Tuesday 28 November 2017

फिटनेस क्वीन अंतिका का जलवा


मऊ जिले के मुंगेसर गांव को नई पहचान दिला रही है किसान की बेटी
जिम्नास्टिक को गांव.गांव तक पहुंचाने का जुनून
श्रीप्रकाश शुक्ला
देश में बेटियों को लेकर तरह.तरह की बातें होती हैं। बदलते समाज के बावजूद आज भी इन्हें चूल्हे.चौके के काबिल ही माना जाता है जबकि हमारी बेटियां खेल मैदानों से लेकर अंतरिक्ष तक की उड़ानें भर शिक्षा जगत में अपनी मेधा का परचम लहरा रही हैं। बेटियों के दिल में भी मादरेवतन की अस्मिता की फिक्र है। बेटियां रेलगाड़ी चला रही हैं तो विमान उड़ानें में भी पीछे नहीं हैं। पुलिस में रहकर देश की आंतरिक सुरक्षा की जवाबदेही सम्हालने की बात हो या फिर सेना में पहुंच कर मुल्क की हिफाजत करने का जुनून बेटियां किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं। 11 नवम्बरए 1992 को उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के छोटे से गांव मुंगेसर में ओम प्रकाश.ऊषा राय के घर जन्मी अंतिका प्रकाश राय के दिलोदिमाग में भी अब सिर्फ और सिर्फ स्वच्छ और स्वस्थ भारत की धुन सवार है। अब तक राष्ट्रीय क्षितिज पर जिम्नास्टिकए योगाए एरोबिक्स एण्ड जुम्बा में अनगिनत कामयाबियां हासिल कर चुकी अंतिका जिम्नास्टिक को गांव.गांव तक लोकप्रिय बनाने के साथ ही खेल.खेल में देशवासियों को फिट और हिट रहने का संदेश दे रही हैं।
आज किसी भी मां.बाप के लिए अपनी बेटी को अपने से दूर रखना दिल में पत्थर रखने के समान होता है लेकिन जांबाज अंतिका स्वस्थ भारत के सपने को साकार करने के लिए देश के दिल दिल्ली के पास नोएडा में नौनिहालों को जिम्नास्टिक के गुर सिखाने के साथ ही तन.मन से हर मानव के सम्पूर्ण विकास के लिए प्रयासरत हैं। किसान की बेटी अंतिका प्रकाश राय के चार बहनें और एक भाई है। अंतिका की बड़ी बहन प्रियंका नेशनल एथलीट रही हैं। प्रियंका ने 100 मीटर दौड़ और लम्बीकूद में उत्तर प्रदेश के लिए पदक भी जीते लेकिन आज वह देश की ख्यातिनाम वीर रस की कवयित्री हैं। अंतिका की दो और बहनें मुद्रिका और प्रमदा बतौर प्राध्यापक महाविद्यालयों में उच्च शिक्षा की अलख जगा रही हैं। बहन प्रज्ञा और भाई चंद्र प्रकाश को अपनी बहनों पर गर्व है। जिम्नास्टिक के क्षेत्र में अंतिका बेशक दीपा कर्माकर की तरह सुर्खियां नहीं बटोर पाई हों लेकिन आज इस खेल के समुन्नत विकास के लिए वह प्राणपण से जुटी हुई हैं। अंतिका को बचपन से ही खेलों से लगाव रहा है। मुंगेसर गांव की इस बेटी को बचपन में जहां पर्याप्त सुविधाएं मयस्सर नहीं थीं वहीं उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में खेल संस्कृति का भी बेहद अभाव रहा है। अंतिका के माता.पिता भी अन्य अभिभावकों की तरह असमंजस में रहे कि बेटी को उच्च तालीम दिलाएं या फिर उसे जिम्नास्टिक में करियर बनाने दें। जिम्नास्ट का खानपानए तैयारीए प्रशिक्षण अन्य खेलों से कहीं अलग होता है।
अंतिका ने छोटे से गांव मुंगेसर के प्राइमरी स्कूल से पांचवीं तक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद वीर बहादुर सिंह स्पोर्ट्स कॉलेज गोरखपुर में दाखिला लिया। जिम्नास्ट बेटी ने यहां अपना खेल निखारने के साथ ही  हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी की। जिम्नास्टिक में अपना करियर बनाने को बेताब अंतिका ने इसके बाद केण्डीण् सिंह बाबू स्टेडियम लखनऊ में दाखिला लिया और जिम्नास्टिक की बारीकियों को सीखने में दिन.रात एक कर दिया। अंतिका ने पढ़ाई के साथ ही साथ जिलाए राज्य और नेशनल स्तर तक की प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा का शानदार आगाज करते हुए दर्जनों मैडल जीते और प्रदेशस्तर पर मऊ का नाम रोशन किया। इण्टर की परीक्षा पास करने के बाद इस जिम्नास्ट बेटी ने ग्वालियर ;मध्य प्रदेशद्ध के लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा संस्थान से बीण्पीण्एडण् और क्षत्रपति साहू जी महाराज कानपुर विश्वविद्यालय से एमण्पीण्एडण् की डिग्री हासिल की।
