Saturday 30 November 2013

आन-बान-शान का अपमान

तिरंगा झण्डा हमारे देश की सम्प्रभुता ही नहीं उसकी आन-बान और शान का प्रतीक है, मगर आजादी के 66 साल बाद भी हम अपने समाज को तिरंगे की महत्ता व उसके स्वाभिमान से अवगत कराने में नाकारा साबित हुए हैं। जहां तक तिरंगे के अपमान की बात है मुल्क में इसके अनगिनत उदाहरण हैं। तिरंगे के अपमान के जितने मामले सामने आये उनमें किसी को कोई सजा नहीं हुई। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। यह बात हर राजनीतिज्ञ और देश की आवाम मानती है पर कश्मीर के क्रियाकलापों पर नजर डालें तो लगता ही नहीं कि यह हमारा स्वर्ण मुकुट है। कश्मीर में चल रही हैदर की शूटिंग में कुछ अराजक तत्वों द्वारा तिरंगा नहीं फहराने दिया गया। चन्द विश्वविद्यालयीन छात्रों के विरोध का प्रतिकार करने की बजाय तिरंगा उतार लिया जाना हमारी सल्तनतों के मानसिक दब्बूपन का ही सूचक है।
अब सवाल यह उठता है कि कश्मीर में तिरंगे के साथ जो हुआ उसमें हमारी केन्द्र और कश्मीर सरकार ने क्या कदम उठाए? केन्द्र सरकार प्रतिवर्ष कश्मीर की सुरक्षा व्यवस्था पर अरबों रुपये पानी की तरह बहाती है लेकिन कभी सैनिकों के सर कलम कर दिये जाते हैं तो कभी तिरंगे के स्वाभिमान को चोट पहुंचती है। इतना सब होने के बाद भी कश्मीर हमारा है, यह हमें जान से प्यारा है, यह मानसिकता वहां के लोगों में आज तक हम पैदा क्यों नहीं कर सके? सवाल अकेले कश्मीर का नहीं है तिरंगे के अपमान की कई कारगुजारियां हमारी सरकारों को बार-बार मुंह चिढ़ाती रही हैं। दुर्भाग्य की बात है कि तिरंगे के अपमान के भूलवश वाक्यों में तो हमारे राजनीतिज्ञ खूब हायतौबा मचाते हैं लेकिन जान-बूझकर तिरंगे का अपमान और उसका सरेराह फूंका जाना किसी को नजर नहीं आता।
दरअसल, हम आजादी के 66 साल बाद भी में देश की आवाम के मन में तिरंगे के प्रति सम्मान की भावना नहीं ला सके हैं। निश्चय ही इस स्वाभिमान से जुड़े मसले पर हमारी सल्तनतों में कहीं न कहीं कोई कमी जरूर है। देखा जाए तो तिरंगे के अपमान पर सारा का सारा दोष केन्द्र सरकार पर मढ़ दिया जाता है, जबकि तिरंगे के स्वाभिमान की हिफाजत की जवाबदेही सभी राज्य सरकारों सहित हम सबकी है। हमें इसके लिए न केवल दूरगामी और साहसपूर्ण कदम उठाने होंगे बल्कि अपने अंतस में एक शक्तिशाली, मानवीय और दृढ़ मानसिकता लानी होगी। जाने-माने निर्माता-निर्देशक व संगीतकार विशाल भारद्वाज की फिल्म हैदर की श्रीनगर में चल रही शूटिंग के दौरान तिरंगा लहराने और शूटिंग करने पर विश्वविद्यालय के छात्रों ने न केवल हंगामा बरपाया बल्कि इन बिगड़ैलों ने मुल्क के खिलाफ नारे भी लगाए। अब सवाल यह उठता है कि श्रीनगर में फिल्म की शूटिंग में तिरंगा फहराना क्यों मुहाल हुआ?
इस वाक्ये से हमारी सल्तनतों और हमारी सम्प्रभुता पर कई सवाल खड़े होते हैं। इन कश्मीरी बिगड़ैलों का यह हंगामा सिर्फ हंगामा नहीं बल्कि देशद्रोह का मामला है। इस अक्षम्य हरकत पर हमारी सरकारों की मूकदर्शिता दयनीय स्थिति का ही परिचायक है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर मुल्क की सल्तनतें कुछ मुट्ठी भर लोगों के सामने इतनी दयनीय क्यों होती जा रही हैं? हमारे इस दब्बूपन से क्या एक देश की सीमाएं, उनकी शुतुरमुर्गी मानसिकता से बची रह सकती हैं? तिरंगे का यह अपमान क्या देश के सम्मान को ठेस नहीं है? दरअसल, यह पूरा का पूरा प्रकरण सम्प्रभु नागरिकों की मानसिकता को आहत करने वाला है। सरकार को जो भी सम्भव हो इसके लिए कठोर कदम उठाने चाहिए। किसी शक्तिशाली राष्ट्र के लिए जरूरी है कि वह अपनी आन-बान-शान से कोई समझौता न करे। कोई भी राष्ट्र अपनी शक्ति से ही पहचाना जाता है। तिरंगे के अपमान पर आंखें चुराने की यह मानसिकता देश के लिए दूरगामी तौर पर नुकसानदायक साबित हो सकती है। हमारे ही देश में ऐसे लोग क्यों हैं, जोकि यहां खुशहाल जीवन बसर करते हुए भी पाकिस्तान की मुखालफत करते हैं। एक सक्षम देश के लिए मानवीयता का सम्मान करना जहां उसका दायित्व है वहीं अपराध और देशद्रोह का पूरी ताकत के साथ प्रतिकार करना उसका नैतिक अधिकार है।
कश्मीर में हैदर फिल्म की शूटिंग के दौरान जो हुआ उसे सहजता से बिसराया नहीं जा सकता। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है बावजूद वहां जब-तब  कश्मीर की आजादी और पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए जाते हैं। कश्मीर तो कश्मीर हैदराबाद सहित मुल्क के अन्य शहरों में भी पाकिस्तानपरस्त लोग प्राय: तिरंगे को आग के हवाले करते देखे गये पर हमारी डरपोक हुकूमतें हमेशा स्वाभिमान के इस मसले पर कार्रवाई करने की बजाय चुप्पी साध लेती हैं। दरअसल, जब तक मुल्क में राजनीतिज्ञ जातिवाद की अलख जगाते हुए वोट बैंक की राजनीति करते रहेंगे हमारी आवाम को अपने स्वाभिमान से बार-बार समझौता करना ही पड़ेगा। एक जाति विशेष के लोगों का तिरंगे के प्रति नफरत रखना अखण्ड भारत के लिए शुभ संकेत नहीं कहा जा सकता। मुल्क के भीतर इस नफरत को समय रहते खत्म नहीं किया गया तो सच मानिये देश एक और विभाजन की तरफ बढ़ जाएगा, जोकि हिन्दुस्तान के लिए काला अध्याय साबित होगा। हमारी सल्तनतों को ऐसे फिरकापरस्त लोगों पर नकेल डालनी ही होगी वरना मुल्क के स्वाभिमान को पहुंचाई जा रही ये छोटी-छोटी चोटें एक दिन नासूर का रूप ले लेंगी। 

Saturday 23 November 2013

पड़ोसी राज्यों में सपा का इम्तिहान

मध्य प्रदेश और राजस्थान की सल्तनत का फैसला तो आठ दिसम्बर को सुनाया जाएगा पर उससे पहले मतदाताओं ने अपना फैसला सुनाने का मन बना लिया है। इस बार चुनाव आयोग की शक्ति जहां राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों के चुनाव पूर्व हथकण्डों पर भारी पड़ी वहीं राजनीतिक विशेषज्ञों के आकलन भी धरे के धरे रह गये। इन दोनों सूबों में प्रमुख मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच ही होता दिख रहा है, पर आगामी लोकसभा चुनावों से पहले इन दोनों राज्यों में समाजवादी पार्टी भी अपनी ताकत का आकलन पुरजोर तरीके से कर रही है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव को भरोसा है
कि उत्तर प्रदेश से सटे इन दोनों ही राज्यों में उनकी पार्टी बीते विधान सभा चुनावों से बेहतर प्रदर्शन करेगी।
देश की सल्तनत के लिए समाजवादी पार्टी वर्तमान नही बल्कि भविष्य देख रही है। इसी गरज से उसने मध्य प्रदेश और राजस्थान में तीसरे मोर्चे का गठन किया है।  इन दोनों राज्यों के विधान सभा चुनावों में तीसरे मोर्चे का क्या हश्र होगा यह तो समय बताएगा पर तीसरा मोर्चा यदि अपने मकसद में कामयाब हुआ तो आगामी लोकसभा चुनाव काफी पेंचीदा हो जाएगा। मध्य प्रदेश और राजस्थान में समाजवादी पार्टी ने अलग-अलग दलों से गठबंधन और सीटों का बंटवारा किया है। राजस्थान में समाजवादी पार्टी जनता दल (यू), जनता दल (एस), सीपीआई और सीपीएम के साथ गठबंधन कर 200 में से 50 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पिछले चुनाव में ये सभी दल अलग-अलग चुनाव लड़े थे। 2008 में समाजवादी पार्टी को एक, जनता दल (यू) को एक और सीपीएम को तीन सीटें मिली थीं।
देखा जाए तो समाजवादी पार्टी लम्बे समय से राजस्थान में अपना जनाधार बढ़ाने की जुगत में है। अपनी प्राथमिक शिक्षा का धौलपुर से श्रीगणेश करने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का भी राजस्थान से दिली लगाव है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद से वह कई बार राजस्थान का दौरा कर चुके हैं। जो भी हो राजस्थान की सियासत फिलहाल कांग्रेस और भाजपा के बीच ही चल रही है। मौजूदा विधान सभा चुनावों में सियासत का ऊंट किस करवट बैठेगा यह तो समय बतायेगा पर इन चुनावों में तीसरे मोेर्चे की उम्मीदों को जिस तरह पर लगे हैं उससे कांग्रेस और भाजपा की दाल में कंकड़ परड़ने से इंकार नहीं किया जा सकता।
राजस्थान से इतर समाजवादी पार्टी ने मध्य प्रदेश में सीपीआई, सीपीएम और समानता दल से गठबंधन किया है जबकि रिपब्लिकन पार्टी आॅफ इंडिया मोर्च को बाहर से समर्थन कर रही है। मध्य प्रदेश में 25 नवम्बर को होने जा रहे विधान सभा चुनाव में 67 दलों के 2583 प्रत्याशी 230 सीटों के लिए मशक्कत कर रहे हैं। सत्तासीन भाजपा जहां सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है वहीं कांग्रेस 229 सीटों पर अपना भाग्य आजमा रही है। बहुजन समाज पार्टी 227 तो समाजवादी पार्टी 164 सीटों पर ताल ठोक रही है। मध्य प्रदेश सपा अध्यक्ष गौरीशंकर यादव को भरोसा है कि इस बार उनकी पार्टी पिछले चुनाव से बेहतर प्रदर्शन करेगी। मध्य प्रदेश में 2008 के विधान सभा चुनावों में समाजवादी पार्टी 187 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जिसमें उसे केवल निवाड़ी में सफलता मिली थी। तब मीरा यादव ने समाजवादी पार्टी का जीत का खाता खोला था।
देखा जाए तो इस बार के चुनावों में सपा ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में जातीय गणित और वोटों को ध्यान में रखकर मोर्चा बनाया है। राजस्थान और मध्य प्रदेश में सपा के पास एक-एक सीट थी। इस बार जिस तरह कांग्रेस और भाजपा के असंतुष्ट भितरघात कर रहे हैं उसे देखते हुए अगर सारे जातीय समीकरण और वोट मिल जाते हैं तो इन दोनों राज्यों में तीसरे मोर्चे को कुछ हद तक संजीवनी मिल सकती है। राजस्थान में समाजवादी पार्टी ने मुस्लिम और जनजातियों को अपने वोट का आधार बनाते हुए जहां उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं वहीं मध्य प्रदेश में मुस्लिम, जनजाति, यादव और दलित वोटों पर फोकस किया है, एमपी में उसका यह काम आसान नहीं लगता। हां, इस बार सपा ग्वालियर चम्बल सम्भाग की कुछ सीटों खासकर भिण्ड में अपना जनाधार बढ़ा सकती है। मध्य प्रदेश में पिछली बार समाजवादी पार्टी 187 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जिसमें 183 सीटों पर उसके प्रत्याशियों की जमानत तक जब्त हो गई थी और उसे केवल 1.99 फीसदी वोट ही मिले थे।  इस बार सपा की सीटों और जनाधार में इजाफा होने से इंकार नहीं किया जा सकता।  सपा की प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी बहुजन समाज पार्टी से तुलना की जाए तो पिछले चुनाव में उसे ज्यादा वोट और सीटें मिली थीं। बसपा मध्य प्रदेश में पिछली बार 228 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और सात सीटों पर परचम लहराते हुए 8.97 फीसदी वोट कबाड़े थे। इस बार भी बहुजन समाज पार्टी बेहतर स्थिति में है। वह मौजूदा चुनावों में अपने जीत का आंकड़ा दो अंकों में कर सकती है।

Saturday 16 November 2013

दोस्तों मैं चला...

अपने तेज, वेग और चमत्कारिक खेल से 24 साल तक क्रिकेट को गौरवान्वित करने वाले सचिन तेंदुलकर आज से अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी क्रिकेट में कभी नहीं खेलेंगे। टीम इण्डिया ने उनकी मंशानुरूप उन्हें आज उनके ही गृह शहर में विजयी रथ से विदा किया। सचिन के इस शाही संन्यास के बाद क्रिकेट मुरीद महानतम सचिन का अश्क दूसरे खिलाड़ियों में जरूर खोजेंगे पर सूर्य सा तेज और वायु सा वेग हर किसी में शायद ही मिले। शिद्दत से 24 साल तक अपने मुरीदों के दिलों पर राज करने वाला यह खिलाड़ी तो रहेगा पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी क्रिकेट उसके नायाब खेल की कसक जरूर महसूस करेगी।
आज क्रिकेट से बेशुमार मोहब्बत करने वाले हर शख्स के मन में सचिन के संन्यास की पीड़ा है। कल जिन्होंने उनकी 74 रनों की पारी देखी उनके मन में एक टीस है कि काश यह जीनियस कुछ साल और खेलता। दुनिया भर की तमाम समझदारी का साझा सच यही है कि अब क्रिकेट तो रहेगी पर सचिन सा अनमोल हीरा नहीं होगा। सचिन जब भी बल्लेबाजी करने के लिए उतरे उन पर करोड़ों लोगों की उम्मीदों और आशाओं का बोझ रहा। मुम्बई में भी ऐसा ही था। अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी क्रिकेट में 24 साल तक अपने शानदार खेल का आगाज और शतकों का शतक तथा 34000 से अधिक रन बनाना हंसी खेल नहीं है। लोगों को बहुत समय तक याद नहीं रहता पर सचिन की चपलता, अपर कट और उसके दर्शनीय स्ट्रेट ड्राइव लोगों के जेहन में जरूर होंगे। अगर हम सचिन को क्रिकेट का भगवान मानते रहे हैं, अगर हम यह मानते हैं कि क्रिकेट इतिहास में वह दुर्लभ जीनियस हैं और इतिहास के पन्नों में हमेशा अजर अमर रहेंगे तो हमें इस नटवर नागर को दिल से सलाम करते हुए इस दुर्लभ संयोग का आनंद लेना चाहिए। 

हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में सचिन सा दीदावर पैदा

क्रिकेट को मजहब और उन्हें खुदा मानने वाले देश में एक अरब से अधिक क्रिकेटप्रेमियों की अपेक्षाओं का बोझ भी कभी सचिन तेंदुलकर को उनके लक्ष्य से विचलित नहीं कर सका और ऐसा उनका आभामंडल रहा कि कैरियर की आखिरी पारी तक भारत ही नहीं दुनिया की नजरें उनके बल्ले पर गड़ी रहीं।
मुंबई में अपने 200वें और आखिरी टेस्ट के बाद तेंदुलकर महान खिलाड़ियों की जमात से भी ऊपर उठ गए। क्रिकेट खुशकिस्मत रहा कि उसे तेंदुलकर जैसा खिलाड़ी मिला जिसने न सिर्फ समूची पीढ़ी को प्रेरित किया बल्कि उसके इर्द-गिर्द क्रिकेट प्रशासकों ने करोड़ों कमाई करने वाला एक उद्योग स्थापित कर डाला। चौबीस बरस तक सचिन ने जिस सहजता से अपेक्षाओं का बोझ ढोया, उससे सवाल उठने लगे थे कि वह इंसान हैं या कुछ और। पूरे कैरियर में एक भी गलतबयानी नहीं, मैदान के भीतर या बाहर कोई विवाद नहीं, शर्मिंदगी का एक पल नहीं। तेंदुलकर एक संत से कम नहीं रहे जिन्होंने अपनी विनम्रता से युवा पीढ़ी के क्रिकेटरों को सिखाया कि शोहरत और दबाव का सामना कैसे करते हैं। सिर्फ 16 बरस की उम्र में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उतरे सचिन का सामना चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान से पहले ही कदम पर हुआ। वसीम अकरम और वकार युनूस के सामने उन्होंने जिस परिपक्वता का परिचय दिया, क्रिकेट पंडितों को इल्म हो गया कि एक महान खिलाड़ी का पदार्पण कर चुका है।
दुनिया ने सचिन की शख्सियत का एक और पहलू देखा जब 1999 विश्व कप के दौरान अपने पिता की मौत के शोक में डूबे होने के बावजूद उन्होंने अंतिम संस्कार के बाद लौटकर कीनिया के खिलाफ शतक जड़ा। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 100 शतक जड़ने वाले एकमात्र बल्लेबाज सचिन को डान ब्रैडमैन के बाद सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर के रूप में याद रखा जायेगा। बतौर कप्तान वह कामयाब नहीं रहे और वह ऐसा दौर था जब बल्लेबाजी का दारोमदार उन पर इस हद तक था कि उनके आउट होने को भारतीय पारी का अंत माना जाता था। पिछले साल इंग्लैंड के खिलाफ वह खराब फार्म में थे और आस्ट्रेलिया के दौरे पर भी अपेक्षाओं का बोझ उन पर बढ़ गया। लेकिन सचिन ने आत्मविश्वास की नयी परिभाषा गढ़ते हुए सुनिश्चित किया कि अपने घरेलू दर्शकों के सामने अपनी शर्तों पर क्रिकेट को अलविदा कहें। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण से काफी पहले तेंदुलकर ने 1988 में लार्ड हैरिस शील्ड अंतर विद्यालय मैच में विनोद कांबली के साथ 664 रन की साझेदारी करके अपनी प्रतिभा की बानगी पेश कर दी थी। उन्होंने पहला टेस्ट शतक 1990 में इंग्लैंड में लगाया। इसके बाद उन्होंने ब््राायन लारा के सर्वोच्च टेस्ट पारी (नाबाद 400) और सर्वोच्च प्रथम श्रेणी स्कोर (नाबाद 501) को छोड़कर बल्लेबाजी के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिये। वनडे क्रिकेट में दोहरा शतक जड़ने वाले भी वह पहले बल्लेबाज थे। उन्होंने फरवरी 2010 में ग्वालियर में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ यह कमाल किया। 

गरीब नहीं, गरीबी दूर हो

एक तरफ राजनीतिक दल सल्तनत की खातिर गरीबों से महंगाई और भुखमरी दूर करने के बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं तो दूसरी तरफ महंगाई सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही जा रही है। मुल्क में महंगाई का आलम यह है कि अब गरीब ही नहीं मध्यम वर्ग भी त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगा है। ताजा आंकड़ों पर नजर डालें तो खुदरा कीमतों पर आधारित महंगाई दर अक्टूबर में 10.09 फीसद पर पहुंच गई। बीते अगस्त और सितम्बर महीनों में भी महंगाई में कोई राहत की स्थिति नहीं थी, तब यह आंकड़ा साढ़े नौ फीसद से ऊपर था। पिछले सात महीनों में पहली बार हुआ कि खुदरा महंगाई की दर दो अंकों की शर्मनाक स्थिति में जा पहुंची है। महंगाई की मौजूदा स्थिति को देखें तो यह सबसे ज्यादा खाने-पीने की वस्तुओं पर असरकारक रही है। गलाकाट महंगाई की तपिश कल तक जिन लोगों को हलाकान नहीं कर रही थी, अब उन लोगों के लिए भी घर खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है। अगर खानपान की मूल्यवृद्धि को हिसाब में लें तो इनका महंगाई ग्राफ साढ़े बारह फीसद के भी ऊपर जा पहुंचा है। महंगाई की सबसे बड़ी मार साग-सब्जियों और फलों के दामों में हुई है। यह आंकड़ा पिछले साल के मुकाबले पैंतालीस फीसद अधिक है।
सरकार महंगाई को दूर भगाने का राग तो अलापती है, पर सात महीने में आमजन को इससे निजात मिलना तो दूर क्षणिक राहत भी नहीं मिली है। सवाल यह उठता है कि  क्या देश में महंगाई की यह स्थिति स्वाभाविक है और इसे नियति के रूप में स्वीकार कर लिया जाना चाहिए? केन्द्र में काबिज कांग्रेस महंगाई के लिए ओड़िसा, बंगाल और आंध्र प्रदेश में हाल में आए तूफानों की लाख दलील दे पर देखें तो इसका आंशिक असर ही रहा है। सात महीने पहले मुल्क में कोई आंधी-तूफान और बवंडर नहीं आया था फिर भी महंगाई दर सातवें आसमान पर ही रही है। दरअसल, मुल्क में महंगाई का काला सच यह है कि सरकार जमाखोरी और कालाबाजारी पर नकेल कसने में पूरी तरह से विफल है। मौजूदा महंगाई की सबसे बड़ी वजह ही जमाखोरी और कालाबाजारी है। देश में खानपान सामग्री में महंगाई का एक दूसरा पहलू कुप्रबंधन और आपूर्ति की खामियों का भी है। देखा जाए तो हर साल देश में हजारों करोड़ रुपए के फल और सब्जियां रखरखाव के अभाव में बर्बाद हो जाते हैं।
गलाकाट महंगाई को कालाबाजारी और जमाखोरी के अलावा वायदा बाजार ने भी मुश्किल में डाला है। इसे दुर्भाग्य कहें या कुछ और सरकार वायदा बाजार पर लगाम लगाना तो दूर, इस बारे में कभी विचार करने को भी तैयार नहीं हुई। थोक और खुदरा कीमतों के अंतराल को कैसे तर्कसंगत बनाया जाए यह भी सरकार के लिए कोई विचारणीय मुद्दा नहीं लगता। फिलवक्त देश में खाद्य पदार्थों के साथ-साथ अन्य उत्पादों और सेवाओं की कीमतों में भी बेतहाशा वृद्धि हुई है। एक तरफ महंगाई आमजन का जीना मुश्किल कर रही है तो दूसरी तरफ केन्द्र में काबिज कांग्रेस पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की चुनावी रैलियों में गरीब परवरदिगारों को गरीबी दूर भगाने का झूठा भरोसा देती दिख रही है। गरीबों पर महंगाई की चौतरफा मार यूपीए के लिए गहरी चिन्ता का सबब होना चाहिए पर सत्ता में बैठे लोग सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक नफा-नुकसान पर ही गम्भीर हैं। केन्द्र में सत्तासीन कांग्रेस ही नहीं प्रमुख विपक्षी कमल दल भी मुल्क में महंगाई से उपजे जन असंतोष का राजनीतिक लाभ तो लेना चाहता है, पर उसके पास भी महंगाई से निपटने की कोई ठोस कार्ययोजना नहीं दिखती।
देखा जाए तो आजादी के बाद से ही राजनीतिक दलों द्वारा हिन्दुस्तान से गरीबी और भुखमरी मिटाने के बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाए जाते रहे हैं पर मुल्क से गरीबी दूर होने के बजाय गरीब जरूर असमय काल के गाल में समा गये। बेहतर होता सभी राजनीतिक दल महंगाई के इस दंश को लोकसभा चुनाव से पहले बेअसर करने के साझा प्रयास करते और गरीब नहीं गरीबी दूर करने का संकल्प लेते, पर अफसोस कोई भी दल एक-दूसरे को नीचा दिखाने के सिवाय भूखे पेटों को भरने पर बात करने को तैयार नहीं है। देश का गरीब और मध्यम वर्ग जहां महंगाई से आहत राहत मांग रहा है वहीं राजनीतिक दल नंगानाच दिखा रहे हैं। देखा जाए तो मुल्क में जब भी महंगाई का संकट आता है लोग रिजर्व बैंक से बड़ी-बड़ी उम्मीदें करने लगते हैं लेकिन सच यह है उसकी मौद्रिक कवायद गलाकाट महंगाई पर आसानी से काबू नहीं पा सकती।
कांग्रेस ने चुनावी वैतरणी पार करने की खातिर बेशक देश में महंगाई, बढ़ती बेरोजगारी और दीगर असमानताओं को लेकर उपजे जनाक्रोश को शांत करने के लिए पहले रोजगार गारंटी योजना और उसके बाद खाद्य सुरक्षा कानून का झुनझुना थमाने का चालाकीपूर्ण कार्य किया हो, पर यह समस्या का स्थाई समाधान कभी नहीं हो सकता। सच यह है कि सरकारी मदद के आधार पर कभी भी कोई स्थायी समाधान नहीं निकला है। महंगाई पर नियंत्रण पाने के लिए जमाखोरी को जब तक हतोत्साहित नहीं किया जाएगा, सरकार के सारे प्रयास अकारथ ही जाएंगे। सरकार किसी भी दल की क्यों न हो जब तक गरीब की सम्पत्ति की सुरक्षा और उसके लिए रोजगार के स्थायी अवसर उपलब्ध नहीं होंगे उसे गरीबी और भुखमरी का भूत हमेशा डराएगा। किसी राज्य के विकास मॉडल की चर्चा अथवा किसी गरीब के घर में जाकर एक रात गुजार देने से न तो महंगाई कम होगी और न ही गरीबों का भला होगा, यह बात हमारे राजनीतिक आकाओं को भलीभांति समझ लेनी चाहिए। देश से गरीबी और भुखमरी यदि भगानी ही है तो ऐसी नीतियां अमल में लाई जाएं जिसमें ग्रोथ के नाम पर किसी गरीब की भूमि न छिने और ऐसे उद्यम चलाए जाएं जिसमें श्रम का अधिक से अधिक उपयोग हो। देश में जब तक अमीर को और अमीर बनाने की कोशिशें बंद नहीं होंगी, लोग भूखे पेट ही सोते रहेंगे।

रोते क्रिकेट भगवान ने कहा 'आखिरी सांस तक नहीं भूलूंगा सचिन-सचिन का शोर'

शनिवार का दिन सचिन के नाम रहा। भारत की तरफ से मोहम्मद शमी ने जैसे ही दसवीं विकेट झटकी, मैदान में चारों ओर सचिन-सचिन का शोर गूंज उठा। टीम इंडिया के खिलाड़ी सचिन को घेरे हुए थे, लेकिन सचिन की आंखों से आंसू निकल रहे थे। वे अपनी भावनाओं का छिपाने का पूरा प्रयास करने के बाद भी आंसू नहीं रोक पाए।
प्रजेंटेशन सैरेमनी में भी तेंदुलकर जब स्पीच दे रहे थे, कई बार भावुक हुए। सैरेमनी के अंत में सचिन ने कहा कि ग्राउंड के चारों कोनों से आ रही सचिन-सचिन की आवाज को मरते दम तक नहीं भूल पाऊंगा। रवि शास्त्री ने सचिन को बुलाया और अपना माइक उन्हें थमाते हुए कहा, 'यह अब पूरी तरह आपका है'. सचिन ने जैसे ही माइक थामा, सचिन-सचिन का शोर और तेज हो गया।
सचिन तेंदुलकर ने लोगों से कुछ देर के लिए शांत रहने को कहा। उन्होंने कहा, 'मैं बहुत भावुक हो रहा हूं। कृपया मुझे बोलने दें।' शोर थोड़ा थमा तो सचिन ने सबसे पहले अपने पिता रमेश तेंदुलकर को याद किया। तेंदुलकर ने कहा, '22 गज की पिच पर मेरी जिंदगी के 24 साल बहुत अच्छे रहे, लेकिन अब इसका अंत हो रहा है। मैं पिता जी को बहुत मिस कर रहा हूं। भावनाओं पर नियंत्रण करना बहुत मुश्किल है, पर मुझे करना ही होगा। पिता जी की गाइडेंस के बिना यहां तक पहुंचना मुश्किल था। उन्होंने 11 साल की उम्र में मुझे अपने सपनों की ओर बढ़ने की आजादी दे दी थी, पर उन्होंने यह भी कहा था कि कभी शॉर्ट कट रास्ता मत अपनाना।'
सचिन तेंदुलकर ने इसके बाद अपनी मां को धन्यवाद किया। सचिन ने बताया, 'मां में बहुत पेशेंस था, जो उन्होंने मेरे जैसे शरारती की तमाम हरकतों को सहा। उन्होंने मेरी हर तरह से देखरेख की.' यहां सचिन एक बार फिर भावुक हुए और पानी का घूंट पीया, थोड़ा रिलेक्स हुए और कहा, 'मैंने जब खेलना शुरू किया था, मां ने मेरे लिए प्रेयर शुरू कर दी थी। जब तक मैं खेला, तब तक मां की प्रार्थना भी चलती रही।'
सचिन तेंदुलकर ने कहा कि जब वे चौथी क्लास में थे, तब वे अपने घर से दूर अंकल और आंटी के घर में रहते थे। उन्होंने मुझे अपने बच्चे की तरह पाला। आंटी मुझे अपने हाथों से खिलाती थीं, ताकि मैं फिर से तैयार हो जाऊं और खेलने के लिए जा सकूं।' इसके बाद सचिन ने अपनी बहन सविता का धन्यवाद किया। सचिन ने कहा, 'मेरी जिंदगी का पहला बैट बहन ने दिया था, वहीं से यह यात्रा शुरू हुई। मेरे बड़े भाई को मुझ पर पूरा भरोसा था, उन्होंने मुझे मानसिक रूप से मजबूत बने रहने में बड़ी मदद की।'
सचिन ने अपने बड़े भाई अजीत तेंदुलकर के बारे में कहा कि उन्हें समझ नहीं आ रहा कि वे अजीत के बारे में क्या कहें। सचिन ने कहा, 'अजीत ने मेरे लिए अपना करियर दांव पर लगा दिया। वही मुझे मेरे कोच रमाकांत आचरेकर तक ले गए। कल जब मैं आउट हुआ तो उन्होंने मुझे बुलाया और आउट होने के बारे में तकनीक पर बातचीत की। अब मैं नहीं भी खेलूंगा तो भी हम तकनीक को लेकर बात करते रहेंगे। हम दोनों तकनीक को लेकर वाद-विवाद करते हैं। यह सिलसिला जारी रहेगा।
सचिन तेंदुलकर ने इसके बाद अपनी पत्नी अंजलि को धन्यवाद देते हुए कहा कि उन्होंने जिंदगी में आने के बाद हर कदम मेरी मदद की है। सचिन ने कहा, 'जब मैं अंजलि से पहली बार मिला, वह जिंदगी का एक खुशनुमा पल था। हमारी शादी होने के बाद वे हमेशा मेरे साथ खड़ी रहीं। डॉक्टर होने के नाते उनके सामने बहुत अच्छा करियर था, लेकिन जब हमने परिवार बढ़ाने के बारे में सोचा तो उन्होंने अपने करियर को त्याग दिया और मुझे कहा कि आप खेलना जारी रखो। मेरे साथ रहने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। अंजलि मेरी जिंदगी की बेस्ट पार्टनर है।'
सचिन ने अपने सास-ससुर की भी तारीफ की। उन्होंने कहा, 'मैंने कई पहलुओं पर उनसे चर्चा की। उन्होंने मुझे गाइड किया।' सचिन ने कहा कि वे उन्हें इसलिए भी धन्यवाद देना चाहते हैं, क्योंकि उन्होंने अंजलि से शादी करने के लिए अनुमति दी।
सचिन ने कहा कि सारा और अर्जुन उनकी जिंदगी के दो हीरे हैं। सचिन ने कहा, 'सारा 16 साल की हो गई है और अर्जुन 14 का हो चुका है। मैं उनके साथ बहुत समय बिताना चाहता था, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। मैं खेलने जाता था, तो उन्हें समय नहीं दे पाता था। दोनों ने मुझे समझा और कभी कोई जिद नहीं की। इसके लिए धन्यवाद। अब बाकी बचा जीवन तुम्हारे लिए होगा।' इसके बाद सचिन ने अपने उन दोस्तों को बधाई दी, जो उन्हें हमेशा मदद करते रहे। सचिन ने बताया कि जब उन्हें इंजरी हुई थी, तब उन्होंने सोचा था कि करियर खत्म हो गया। लेकिन दोस्तों ने हार नहीं मानी और उन्होंने समझाया कि अभी अंत नहीं हुआ है। इतना बोलने के बाद सचिन का गला फिर सूख चुका था। उन्होंने पानी के दो घूंट गटके और फिर बोलना शुरू किया।
सचिन ने कहा, '11 साल की उम्र में मेरा करियर शुरू हुआ। टर्निंग प्वाइंट वह था, जब भाई अजीत मुझे कोच आचरेकर के पास लेकर गए। मैं उनके स्कूटर पर बैठकर उनके साथ प्रैक्टिस करने जाता था। कभी एक मैदान में, कभी दूसरे मैदान में। सुबह की प्रैक्टिस शिवाजी मैदान पर होती थी तो दोपहर बाद की आजाद पार्क में।
सचिन ने बड़े ही सलीके से एक-एक कर सबको धन्यवाद कहा। उन्होंने मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन (एमसीए), भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई), सिलेक्टर्स, सीनियर और साथी क्रिकेटर्स (राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण और सौरव गांगुली), फिजियो, ट्रेनर, मैनेजर्स, मैनेजिंग टीम और मीडिया तक को धन्यवाद दिया। सचिन ने फोटोग्राफर्स को धन्यवाद देते हुए कहा, 'आपकी लिए गए फोटो मेरी बाकी जिंदगी में बहुत खास रहने वाले हैं।'
सचिन ने कहा, 'आप सब भाग्यशाली हैं कि हम टीम का हिस्सा हैं और देश की सेवा कर रहे हैं. आप सही से देश की सेवा कर रहे हैं और करते रहेंगे। मुझे आपमें पूरा भरोसा है।' सचिन जब अपनी बात खत्म करने पर आए तो मैदान में एक बार फिर सचिन...सचिन...सचिन की आवाजें आने लगीं। सचिन ने लोगों से कहा कि उन्हें उनकी बात कहने दीजिए। शोर कुछ थमा तो सचिन ने कहा, 'यहां दुनियाभर से लोग आए हैं। आप लोगों ने जो प्यार मुझे दिया है, वह बेहद खास है। मैं तहेदिल से आप सबका शुक्रिया अदा करता हूं।' अंत में सचिन ने कहा 'मैं अपनी आखिरी सांस तक 'सचिन-सचिन' का यह शोर याद रखूंगा.' और सचिन ने माइक छोड़ दिया। फिर मैदान से सचिन... सचिन का स्वर गूंज उठा।
जब अंतिम बार पिच को किया नमन
इसके बाद टीम इंडिया के खिलाड़ियों ने सचिन को अपने कंधों पर उठा लिया और मैदान का चक्कर लगवाया। सबसे पहले धोनी और कोहली ने सचिन को उठाया और फिर एक-एक करके कई और प्लेयर्स ने भी सचिन को कंधों पर उठाया। जब सब शांत हो गया तो सचिन एक बार फिर एमसीए स्टेडियम में पिच की तरफ लौटे और दोनों हाथों से पिच को छूकर नमन किया। यहां एक बार फिर सचिन की आंखों से आंसू आते दिखे। सचिन ने एक खिलाड़ी के तौर अंतिम बार पिच को अलविदा कह दिया।

