Saturday 28 February 2015

आमजन को प्यार की मार

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने पहले आम बजट में जहां धनकुबेरों की तिजोरी खाली कर गरीबों की मदद का जोखिमपूर्ण हौसला दिखाया है वहीं उन्होंने सम्पत्ति कर समाप्त करने के साथ ही व्यक्तिगत आयकर सीमा यथावत रख मध्यमवर्गीय परिवारों की उम्मीदों पर पानी भी फेरा है। आम बजट में हर गरीब को रोजगार तो गरीब बुजुर्गों को अटल पेंशन योजना की सौगात देकर मोदी सरकार ने यह जताने की कोशिश की है कि वह उद्योगपतियों की नहीं बल्कि आमजन की सरकार है।
पिछले कुछ वर्षों में बढ़ती महंगाई के कारण रिजर्व बैंक पहले तो ब्याज दरों को लगातार बढ़ाता रहा लेकिन उसके बाद उसे घटा नहीं पाया। ऊंची ब्याज दरों के कारण औद्योगिक ही नहीं अधोसंरचना के क्षेत्र में भी निवेश नहीं हो पा रहा था। निवेश न होने से उद्योगों में नई क्षमता का निर्माण नहीं हुआ। ऊंची ब्याज दरों से आटोमोबाइल समेत तमाम उपभोक्ता वस्तुओं की न केवल मांग घटी बल्कि लोगों का नए आवास क्षेत्र में भी रुझान कम हो गया।  पिछले चार-पांच साल से रुकी औद्योगिक ग्रोथ के लिए अब अनुकूल वातावरण है। अब रिजर्व बैंक के पास ब्याज दरें घटाने के  पर्याप्त कारण हैं। यदि ब्याज दर में गिरावट आती है तो उसका सीधा असर अधोसंरचना और औद्योगिक निवेश पर तो पड़ेगा ही, अन्य उपभोक्ता वस्तुओं की मांग में भी खासा इजाफा हो सकता है। अरुण जेटली ने अपने आम बजट में विकास की अनुकूल परिस्थितियों को देखते हुए भी कुछ फैसले लिए हैं। घटती तेल की कीमतों, थमती महंगाई और विदेशी भुगतान की स्थिति में सुधार के चलते अब नीति-निर्माता राहत में हैं। देखा जाए तो पुराने ऋणों पर ब्याज की अदायगी, वेतन, पेंशन, पुलिस, प्रतिरक्षा समेत ऐसे कई खर्च हैं, जहां राजकोष का बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है। पिछले अनुभवों से परे जेटली ने शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला एवं बाल विकास, अनुसूचित जाति, जनजाति, अल्पसंख्यक, विकास, पेयजल के साथ ही गरीबों पर दरियादिली दिखाने का प्रयास किया है।
अरुण जेटली ने बजट में  गरीबों का ख्याल रखते हुए  कृषि, सिंचाई, औद्योगिक विकास के साथ ही अधोसंरचना को पुख्ता करने की भी हिम्मत जुटाई है। राजकोष की वर्तमान स्थिति को देखते हुए जेटली ने राजस्व में इजाफे के लिए धनकुबेरों पर कराधान बढ़ाया है। मोदी सरकार ने बजट में बिहार और पश्चिम बंगाल को विशेष इमदाद देकर अपनी राजनीतिक मंशा को भी पर लगाए हैं। बजट में सब्सिडी तो नहीं खत्म की गई लेकिन कम करने के संकेत जरूर दिए गए हैं। गरीबों की मदद और राजकोष को बढ़ाने के लिए जेटली ने ऐसे कदम उठाए हैं जिनके दूरगामी परिणाम सरकार के लिए घातक साबित हो सकते हैं। सरकार ने सम्पत्ति कर तो खत्म कर दिया लेकिन सालाना 10 करोड़ और इससे अधिक आय अर्जित करने वाली कम्पनियों पर दो फीसदी अधिभार बढ़ाकर धनकुबेरों की नींद उड़ा दी है। अब 10 करोड़ और इससे अधिक आय अर्जित करने वाली कम्पनियों को 12 फीसदी तो एक से 10 करोड़ सालाना आय अर्जित करने वाली कम्पनियों को सात फीसदी अधिभार देना होगा। सम्पत्ति कर समाप्त कर मोदी सरकार ने जहां एक हजार करोड़ रुपये की कुर्बानी दी है वहीं धन कुबेरों पर दो फीसदी का अधिभार लगाकर नौ हजार करोड़ रुपये जुटाने का प्रबंध भी किया है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बिजली की किल्लत से निजात के लिए पांच नई अल्ट्रा मेगा बिजली परियोजनाओं सहित बजट में अन्य अधोसंरचनाओं पर 70 हजार करोड़, रेलवे की खस्ता हालत को सुधारने के लिए 10 हजार करोड़, मनरेगा के लिए 34699 करोड़ तथा लघु उद्योगों की खातिर 20 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। आम बजट में जन-धन योजना के तहत गरीबों के लिए दो लाख रुपए का बीमा सिर्फ 12 रुपए के प्रीमियम पर करने का भी बंदोबस्त किया गया है। मोदी सरकार अटल पेंशन योजना में हर गरीब बुजुर्ग को जहां 60 साल की उम्र के बाद प्रतिमाह एक हजार रुपये बतौर पेंशन देगी वहीं प्रधानमंत्री बीमा योजना के तहत हर नागरिक को बीमा सुरक्षा प्रदान की जाएगी। अल्पसंख्यक युवाओं के लिए नई मंजिल योजना में 3,738 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है तो अति निर्धन बुजुर्गों के लिए विशेष बीमा योजना अमल में आएगी। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने न केवल गरीबों के मर्म पर मलहम लगाया है बल्कि धरती पुत्रों का भी विशेष ख्याल रखा है। बजट में किसानों को सिंचाई के लिए 5,300 करोड़, लघु सिंचाई योजना के लिए  5,300 करोड़,  ग्रामीण कर्ज योजना के लिए 1500 करोड़ तथा बाल विकास योजना के लिए 1,500 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जहां गरीबों का बोझ अमीरों पर डालने की कोशिश की है वहीं उन्होंने कम्पनियों को स्वच्छ  भारत अभियान और गंगा सफाई कोष में योगदान के लिए कर में छूट देने का भरोसा भी दिया है। बजट में  स्वास्थ्य बीमा में कटौती पर छूट की सीमा 15 हजार रुपये से बढ़ाकर 25 हजार रुपये कर दी है तो दुसाध्य रोगों के मामले में वरिष्ठ नागरिकों के लिए कटौती सीमा 60 हजार रुपये को बढ़ाकर 80 हजार रुपये करने का भरोसा दिया है। अब पेंशन निधि में योगदान पर छूट को एक लाख रुपये से बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये सालाना किया जाएगा। सुकन्या योजना में सभी तरह के निवेश पर पूरी तरह कर छूट मिलेगी। सरकार ने परिवहन भत्ता छूट को प्रति महीने 800 रुपये से बढ़ाकर 1,600 रुपये कर दिया है।
मोदी सरकार कालेधन के विरुद्ध संजीदा दिख रही है, वह  कालेधन के विरुद्ध एक नया कानून लाएगी। अब सम्पत्ति की खरीद-फरोख्त में पैन दर्ज करना जरूरी होगा। बजट में कर व्यवस्था को तर्कसंगत बनाने के भी संकेत दिए गये हैं तो आय छिपाने पर 10 साल की कठोर सजा का प्रावधान भी किया गया है। मोदी सरकार पूर्वी राज्यों को न केवल तेजी से विकास का अवसर देगी बल्कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना की तर्ज पर बिहार और पश्चिम बंगाल को भी विशेष सहयोग प्रदान करेगी। 2015-16 में एम्स जैसे संस्थानों की स्थापना जम्मू-कश्मीर, पंजाब, तमिलनाडु और हिमाचल प्रदेश में की जाएगी। बिहार को एम्स जैसा दूसरा संस्थान मिलेगा। अब सरकार नकद लेन-देन को हतोत्साहित करने के लिए डेबिट कार्ड को प्रोत्साहन देगी।  हर भारतीय के लिए यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी सिस्टम भी अमल में आएगा।  मोदी सरकार ने ग्रामीण रोजगार योजना में 34,699 करोड़ रुपये खर्च करने के साथ ही हर गरीब को नौकरी देने का भरोसा भी दिया है। बजट से पूर्व अटकलें लगाई जा रही थीं कि मोदी सरकार सभी तरह की सब्सिडी खत्म कर सकती है पर वित्त मंत्री ने सब्सिडी खत्म न कर उसे कम करने का संकेत जरूर दिया है। सरकार अपने राजकोष को बढ़ाने के लिए विनिवेश का सहारा लेने के साथ ही वर्ष 2017 तक वित्तीय घाटा 3.7 फीसदी तक लाने का लक्ष्य लेकर चल रही है। जो भी हो अरुण जेटली ने अपने पहले आम बजट में आमजन को प्यार की मार देकर पूर्ववर्ती सरकारों का ही अनुसरण किया है।

Friday 27 February 2015

यमुना उद्धार का संकल्प

मंद-मंद ही सही इन दिनों ब्रज में यमुना उद्धार की बयार बह रही है। जल उद्धार की इस बयार में उन आठ करोड़ लोगों की मुसीबतें समाहित हैं, जिनकी तरफ किसी सरकार ने आज तक गम्भीरता से ध्यान नहीं दिया है। यमुना उद्धार की जब भी बात होती है तब बरबस कुछ सवाल उठाए जाते हैं। मसलन, क्या अकेला चना भाड़ फोड़ सकता है, क्या एक फूल से बहार आ सकती है? इन्हीं सवालों का जवाब देने की खातिर एक संत उठ खड़ा हुआ है। संत जयकृष्ण दास यमुना आंदोलन के प्रेरक व संचालक आचार्य प्रवर स्वामी विज्ञानाचार्य महाराज और अपने गुरु रमेश बाबा के संकल्प को पूरा करना चाहते हैं। अविरल और निर्मल यमुना का संकल्प पूरा हो इसके लिए  समाज, संत और सरकार को एक साथ प्रयास करने की दरकार है।
व्यक्ति की कार्यशैली, व्यवहार, कर्म, वाणी, रहन-सहन और प्रकृति-स्वभाव ही उसका मापदण्ड है। महानता भाग्य की फसल और पुरुषार्थ की निष्पत्ति है। हर किसी को वह नसीब नहीं होती, यह सतत् जागरूकता, जीवन के प्रति सकारात्मकता एवं अच्छाई की ग्रहणशीलता से ही सम्भव है। कुछ अलग पहचान बनाने या महानता को हासिल करने के लिये जरूरी है कि हम जिस चेहरे पर जिस विशेषता की गरिमा को देखें, उसे आदर से जीना सीखें, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति चाहता है अच्छा बनना, महान बनना। हमें उन भूलों को लगाम देनी होगी, जिनकी स्वच्छंदता आत्मविकास में बाधक बनती है। उनका फौलादी व्यक्तित्व होता है और वे बिना सोचे-समझे जल्दबाजी में जीवन का कोई निर्णय नहीं लेते, जो परिणाम में महंगा पड़ने के साथ-साथ जीवन की सार्थकता पर भी प्रश्नचिह्न लगाये। ऐसे व्यक्ति अन्याय और शोषण को सहते नहीं, उनका दमन भी नहीं करते, अपितु उनका मार्गान्तरीकरण करते हैं। मानवीय संवेदना के कारण वे सबके सुख-दु:ख को अपना सुख-दु:ख मानते हैं। उनकी जिन्दगी औरों के लिये समर्पित हो जाती है। ऐसे व्यक्ति श्रेष्ठता का प्रमाण नहीं देते, बल्कि वे स्वयं प्रमाण होते हैं।
यमुना उद्धार और ब्रजवासियों के कल्याण को उठ खड़े संत जयकृष्ण दास का संकल्प कब और कैसे पूरा होगा यह भविष्य के गर्भ में है, पर यमुना हमारी धर्म-संस्कृति तथा राष्ट्रीय अस्मिता की अमूल्य धरोहर हैं, इससे इंकार नहीं किया जा सकता। आज यमुना का अस्तित्व और यमुनोत्री से इलाहाबाद तक कोई 1376 किलोमीटर के तटों पर निवास करने वाली आवाम तथा जीव-जंतुओं का जीवन संकट में है। कलुषित यमुना जल से हजारों लोग घातक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं तो दूसरी तरफ जन आकांक्षाओं से बेखबर हमारी हुकूमतें गहरी नींद सोई हुई हैं। यमुना रक्षक दल बीते चार साल से सरकार को जगाने के साथ ही यमुना भक्तों को संकट से बचाने के लिए जन जागरण अभियान चला रहा है। राह कठिन तो मंजिल दूर है लेकिन यमुना उद्धार का भरोसा जिन्दा है। मानव कल्याण की कोई भी मुहिम क्यों न हो बिना संघर्ष के वह कभी पूरी नहीं हो सकती। जल और वायु प्रदूषण मुल्क में महामारी की शक्ल ले चुका है। जो दिल्ली ब्रजवासियों को जल प्रदूषण का दंश दे रही है वह स्वयं भी वायु प्रदूषण की गिरफ्त में है।
यमुना तलहटी की कोई आठ करोड़ आबादी की आसन्न नियति का अंदाजा प्रतिवर्ष हजारों लोगों की कैंसर आदि से होती मौतों से सहज लगाया जा सकता है।  गंगा प्रदूषण का ढोल पीटती मोदी सरकार का ध्यान कलुषित यमुना की तरफ दिलाने की खातिर ही यमुना रक्षक दल 11 मार्च को दिल्ली कूच कर रहा है। मोदी सरकार को सोचना होगा कि एक भारत, श्रेष्ठ भारत का संकल्प तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक कि हमारी जीवनदायिनी नदियां प्रदूषण मुक्त नहीं हो जातीं। दिल्ली ही नहीं आज मुल्क के तकरीबन सभी नगर वायु और जल प्रदूषण का संत्रास झेल रहे हैं। शहरों का मलमूत्र, कारखानों का जहरीला रसायन और मवेशियों की लाशें मोक्षदायिनी नदियों को विषाक्त बना रही हैं। यही प्रदूषित जल नदियों के किनारे बसे गांवों को असाध्य बीमारियां बांट रहा है। जल प्रदूषण सिर्फ मानव के लिए ही नहीं जीव-जंतुओं के लिए भी जानलेवा है। आज विभिन्न प्रदूषणों को लेकर हमारी सरकारें हायतौबा मचा रही हैं लेकिन मानव को इससे निजात दिलाने के कोई ठोस प्रयास होते नहीं दिखते। शहरीकरण के नाम पर विश्वस्तरीय सुविधाओं के सपने दिखाने वाली विकास नीतियां पर्यावरण संरक्षा के भाव से कोसों दूर हैं। इस मसले पर न केवल सिलसिलेवार विचार होना चाहिए बल्कि तत्काल उन पर अमल भी जरूरी है।
1376 किलोमीटर लम्बी यमुना और उसके जल को लेकर कितने भी तर्क-कुतर्क क्यों न दिए जाते हों पर यमुनोत्री से 180 किलोमीटर के बाद जल की जगह असाध्य बीमारियां ही प्रवाहित हो रही हैं। हरियाणा में हथिनी कुंड पर बंधक बनी यमुना की जब तक मुक्ति नहीं होगी तब तक यमुना भक्त काल के गाल में समाते ही रहेंगे। ब्रज में पहुंचने वाली यमुना का जल जल न होकर विष है। वजीराबाद से ओखला के बीच लगभग दो सौ छोटे-बड़े नालों से बहता मलमूत्र और रसायन इतना विषाक्त है कि उसके छूने मात्र से असाध्य रोग हो जाते हैं। आमतौर पर किसी त्योहार, धार्मिक अनुष्ठान के बाद यमुना में बहती या उसके किनारों पर जमा पूजा सामग्री और विसर्जित मूर्तियों का अम्बार देखा जा सकता है। नालों के रास्ते शहर की गंदगी और औद्योगिक कचरे के जहरीले रसायनों से मरती इस नदी के सामने लोगों की आस्था भी एक बड़ी समस्या बन चुकी है। मुश्किल यह है कि तमाम जागरूकता कार्यक्रमों के बावजूद लोग समझने या मानने को तैयार नहीं हैं।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने मैली से निर्मल यमुना पुनर्जीवन योजना-2017 को हरी झंडी देते हुए यमुना के डूब क्षेत्र में किसी भी तरह के निर्माण कार्य और नदी में मलबा डालने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। इन नियमों के उल्लंघन पर पचास हजार रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान भी किया गया है। यमुना को बचाने के लिए हरित पंचाट से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक ने कई बार दिशा-निर्देश तो दिए हैं लेकिन लापरवाही की प्रवृत्ति आम लोगों से लेकर सरकारी महकमों तक में आज भी पसरी हुई है। यूं तो एक सभ्य और जागरूक समाज अपने आसपास अच्छी आदतों की संस्कृति को न केवल बढ़ावा देता है बल्कि इसके उलट कुछ होता देख उस पर उंगली भी उठाता है, पर हम सुधरने का नाम नहीं ले रहे। यमुना में कचरा फेंकने पर भारी जुर्माने का निर्देश देकर हरित पंचाट ने नेक काम किया है। सोचने की बात है कि जो गतिविधियां एक सभ्य नागरिक की आदत में शुमार होनी चाहिए उन्हें सुनिश्चित कराने के लिए हरित न्यायाधिकरण जैसे निकाय को सख्त कदम उठाने पड़ते हैं? यमुना रक्षक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयकृष्ण दास और राष्ट्रीय महासचिव रमेश सिसौदिया की अगुआई में यमुना उद्धार का जो बिगुल बजा है उसकी अनुगूंज सरकार के कानों तक पहुंचे इसके लिए जरूरी है कि सभी एक साथ उठ खड़े हों। एक सभ्य समाज के बिना अर्थव्यवस्था के सुहाने आंकड़े विकास का पर्याय नहीं हो सकते लिहाजा सरकार और समाज, दोनों को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए वरना ब्रजवासियों का जीवन संकट में पड़ जाएगा।

