जो स्थान क्रिकेट का है, चीन में वह स्थान बैडमिंटन को हासिल है। इसके बावजूद कई राज्य बैडमिंटन को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं उसमें मध्य प्रदेश भी शामिल है, लिहाजा आने वाले समय में देश के विभिन्न हिस्सों से बैडमिंटन के अच्छे खिलाड़ी निकलने की सम्भावना है।’ चीन के खिलाड़ियों से होने वाले मुकाबले को लेकर उन्होंने कहा कि चीन के खिलाड़ियों से मुकाबला करते समय भारतीय खिलाड़ी को काफी संघर्ष करना पड़ता है।

Monday 22 December 2014

स्पर्श ने जगाई खेलों की अलख


सराहनीय: संस्था से जुड़े 150 से अधिक जिले, हजारों खिलाड़ी खिलखिलाए
आगरा भी स्पर्श स्पोर्ट्स डेवलपमेंट फाउण्डेशन से जुड़ा
आगरा। जाके फटीं न पैर बिवार्इं, वो का जाने पीर पराई। यह कहावत हमारे देश के अकर्मण्य खेलतंत्र और उससे जुड़े खेलनहारों पर अक्षरश: सत्य साबित होती है। खेलों से भ्रष्टाचार के समूल नाश का बीड़ा उठाया है बैसवारा की एक निजी खेल संस्था स्पर्श स्पोर्ट्स डेवलपमेंट फाउण्डेशन उन्नाव ने। इस खेल संस्था से अब तक सैकड़ों ओलम्पियंस और हजारों खिलाड़ी न केवल जुड़ चुके हैं बल्कि उन्होंने खेलों में मादरेवतन का नाम गौरवान्वित करने का संकल्प भी लिया है।
खेलों में भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार से आजिज अजीत वर्मा ने कोई आठ साल पहले इस संस्था की नींव रखी थी। श्री वर्मा ने खेलों और खेलनहारों को न केवल करीब से देखा है बल्कि खिलाड़ियों के साथ होती जिहालत और जलालत को भी भोगा है। स्पर्श स्पोर्ट्स डेवलपमेंट फाउण्डेशन से न केवल खिलाड़ी और खेलप्रेमी जुड़ रहे हैं बल्कि मुल्क खेलों में नाम रोशन करे इसके लिए किसानों सहित वे लोग भी जुड़ रहे हैं जिनके जेहन में जरा भी खेलों से प्यार है। अपने आठ साल के कार्यकाल में संस्था ने देश के 150 से अधिक जिलों और 12 हजार से अधिक खिलाड़ियों के बीच खेलों की अलख जगाई है। आगरा भी स्पर्श स्पोर्ट्स डेवलपमेंट फाउण्डेशन से जुड़ चुका है।
प्रदेश की हर पंचायत तक पहुंचने का लक्ष्य: अजीत वर्मा
खेलपथ से हुई बातचीत में संस्था के संस्थापक अजीत वर्मा ने बताया कि सीमित संसाधनों के बावजूद मेरा संकल्प उत्तर प्रदेश की हर ग्राम पंचायत तक पहुंच बनाना है। अब तक उत्तर प्रदेश के 45 जिलों सहित देश के डेढ़ सौ जिलों में जहां कोर्डिनेटर बनाए जा चुके हैं वहीं 12 हजार से अधिक खिलाड़ी संस्था से जुड़ चुके हैं। इन प्रतिभाशाली खिलाड़ियों की प्रतिभा का मुल्क को लाभ मिले इसके लिए कई कार्यक्रम भी चलाए जा रहे हैं। संस्था न केवल प्रतिभाओं की परख कर रही है बल्कि खिलाड़ियों को प्लेटफार्म मुहैया कराने के भी प्रयास हो रहे हैं।
संस्था अब तक कर चुकी है सैकड़ों खिलाड़ियों का भला
खेलों और खिलाड़ियों के उत्थान को समर्पित स्पर्श स्पोर्ट्स डेवलपमेंट फाउण्डेशन अब तक सैकड़ों गरीब खिलाड़ियों की मदद कर चुकी है। संस्था न केवल खिलाड़ियों को प्रोत्साहित कर रही है बल्कि उसके प्रयास हैं कि किसी खिलाड़ी को भेदभाव का शिकार न होना पड़े।
खिलाड़ियों को सब कुछ मुफ्त
संस्था से जुड़े खिलाड़ियों को खेल किट के साथ-साथ खेल प्रतियोगिता के दौरान मुफ्त भोजन की भी व्यवस्था की जाती है। खिलाड़ियों के लिए साग-भाजी की व्यवस्था जहां किसान करते हैं वहीं उनके बालों की कटिंग भी बिल्कुल मुफ्त होती है।
लिम्बाराम सहित कई नामचीन भी जुड़े
खेलों के समुन्नत विकास और भ्रष्टाचार मुक्त खेलों की दिशा में काम कर रहे स्पर्श स्पोर्ट्स डेवलपमेंट फाउण्डेशन से न केवल प्रतिभाशाली खिलाड़ी जुड़ रहे हैं बल्कि अतीत के नामचीन खिलाड़ी धनुर्धर लिम्बाराम, पूर्व भारतीय वॉलीबाल कप्तान सुधा सिंह, पूर्व अंतरराष्ट्रीय फुटबालर अजय सिंह, ओलम्पियन सुदीप कुमार सहित सैकड़ों लोगों ने संस्था के सराहनीय कार्यों पर आस्था जताई है।