Thursday 14 November 2013

सचिन के बारे में जानें....

1. क्रिकेटरों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले अच्छी क्वालिटी के पहले जूते सचिन तेंदुलकर को प्रवीण आमरे ने दिये थे।
2. सचिन तेंदुलकर रमेश पारधे को रबड़ वाली गेंद को पानी में भिगोकर फेंकने के लिए कहा करते थे ताकि वे जान सकें कि गेंद उनके बल्ले के बीच से लगी या नहीं।
3. अपने स्कूल के दिनों में सचिन तेंदुलकर लम्बे बाल रखते और उस पर एक बैंड लगाया करते थे ताकि वे टेनिस स्टार जॉन मैकनरो की तरह दिखें।
4. सचिन तेंदुलकर के पिता ने उनका नाम महान संगीतकार सचिन देव बर्मन के नाम पर रखा था।
5. जब सचिन 14 साल के थे तो सुनील गावस्कार ने उन्हें बेहद ही हल्के पैड गिफ्ट किए थे हालांकि इंदौर में अंडर-15 कैम्प के दौरान वो चोरी हो गए।
6. जब सचिन का चयन मुंबई की अंडर 15 टीम में हुआ तो दिलीप वेंगसरकर ने उन्हें बैट गिफ्ट किया।
7. सचिन तेंदुलकर ने अपने बचपन के कोच रमाकांत आचरेकर से 13 सिक्के जीते। जिस दिन प्रैक्टिस सेशन में सचिन नाबाद रहते उन्हें एक सिक्का मिलता।
8. सचिन तेंदुलकर तेज गेंदबाज बनना चाहते थे पर 1987 में आॅस्ट्रेलियाई खिलाड़ी डेनिस लिली ने उन्हें रिजेक्ट कर दिया था।
9. 1987 वर्ल्ड कप का एक सेमीफाइनल भारत और इंग्लैंड के बीच हुआ। यह वानखेड़े स्टेडियम में खेला गया और सचिन इस मैच में बॉल ब्वॉय थे।
10. 1989-90 ईरानी कप के एक मैच में गुरशरण सिंह ने एक हाथ (एक उंगली टूटी हुई थी) से बल्लेबाजी की ताकि सचिन शतक बना सकें।
11. सचिन तेंदुलकर ने रणजी ट्रॉफी, ईरानी कप और दिलीप ट्रॉफी के अपने पहले मैच में शतक जड़ा। यह अनोखा रिकॉर्ड सिर्फ उनके नाम पर है।
12. सचिन तेंदुलकर 1990 के इंग्लैंड दौरे से लौट रहे थे तब वे अपनी होने वाली पत्नी अंजलि से पहली बार मिले। दोनों की मुलाकात मुंबई के शांताक्रुज एयरपोर्ट पर हुई थी।
13. सचिन तेंदुलकर के ससुर आनंद मेहता 'ब्रिज' खेल के सात बार के राष्ट्रीय चैम्पियन हैं।
14. सचिन तेंदुलकर को अपने पहले वनडे शतक के लिए 79 मैचों का इंतजार करना पड़ा। यह दिन था 9 सितम्बर, 1994. इस समय तक सचिन टेस्ट क्रिकेट में सात शतक ठोंक चुके थे।
15. सचिन तेंदुलकर अकेले ऐसे भारतीय हैं जो सर्वकालिक वर्ल्ड इलेवन में जगह बनाने में कामयाब रहे।
16. सचिन तेंदुलकर सर डॉन ब्रैडमैन की सर्वकालिक टेस्ट इलेवन का भी हिस्सा हैं, मौजूदा जनरेशन के वे एकमात्र खिलाड़ी हैं।
17. टीम बस में सचिन तेंदुलकर हमेशा आगे वाली सीट की बायीं खिड़की की तरफ बैठते हैं।
18. 2008 में सचिन तेंदुलकर को पद्म विभूषण से नवाजा गया था, देश का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान।
19. 2007 के लॉर्ड्स टेस्ट मैच के दौरान सचिन तेंदुलकर का आॅटोग्राफ लेने के लिए 'हैरी पॉटर ' के नाम से मशहूर अभिनेता डेनियल रेडक्लिफ लाइन में खड़े हुए थे।
20. 1999 में सचिन तेंदुलकर को पद्मश्री अवार्ड मिला, देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान।
21. 1992 में सचिन तेंदुलकर इंग्लैंड की काउंटी टीम यॉर्कशायर का प्रतिनिधित्व करने वाले पहले विदेशी खिलाड़ी बने।
22. लंदन टाइम्स में जॉन वुडकॉक ने लिखा था, 'मैंने अपनी जिंदगी में जिन क्रिकेटरों को देखा सचिन उनमें सर्वश्रेष्ठ हैं, और मैंने सर डॉन ब्रैडमैन को भी देखा है।'
23. अगस्त 1987 में सचिन तेंदुलकर को बॉम्बे क्रिकेट एसोसियेशन का बेस्ट जूनियर क्रिकेटर आॅफ द ईयर अवार्ड नहीं मिला। इसके बाद सुनील गावस्कर ने सचिन का उत्साह बढ़ाने के लिए एक चिट्ठी लिखी। उसमें लिखा था, बीसीए का बेस्ट जूनियर क्रिकेटर अवार्ड न मिलने से निराश मत हो। अगर तुम बेस्ट अवार्ड विजेताओं की सूची देखोगे तो उसमें एक नाम नहीं है और वह शख्स टेस्ट क्रिकेट में बुरा प्रदर्शन नहीं कर रहा।
24. सचिन तेंदुलकर ने पाकिस्तान के लिए एक मैच में फील्डिंग की थी। वाक्या है 1988 के भारत-पाकिस्तान अभ्यास मैच का। सचिन पाकिस्तान के लिए स्थानापन्न क्षेत्ररक्षक के तौर पर मैदान पर उतरे थे।
25. अपने स्कूल शारदा आश्रम के लिए खेलते हुए सचिन तेंदुलकर ने विनोद कांबली के साथ मिलकर 1988 में संत जेवियर के खिलाफ मुकाबले में तीसरे विकेट के लिए 664 रनों की अविजित साझेदारी की थी। इस मैच में सचिन ने नाबाद 326 और विनोद कांबली ने नाबाद 349 रन बनाए थे।
26. विनोद कांबली के साथ 664 रनों की साझेदारी के दौरान सचिन तेंदुलकर गाने गाते और सीटियां बजाते। सिर्फ इसलिए कि उनकी नजर कोच के असिस्टेंट न मिले जो पारी घोषित करना चाहता था पर दोनों बल्लेबाजी करते रहना चाहते थे।
27. सचिन और कांबली के अविजित 664 रनों की रिकॉर्ड साझेदारी के बाद तिहाड़ जेल के दो वार्डों का नाम इन खिलाड़ियों के नाम पर रख दिया गया।
28. सचिन तेंदुलकर अपने पहले अंतरराष्ट्रीय वनडे मैच में शून्य पर आउट हुए थे। 18 दिसंबर 1989 को गुंजरावाला में खेला गया यह मुकाबला पाकिस्तान के खिलाफ था।
29. 1990 मैनचेस्टर टेस्ट में सचिन को पहला मैन आॅफ द मैच अवार्ड मिला। उन्हें पुरस्कार के तौर पर मैगनम शैंपेन की बोतल मिली जिसे सचिन ने 8 साल तक बचाए रखा। सचिन ने ये शैंपेन की बोतल अपनी बेटी सारा के पहले जन्मदिन पर खोली।
30. 1996 वर्ल्ड कप में सचिन सर्वाधिक रन बनाने वाले बल्लेबाज बने। हालांकि इस टूर्नामेंट के दौरान बल्ले को लेकर सचिन का किसी भी कंपनी के साथ कॉन्ट्रेक्ट नहीं था।
31. 1992 में सचिन तेंदुलकर ने यॉर्कशायर का प्रतिनिधत्व किया।
32. 19 साल की उम्र में काउंटी क्रिकेट खेलने वाले सचिन सबसे छोटी उम्र वाले भारतीय खिलाड़ी बने।
33. 14 नवम्बर, 1992 को डर्बन के किंग्समीड मैदान पर दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ मैच में सचिन तेंदुलकर को थर्ड अम्पायर ने रन आउट करार दिया। वे टीवी अम्पायर द्वारा आउट करार दिए जाने वाले पहले खिलाड़ी हैं।
34. 1998 में सचिन तेंदुलकर को राजीव गांधी खेल रत्न अवार्ड के लिए चुना गया।
35. 1999 के ऐतिहासिक चेन्नई टेस्ट में सचिन तेंदुलकर के शानदार शतक के बावजूद पाकिस्तान की जीत हुई। सचिन प्रजेंटेशन में नहीं पहुंचे। जब इसके बारे में तत्कालीन बीसीसीआई अध्यक्ष राजसिंह डूंगरपुर से पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'वह ड्रेसिंग रूम में रो रहा है।'
36. तेंदुलकर ने पेप्सी का एक विज्ञापन करने से इसलिए मना कर दिया कि उन्हें ऐसा लगा कि यह विज्ञापन उन्हें क्रिकेट से बड़ा दिखलाएगा। सचिन के कहने पर निर्देशक प्रहलाद कक्कड़ को इस विज्ञापन में बदलाव करना पड़ा।
37. 2009 में इनवेस्टमेंट बैंकर कार्ल फ्लावर द्वारा स्थापित एक कंपनी ने तेंदुलकर ओपस नाम की किताब का विशेष संस्करण निकाला। 852 पन्नों वाली इस विशाल किताब का वजन 37 किलोग्राम है।
38. 2010 में भारतीय वायुसेना ने सचिन तेंदुलकर को मानद ग्रुप कैप्टन की उपाधि से विभूषित किया। ये उपाधि पाने वाले पहले खिलाड़ी थे।
39. टीम के ड्रेसिंग रूम में सचिन तेंदुलकर अपनी जगह सबसे पहले चुनते हैं। सचिन द्वारा इस अधिकार के इस्तेमाल के बाद ही अन्य खिलाड़ियों को अपनी-अपनी जगह चुनने का मौका मिलता है।
40. सचिन तेंदुलकर रोजर फेडरर और फॉर्मूला वन को फॉलो करते हैं। उन्हें संगीत और दवा की अच्छी समझ है। समुद्री खाने के शौकीन भी हैं, और अलग-अलग किस्म की वाइन की खासियत पर चर्चा भी कर सकते हैं।
41. टीम इंडिया में लेट-लतीफों पर लगता है आर्थिक जुर्माना। टीम मीटिंग या फिर बस में अगर कोई खिलाड़ी देर से आता है तो उसे जुर्माना देना पड़ता है। चौंकाने वाली बात यह है कि 24 साल के लम्बे करियर में सचिन तेंदुलकर पर आज तक एक बार भी जुर्माना नहीं लगा।
42. सचिन दायें हाथ के बल्लेबाज और बाएं हाथ के गेंदबाज हैं पर वे लिखते बायें हाथ से हैं।
43. 2002 में क्रिकेट की बाइबल कही जाने वाली विजडन ने सचिन को महानतम टेस्ट बल्लेबाजों की सूची में दूसरे स्थान पर रखा। पहले नंबर पर सर डॉन ब्रैडमैन थे।
44. 2003 में विजडन ने सचिन तेंदुलकर को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ एकदिवसीय बल्लेबाज बताया।
45. 2010 में सचिन तेंदुलकर आईसीसी क्रिकेटर आॅफ द ईयर बने। उन्होंने सर गैरी सोबर्स ट्रॉफी अवार्ड पर कब्जा जमाया।
46. सचिन तेंदुलकर राजीव खेल रत्न जीतने वाले पहले क्रिकेटर हैं।
47. महान बल्लेबाज सर डॉन ब्रैडमैन मानते थे कि सचिन तेंदुलकर की बैटिंग स्टाइल उनके स्टाइल से काफी मेल खाती है। ब्रैडमैन सचिन की कॉम्पेक्ट तकनीक और बेहतरीन शॉट खेलने की क्षमता के मुरीद हो गए थे।
48. सचिन तेंदुलकर ट्विटर पर मई 2010 को आए. उनके प्रोफाइल  की कऊ है...@२ंूँ्रल्ल_१३
49. सचिन तेंदुलकर एकमात्र भारतीय क्रिकेटर हैं जिनका मोम का पुतला मैडम तुसाद में है।
50. 1989-90 में मुंबई की ओर से अपना पहला फर्स्ट क्लास मैच खेलते हुए शतक जड़ा। उन्होंने नाबाद 100 रन बनाए थे। उस वक्त उनकी उम्र थी 15 साल और 232 दिन।
51. सचिन तेंदुलकर ने जब अपने टेस्ट करियर की शुरूआत की तो उस वक्त उनकी उम्र थी 16 साल 205 दिन। उस वक्त टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले वे तीसरे सबसे युवा खिलाड़ी थे।
52. 1990 में सचिन तेंदुलकर ने अपना पहला टेस्ट शतक जड़ा और सबसे कम उम्र में टेस्ट शतक जड़ने वाले खिलाड़ियों की सूची में दूसरे स्थान पर पहुंच गए।
53. बैटिंग क्रम में किसी एक पोजीशन पर सबसे ज्यादा रन बनाने का कीर्तिमान सचिन के नाम है। टेस्ट में उन्होंने अपने पसंदीदा चौथे नम्बर पर बल्लेबाजी करते हुए करीबन 13500 रन बनाए हैं।
54. टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक शतक बनाने का सुनील गावस्कर (34) के रिकॉर्ड को सचिन तेंदुलकर ने दिसंबर 2005 में तोड़ा था। अभी तक सचिन ने टेस्ट में 51 शतक जड़े हैं।
55. सचिन तेंदुलकर ने टेस्ट खेलने वाले सभी देशों के खिलाफ शतक जड़ा है।
56. सचिन तेंदुलकर ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में जो पहली गेंद खेली थी उसे पाकिस्तानी गेंदबाज वकार यूनुस ने डाली थी। वहीं दूसरे छोर पर मोहम्मद अजहरुद्दीन खड़े थे।
57. सचिन तेंदुलकर ने अपने पहले पांच टेस्ट शतक 20 साल की उम्र तक ही जड़ दिये थे। यह रिकॉर्ड आज भी उनके नाम पर है।
58.  सचिन तेंदुलकर ने 2010 में सात शतक जड़े थे। यह एक सीजन में किसी भारतीय बल्लेबाज द्वारा बनाये सर्वाधिक शतक हैं।
59. सचिन तेंदुलकर ने 20 मौकों पर टेस्ट में 150 से ज्यादा रन बनाए हैं। ऐसा करने वाले वे एकमात्र बल्लेबाज हैं।
60. सचिन तेंदुलकर टेस्ट में 14 बार मैन आॅफ द मैच अवार्ड जीत चुके हैं।