Wednesday 25 February 2015

गेल का खेल


क्रिकेट वर्ल्‍ड कप में डबल सेंचुरी बनाने वाले पहले बल्लेबाज
कैनबरा : वेस्टइंडीज के विस्फोटक सलामी बल्लेबाज क्रिस गेल ने आज यहां जिम्बाब्वे के खिलाफ 215 रन की तूफानी पारी खेलकर कई नये रिकार्ड बनाये। वह एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय में दोहरा शतक जड़ने वाले चौथे और विश्व कप में यह कारनामा करने वाले पहले बल्लेबाज बने।
इसके साथ ही उन्होंने मलरेन सैमुअल्स के साथ मिलकर वनडे में किसी भी विकेट के लिये सबसे बड़ी साझेदारी का 16 साल पुराना रिकार्ड भी तोड़ा। खराब फार्म के कारण आलोचकों के निशाने पर रहे गेल ने जिम्बाब्वे के गेंदबाजों का कचूमर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने अपनी 147 गेंद की पारी में दस चौके और 16 छक्के लगाये। वह वनडे में दोहरा शतक लगाने वाले पहले गैर भारतीय बल्लेबाज हैं। गेल से पहले भारत के सचिन तेंदुलकर (नाबाद 200), वीरेंद्र सहवाग (219) और रोहित शर्मा (209 और 264 रन) ने वनडे में दोहरे शतक लगाये थे। विश्व कप में यह पहला अवसर है जबकि किसी बल्लेबाज ने दोहरा शतक लगाया। इससे पहले इस टूर्नामेंट में एक पारी में सर्वाधिक स्कोर का रिकार्ड दक्षिण अफ्रीका के गैरी कर्स्टन के नाम पर था जिन्होंने यूएई के खिलाफ 1996 में रावलपिंडी में नाबाद 188 रन बनाये थे।
गेल ने अपनी पारी में 16 छक्के लगाये और इस तरह के वनडे में एक पारी में सर्वाधिक छक्कों के पिछले रिकार्ड की बराबरी की। रोहित शर्मा ने 2013 में आस्ट्रेलिया के खिलाफ अपनी 209 रन की पारी के दौरान 16 छक्के लगाये थे। दक्षिण अफ्रीका के एबी डिविलियर्स ने जनवरी 2015 में जोहानिसबर्ग में वेस्टइंडीज के खिलाफ 16 छक्के जड़े थे। विश्व कप में इससे पहले एक पारी में सबसे अधिक छक्के जड़ने का रिकार्ड डेविड मिलर के नाम पर था जो उन्होंने कुछ दिन पहले जिम्बाब्वे के खिलाफ ही हैमिल्टन में बनाया था। इसके साथ ही गेल दुनिया के पहले ऐसे बल्लेबाज बन गये हैं जिन्होंने टेस्ट मैचों में तिहरा शतक, वनडे में दोहरा शतक और टी20 में शतक बनाया है।
गेल ने सैमुअल्स (नाबाद 133) के साथ दूसरे विकेट के लिये 372 रन की साझेदारी की जो वनडे में किसी भी विकेट के लिये साझेदारी का नया रिकार्ड है। इससे पहले का रिकार्ड भारत के तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ के नाम पर था जिन्होंने न्यूजीलैंड के खिलाफ 1999 में हैदराबाद में दूसरे विकेट के लिये ही 331 रन जोड़े थे। विश्व कप में सबसे बड़ी साझेदारी का रिकार्ड इससे पहले सौरव गांगुली और द्रविड़ के नाम पर था। उन्होंने श्रीलंका के खिलाफ 1999 में टांटन में दूसरे विकेट के लिये 318 रन की साझेदारी की थी। गेल अपनी पारी के दौरान अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 400 छक्के जड़ने वाले दूसरे बल्लेबाज भी बने। अपना 414वां अंतरराष्ट्रीय मैच खेल रहे गेल ने टेस्ट मैचों में 98, एकदिवसीय मैचों में 229 और टी20 अंतरराष्ट्रीय में 87 छक्के लगाये हैं। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सर्वाधिक 447 छक्के लगाने का रिकार्ड पाकिस्तान के शाहिद अफरीदी के नाम पर है। उनके बाद गेल (414), न्यूजीलैंड के ब्रैंडन मैकुलम (356), श्रीलंका के सनथ जयसूर्या (352), भारत के महेंद्र सिंह धोनी (280), तेंदुलकर (264), आस्ट्रेलिया के एडम गिलक्रिस्ट (262) और दक्षिण अफ्रीका के जाक कैलिस (254 छक्के) का नंबर आता है। गेल ने इसके साथ ही एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों में 9000 रन भी पूरे किये। वह ब्रायन लारा (10,405 रन) के बाद वनडे में 9000 से अधिक रन बनाने वाले दूसरे कैरेबियाई बल्लेबाज बन गए हैं।

Saturday 21 February 2015

प्रयोगधर्मिता का नया स्वांग

दिल्ली की अकल्पनीय पराजय के बाद कमल दल सकते में है। मोदी मैजिक के सहारे चक्रवर्ती बनने का सपना टूटते ही अब भाजपा उनके परिधानों की नीलामी का फंडा आजमा रही है। इससे देश की आवाम को क्या हासिल होगा, यह तो राम जानें पर भारतीय राजनीति में प्रयोगधर्मिता और चाटुकारिता का नया स्वांग अबूझ पहेली जरूर बन गया है।  हिन्दुस्तान अब सिर्फ गांवों का ही नहीं बल्कि गगनचुम्बी इमारतों, फ्लाईओवर, शॉपिंग मालों से दमकते महानगरों का भी देश है। अफसोस विकास से दूर, मद में चूर हमारी सल्तनतों को इस बात का इल्म ही नहीं है कि भारत गरीबों का देश है, जहां आज भी कई करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे  जीवन यापन कर रहे हैं। उन्हें दो वक्त की रोटी भी मयस्सर नहीं है।
भारत लोकतांत्रिक देश है, जहां एक चायवाला भी प्रधानमंत्री बन सकता है। भारत में राजतंत्र कायम है, जहां प्रधानमंत्री चक्रवर्ती राजा की तरह है, जो दस लाख का सूट पहनता है और सियासत की खातिर उस गांधी का नाम लेता है, जो भारतीय गरीबों के कारण अधनंगा फकीर बना रहा। भारत की गंगा-जमुनी संस्कृति, उसकी धार्मिक, भाषायी और सामाजिक विविधता गैर मुल्कों के लिए आज भी अबूझ पहेली है। विदेशियों की दिलचस्पी इस बात में हमेशा रही है कि इतनी विविधताओं वाले देश हिन्दुस्तान में एकता कैसे कायम रहती है। अब शायद उनकी जिज्ञासा इस बात में भी हो कि भारत में किस किस्म की आर्थिक असमानता है। भारतीय संविधान में भले ही सबको बराबरी का अधिकार मिला हो, पर अर्थतंत्र के बाजारवाद ने संवैधानिक भावनाओं के साथ क्रूर मजाक किया है। प्रधानमंत्री मोदी के परिधानों की नीलामी के स्वांग से न ही मुल्क की विविधता दूर होगी और न ही इससे नमामि गंगे का उद्धार होने वाला है।
लोकसभा चुनाव के समय मोदी ने अपने आपको एक जनसेवक के रूप में पेश किया था। वह जानते हैं कि मुल्क असमानता की राह चल रहा है। करोड़ों भारतीयों के पास न तो तन ढंकने को कपड़ा है और न ही दो वक्त की रोटी। जनमानस को उम्मीद थी कि मोदी के सल्तनत सम्हालते ही देश से भ्रष्टाचार छूमंतर हो जाएगा, राजनीतिज्ञों की शाहखर्ची पर लगाम लगेगी और सबका विकास होगा, पर 10 माह के उनके शासनकाल में कोई बड़ा बदलाव नजर नहीं आया। गरीबी आज भी मुंह चिढ़ा रही है। दिल्ली चुनाव हारने के बाद उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके सिपहसालार जनसेवा और देशहित के कामों को वरीयता देंगे, अफसोस वे परिधानों की नीलामी के बेहूदा प्रयोग में मदमस्त हैं। नरेन्द्र मोदी की जहां तक बात है, गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए जब उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा ने अपना चेहरा बनाया तो लोगों की पहली नजर उनके पहनावे पर ही गई थी।  उनका चूड़ीदार कुर्ता, जैकेट, कभी सिर पर साफा, कभी कंधे पर पड़ी शॉल, इन सबको उनके प्रचारकों ने अपने अंदाज में बिना कुछ कहे पेश किया। टेलीविजन पर जब वे दिखें तो किस कोण से बेहतर लगेंगे, मंच पर जब हों तो उन्हें कैसे जाना चाहिए, अमेरिका यात्रा में उनका पहनावा क्या हो, जापान और आस्ट्रेलिया में क्या हो, हर बात का बारीकी से ध्यान रखा गया। समय के अनुकूल उनके परिधानों के रंग भी बदलते रहे। कभी केसरिया, कभी हरा, कभी भूरा तो कभी गाढ़े नीले रंग में मोदी नजर आये। जो भी हो अब मोदी के रंग में भंग पड़ता दिख रहा है। भारत युवाओं का देश है। भारतीय जनता पार्टी जानती है कि युवा तरुणाई के बिना सत्ता तक नहीं पहुंचा जा सकता, इसी वजह से उसने सारा तामझाम देश के युवाओं को आकर्षित करने के लिए किया था। इसमें दो राय नहीं कि युवाओं पर मोदी का जमकर जादू चला पर बुजुर्ग हाशिए पर चले गये।  मोदी भी युवा नहीं हैं, लेकिन बेकाबू युवाओं पर कैसे काबू पाना है, उन्हें पता है। मोदी हों या कोई और, जोश भरी बातों और फैशनेबल कपड़ों से बहुत दिनों तक जनमानस को झांसे में नहीं रखा जा सकता।  इस बात का अहसास कमल दल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके फैशन डिजाइनरों को तब हुआ जब वे मफलरबाज और पतलून के बाहर आधी बाजू की शर्ट पहनने वाले अरविंद केजरीवाल से दिल्ली चुनावों में बुरी तरह मात खा गए।
बराक ओबामा की भारत यात्रा पर अपना नामधारी सूट पहन कर बेशक नरेन्द्र मोदी को थोड़ी-बहुत संतुष्टि मिली होगी, पर उनका महंगा लाखिया सूट और आडम्बर भारतीय जनमानस को  कतई रास नहीं आया। भारतीय राजनीति में अकेले नरेन्द्र मोदी ही नहीं कभी बसपा सुप्रीमो मायावती भी अपने धन-वैभव का खुला प्रदर्शन करने में यकीन रखती रही हैं, लेकिन उनके समर्थकों का मोहभंग उनसे कभी नहीं हुआ, बल्कि वे प्रसन्न होते थे कि एक दलित की बेटी अपना जन्मदिन सवर्णों की तरह शान से मना रही है। कमल दल को अफसोस होगा कि मोदीजी के मामले में ऐसा समीकरण फिट क्यों नहीं बैठा। आम चुनाव के वक्त अपने चायवाला होने का जिक्र मोदीजी ने खूब किया था। तब मोदी के उन लफ्जों और उनकी छवि पर गरीब परवरदिगारों को यकीन था कि मुल्क की सल्तनत पर काबिज होने के बाद यह चायवाला गरीबों का हमदर्द साबित होगा। धीरे-धीरे ही सही देश से गरीबी जरूर दूर होगी, पर ऐसा नहीं हुआ। अब तो जो लोग मोदी की जमीन से जुड़ी छवि के कायल थे, उनका भी धीरे-धीरे मोहभंग होता जा रहा है। यह भारतीय जनता पार्टी के लिए चिन्तन का विषय होना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अब लगने लगा है कि उनसे कहीं न कहीं चूक जरूर हुई है। अपनी भूल सुधार के लिए ही प्रधानमंत्री सूरत में दस लाख के सूट समेत, उपहार में मिले 237 कपड़ों व अन्य सामानों की नीलामी से प्राप्त राशि को नमामि गंगे योजना में लगाना चाहते हैं। भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को मिले उपहार, उनकी निजी नहीं वरन राष्ट्र की सम्पत्ति होते हैं और उन्हें सरकारी तोषखाने में जमा किया जाता है। नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए भी इसी तरह नीलामी करवाते थे। अब भी उन्होंने वही तरीका अपनाया है। मोदी के इस कदम से मुमकिन है अच्छी-खासी रकम जुटे और उसका सदुपयोग भी हो, लेकिन उनका यह कार्य राजसी मिजाज के मुताबिक ही लगता है, जिसमें राजा प्रजा के लिए काम तो करता है, पर उसका अहसान भी जताता है। सच्चाई तो यह है कि नीलामी के इस स्वांग से न तो गरीबों का पेट भरेगा और न ही सबका साथ, सबका विकास होगा। अपनी गरीबी का बखान करने, गरीबों के साथ एकाध बार खाना खा लेने भर से देश की दरिद्रता दूर नहीं होगी। कमल दल को अपने 10 माह के शासनकाल की स्वयं विवेचना करते हुए यह सोचना होगा कि उसने आमजन से जो कहा था, उस पर कितना अमल हुआ है। 