देश का अन्नदाता आत्महत्या को मजबूर

किसानों की आत्महत्या करने की संख्या महज आंकड़े नहीं बल्कि यह त्रासद समय से गुजर रहे किसानों की जिंदगी की भयावह तस्वीर है जो सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि की मार एवं कर्ज के जाल में फंसे देश के अन्नदाता की दयनीय स्थिति बयां करते हैं।
कृषि मंत्रालय एवं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2009 में 17,368, वर्ष 2010 में 15,694, वर्ष 2011 में 14,027, वर्ष 2013 में 11,772 किसानों के आत्महत्या की सूचना मिली। इनमें से कृषि वजहों से 2009 में 2,577, 2010 में 2,359, वर्ष 2011 में 2,449 वर्ष 2012 में 918 और वर्ष 2013 में 510 आत्महत्या के मामले शामिल हैं।
महाराष्ट्र सरकार ने कृषि संबंधी समस्याओं के चलते इस वर्ष अक्टूबर तक 724 किसानों की आत्महत्या करने की सूचना दी है। तेलंगाना में 84 किसानों के आत्महत्या करने, जबकि कर्नाटक में 19 तथा गुजरात, केरल और आंध्रप्रदेश में तीन-तीन किसानों के आत्महत्या करने की सूचना है। वर्ष 2013 में महाराष्ट्र में 511 किसानों के आत्महत्या की सूचना थी जबकि 2012 में इनकी संख्या 407 थी। संसद में भी विभिन्न दलों के नेताओं ने इस विषय को उठाया है। विदर्भ जनांदोलन समिति के संयोजकों में शामिल किशोर तिवारी ने कहा कि तीन दशक पहले तक पारंपरिक खेती होती थी और फसलों का बेहतर संतुलन रहता था। लेकिन फिर सरकार नकदी फसलों की नीति लेकर आई। किसानों को नकदी फसलों की ओर सरकार ने आगे बढ़ाया। लेकिन जब से नकदी फसलों पर सब्सिडी समाप्त हुई तब से किसान पूरी तरह से बाजार की दया पर आ गया है।
बुंदेलखंड विकास समिति के संयोजक आशीष सागर ने कहा कि बुंदेलखंड एवं देश के अन्य क्षेत्रों में सिंचाई के साधनों का अभाव है, लेकिन भूजल का जबर्दस्त दोहन जारी है। जब जमीन के अंदर पानी नहीं होगा और खराब मानसून के कारण बारिश कम होने से सिंचाई नहीं होगी तब फसलें बर्बाद होंगी और इसका सीधा असर किसानों पर पड़ता है और उनके समक्ष कोई विकल्प नहीं बचता।
सागर ने दावा किया कि 20 प्रतिशत किसानों ने ही बैंकों से कर्ज लिया है, जबकि 80 प्रतिशत किसानों ने साहूकारों से कर्ज लिया है। ब्याज की दर इतनी अधिक है कि निरीह किसान कभी भी इनके जाल से नहीं निकल पाता है और आत्महत्या को मजबूर होता है। गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षांे में सरकार ने किसान की ऋण माफी समेत काफी बड़ा पैकेज दिया, लेकिन किसानों की आत्महत्या का सिलसिला नहीं रुक रहा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, कृषि संबंधी समस्याओं के चलते इस वर्ष 800 से अधिक किसानों के आत्महत्या की सूचना है और ऐसे मामलों की ज्यादातर खबरें महाराष्ट्र से रही हैं। कृषि क्षेत्र के पुनरुद्धार और किसानों की हालत में सुधार के लिए केंद्र सरकार ने कई कदम उठाए हैं जिनमें ग्रामीण क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश बढ़ाना, अवसंरचना विकास, बाजार तक पहुंच बढ़ाना से लेकर विपणन आदि शामिल हैं। कृषि मंत्रालय शीघ्र ही एक नयी फसल बीमा सिंचाई योजना एवं हर खेत को पानी पहुंचाने के लिए सिंचाई योजना शुरू करने जा रही है, ताकि सूखे जैसी स्थिति में किसानों को सुरक्षा प्रदान की जा सके। कृषि मंत्रालय ने साइल हेल्थ कार्ड योजना की पहल की है जिससे किसानों को उर्वरकों का सही चयन करने में मदद मिल सके।