Tuesday 12 November 2013

सैफ जूनियर एथलेटिक्स में भारत को 20 स्वर्ण के साथ पहला स्थान

रांची में  सम्पन्न हुई द्वितीय दक्षिण एशियाई जूनियर एथलेटिक्स प्रतियोगिता में भारत ने जहां 20 स्वर्ण, 20 रजत और 12 कांस्य के साथ कुल 52 पदक जीतकर अपनी श्रेष्ठता कायम रखी। श्रीलंका ने भी आज हुई 16 स्पर्धाओं में से आठ में स्वर्ण पदक जीतकर प्रतियोगिता में कुल दस स्वर्ण पदकों के साथ दूसरा स्थान हासिल किया।
आज यहां होतवार स्थित अत्याधुनिक बिरसा मुंडा खेल परिसर में एथलेटिक स्टेडियम में श्रीलंका ने मेजबान भारत को कड़ी टक्कर देते हुए 16 स्पर्धाओं में से आठ के स्वर्ण पदक जीत लिये। श्रीलंका ने प्रतियोगिता में कुल दस स्वर्ण, दस रजत और 14 कांस्य के साथ 34 पदक जीते। श्रीलंका के खिलाड़ियों ने जहां कल 14 स्पर्धाओं में सिर्फ दो ही स्वर्ण पदक जीते थे और शेष 12 स्वर्ण पदक भारतीय एथलीटों ने हथियाये थे वहीं आज नजारा बिल्कुल अलग था। वर्ष 2007 में कोलंबो में हुए पहले दक्षिण एशियाई जूनियर एथलेटिक्स प्रतियोगिता के मुकाबले इस बार भारत को एक स्वर्ण पदक कम मिला। श्रीलंका की ओर से सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वालों में आज 110 मीटर बाधा दौड़ में सुपुन विराज रनदेनिया रहे जिन्होंने 13.64 सेकेंड का समय निकालकर इस स्पर्धा में भारत के टी. बालामुरुगन के 14.62 सेकेंड के रिकार्ड में सुधार किया। इस स्पर्धा में इस बार भारत को सिर्फ कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा जो तरुणदीप सिंह ने 14.51 सेकेंड का समय निकाल कर जीता। रजत पदक भी श्रीलंका के ही मालिन उदय ने 14.41 सेकेंड में जीता।
प्रतियोगिता के दूसरे और अंतिम दिन कुल सात स्पर्धाओं में नये कीर्तिमान स्थापित किये गये जिनमें महिलाओं की 100 मीटर बाधा दौड़ में भारत की मेघना शेट्टी ने 14.54 सेकेंड का समय निकाल कर मीट के भारत की ही सीटी राजी के 14.86 सेकेंड के कीर्तिमान को तोड़ दिया। स्पर्धा में भारत की दीपिका ने रजत और श्रीलंका की इरेशानी ने कांस्य पदक जीते। लड़कियों की ऊंची कूद में श्रीलंका की पूर्णिमा जयमाली ने 1.68 मीटर की छलांग लगाकर स्वर्ण पदक जीता जबकि रजत पदक भारत की स्वप्ना वर्मन ने 1.65 मीटर की छलांग लगाकर जीता। कांस्य पदक भी भारत की ही ज्योति ने 1.60 मीटर की छलांग लगाकर जीता। लड़कों की चक्का फेंक प्रतियोगिता भारत के सचिन ने 54.44 मीटर की दूरी के साथ जीती। साथ ही उन्होंने स्पर्धा का पहले का 54 मीटर का रिकार्ड तोड़ने में सफलता पायी। भारत के दिल योगी ने रजत और श्रीलंका के आशेन ने कांस्य पदक जीता। लड़कों की लंबी कूद में भारत के पी. अंबुराजा ने 7.41 मीटर लंबी छलांग लगाकर स्वर्ण पदक जीता और मीट का पूर्व का श्रीलंका के एस नदीश का 7.36 मीटर का कीर्तिमान भी ध्वस्त कर दिया। इस प्रतियोगिता में रजत और कांस्य श्रीलंका ने जीते।
 तीन हजार मीटर की लड़कियों की दौड़ में भारत की पीयू चित्रा ने देश का परचम लहराया। उन्होंने प्रतियोगिता का स्वर्ण पदक 9 मिनट 51.13 सेकेंड के समय के साथ जीता। स्पर्धा का रजत पदक भारत की प्रीती लांबा और कांस्य श्रीलंका ने जीता। लड़कियों की 200 मीटर की दौड़ भारत की एस अर्चना ने मीट रिकार्ड के साथ जीती। उन्होंने यह स्पर्धा 24.32 सेकेंड में जीती जबकि इससे पहले रिकार्ड भारत की जे अरुलप्पन के नाम था जो उन्होंने 2007 में 25.32 सेकेंड के साथ बनाया था। इस प्रतियोगिता में भारत की सी रेंगिथा ने 25.04 सेकेंड और श्रीलंका की निर्मली ने भी 25.23 सेकेंड का समय निकाल कर मीट रिकार्ड तोड़ा लेकिन उन्हें रजत और कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा। लड़कों की 200 मीटर की दौड़ श्रीलंका के हिमाशा इशान ने 21.44 सेकेंड में जीतकर मीट का रिकार्ड तोड़ दिया जो श्रीलंका के ही एस अंबेपितिवा के नाम था जो 21.91 सेकेंड का था। भारत के हसनदीप सिंह ने 21.63 सेकेंड का समय और श्रीलंका के मलिक खान फर्नांडो ने 21.69 सेकेंड का समय निकाल कर प्रतियोगिता का रजत और कांस्य पदक जीता। इन दोनों ने भी मीट रिकार्ड तोड़ने में सफलता पाई।
भारत के शैलेन्द्र सिंह ने लड़कों की 1500 मीटर दौड़ 4 मिनट 02.39 सेकेंड में जीत कर स्वर्ण पदक अपने नाम किया। लड़कियों की चक्का फेंक प्रतियोगिता श्रीलंका की डब्ल्यू अमंथी ने 41.65 मीटर चक्का फेंक कर जीती जबकि भारत की नंदिनी और मनीषा ने क्रमश: रजत और कांस्य पदक जीता। लड़कियों की लंबी कूद भारत की जेनिमोल जाय ने 5.4 मीटर की छलांग लगाकर जीती जबकि भारत की ही शिपू मंडल ने 5.39 मीटर की छलांग लगाकर रजत पदक जीता। कांस्य पदक श्रीलंका की लक्षिणी ने जीता। भारत की जेसी जोसफ ने 2 मिनट 08.38 सेकेंड में लड़कियों की 800 मीटर की दौड़ जीती। श्रीलंका की नदीशा और भारत की अर्चना ने स्पर्धा का रजत और कांस्य पदक जीता। लड़कियों की 4 गुणा 100 मीटर रिले श्रीलंका की टीम ने 47.31 सेकेंड में जीती। भारत को इस स्पर्धा का रजत और बांग्लादेश को कांस्य पदक हासिल हुआ। लड़कों की 4 गुणा 100 मीटर रिले दौड़ भी श्रीलंका के खिलाड़ियों ने 41.42 सेकेंड में जीती। भारत की टीम 41.81 सेकेंड के साथ दूसरे स्थान पर और 43.15 सेकेंड के साथ पाकिस्तान तीसरे स्थान पर रहा। लड़कियों की 4 गुणा 400 मीटर रिले श्रीलंका ने 3 मिनट 51.04 सेकेंड में जीती। भारत की टीम इस स्पर्धा में 3 मिनट 59.14 सेकेंड से दूसरे स्थान पर रही। बांग्लादेश ने प्रतियोगिता का कांस्य जीता। श्रीलंका की टीम ने लड़कों की 4 गुणा 400 मीटर की दौड़ भी 3 मिनट 15 46 सेकेंड में जीती। भारत की टीम 3 मिनट 15.66 सेकेंड से दूसरे स्थान पर रही जबकि बांग्लादेश ने कांस्य पदक जीता। दूसरी सैफ जूनियर एथलेटिक्स में तीसरे स्थान पर बांग्लादेश रहा जिसे तीन कांस्य पदक मिले जबकि पाकिस्तान की टीम को सिर्फ एक कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा और उसकी टीम चौथे स्थान पर रही। मालदीव और नेपाल का इस प्रतियोगिता में खाता नहीं खुल सका। अगली सैफ जूनियर एथलेटिक्स श्रीलंका के कोलंबो में 2015 में होगी। 

अतुलनीय-अनुकरणीय सचिन

अपने तेज, वेग और चमत्कारिक खेल से 24 साल तक क्रिकेट को गौरवान्वित करने वाले सचिन तेंदुलकर 18 नवम्बर को अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी क्रिकेट से विरत होने जा रहे हैं। सचिन के इस शाही संन्यास के बाद क्रिकेट मुरीद इस नायाब खिलाड़ी का अश्क दूसरे खिलाड़ियों में जरूर खोजेंगे पर सूर्य सा तेज और वायु सा वेग हर किसी में नहीं होता। खिलाड़ियों का आगाज और अवसान खेल का हिस्सा है। शिखर सीधी-सपाट जगह नहीं होती जिस पर मनचाहे समय तक रुका जा सके। महानतम सचिन भी इसका अपवाद नहीं रहे। इस खिलाड़ी का जीवन भी उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। कई बार लगा कि इस खिलाड़ी की क्रिकेट अवसान पर है लेकिन फौलादी सचिन ने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बूते न केवल खराब समय को जिया बल्कि कुंदन बनकर चमके भी।
सचिन ने बहुत कम अवसरों पर अपने मुरीदों को निराश किया। वह शिद्दत से भारतीय क्रिकेट का लोहा दुनिया भर में मनवाते रहे। अपनी पारी को हमेशा संभालने, संवारने और उसे बड़े स्कोर तक ले जाने की न केवल कोशिश की बल्कि उसमें सफलता भी पाई। उनमें अच्छे स्ट्रोक्स, तेज गेंदबाज को जीवट के साथ खेलने की क्षमता होने के साथ-साथ लम्बी पारियां खेलने का धैर्य भी रहा। यही वजह रही कि सचिन क्रिकेट की धड़कन और भारतीय जनसैलाब का प्रतीक बने। मैदान में उनका विध्वंसक खेल अतुलनीय तो मैदान के बाहर का उनका शौम्य-शिष्ट व्यवहार हमेशा लोगों के लिए अनुकरणीय रहा है। समय गतिमान है वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। 24 साल तक अपने मुरीदों के दिलों पर राज करने वाला यह खिलाड़ी तो रहेगा पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी क्रिकेट उसके नायाब खेल से महरूम होगी।
आज क्रिकेट से बेशुमार मोहब्बत करने वाले हर शख्स के मन में सचिन के संन्यास की पीड़ा ही तो है जोकि इस खिलाड़ी को महानतम लोगों की कतार में शामिल करती है। दुनिया भर की तमाम समझदारी का साझा सच यही है। सचिन भारत का अनमोल हीरा है जिसकी चमक सदियों तक महसूस की जाएगी। उम्र सनातन सत्य है और हर सत्य का अपना अमिट प्रभाव होता है। 40 साल के सचिन में 20 साल के सचिन की चपलता, उसके रिफ्लेक्शन और शॉट सेलेक्शन से नाखुश लोग कुछ भी कहते हों पर सचिन की तुलना सिर्फ और सिर्फ सचिन से ही की जा सकती है।
आप ब्रेडमैन के फुटेज देखिए, आपको मालूम हो जाएगा कि वह अपने समकालीनों से पूर्णत: अलग क्लास के बल्लेबाज थे। उन्हें कोई ऐसी चीज प्रेरित करती थी जिसे शायद वह भी पूरी तरह से समझ नहीं पाते थे। यही हाल सचिन का भी है जिन्होंने 16 वर्ष की आयु में टेस्ट क्रिकेट खेलनी आरम्भ की और 24 वर्ष तक खेल में अपना महत्व और प्रभुत्व बनाए रखा। वह जब भी बल्लेबाजी करने के लिए उतरते हैं करोड़ों लोगों की उम्मीदों और आशाओं का बोझ उन पर होता है। मुम्बई में भी ऐसा ही होगा। आज भी लोगों का विश्वास जिन्दा है। सचिन के मुरीदों को भरोसा है कि वह अपने अंतिम टेस्ट में कुछ अनोखा करेगा। हो सकता है वह तिहरा शतक भी लगा दे। लोगों का सचिन पर यही विश्वास उन्हें अपने समकालीनों को छोड़िए,  ब्रेडमैन से भी अलग कर देता है। ब्रेडमैन ने तो अपनी अधिकतर क्रिकेट इंग्लैण्ड के खिलाफ ही केली पर सचिन ने ज्यादा देशों व विभिन्न स्थितियों में क्रिकेट को अंजाम तक पहुंचाया। इस खिलाड़ी ने एक ऐसा बैटिंग रिकार्ड स्थापित किया है जिसे शायद कभी चुनौती न दी जा सके। यह केवल उनकी प्रतिभा नहीं है बल्कि भटकाने वाली चीजों से अपने को अलग रखने या स्विच आॅफ करने की अद्भुत क्षमता भी है।
सचिन एक मिथ हैं। एक ऐसा मिथ जिसके लिए हर कल्पना छोटी है। दरअसल किसी खिलाड़ी की सफलता भले वैयक्तिक होती हो लेकिन उस सफलता का असर सार्वजनिक होता है। सफलता से प्रभावित होने वाले अनगिनत होते हंै तो सफलता से जलने वाले भी कम नहीं होते। ऐसा नहीं है कि सचिन से जो चिढ़ते हों, वे सचिन के समकालीन ही हों, क्रिकेटर ही हों और उन्हीं के जैसे विश्व क्रिकेट में नाम और महत्व रखते हों। सचिन से चिढ़ने वालों में कोई भी हो सकता है। उनसे कम उम्र का, ज्यादा उम्र का क्रिकेटर, गैर क्रिकेटर यानी कोई भी। सचिन इस सबके बावजूद भारतीय क्रिकेट के वह मिथक हैं, जिनकी व्याख्या कर पाना शब्दों के बस में भी नहीं है। दरअसल सचिन ऐसा मिथ हैं जिनके विरोधी हमेशा हाथ मलते रहेंगे और सिर धुनते रहेंगे कि आखिर वह कभी बेनकाब क्यों नहीं हुआ?
अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धी क्रिकेट में 24 साल तक अपने शानदार खेल का आगाज और शतकों का शतक तथा 33000 से अधिक रन बनाना हंसी खेल नहीं है। लोगों को बहुत समय तक याद नहीं रहता पर सचिन की चपलता, अपर कट और उसके स्ट्रेट ड्राइव की दर्शनीयता अक्षुण्ण है जोकि शायद ही लोग भूल पाएं। अगर हम सचिन को क्रिकेट का भगवान मानते हैं, अगर हम यह मानते हैं कि क्रिकेट इतिहास में वह दुर्लभ जीनियस हैं और इतिहास के पन्नों में हमेशा अजर अमर रहेंगे तो हमें इस नटवर नागर को दिल से सलाम करते हुए इस दुर्लभ संयोग का आनंद लेना ही चाहिए। पिछले कुछ समय से उसके चाहने वालों ने बेशक सचिन की बिजली की रफ्तार से कौंधती स्क्वायर ड्राइव और स्ट्रेट कट का लुत्फ न उठाया हो पर उसकी मौजूदगी हमेशा भारतीय क्रिकेट को बड़ा कद मुहैया कराती रही है। करोड़ों दिलों की इस धड़कन ने दुनिया भर को अतीत में ऐसी दुर्लभ कौंधें दिखाई हैं जिनका अब सिर्फ इतिहास के पन्नों में ही जिक्र मिलेगा।