Thursday 19 February 2015

सरकार के अधीन हों खेल संगठन

स्पर्श स्पोर्ट्स डेवलपमेंट फाउण्डेशन की पहल
खेल मंत्री से की मुलाकात, 11 बिन्दुओं पर हुई चर्चा
नौकरियों में 10 फीसदी खिलाड़ियों को मिले आरक्षण
आगरा। खेल और खिलाड़ियों को उनका हक दिलाने को प्राणपण से जुटे उत्तर प्रदेश के स्पर्श स्पोर्ट्स डेवलपमेंट फाउण्डेशन के प्रतिनिधिमण्डल ने 18 फरवरी को केन्द्रीय खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल से उनके आवास में मुलाकात की। खेल मंत्री को न केवल 11 सूत्रीय ज्ञापन सौंपा गया बल्कि सभी खेल संगठनों को सरकार के अधीन लेने और खिलाड़ियों को शासकीय नौकरी में 10 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग भी की गई। खेल मंत्री सोनोवाल ने सभी बिन्दुओं  को  ध्यान से सुनते हुए खिलाड़ी हित में कार्य करने का आश्वासन दिया।
फाउण्डेशन के अध्यक्ष अजीत वर्मा ने खिलाड़ियों को उनका वाजिब हक दिलाने के साथ ही खेल मंत्री को वालीबाल में चल रहे फर्जीवाड़े से भी अवगत कराया। खेल मंत्री ने प्रतिनिधिमंडल को वालीबाल में चल रहे भाई-भतीजावाद की जांच कराने का आश्वासन दिया। खेल मंत्री को सौंपे ज्ञापन में शारीरिक शिक्षा को प्राथमिक स्तर से ही अनिवार्य करने, भारतीय खेल प्राधिकरण, खेल परिषदों में प्रशिक्षकों को स्थायी नियुक्ति देने और खिलाड़ियों को नौकरी में 10 फीसदी आरक्षण की मांग की है। फाउण्डेशन ने खेल मंत्री से गुजारिश की कि खिलाड़ियों को उचित परवरिश मिले तथा सभी खेल उपकरण टैक्स-फ्री हों। इतना ही नहीं फाउण्डेशन ने आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी के समकक्ष खेल शिक्षा एवं प्रशिक्षण को भी प्राथमिकता देने का अनुरोध किया है।
प्रतिनिधिमंडल ने सरकार से ग्रामीण स्तर पर खेलों के प्रचार-प्रचार को प्रश्रय देने और प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को टोल-फ्री नम्बर उपलब्ध कराने के साथ ही उन्हें हर तरह की नि:शुल्क सहायता देने की मांग की है। इस अवसर पर खेल मंत्री का ध्यान खेल संगठनों की कारगुजारियों पर भी दिलाया गया। प्रतिनिधिमंडल का कहना है कि निरंकुश खेल संगठनों पर अंकुश लगाने के लिए जरूरी है कि  सरकार सभी खेल संगठनों को अपने नियंत्रण में ले ले। सरकार यह काम खेल अधिनियम के जरिए कर सकती है। फाउण्डेशन ने खेल मंत्री सोनोवाल से खेल पुरस्कारों में पारदर्शिता लाने के लिए पुरस्कार चयन प्रक्रिया को आॅन लाइन किए जाने, पब्लिक ओपीनियन को महत्व देने और खेल संघों में लम्बे समय से काबिज खेलनहारों को सख्ती से हटाने की मांग की है। केन्द्रीय खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने प्रतिनिधिमंडल की मांगों को न केवल ध्यान से सुना बल्कि खिलाड़ियों को हरमुमकिन सहायता देने का आश्वासन भी दिया।
उम्मीद है कि खेलमंत्री जी कुछ करेंगे: अजीत वर्मा
स्पर्श स्पोर्ट्स डेवलपमेंट फाउण्डेशन के अध्यक्ष अजीत वर्मा ने पुष्प सवेरा को बताया कि केन्द्रीय खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने जिस तरह से हर मुद्दे पर चर्चा की उससे उम्मीद बंधी है कि खिलाड़ियों का भला होगा और खिलाड़ी जरूर खिलखिलाएंगे। प्रतिनिधिमण्डल में अजीत वर्मा, राहुल गर्दी, रवि शंकर आचार्य, देवेन्द्र बहादुर यादव, सुन्दर धोनी, कमलेश भार्गव तथा बुद्धी राणा शामिल थे।
और चौंक गए खेल मंत्री
स्पर्श स्पोर्ट्स डेवलपमेंट फाउण्डेशन के प्रतिनिधिमण्डल ने जैसे ही वालीबॉल संघ के महासचिव की कारगुजारी सुनाई खेल मंत्री सोनोवाल चौंक गये। महासचिव ने न केवल अपनी बेटी का भारतीय टीम में चयन कराया बल्कि उसी आधार पर उसे मेडिकल कॉलेज में दाखिला भी दिला दिया। प्रतिनिधिमण्डल ने उदीयमान खिलाड़ियों का भविष्य खराब करने वाले वालीबॉल संघ के गड़बड़झाले की जांच किए जाने की मांग की है। खेल मंत्री ने आश्वासन दिया कि सचिव खेल से जांच कराकर उचित कार्रवाई की जाएगी।




Monday 16 February 2015

होली से पहले मनी दिवाली

विश्व कप में नौवीं बार भारत से हारा पाक
मुल्क खुश है। होना भी चाहिए, आखिर होली से ठीक पहले धोनी की सेना ने अपने मुरीदों को दिवाली मनाने का तोहफा जो दिया है। 1992 में मोहम्मद अजहरुद्दीन की सेना ने विश्व पटल पर पाकिस्तान को पटकने का जो सिलसिला शुरू किया था, उसे धोनी के धुरंधरों ने बरकरार रखा है। 23 साल पहले भी विश्व कप आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड की ही सरजमीं पर खेला गया था। तब भारत से पराजय के बावजूद इमरान खान ने कप चूमा था। 74 साल की फटाफट क्रिकेट में अनगिनत रिकॉर्ड बने और टूटे हैं पर 40 साल की युवा विश्व कप क्रिकेट में पाकिस्तान पर भारत की फतह का रिकॉर्ड अटूट है। आज विराट की विराट ऐतिहासिक पारी के बाद भारतीय गेंदबाजों ने पाकिस्तान के खिलाफ अजेय अभियान का जो शंखनाद किया, वह वाकई अतुलनीय और प्रशंसनीय है।
रविवार की सुबह से ही देश भर में भारत-पाक मुकाबले की चर्चा होती रही। यह हमारी  क्रिकेट के प्रति दीवानगी ही है कि भारत-पाक मुकाबले को लेकर कुछ घण्टे के लिए ही सही देश का जनजीवन ठहर सा गया।  आस्ट्रेलिया में पिछले दो महीने से दुर्गति करा रही भारतीय टीम पाकिस्तान पर इतनी धाकड़ जीत दर्ज करेगी इस पर हर क्रिकेट मुरीद को संदेह था, पर उसके खिलाफ पाकिस्तान की हार का मिथक आज भी कायम रहा।  एडिलेड में पाकिस्तान की 76 रन की शिकस्त के बाद भारतीयों ने फागुन माह में दिवाली तो पड़ोसी मुल्क में मातम मनाया गया। पाकिस्तान की 50 ओवर की विश्व कप क्रिकेट में यह भारत के खिलाफ लगातार छठी तो सभी तरह के विश्व कपों में नौवीं पराजय है। पाकिस्तान को भारत के खिलाफ टी-20 विश्व चैम्पियनशिप में भी तीन बार हार का सामना करना पड़ा है। भारत ने सबसे पहले पाकिस्तान को 1992 विश्व कप के सिडनी में 43 रन से हराया था। 1996 विश्व कप में बेंगलूर में टीम इण्डिया ने चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान को 39 रन तो तीन साल बाद मैनचेस्टर में 47 रन से शिकस्त दी थी। विश्व कप में पाकिस्तान के खिलाफ दबदबे को कायम रखते हुए सौरव सेना ने सेंचुरियन में 2003 विश्व कप में  पड़ोसी पाक को छह विकेट से पराजय का हलाहल पिलाया तो 2011 में  धोनी के धुरंधरों ने मोहाली में हुए सेमीफाइनल में न केवल 29 रनों से शिकस्त दी बल्कि विश्व कप भी चूम दिखाया। धोनी के दिग्गजों ने एकदिनी ही नहीं  टी-20 विश्व कप क्रिकेट में भी पाकिस्तान पर दबदबा कायम रखा है। भारत ने 2007 में जोहान्सबर्ग में पाकिस्तान को फाइनल में पांच रन, 2012 में आठ विकेट तो 2014 में ढाका में सात विकेट से करारी शिकस्त दी थी।
धोनी सेना ने विश्व कप में शानदार आगाज किया है पर उसके जेहन में यह बात होनी चाहिए कि यह अनिश्चितताओं का खेल है। 29 मार्च तक बहुत क्रिकेट खेली जानी है। पाकिस्तान पर बिन्दास जीत के बावजूद टीम इण्डिया में कई खामियां हैं जिन्हें दूर किए बिना विश्व कप नहीं जीता जा सकता। विराट कोहली, सुरेश रैना और बड़े दिनों बाद शिखर धवन का रौ में दिखना अच्छा संकेत है, पर जिस तरह अंतिम 10 ओवरों में हमारे बल्लेबाजों ने विकेट लुटाए वह चिन्ता की बात है। हमारा लक्ष्य पाकिस्तान पर जीत नहीं बल्कि खिताब की रक्षा होना चाहिए। 29 मार्च से पहले भी हम विश्व चैम्पियन हैं, यह अहसास धोनी की पलटन को सभी टीमों को कराना होगा। भारत की पाकिस्तान पर इस शानदार जीत ने क्रिकेट महाभारत में नई जान डाल दी है। 29 मार्च को खिताब कोई भी जीते पर भारत की इस जीत से क्रिकेट जरूर मालामाल हो गया है। 

मुख्यमंत्री अखिलेश का हरफनमौला खेल

मैन आॅफ द मैच और सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज रहे
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव राजनीति में ही नहीं बल्कि क्रिकेट में भी दो-दो हाथ करने में पीछे नहीं हैं। वह रविवार को यहां खेले गये 20-20 क्रिकेट मैच में मैन आॅफ द मैच और सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज रहे। यहां मुख्यमंत्री-11 और आईएएस-11 की टीमों के बीच आईएएस सर्विस वीक के दौरान 20-20 मैच में अखिलेश यादव की टीम ने आईएएस अधिकारियों की टीम को 15 रन से पराजित किया। मुख्य अतिथि विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय ने विजेता टीम को ट्राफी प्रदान की। अखिलेश यादव मैन आॅफ द मैच और सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज चुने गये। अखिलेश की टीम ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी का फैसला किया और 20 ओवर में चार विकेट खोकर 151 रन बनाये। मुख्यमंत्री-11 की ओर से इरफान सोलंकी ने 40, अखिलेश ने 35 और राकेश प्रताप सिंह ने 32 रन बनाये। जावेद उस्मानी के नेतृत्व वाली आईएएस-11 की टीम जवाब में केवल 136 रन बनाकर आॅल आउट हो गयी। अखिलेश यादव ने शानदार गेंदबाजी करते हुए दो विकेट लिये।

विराट अति आक्रामकता से बचें: ली

आस्ट्रेलिया के महान तेज गेंदबाज ब्रेट ली का मानना है कि भारत के नम्बर एक बल्लेबाज विराट कोहली अब भी सीखने के दौर से गुजर रहे हैं और उसे आक्रामक खेलने के अपने स्वाभाविक तरीके को नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए।
   कोहली की बल्लेबाजी के प्रशंसक ली ने कहा कि इस आक्रामक बल्लेबाज को अधिक हावी नहीं होने की कोशिश करनी चाहिए और उन्होेंने महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर और इस युवा बल्लेबाज के बीच के अंतर के बारे में बताया जो उन्होंने महसूस किया।  ली ने कहा, सचिन को अपने खेल के बारे में बेहतर पता था जो उसके अपार अनुभव को देखते हुए आप उम्मीद कर सकते हो। वह अपनी सीमाओं में खेलता था। मेरे लिए विराट विश्व स्तरीय खिलाड़ी है लेकिन वह अब भी सीखने के दौर से गुजर रहा है। उसे विरोधी पर अधिक दबदबा नहीं बनाने का प्रयास करने की कला सीखनी होगी। ली का मानना है कि, अगर भारतीय टीम एकजुट हो जाती है तो वह विश्व कप में सेमीफाइनल में जगह बनाने की दावेदार हो सकती है। मैं अन्य टीमों में आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका को चुनूंगा।
अपने समय दुनिया के सबसे तेज गेंदबाज रहे ली ने स्वीकार कि मौजूदा परिस्थितियों में वह आस्ट्रेलिया के तेज गेंदबाजों को लेकर पक्षपात करते हैं लेकिन उन्होंने उमेश यादव को प्रतिभावान गेंदबाज बताया। आस्ट्रेलिया की ओर से 76 टेस्ट और 221 वनडे खेलने वाले ली ने कहा, विश्व कप में मिशेल जानसन, पैट कमिंस और जोश हेजलवुड से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद है। विश्व कप के अलावा मुझे भारत का उमेश काफी पसंद है। उसके पास गति और जज्बा है।
आस्ट्रेलिया के खिलाफ हाल में टेस्ट श्रृंखला भारत की गेंदबाजी में क्या गलत हुआ यह पूछने पर ली ने कहा, मुझे नहीं लगता कि भारतीय तेज गेंदबाजों के प्रदर्शन में निरंतरता थी। टेस्ट श्रृंखला में उन्होंने चरणों में अच्छी गेंदबाजी की और फिर बल्लेबाजों को चंगुल से निकल जाने दिया। मुझे साथ ही लगता है कि उन्हें अहम लम्हों पर जीत दर्ज करनी होगी। उन्हें पुछल्ले बल्लेबाजों को आउट करना होगा। आस्ट्रेलिया ऐसे ही टेस्ट मैच जीतता है। अपने समकक्ष विश्व स्तरीय बल्लेबाजों के बारे में पूछने पर ली ने तेंदुलकर, ब्रायन लारा और जाक कैलिस का नाम लिया।
उन्होंने कहा- सचिन, लारा और कैलिस तीन सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज हैं जिन्हें मैंने गेंदबाजी की। जब सचिन बल्लेबाजी करता था लगता है कि शाट खेलने के लिए उसके पास काफी समय है। ब्रायन किसी भी गेंद को मैदान के किसी भी हिस्से में खेल सकता था। ऐसी उसकी प्रतिभा थी। जाक भी विश्व स्तरीय था। लेकिन मेरे समय में क्रिकेट की गेंद पर सबसे कड़ा प्रहार करने वाला नि:संदेह क्रिस केर्न्स था।