ऊर्दू का भिक्षापात्र खाली: मुनव्वर राना


इस नदी को देश की हर एक कहानी याद है,
इसको बचपन याद है, इसको जवानी याद है।
ये कहीं लिखती नहीं, ये मुंहजबानी याद है,
ऐ सियासत तेरी हर मेहरबानी याद है।
अब नदी को कौन बतलाए ये पाकिस्तान है.
ये नदी गुजरे जहां से समझो वो हिन्दुस्तान है।
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रायबरेली के रहने वाले हैं मुनव्वर राणा
साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता मुनव्वर राना की पुष्प सवेरा से बातचीत
देश के प्रख्यात शायर मुनव्वर राना ने अपनी शायरी के दम पर देश ही नहीं, पूरी दुनिया में अपनी चमक बिखेरी है। उनकी गजलें आम आदमी की रोजमर्रा की जिंदगी और जिंदगी की तल्ख सच्चाइयों से रूबरू कराती हैं। उनकी इसी खूबी को साहित्य अकादमी ने पहचाना है और उन्हें देश के बड़े इनाम का हकदार माना है।
मुनव्वर के हर शेर में फलसफा होता है। वह आसान लफ्जों में बहुत बड़ी बात कह देने का हुनर रखते हैं, यही वजह है कि क्या हिंदुस्तान और क्या पाकिस्तान, विश्व के हर हिस्से में उनकी शायरी के चाहने वाले मौजूद हैं। उनके चाहने वालों की ही दुआ है कि उन जैसे बेहतरीन इंसान और नामचीन शख्सियत के काव्य संकलन ‘शहदाब’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए चुना गया है। राना हालांकि ऊर्दू को लेकर हो रही सियासत से काफी खिन्न हैं। उन्होंने कहा कि ऊर्दू का भिक्षापात्र खाली है और हमेशा खाली रहेगा। साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए चुने गए मुनव्वर राना ने खास बातचीत के दौरान अपने जीवन के कई अनछुए पहलुओं को उजागर किया। मूल रूप से उत्तर प्रदेश के रायबरेली के रहने वाले मुनव्वर राणा ने बातचीत की शुरुआत ही शायराना अंदाज में की।
काव्य संकलन ‘शहदाब’ के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘शहदाब में जो कुछ है वह मैंने कमोबेश उस वक्त लिखीं, जब एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) में भर्ती था। यह साल 2011-12 का वाकया है। घुटने का आॅपरेशन हुआ था। अस्पताल में बिस्तर पर पड़ा हुआ था। उसी समय मन में यह ख्याल आया कि जो कुछ मन में बिखरा हुआ है, क्यों न उसे समेटा जाए और उसी दौरान शहदाब पूरी हुई। यह कविताओं और गजलों का संकलन है।
राना ने कहा कि सच कहूं तो इस पुरस्कार के लिए चुने जाने की उम्मीद ही नहीं थी। पुरस्कार के लिए मैं कभी जिया ही नहीं। जब पुरस्कार की घोषणा हुई तो मैंने खुद से पूछा कि यह कैसे हो गया, तब मन में यह जवाब आया कि जिंदगी में हमने ‘अपने अंग्रेजों’ की जूतियां बहुत सीधी की हैं और यह उन ‘बड़ों’ की दुआओं का ही कमाल है। उन्होंने कहा कि साहित्य अकादमी पुरस्कार को वह अपने लिए इनाम नहीं समझते हैं। राना ने कहा, ‘बहुत-से युवा साहित्यकार, लेखक और शायर मुझे अपने कंधों पर उठाए रहते हैं, शायद इसीलिए मेरा कद कुछ ज्यादा ही मालूम होता है।’
उन्होंने कहा,‘हम नहीं चाहते कि शहर के चौराहों पर मुनव्वर राना का स्टेच्यू लगाया जाए। हम चाहते हैं कि आने वाले समय में लोग यह कहें कि मुनव्वर राणा का स्टेच्यू लगाया क्यों नहीं गया।’ देश में ऊर्दू की हालत पर मुनव्वर खासे चिंतित लगे। उन्होंने कहा कि ऊर्दू का भिक्षापात्र लेकर वोट मांगने वालों की वजह से ही इसका ऐसा हश्र हुआ है। ये लोग ऊर्दू के लिए वो नहीं करते जो उन्हें करना चाहिए। राना ने कहा, ‘ऊर्दू की हालत के लिए न तो मैं मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को दोषी मानता हूं और न ही पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को। इसकी दशा के लिए मुसलमान वजीर दोषी हैं जो इसके लिए सरकार से कुछ नहीं मांगते। मेरी समझ से तो ऊर्दू का भिक्षापात्र खाली है और हमेशा रहेगा।’
अपनी शायरी में मां, भाई और बहन जैसे रिश्तों को अहमियत देने वाले मुनव्वर राना ने कहा कि जब तुलसीदास की महबूबा का नाम राम हो सकता है तो मुनव्वर की महबूबा का नाम ‘मां’ क्यों नहीं हो सकता। ‘महबूबा’ शब्द से उनका आशय आदर्श व्यक्तित्व से है। राना ने कहा, ‘पहले जो गजलें बनती थीं, उसमें औरत की बांह, आंख, कमर और उसके लटकों-झटकों पर बनती थीं, लेकिन आप सोचिए कि यदि एक मामूली औरत महबूबा हो सकती है तो मेरी मां क्यों नहीं हो सकती।’’
मुनव्वर ने कहा कि आज उनके साथ केवल उनकी मां की दुआ नहीं, बल्कि पूरे मुल्क और पूरे विश्व की लाखों माताओं का आशीर्वाद मिला है, जिसकी वजह से मुझे इतनी मोहब्बत मिलती है। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के रायबरेली में 26 नवंबर, 1951 में जन्मे मुनव्वर राना के वालिद बंटवारे के बाद पाकिस्तान नहीं गए। उनकी मां और उनके रिश्तेदार वहां चले गए, लेकिन उन्होंने हिन्दुस्तान को ही अपना मुल्क माना। बंटवारे के बाद राना अपने परिवार के साथ कलकत्ता चले गए और उनकी शुरुआती तालीम भी वहीं हुई। मुनव्वर करीब दो दर्जन अवार्ड से नवाजे जा चुके हैं। ‘मां’ को केंद्र में रखकर लिखी गई शायरी की उनकी किताब की अब तक करीब पांच लाख प्रतियां बिक चुकी हैं। मुनव्वर इसे ही अब तक का सबसे बड़ा सम्मान मानते हैं।
अपनी आने वाली किताबों के बारे में मुन्नवर राना ने बताया कि ‘तीन शहरों का चौथा आदमी’ जल्द ही बाजार में आएगी। यह किताब 912 पृष्ठों की है। इसके अलावा वह अपनी आत्मकथा भी लिख रहे हैं। बकौल राना,‘आत्मकथा तो जब आदमी मरता है तब पूरी होती है, मगर लगभग 100 पन्नों वाली मेरी आत्मकथा वर्ष 2015 के आखिर तक आ जाएगी।’