अंतिका प्रकाश ने 2005 से 2009 तक राष्ट्रीय स्तर की कई जिम्नास्टिक प्रतियोगिताओं में प्रतिभाग करते हुए विजेता और उपविजेता होने का गौरव हासिल किया। अंतिका प्रकाश ने आल इण्डिया यूनिवर्सिटी खेलों में भी स्वर्णिम सफलता हासिल की। इस जिम्नास्ट बेटी ने 2005 से 2013 के बीच हुई राज्यस्तरीय जिम्नास्टिक प्रतियोगिताओं में भी स्वर्णए रजत और कांस्य पदकों से अपने गले सजाए। जिम्नास्टिक के साथ.साथ अंतिका ने एरोबिक्स चैम्पियनशिप में भी  स्वर्णिम सफलताएं हासिल की हैं। अंतिका एरोबिक्स में व्यक्तिगत के साथ.साथ टीम स्पर्धा में भी शानदार प्रदर्शन कर एक हरफनमौला खिलाड़ी होने का गौरव हासिल कर चुकी हैं। अंतिका ने एरोबिक्स की सीनियर नेशनल चैम्पियनशिप में भी कई पदक जीते हैं। अंतिका ने 2010 और 2011 में जेज डांस एण्ड फिटनेस वर्कशॉप में शिरकत कर एक इंसान स्वस्थ और फिट कैसे रह सकता हैए इसकी जानकारी हासिल की है। खेल के साथ.साथ इस जिम्नास्ट बेटी को कई बार राष्ट्रीय स्तर पर प्रशिक्षक के साथ ही विभिन्न प्रतियोगिताओं में निर्णायक की भूमिका निर्वहन का मौका भी मिल चुका है। अंतिका ने योग के क्षेत्र में भी बेशुमार उपलब्धियां और सम्मान हासिल किए हैं।
नोएडा के एक ख्यातिनाम स्कूल में बतौर स्पोर्ट्स आफीसर सेवाएं दे रही हैं अंतिका प्रकाश का कहना है कि मानव के सम्पूर्ण शारीरिक और मानसिक विकास के लिए खेल बहुत ही जरूरी है। सेहतमंद रहने के लिए जरूरी है कि नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम किए जाएं। अंतिका का कहना है कि कोई भी अपनी जिन्दगी में एरोबिक को शामिल कर सेहतमंद जिन्दगी जी सकता है। इंसान का हृदय एक तरह की मांसपेशी हैए इसे ताकतवर बनाने के लिए व्यायाम की जरूरत होती है। एरोबिक से आत्मविश्वासए यादाश्त और ब्रेन फंक्शन बढ़ता है। एरोबिक एक्सरसाइज कैलरी को बर्न करने में मददगार होती है तथा शरीर में जमा एक्स्ट्रा फैट को कम करती है। अंतिका कहती हैं कि अच्छा दिखने और स्वस्थ रहने के लिए एरोबिक एक्सरसाइज आपके स्टेमिना को बढ़ाती है और ज्यादा ऊर्जा प्रदान करती है। इससे अच्छी नींद आती है और तनाव भी कम होता है।
अंतिका का कहना है कि किसी भी व्यायाम के तुरंत बाद थकान महसूस होती है लेकिन लम्बे समय तक व्यायाम करने से शक्ति और बढ़ जाती है। नियमित व्यायाम से थकान अपने आप खत्म होती है। एरोबिक व्यायाम करने से मेमोरी लॉस और सिजोफ्रेनिया जैसी बीमारियों के शिकार लोगों की याददाश्त में सुधार होता है तथा मांसपेशियों को रक्त की आपूर्ति और ऑक्सीजन का बेहतर इस्तेमाल करने की क्षमता बढ़ती है। अंतिका प्रकाश का कहना है कि वह भविष्य में गांव.गांव में जिम्नास्टिक और एरोबिक्स प्रचार.प्रसार करना चाहती हैं ताकि देश का हर नागरिक स्वस्थ रहे। अंतिका अब तक के अपने इस सफर को चुनौतीपूर्ण मानते हुए कहती हैं कि मैं एक किसान परिवार में जन्मी हूं। मैंने हर परिस्थिति को चुनौती के रूप में लिया है। गांव से यहां तक का सफर मेरे लिए सहज नहीं रहा है लेकिन मैंने सीखा है कि इंसान यदि ठान ले तो कोई काम कार्य असम्भव नहीं होता। मैं चाहती हूं कि हर बच्चा किसी न किसी खेल में जरूर शिरकत करे ताकि स्वस्थ भारत के सपने को साकार किया जा सके।  सही मायने में अंतिका उत्तर प्रदेश की फिटनेस क्वीन कहलाने की हकदार हैं।




यास्मीन को देख लड़के भी खौफ खाते हैं


भारतीय महिला बॉडीबिल्डर का जलवा