सचिन, लोग मुझे मार देंगे: शोएब अख्तर

भारत के महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में पाकिस्तान के पूर्व तेज गेंदबाज शोएब अख्तर ने सचिन के साथ अपना एक अनुभव बताते हुए कहा कि भारत में एक क्रिकेट सीरीज के दौरान जब हम भारत आए थे तो मेरी सभी भारतीय खिलाड़ियों के साथ अच्छी ट्यूनिंग हो गई थी। रात को जब खाने के बाद मैं, युवराज, सहवाग और सचिन तफरीह के लिए जा रहे थे, तो मुझे शरारत सूझी। मैंने सचिन से कहा, मैं तुम्हें कंधों पर उठा लूं? सचिन ने मना किया और वह मना करते रहे लेकिन मैंने उन्हें कंधे पर उठा लिया। अचानक बैलेंस बिगड़ा और सचिन मेरे कंधे से गिर गए। मैं डर गया मैंने सचिन को उठाते हुए पूछा, तुम ठीक तो हो न? अगर तुम्हें कुछ हो गया तो इंडिया में लोग मुझे मार देंगे और फिर सभी हंसने लगे। शोएब ने सचिन से अपने दोस्ताना ताल्लुकात का खुलासा करते हुए कहा, अल्लाह ने सचिन को बहुत इज्जत दी। कोई ऐसे ही इतना बड़ा खिलाड़ी नहीं बन जाता। इसके पीछे सचिन की कड़ी मेहनत है। शोएब ने कहा कि मैं जब सचिन को गेंदबाजी करता था तो मुझे सोचना पड़ता था कि कैसी गेंदबाजी करूं कि कम से कम रन पड़ें।
पाकिस्तान के पूर्व कप्तान वकार यूनुस ने सचिन की तारीफ करते हुए कहा कि 1989 में पाकिस्तान में जब सचिन सियालकोट टेस्ट में उतरे तो मुझे लगा कि यह बच्चा कहां से आ गया? वकार ने बताया कि उस समय मैंने सचिन को बहुत कम आंका था, लेकिन बाद में जब सचिन का खेल देखा तो मैं समझ गया कि यह बड़ा प्लेयर है। वकार ने कहा, भारत और पाकिस्तान ने पिछले 10 साल से क्रिकेट नहीं खेली। मुझे इसका मलाल है, सचिन को भी होगा। उन्होंने कहा कि भारत-पाक की क्रिकेट एशेज से भी बड़ी है। पाकिस्तान के खिलाफ रन नहीं करने का मलाल सचिन को भी होगा।

...वापस जाओ और देश के लिए खेलो: अजीत तेंदुलकर

सचिन तेंदुलकर की जिंदगी के बहुत सारे किस्से आप जानते हैं उनके संघर्ष की ढेर सारी कहानियां आपने अखबारों-पत्रिकाओं में पढ़ी होंगी लेकिन अब भी कई ऐसी बातें और यादें हैं जो कहने से रह गई हैं। सचिन के बड़े भाई अजित तेंदुलकर ने क्या बताया आप भी जानें... 24 साल से आप उनके साथ हैं। अब क्या बदलेगा 18 नवंबर के बाद?
-सचिन इंडिया की कैप नहीं पहनेगा इस तारीख के बाद। यही बहुत बड़ा बदलाव है। वह पिछले 24 साल से गर्व के साथ यह रंग, यह कैप पहन रहा है. उसकी पूरी जिंदगी क्रिकेट से ही बनी है. वह जब भी पिच पर उतरा, सबने शतक की उम्मीद की. बहुत दबाव था इसका. अब इसका खात्मा हो जाएगा. अब शायद वह सुबह उठे, तो न सोचे कि इस बॉलर को कैसे खेलूं. एक्सरसाइज में कुछ कमी आएगी. भरपेट बटर-चिकन खा सकेगा और मीडिया भी उसकी आलोचना और स्क्रूटनी से बचेगी.
परिवार क्या सोच रहा है इस मौके पर? मां पहली बार लाइव देखेंगी. दोनों भाई अजीत और नितिन, बहन सरिता और पत्नी अंजलि भी स्टेडियम में होंगी?
सब खुश हैं. मां ने तो उसे कभी नेट पर प्रैक्टिस करते भी नहीं देखा. लोकल गेम तो छोड़ ही दीजिए. सचिन के लिए यह खास मोमेंट है. 200वां टेस्ट. पूरा परिवार स्टेडियम में मौजूद होगा. हम सब बहुत बेसब्री से इसका इंतजार कर रहे हैं. अब तक हम इससे बचते रहे हैं. कई दोस्त हम पर हंसते हैं, जब हम कहते हैं कि हम सचिन को लाइव देखने नहीं जाते. टीवी पर ही उनकी पारी देखते हैं. लेकिन इस बार लाइव देखेंगे.
परिवार स्टेडियम में देखने क्यों नहीं जाता था मैच? अंजलि एक बार 2004 में मेलबर्न में टेस्ट देख रही थीं. सचिन डक पर आउट हुए, तो अंजलि न सिर्फ स्टेडियम बल्कि शहर से ही बाहर चली गईं. क्यों?
-हमें दो चीजों का डर था, तब भी जब वह बहुत रन बना रहा था. एक, अपना विकेट फेंकने की आदत. दूसरा कैलकुलेशन की आदत, धैर्य खोने की बात. एक बार राजसिंह डूंगरपुर ने पापा से कहा था कि सचिन को बोलिए कि कार पहले गेयर से चलाना शुरू करे, पांचवें से नहीं. तो ये सब बातें हैं, जिसकी वजह से हम स्टेडियम नहीं जाते थे. पर हां, मां से बोलता था कि अब सचिन खेल रहा है. प्रार्थना करिए. बहन सरिता व्रत रखती थी. अंजलि भी कुछ न कुछ करती थी. मैंने कुछ क्रिकेट खेला है, तो मैं मन में ये कल्पना करने लगता था कि वो अच्छा खेल रहा है. रन बना रहा है. इससे सकारात्मक बने रहने में मदद मिलती थी. हम सब जानते हैं कि जब कोई बैट्समैन पिच पर पहुंच जाता है, उस पर किसी का कंट्रोल नहीं रहता, ऐसे में जोर इस बात पर था कि भावनात्मक रूप से, रूहानी रूप से हम उसके साथ रहें. इसका कोई वैज्ञानिक तर्क नहीं है. मगर हम हमेशा उसकी बैटिंग के वक्त उसके इर्द-गिर्द ही रहे, ख्याली रूप से.
अतीत में चलते हैं, जब सचिन साहित्य सहवास कॉलोनी में टेनिस बॉल से खेलते थे और आप उन्हें लेकर रमाकांत आचरेकर के पास ले गए?
सच कहूं तो तब ये टैलेंट या जीनियस का नहीं सोचा था. टेनिस बॉल से खेलते थे. तीन चीजें थीं. जिस तरह से वह अपना बल्ला उठाता था. इजी बैकलिप्ट थी. आज भी है. बिल्कुल नहीं बदली है. बहुत रिलैक्स्ड सी है. ये पहली चीज थी जिसे नोटिस किया. दूसरी चीज उसके हाथों का स्विंग. बॉल मिडल होती थी. रबर बॉल बाउंस बहुत करती है. सचिन उसी ऐज से बॉल की लेंथ बहुत अच्छे से पिक कर रहा था. इन तीन चीजों पर गौर करने के बाद मुझे लगा कि उसे आगे बढ़ाना चाहिए. मुझे लगा कि इसमें प्रतिभा है और अब उसे आगे बढ़ाने की जरूरत है. हम रमाकांत सर के पास गए. सचिन ने हाफ पैंट और टीशर्ट पहन रखी थी. ट्राउजर भी नहीं था. मैंने आचरेकर सर से बात की. वो बोले ठीक है, कल से आ जाए. मगर फुल पैंट पहनकर आए. फिर बोले कि अच्छा आया है, तो कुछ फील्डिंग प्रैक्टिस कर ले. उसने मुझे चौंकाते हुए ऊंचे-ऊंचे कैच आराम से ले लिए और फिर अच्छे अंदाजे के साथ विकेटकीपर को बॉल लौटाई. उम्मीद थी कि अगले दिन वो बैटिंग भी ठीक कर लेगा.
शुरूआत में कुछ दिन मुश्किल रहे. उसे पैड और ग्लब्स के साथ खेलने की आदत नहीं थी. बैट भी प्रॉपर नहीं था. मगर फिर वह जल्द ही रिदम में आ गया. एक दिन वह नेट्स के बाद आया. आचरेकर सर पहुंचे और बोले कि इस तरह से तुम्हें खेलना होगा, आगे भी. तभी तय हुआ कि वह नंबर चार पर खेलेगा. ऐसा रमाकांत सर बोले.
क्रिकेट करियर के शुरूआत में ही कई टेस्ट सेंचुरी जड़कर वह सुर्खियों में आ गए. वह पहले मिलियेनर क्रिकेटर बने. मेरे लिए पैसों का कोई मतलब नहीं था. उसकी सेंचुरी बनी तो वह मिलियंस कमाने की तरह था. अगर वो अच्छा खेला तो हमें रिक्शे में घूमने में भी मजा आया. रन नहीं बने, तो फरारी चलाने में भी मजा नहीं आया. लोग कह सकते हैं कि बहुत पैसा कमा लिया. मगर हमारे घर में उसके रन और सेंचुरी का ही महत्व था. आज मैं उसके करियर की आखिरी बेला में कह सकता हूं कि इंटरनेशनल क्रिकेट में 100 से ज्यादा शतक, पचास हजार से ज्यादा रन फर्स्ट क्लास क्रिकेट में. तीन वर्ल्ड कप में भारत के लिए सबसे ज्यादा रन बनाना. अब इन सबके बाद हम कह सकते हैं कि वह हमेशा ही मिलियेनर रहेंगे हमारे लिए.
सचिन रिक्शे और टैक्सी पर कब बैठे?
हम बीएमडब्ल्यू जे फाइव में थे. दो रेगुलर सूटकेस, एक हैंडबैग और एक कोफिन था. बांद्रा फ्लाईओवर पर पहुंचे, तो कुछ गड़बड़ी समझ आई. सचिन बोले कुछ गलत चल रहा है. बाहर आए तो देखा कि कार पंक्चर थी. हमारे साथ सिक्योरिटी गार्ड नहीं था उस वक्त. कुछ आपस में बात करनी थी. सुबह के 6.30 बजे थे. ज्यादा ट्रैफिक नहीं था. हम दूसरी कार के लिए नहीं बोल सकते थे. एयरपोर्ट पर लेट हो जाते थे. हमने टैक्सी रोकी और रिक्शा भी रोका. तब सचिन बाहर आए. टैक्सी और रिक्शे वालों को यकीन नहीं हुआ. हमें सारे बैगेज टैक्सी में रखे. सचिन टैक्सी में सामान के बीच थे, और मैं रिक्शे पर था. एयरपोर्ट पर सब चौंके हुए थे.
सबसे यादगार कमेंट किसका रहा अब तक?
शारजाह में आॅस्ट्रेलिया के खिलाफ जब बैक टु बैक दो सेंचुरी मारीं. जब फाइनल में सेंचुरी मारी, तो मेरे करीबी दोस्त ने फोन किया. उनकी मां ने सचिन की पारी देखी थी. हम लाइव नहीं देखते थे. वह बोला, तुम्हें यकीन नहीं होगा, सचिन इतना अच्छा खेला कि मेरी मां मैच देखने के बाद खुशी के मारे रोने लगीं. वो लम्हा बार बार याद आता है.
1998 का आपने किस्सा सुनाया. 1999 में वर्ल्ड कप के दौरान पिता का देहांत हुआ. अंजलि ने बताया कि वह आधी रात सचिन के कमरे में गईं और बताया. अगर पापा पांच मिनट के लिए फिर से जिंदा हो जाते तो वह भी वही कहते, जो हमने कहा कि वापस जाओ और देश के लिए खेलो. पापा का उसके करियर पर सबसे ज्यादा असर रहा. जाहिर है कि जब वह अंतिम संस्कार के लिए घर आया, तो दुखी था. पापा के अटैक के दो महीने पहले भी एक हार्ट अटैक हुआ था. उस वक्त भी मुझे याद है भारतीय टीम श्रीलंका में थी. पापा बेड पर थे, आॅक्सीजन मास्क लगा था. अगले दिन सचिन को जाना था वहां. मैंने पापा को बताया रात के वक्त, कल सचिन को जाना है खेलने. मैं उसे नहीं बताऊंगा कि आपको अटैक हुआ है. वह मुस्कुराए. उन्होंने इशारे में कहा कि ठीक किया.
अगले दिन सचिन श्रीलंका गया. और वह हॉस्पिटल से ही उसे खेलते देख खुश थे. इसीलिए मैं कह रहा हूं कि अगर वह पांच मिनट के लिए भी फिर से जीवित होते तो यही खेलते, खेल जाकर. इसलिए हमने उसे समझाया और उसे फिर से इंग्लैंड भेजा.
आप लोग सचिन के साथ बहुत सख्ती से पेश आते हैं.कौन सी पारी ज्यादा करीब है आपके?
चेन्नई की टेस्ट पारी जब भारत हार गया और हरियाणा के खिलाफ रणजी पारी. व्यक्तिगत तौर पर चेन्नई में भारत पाकिस्तान से सचिन के शतक के बावजूद हार गया. वह न्यूजीलैंड दौरे से लौटा तो बहुत थका था. मैंने पाकिस्तान टूर की बात की, तो वो बोला कि मैं शायद नहीं खेलूं. मेरा उत्साह चला गया. वह वसीम अकरम और वकार यूनुस के खिलाफ नहीं खेलने की सोच रहा था. फिर वह खेला. पहली पारी में जीरो पर आउट हो गया. चौथे दिन वह 20 पर नाबाद खेलकर लौटा. भारत को 270 रन चेज करने थे. पिच खराब हो चुकी थी.जब वह खेलने गया था, तब 6 रन पर दो विकेट गिर चुके थे. उसे अपना और टीम का स्कोर बढ़ाना था. वह 256 पर आउट हुआ. जब आउट हुआ तो शतक (113) बन चुका था, उससे भी अहम था कि टीम पूरी तरह संकट से उबरी लग रही थी.मगर फिर वह हार से इतना दुखी था कि ड्रेसिंग रूम में रो रहा था. इकलौता मौका था, जब वह अपना मैन आॅफ द मैच अवॉर्ड लेने नहीं गया. राजसिंह डूंगरपुर ने जाकर समझाया कि अगर वह अब नहीं निकला, तो टीम घर नहीं जा पाएगी.
18 नवंबर की दोपहर कैसी होगी. क्या कई जिम्मेदारियों का सर्किल पूरा होगा?
सच कहूं तो हमें सचिन के लिए कभी कुछ बहुत खास नहीं करना पड़ा. वह शुरू से अनुशासन में रहता था. बस हमें उसके इर्द गिर्द रहना होता था. लेकिन हां, 18 नवंबर की दोपहर अलग होगी. हमने हमेशा उसके क्रिकेट के बारे में सोचा, ये सिर्फ उसका नहीं सबका साझा सपना था. वह खत्म हो जाएगा. लेकिन ये बहुत खुशनुमा नोट पर खत्म होगा. उसके ज्यादातर सपने सच हो चुके हैं और उम्मीद है कि उसने क्रिकेट आॅडियंस को खुश रखा.
अजीत, 24 साल से आप सचिन का मैच देखने नहीं गए हैं, अब जाएंगे आप?
हां मैं जाऊंगा क्योंकि ये आखिरी बार होगा. मैं ये मौका नहीं छोड़ूंगा. मेरा भाई 200 वां टेस्ट खेल रहा है. उस जगह खेल रहा है, जहां उसने क्रिकेट खेलना शुरू किया. सिर्फ मैं ही नहीं हमारा पूरा का पूरा परिवार खेलने जाएगा.
भाइयों में कभी आपसी मुकाबला भी हो जाता है, आपने पूरा जीवन सचिन के लिए समर्पित कर दिया. कभी बहस हुई हो?
हम हमेशा क्रिकेट पर ही बात करते हैं. कई बार आप चीजों की अलग अलग ढंग से व्याख्या करते हैं. सचिन बहुत नाइस है. उसने हमेशा मेरी राय सुनी. 12 साल से वह टूर करने लगा था. उसने दुनिया के बेस्ट बॉलर्स को खेला. मैं तो कभी घर से ही नहीं निकला. बस टीवी पर उसे देखा और अपनी राय दी. पर फिर भी मैं बोलता था और वो सुनता था. हां कभी कभी बहस हुई, पर वो क्रिकेट से जुड़े मुद्दों पर ही हुई. कुछ देर हुई. फिर कुछ देर में भूल गए और अगली बात करने लगे.

Saturday 9 November 2013

महिला होने की गर्वोक्ति आखिर कब?