Friday 19 December 2014

हर लड़की को सुरक्षा नहीं दे सकती सरकार: अरुणिमा


लड़कियों को अपनी सुरक्षा के लिए खुद ही बनना होगा सक्षम
बाराबंकी। देश में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों के बीच विश्व रिकॉर्डधारी पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा ने शुक्रवार को कहा कि कोई भी सरकार हर लड़की को सुरक्षा नहीं दे सकती और लड़कियों को इतना सक्षम बनाना होगा कि वे खुद की सुरक्षा कर सकें।
 अरुणिमा ने यहां ‘हमारी बेटी, हमारा गौरव’ कार्यक्रम से इतर संवाददाताओं से बातचीत में देश में बढ़ रही महिलाओं के प्रति हिंसा के बारे में कहा कि अब वक्त आ गया है कि महिलाएं खुद अपनी रक्षा करने में सक्षम बनें। उन्होंने कहा कि कोई भी सरकार हर लड़की को सुरक्षा नहीं दे सकती, लिहाजा लड़कियों को ही इतना सक्षम बनाना होगा कि वे अपनी हिफाजत खुद कर सकें। इसके लिए उन्हें आत्मरक्षा की कलाओं से लैस किया जाना चाहिए। इस पर खास तवज्जो दिये जाने की जरूरत है। फरवरी 2011 में एक हादसे में अपना एक पैर गंवाने वाली अरुणिमा ने फौलादी इरादों के बलबूते 21 मई 2013 को दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट पर फतह हासिल की थी। एक कृत्रिम पैर के सहारे यह कारनामा करने वाली वह दुनिया की पहली महिला है। अरुणिमा ने कहा कि महिलाओं की भागीदारी के लिए राजनीतिक दलों और सरकारों की तरफ से आवाज तो उठी है लेकिन जितना होना चाहिए था, उतना नहीं हो सका है। मीडिया के सामने महिला सशक्तीकरण के बारे में बातें करने और बाद में चीजों को वहीं की वहीं पड़ी रखने का सिलसिला अब बंद होना चाहिए। उन्होंने कहा कि महिलाओं को राजनीति में पकड़ बनानी चाहिए। महिलाओं को लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में कम से कम 33 प्रतिशत आरक्षण मिलना ही चाहिए और अभी राजनीतिक दलों को यह हक दिलाने की ईमानदारी से कोशिश करनी बाकी है। अरुणिमा ने एक सवाल पर कहा कि आमतौर पर महिला ग्राम प्रधान महज अपने प्रतिनिधि रूपी पति के हाथ की कठपुतली होती है। महिलाओं को इस छद्म आवरण को हटाना चाहिए। हालांकि, पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं पर ये चीजें शुरू से ही थोपी गयी हैं। इन्हें दूर करने में थोड़ा वक्त लगेगा। अब महिलाओं से ही पूछना होगा कि वे क्या चाहती हैं। घरेलू हिंसा को अभिशाप बताते हुए उन्होंने कहा कि इस बुराई के खिलाफ महिलाओं को ही आवाज उठानी होगी। उन्हें इससे तनिक भी संकोच नहीं होना चाहिए। संकोच और शर्म तो उन लोगों को आनी चाहिए जो घरेलू हिंसा को अंजाम देते हैं या तमाशबीन बनकर देखते हैं। पुलिस का काम होना चाहिए कि घरेलू हिंसा पीड़ितों की मदद करें, न कि उन्हें परेशान करें।
अरुणिमा ने एक सवाल पर कहा कि भारत में पर्वतारोहियों को जितना महत्व मिलना चाहिए, उतना नहीं मिल रहा है लेकिन धीरे-धीरे अब इसका क्रेज बढ़ रहा है। आने वाला कल पर्वतारोहियों का होगा। इस पर्वतारोही ने कहा कि उन्होंने हाल में उनकी आत्मकथा का विमोचन करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मांग की है कि वह उनकी खेल अकादमी बनाने में मदद करें और प्रधानमंत्री ने इसके लिए सकारात्मक संकेत भी दिये हैं। 

मुक्केबाजी: रोए या करे विधवा विलाप

आईओए ने बाक्सिंग इंडिया को मान्यता देने से किया इनकार
हमारे यहां खेलों की लीला अपरम्पार है। सच के लिए लड़ना कितना नुकसानदेह है यह बात लैशराम सरिता देबी से बेहतर भला कौन बता सकता है। अभी दो दिन पहले अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ ने सरिता को एक साल तक रिंग में उतरने की मनाही कर दी। इस शर्मनाक फैसले पर लानत करने की बजाय देश भर में मंत्री से लेकर संत्री और खेलप्रेमियों तक ने जश्न मनाया। मैं जानना चाहता हूं कि गलत फैसले के खिलाफ सरिता ने बोलकर क्या वाकई गुनाह किया था? इस बात का जवाब किसी के पास नहीं है क्योंकि हम डरपोक और कुर्सी प्रेमी हैं।
केन्द्रीय खेल मंत्री मुक्केबाज सरिता की सजा के खिलाफ हैं तो भारतीय ओलम्पिक संघ ने राष्ट्रीय महासंघ के रूप में आज बाक्सिंग इंडिया के आवेदन को खारिज कर एक प्रश्न खड़ा कर दिया है कि क्या आईओए के अध्यक्ष एन रामचन्द्रन सरकार से भी बड़े हैं। इनका कहना है कि अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ (एआईबीए) ने बॉक्सिंग इंडिया को आईओए की इच्छा के विरूद्ध उस पर थोपा है। रामचंद्रन ने आईओए की वार्षिक आम बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा कि आईओए अब भी पूर्ववर्ती भारतीय एमेच्योर मुक्केबाजी महासंघ (आईएबीएफ) को मान्यता देता है जिसकी मान्यता को एआईबीए ने इसी साल रद्द कर दिया था। आईओए के इस फैसले से अजीब स्थिति पैदा हो गई है जिसमें मुक्केबाजी की एक इकाई को अंतरराष्ट्रीय महासंघ स्वीकृति देता है जबकि दूसरी इकाई को देश का ओलम्पिक संघ मान्यता देता है।
रामचंद्रन ने कहा, कार्यकारी परिषद की बैठक में मुक्केबाजी के मुद्दे पर लम्बी चर्चा की गई और इस पर सर्वसम्मति से फैसला किया गया कि भारत में मुक्केबाजी की संस्था और आईओए से मान्यता प्राप्त संस्था आईएबीएफ होगी। एआईबीए ने बाक्सिंग इंडिया और उसके चुनाव को मान्यता दी है। उनके चुनाव के लिए सरकार या आईओए ने कोई पर्यवेक्षक नहीं भेजा था। हमारे पास पहले ही आईएबीएफ के रूप में मान्यता प्राप्त संस्था है। रामचंद्रन ने कहा, विवाद थे और इसे देखते हुए आईओए ने तदर्थ समिति का गठन किया लेकिन एआईबीए ने इसके बाद बाक्सिंग इंडिया को मान्यता दे दी। इसे थोपा गया था और उन्होंने (एआईबीए) कहा कि बाक्सिंग इंडिया अपने चुनाव कराएगा। आईओए ने यह मुद्दा एआईबीए अध्यक्ष के समक्ष उठाया। हमने कहा कि चुनाव आईओए के तत्वावधान में एआईबीए के पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में होने चाहिए। एआईबीए ने इन सुझावों को स्वीकार नहीं किया और बाक्सिंग इंडिया ने अपने चुनाव एआईबीए की निगरानी में कराए। आईओए प्रमुख ने साथ ही राष्ट्रीय खेल महासंघ से जुड़े मामले में एकतरफा फैसला करने के लिए एआईबीए को लताड़ भी लगाई।
उन्होंने कहा, भारत में जब किसी राष्ट्रीय खेल महासंघ का चुनाव होता है तो आईओए को शामिल किया जाना चाहिए। जब दो समूहों में विवाद हो तो ऐसा जरूर होना चाहिए। आईओए को नजरअंदाज करना और एकतरफा फैसला करना किसी खेल के लिए अच्छा नहीं है। आज यह मुक्केबाजी के साथ हुआ और कल किसी अन्य खेल के साथ हो सकता है। किसी भी हालात में आईओए की स्वायत्ता के साथ समझौता नहीं किया जा सकता। रामचंद्रन ने कहा, अंतरराष्ट्रीय महासंघ आईओए को यह नहीं कह सकता कि वह एक्स को नहंीं चाहता और उसकी जगह वाई को लाया जाए। आप राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति को बाध्य नहीं कर सकते। वे दिन लद गए हैं। रामचंद्रन विवादित श्रीनिवासन के भाई हैं। एक बात और 18 दिसम्बर को भोपाल में भारतीय खेल प्राधिकरण के संचालक जिजी थामसन ने ब्राजील में होने वाले ओलम्पिक खेलों में मुक्केबाजों से पदक की उम्मीद जताई है, पर कैसे? 