यास्मीन चौहान  आम लड़कियों से एकदम अलग हैं। वह ऐसे खेल में हैं जिसे मर्दों का खेल माना जाता है। एक लड़की होकर इस खेल में अपनी पहचान बनाना कोई आसान काम नहीं है। यास्मीन चौहान को बाइक चलाना बेहद पसंद है। हर दर्द को सहकर इस लड़की ने अपने शरीर को फौलाद का बनाया। अब तो लड़के भी यास्मीन चौहान से खौफ खाते हैं। जब वो चलती हैं तो किसी लड़के की हिम्मत नहीं कि वह कोई कमेंट्स कर सके। हम कह सकते हैं कि यास्मीन चौहान आज भारतीय महिला बॉडी बिल्डिंग का जाना पहचाना नाम हैं। यास्मीन चौहान ने बॉडी बिल्डिंग जैसे खेल में देश को नई पहचान दिलाई है। यास्मीन अब बॉडी बिल्डिंग के साथ-साथ अपना खुद का जिम चला रही हैं। यास्मीन के गुड़गांव स्थित जिम में न सिर्फ लड़कियां बल्कि लड़के भी अपने शरीर को सुगठित करते हैं। इस काम में यास्मीन का हाथ उनके पति अमन शर्मा बंटा रहे हैं। यास्मीन चौहान का कहना है कि सरकार की तरफ से बॉडी बिल्डिंग जैसे खेल को कोई मदद नहीं मिलती, अगर सरकार इस खेल पर थोड़ा भी ध्यान दे दे तो कई महिला खिलाड़ी उभरकर सामने आ सकती हैं।
वक्त बड़े से बड़े घावों को भर देता है तमाम मुश्किलों से पार पाकर आज यास्मीन चौहान एक कामयाब जिन्दगी जी रही हैं लेकिन एक खालीपन के अहसास के साथ। कुछ भी हो आज यास्मीन चौहान को भारत में आयरन वूमन के नाम से जाना जाता है। यास्मीन कहती हैं कि हर कामयाबी के पीछे कड़ी मेहनत के साथ-साथ कई कुर्बानियां भी होती हैं। मेरा भी बॉडी बिल्डर बनने का सफर आसान नहीं था। बचपन में ही मेरे माता-पिता अलग हो गए थे। जिसके बाद दादा-दादी ने उनका पालन-पोषण कर बड़ा किया। माता-पिता के न होने से उनका बचपन मुश्किलों से भरा रहा। वह खालीपन आज भी उनके जीवन में है। यास्मीन कहती हैं कि माता-पिता के अलग-अलग रहने से मुझे किसी का प्यार नहीं मिला। वे पल उन्हें अंदर तक तोड़कर रख देते थे जब उन्हें लोग बदसूरत कहते।
यास्मीन ने मुश्किल और खालीपन के साथ अपने जीवन को जिया और आगे बढ़ीं। अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए छोटी सी उम्र में ही नौकरी की और धीरे-धीरे आत्मनिर्भर बनीं। यास्मीन को बचपन से ही व्यायाम का शौक था और देखते ही देखते वह बॉ़डी बिल्डर बन गईं। शुरुआत में आस-पड़ोस और नाते-रिश्तेदारों ने उन्हें रोकने की कोशिश की, तरह-तरह के ताने मारे और कहते लड़कियों को मर्दाना खेल नहीं खेलने चाहिए लेकिन मजबूत इरादों वाली यास्मीन ने बॉडी बिल्डर बनने की न केवल ठान ली बल्कि कामयाबी का परचम भी फहराया। यास्मीन ने साल 2015 में शो बॉडी एक्सपो में दूसरा स्थान हासिल किया तो 2016 में मिस एशिया में कांस्य पदक जीता। इसी साल मिस इंडिया फिजिक एण्ड फिटनेस टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। यास्मीन ने 2016 में ही पॉवर लिफ्टिंग प्रतियोगिता के डबल्स मुकाबले में स्वर्णिम सफलता हासिल कर हर किसी को हैरत में डाला।
उत्तर प्रदेश की रहने वाली यास्नीन अब किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। मैरीकॉम जैसी महिलाएं जहां बॉक्सिंग में भारत की विजय पताका फहरा रही हैं वहीं यास्मीन चौहान जैसी महिलाएं शरीर सौष्ठव में किसी से कम नहीं हैं। यास्मीन आम लड़कियों से काफी अलग हैं। यास्मीन ने 2003 में अपना एक एरोबिक स्टूडियो स्कल्प्ट नाम से खोला। इसके बाद साल 2007 में उन्होंने इसका विस्तार कर उसमें जिम भी खोल लिया। इस जिम में हर महीने करीब तीन सौ लड़के-लड़कियों को यास्मीन ट्रेनिंग देती हैं। यास्मीन अब फुल टाइम जिम इंस्ट्रक्टर बन गईं हैं। मर्दों जैसी बॉडी रखने वाली यास्मीन के शौक भी पुरुषों जैसे ही हैं। वह फर्राटे से बाइक चलाती हैं तो उन्हें अब किसी से डर नहीं लगता। यास्मीन का कहना है कि वह वेटलिफ्टिंग में 66 किलो की शेप में रहते हुए भी भारी वेट उठा सकती हैं। यास्मीन कहती हैं कि मैने जिस ओपन पॉवर लिफ्टिंग प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था उसमें 150 किलो वजन उठाया था जबकि सबसे ज्यादा 180 किलो वजन उठाने वाली वेटलिफ्टर का वजन 95 किलो था।