आज महिलावाद या महिला विमर्श एक फैशन बन गया है। महिलाओं के मुद्दों पर चिन्तित समाज आंदोलन की राह चल निकला है। महिलाओं के लिए हो रहे आन्दोलन कोई नई बात नहीं हैं।  नारी अस्मिता और उससे जुड़े तमाम सवालों का हल हमारा समाज बीते दो सौ साल से खोज रहा है तथापि समस्याएं यथावत हैं। अठारहवीं शताब्दी के मध्य से ही दुनिया भर की तमाम महिलाओं को बराबरी का हक दिलाने की पुरजोर कोशिशें हो रही हैं। भारत में महिलाओं की गरिमा को सनातन समय से गौरवशाली मुकाम हासिल है बावजूद आज सब कुछ ठीक नहीं कहा जा सकता।
भारत में सरोजिनी नायडू पहली ऐसी महिला थीं जिन्होंने एनी बेसेण्ट और अन्य लोगों के साथ मिलकर भारतीय महिला संघ की स्थापना की थी। उन्नीसवीं शताब्दी की महिला आन्दोलनकारियों में फ्रांस की सिमोन द बोउवा का नाम सर्वोपरि है। उनकी पुस्तक द सेकेण्ड सेक्स स्त्री विमर्श की चर्चित कृति है। सिमोन मानती थीं कि स्त्री का जन्म भी पुरुष की तरह ही होता है मगर परिवार व समाज द्वारा उसमें स्त्रियोचित गुण भर दिए जाते हैं। 1970 में फ्रांस के नारी मुक्ति आंदोलन में भाग लेने वाली सिमोन स्त्री के लिए पुरुष के समान स्वतंत्रता की पक्षधर थीं। महिलाएं चाहे जिस भी नस्ल, वर्ण, जाति, धर्म, संस्कृति या देश की हों, उनका संघर्ष लगभग एक समान है। आश्चर्यजनक तो यह है कि स्त्रीवादियों के आन्दोलन की जो लहर अठारहवीं शताब्दी के मध्य में उठी थी, अब तक अपनी मंजिल नहीं पा सकी है। धार्मिक नेता और समाज के ठेकेदार युवतियों के रहन-सहन, परिधान, संचार साधनों के उपयोग और जीवनसाथी के चयन जैसे सर्वथा निजी मामलों में भी अपनी राय थोपकर उनकी स्वतंत्रता का हनन करते हैं। वस्तुत: महिलाओं के संदर्भ में रोजगार, शिक्षा और कानून को लेकर समानता की मांग बेमानी नहीं है क्योंकि वे हर जगह भेदभाव से पीड़ित हैं। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं की उन्नति के मार्ग में हर कदम पर अवरोध दिखाई देते हैं।
महिलाएं अपने परिवार के लिए अथक परिश्रम करती हैं पर उनके श्रम को कोई सामाजिक मान्यता प्राप्त नहीं है। भारत में तो कर्तव्य और प्रेम की ओट में उसके श्रम की अनदेखी कर दी जाती है। मगर दु:ख की बात यह है कि भारतीय महिलाओं की स्थिति सरकार के समस्त प्रयासों के बावजूद दयनीय होती जा रही है। आज सबसे बड़ी समस्या महिलाओं की स्वतंत्रता नहीं, सुरक्षा की है। संसद की महिलाओं के पोषण से सम्बन्धित कामकाज देखने वाली केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की लोकसभा प्राक्कलन समिति ने सरकार को इस बात के लिए फटकारा है कि देश में आज भी 70 प्रतिशत बच्चे और 60 प्रतिशत महिलाएं कुपोषण का शिकार हैं। देश तमाम प्रौद्योगिक क्षेत्रों में विकास कर रहा है, संचार और तकनीकी युग में इतना कुपोषण शर्म की ही बात है। कुपोषण रोकने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन के नए ग्रोथ चार्ट के बाद भी देश में बच्चों एवं महिलाओं की स्थिति जस की तस है। महिलाओं और बच्चों के कुपोषण पर हमारी सरकारों और उनके विभागों के बीच समन्वय का बेहद अभाव है।
सरकार कुपोषण खत्म करने के लिए जो भी योजनाएं लागू की कर रही है, वे जमीनी स्तर पर प्रभावी नहीं हो पा रही हैं। आंगनबाड़ियों और स्वास्थ्य विभाग में व्यापक समन्वय की कमी है। अधिकांश बच्चों का वजन नहीं लिया जाता। इससे वास्तविकता का पता नहीं चलता। एक समय प्रधानमंत्री ने भी कुपोषण को देश के लिए राष्ट्रीय शर्म बताया था। पर सरकार और समाज दोनों के बीच कोई चेतना और समस्याओं के प्रति जुझारूपन देखने को नहीं मिलता। इसी समिति ने यह भी बताया है कि देश में बच्चों में कुपोषण 1998-99 में 74 प्रतिशत के मुकाबले 2005-06 में 80 प्रतिशत हो गया यानी कुपोषण की दर घटने की बजाय बढ़ गई है।
यह गम्भीर मामला है। हम जिस स्तर को स्थिर नहीं रख सके, कम से कम उसे दुर्गति की ओर जाने से तो रोक ही सकते थे। आज ग्रामीण क्षेत्रों में सुदृढ़ होती स्वास्थ्य व्यवस्थाएं, जैसा वाक्य सरकारी विज्ञापन का हिस्सा तो हो सकता है लेकिन वास्तविकता से इसका बहुत वास्ता नहीं हो सकता। देश में हर बार बजट बढ़ता है और हर बार कुपोषण भी सामने आता है। हर बार कुपोषण, रक्त अल्पता, निरक्षरता की शिकार महिलाओं की संख्या करोड़ों में हो जाती है। देश में बाल विवाह को लेकर लाख सजगता का दम्भ भरा जाता हो पर प्रतिवर्ष लाखों की तादाद में जवाबदेह लोगों के सामने क्रूर मजाक होता है। आज देश में करीब 40 प्रतिशत लड़कियों का बाल विवाह राष्ट्रीय शर्म की बात नहीं तो क्या है?
दुर्भाग्य की बात है जिस समय समय संयुक्त राष्ट्र बाल विवाह रोकने की बात कर रहा था ठीक उसी समय हरियाणा में एक राजनैतिक पार्टी के नेता 15 वर्ष में लड़कियों के विवाह की सलाह दे रहे थे। भारतीय समाज, यहां का शासक वर्ग अपने हितों को बनाये रखने व राजनैतिक पार्टियां अपने चुनावी गणित की दृष्टि से पिछड़े सामंती मूल्यों को बनाये रखे हुए हैं। यही कारण है कि भ्रूण हत्या, बाल विवाह, दहेज प्रथा जैसी तमाम स्त्री विरोधी प्रथाएं और परम्पराएं आज भी बदस्तूर जारी हंै। शासक वर्ग इन समस्याओं के समाधान में कोई दिलचस्पी नहीं रखता। वह मात्र चुनावी रस्म अदायगी करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि जड़ में चोट करने वाले व्यापक आंदोलन की शुरूआत हो। 

सपा के गढ़ में मोदी की नमो-नमो

देश की सल्तनत के लिए चुनाव होने में अभी वक्त है, पर राजनीतिक दल पांच राज्यों में होने जा रहे विधान सभा चुनावों में अपनी ताकत का अंदाजा लगाने की पुरजोर कोशिश में जुट गए हैं। उत्तर प्रदेश अभी विधान सभा चुनावों से बहुत दूर है, पर यहां की 22 करोड़ जनता राजनीतिक दलों की नजर में है। चुनाव कोई भी हो देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश राजनीतिक दलों के मानस को जरूर हलाकान करता है। इसकी वजह यहां की 80 लोकसभा सीटें हैं। सभी दल जानते हैं कि उत्तर प्रदेश से ही देश के दिल दिल्ली के तख्तोताज को रास्ता जाता है। आगामी लोकसभा चुनावों का बिगुल बजने में अभी वक्त है, बावजूद कमल दल के प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार नरेन्द्र मोदी समाजवादी पार्टी के राजनीतिक गढ़ में सेंध लगाने की खातिर 19 अक्टूबर को कानपुर में नमो-नमो करने जा रहे हैं। भाजपा की इस भावना को भांपते हुए राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव 18 अक्टूबर को ही कानपुर को विकास की सौगातें सौंपकर कमल दल की हवा निकालने का जतन कर चुके हैं। इस नूरा-कुश्ती में नफा-नुकसान का पता लगने में अभी वक्त है, पर सपा का यह राजनीतिक पैंतरा मोदी के प्रयासों पर पानी फेर सकता है।
जो भी हो मोदी की 19 अक्टूबर की कानपुर रैली को ऐतिहासिक बनाने के लिए कमल दल ने पूरी ताकत झोंक दी है। पार्टी को भरोसा है कि कानपुर रैली न केवल ऐतिहासिक होगी बल्कि सपा के गढ़ में इस बार वह सेंध लगाने में जरूर सफल होगी। अनुमानित भीड़ को देखते हुए जहां भाजपा को मोदी की सुरक्षा की चिन्ता सताने लगी है वहीं प्रदेश में सत्तासीन समाजवादी पार्टी की पेशानियों में भी बल पड़ता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में सपा-भाजपा की इस उठापटक पर बहुजन समाज पार्टी  की भी नजरें गड़ी हुई हैं। हालांकि वह अभी अपने पत्ते खोलने के मूड में नहीं है। नरेन्द्र मोदी की कानपुर रैली को उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान की शुरूआत माना जा रहा है। देखा जाए तो कानपुर क्षेत्र में कमल दल की हालत बेहद खस्ता है। वजह साफ है यहां सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने अपनी राजनीतिक जमीन इतनी मजबूत कर ली है कि दूसरे दलों के लिए यहां सेंधमारी आसान बात नहीं है।  सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के गृह जिले इटावा तथा संसदीय क्षेत्र मैनपुरी सहित अन्य क्षेत्र उसके मजबूत गढ़ हैं। आलम यह है कि इस क्षेत्र की सात लोकसभा सीटों में से छह समाजवादी पार्टी के कब्जे में हैं जबकि कानपुर महानगर में कांग्रेस का कब्जा है।
नमो-नमो की कानपुर रैली के निहितार्थ हैं। भाजपा कानपुर में हिन्दुत्व और विकास की अलख जगाकर देश के सबसे गरीब महानगर में जहां वोटों का ध्रुवीकरण करने की फिराक में है वहीं उसके इन प्रयासों से सपा पर भी अपने गढ़ को बचाने का मानसिक दबाव पड़ने से इंकार नहीं किया जा सकता। कमल दल की मंशा है कि वह सपा को उसके ही गढ़ में ललकार कर उसे इस क्षेत्र से इतर हाथ-पैर चलाने से रोक दे। भाजपा अपने इस मिशन में यदि सफल रहती है तो सपा का उत्तर प्रदेश में 60 सीटें जीतने का सपना हवा-हवाई होने से इंकार नहीं किया जा सकता। सपा एक जुझारू पार्टी है, वह आसानी से कमल दल से मात नहीं खाएगी। उसने इसका जवाब देने का तरीका ढूंढ़ निकाला है। नरेंद्र मोदी के कानपुर में नमो-नमो से एक दिन पहले 18 अक्टूबर को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यहां कई विकास परियोजनाओं का पिटारा खोलने जा रहे हैं। सपा के इस सियासी पैंतरे से कमल दल भी सकपका गया है।
राजनीतिक बीथिका में चर्चा है कि कानपुर में गुजरात के विकास पुरुष नरेंद्र मोदी जहां भावी भारत की तस्वीर खींचेंगे वहीं प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव  महानगर को विभिन्न परियोजनाओं की सौगात देकर यह संदेश देने की कोशिश करेंगे कि समाजवादी पार्टी प्रदेश के सम्पूर्ण विकास के एजेण्डे पर चलने वाली पार्टी है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कानपुर दौरा भाजपा की भभकी का ही सीधा विरोध है।  मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने कानपुर दौरे में आधुनिक पुलिस नियंत्रण कक्ष, एक बालिका इण्टर कॉलेज और गरीब परवरदिगारों के लिए बनाए गए पांच सौ से ज्यादा मकानों का उद्घाटन करने के साथ-साथ तीन सामुदायिक केन्द्रों और कानपुर विकास प्राधिकरण की बहुमंजिला पार्किंग का शिलान्यास करेंगे।
नरेन्द्र मोदी और अखिलेश यादव कानपुर की जनता पर अपना क्या प्रभाव छोड़ते हैं यह तो भविष्य तय करेगा पर अपने-अपने राज्यों में विकास की पटकथा लिख रही इन दोनों ही शख्सियतों में कई समानताएं भी हैं। जहां देश के अधिकांश राजनीतिक दल मोदी को मुस्लिम विरोधी करार देते हैं वहीं वे अपने सूबे में इस जमात के बीच खासे लोकप्रिय हैं। बीते विधान सभा चुनाव में राज्य के 35 फीसदी मुसलमानों का मोदी को मिला समर्थन इस बात की गवाही देता है कि लोग मोदी की विकास अवधारणा के कायल हैं। सपा और मुस्लिम बिरादर एक-दूसरे के पूरक हैं। सच कहें तो पिछले विधान सभा चुनावों में मुस्लिमों और युवाओं ने ही अखिलेश को प्रदेश की सल्तनत सौंपी है। मोदी और अखिलेश दोनों ही युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय हैं। भारत आज युवाओं का देश है। आर्थिक क्षेत्र में भारत एक ताकत बनने की कोशिश कर रहा है, ऐसे में युवाओं के बीच खासे लोकप्रिय मोदी का यूपी में जादू चलेगा या युवा अखिलेश लोगों की आंखों का तारा बनेंगे यह कमोबेश कानपुर की रैली में देखने को मिल सकता है। आज उत्तर प्रदेश का युवा न केवल बेरोजगार है बल्कि वह भ्रमित भी है। उसे लगता है कि उसकी जिंदगी राजनीतिक आश्वासनों के बीच ठहर सी गई है। उसे जीवन चलाने के लिए रोजगार तो घर बसाने के लिए आटे-दाल का भाव पता होना चाहिए। पर ऐसा नहीं है। मोदी और अखिलेश में कौन इन युवाओं का रोल मॉडल होगा यह कुछ महीनों में ही पता चल जाएगा। फिलहाल इस समय राजनीतिक दलों की नजरें 18 और 19 अक्टूबर को कानपुर में होने जा रहे विकास जयघोष पर टिकी हैं।

अम्बाला में फहरा आगरा का परचम

शिवम, अभिनव और विपुल अब पुणे में दिखाएंगे जौहर
आगरा। बीते साल आगरा को केन्द्रीय विद्यालय संगठन की नेशनल लॉन टेनिस प्रतियोगिता में ओवर आॅल चैम्पियन बनाने वाले ग्वालियर के शिवम शुक्ला और अभिनव गौतम ने 24 से 28 अक्टूबर तक अम्बाला में खेली गई प्रतियोगिता में अपने शानदार खेल-कौशल से न केवल लोगों की वाहवाही लूटी बल्कि अण्डर 19 आयु वर्ग में आगरा को चैम्पियनशिप भी दिलाई। अण्डर 17 आयु वर्ग में आगरा केन्द्रीय विद्यालय एक के विपुल प्रताप सिंह ने व्यक्तिगत एकल के सेमीफाइनल में दस्तक देकर एसजीएफआई का टिकट कटाया।
अम्बाला में शानदार कामयाबी के बाद अब शिवम, अभिनव और विपुल प्रताप दिसम्बर के अंतिम सप्ताह में पुणे में होने वाले स्कूल गेम्स फेडरेशन आॅफ इण्डिया की टेनिस स्पर्धा में केन्द्रीय विद्यालय संगठन टीम का प्रतिनिधित्व करेंगे। अम्बाला में खेली गई नेशनल लॉन टेनिस प्रतियोगिता की टीम स्पर्धा के अण्डर 17 आयु वर्ग में आगरा के विपुल और आकर्षित से बहुत उम्मीदें थीं लेकिन यह जोड़ी पहले राउण्ड में वाकओवर मिलने के बाद दूसरे मुकाबले में दिल्ली से हार गई। व्यक्तिगत सिंगल्स मुकाबलों में आकर्षित महाजन से आकर्षक खेल की उम्मीद थी पर वह पिछले साल की सफलता दोहराने में असफल रहा। इसी आयु समूह में विपुल प्रताप सिंह ने जोरदार खेल दिखाया और सेमीफाइनल तक पहुंचा। कांस्य पदक के लिए हुए मुकाबले में वह हार गया। विपुल को बेशक कांस्य पदक नहीं मिला पर उसने एसजीएफआई की टिकट जरूर कटा ली।
प्रतियोगिता के अण्डर 19 आयु वर्ग में केन्द्रीय विद्यालय-एक ग्वालियर के शिवम शुक्ला और अभिनव गौतम ने टीम स्पर्धा में मजबूत चेन्नई,जयपुर और दिल्ली के खिलाफ शानदार जीत दर्ज करने के बाद खिराबी मुकाबले में तिनसुकिया को 2-0 से पराजय का पाठ पढ़ाया। उम्मीद थी कि आगरा और तिनसुकिया के बीच खिताबी मुकाबला कांटे का होगा, पर सिंगल्स में अभिनव ने 4-0 और डबल्स मुकाबले में शिवम-अभिनव की जोड़ी ने 4-1 से शानदार जीत दर्ज कर आगरा की झोली में टीम स्पर्धा का स्वर्ण पदक डाल दिया। टीम स्पर्धा में स्वर्णिम सफलता से उत्साहित इन खिलाड़ियों ने व्यक्तिगत एकल मुकाबलों में भी दमदार प्रदर्शन किया। शिवम फाइनल तो अभिनव सेमीफाइनल तक पहुंचा। सिंगल्स में शिवम ने रजत तथा अभिनव ने कांस्य पदक जीता। इन खिलाड़ियों के उम्दा प्रदर्शन से न केवल आगरा चैम्पियन बना बल्कि इससे उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश गौरवान्वित हुए।
खिलाड़ियों ने कहा- वेरी-वेरी थैंक्स पुष्प सवेरा
अम्बाला में विजय पताका फहराकर आगरा लौटे नेशनल चैम्पियन खिलाड़ियों शिवम शुक्ला, अभिनव गौतम और विपुल प्रताप सिंह ने जैसे ही अपनी उपलब्धियों को समाचार पत्र में देखा, वे न केवल खुशी से झूम उठे बल्कि इस प्रोत्साहन के लिए पुष्प सवेरा को वेरी-वेरी थैंक्स भी कहा। टीम के साथ गये झांसी के टीम मैनेजर केपी सिंह ने पुष्प सवेरा के 19 अक्टूबर के अंक में प्रकाशित अम्बाला में फहरेगा आगरा का परचम समाचार की मुक्तकंठ से प्रशंसा करते हुए कहा कि समाचार पत्र के आकलन को मेरा और मेरे खिलाड़ियों का सलाम। पुष्प सवेरा ने जो कहा वही सच हुआ। वेरी-वेरी थैंक्स पुष्प सवेरा।