शह-मात का शर्मनाक खेल

संसद का शीतकालीन सत्र राजनीतिज्ञों के थोथे उसूलों की न केवल भेंट चढ़ रहा है बल्कि शह-मात के इस शर्मनाक खेल में आमजन के सरोकार एक-एक कर मटियामेट हो रहे हैं। राजनीतिज्ञों की अशालीन बतकही और धर्मान्तरण की कारगुजारी ने जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को असहज कर दिया है वहीं विपक्ष राज्यसभा में अपनी मजबूत स्थिति का अनुचित दोहन कर रहा है। यह स्थिति मजबूत भारतीय लोकतंत्र के लिए कतई शुभ संकेत नहीं है। धर्मान्तरण के जिस बखेड़े को लेकर विपक्ष ने आसमान सिर पर उठा रखा है, मोदी सरकार उस पर बहस करने को तैयार है। विपक्ष के मन में चोर है, यही वजह है कि वह सार्थक मसलों पर भी बहस करने की बजाय एन-केन-प्रकारेण संसदीय कार्यों में अवरोध पैदा कर सरकार को नीचा दिखाना चाहता है। विपक्ष बेशक अपनी कारगुजारियों को फतह मान रहा हो पर उसके कदाचरण से देश और आमजन के सरोकार जरूर जमींदोज हो रहे हैं।
लोकसभा में धर्मान्तरण पर बहस हो चुकी है, यह बात दीगर है कि बहस के अंत में सरकार का फैसला सुने बिना विपक्ष ने बहिर्गमन कर उस जनमानस के साथ धोखा किया जिसे उसने अपने दु:खद पलों का सारथी चुना है। सरकार राज्यसभा में भी बहस को तैयार है, पर विघ्नसंतोषी विपक्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से धर्मान्तरण रोकने के आश्वासन की रट लगाकर किसी भी तरह से संसद नहीं चलने देना चाहता। विपक्ष की यह अनुचित अपेक्षा है। विपक्ष किसी भी मुद्दे पर सरकार से जवाब मांगने तो सरकार किस मसले पर कौन जवाब देगा इसके लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है। विपक्ष जिस धर्मान्तरण मामले को बेवजह तूल दे रहा है, वह कानून-व्यवस्था की जद में आता है। कानून व्यवस्था कायम रखना सिर्फ केन्द्र ही नहीं राज्य सरकारों का भी दायित्व है। यह बात विपक्ष भी बखूबी जानता है, बावजूद इसके वह प्रधानमंत्री के आश्वासन का पेंच फंसाकर संसदीय कार्यवाही में बाधा डालने का अक्षम्य गुनाह कर रहा है।
इसे भारतीय लोकतंत्र की विडम्बना ही कहेंगे कि जनता जनार्दन अपने और मुल्क के भले के लिए जो जनप्रतिनिधि चुनती है वही उसके सरोकारों को भूलकर संसद के भीतर और बाहर शर्मनाक खेल खेलते है। भारतीय लोकतंत्र के संसदीय कार्यों में रुकावट डालने का यह पहला अवसर नहीं है। यूपीए सरकार के समय भी अवरोध और रुकावटें आर्इं पर अतीत और वर्तमान में फर्क सिर्फ इतना है कि तब ज्यादातर अवसरों पर सरकार बहस से मुंह चुराती थी और आज सरकार बहस को ताल ठोकती है तो विपक्ष पलायन कर जाता है। जो भी हो संसदीय कार्यों में पल-पल का अवरोध देश की मजबूत आर्थिक व्यवस्था के लिए कतई सुखद संकेत नहीं कहा जा सकता। संसदीय कार्यावधि में पक्ष-विपक्ष से यह उम्मीद की जाती है कि वे जनता के प्रति अपनी जवाबदेही समझेंगे और सदन में जनता के जमीनी मुद्दों पर सार्थक चर्चा करेंगे। जहां तक विपक्ष के नंगनाच का सवाल है उसके पास 365 दिन हैं। सदन रोज-रोज नहीं होते लिहाजा विपक्ष को सदन में चर्चा के अवसरों को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए। संसदीय व्यवस्था अपेक्षित व्यवहार से ही प्रेरित है। विपक्ष इसे समझता भी है लेकिन  वह अपने राजनीतिक हित का कोई भी अवसर जाया नहीं करना चाहता। विपक्ष को मर्यादाहीन भाषा और धर्मान्तरण पर संसदीय कार्यों में बाधा डालने से पहले अपने गिरेबां पर भी झांकना चाहिए। हमारे राजनीतिज्ञों ने बेतुके बोलों को अपना सहज हथियार बना लिया है। उन्हें किसी की भावनाओं से कोई लेना-देना नहीं होता। राजनीतिज्ञों के अनर्गल प्रलाप से उन्हें बेशक अपने मुरीदों की करतल ध्वनि सुनने को मिल जाती हो पर इससे जनमानस और आने वाली पीढ़ी के लिए गलत संकेत ही जाता है। साध्वी निरंजन ज्योति और साक्षी महाराज ने जो कुछ कहा वह उचित नहीं था लेकिन जो लोग उनके कहे को आज तिल का ताड़ बना रहे हैं उन्हें ममता, लालू, आजम खां आदि की जहर उगलती वाणी क्यों अच्छी लगती है? भारतीय लोकतंत्र का दु:खद और स्याह पक्ष तो यही है कि आज राजनीतिज्ञों की बदजुबानी को स्वीकारता मिल चुकी है। ऐसा मान लिया गया है कि बदजुबानी बेशक गलत हो लेकिन राजनीतिक लाभकारी जरूर है। भारतीय स्वस्थ लोकतांत्रिक व्यवस्था में इस तरह की सोच का पनपना गम्भीर और चिन्तनीय बात है। अफसोस इस पर कहीं ऐसी कोई चिन्ता दिखाई नहीं दे रही। संसद में विरोधी दलों ने नंगनाच तो जरूर किया पर विपक्ष की मंशा सत्तारूढ़ दल को नीचा दिखाने तक ही सीमित रही। इस मसले पर सत्तारूढ़ दल ने बदजुबानी को अस्वीकार्य तो माना लेकिन विपक्ष पर राजनीतिक इस्तेमाल की तोहमत लगाकर मामले की इतिश्री कर दी। सत्तापक्ष और विपक्ष की इस लाभ-हानि की गणित से जनतांत्रिक परम्पराओं, मूल्यों और आदर्शों का जो नुकसान हुआ उसके दीर्घगामी परिणाम भयावह हो सकते हैं। लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष जरूरी है तो गलत रीति-नीति की आलोचना भी होना चाहिए। लेकिन, हमारे राजनीतिज्ञ यह भूल जाते हैं कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में विरोधी दुश्मन नहीं होता। हर इंसान की सोच और उसके कामकाज का तरीका अलग होता है। लोकतंत्र में भी हमेशा मतभेद रहे हैं लेकिन मौजूदा समय में जिस तरह का मनभेद देखा जा रहा है वह कतई उचित नहीं है। किसी की सोच और व्यवहार की आलोचना करने का अर्थ उसे गाली देना नहीं होता। अपशब्द से किसी का नुकसान हो या नहीं पर इससे स्वयं का चरित्र जरूर उजागर हो जाता है। यह सच है कि हमारे राजनीतिज्ञ बेशक किसी रंग-ढंग के हों लेकिन उनकी सोच में खोट जरूर होती है। बदजुबानी और धर्मान्तरण पर बखेड़ा खड़ा करने की बजाय विपक्ष को चिन्ता सिर्फ इस बात की होनी चाहिए कि हमारा राजनीतिक परिदृश्य आखिर ऐसा क्यों बन गया है? लोग कदाचरण को अपना हथियार क्यों बना रहे हैं? जो भी हो आहत-मर्माहत प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संघी साथियों और सांसदों-मंत्रियों को सार्वजनिक जीवन की मर्यादाओं का पाठ पढ़ाते हुए यह बताया है कि कब क्या, कैसे और कितना बोला जाना चाहिए।  राजनीतिक शुचिता के प्रति अपनी निष्ठा प्रदर्शित करने का भाजपा के पास सुनहरा मौका है जिसे किसी भी सूरत में उसे अकारथ नहीं करना चाहिए।