37 साल की यास्मीन ने जीवन में काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं। बॉडी बिल्डर यास्मीन चौहान ने अपने जांबाज हौसले से लोगों की सोच को बदल कर रख दिया है। यास्मीन बताती हैं कि पढ़ाई के दौरान वह दूसरी लड़कियों की खूबसूरती देख उदास हो जाया करती थीं। तब उन्होंने खुद की बॉडी को शेप में लाने का फैसला किया। वह पिछले 20 साल से जिम में इसके लिए पसीना बहा रही हैं। यास्मीन बताती हैं कि मैं स्कूल से पासआउट होने के बाद कॉलेज पहुंची तब मैंने जिम जाने का फैसला किया। उस वक्त मेरी उम्र 17 साल की थी हालांकि तब लड़कियों के लिए जिम जाना काफी मुश्किल काम था। यास्मीन चौहान कहती हैं कि अब तो जिम ही मेरा प्यार है। मैं चाहती हूं कि देश की बेटियां भी शरीर सौष्ठव के क्षेत्र में भारत का नाम दुनिया में रोशन करें।


क्या विराट के वीर रचेंगे इतिहास

अग्नि-परीक्षा से कम नहीं भारत का दक्षिण अफ्रीका दौरा
श्रीप्रकाश शुक्ला
भारतीय क्रिकेट टीम कितना भी रौ में क्यों न हो, हर विदेशी दौरे के समय उसके मुरीद असमंजस में रहते हैं। देखो ना विराट सेना ने अपनी सरजमीं पर श्रीलंका पर डंका बजाकर कितना जोरदार विजय नाद किया है बावजूद इसके दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर जीत को लेकर कोई आश्वस्त नहीं है। एक साल में सर्वाधिक टेस्ट मैचों में जीत दर्ज करने तथा बड़े लक्ष्यों पर निगाह रखने वाले भारतीय टेस्ट कप्तान विराट कोहली और उनके वीरों के लिए दक्षिण अफ्रीका दौरा सहज नहीं माना जा रहा। वजह, भारत का आज तक दक्षिण अफ्रीका में टेस्ट सीरीज नहीं जीतना है। साल 2018 का आगाज भारतीय टीम को दक्षिण अफ्रीका के साथ ही करना है। कोहली सेना यदि दक्षिण अफ्रीकी टीम को उसी की पट्टियों पर पराजय का पाठ पढ़ाकर लौटी तो इतिहास रचेगा वरना हमेशा की तरह दुनिया हमें घरू शेर ही कहेगी।
तेज उछाल वाली पिचों पर खेलने की जहां तक बात है भारतीय बल्लेबाज हमेशा डरपोक साबित हुए हैं। ग्रीम विकेट पर भारतीय ठोस बल्लेबाजों की कलई कई बार खुलती देखी गई है। कोलकाता में श्रीलंका के खिलाफ पहले टेस्ट की पहली पारी में हमारे बल्लेबाजों के कायराना रुख ने इस बात के संकेत दिए कि टीम इंडिया के लिए दक्षिण अफ्रीकी दौरा आसान नहीं होगा। बेहतर होता श्रीलंका जैसी कमजोर टीम के सामने हमारी टीम तेज उछाल वाली पिचों पर खेलती, इससे उसे दक्षिण अफ्रीकी विकेटों में आसानी होती। पाटा पिचों पर खेलने की हमारी बुरी आदत के चलते ही विदेशी दौर भारतीय बल्लेबाजों के लिए परेशानी का सबब साबित होते रहे हैं।
दक्षिण अफ्रीकी उछाल भरी पट्टियों पर भारतीय धुरंधरों की असली परीक्षा पांच जनवरी से केपटाउन में होगी, जहां पहला टेस्ट मैच खेला जाना है। भारत ने अब तक दक्षिण अफ्रीका में छह टेस्ट सीरीज खेली हैं जिनमें से पांच में उसे पराजय मिली जबकि एक बराबरी पर छूटी है। भारत ने दक्षिण अफ्रीका में कुल 17 टेस्ट मैच खेले हैं जिनमें से उसे दो में जीत और आठ में हार मिली है। इन आंकड़ों से साफ हो जाता है कि भारत के लिये दक्षिण अफ्रीका की तेज पिचों पर खेलना कितना मुश्किल रहा है। टेस्ट इतिहास की जहां तक बात है दक्षिण अफ्रीका की ही तरह भारतीय टीम अब तक आस्ट्रेलिया में भी कोई टेस्ट सीरीज नहीं जीती है। कंगारूओं की सरजमीं पर भारत ने 11 सीरीज खेली हैं जिनमें से नौ में उसे हार मिली और दो बराबरी पर छूटी हैं। भारत ने आस्ट्रेलिया में अब तक 44 टेस्ट मैच खेले हैं जिनमें केवल पांच में ही उसे जीत मिली है जबकि 28 टेस्टों में उसे पराजय से दो-चार होना पड़ा है।
विराट कोहली एक आदर्श कप्तान ही नहीं उम्दा बल्लेबाज भी हैं। टीम इंडिया के पास दुनिया का सर्वश्रेष्ठ ऑफ स्पिनर रविचंद्रन अश्विन तो रविन्द्र जड़ेजा के रूप में एक अबूझ गेंदबाज भी है। 31 वर्षीय अश्विन ने श्रीलंका के खिलाफ नागपुर टेस्ट में सबसे तेज 300 टेस्ट विकेट पूरे कर आस्ट्रेलिया के महान तेज गेंदबाज डेनिस लिली का रिकार्ड तोड़ा है। रविचंद्रन अश्विन और रविन्द्र जड़ेजा की जोड़ी में किसी भी जमे-जमाए बल्लेबाज को चलता करने की काबिलियत है लेकिन आराम के नाम पर इन दोनों ही गेंदबाजों को अंदर-बाहर करके हमेशा इनका मनोबल तोड़ा गया है। अश्विन के मामले में अगर हम यह मान भी लें कि वह ज्यादा उम्र के हैं लेकिन रविंद्र जड़ेजा तो कोहली के हमउम्र हैं। दक्षिण अफ्रीका दौरे से पूर्व अश्विन और जड़ेजा जैसे खिलाड़ियों को कम अवसर देना समझे से परे रहा है।