भीड़ से भरोसे की कवायद

एक तरफ दुनिया भारतीय वैज्ञानिकों की मंगल मिशन पर शानदार कामयाबी की बलैयां ले रही है तो दूसरी तरफ मुल्क की तारणहार राजनीतिक पार्टियां सल्तनत के लिए भीड़तंत्र का सहारा ले रही हैं। लोकसभा चुनाव अभी दूर हैं पर राजनीतिक क्षत्रप अपने-अपने पराक्रम की दुहाई देने का कोई भी मौका जाया नहीं करना चाहते।  यह जानते हुए भी कि आज देश का हर दूसरा बच्चा कुपोषित और तीसरा नागरिक भूखा सोता है। तरक्की की डींगें और गरीबी के बीच फासला बढ़ता ही जा रहा है। पिछले पांच साल के तरक्की के आंकड़ों पर नजर डालें तो एक तरफ देश में अरबपतियों की संख्या 24 से बढ़कर 55 हुई है तो भूखे पेट सोने वालों में करोड़ों का इजाफा हुआ है। यह विडम्बना ही है कि आज मुल्क न सिर्फ अरबपतियों की संख्या के मामले में बल्कि गरीबों के मामले में भी अफ्रीकी देशों को कड़ी शर्मनाक टक्कर दे रहा है। ये आंकड़े न सिर्फ त्रासद व चुनौतीपूर्ण हैं बल्कि कालान्तर में इनके और विस्फोटक होने से इंकार नहीं किया जा सकता।
देखा जाए तो भारत में आर्थिक असमानता सदियों से विद्यमान रही है, पर पिछले 20-25 साल में इसमें बेतहाशा वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के आंकड़ों पर गौर करें तो 2004-05 से 2011-12 के बीच देश में अमीरी-गरीबी के बीच की खाई न सिर्फ चौड़ी हुई बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में यह पिछले 35 साल के सबसे अधिक स्तर पर दर्ज की गई। शहरी क्षेत्रों में भी असमानता का ग्राफ रिकार्ड 0.37 प्रतिशत के स्तर पर जा पहुंचा है। समाज में बढ़ती आर्थिक विपन्नता और विरोधाभास लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है। इतिहास गवाह है कि विरोधाभासों से घिरा समाज ज्यादा समय तक शांत और सुरक्षित नहीं रह सकता। दरअसल, आर्थिक विरोधाभास समाज के मूल पर प्रभाव डालता है। यही वजह है कि देश के हर कोने में आज व्यवस्था के प्रति लोगों में रंज है। यहां तक कि लोगों का गुस्सा सशस्त्र संघर्ष के रूप में सामने आने लगा है। क्या यह परिदृश्य एक लोकतंत्र के लिए जो समता, समरसता और सामाजिक न्याय के मूल्यों का पक्षधर और पहरुआ हो, उसके लिए उचित है?
आज सभी राजनीतिक दल देश की सल्तनत हथियाने के लिए गरीबों को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। खुद डरे-सहमे राजनीतिज्ञ उसे निडरता का पाठ पढ़ा रहें हैं जोकि हर पल भूखा पेट भरने को डरता और मरता है। भीड़तंत्र जुटाने के इस प्रहसन में कोई भी दल दूध का धुला नहीं है। राजनीतिक दलों के इस सत्ता खेल में कांग्रेस व भाजपा ही नहीं तीसरे मोर्चे के सम्भावित लोग भी दम ठोक रहे हैं। देश की सल्तनत पिछले 16 साल से गठबंधन के बंधन में जकड़ी हुई है। मुल्क की भोली-भाली जनता कभी कांग्रेस तो कभी कमल दल से दिल लगाती है। उसने तीसरे मोर्चे को बेशक कभी तवज्जो न दी हो पर इसके क्षत्रपों ने सत्ता का सुख हमेशा भोगा है। आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए कांग्रेस और भाजपा ही नहीं अन्य दल भी भीड़तंत्र की कवायद में जुट गए हैं।
भारतीय राजनीति में जहां तक सम्भावित तीसरे मोर्चे का सवाल है उसने 1977, 1989 और 1996 की अपनी विफलताओं से कोई सबक नहीं लिया है। इन्हें मौके भी मिले पर अपने-अपने पूर्वाग्रह और अंतर्विरोधों के चलते सल्तनत सम्हाल नहीं पाए और उन पर देश की अस्थिरता के आरोप लगे। जबकि इस अस्थिरता में कांग्रेस का बड़ा हाथ था। 1977 में जनता पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार इसलिए गिरी कि कांग्रेस को जनादेश का आदर करते हुए पांच साल तक रचनात्मक विपक्ष का फर्ज निभाना कुबूल नहीं था और उसने जनता पार्टी में फूट डालकर चौधरी चरण सिंह की सरकार तो बनवा दी पर उन्हें संसद का मुंह नहीं देखने दिया। चन्द्रशेखर, एचडी देवगौड़ा व इन्द्र कुमार गुजराल की सरकारों के साथ भी लगभग वही सलूक हुआ पर कांग्रेस ने उन सरकारों की अकाल मृत्यु से उत्पन्न अस्थिरता की जिम्मेदारी अपने ऊपर कभी नहीं ली।
कमल दल ने भी विश्वासघात का दंश झेला है। भाजपा की खुद की पहली सरकार 13 दिन जबकि दूसरी 13 महीने चली थी। दो झटकों के बाद कमल दल ने अटल सरकार को कभी दांव पर नहीं लगाया और राम मंदिर मुद्दे को ठण्डे बस्ते में डाल फीलगुड करती रही। पिछले 16 साल से तीसरा मोर्चा राष्ट्रीय परिदृश्य से तो गैरहाजिर रहा पर कांग्रेस और भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधनों में उनके नेता राज करते रहे। देश के आर्थिक हालात ठीक नहीं हैं। निरंकुश महंगाई से लोग परेशान हैं। देश को गरीबी का दंश देने वाली कांग्रेस और स्थिर सरकार देने का दम्भ भरने वाला कमल दल भीड़ से भरोसा दिलाने का जतन कर रहे हैं तो तीसरा कुनबा भी  चैन की बंशी बजा रहा है। फिलवक्त मुल्क का हर राजनीतिक दल दिल्ली दूर है जाना जरूर है का राग अलाप रहा है तो गरीबी का दंश झेलती लाचार जनता किसी को भी जनप्रिय मानने को तैयार नहीं है।

सचिन बिना कैसी क्रिकेट!

लगभग तीन दशक से खेल मैदानों और खिलाड़ियों की निगहबानी करती आ रही मेरी आंखों को अब कुछ भी नहीं भा रहा। जेहन में बस एक ही सवाल परेशान कर रहा है कि गोया भारतीय टेस्ट क्रिकेट विलक्षण सचिन बिना कैसा होगी? उसकी सांगीतिक बल्लेबाजी किसके बल्ले की धुन बनेगी? यकीन ही नहीं हो रहा कि हर हिन्दुस्तानी में क्रिकेट की दिलचस्पी जगाने वाला सचिन 18 नवम्बर के बाद बल्ले पर हाथ नहीं लगाएगा और फिर कभी किसी शेन वार्न को कोई सपना नहीं डराएगा। सच कहें तो सचिन के संन्यास से हर भारतीय की तरह मैं भी अपने आपको असहज महसूस कर रहा हूं। वजह साफ है, हरदिल अजीज सचिन ने क्रिकेट की दुनिया में जो भी आयाम स्थापित किए उनमें कई लम्हों का मैं स्वयं जो गवाह रहा। एक लम्हा है,जो ठहर सा गया है। बात 31 मार्च, 2001 की है। रतजगे के बीच थकाऊ बस यात्रा ने शरीर को चूर-चूर कर दिया था बावजूद सचिन पर विश्वास था कि इंदौर के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में वह कंगारुओं का मानमर्दन अवश्य करेगा। मुकाबला शुरू हुआ और सचिन ने अपने 266वें एकदिनी मुकाबले में 139 रनों की विध्वंसक पारी खेलकर न केवल कंगारुओं का गुरूर चूर-चूर किया बल्कि क्रिकेट के इस प्रारूप में दुनिया के पहले दसहजारी बल्लेबाज भी बन गये। मुझे याद है इस मुकाबले से पूर्व सचिन को लेकर आस्ट्रेलियाई टीम ने बड़ी-बड़ी ढींगें हांकी थीं।
फटाफट क्रिकेट में अपने प्रिय खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर के ग्वालियर के कैप्टन रूप सिंह मैदान में ऐतिहासिक नाबाद दोहरे शतक का भी मैं गवाह हूं। 24 फरवरी, 2010 को मीडिया बॉक्स में वाणी के सरताज सुशील दोषी मेरे स्वयं के खेल समाचार-पत्र की तारीफ करने के बाद जल्दी जाने की जिद कर रहे थे कि आसमान को ताकता सचिन, वीरेन्द्र सहवाग के साथ 22 गज की पट्टी के पास जा पहुंचा। मैंने सुशील दोषी जी से कहा- दादा आज सचिन कुछ नया करने के मूड में है। वह बोले ऐसा कैसे कह सकते हो। मैंने कहा मैं नहीं मेरा विश्वास बोल रहा है कि आज कुछ अनोखा होगा। दरअसल उस दिन सचिन ने पहली गेंद के साथ जो सलूक किया उसी से लग गया था कि वह कुछ करने वाला है। मेरा विश्वास सच में बदल गया और नटवर नागर ने दुनिया की सबसे संतुलित दक्षिण अफ्रीकी गेंदबाजी को सबक सिखाते हुए नाबाद दोहरा सैकड़ा जड़ दिया। भारतीय पारी के समापन के बाद कमेंटेटर दोषी ने विलक्षण सचिन की तारीफ की तो भारतीय टीम के जीतने के बाद सचिन न केवल हम सबसे रू-ब-रू हुए बल्कि विकेट और पिच क्यूरेटर की तहेदिल से सराहना की।
18 मार्च, 2012 को ढाका में भारत-पाक मैच के बाद जब सचिन ने फटाफट क्रिकेट से संन्यास की घोषणा की तो एकबारगी दिल धक्क से रह गया। पर तसल्ली थी कि बाकी फार्मेट  में क्रिकेट का नाटा उस्ताद खेलेगा। कुछ समय गुजरा छह अक्टूबर, 2013 को चैम्पियंस लीग ट्राफी जीतकर उसने टी-20 से भी विदाई की घोषणा कर दी। दरअसल, समय का चक्र और उस चक्र से जुड़े चक्रवातों को झेलने के लिये ही खुदा ने कायनात तैयार की है। क्रिकेट के दो प्रारूपों को अलविदा कहने के बाद आखिरकार 10 अक्टूबर, 2013 को सचिन ने 200वें टेस्ट के बाद पूर्ण संन्यास की घोषणा कर अपने मुरीदों और क्रिकेट को श्रीहीन कर दिया है। सचिन 199वां मैच कोलकाता और 200वां मैच अपने घरेलू मैदान वानखेड़े स्टेडियम में खेलेंगे। सचिन के विदाई टेस्ट को उनकी आई (मां) ही नहीं उनके निकट सम्बन्धी भी देखने को तैयार हैं।
खेल मैदानों से लम्बे जुड़ाव और सैकड़ों अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की मुलाकातों के बाद मैं ख्यातिनाम धावक पीटी ऊषा और सचिन की सदाशयता से हमेशा प्रभावित रहा। आज खिलाड़ियों की मामूली सफलता जहां उनके मिजाज को खराब कर देती है वहीं क्रिकेट के बेशुमार कीर्तिमानों के शिल्पी सचिन में दम्भ नाम की बात मैंने कभी नहीं देखी। क्रिकेट को जीने वाले इंसान का इस खेल को अलविदा कहना कितना मुश्किल होगा, ये तो सचिन ही महसूस कर सकते हैं। पर हकीकत यही है कि अपना 200वां मैच खेलने के बाद सचिन प्रतिस्पर्धी क्रिकेट नहीं खेलेंगे और फिर कभी मैदानों में उनकी बल्ले-बल्ले नहीं सुनाई देगी। खेल में तमाम ऊंचाइयां और व्यक्तित्व में समुद्र-सी गहराई वाले इस शख्स ने तमाम आलोचनाओं के बावजूद कभी किसी के खिलाफ मुंह नहीं खोला। दरअसल बचपन में सचिन काफी नटखट थे। उन्हें क्रिकेट नहीं, टेनिस से लगाव था। उनका आदर्श कोई क्रिकेटर नहीं बल्कि जान मैकनरो थे। समय बीता और उनमें साहित्यकार पिता का  गहरा असर पड़ा। जब सचिन क्रिकेट जगत के सितारे बन रहे थे तब पिता रमेश तेंदुलकर ने कहा था कि तुम क्रिकेटर ही नहीं, इंसान भी अच्छे बनना। तुम्हारा क्रिकेट जीवन तो एक समय बाद ठहर जाएगा लेकिन यदि तुम अच्छे इंसान बने तो लोग तुम्हें ताउम्र याद रखेंगे। पिता की सीख सचिन ने हमेशा याद रखी, यही वजह है कि आज हिन्दुस्तान ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया उसकी शालीनता को सलाम कर रही है।
सचिन हमेशा विवादों से दूर रहे। उन्होंने क्रिकेट को नई ऊंचाइयां दीं। यही वजह है कि उन्हें क्रिकेट मुरीदों ने भगवान के रूप में पूजा। वे करोड़ों भारतीयों की उम्मीदों के प्रतीक रहे। जब भी टीम मुश्किल में होती लोग कहते कि अभी सचिन है ना। सचिन के क्रिकेट में अवतार के बाद भारतीय टीम में नई खेल संस्कृति पनपी और कई जुझारू खिलाड़ी सामने आए। कुदरत ने उन्हें क्रिकेट की सम्पूर्णता प्रदान की तो उन्होंने उसे तन-मन से निखारा भी। लगातार 24 साल खेलना और फिट रहना सहज नहीं है। वे कभी थके नहीं। उन्होंने क्रिकेट को नई गरिमा दी। सही मायनों में सचिन क्रिकेट के एक अनुकरणीय आदर्श हैं। उनके शून्य को भरने में लम्बा वक्त लगेगा। 24 अप्रैल, 1973 को जन्मे इस बल्लेबाज को खेलपे्रमियों से जहां अपार स्नेह मिला वहीं भारत सरकार ने उन्हें 1994 में अर्जुन, 1997-98 में राजीव गांधी खेलरत्न, 1999 में पद्मश्री, 2011 में महाराष्ट्र विभूषण और 2008 में पद्म विभूषण सम्मान से नवाज कर महान सचिन की गरिमा को चार चांद लगाए। मुल्क में तेंदुलकर के अलावा शायद ही कोई शख्सियत ऐसी रही, जिसे भारत-रत्न बनते देखने के लिए लोगों में इतनी उत्सुकता, इतनी उतावली रही हो। राज्यसभा के लिए जब उन्हें मनोनीत किया गया तो लोगों ने इसे कांग्रेस की चाल करार दिया। सचिन ने राज्यसभा की शपथ ग्रहण करते ही साफ कर दिया कि कोई कुछ भी कहे उन्हें जो भी मिला वह क्रिकेट की देन है। मेरे लिए सम्मान-सत्कार या कोई भी पद अहमियत नहीं रखता, सिवाय क्रिकेट के। सचिन की क्रिकेट के प्रति निष्ठा, सजगता, ईमानदारी और कर्मठता अद्वितीय है। यही वजह है कि उनके संन्यास की घोषणा के बाद खेल का हर दिग्गज कहीं न कहीं टीस का अनुभव कर रहा है। उनमें मैं भी शामिल हूं। जो भी हो अब क्रिकेट दो भागों में जरूर बंट जाएगी, एक सचिन से पहले और एक सचिन के बाद।