Saturday 14 February 2015

खेलों में झूठी शॉन, मध्यप्रदेश महान


शिवराज जी! बाहरी नहीं खेलते तो राष्ट्रीय खेलों में 50 पदक भी नहीं होते
ग्वालियर। झारखण्ड में हुए पिछले राष्ट्रीय खेलों की अपेक्षा केरल में हुए 35वें नेशनल खेलोत्सव में मध्यप्रदेश को कुछ कम पदक मिले हैं।  पिछले खेलों की ही तरह मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण  विभाग ने  झूठी शॉन की खातिर अपने खिलाड़ियों से परहेज करते हुए आयातित खिलाड़ियों पर अधिक भरोसा किया,  बावजूद  उसके प्रदेश को 23 स्वर्ण, 26 रजत और 42 कांस्य सहित कुल 91 पदक ही हासिल हुए। घटते पदकों पर खेलों के आका इन खेलों में कराते के शामिल न होने का बहाना बना सकते हैं। जो भी हो खुशी के इस अवसर पर मध्यप्रदेश के विजेता खिलाड़ियों ही नहीं प्रदेश से बाहर के खिलाड़ियों संदीप सेजवाल, रिचा मिश्रा, आरोन एंजिल डिसूजा, नैनो देवी, सोनिया देवी और पश्चिम बंगाल की उदीयमान जिम्नास्ट प्रणति नायक आदि को भी बधाई। बधाई इसलिए कि वे नहीं होते तो मध्यप्रदेश के पदकों की संख्या 50 भी नहीं होती।
खेलों में प्रदेश की इस झूठी बलैया पर मंत्री से संतरी तक इतरा रहे हैं। खेलप्रेमियों के सामने सच आना चाहिए। आखिर शिवराज सरकार प्रतिवर्ष लगभग दो अरब रुपया खेलवाड़ में  जाया कर रही है। 14 फरवरी को राष्ट्रीय खेलों के समापन के बाद प्रदेश छठवें स्थान पर रहा। इन खेलों में रिचा मिश्रा, संदीप सेजवाल, आरोन एंजिल डिसूजा, नैनो देवी, सोनिया और प्रणति नायक आदि प्रदेश से बाहर के खिलाड़ियों ने 40 से अधिक पदक जीते हैं।  प्रदेश सरकार और खेल विभाग उन्मादित है, पर वे बताएं कि राष्ट्रीय खेलों में प्रदेश का नाम रोशन करने वाले इन गैर खिलाड़ियों  से क्या हासिल हुआ? हमें  शेखी बघारने की बजाय बड़े दिल से स्वीकारना होगा कि श्रेष्ठता की जंग जीतने का माद्दा हममें नहीं है।  शिवराज सरकार खेलों में सिर्फ ठकुरसुहाती से गद-गद है। मीडिया सच उजागर करने की हिम्मत इसलिए नहीं जुटा पा रहा कि कहीं महल नाराज न हो जाए और खेल विभाग दाना-पानी न बंद कर दे।
मध्य प्रदेश में खेलोत्थान की कोशिशों को खेल विभाग के कारिंदों से काफी नुकसान हुआ है। सरकार ने बेशक हॉकी और वॉटर स्पोर्ट्स पर कई करोड़ खर्च किए हों पर राष्टÑीय खेलों में प्रदेश की हॉकी टीमें नहीं खेलीं। पिछले खेलों की कांस्य पदक विजेता महिला टीम से इस बार स्वर्ण पदक की उम्मीद थी, पर कोच साहब की करतूतों ने उम्मीदों पर पानी फेर दिया।  प्रदेश के खिलाड़ियों ने जो 50 पदक जीते हैं, उनमें ऐसे खिलाड़ी भी हैं जिन्होंने  प्रदेश सरकार की बिना मदद राज्य का गौरव बढ़ाया है। खेल संगठनों को ऐसे खिलाड़ियों के प्रदर्शन का उत्साह के साथ स्वागत किया जाना चाहिए। ये खिलाड़ी क्षेत्रीय सीमाओं में बंधे हुए नहीं हैं बल्कि उनकी प्रतिभा राज्य के कोने-कोने के खिलाड़ियों की प्रेरणा बने, ऐसी कोशिश जरूर होनी चाहिए। खेलों का अच्छा व नया वातावरण तैयार करना है तो सुविधाओं पर ही नहीं बल्कि प्रतिभावान खिलाड़ियों पर भी पूरा ध्यान देना होगा। हाल में प्रदेश के खिलाड़ियों की उपेक्षा पर हमने जो पदक जीते हैं, उन पर इतराने की बजाय हमें कोशिश करनी चाहिए कि भविष्य में मध्य प्रदेश के खिलाड़ी अधिक से अधिक पदक जीतें। आखिर हम पराये पूतों से कब तक यश की ताली पीटेंगे। राष्ट्रीय खेलों में पदक जीतकर आने वाले खिलाड़ियों की चर्चा और सरकार की ओर से उनकी उपलब्धियों को मिलती सराहना ठीक है, पर इसके लिए ईमानदार प्रयास भी जरूरी हैं।
35वें राष्ट्रीय खेल 2015 (केरल), टॉप 15 राज्य
राज्य स्वर्ण रजत कांस्य कुल स्थान
सर्विसेज 91 33 35 159 पहला
केरल 54 48 60 162 दूसरा
हरियाणा 40 40 27 107 तीसरा
महाराष्टÑ 30 43 50 123 चौथा
पंजाब 27 34 32 93 पांचवां
एमपी 23 27 41 91 छठा
मणिपुर 22 21 26 69 सातवां
तमिलनाडु 16 16 20 आठवां
गुजरात 10 04 06 20 नौवां
असम 09 05 11 25 दसवां
कर्नाटक 08 21 24 53 ग्यारहवां
तेलंगाना 08 14 11 33 बारहवां
झारखण्ड 08 03 12 23 तेरहवां
यूपी 07 31 30 68 चौदहवां
पश्चिम बंगाल 06 12 30 48 पंद्रहवां

इन पर मध्यप्रदेश  का दांव सफल
खिलाड़ी स्वर्ण रजत कांस्य कुल
रिचा मिश्रा 04 01 02 07
संदीप सेजवाल 04 00 02 06
आरोन एंजिल 03 01 04 08
नैनो देवी 01 05 00 06
सोनिया देवी 01 04 02 07
 प्रणति नायक 00 02 01 03


Friday 13 February 2015

एक खिताब, चौदह दावेदार

आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, भारत और श्रीलंका कर सकते हैं कमाल
क्रिकेटप्रेमियों को जिन पलों का इंतजार था, वह पल उसके सामने हैं। अब 29 मार्च तक किन्तु-परंतु का दौर चलेगा। 44 दिन तक खिलाड़ियों का प्रदर्शन तो लोगों की उम्मीदें परवान चढ़ेंगी। 14 देशों की इस क्रिकेट नुमाइश में किसका बल्ला चमकेगा, किसकी गेंदें कहर बरपाएंगी, कौन चैम्पियन बनेगा और किसके हाथों होगा ताज  इस सब के लिए क्रिकेट मुरीदों को 49 मुकाबलों तक इंतजार करना होगा। क्या भारत एक बार फिर विश्व चैम्पियन बनेगा? क्या आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की उछाल भरी विकेटों पर धोनी के धुरंधर अपने धुंआधार खेल से अपने खिताब की रक्षा कर पाएंगे या कोई नया चैम्पियन पैदा होगा, ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब सिर्फ और सिर्फ खिलाड़ियों को ही देना है। क्रिकेट ही एक ऐसा खेल है जिसकी उम्मीदें हमेशा जीवंत रहती हैं। टीम इण्डिया के धुर समर्थक मानते हैं कि पिछले दो माह में आस्ट्रेलियाई विकेटों पर धोनी के धुरंधरों की कैसी भी दुर्दशा क्यों न हुई हो मगर वे विश्व चैम्पियन बनकर ही लौटेंगे। जो भी हो इस विश्व कप में कुछ अनजान टीमें यदि उलटफेर का माद्दा रखती हैं तो मेजबान आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड, चोकर्स दक्षिण अफ्रीका तथा श्रीलंका की दावेदारी को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता। अपने प्रदर्शन में स्थायित्व लाकर क्रिकेट जनक इंग्लैण्ड भी वह कर सकता है, जोकि पूर्व में उससे नहीं हुआ।
एक खिताब के 14 दावेदारों पर काफी बहस की जा सकती है। क्रिकेट जानकार आंकड़ों और हालिया प्रदर्शन को देखते हुए कंगारुओं को खिताब का सबसे प्रबल दावेदार मान रहे हैं, पर मेरा मानना है कि मैदान में आंकड़े नहीं बांकुरों का प्रदर्शन मायने रखेगा। बात भारत की करें तो आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड में भारतीय टीम के प्रदर्शन को देखकर नहीं लगता कि जीत का सेहरा टीम इण्डिया के सिर बंधेगा।  पर इतिहास इस बात का गवाह है कि जब-जब भारतीय टीम को भाव नहीं दिया गया, तब-तब उसने शानदार प्रदर्शन किया है। आंकड़ों पर गौर करें तो आस्ट्रेलिया में भारतीय टीम ने कुल 80 मैचों में से सिर्फ 31 में ही विजयश्री हासिल की है। न्यूजीलैंड में तो टीम इण्डिया का और भी बुरा हाल है। उसने वहां खेले 40 मैचों में से केवल 12 में ही जीत का स्वाद चखा है। आस्ट्रेलिया में भारतीय जीत का औसत जहां 38.75 प्रतिशत है वहीं न्यूजीलैंड में सिर्फ 30 प्रतिशत। वर्ष 1992 में आस्ट्रेलिया में आयोजित विश्व कप के दौरान भारत की दुर्गति भला कौन भूल सकता है। उस समय भारतीय टीम लीग मैचों के बाद ही विश्व कप से बाहर हो गई थी। उसने 8 मैचों में से सिर्फ 2 मुकाबले जीते थे। भारत के लिए खुशी की बात सिर्फ इतनी थी कि उसने अपने धुर विरोधी पाकिस्तान को पराजित किया था।
आंकड़े तो अच्छी तस्वीर प्रस्तुत नहीं करते  फिर भी 1983 का विश्व कप याद आते ही कुछ हिम्मत बंध जाती है। जिस समय कपिल देव के नेतृत्व में भारत ने विश्व कप जीता उस समय उनकी जीत का प्रतिशत 66 में से एक माना जा रहा था। अब अगर भारत को यह विश्व कप जीतना है तो बल्लेबाजों को अपना जलवा दिखाना होगा। आस्ट्रेलिया दौरे में भारतीय बल्लेबाजों ने कई बार 400 का आंकड़ा पार कर न केवल उम्मीद की लौ जलाई बल्कि उसके खिलाड़ियों ने इस बात का संकेत दिया कि वे उछाल भरी पिचों पर तेज गेंदबाजी का सामना करने का माद्दा रखते हैं। कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी, विराट कोहली, अजिंक्य रहाणे, रोहित शर्मा, सुरेश रैना और शिखर धवन की जांबाजी पर किसी को संदेह नहीं है बशर्ते  उनके बल्लों को सांप न सूंघे। भारतीय टीम की समस्या बल्लेबाजी नहीं बल्कि  गेंदबाजी है। मोहम्मद शमी, उमेश यादव सरीखे गेंदबाज 140 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से गेंदें फेंकने की काबिलियत तो रखते हैं पर उनका लाइन-लेंथ पर कंट्रोल नहीं है। भुवनेश्वर कुमार की रफ्तार आस्ट्रेलियाई विकेटों के लिए काफी कम है। धोनी की सेना इस कमी को अपने चपल क्षेत्ररक्षण से दूर कर सकती है।  एक अच्छा कैच, एक बेहतरीन रन आउट या सीमा रेखा पर शानदार क्षेत्ररक्षण टीम इण्डिया के मनोबल को एकदम फर्श से अर्श पर ले जा सकता है। भारतीय टीम में मौला तो हैं लेकिन हरफनमौला का अभाव है। स्टुअर्ट बिन्नी को युवराज की भरपाई के लिए रखा गया है मगर बिन्नी की अपनी सीमाएं हैं, वह युवराज नहीं बन सकता।
पाकिस्तान भी कम नहीं
 पिछले कुछ समय से पाकिस्तान की टीम चाहे जैसा भी प्रदर्शन कर रही हो मगर इस टीम को विश्वकप की दावेदारी से नकारना बड़ी भूल होगी। टीम के रूप में जब-जब पाकिस्तानी खेले उन्होंने पासा जरूर पलटा है। इंग्लैंड के विरुद्ध खेले गये अभ्यास मैच में पाक टीम का दमखम देखने लायक रहा।  इंग्लैंड को जहां धोनी के धुरंधर आस्ट्रेलियाई धरती पर नहीं हरा सके, पाकिस्तान ने आते ही उसे धूल चटा दी। पिछले साल एशिया कप में मीरपुर में अंतिम ओवर में शाहिद अफरीदी के दो धमाकेदार छक्कों की बदौलत पाकिस्तान ने भारत को हराकर करारा झटका दिया था परन्तु इसके बाद वह श्रीलंका (1-2), आस्ट्रेलिया (0-3) और न्यूजीलैंड (2-3) से वनडे सीरीज हार गया। पिछले 11 मैचों में पाकिस्तान केवल तीन में ही जीत हासिल कर सका है। मगर उन तीन  धमाकेदार जीतों ने पाकिस्तानी खिलाड़ियों की जुझारू शक्ति का आगाज जरूर कराया है।  पाकिस्तान की गेंदबाजी भी कमोबेश भारत की ही तरह है। इस बार उसमें उतनी धार नहीं है जो पहले हुआ करती थी। सोहेल तनवीर, शाहिद अफरीदी, वहाब रियाज, मोहम्मद इरफान इतने प्रभावशाली नहीं रहे, मगर आस्ट्रेलियाई और न्यूजीलैंड की पट्टियां उनके लिए वरदान साबित हो सकती हैं। बल्लेबाजी की बात करें तो सईद अजमल और मोहम्मद हफीज पर प्रतिबंध लगने से पाकिस्तान को करारा झटका लगा है। बल्लेबाजी में कप्तान मिस्बाह उल हक टीम की धुरी रहेंगे। इसके अलावा यूनिस खान का अनुभव टीम के काम आयेगा। अफरीदी और उमर अकमल की आतिशी बल्लेबाजी टीम को जीत दिलाने की कूबत रखती है। पाकिस्तान को पता है कि 23 साल पहले भारत से हारने के बावजूद उसने आस्ट्रेलिया में ही एकमात्र विश्व कप खिताब जीता था।
मेजबान आस्ट्रेलियाई टीम सबसे सुगठित लग रही है। अपनी पट्टियों पर उसके पट्ठे कुछ भी करने का माद्दा रखते हैं। डेविड वार्नर, ग्लेन मैक्सवेल जैसे खिलाड़ी कुछ ही ओवरों में मैच का रुख बदलने की काबिलियत रखते हैं तो स्मिथ भी किसी से कमतर नहीं कहे जा सकते। गेंदबाजी तो कंगारुओं की कभी भी कमजोर नहीं रही। इस बार उसके पास आरोन फिंच और जॉर्ज बैली जैसे शांत लगते गेंदबाज बेहद घातक साबित हो सकते हैं। माइकल क्लार्क की सेना में एक से बढ़कर एक खिलाड़ी मौजूद हैं। आस्ट्रेलिया टीम यदि अति आत्मविश्वास का शिकार न हुई तो उसे ग्यारहवें विश्व कप से शायद ही कोई टीम दूर कर सके। खिताब के चौदह दावेदारों में आस्ट्रेलिया के बाद दक्षिण अफ्रीका, वेस्टइंडीज, न्यूजीलैण्ड, इंग्लैण्ड और श्रीलंका भी शुमार हैं।  दक्षिण अफ्रीका की टीम कप्तान एबी डिविलियर्स और हासिम अमला के हमलावर अंदाज के चलते जहां बेहद ताकतवर है वहीं गेंदबाजी में डेल स्टेन की कहना ही क्या। वेस्टइंडीज टीम क्रिस गेल के बूते कुछ कर सकती है, पर अकेला चना शायद ही भाड़ फोड़ पाए। श्रीलंका टीम कुमार संगकारा और लसिथ मलिंगा पर आश्रित होगी।
क्रिकेट विश्व कप के दिलचस्प रिकॉर्ड
-विश्व कप में सर्वाधिक रनों का रिकॉर्ड सचिन तेंदुलकर के नाम दर्ज है। उन्होंने 1992 से 2011 तक छह विश्व कप के 45 मैचों में 56.95 के औसत से 2278 रन बनाए।
-विश्व कप में दूसरे सबसे ज्यादा रन का रिकॉर्ड रिकी पोंटिंग के नाम दर्ज है। उन्होंने 46 मैचों में 45.86 के औसत से ये रन बनाए।
-विश्व कप में सबसे ज्यादा शतकों का कीर्तिमान सचिन के नाम दर्ज है। उन्होंने 45 मैचों में छह शतक लगाए।
-विश्व कप में दूसरे सबसे ज्यादा शतक आॅस्ट्रेलिया के रिकी पोंटिंग ने लगाए। उन्होंने 46 मैचों में यह कारनामा किया।
-विश्व कप में 50 रनों से ज्यादा की सर्वाधिक पारियां खेलने का रिकॉर्ड भी सचिन के नाम दर्ज है। उन्होंने 21 बार यह कारनामा किया था। दूसरे क्रम पर रिकी पोंटिंग हैं, जिन्होंने 11 बार यह उपलब्धि हासिल की।
-सबसे ज्यादा छह विश्व कप संस्करणों में खेलने का रिकॉर्ड संयुक्त रूप से पाकिस्तान के जावेद मियांदाद और भारत के सचिन तेंदुलकर के नाम पर दर्ज है। मियांदाद ने 1975 से 1996 और सचिन ने 1992 से 2011 में इसे अंजाम दिया।
-विश्व कप की एक पारी में सर्वाधिक रन का रिकॉर्ड गैरी कर्स्टन के नाम पर है। उन्होंने 16 फरवरी, 1996 को रावलपिंडी में संयुक्त अरब अमीरात के खिलाफ 188 रनों की नाबाद पारी खेली थी।
-विश्व कप में किसी एक पारी में दूसरा बड़ा स्कोर सौरव गांगुली ने बनाया था। उन्होंने यह कारनामा 26 मई, 1999 को टांटन में श्रीलंका के खिलाफ किया था।
-विश्व कप में सर्वाधिक विकेट लेने का रिकॉर्ड आॅस्ट्रेलिया के ग्लेन मैक्ग्राथ के नाम पर दर्ज है। उन्होंने क्रिकेट महाकुंभ में कुल 71 विकेट चटकाए।
-विश्व कप खिताब सर्वाधिक चार बार आॅस्ट्रेलिया ने जीता। वेस्टइंडीज और भारत 2-2 बार विजेता बने जबकि पाकिस्तान और श्रीलंका ने एक-एक बार यह खिताब हासिल किया।
-विश्व कप की सर्वाधिक चार बार मेजबानी का श्रेय इंग्लैंड को जाता है।
-विश्व कप में सर्वाधिक 76 मैच आॅस्ट्रेलिया ने खेले हैं। आॅस्ट्रेलिया ने 55 मैचों में जीत दर्ज की जबकि 19 मैचों में उसे हार मिली। एक मैच टाई रहा जबकि एक बेनतीजा रहा।
-विश्व कप में चार देश (बरमूडा, ईस्ट अफ्रीका, नामीबिया और स्कॉटलैंड अभी तक एक भी मैच नहीं जीत पाए हंै।
-भारत ने विश्व कप में अभी तक 67 मैचों में हिस्सा लिया। उसने 39 मैचों में जीत दर्ज की जबकि 26 में उसे हार का सामना करना पड़ा। एक मैच टाई रहा, जबकि एक मैच बेनतीजा रहा।
-विश्व कप में भारत और इंग्लैंड ने 39-39 मैच जीते हंै। भारत ने जहां 67 मैचों में हिस्सा लिया, वहीं इंग्लैंड ने 66 मैच खेले।
-विश्व कप के मैच में सर्वाधिक स्कोर बनाने का रिकॉर्ड भारत के नाम दर्ज है। भारत ने 19 मार्च, 2007 को पोर्ट आॅफ स्पेन में बरमूडा के खिलाफ पांच विकेट पर 413 रन बनाए थे।
-विश्व कप में दूसरा बड़ा स्कोर श्रीलंका के नाम दर्ज है। उसने छह मार्च, 1996 को कैंडी में केन्या के खिलाफ पांच विकेट पर 398 रन बनाए थे।
-विश्व कप में सबसे कम स्कोर का रिकॉर्ड कनाडा के नाम दर्ज है। उसकी पारी पर्ल में 19 फरवरी, 2003 को श्रीलंका के खिलाफ 36 रनों पर सिमटी थी।
-विश्व कप में दूसरे कम स्कोर का रिकॉर्ड संयुक्त रूप से कनाडा (1979 में मैनचेस्टर में इंग्लैंड के खिलाफ) और नामीबिया (2003 में ब्लोमफोंटेन में आॅस्ट्रेलिया के खिलाफ) दर्ज है।
-विश्व कप में रनों के लिहाज से सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड भारत के नाम दर्ज है। उसने 19 मार्च, 2007 को पोर्ट आॅफ स्पेन में बरमूडा को 257 रनों से हराया था।
-विश्व कप में दूसरी बड़ी जीत का रिकॉर्ड आॅस्ट्रेलिया के नाम दर्ज है, उसने पोचेफस्ट्रूम में 27 फरवरी, 2003 को नामीबिया को 256 रनों से हराया था।
-विश्व कप में 11 बार टीमों ने 10 विकेट से जीत दर्ज की। वेस्टइंडीज, दक्षिण अफ्रीका, श्रीलंका और न्यूजीलैंड ने 2-2 बार विपक्षी टीमों को 10 विकेट से हराया। भारत, पाकिस्तान और आॅस्ट्रेलिया ने यह कारनामा 1-1 बार अंजाम दिया।
-इंग्लैंड के नाम विश्व कप में सबसे ज्यादा गेंद शेष रहते जीत दर्ज करने का रिकॉर्ड है। उसने 13 जून, 1979 को मैनचेस्टर में कनाडा को 277 गेंद शेष रहते 8 विकेट से हराया था।
-विश्व कप में सबसे कम रनों से जीत का रिकॉर्ड आॅस्ट्रेलिया के नाम दर्ज है। उसने दो बार विपक्षी टीम को इस अंतर से हराया। नौ अक्टूबर, 1987 को चेन्नई में उसने भारत को तथा एक मार्च, 1992 को ब्रिसबेन में भारत को एक रन से हराया था।
-विश्व कप में चार बार टीमों ने विपक्षी टीम को एक विकेट से हराया। वेस्टइंडीज, पाकिस्तान, दक्षिण अफ्रीका और इंग्लैंड ने इस अंतर से जीत दर्ज की।
-स्कॉटलैंड टीम ने 20 मई, 1999 को चेस्टर ली स्ट्रीट में पाकिस्तान के खिलाफ मैच में 59 अतिरिक्त रन दिए, जो विश्व कप का रिकॉर्ड है।