भारतीय टीम की दक्षिण अफ्रीकी दौरे की शुरुआत टेस्ट सीरीज से होगी। तीन टेस्ट मैचों की सीरीज का पहला मैच पांच जनवरी से केपटाउन में खेला जाएगा। दूसरा मैच 13 जनवरी से सेंचूरियन तो तीसरा और आखिरी टेस्ट मैच 24 जनवरी से जोहान्सबर्ग में खेला जाएगा। छह मैचों की एकदिवसीय सीरीज का पहला मैच एक फरवरी को डरबन, दूसरा मैच चार फरवरी को सेंचूरियन, तीसरा मैच सात फरवरी को केपटाउन, चौथा मैच 10 फरवरी को जोहान्सबर्ग, पांचवां मैच 13 फरवरी को पोर्ट एलिजाबेथ और छठा मैच 16 फरवरी को सेंचूरियन में खेला जाएगा। इसके बाद तीन मैचों की टी-20 सीरीज खेली जाएगी। पहला मैच 18 फरवरी को जोहान्सबर्ग, 21 फरवरी को दूसरा मैच सेंचूरियन और तीसरा और दौरे का आखिरी मैच 24 फरवरी को केपटाउन में खेला जाएगा। इस तरह से भारतीय टीम के दौरे की शुरुआत केपटाउन से ही होगी और दौरे का अंत भी केपटाउन में ही होगा।
दक्षिण अफ्रीका दौरे से पहले भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के कुछ प्रयोगों पर गौर करें तो लगता है कि उसमें समझ की काफी कमी है। विराट कोहली को वनडे सीरीज से आराम देना तो ठीक बात रही लेकिन श्रीलंका जैसी कमजोर टीम के खिलाफ टीम मैनेजमेंट को कुछ और प्रयोग करने चाहिए थे। टीम इंडिया ने श्रीलंका को उसकी ही सरजमीं पर तीनों फॉर्मेट में 9-0 से करारी शिकस्त दी थी। इस समय चयन समिति के पास यह मौका था कि वह श्रीलंका के खिलाफ नए चेहरों को मौका देती इससे उन्हें अंतरराष्ट्रीय मैचों का अनुभव होता। देखा जाए तो भारतीय क्रिकेट में नए खिलाड़ियों को पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है। प्रयोग के नाम पर करीब-करीब हर सीरीज में एक-दो नए चेहरे तो टीम में शामिल किए जाते हैं लेकिन उन्हें खेलने को पर्याप्त मौके नहीं मिलते। शार्दुल ठाकुर, रिषभ पंत, मोहम्मद सिराज, श्रेयस अय्यर, विनय शंकर, सिद्धार्थ कौल ऐसे ही चेहरे हैं जो अब तक इसी इंतजार में हैं कि उन्हें कब पर्याप्त मौका मिले और वह अपनी प्रतिभा दिखाएं।
क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है। भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच श्रेष्ठता की जो जंग होने जा रही है, उसमें कुछ खिलाड़ियों का अहम योगदान होगा। दक्षिण अफ्रीकी दौरे से पहले टीम इण्डिया के कप्तान विराट कोहली की बिंदास बल्लेबाजी चर्चा का विषय है। क्रिकेट में 51 शतक पूरे कर चुके विराट कोहली दक्षिण अफ्रीकी पट्टियों पर कैसा खेलेंगे इसको लेकर हर कोई उत्सुक है। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सबसे तेजी से 50 शतक लगाने के मामले में विराट हाशिम अमला की बराबरी पर हैं। हाशिम अमला और विराट कोहली ने क्रिकेट की 348 पारियों में ये शतक बनाए हैं। भारतीय बल्लेबाजों के लिए दक्षिण अफ्रीकी उछाल भरी विकेट और उसके गेंदबाज जहां सिरदर्द साबित होंगे वहीं भारतीय गेंदबाजों के लिए हासिम अमला और एबी डिविलियर्स जैसे धाकड़ बल्लेबाज परेशानी का सबब साबित हो सकते हैं। हासिम अमला का दुनिया के ठोस बल्लेबाजों में शुमार है तो एबी डिविलियर्स दुनिया के सबसे विस्फोटक बल्लेबाज माने जाते हैं। विराट कोहली की ही तरह डिविलियर्स भी वनडे और टेस्ट में 50 का औसत रखते हैं। वनडे में सबसे तेज हाफ सेंचुरी (16 गेंद) और सबसे तेज शतक (31 गेंद) बनाने का रिकॉर्ड एबी डिविलियर्स के नाम है। भारत के दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर विराट की टीम की राह में यही खिलाड़ी सबसे बड़ी बाधा हो सकता है।