Thursday 18 December 2014

सानिया का शानदार साल, बाकी जूझते रहे


नई दिल्ली। सानिया मिर्जा ने अपना तीसरा मिश्रित युगल ग्रैंडस्लैम खिताब जीता और वर्ष की आखिरी ट्राफी जीतकर अपने सत्र का शानदार अंत किया लेकिन भारतीय पुरूष टेनिस खिलाड़ी वर्ष 2014 में अधिकतर समय जूझते नजर आए।
अपने नाम कई उपलब्धियां लिखा चुकी 28 वर्षीय सानिया सत्र के आखिरी टूर्नामेंट को जीतने वाली पहली भारतीय बनीं। यह उपलब्धि लिएंडर पेस जैसा दिग्गज खिलाड़ी भी हासिल नहीं कर पाया। सानिया ने ब्रूनो सोरेस के साथ मिलकर यूएस ओपन मिश्रित युगल का खिताब जीता और अब उनके नाम पर आस्ट्रेलियाई ओपन और फ्रेंच ओपन सहित कुल तीन ग्रैंडस्लैम खिताब हो गये हैं।  वर्ष में लगातार अच्छा प्रदर्शन करने से सानिया सात डब्ल्यूटीए टूर्नामेंट के फाइनल में पहुंची और उन्होंने जिम्बाब्वे की कारा ब्लैक के साथ तीन खिताब भी जीते। इससे उन्होंने अपने करियर की सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग एक भी हासिल की। जब कई पुरुष खिलाड़ी इंचियोन एशियाई खेलों से हट गये तब सानिया ने पहले न कहने के बाद इन खेलों में हिस्सा लिया और साकेत मयनेनी के साथ मिलकर मिश्रित युगल में स्वर्ण पदक जीता।
पुरुष खिलाड़ियों में एकल के स्टार सोमदेव देवबर्मन ही नहीं बल्कि युगल विशेषज्ञ पेस और रोहन बोपन्ना के लिये भी यह साल काफी मुश्किल भरा रहा। पेस सत्र में केवल एक खिताब जीत पाये। सबसे अधिक निराशा हालांकि सोमदेव के हाथ लगी और वह किसी भी समय अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के करीब नहीं पहुंचे। महेश भूपति ने टेनिस से संन्यास लिया। उनकी और पूर्व स्टार विजय अमृतराज की टेनिस लीगों ने इस खेल में नया अध्याय जोड़ा। भूपति टेनिस के दिग्गजों जिनमें रोजर फेडरर और नोवाक जोकोविच भी शामिल हैं, को आईपीटीएल में खेलने के लिये भारत लाये। अमृतराज की सीटीएल भारत केन्द्रित रही लेकिन इसमें दिग्गज स्टार की कमी खली।