Thursday 12 February 2015

सबका सपना, विश्व कप अपना

14 मैदानों में 14 देशों के 210 मौला-हरफनमौला खिलाड़ी 43 दिन तक मचाएंगे धमाल
क्रिकेट का इतिहास बहुत पुराना है, पर पिछले 40 साल से जो फटाफट क्रिकेट खेली जा रही है, उसकी कहना ही क्या? सात जून, 1975 से प्रारम्भ हुआ एकदिनी विश्व कप क्रिकेट आज खेलप्रेमियों की धड़कन बन चुका है। वेस्टइंडीज की दबंगई, भारत में आत्मविश्वास का उदय, एलन बॉर्डर की आस्ट्रेलियाई टीम की प्रेरणा से उपजा पेशेवर अंदाज, पाकिस्तानी खिलाड़ियों की दीवानगी, श्रीलंकाई रणनीतिज्ञों की अबूझ चालें और लम्बे समय तक स्व-शान की खुमारी में डूबे धोनी के धुरंधरों का 2011 में एक बार फिर उठ खड़ा होना एकदिनी क्रिकेट के वे पड़ाव हैं, जिन्हें सहजता से नहीं भुलाया जा सकता। जिसने भी विश्व कप क्रिकेट के रोमांच को जिया हो, उसकी नजर में इसका खासा महत्व है। फटाफट क्रिकेट सर्वोत्तम पलों के साथ ही न बिसरने वाले लम्हों का दस्तावेज भी है। इस खेल की चमक-दमक ने न केवल बड़े खेल आयोजनों का रंग फीका किया है बल्कि बेईमानी और भ्रष्टाचार के दंश भी झेले हैं। क्रिकेट भद्रजनों का खेल है, पर अब यह शौकिया नहीं खेला जाता। इसकी अनिश्चितता ही उत्सुकता और रोमांच बढ़ाती है।
आॅस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड 23 साल बाद फिर विश्व कप क्रिकेट की दावत देने जा रहे हैं। फटाफट क्रिके ट के इस ग्यारहवें जलसे में एक खिताब के लिए 14 मैदानों में 14 देशों के 210 मौला-हरफनमौला खिलाड़ी 43 दिन तक अपने पराक्रम का कमाल और धमाल मचाने को तैयार हैं। क्रिकेट मुरीदों को सचिन, वीरू, युवी जैसे जांबाजों का खेल न देख पाने का मलाल है तो डेविड वॉर्नर, विराट कोहली, महेंद्र सिंह धोनी, ग्लेन मैक्सवेल, कुमार संगकारा, स्टीफन स्मिथ, क्रिस गेल, मार्लोन सैमुअल्स, एबी डिविलियर्स, हाशिम अमला, इयोन मोर्गन, जोस बटलर, ब्रेडन मैकुलम, केन विलियम्स, और उमर अकमल जैसे जांबाजों का करिश्माई खेल देखने की उत्सुकता भी है। क्रिकेट के इस फॉर्मेट में नामुमकिन शब्द को कोई जगह नहीं है। यहां कोई बेनाम टीम या खिलाड़ी किसी भी धाकड़ टीम का दम्भ तोड़ सकते हैं। क्रिकेट बड़े बदलाव का ही दूसरा नाम है। टी-20 ने खिलाड़ियों की मारक क्षमता में इजाफा किया है तो उसने फटाफट क्रिकेट की चमक-दमक भी छीनी है। जो भी हो न्यूजीलैंड और आॅस्ट्रेलिया में मंच सज चुका है और अब कुछ ही घंटों में क्रिकेट के पट्ठे अपने प्रदर्शन का जलवा दिखाना शुरू कर देंगे। 29 मार्च को खिताबी मुकाबले से पूर्व दुनिया की 14 टीमों के कोई 210 खिलाड़ी 14 मैदानों में अपने पराक्रम की जो बानगी पेश करेंगे उसी से नया चैम्पियन पैदा होगा।
सबसे आगे हिन्दुस्तानी
 खिताब कोई जीते पर क्रिकेट के इस 11वें रंगमंच पर उतरने वाले सेनानायकों में 33 साल के महेंद्र सिंह धोनी सबसे अनुभवी हैं। पिछले दो महीने बेशक धोनी और उनके धुरंधरों के लिए ठीकठाक नहीं रहे पर अब जो टीम इण्डिया खेलेगी उसे पता है कि खिताब की रक्षा के लिए उसे कब क्या करना है। उम्मीद है कि मरती नहीं। देशवासी भरोसा रखें धोनी खिताब की रक्षा में कोई कोताही नहीं बरतेंगे और उनके जांबाज सैनिक भी अपने कप्तान को खिताब के साथ ही हिन्दुस्तान लाएंगे।
43 साल के मोहम्मद तौकीर करेंगे यूएई की कप्तानी
उम्र की बात करें तो संयुक्त अरब अमीरात के कप्तान मोहम्मद तौकीर इस विश्व कप के सबसे उम्रदराज कप्तान हैं। वह 43 साल के हैं, पर उन्होंने विश्व कप में कभी कप्तानी नहीं की। अनुभव के लिहाज से वेस्टइंडीज के 23 वर्षीय कप्तान जेसन होल्डर ने सिर्फ पांच मैचों में ही अपनी टीम का नेतृत्व किया है। पाकिस्तानी कप्तान मिसबाह उल हक 40 साल के हैं। वह चाहेंगे कि उनका मुल्क उसी धरती पर 23 साल बाद एक बार फिर दुनिया जीतने का कारनामा दोहराए।
 पांच देश, दस खिताब
 अब तक विश्व कप चूमने का सौभाग्य सिर्फ पांच देशों को ही मिला है। आॅस्ट्रेलिया चार तो वेस्टइंडीज और भारत दो-दो बार तथा पाकिस्तान और श्रीलंका एक-एक बार खिताबी जश्न मना चुके हैं। क्रिकेट पितामह इंग्लैंड तीन बार फाइनल में पहुंचने के बाद (वेस्टइंडीज 1979, आॅस्ट्रेलिया 1987 तथा पाकिस्तान 1992 से) खिताबी जंग हारा है। इंग्लैंड आखिरी बार 23 साल पहले फाइनल में पहुंचा था। संयोग से वह विश्व कप भी आॅस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की ही सरजमीं पर खेला गया था। इंग्लैंड के अलावा वेस्टइंडीज, भारत और श्रीलंका भी तीन-तीन बार खिताबी जंग लड़ चुके हैं।