क्रिकेट की अनिश्चितता ही इस खेल की खूबसूरती को बढ़ाती है। दक्षिण अफ्रीका आंकड़ों और टीम संयोजन दोनों में ही कमतर नहीं है। इसकी खासियत खिलाड़ियों का अनुभव और लगातार अच्छा प्रदर्शन है। दक्षिण अफ्रीकी टीम का लगभग हर खिलाड़ी अलग-अलग देशों और अलग-अलग परिस्थितियों में खेलने का आदी है। जब टीम अपने घर में खेल रही हो तो फिर उसकी मजबूती पर उंगली उठाना खतरे से खाली नहीं है। दक्षिण अफ्रीकी टीम बल्लेबाजी, गेंदबाजी और क्षेत्ररक्षण तीनों में ही श्रेष्ठ है। बल्लेबाजी में हाशिम अमला, एबी डिविलियर्स, क्विंटन डी कॉक, डेविड मिलर और फाफ डू प्लेसिस मजबूत से मजबूत गेंदबाजी की धज्जियां उड़ाने की काबिलियत रखते हैं। मध्यक्रम के बल्लेबाज जेपी डुमिनी इस टीम का छुपा रुस्तम हैं। डिविलियर्स और क्विंटन डी कॉक को हमेशा से भारतीय गेंदबाज काफी रास आते रहे हैं। गेंदबाजी में भी दक्षिण अफ्रीका का तोड़ निकालना काफी मुश्किल नजर आता है। वायने पार्नेल, क्रिस मॉरिस, मॉर्ने मॉर्केल के साथ लेग स्पिनर इमरान ताहिर दक्षिण अफ्रीकी गेंदबाजी को एक अलग ही स्तर का बना देते हैं।
भारत की जहां तक बात है उसकी मजबूती बल्लेबाजी है। शीर्ष क्रम से लेकर निचले क्रम तक सभी बल्लेबाजों ने अपनी पट्टियों पर बेहतर प्रदर्शन किया है। दक्षिण अफ्रीका में विराट कोहली के सामने गेंदबाजी संयोजन को चुनना एक बड़ी चुनौती होगी। स्पिन गेंदबाजी दक्षिण अफ्रीकी बल्लेबाजों की कमजोरी है। साथ ही पिछली टेस्ट सीरीज में रविचन्द्रन अश्विन ने अफ्रीकी बल्लेबाजी को तहस-नहस कर दिया था। इसके अलावा अफ्रीकी टीम में तीन बाएं हाथ के बल्लेबाज हैं, जिनके खिलाफ अश्विन तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं। विराट के वीरों को यदि दक्षिण अफ्रीका फतह करनी है तो उसके उद्घाटक बल्लेबाजों मुरली विजय, शिखर धवन के साथ ही के.एल. राहुल को दमदार खेल दिखाना होगा। इस दौरे में चेतेश्वर पुजारा और भुवनेश्वर कुमार का दमदार प्रदर्शन असम्भव को सम्भव में बदल सकता है। क्रिकेट में आंकड़े नहीं खेला करते, मौजूदा समय में भारतीय टीम क्रिकेट की महाशक्ति है। उम्मीद की जानी चाहिए कि टेस्ट क्रिकेट में शिखर पर आरूढ़ विराट के वीर दक्षिण अफ्रीकी तेज गेंदबाजों की मददगार विकेटों पर न केवल अपनी बल्‍लेबाजी की कठिन परीक्षा देंगे बल्कि उसमें पास भी होंगे। विराट के वीरों में खराब रिकॉर्ड में सुधार करने का दमखम और काबिलियत है।




Wednesday 15 November 2017

भारतीय महिला टेनिस का मान, सानिया महान


हर मुसीबत का किया दिलेरी से सामना
सानिया मिर्जा, भारत का गौरव, टेनिस सनसनी, स्टाइल आइकान, न्यूकमर ऑफ द ईयर, नम्बर वन प्लेयर ऑफ इन वूमंस डबल। सानिया मिर्जा की इतनी खूबियां हैं, जिन्हें गिनवाने के लिए विशेषण कम पड़ जाते हैं। 15 नवम्बर, 1986 को मुम्बई में जन्मी सानिया मिर्जा 31 साल की हो चुकी हैं। सानिया का जन्म बेशक मुम्बई में हुआ हो लेकिन उनका बचपन हैदराबाद में बीता। हैदराबाद से ही सानिया ने टेनिस की शुरुआत की। सानिया के टेनिस करियर ने अनेक उतार-चढ़ाव और चुनौतियों का सामना किया लेकिन कभी हिम्मत न हारने वाली सानिया युवाओं के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत रही हैं। भारतीय टेनिस ने एक लम्बा सफर तय किया है। साल 1921 से 1929 के बीच भारत ने डेविस कप में दिग्गज यूरोपीय देशों को मात देकर अपनी छाप छोड़ी थी। फिर 1939 में गास मोहम्मद जब विम्बलडन क्वार्टर फाइनल में पहुंचे तब भी भारत आजाद नहीं था लेकिन अंग्रेजों की जमीन पर एक भारतीय ने अपने दमखम से दिखा दिया कि वह किसी से कम नहीं। भारतीय टेनिस का असल प्रभाव 1960 के दशक में पड़ा जब विम्बलडन में रामनाथन कृष्णन ने चौथी वरीयता प्राप्त की। भारत लगातार जोनल चैम्पियन बना और 1966 के फाइनल में भी पहुंचा। तब से लेकर अब तक टेनिस का सफर लम्बा रहा है लेकिन इस सफर में एक सबसे बड़ा बदलाव जो देखने को मिला वह रहा भारतीय महिलाओं का टेनिस में सक्रिय होना और इसमें असल जान फूंकी सिर्फ और सिर्फ एक खिलाड़ी सानिया मिर्जा ने, एक ऐसी खिलाड़ी जिसने तमाम विवादों के बीच भारतीय टेनिस का इतिहास बदल डाला। सानिया मिर्जा बचपन में पत्रकार बनना चाहती थीं लेकिन इन्हें रास टेनिस ही आई।