खुदाई से खजाने की परख

एक तरफ भारत अपने को 21वीं सदी में होने का दम्भ भर रहा है और तरक्की की ढींगें हांक रहा है तो दूसरी तरफ उसकी सरकारी मशनरी अतीत से गलबतियां कर रही है। इन दिनों उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले की तहसील बीघापुर का अति पिछड़ा गांव डौंड़ियाखेड़ा लोगों में कौतूहल का विषय बना हुआ है। इसकी मुख्य वजह है खजाने में दबा एक हजार टन सोना। एएसआई की निगहबानी में राजा राव रामबख्श सिंह के जमींदोज हो चुके आशियाने का उनकी मौत के 143 साल बाद पुन: पोस्टमार्टम हो रहा है। एएसआई द्वारा यह खुदाई सोभन सरकार के कहे पर नहीं बल्कि 1967 के उन दस्तावेजों को आधार मानकर की जा रही है, जिसमें बैसवारा के इस किले में बहुमूल्य धातुएं दफन होने के संकेत मिले थे।
फिलहाल राजा राव रामबख्श सिंह के किले में सोने के अकूत भण्डार के दफन होने पर जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं। सोभन सरकार उर्फ विरक्तानंद महाराज के अनुयायी उनकी कही हर बात को सौ फीसदी सही करार दे रहे हैं वहीं मीडिया और देश का आम जनमानस इस वाक्ये को दिवास्वप्न के सिवा कुछ भी मानने को तैयार नहीं है। खुदाई कर रहा पुरातत्व विभाग भी एक हजार टन सोने पर यकीन नहीं कर रहा पर वह खुदाई इस गरज से कर रहा है कि उसे सोने से भी बहुमूल्य कुछ ऐसी चीजें जरूर मिलेंगी जिसका आने वाली पीढ़ी गुणगान अवश्य करेगी।
आर्थिक संकट से जूझ रहे भारत के लिए एक हजार टन सोना मायने रखता है। यह सोना तंगहाल भारत की तकदीर और तस्वीर बदल सकता है। एक हजार टन न सही इसका एक चौथाई भी मिल गया तो मुल्क का भाग्य बदल जाएगा। देखा जाए तो भारत के पास इस वक्त सिर्फ 558 टन सोना ही है। दुनिया में सिर्फ आठ देश ही ऐसे हैं जिनके पास एक हजार टन से अधिक सोना है। राजा राव रामबख्श सिंह का खजाना मुल्क की कितनी तकदीर बदलेगा यह तो भविष्य तय करेगा पर डौंड़ियाखेड़ा में जो हो रहा है उस पर दुनिया ठहाके लगा रही है। यह खुदाई सच की पड़ताल नहीं बल्कि भारतीय जगहंसाई का कारण बन सकती है। माना कि हर खबर की अपनी एक तासीर होती है, वह अपनी जगह बना ही लेती है, पर खुदाई करने से पहले यह जानने का प्रयास किया जाना चाहिए था कि क्या पुरातत्व विभाग सपने के आधार पर खुदाई कर रहा है? क्या बिना किसी खुदाई के इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि फलां जगह पर एक हजार टन सोना निकलेगा ही।
पत्रकारिता की बुनियादी जरूरत होती है, खबर का आधार पता करना पर राजा राव रामबख्श सिंह के खजाने के मामले में कई बातों की अनदेखी की गई। पुरातत्व विभाग ने जैसे ही खुदाई प्रारम्भ की मीडिया को अपनी गलती का अहसास हुआ। खुदाई से पहले इलेक्ट्रानिक मीडिया ने जहां अपनी टीआरपी बढ़ाने को संत सोभन सरकार के सपने को आधार बनाया वहीं प्रिंट मीडिया ने भी अंधानुकरण करते हुए मनगढ़ंत खबरें प्रकाशित कीं। मेरा इस क्षेत्र से गहरा लगाव होने के चलते बक्सर से कोई पांच किलोमीटर दूर स्थित डौंड़ियाखेड़ा कई बार आना-जाना हुआ। कानपुर देहात के शिवली थाना क्षेत्र के सोभन आश्रम से ताल्लुक रखने वाले सोभन सरकार ने बक्सर में अपने गुरु सत्संगानंद बाबा की कर्म और तपस्थली में कई अतुलनीय कार्य किए। मां चंदिका मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार की मदद से गंगापुल निर्माण कराकर एक बड़ा काम किया है। संत सोभन सरकार ने बातचीत में खुलासा किया कि उन्होंने सपने में खजाने की बात किसी से नहीं की, अलबत्ता केन्द्रीय मंत्री चरणदास महंत को कुछ दस्तावेज जरूर सौंपे जिसमें राजा राव रामबख्श सिंह के किले में कुछ बहुमूल्य धातुएं मिलने के संकेत हैं। हां सोभन सरकार ने यह जरूर कहा कि यदि पुरातत्व विभाग उनके कहे अनुसार दीपावली से पूर्व खुदाई करवा दे तो वे अपने तप से सरकार की झोली अकूत सोने से भर सकते हैं।
संत सोभन सरकार की कर्मस्थली उन्नाव और कानपुर के अनुयायी उन्हें श्रद्धा से सरकार कहते हैं न कि बाबा, महाराज या गुरुजी। सोभन सरकार न कभी कैमरे के सामने आते हैं न ही उन्हें मंच प्रिय है। उन्हें ढोंग से भी चिढ़ है। उपदेश, प्रवचन, अनुष्ठान और दीगर कर्मकाण्डों से भी वे हमेशा दूर रहते हैं। उन्हें दान-दक्षिणा या चंदा लेना भी पसंद नहीं है। अपने अनुयायियों से चरण वंदन कराना तो दूर वे अपने पास भी किसी को फटकने नहीं देते। सोभन सरकार की इन्हीं खूबियों के चलते लोग उन्हें भगवान नहीं तो उससे कम भी नहीं मानते। सोभन सरकार से इतर राजा राव रामबख्श सिंह की बात करें तो उन्हें अंग्रेजों ने 28 दिसम्बर, 1859 को बक्सर में एक बरगद के पेड़ पर फांसी दे दी थी। चन्दिका मां का अनन्य भक्त आज बेशक जिन्दा नहीं है पर जनश्रुतियां इस बात की गवाही देती हैं कि वह निडर और पराक्रमी राजा थे, जिनसे अंग्रेज जीवन पर्यन्त खौफ खाते रहे। पतित पावनी गंगा के किनारे 50 एकड़ में फैले राजा राव रामबख्श सिंह के खण्डहर हो चुके किले के सौ मीटर क्षेत्र में पुरातत्व विभाग के कोई दो दर्जन लोग खजाना खोद और खोज रहे हैं। इस इलाके में सिर्फ राजा राव रामबख्श सिंह का किला ही नहीं बल्कि कई और किले, महल और हवेलियां लावारिस पड़े हैं। बैसवारा के राजाओं की बात करें तो कई अंग्रेजों के चाटुकार रहे पर राजा राव रामबख्श सिंह हमेशा अपने उसूलों पर जिए। राजा राव रामबख्श सिंह अपनी रियासत के 24वें और अंतिम राजा थे।
किले की खुदाई चल रही है। ऐसे में यह कहा जा रहा है कि 14 परगनों के दो-ढाई सौ गांवों की रियासत के इस छोटे से जागीरदार के पास भला एक हजार टन सोना आया कहां से? डौंड़ियाखेड़ा का इतिहास छठवीं सदी से प्रारम्भ होता है। स्थानीय मान्यता है कि गजनवी-गौरी के आक्रमण के समय पूरे अवध प्रांत की जागीरें और स्थानीय साहूकार अपने खजाने गंगा के किनारे स्थित इस अति सुरक्षित किले में रखते थे। यहां के 14 किलोमीटर क्षेत्र में सात समृद्ध बाजार थे, इनमें दो लखटकिया बाजार के रूप में प्रसिद्ध थे। जनश्रुति है कि इन बाजारों में उसी को दाखिल होने की इजाजत थी जिसके पास एक लाख स्वर्ण मुद्राएं होती थीं। ऐतिहासिक दस्तावेज और विलियम हार्वर्ड रसल की किताब माय इंडियन डायरी, अमृतलाल नागर की पुस्तक गदर के फूल और कानपुर का इतिहास खण्ड-एक में साफ-साफ उल्लेख है कि राजा राव रामबख्श सिंह महाजनी करते थे। कोलकाता और कानपुर के व्यापारी ही नहीं नाना राव पेशवा भी अपना सोना अति सुरक्षित डौंड़ियाखेड़ा किले में रखना ही महफूज समझते थे। किले के पास स्थित कामतेश्वर बाबा मंदिर का जीर्णोद्धार 1935-36 में पजनखेड़ा के जमीदार कामता प्रसाद दीक्षित कांति बाबा ने कराया था। जो भी हो पुरातत्व विभाग किले की निरंतर खुदाई कर रहा है, उसे भरोसा है कि इस खण्डहर से जरूर कुछ न कुछ निकलेगा। आओ हम दुआ करें कि उससे सोने का भण्डार ही निकले।

खजाने पर निगहबानी

कानपुर के परेड, बिठूर और फतेहपुर के भगवतपुर में भी स्वर्ण खजाने!
पतित पावनी गंगा के तीरे साल भर श्रद्धालु आते-जाते रहते हैं। साल में कुछ ऐसे भी अवसर आते हैं जब श्रद्धालुओं का रेला मोक्षदायिनी गंगा में डुबकी लगाकर अपने को पुण्य का भागी मानता है। इस समय उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का एक पिछड़ा ऐतिहासिक गांव डौंड़ियाखेड़ा सिर्फ प्रदेश ही नहीं सम्पूर्ण देश के जनमानस के कौतूहल का केन्द्रबिन्दु बना हुआ है। वजह एक हजार टन सोने का वह खजाना है जिसे आजादी के दीवाने राजा राव रामबख्श सिंह की धरोहर माना जा रहा है। इस खजाने को लेकर सिर्फ जनमानस ही नहीं सरकारी मशीनरी भी बौराई हुई है।  खजाने को हासिल करने के लिए हर तरह के प्रयास शुरू हो चुके हैं। खजाने की सूचना पर्यावरण प्रेमी और लोकप्रिय संत सोभन सरकार ने बीते माह केन्द्रीय मंत्री चरणदास महंत को दी थी। फिर क्या था यह बात जंगल में आग की तरह फैल गई। कहा जा रहा है कि संत सोभन सरकार को राजा राव रामबख्श सिंह ने खजाने का सपना दिखाया है। जो भी हो इस बात को लेकर जितने मुंह उतनी बातें हो रही हैं। लोगों की कही सच मानें तो सोभन सरकार ने सिर्फ डौंड़ियाखेड़ा ही नहीं फतेपुर जिले के दुधीकगार आश्रम के पास स्थित भगवतपुर गांव, कानपुर के परेड और बिठूर के पास भी अकूत सोना दबे होने की जानकारी सम्बन्धित जिला प्रशासन को दी है। सोभन सरकार के शिष्य ओम ने तो यहां तक कहा है कि भगवतपुर में 25 हजार टन से अधिक सोना जमींदोज है। संत सोभन सरकार ने चूंकि बैसवारा क्षेत्र में विकास की गंगोत्री बहाने के प्रयास किये हैं सो इन्हें लोग देवतुल्य मानते हैं।
उन्नाव से कोई 60 किलोमीटर दूर गंगा के किनारे स्थित डौंड़ियाखेड़ा में स्वर्ण खजाने की खुदाई जहां जारी है, वहीं दूर-दूर से लोग वहां पहुंच रहे हैं। पुरातत्व विभाग की देखरेख में हो रही धीमी गति की खुदाई से जहां लोग नाखुश हैं वहीं हर कोई सोभन सरकार की कही सच मान रहा है। सोभन सरकार का इस क्षेत्र से कोई दो दशक पुराना नाता है। इससे पूर्व संत प्रवर सोभन सरकार बिठूर और कानपुर देहात के शिवली गांव स्थित अपने 100 एकड़ के आश्रम में ईश्वर आराधना करते थे। दरअसल संत सोभन सरकार डौंड़ियाखेड़ा से कोई दो किलोमीटर दूर गंगा के पावन तट पर स्थित बक्सर में मां चन्दिका देवी मंदिर के पास स्थित सत्संगा नंद बाबा के आश्रम से जुड़ाव के चलते यहां आए। उन्होंने इस आश्रम की कायाकल्प करने के साथ ही मां चन्दिका देवी मंदिर के जीर्णोद्धार का पुनीत कार्य भी किया। इस क्षेत्र के लिए उनका सबसे बड़ा पुण्य कार्य गंगा पुल निर्माण है। समाजवादी पार्टी की पिछली प्रदेश सरकार के सामने जब संत सोभन सरकार ने गंगा पुल निर्माण की बात रखी तो पहले तो सरकार तैयार नहीं हुई पर उनके यह कहने पर कि सरकार यदि यह कार्य नहीं करती तो वे स्वयं यहां पुल निर्माण का पुनीत कार्य करेंगे।
संत सोभन सरकार की मंशा का पता लगते ही उनके मुरीदों ने सीमेंट और सरियों से भरे ट्रक भेजने शुरू कर दिए। सरकार को इस बात की भनक लगते ही तत्कालीन लोक निर्माण मंत्री शिवपाल सिंह यादव न केवल पहुंचे बल्कि उन्होंने संतश्री को पुल निर्माण का भरोसा भी दिया। संत सोभन सरकार ने मंत्री शिवपाल सिंह यादव के सामने शर्त रखी कि पुल बने पर इस पुल से किसी प्रकार का भी टैक्स न लिया जाए। अंतत: पुल बना और लोगों ने राहत की सांस ली। संतश्री ने मंत्री शिवपाल को आशीष दिया था कि पुल बनवाने पर वे एक बार फिर लोक निर्माण मंत्री बनेंगे, और ऐसा हुआ भी। फिलवक्त शिवपाल सिंह अखिलेश सरकार में लोक निर्माण मंत्री ही हैं। जो भी हो इस पुल के बन जाने से क्षेत्र के लोगों को फतेहपुर जिले की बड़ी मण्डियों में शुमार बिन्दकी से कारोबार करने में आसानी हो गई। इससे पहले लोगों को बिन्दकी मण्डी पहुंचने के लिए 30-40 किलोमीटर से अधिक का अतिरिक्त रास्ता तय करना पड़ता था।
मां चन्दिका देवी के अनन्य भक्त थे राजा राव रामबख्श सिंह
आजादी के दीवाने राजा राव रामबख्श सिंह न केवल बहादुर थे बल्कि मां चन्दिका देवी के अनन्य भक्त भी थे। वे प्रतिदिन कई घण्टों मां चन्दिका देवी की पूजा-अर्चना करते थे। जनश्रुति है कि जब वे मां चन्दिका देवी की आराधना करते थे तब म्यान से तलवार स्वयं उनके हाथ में आ जाती थी।
1859 में अंग्रेजों ने दी थी राजा राव रामबख्श सिंह को फांसी
बहादुर राजा राव रामबख्श सिंह को तत्कालीन मुरारमऊ रियासत के राजा भगवती बख्श सिंह के षड्यंत्र के चलते 1859 में बक्सर स्थित एक बरगद के पेड़ में फांसी पर चढ़ा दिया गया था। यह पेड़ दो दशक पहले गिर चुका है। जनश्रुति है कि मरने से पहले राजा राव रामबख्श सिंह ने भगवती बख्श सिंह को श्राप दिया था कि सात पुश्त तक मुरारमऊ राजघराने का कोई भी वारिस राजगद्दी पर नहीं बैठ पाएगा। उनकी कही सच निकली। लगभग जमींदोज हो चुकी मुरारमऊ रियासत  की राजगद्दी की परम्परा आज भी दशहरा को निभाई तो जाती है पर इस राजगद्दी पर अब तक गोद लिए बच्चे ही बैठते आए हैं।
...तो मालामाल हो जाएगा उत्तर प्रदेश
पुष्प सवेरा ने जब क्षेत्रवासियों से सोने के खजाने की असलियत जानने की कोशिश की तो शिक्षक जयप्रकाश बाजपेई, गिरीश तिवारी, राजकुमार मिश्रा आदि ने कहा संत सोभन सरकार जो कहते हैं वही सच होता है। क्षेत्र के लोगों को पूरा भरोसा है कि डौंड़ियाखेड़ा में सोने का भण्डार अवश्य निकलेगा। इन लोगों का कहना है कि संतश्री कानपुर के परेड, बिठूर और फतेहपुर के गांव भगवतपुर में भी सोने के खजाने होने की बात कह रहे हैं, जोकि सच साबित होगी। काश यह सच हो जाए ताकि देश का सबसे बड़ा प्रदेश मालामाल हो जाए।