Wednesday 11 February 2015

सिटी नहीं गांव बनें स्मार्ट

भारत गांवों का देश है। यहां के 5,93,731 गांवों में 72.2 फीसदी आबादी रहती है। मोदी सरकार आमजन को 100 स्मॉर्ट सिटी का सब्जबाग दिखा रही है। सरकार की मंशा जो भी हो पर इससे ग्रामीण पलायन बढ़ेगा। लोग फिर गांव और खेती-बाड़ी छोड़ेंगे। बेशक प्रधानमंत्री मोदी की अनेक महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में स्मार्ट सिटी प्रमुख हो पर समय को देखते हुए यदि सरकार यही पैसा गांवों के समुन्नत विकास यानी हर गांव को सड़क, शिक्षा और बिजली की सुविधा पर खर्च कर दे तो ग्रामीण जीवन खुशहाल हो सकता है। ग्रामीण पलायन से जहां शहरों पर बोझ बढ़ा है वहीं नई-नई समस्याएं भी पैदा हुई हैं।
मोदी सरकार देश में 100 स्मार्ट सिटी यानी ऐसे शहर बनाने जा रही है, जो चमचमाती सड़कों के साथ हरियाली, अपशिष्ट प्रबंधन की सुदृढ़ व्यवस्था, 24 घण्टे बिजली, पानी  और इन सबके साथ आधुनिकतम सूचना व संचार तकनीकी क्षमता से लैश होंगे। दूसरे शब्दों में कहें तो जीवनदाता किसान तो रोएगा पर  स्मार्ट सिटी के बाशिंदों को यह अहसास जरूर होगा कि वे सात सितारा जीवनशैली का आनंद उठा रहे हैं।  देश के नागरिक तरह-तरह के करों का भुगतान करते हैं। चुनावों में इस उम्मीद से मतदान करते हैं कि उनका जीवनस्तर थोड़ा और सुधरे। विदेशी शहरों की साफ-सफाई, यातायात व्यवस्था, सुन्दरता देखकर वहां के नागरिकों की किस्मत पर रश्क करते हैं कि हमारे देश में ऐसे शहर क्यों नहीं हैं। आम चुनावों में देश की जनता ने मोदी को भारी बहुमत अच्छे दिनों की उम्मीद पर दिया था, इसमें अच्छे  शहरों की लालसा भी दबी हो सकती है।
शिव की नगरी वाराणसी को जापान के क्योटो में तब्दील करने का सपना मोदीजी ने दिखाया है। पहले भी देश के कई शहरों को शंघाई, टोक्यो, लंदन न जाने किन-किन शहरों में बदलने का सपना राजनीतिज्ञ दिखा चुके हैं। शहरी सौंदर्यीकरण और यातायात व्यवस्था सुधारने के लिए हर साल सरकारी खर्च पर बड़े-बड़े अध्ययन दल विदेश दौरे करते रहे हैं। गर्मी  में यूरोपीय शहर तो सर्दियों में आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की यात्राएं सिर्फ पैसे का ही दुरुपयोग हैं। मोदी सरकार को सोचना होगा कि विभिन्न अध्ययनों का भारत के शहरों को क्या लाभ मिला। स्मार्ट सिटी परियोजना में कोई नई बात नहीं है। देश की सौ स्मार्ट सिटी में पहला नम्बर उस चंडीगढ़ का है, जोकि पहले से ही स्मार्ट है। उत्तरप्रदेश में नोएडा सौ स्मार्ट सिटी में शुमार है। स्मार्ट सिटी का हिन्दी तजुर्मा आधुनिक शहर होगा या आकर्षक शहर या सुन्दर शहर, नहीं  मालूम। शायद मोदी सरकार को इस अनुवाद की जरूरत भी न हो।
देखा जाए तो 1990 के दशक में जब भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया भारत में शुरू हुई तो समाज में नवधनाढ्यों, उच्च मध्यम वर्ग, निम्न मध्यमवर्ग, निम्न वर्ग, गरीबी रेखा से नीचे और गरीबी रेखा के ऊपर बसे लोगों के रूप में आर्थिक भेदभाव बढ़ा। इस बढ़ती आर्थिक खाई के कारण इण्डिया और भारत जैसे जुमले गढ़े गए। गांवों में बसता भारत बिजली संचालित सीढ़ियों से ऊपर-नीचे जाने की कला नहीं जानता। इण्डिया, जो शहरों में रहता है, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से आजीविका कमाकर, उसी के उत्पादों का उपभोग करता है। वह हायर एण्ड फायर की बोली समझता है, उसी से डरता भी है। देश में सौ स्मार्ट सिटी बन जाएंगी तो इण्डिया वालों का दबदबा अधिक होगा और भारत अपने आप को थोड़ा और हीन महसूस करने लगेगा। बेशक, सबका साथ, सबका विकास चाहने वाले नरेन्द्र मोदी सामाजिक भेदभाव नहीं बढ़ाना चाहते हों, पर आमजन को जापान, जर्मनी, स्वीडन, इजरायल, अमरीका, इंग्लैण्ड, हांगकांग, नीदरलैंड्स की उन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से क्या मिलेगा, जो भारत में स्मार्ट सिटी बनाने और बसाने के लिए कुछ हजार करोड़ खर्च करने की इच्छुक हैं। देश में सौ नहीं हजारों स्मार्ट सिटी बनें लेकिन गांवों का भी उसी तरह मुकम्मल विकास हो ताकि अंतरिक्ष से कुछ शहर ही नहीं सम्पूर्ण भारत सुन्दर नजर आए। देश के शहरों को स्मार्ट बनाने का काम तो सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही चल रहा है। अफसोस ऐतिहासिक विरासत की उपेक्षा की हमारी गलत आदत ने कई शहरों को विकृत रूप दे दिया है।
देश में स्मार्ट सिटी का राग अलापने से पहले आदर्श गांव का हो-हल्ला तो घर-घर शौचालय बनाने की बातें हुर्इं, पर  टके भर का सवाल यह है कि 100 स्मार्ट सिटी और कुछ सौ आदर्श गांवों से क्या वाकई उन जरूरतमंद लोगों की उदरपूर्ति हो जाएगी जोकि पेट की खातिर शहरों को पलायन करते हैं। हर घर में शौचालय भी हो सकते हैं, पर जब सरकार शहरी सीवर व्यवस्था को आज तक पटरी पर नहीं ला सकी  तो भला गांवों का मल-मूत्र कहां जाएगा। देश को स्मार्टनेस का पाठ पढ़ाने की बजाय मोदी सरकार को नागरिक बोध में सुधार के प्रयास करने चाहिए। यह शर्म की बात है कि आजादी के 68 साल बाद भी सरकार को अपनी जनता जनार्दन को विज्ञापनों के जरिए सिखाना पड़ता है कि सड़क के किस ओर चलें, कैसे चलें। कहीं भी कचरा न फैलाएं। खुले में मल-मूत्र का त्याग न करें। चुनावों के समय अवैध बस्तियों को वैधता दी जाती है ताकि वोट मिल सकें। इन बस्तियों से शहर की व्यवस्था में किस तरह की अड़चन हो रही है, उसे नहीं देखा जाता। कहीं गटर खुला होता है तो कहीं बिजली के तार लटकते  दिखते हैं। यातायात का हाल बेहाल है। एक बारिश में ही जीवन थम जाता है। देश के हर छोटे-बड़े शहर और कस्बे का यही हाल है। इन शहरों  के आसपास ही मोदी सरकार के स्वप्न को साकार करती स्मार्ट सिटी बनेंगी, जो टाट में मखमली पैबंद की तरह ही दिखेंगी। क्या बेहतर नहीं होता कि नयी स्मार्ट सिटी बनाने में अरबों रुपए खर्च करने की जगह पहले से बसे शहरों को सुनियोजित किया जाता। नागरिकों को उनका दायित्व समझाते हुए शैक्षणिक संस्थाओं के माध्यम से बच्चों में नागरिक बोध विकसित किया जाता।
जब भारत की जनता, प्रशासन और सरकार सभी नियम-कानून का पालन करेंगे, अपने नागरिक दायित्वों को निभाएंगे, जनता को मूलभूत सुविधाओं के साथ-साथ सामान्य शहरों के लोगों की तरह अत्याधुनिक तकनीकी सुविधाएं मयस्सर होंगी, तो अलग से स्मार्ट सिटी बनाने की जरूरत ही नहीं होगी। मोदी सरकार को यह सोचना होगा कि देश के विकास का रास्ता गांवों से होकर ही जाता है। ग्रामीण शहरों की ओर पलायन न करें इसके लिए मोदी सरकार को खेती-बाड़ी में नई तकनीक का इस्तेमाल करने के साथ ही हर घर में दुधारू पशुओं की व्यवस्था के साथ ही हर गांव को सड़कों से जोड़ना होगा। गांवों की माली हालत सुधारने के लिए बिजली-पानी और शिक्षा के साथ ही किसानों को उनकी उपज की गारंटी और उद्योगपतियों को ब्लॉक स्तर पर उद्योग-धंधे लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। कोई भी उद्योगपति ग्रामीण क्षेत्र में तभी उद्योग-धंधे लगाएगा जब सरकार उन्हें भयमुक्त वातावरण और कम से कम पांच साल तक हर कर में रियायत देगी। गांवों की किस्मत बदलने के लिए सरकार को मजबूत इच्छाशक्ति दिखानी होगी। उम्मीद है कि मोदी सरकार स्मार्ट सिटी के बजाय समृद्ध भारत की तरफ जरूर ध्यान देगी।
-डॉ. वीडी अग्रवाल

दिल्ली चुनाव के नतीजे डालेंगे दूरगामी असर


दिल्ली में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे देश की राजनीति पर दूरगामी असर डालेंगे, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। जिस तरह से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की रिकॉर्ड जीत हुई है, उसने देश की जनता को सोचने के लिए विवश कर दिया है कि कोई युवा तरुणायी में भी कुछ कर सकता है महज कुछ महीने पहले देश में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनावों में जहां भाजपा को आश्चर्यजनक सफलता मिली थी, वहीं दिल्ली में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया।
भाजपा की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी भी चुनाव नहीं जीत सकीं। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा ने जनता का विश्वास खो दिया है। यदि लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिली अपार सफलता का श्रेय मोदी और अमित शाह पर जाता है तो दिल्ली की हार का ठीकरा भी मोदी और शाह के सिर जाना चाहिए। इससे पहले महाराष्ट्र व जम्मू कश्मीर में हुए विधानसभा चुनाव में मिली सफलता का श्रेय भी अमित शाह को दिया गया।  भाजपा से जनता और पार्टी कार्यकर्ताओं का विश्वास तो उसी दिन से टूटने लगा था जिस दिन अमित शाह को भाजपा अध्यक्ष चुना गया। मोदी के इस निर्णय से आम कार्यकर्ताओं को लगने लगा था कि अब भाजपा पर मोदी और शाह की ही चलेगी।  दिल्ली चुनाव में भाजपा का यह अब तक का सबसे शर्मनाक प्रदर्शन है। इस हार का सबसे बड़ा कारण बाहरी नेताओं को तवज्जो देना है। वहीं किरण बेदी जो लाख कोशिशों के बाद भी लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल नहीं हुर्इं वहीं केंद्र में सरकार बनने के बाद जब लगने लगा कि भाजपा दिल्ली में सरकार बनाएगी तो पार्टी में शामिल हो गर्इं वह भी शर्त के आधार पर कि हमें ही मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करो।
भाजपा कार्यकर्ताओं में इसका गलत संदेश गया कि जिन्होंने वर्षों से पार्टी को खड़ा किया आज उनकी उपेक्षा की गई। अमित शाह और मोदी ने किरण बेदी को आगे करने का निर्णय लिया। दिल्ली के अन्य नेताओं से इस बारे में सलाह मशविरा भी नहीं किया गया। इसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा नेताओं ने प्रचार से दूरी बना ली।  अमित शाह की सख्त मिजाजी के कारण उस समय किरण बेदी के प्रवेश पर भले ही भाजपा नेताओं ने बोलने की हिम्मत नहीं जुटाई, लेकिन अंदर कसक बरकरार रही। भय के कारण किसी भाजपा नेता ने जुबान खोलने की जहमत नहीं उठाई जिस किसी ने आवाज उठाई भी उसे शांत करा दिया गया। इस चुनाव ने भाजपा नेतृत्व को सबक सिखा दिया।
लोकसभा चुनाव के दौरान सभाओं में किसानों को वाजिब मूल्य दिलाने का वायदा किया गया था लेकिन सरकार बनने के बाद गेहूं के समर्थन मूल्य में एक पैसे की बढ़ोतरी नहीं की गई। इससे किसान अपने आप को ठगा सा महसूस कर रहा है।  लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में हर खेत को पानी, हर घर को बिजली, उपज की लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य और किसानों के लिए ब्याज रहित कर्ज दिलाने का वायदा किया था। इसके अलावा फसल बीमा योजना शुरू करने और मनरेगा को कृषि कार्यों से जोड़ने की बात की जा रही थी। सरकार इनमें से एक भी वायदे को पूरा नहीं कर सकी। चुनाव से पूर्व भाजपा किसानों की बात करती थी इसलिए किसानों ने खुलकर मोदी को समर्थन दिया लेकिन सरकार बनने के बाद किसानों को भुला दिया गया। बजट में भी केंद्र सरकार ने कृषि के लिए कुछ नहीं किया।
मोदी सरकार बनने से किसानों में आशा की किरण जगी थी लेकिन उनका भरोसा भी टूट रहा है। पिछले कई वर्षों में देश का किसान, सरकार की गलत नीतियों को झेल रहा था। डीजल, खाद, बीज, पानी, बिजली आदि सभी के दाम कई गुना बढ़ चुके हैं। इसके बावजूद किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य देने की सरकार के पास कोई योजना नहीं है। इसके अलावा उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए केन्द्र सरकार ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश लाकर और किसानों की नाराजगी मोल ले ली।  किसानों के इस मुद्दे को विपक्षी पार्टियों ने जोरदार ढंग से उठाया भी था। इन सब विफलताओं का असर दिल्ली चुनाव नतीजों पर पड़ा है। दिल्ली में आप की ऐतिहासिक जीत का देश के अन्य राज्यों पर भी असर पड़ेगा। दिल्ली चुनाव उत्तर प्रदेश व बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव पर स्पष्ट प्रभाव डालेगा।
इन दोनों प्रदेशों में भाजपा जीत के प्रति आश्वस्त लग रही थी लेकिन दिल्ली चुनाव के बाद थोड़ा माहौल जरूर बदलेगा। लोकसभा चुनाव के बाद बिहार व उत्तर प्रदेश में अन्य पार्टियों के नेताओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया था इससे अब यह सिलसिला जरूर थमेगा। इसका सबसे खामियाजा भाजपा को इन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।  दिल्ली में जिस तरह आप ने प्रचंड बहुमत हासिल किया है इससे भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति भी पूरी तरह से फ्लॉप साबित हुई है। इससे नरेंद्र मोदी और अमित शाह की रणनीति पर भी सवाल उठना लाजिमी है। अमित शाह को अब तक चाणक्य के तौर पर पेश किया जाता रहा है, लेकिन दिल्ली की हार से यह भी सवाल उठने लगेंगे कि नेताओं की पूरी फौज और सेनापति के रूप में नरेंद्र मोदी को झोंकने के बावजूद अगर पार्टी को कामयाबी नहीं मिली तो जाहिर है कि पार्टी की रणनीति ही फेल हो गई।
हर्षवर्धन जमीन से जुड़े नेता हैं वह काम करने में विश्वास करते हैं। केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद उन्हें स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया इसके बाद कुछ ही महीने में उनका मंत्रालय बदल दिया गया। इसका भी दिल्ली की जनता में गलत संदेश गया। अगर हर्षवर्धन को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट किया जाता तो दिल्ली में पार्टी के लिए केजरीवाल का सामना करना अपेक्षाकृत आसान होता। इसके बाद किसी को भी मुख्यमंत्री का उम्मीदवार न बनाने का फैसला भी बदल दिया गया। मुख्यमंत्री का उम्मीदवार भी पार्टी के भीतर के बजाय किरण बेदी को बनाया, जिसका असर यह हुआ कि नेता से लेकर कार्यकर्ता तक नाराज हो गए। अंत में भाजपा घोषणा पत्र में भी बड़ी गलती हो गई। उत्तर-पूर्व राज्य के लोगों के लिए इसमें प्रवासी लिख दिया गया। बाद में पार्टी ने तुरंत माफी मांगते हुए इस गलती को सुधार लिया और बड़ा राजनीतिक मुद्दा नहीं बन पाया। लेकिन वोटरों के बीच यह संकेत चला गया कि पार्टी कितनी हताशा में है। अमित शाह के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की कमान संभालने के बाद पार्टी को उम्मीद से ज्यादा सफलता मिली। इसके बाद अध्यक्ष बनाए जाने के बाद उन्होंने हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड और जम्मू एवं कश्मीर में पार्टी को जीत दिलाई लेकिन उनका ये विजयी रथ दिल्ली पहुंचते-पहुंचते फेल हो गया।  इस चुनाव नतीजे के बाद आप तेजी से देश के अन्य राज्यों में पैस पसारेगी। जिस तरह लोकसभा चुनाव में देश की जनता ने भाजपा को और दिल्ली चुनाव में आप को पूर्ण बहुमत दिया है, यह देश की राजनीति के लिए सुखद संदेश और स्वस्थ्य लोकतंत्र की निशानी है। 

किरण बेदी की राजनीति का अंत?