सानिया मिर्जा आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। भारत में महिला टेनिस की शुरुआत तो काफी पहले हो चुकी थी लेकिन गूगल पर सर्च करें तो पूरे इतिहास में बमुश्किल 30 भारतीय महिला टेनिस खिलाड़ियों के नाम ही नज़र आएंगे। इनमें भी ज्यादातर ने राष्ट्रीय स्तर पर ही नाम कमाया है। सानिया कुछ अलग थीं। जब वह छह साल की थी तभी उसके हाथ में रैकेट थमा दिया गया था। जन्म एक बिल्डर पिता इमरान मिर्जा के घर हुआ लेकिन उसी पिता के रूप में सानिया को अपना पहला टेनिस कोच भी मिला। खानदान में खिलाड़ी का खून पहले से था। पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान गुलाम अहमद और पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेट कप्तान आसिफ इकबाल उनके रिश्तेदारों में थे। जैसे-जैसे सानिया बड़ी हुईं उन्हें रोजर एंडरसन ने भी टेनिस का पाठ पढ़ाना शुरू किया। स्कूल ने भी सानिया के हुनर को समझा और उसे सराहते हुए आगे बढ़ने को प्रेरित किया।
कम उम्र में ही सफलता के झंडे का गाड़ने वाली सानिया ने अपनी करियर की शुरुआत साल 1999 में की। उस समय सानिया की उम्र महज 14 साल थी, जब उन्होंने वर्ल्‍ड जूनियर टेनिस चैम्पियनशिप में हिस्सा लिया था। साल 2000 में सानिया ने पाकिस्तान में खेले गए इंटेल जूनियर चैम्पियनशिप जी-5 मुकाबले में सिंगल और डबल मुकाबले में जीत हासिल की। डबल मुकाबलों में सानिया की जोड़ी पाकिस्तान के जाहरा उमर खान के साथ थी। जूनियर खिलाड़ी के रूप में 10 सिंगल्स खिताब और 13 डबल्स खिताब जीतकर सानिया खलबली मचा चुकी थीं और 2002 में एशियन गेम्स में भारत को मिक्स्ड डबल्स का खिताब दिलाने में अपना योगदान देकर उन्होंने करोड़ों देशवासियों का दिल जीत लिया। सानिया का असल धमाल बाकी था। 2003 में रूस की अलीसा क्लेबोनोवा को जोड़ी बनाते हुए सानिया ने जैसे ही प्रतिष्ठित विम्बलडन ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट का गर्ल्स खिताब अपने नाम किया सारी दुनिया में इनकी शोहरत की चर्चा होने लगी। इसी साल सानिया को वाइल्ड कार्ड के जरिए पहली बार सिंगल्स टूर्नामेंट में भी खेलने का मौका मिला।
साल 2005 के ऑस्ट्रेलियन ओपन में सिंगल्स खिलाड़ी के रूप में सानिया ने सिंडी वॉटसन और पेट्रा मंडूला को हराकर पहले व दूसरे राउंड को तो पार कर लिया था लेकिन वह इससे आगे नहीं बढ़ सकीं। फरवरी 2005 में सानिया डब्ल्यूटीए खिताब जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। 2006 के ऑस्ट्रेलियन ओपन में वरीयता हासिल करने और 2007 में विश्व रैंकिंग में टॉप-30 में पहुंचने वाली सानिया मिर्जा पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं। इसके बाद भारतीय पुरुष खिलाड़ी महेश भूपति के साथ वह सिंगल्स से डबल्स की तरफ कदम बढ़ाने निकलीं और देखते ही देखते भारतीय महिला टेनिस की पहचान बन गईं। सानिया ने इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और तमाम जोड़ीदारों के साथ खेलते हुए उन्होंने तीन ग्रैंड स्लैम डबल्स खिताब तो तीन ग्रैंड स्लैम मिक्स्ड डबल्स खिताब भी अपने नाम किए। इसके अलावा 2014 और 2015 में विश्व टूर फाइनल्स भी जीता। साल 2015 में सानिया ने विश्व की नम्बर-एक डबल्स खिलाड़ी बनकर नया इतिहास रचा।