भारतीय स्क्वाश खिलाड़ियों का रहा जलवा

बीता साल रहा बेमिसाल
नई दिल्ली, एजेंसी। भारतीय स्क्वाश के लिये बीता वर्ष सफलताओं से भरा रहा जिसमें ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेल और इंचियोन एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक सोने पे सुहागा साबित हुआ।
 दीपिका पल्लीकल, जोशना चिनप्पा और सौरव घोषाल से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद रहती है लेकिन इस बार हरिन्दर पाल संधू ने भी सुर्खियां बंटोरीं। मोहाली के इस 25 वर्षीय युवा ने इंचियोन एशियाई खेलों में पहले एकल मुकाबले में गत चैम्पियन मोहम्मद अजलन इस्कंदर को हराकर पुरुष टीम के स्वर्ण पदक का मार्ग प्रशस्त किया था। इसके बाद घोषाल ने ओंग बेंग ही को हराया। इस जीत ने एकल वर्ग में स्वर्ण पदक नहीं जीत पाने वाले घोषाल का दर्द कुछ कम किया। भारत ने एशियाई खेलों में सभी चार वर्गांे में पदक जीते। घोषाल ने कहा, यह साल राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों को समर्पित रहा। एशियाई खेलों में व्यक्तिगत वर्ग का स्वर्ण नहीं जीत पाना निराशाजनक रहा। फाइनल में हार हमेशा खलती है लेकिन टीम को पीला तमगा मिलने की खुशी है। यह अब तक का मेरा सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है।
महिला वर्ग में पल्लीकल, चिनप्पा और अनाका अलांकामोनी ने भारत के लिये पहला रजत पदक जीता। विश्व रैंकिंग में शीर्ष 10 में पहुंची पहली भारतीय पल्लीकल ने क्वार्टर फाइनल में चिनप्पा को हराकर व्यक्तिगत वर्ग का कांस्य भी जीता। सितंबर में हुए उस तनावपूर्ण मुकाबले के बाद पल्लीकल और चिनप्पा के बीच वह तालमेल नहीं रह गया जो राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान था। ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों में पल्लीकल और चिनप्पा ने भारत को पहला पदक दिलाया और वह भी स्वर्ण। उन्होंने मलेशिया की निकोल डेविड और लो वी वर्न और शीर्ष वरीयता प्राप्त इंग्लैंड की जेनी डंकाल्फ और लौरा मसारो जैसे दिग्गजों को हराया।  घोषाल ग्लास्गो राष्ट्रमंडल खेलों में पहली बार सेमीफाइनल तक पहुंचे। कांस्य पदक के प्लेआफ मुकाबले में उन्हें इंग्लैंड के पीटर बार्केर ने हराया। अब वह पेशेवर सर्किट पर अपने प्रदर्शन में सुधार करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा, इस साल मेरी पीएसए रैंकिंग गिरी है जिस पर 2015 में मेरा फोकस रहेगा। वहीं पल्लीकल ने कहा , मैंने इस साल राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों के कारण कम टूर्नामेंटों में भाग लिया। अगले सत्र में अधिक टूर्नामेंट खेलकर फिर शीर्ष दस में जगह बनाना मेरा प्रमुख लक्ष्य होगा।

हॉकी इंडिया लीग से पहले मिलेगा नया विदेशी कोच

नई दिल्ली। भारतीय हाकी टीम को 22 जनवरी से शुरू हो रहे हॉकी इंडिया लीग के तीसरे सत्र से पहले नया विदेशी कोच मिलने की उम्मीद है। आस्ट्रेलिया के टैरी वाल्श के जाने के बाद नये कोच के चयन की प्रक्रिया शुरू हो गई है।
हॉकी इंडिया ने इसके लिये विज्ञापन भी दे दिया है जिसकी मियाद 31 दिसंबर तक है। भारतीय हाकी के हाई परफार्मेंस निदेशक रोलेंट ओल्टमेंस ने कहा प्रक्रिया कल शुरू हो गई है चूंकि मैं और हाकी इंडिया का पूरा स्टाफ पिछले दिनों भुवनेश्वर में चैम्पियंस ट्राफी में व्यस्त था। दुनिया भर के कोचों के लिये अपने आवेदन भेजने की आखिरी तारीख 31 दिसंबर है। ओल्टमेंस को नया कोच चुनने की जिम्मेदारी दी गई है। उन्होंने यहां हाकी इंडिया के आनलाइन एकेडमी प्लेटफार्म के लांच के मौके पर कहा कि हमने काफी लोगों से बात की है जो इस पद पर काम करने के इच्छुक हैं। मैं चाहता हूं कि नया कोच हाकी लीग से पहले आ जाये ताकि उसे खिलाड़ियों के बारे में जानने का मौका मिले। उन्होंने कहा कि लेकिन सब कुछ आवेदकों की योग्यता पर निर्भर करेगा।
एक महीना पहले टैरी वाल्श के जाने के बाद से यह पद रिक्त है। इंचियोन एशियाई खेलों में भारत को 16 साल बाद स्वर्ण पदक दिलाने के बाद वाल्श ने पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने टीम और सहयोगी स्टाफ के फैसलों में अधिकारों में बढ़ोत्तरी की मांग की थी। साइ ने नया अनुबंध तैयार कर लिया था और मामला जब सुलझने के करीब था तब हाकी इंडिया के अध्यक्ष नरिंदर बत्रा ने वाल्श पर अमेरिकी हाकी के साथ कार्यकाल के दौरान कथित वित्तीय अनियमितताओं का आरोप लगाकर प्रक्रिया को बाधित कर दिया था।  इस बीच देश में युवा प्रतिभाओं को तलाशने और तराशने के लिये हाकी इंडिया ने आॅनलाइन एकेडमी प्लेटफार्म शुरू किया।  इसके तहत देश के विभिन्न हिस्सों में बैठे कोचों को नयी तकनीक, रणनीति और खेल के नये आयामों को सीखने का मौका मिलेगा। इस प्लेटफार्म का बेसिक लेवल शुरू हो गया और इसे डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डाट एचआईओएपी डाट ओआरजी पर देखा जा सकता है । वहीं एलीट लेवल मार्च अप्रैल 2015 में शुरू होने की उम्मीद है।