राष्ट्रीय राजधानी में हुए विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद किरणबेदी के बयान से लगता है कि आने वाले समय में उन्होंने अपने लिए राजनीति के सारे दरवाजे बंद कर लिए हैं।  उन्होंने कहा, ‘यह मेरी हार नहीं है। यह भारतीय जनता पार्टी की हार है।’
पुलिस अधिकारी के रूप में तीस साल से अधिक समय तक काम करने वाली भारत की पहली महिला भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी किरण बेदी को कर्तव्य निर्वहन के दौरान कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लेकिन भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाया जाना, उनके जीवन की सबसे बड़ी चुनौती बन गई। उनकी साफ सुथरी छवि देखकर चुनाव में अपनी नैया पार लगाने की भाजपा ने जुगत लगाई थी। साल 1993 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद यह पहला सबसे दिलचस्प चुनाव था। लेकिन भाजपा की सबसे सुरक्षित सीट मानी जाने वाली कृष्णानगर से बेदी की हार और शर्मनाक हो गई। साल 1993 से ही डॉक्टर हर्षवर्धन इस सीट का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं। हालांकि फिलहाल वह केंद्रीय मंत्री हैं। किरण बेदी 2,277 मतों के अंतर से चुनाव हारीं। चुनाव जीतने वाले आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी वकील एस.के. बग्गा को 65,919 मत मिले, जबकि बेदी को 63,642 मत मिले। बग्गा के समर्थक उन्हें मृदुभाषी व आत्मविश्वासी बताते हैं। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान बाहरी और भीतरी प्रत्याशी का मुद्दा उठाया।
पार्टी में 65 वर्षीय बेदी को पार्टी कार्यकर्ताओं ने बाहरी के तौर पर ही स्वीकार किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के कई नेताओं का साथ होने के बावजूद उनका चुनाव प्रचार आक्रामक नहीं हो पाया। लोकपाल आंदोलन के दौरान टीम अन्ना की वह प्रमुख सदस्य थीं। साथ ही उन्होंने आप के अरविंद केजरीवाल के साथ मिलकर काम किया। हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने केजरीवाल को झूठा तक करार दिया। भाजपा में शामिल होने के बाद सोशल मीडिया में उनके द्वारा भाजपा और खासकर मोदी तथा साल 2002 में गोधरा दंगों पर उनकी टिप्पणी को रिट्वीट किया गया। भाजपा में आने के बाद बेदी ने मोदी और भाजपा की कई मौकों पर प्रशंसा की थी। हार के बारे में पूछे जाने पर बेदी ने कहा, ‘यह मेरी हार नहीं है। यह भाजपा की हार है। उन्हें इस पर मंथन करना चाहिए।’ लेकिन अपना बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि वह भाजपा की कोर सदस्य हैं। रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता किरण बेदी को दिल्ली की तिहाड़ जेल में पुलिस महानिरीक्षक (कारा) रहते हुए कैदियों की जिंदगी सुधारने का श्रेय मिला था।

‘मफलरवाला’ ही निकला नसीबवाला

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने एक बार फिर समूचे विश्व के सामने अपनी ‘परिपक्वता’ का सबूत देकर यह जता दिया कि जहां लोक बड़ा होता है, वहां सब कुछ गौण होता है। दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों ने देश-दुनिया को इस तरह चौंकाया है जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी, खुद अरविंद केजरीवाल ने भी नहीं सोचा होगा कि वह इस तरह छा जाएंगे।
दिल्ली के नतीजे अप्रत्याशित नहीं थे, लेकिन चौंकाने वाले जरूर साबित हुए। अब दिल्ली विधानसभा का नजारा ही बिल्कुल उलट होगा। भले ही दिल्ली कांग्रेस से मुक्त हो गई है लेकिन इस बात से कैसे इनकार किया जा सकता है कि आम आदमी पार्टी कल कांग्रेस का विकल्प तो नहीं बन जाएगी?अब यह वक्त निश्चित रूप से विश्लेषण का है, खुद आम आदमी पार्टी के लिए भी और उससे ज्यादा भाजपा के लिए। दिल्ली ने एक नया इतिहास रच दिया और इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि देश की नब्ज दिल्ली में ही धड़कती है या यूं कहा जाए कि दिल्ली की नब्ज ही देश की धड़कन है।
लगता है, अब दिल्ली की जनता को ही विपक्ष की भूमिका निभानी होगी, क्योंकि कल तक कांग्रेस को विपक्ष की भूमिका के लिए नकारा मानने वाली भाजपा आज खुद उसी कटघरे में आ खड़ी हुई है। यह सब अप्रत्याशित था। अन्ना हजारे के आंदोलन से उपजे अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी के एक-दूसरे के सामने आ जाने का जवाब दिल्ली के मतदाताओं ने कुछ इस अंदाज में दिया कि राजनीति के चाणक्यों को जबरदस्त मात खानी पड़ी। सारा गुणा-भाग धरा का धरा रह गया। राजनीति के सारे अंकगणित को मतदाताओं के बीजगणित ने झुठला दिया और बता दिया कि भारतीय मतदाता न केवल बेहद समझदार है, बल्कि वह सबक सिखाने में जरा भी देर नहीं करता। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की ऐतिहासिक जीत ने जहां नरेंद्र मोदी के अश्वमेघ यज्ञ के घोड़े को न केवल रोक लिया, बल्कि सिक्किम में रचे गए 1989 के विधानसभा चुनाव की याद दिला दी जहां पर तब ‘सिक्किम संग्राम परिषद’ ने सभी 32 विधानसभा सीटों पर एकतरफा जीत हासिल की थी। लेकिन आम आदमी पार्टी की इस जीत को उससे बड़ी इसलिए माना जा रहा है, क्योंकि दिल्ली को ‘मिनी इंडिया’ कहा जाता है और यह माना जाता है कि दिल्ली के चुनाव एक तरह से देश की राजनीति के लिए बैरोमीटर का काम करता है। आंकड़ों की बाजीगरी के लिहाज से भले ही भाजपा इस बात से संतोष कर ले कि उसे प्राप्त वोटों का प्रतिशत ज्यादा कम नहीं हुआ है। इस बार भी भाजपा को लगभग 32.2 प्रतिशत मत हासिल हुए हैं। लेकिन आम आदमी पार्टी के वोटों में जबरदस्त इजाफा हुआ है और उसे लगभग 54.3 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले हैं जो कि एक रिकार्ड भी है।
इसका मतलब यह हुआ कि दिल्ली का जागरूक मतदाता एक-एक वोट का महत्व जानता था और उसने कांग्रेस को पूरी तरह से नकार दिया। इस तरह 1951 के बाद से कांग्रेस का यह सबसे बुरा प्रदर्शन रहा है। पिछले चुनाव में कांग्रेस को लगभग 20 प्रतिशत वोट मिले थे जो कि इस बार मात्र 9.7 प्रतिशत पर ही सिमट कर रह गए। भाजपा के लिए सबसे बड़े झटके की बात मुख्यमंत्री पद के लिए चुनाव से 17 दिन पूर्व ही प्रोजेक्ट की गई किरण बेदी की हार है जिनके लिए दिल्ली की सबसे सुरक्षित सीट को तलाशा गया था और वहां से भाजपा 1993 से लगातार जीतती आई थी। एक तरह से यह आत्मचिंतन और मंथन का समय है, जब अपनी ही धुन में और बंद कमरों में राजनीति की बिसात और गुणा-भाग करने वाले हर नेता को सोचना होगा कि मैदानी हकीकत जाने बिना किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना कितना घातक होता है। दिल्ली के इन चुनावों ने देश में एक नई बहस शुरू कर दी है और इतना तो साफ हो गया है कि मतदाताओं को कम आंकने वालों को अब सोचना ही होगा। राजनीति में शुचिता की बात के महत्व को स्वीकारना होगा तथा दंभ और अहं से भी बचना होगा। इसके साथ ही दिल्ली के मतदाताओं ने भले ही भाजपा को तीन सीटों पर लाकर समेट दिया हो, लेकिन एक संदेश यह भी दे दिया है कि उसका भरोसा दो दलों पर ही है यानी टक्कर आमने-सामने की है। यह संदेश सारे देश में असर डाल सकता है।
इन परिणामों ने गठबंधनों की आड़ में राजनीति करने वालों का भी रक्तचाप बढ़ा दिया है, क्योंकि दिल्ली में समूचे भारत के लोग रहते हैं और इन नतीजों का असर दूर तलक जाएगा। जब बात नतीजों और देश की धड़कन की निकलेगी तो चर्चा नसीब पर भी होगी। यहीं एक चुनावी रैली में नरेंद्र मोदी ने खुद को ‘नसीबवाला’ बताया था और जब नतीजे आए तो मफलरवाला ही नसीबवाला निकला। राजनीति में बड़बोलापन, वादाखिलाफी और सरकार के क्रियाकलापों पर मतदाता किस तरह से और कितनी पैनी निगाह रखता है और बड़ी ही खामोशी से अपने वक्त का इंतजार करता है, यह दिल्ली विधानसभा के इन नतीजों से समझा जा सकता है। मतदाताओं को बौना समझने वालों को दिल्ली के चुनाव परिणामों ने खुद बौना बना दिया है। विरोधों, अंतर्विरोधों और लोक से रूबरू हुए बिना तंत्र को साधने वालों के लिए अब भी होश में आने का वक्त बचा है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के आगे अपने तंत्र को फैलाने वालों के सारे मंत्र यूं ही खाली जाएंगे और फिर सिवाय हाथ मलने के कुछ नहीं रह जाएगा। बहुत से विद्यालयों में पढ़ी जाने वाली दैनिक प्रार्थना की ये पंक्तियां शायद आज राजनीतिज्ञों के लिए सबसे अहम होगी ‘छल द्वेष दंभ पाखंड झूठ अन्याय से निसि दिन दूर रहें, जीवन हो शुद्ध सरल अपना सुचि प्रेम सुधा रस बरसाए,... निज आन मान मर्यादा का प्रभु ध्यान रहे अभिमान रहे’।

Sunday 8 February 2015

फिर भी अछूते रहेंगे तेंदुलकर के कई रिकार्ड

वर्ल्ड कप में सर्वाधिक रन, शतक, अर्द्धशतक चौके, सहित कई रिकॉर्ड मास्टर-ब्लास्टर के नाम
पिछले छह विश्व कप में भारतीय टीम का अहम हिस्सा रहे सचिन तेंदुलकर पहली बार इस क्रिकेट महाकुंभ में नहीं दिखेंगे लेकिन इसके बावजूद हर चार साल में होने वाले इस टूर्नामेंट में मास्टर ब्लास्टर के कई रिकार्ड अछूते रहेंगे।
तेंदुलकर ने 1992 से 2011 तक लगातार छह विश्व कप में हिस्सा लिया, जिसमें उन्होंने 45 मैच की 44 पारियों में 56.95 की औसत से 2278 रन बनाये जो कि इस टूर्नामेंट का रिकार्ड है। यह सुनिश्चित है कि उनका यह रिकार्ड इस बार अछूता रहेगा। विश्व कप में तेंदुलकर के बाद सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाजों की सूची में आस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान रिकी पोंटिंग का नाम आता है जो इस भारतीय की तरह क्रिकेट से संन्यास ले चुके हैं। पोंटिंग ने 46 मैचों में 1743 रन बनाये हैं।
आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में 14 फरवरी से शुरू होने वाले विश्व कप में जो खिलाड़ी खेलेंगे उनमें कुमार संगकारा के नाम पर सर्वाधिक 991 रन दर्ज हैं। उनके बाद श्रीलंका के ही एक अन्य बल्लेबाज माहेला जयवर्धने 975 रन का नंबर आता है। संगकारा को तेंदुलकर की बराबरी पर पहुंचने के लिये 1287 और जयवर्धने को 1303 रनों की जरूरत पड़ेगी जो कि असंभव लगता है। किसी एक विश्व कप में सर्वाधिक रन का रिकार्ड तेंदुलकर के नाम पर ही है। उन्होंने 2003 में 11 मैचों में 673 रन बनाये थे। तेंदुलकर का किसी एक देश में सर्वाधिक रन बनाने का रिकार्ड भी बना रहेगा। उन्होंने भारतीय सरजमीं पर 15 मैचों में 977 रन बनाये हैं। वर्तमान समय के किसी भी खिलाड़ी ने अभी तक आस्ट्रेलिया या न्यूजीलैंड में विश्व कप मैच नहीं खेला है। तेंदुलकर ने पोंटिंग से एक मैच कम खेला है लेकिन सर्वाधिक पारी खेलने का रिकार्ड इस भारतीय के नाम पर है। उन्होंने 44 जबकि पोंटिंग ने 42 पारियां खेली हैं। विश्व कप 2015 में खेल रहे खिलाड़ियों में जयवर्धने (29 पारियां) और संगकारा (28 पारियां) सबसे आगे हैं और वे तेंदुलकर के रिकार्ड तक नहीं पहुंच पाएंगे। इस विश्व कप में एक टीम को अधिक से अधिक नौ मैच खेलने को मिलेंगे। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 100 शतक जड़ने वाले तेंदुलकर ने विश्व कप में रिकार्ड छह सैकड़े लगाये हैं। वर्तमान के बल्लेबाजों में एबी डिविलियर्स और जयवर्धने के नाम पर तीन-तीन शतक दर्ज हैं। ये दोनों बल्लेबाज अच्छी फार्म में हैं और ऐसे में उनकी निगाह तेंदुलकर के सर्वाधिक शतकों के रिकार्ड पर रहेगी।
लेकिन तेंदुलकर के अर्धशतकों के रिकार्ड तक पहुंचना किसी के लिये मुश्किल होगा। इस स्टार बल्लेबाज ने 50 ओवरों की इस प्रतियोगिता में 15 अर्धशतक लगाये हैं। उनके बाद जाक कैलिस (नौ अर्धशतक) का नंबर आता है जो संन्यास ले चुके हैं। विश्व कप में भाग ले रहे खिलाड़ियों में संगकारा सात अर्धशतक के साथ शीर्ष पर हैं। विश्व कप में सर्वाधिक छक्के जड़ने का रिकार्ड रिकी पोंटिंग के नाम पर है। उन्होंने 31 छक्के लगाये हैं। उनके बाद हर्शल गिब्स (28), तेंदुलकर और जयसूर्या (दोनों 27 छक्के) का नंबर आता है। लेकिन चौकों के मामले में तेंदुलकर नंबर एक हैं। उन्होंने छह विश्व कप में रिकार्ड 241 चौके लगाये हैं। तेंदुलकर के बाद पोंटिंग (145) और एडम गिलक्रिस्ट (141) का नंबर है। वर्तमान बल्लेबाजों में जयवर्धने और संगकारा दोनों ने समान 90 चौके लगाये हैं। तेंदुलकर के रिकार्ड तक पहुंचने के लिये उन्हें 151 चौके लगाने होंगे। रिकार्ड के लिये बता दें कि किसी एक विश्व कप में सर्वाधिक 75 चौके लगे थे। तेंदुलकर ने यह कारनामा 2003 में अफ्रीकी महाद्वीप में खेले गये विश्व कप में किया था।

ट्रैक पर फिर चमकेगा दुती का चांद

राष्ट्रीय खेल: अभ्यास की कमी लेकिन 100 और 200 मीटर का स्वर्ण जीतने की तमन्ना
आगरा। मुझे अभ्यास का पर्याप्त मौका नहीं मिला, बीता समय अच्छा नहीं रहा। कुछ महीने मैं संत्रास के दौर से गुजरी पर अब सारा ध्यान दौड़ पर है। मैं राष्ट्रीय खेलों में 100 और 200 मीटर के स्वर्ण पदक हर हाल में जीतना चाहती हूं। मेरे प्रशंसक और परिजन भी चाहते हैं कि मैं अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करूं। यह कहना है देश की उदीयमान धावक दुती चंद का। दुती राष्ट्रीय खेलों में अपने राज्य उड़ीसा का प्रतिनिधित्व करते हुए 10 फरवरी को ट्रैक पर उतरेगी।
जेण्डर परिवर्तन की तोहमत के बाद ट्रैक पर लौटी 100 मीटर फर्राटा दौड़ की नेशनल चैम्पियन दुती चंद ने पुष्प सवेरा से बातचीत में बताया कि मैं टूट चुकी थी। मैंने ग्लासगो राष्ट्रमण्डल और इंचियोन एशियाई खेलों के लिए जीतोड़ मेहनत की थी, पर मेरे अरमानों पर पानी फिर गया। जेण्डर रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद, मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं करूं भी तो क्या? तीन फरवरी, 1996 को गोपालपुर जिला जाजपुर (उड़ीसा) में चक्रधर चंद और अखुजी चंद के घर जन्मी दुती चंद ने 10 साल की उम्र में ही नेशनल स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाना शुरू कर दिया था। दुती चंद के चार बहन हैं जिनमें उसकी बड़ी बहन सरस्वती भी एथलीट रही है। दुती चंद न केवल 100 और 200 मीटर दौड़ में नेशनल चैम्पियन है बल्कि पिछले साल रांची में उसने सीनियर नेशनल एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में 100 मीटर दौड़ 11.73 सेकेण्ड और 200 मीटर दौड़ 23.73 सेकेण्ड में पूरी कर सोने के तमगे जीते थे। दुती का 100 मीटर दौड़ में सर्वश्रेष्ठ समय 11.62 सेकेण्ड है। दुती का कहना है कि राष्ट्रीय खेलों में कड़ी स्पर्धा है। एक से बढ़कर एक महिला धावक हैं। मैं सफलता की सिर्फ कोशिश कर सकती हूं। 100 और 200 मीटर दौड़ में सोचने का समय नहीं होता। इसमें शानदार शुरुआत बहुत जरूरी है। मैं चाहूंगी कि सभी के विश्वास पर खरा उतरूं।
जीते दो सौ से अधिक तमगे
पांच साल की उम्र से ट्रैक पर जलवा दिखा रही गोपालपुर (उड़ीसा) की जांबाज एथलीट दुती चंद नेशनल स्तर पर 100 और 200 मीटर दौड़ के 200 से अधिक तमगे हासिल करने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दो स्वर्ण और एक कांस्य पदक से अपना गला सजा चुकी है। भारत में जहां तक जेण्डर परिवर्तन की बात है अकेले दुती चंद ही नहीं इसका दंश शांति सुंदरराजन और पिंकी प्रमाणिक भी झेल चुकी हैं। यह दोनों निर्दोष साबित तो हो गर्इं पर इनका खेल करियर तबाह हो गया और दुबारा ट्रैक पर फिर नहीं दौड़ीं। कई महीने के बाद टैÑक पर रफ्तार दिखाने को बेताब दुती चंद ने कहा कि वह भारतीय खेल प्राधिकरण और उसके पूर्व महानिदेशक जिजी थामसन की शुक्रगुजार है जिनके प्रयासों से पुन: टैÑक पर उतरी।

Friday 6 February 2015

तमाशा बने राष्ट्रीय खेल


केरल में लम्बी जद्दोजहद के बाद 35वें राष्ट्रीय खेलों का आगाज तो हो चुका है लेकिन नामचीन खिलाड़ियों की अरुचि, आयोजकों की सहखर्ची और खेलनहारों की हद दर्जे की बेईमानी से राष्ट्रीय खेल महोत्सव तमाशा बन गया है। अगले साल होने वाले रियो ओलम्पिक खेलों को देखते हुए उम्मीद थी कि प्रतिस्पर्द्धाएं सलीके से होंगी और खिलाड़ी पूर्ण निष्ठा व ईमानदारी से सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन का आगाज करेंगे, पर केरल में ऐसा कुछ भी नजर नहीं आ रहा। अपनों से हार जाने के डर ने जहां खेलों के राष्ट्रीय मंच को बेरौनक कर दिया है वहीं खेलगांव से लेकर मैदानों तक खिलाड़ी बदइंतजामी का रोना रो रहे हैं।
भारतीय खेलों में बेईमानी, भाई-भतीजावाद और खेल संघों की गुटबाजी कोई नई बात नहीं है। गुटबाजी के चलते कराटेबाज जहां एशियाड का टिकट पाने से वंचित हो गये थे वहीं राष्ट्रीय खेलों में भी उनके साथ सौतेला व्यवहार ही हुआ। पदकों की खातिर मध्यप्रदेश ने बाहरी राज्यों के खिलाड़ियों को पैसे का प्रलोभन देकर एक गलत परम्परा का श्रीगणेश किया है। भारतीय ओलम्पिक संघ, भारत सरकार और भारतीय खेल प्राधिकरण के बीच तारतम्य के अभाव में न केवल नियम-कायदों का चीरहरण हो रहा है बल्कि विजेता खिलाड़ी पदकों से भी वंचित हो रहे हैं। पश्चिम बंगाल की उदीयमान जिमनास्ट प्रणति नायक का मध्यप्रदेश के लिए खेलना और रजत पदक से वंचित होना भारतीय खेलों का शर्मनाक पहलू है। उम्मीद थी कि सचिन तेंदुलकर के जुड़ने से राष्ट्रीय खेलों को एक अलग पहचान मिलेगी पर सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों की अनिच्छा ने इन खेलों की उपयोगिता पर ही बड़े सवाल पैदा कर दिए हैं। भारत में राष्ट्रीय खेलों की जहां तक बात है, इनका आगाज 1924 में मद्रास में हुआ था। 1954 में दिल्ली में हुए सोलहवें राष्ट्रीय खेल महोत्सव को छोड़ दें तो मद्रास ने 1999 तक 29 बार इन खेलों की मेजबानी की है। 1924 से 1970 तक यह खेल हर दो साल के तय मानक पर होते रहे, उसके बाद भारतीय खेलों को राजनीतिज्ञों की नजर लगते ही इनका बंटाढार हो गया। खेल संघों में सफेदपोशों को इस गरज से प्रवेश दिया गया कि इनके प्रोत्साहन से खिलाड़ियों को सुविधाएं और अधिकाधिक खेल के अवसर मिलेंगे, पर ऐसा होने की बजाय खिलाड़ी बेजार, बेकार तथा लाचार हो गया। खेलों में राजनीतिज्ञों की चौधराहट से सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं सरकार भी हलाकान है। भारत में खेलों का कोई माई-बाप नहीं है। खेल महासंघों के पदाधिकारी सरकारी नियम-कायदों को जहां रत्ती भर तवज्जो नहीं देते वहीं खिलाड़ी भी मतलबपरस्त हो गया है। राजनीतिज्ञों के लिए खेलों की सल्तनत उनके बुरे वक्त का ठौर-ठिकाना है। यही वह जगह है जहां उन्हें कभी कोई पराजित नहीं कर सकता। सत्ता और लूट-खसोट की घमासान के चलते ही कराटे, बॉडी बिल्डिंग, ताइक्वांडो और मुक्केबाजी जैसे लोकप्रिय खेलों के खिलाड़ी आज खून के आंसू रो रहे हैं। खेलों के रक्षक ही उसके भक्षक बन गये हैं। खेलों में आज जो हो रहा है, कालांतर में उसके बीज भारतीय ओलम्पिक संघ के पूर्व अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी, महासचिव राजा रणधीर सिंह और ललित भनोट जैसों ने अपनी चौधराहट बरकरार रखने को ही बोए थे। बॉडी बिल्डिंग में कभी भारत का नाम था। मनोहर आइच, मोंतोष राय और प्रेमचंद डोगरा जैसे मिस्टर यूनिवर्स पैदा करने वाला देश अब कहीं का नहीं रहा। देश में जो बॉडी बिल्डर हैं भी, उन्हें दुनिया शक की नजर से देख रही है। कारण, हमारे बॉडी बिल्डर नशेबाजी की गिरफ्त में हैं। हॉकी इण्डिया और हॉकी फेडरेशन के टकराव ने पुश्तैनी खेल हॉकी को बर्बाद कर दिया है। एक तरफ राष्ट्रीय खेल हो रहे हैं तो दूसरी तरफ हीरो हॉकी इण्डिया लीग परवान चढ़ रही है। आखिर यह तमाशा किसकी शह पर हो रहा है? देखा जाए तो भारत मुक्केबाजी में एक बड़ी शक्ति बनने की राह चल रहा था, पर भारतीय ओलम्पिक संघ और बॉक्सिंग इण्डिया के बीच ठनी रार ने मुक्कों की ताकत इतनी कम कर दी कि राष्ट्रीय खेलों में नामवर बॉक्सर उतरे ही नहीं। 35वें राष्ट्रीय खेलों की तिथि पहले से ही तय थी बावजूद इसके लगभग तीन साल बाद इनका आयोजन किया जा रहा है। इससे साफ-साफ पता चलता है कि भारत अपने घरेलू खेल महोत्सव को लेकर कितना गम्भीर है और जिस राज्य में इसका आयोजन होता है, वह भी कितनी सजगता से इसकी जिम्मेदारी लेते हैं। सच तो यह है कि केरल में कुछ स्पर्द्धाओं की तैयारियां भी मुकम्मल नहीं थीं, पर जैसे-तैसे आयोजन को कामयाब बनाने की जद्दोजहद जारी है। केरल 1987 में भी इन खेलों का आयोजन कर चुका है। केरल में हो रहे राष्ट्रीय खेलों की 33 स्पर्द्धाओं में 414 स्वर्ण, 414 रजत और 541 कांस्य पदक सहित कुल 1369 पदक दांव पर लगे हैं। इनमें सर्वाधिक 150 पदक तैराकी, 132 पदक एथलेटिक्स, 114 पदक निशानेबाजी तथा 76 पदक कुश्ती में हैं। इन खेलों का सिरमौर कौन होगा, यह भविष्य के गर्भ में है, पर अब तक के खेल-कौशल को देखते हुए सर्विसेज स्पोर्ट्स कंट्रोल बोर्ड, हरियाणा और महाराष्ट्र की दावेदारी सबसे मजबूत दिख रही है। भारत खेलों में तरक्की की लाख बातें करता हो पर एथलेटिक्स में आज भी कई रिकॉर्ड अटूट हैं। मैराथन में शिवनाथ सिंह का 1978 में जालंधर में बनाया रिकॉर्ड, 1976 में मांट्रियल ओलम्पिक में श्रीराम सिंह का 800 मीटर दौड़ का रिकॉर्ड, 1998 में बैंकॉक एशियाई खेलों में पुरुषों का चार गुना चार सौ मीटर रिले का रिकॉर्ड, 1995 में चेन्नई में 1500 मीटर में बहादुर प्रसाद और साल 2005 में दिल्ली में अनिल कुमार तथा इसी साल दिल्ली में ही अब्दुल नजीम कुरैशी के 100 मीटर दौड़ के रिकॉर्ड अब तक नहीं टूटे हैं। राष्ट्रीय खेलों में बदइंतजामी को लेकर भी उंगली उठी हैं। उड़नपरी पीटी ऊषा, भारतीय खेल प्राधिकरण के पूर्व महानिदेशक जिजी थामसन और कुश्ती महासंघ के पदाधिकारियों ने आयोजकों पर खिलाड़ियों को सुविधाएं मयस्सर कराने की बजाय देश का पैसा फिजूल के कार्यों में खर्च करने का आरोप लगाया है। एक तरफ भारतीय खेल मंत्रालय अपनी महत्वाकांक्षी योजना टारगेट ओलम्पिक पोडियम स्कीम (टॉप्स) को जल्द से जल्द धरातल में उतारने की सोच रहा है तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय खेल नामचीन खिलाड़ियों के बिना परवान चढ़ रहे हैं। खेल सचिव और भारतीय खेल प्राधिकरण के महानिदेशक अजीत मोहन शरण ने नामवर खिलाड़ियों के नहीं खेलने पर खेद जताते हुए कहा कि ऐसा नहीं होना चाहिए, यह वाकई दु:खद है।

Tuesday 3 February 2015

खेलता ही नहीं, खेलाता भी है आगरा

ताजनगरी से ही संचालित होते हैं राष्ट्रीय स्कूली खेल
राधा बल्लभ इण्टर कॉलेज शाहगंज में है एसजीएफआई का मुख्यालय
आगरा। इंसान की तरह हर शहर की अपनी एक पहचान होती है। आगरा विशेषताओं से भरा शहर है। विश्व के सातवें अजूबे और बेपनाह प्यार की बेमिसाल निशानी ताजमहल के संगमरमरी हुस्न ने जहां देश-दुनिया के सैलानियों को अपना दीवाना बना रखा है, वहीं यहां के लजीज पेठे और पैरों की शान कहे जाने वाले यहां के बने बेहतरीन जूतों का जादू पूरी दुनिया के सिर चढ़कर बोल रहा है। इन सब के अलावा  इस शहर की एक और खासियत है, जिसे बहुत कम लोग जानते हैं। स्कूली खेलों में हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों के लिए आगरा शहर ‘स्कूली खेलों के मक्के’ से किसी भी मायने में कम नहीं है। स्कूली गेम्स  फेडरेशन आॅफ इंडिया का मुख्यालय आगरा में वर्ष 2012 में खुला था। तब से उसकी विभिन्न स्कूली खेल गतिविधियां यहीं से संचालित हो रही हैं।
स्कूली खेलों में उत्तर प्रदेश की स्थिति मौजूदा समय में बेशक अव्वल दर्जे की नहीं है, पर स्कूली गेम्स फेडरेशन आॅफ इंडिया (एसजीएफआई) का मुख्यालय आगरा में ही है। शाहगंज के राधा बल्लभ इंटर कॉलेज परिसर स्थित एसजीएफआई के इस  मुख्यालय से ही राष्ट्रीय स्कूली खेल संचालित होते हैं। देश के सभी राज्यों सहित 40 यूनिटों की कमान एसजीएफआई के महासचिव डॉ. राजेश मिश्रा सहित 30 लोगों के हाथों में है। इस कार्यालय में दोपहर दो बजे से रात 10 बजे तक कार्य होता है। ताजनगरी में स्कूली गेम्स फेडरेशन आॅफ इंडिया का मुख्यालय होने के साथ ही साथ सीबीएसई स्पोर्ट्स समिति का कामकाज भी 10 अमरलता कुंज केके नगर से चलता है।
लगभग डेढ़ करोड़ का है बजट
स्कूली खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए एसजीएफआई के पास मौजूदा समय में लगभग डेढ़ करोड़ का बजट है। इसके अलावा स्कूली खेलों की होने वाली विश्व चैम्पियनशिप  में भारत का  प्रतिनिधित्व करने वाले खिलाड़िÞयों के दल को एसजीएफआई खेल मंत्रालय के सहयोग से भी आर्थिक सहायता प्रदान करवाता है।
जुड़ी हैं 40 यूनिटें
एसजीएफआई से विभिन्न राज्यों सहित 40 यूनिटें जुड़ी हैं। इनमें असम, आन्ध्र प्रदेश, अंडमान एण्ड निकोबार, अरुणाचल प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, चंडीगढ़, दिल्ली, दमन एण्ड दीव, दादर नगर हवेली, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, इंडियरन पब्लिक स्कूल कांफ्रेंस (आईपीएससी), झारखण्ड, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, केरल, केन्द्रीय विद्यालय संगठन, लक्षद्वीप, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नवोदय विद्यालय समिति, नागालैण्ड, ओडीसा, पाण्डचेरी, पंजाब,राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, विद्या भारती, वेस्ट बंगाल और सीबीएसई स्पोर्ट्स समिति शामिल है। सीबीएसई स्पोर्ट्स समिति का कार्यालय भी आगरा में है।
इस कारण अपडेट नहीं हुई पदक तालिका
एसजीएफआई राष्ट्रीय स्कूली खेलों के दौरान पदक तालिका जारी करने में हमेशा अव्वल रहता है। जो यूनिट जितने पदक जीतती रहती है उसकी अपडेट जानकारी एसजीएफआई की वेबसाइट पर उपलब्ध रहती है, पर चालू स्कूली खेल सत्र के दौरान एसजीएफआई ने इस बार जानबूझ-कर पदक तालिका जारी नहीं की है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि एसजीएफआई को लग रहा है कि अगर अपडेट पदक तालिका जारी कर दी गई तो, टॉप-4 राज्यों की सूची में अपना स्थान बनाने के लिए जिन यूनिटों को राष्ट्रीय स्कूल खेलों की मेजबानी मिली है और जहां स्कूली राष्ट्रीय खेल अभी होने बाकी हैं, वह खेलों में बेईमानी भी करवा सकते हैं। बताते चलें कि एसजीएफआई टॉप-4 की सूची में रहने वाली यूनिटों को सम्मानित करता है। दिल्ली, महाराष्ट्र, हरियाणा और पंजाब सहित कुछ अन्य यूनिटों में टॉप-4 में आने की होड़ लगी रहती है। ऐसे में अगर एसजीएफआई पदक तालिका को अपडेट करता रहता, तो जिन राज्यों में अभी स्कूली राष्ट्रीय खेलों की विभिन्न प्रतियोगिताएं होनी हैं, वह पदक तालिका में खुद को पिछड़Þते हुए देखकर अपने स्टेट के खिलाड़िÞयों को जिताने के लिए  अनुचित तरीकों का प्रयोग कर सकते हैं, जिससे स्कूली खेलों की शुचिता और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा प्रभावित होगी। ऐसे में एसजीएफआई की 15 फरवरी के आसपास अपडेट पदक तालिका जारी करने की योजना है।  
पिछले साल टॉप टेन मेडलिस्ट में ये राज्य रहे  
पिछले वर्ष सम्पन्न हुए स्कूली खेल सत्र 2013-14  में दिल्ली 354 गोल्ड सहित कुल 614 पदक अपनी झोली में डालकर टॉप टेन की सूची में पहले स्थान पर रही। महाराष्ट्र दूसरे, हरियाणा तीसरे, पंजाब चौथे, केरल पांचवें, मणिपुर छठवें, तमिलनाडु सातवें, मध्यप्रदेश आठवें, उत्तर प्रदेश नौवें और गुजरात दसवें स्थान पर रहा।