एक साल नहीं बरसेंगे सरिता के मुक्के

प्रतिबंध एक अक्टूबर 2014 से एक अक्टूबर 2015 तक रहेगा प्रभावी
नई दिल्ली। इंचियोन एशियाई खेलों में कांस्य पदक लेने से इनकार करने वाली भारतीय महिला मुक्केबाज लैशराम सरिता देवी पर अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ ने एक साल का प्रतिबंध लगा दिया लेकिन इससे उसके कैरियर पर असर नहीं पड़ेगा और वह 2016 ओलम्पिक क्वालीफायर में हिस्सा ले सकेगी। सरिता ने एशियाई खेलों के सेमीफाइनल में विवादित हार के बाद कांस्य पदक स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। उस पर लगाया गया प्रतिबंध एक अक्टूबर 2014 से एक अक्टूबर 2015 तक प्रभावी रहेगा। इसके अलावा उस पर 1000 स्विस फ्रेंक्स का जुर्माना भी लगाया गया है।
बार- बार माफी मांगने के बावजूद एआईबीए ने उसे माफ नहीं किया हालांकि दाहिनी कलाई में चोट से जूझ रही इस लाइटवेट ( 60 किलोग्राम) मुक्केबाज के लिये एक साल का प्रतिबंध राहत भरा रहा। राष्ट्रीय कोच गुरबख्श सिंह संधू भी सजा से बच गए जिन्हें दो अन्य कोचों के साथ अस्थायी तौर पर निलम्बित कर दिया गया था। एआईबीए की अनुशासन समिति ने उन्हें दोषी नहीं पाया। भारत के क्यूबाई कोच ब्लास इग्लेसियास हालांकि उतने खुशकिस्मत नहीं रहे और उन पर दो साल का प्रतिबंध और 2000 स्विस फ्रेंक्स जुर्माना लगाया गया। उनका प्रतिबंध भी एक अक्टूबर 2014 से लागू होगा। एआईबीए की अनुशासन समिति ने सरिता के निजी कोच लेनिन मेतेइ पर भी एक साल का प्रतिबंध लगा दिया जबकि उसके पति थोइबा सिंह पर दो साल तक रिंगसाइड में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया।
जुर्माना भरने में मदद करेगा बाक्सिंग इंडिया
बाक्सिंग इंडिया के अध्यक्ष संदीप जाजोदिया ने कहा कि बाक्सिंग इंडिया जुर्माना भरने के लिये रकम जुटाने में सरिता की मदद करेगा । हमें खुशी है कि हमारे विस्तार से सफाई देने का असर हुआ और एआईबीए ने सरिता के मामले में नरमी बरती । पिछले महीने ही एआईबीए अध्यक्ष चिंग कू वू ने साफ तौर पर कहा था कि सरिता के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जायेगी और उसे अपना करियर खत्म ही मान लेना चाहिये। यह पूछने पर कि एआईबीए को नरमी से पेश आने के लिये कैसे राजी किया गया, जाजोदिया ने कहा कि डॉक्टर वू ने जो कहा, वह उनकी निजी राय थी और हम उसका सम्मान करते हैं। लेकिन हम एआईबीए को यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि इंचियोन में जज्बाती होकर सरिता ने वह गलती की और वह एक अनुशासित मुक्केबाज है। खेलमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने हालांकि एआईबीए को पत्र लिखकर एक साल के प्रतिबंध पर भी पुनर्विचार की अपील की है। संधू के अलावा रिंगसाइड कोच सागरमइ धयाल को भी अनुशासनहीनता का दोषी नहीं पाया गया।
राहत महसूस कर रही हूं: सरिता
बाक्सिंग इंडिया द्वारा एआईबीए के फैसले का ऐलान किये जाने के बाद सरिता ने एक बयान में कहा कि मैं राहत महसूस कर रही हूं और मैं पूरे मुक्केबाजी जगत और बाक्सिंग इंडिया को इस कठिन समय में मेरा साथ देने के लिये धन्यवाद देना चाहूंगी। मैं ओलम्पिक खेलों में भाग ले सकूंगी और देश का नाम रोशन करने के लिये और मेहनत करूंगी।
 कैरियर खत्म होने की आशंका निर्मूल
बाक्सिंग इंडिया के अध्यक्ष संदीप जाजोदिया ने पत्रकारों से कहा कि प्रतिबंध की अवधि पदक वितरण समारोह यानी एक अक्टूबर 2014 से शुरू होगी। यह बड़ी राहत की बात है क्योंकि उस पर आजीवन प्रतिबंध लगाये जाने और उसका कैरियर खत्म होने की आशंकायें निर्मूल साबित हुईं। अब वह 2016 महिला विश्व चैम्पियनशिप में भाग ले सकेगी जो ओलम्पिक क्वालीफायर भी है। उन्होंने कहा कि वह कलाई की चोट के कारण फरवरी तक वैसे भी नहीं खेल सकेगी। उसके बाद वह सामान्य अभ्यास कर सकती है और प्रतिबंध पूरा होने पर वापसी करेगी।
कोच आहत
महिला मुक्केबाज एल. सरिता देवी पर एक साल का प्रतिबंध लगाए जाने पर मुक्केबाजी कोच अनूप सिंह ने कहा है कि सरिता पर एक साल का प्रतिबंध लगने से उन्हें दुख है लेकिन हम सब आईबा का एक हिस्सा हैं इसलिए आईबा के नियमों से बंधे होने के कारण हमें इसे मानना ही होगा। अनूप ने कहा कि सरिता का रिकार्ड बहुत ही अच्छा रहा है। उन्होंने देश के लिए बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। हम सरिता को तैयार करेंगे। वैसे भी ओलम्पिक में अभी डेढ़ साल से ज्यादा का वक्त है और सरिता पर एक ही साल का प्रतिबंध है इसलिए वह कमबैक जरूर करेगी। उन्होंने कहा कि सरिता बहुत ही मजबूत इरादों वाली तथा प्रतिभाशाली बॉक्सर है। वह खेल में अपना 100 फीसदी दमखम लगाती है इसलिए उन्हें पूरी उम्मीद है कि वह इस प्रतिबंध और सदमे से निकलने के बाद फिर से रिंग में जरूर बड़ी कामयाबी हासिल करेगी।