एक खिलाड़ी के रूप में जहां सानिया मिर्जा ने मादरेवतन का मान बढ़ाया वहीं वह विवादों में भी छाई रहीं। बीजिंग ओलम्पिक 2008 की ओपनिंग सेरेमनी परेड में सानिया और सुनीता राव ड्रेस कोड का उल्लंघन करने के विवाद में फंसीं। 2008 में उनके उस बयान ने खलबली मचाई जिसमें उन्होंने भारत में न खेलने का फैसला सुनाया। हालांकि बाद में सानिया भारतीय जमीन पर खेलने जरूर उतरीं। लंदन ओलम्पिक 2012  में लिएंडर पेस के साथ उनकी जोड़ी बनाए जाने पर भी सानिया ने विरोध किया जो एक बड़े विवाद के रूप में सामने आया। फिर उसी ओलम्पिक खेलों की ओपनिंग सेरेमनी में वह बिना तिरंगे के नजर आईं। सानिया कपड़ों से लेकर ऐड शूट तक विवादों में घिरी रहीं। इतना ही जब सानिया ने पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक को शौहर के रूप में स्वीकारा तब भी उन्हें काफी विरोध का सामना करना पड़ा था। अपने करियर में सानिया मिर्जा ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं लेकिन कभी हार न मानने वाली सानिया निरंतर टेनिस की दुनिया में नाम और शोहरत कमाती रहीं। पद्मभूषण और पद्मश्री से सम्मानित सानिया एक किताब भी लिख चुकी हैं।
सानिया मिर्जा देश की पहली ऐसी महिला बनीं जिसने वूमन टेनिस एसोसिएशन का खिताब जीता। 2005 में उन्हें न्यूकमर ऑफ द ईयर का खिताब मिला। सानिया भारतीय टेनिस इतिहास की पहली ऐसी महिला हैं जो 10 लाख अमेरिकी डॉलर से ज्यादा रुपए कमाती हैं। सानिया मिर्जा का नाम अक्टूबर 2017 में टाइम पत्रिका ने टॉप 50 हीरोज में शामिल किया। 2010 में सानिया मिर्जा का नाम इकोनामिक्स टाइम ने उन 33 महिलाओं में शामिल किया, जिन्होंने भारत का गौरव बढ़ाया। उनकी आत्म कथा एस अगेंस्ट ऑड को बॉलीवुड स्टार शाहरुख खान और सलमान खान ने हैदराबाद में रिलीज किया था। ग्रैंड स्लैम की बात करें तो सानिया ने सबसे पहले साल 2009 में ऑस्ट्रेलियन ओपन का मिक्स डबल्स खिताब जीता था इसके बाद साल 2012 में फ्रेंच ओपन मिक्स डबल्स का खिताब, 2014 में यूएस ओपन मिक्स डबल्स खिताब और 2015 में विम्बलडन का युगल खिताब भी अपने नाम किया। सानिया मिर्जा ने एफ्रो एशियाई, एशियाई और कॉमनवेल्थ गेम्स खेलों को मिलाकर कुल 12 मैडल्स अपने नाम किए। एफ्रो एशियाई खेलों में सानिया ने कुल चार गोल्ड मैडल जीते तो एशियाई खेलों में सानिया ने एक गोल्ड, तीन सिल्वर और दो कांस्य जीते हैं। सानिया ने कॉमनवेल्थ गेम्स में एक सिल्वर और एक ब्रॉन्ज मैडल जीता है।

सानिया मिर्जा अपनी बोल्ड स्टाइल की वजह से युवाओं में बेहद लोकप्रिय हैं। वह स्पोर्ट्स ब्रांड एडीडास की ब्रांड एम्बेसेडर रही हैं। उनकी ड्रेसिंग सेंस और स्पंकी एटीट्यूट का हर कोई दीवाना है। सानिया चाहे परंपरागत भारतीय कपड़े पहनें या वेस्टर्न ड्रेसेस उनकी खूबसूरती हमेशा बनी रहती है। जब सानिया ने टेनिस खेलना शुरू ही किया था तब उनकी कानों का बालियां और नाक की नथ काफी लोकप्रिय हुई थी।  टेनिस मैचों के दौरान छोटी ड्रेस पहनने के कारण सानिया मिर्जा को कई बार मुस्लिम संगठनों की आलोचना और रंज का भी सामना करना पड़ा। 2008 में सानिया पर तिरंगे के अपमान के भी आरोप लगे और कहा गया कि उन्होंने एक समारोह के दौरान तिरंगे को पैरों से छुआ। इस मामले में उन पर केस भी दर्ज हुआ। सानिया मिर्जा कभी किसी विवाद से विचलित नहीं हुईं और हर कठिनाई का बखूबी सामना किया और उससे बाहर भी निकलीं।

Tuesday 14 November 2017

रिंग की महारानी मैरीकॉम

सुपरमॉम मैरीकॉम ने मुक्केबाजी की दुनिया में बढ़ाया भारत का मान
श्रीप्रकाश शुक्ला
मैरीकॉम एक ऐसी भारतीय महिला, जो आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है। मैरीकॉम ने अपनी अदम्य इच्छाशक्ति से समाज में जो प्रतिमान स्थापित किए हैं, वह हर भारतीय के लिए गर्व और गौरव का सूचक हैं। जब-जब मैरीकॉम की महानता पर उंगली उठी उन्होंने अपने करिश्माई प्रदर्शन से उसे मिथ्या साबित कर दिखाया। पूर्वोत्तर भारत के एक पिछड़े जिले से आई मैरीकॉम ने जब पुरुषों के खेल बॉक्सिंग को चुना तो लोगों ने उनका मजाक उड़ाया, शादी हुई तो लोगों ने कहा अब हो चुकी बॉक्सिंग, मां बनीं तो ऐसी ही बातें कही गईं लेकिन मैरीकॉम ने पांच-पांच बार विश्व और एशिया चैम्पियन बनकर यह साबित किया कि वह मोम की नहीं बल्कि फौलाद की बनी हैं। बच्चों की परवरिश, अपने राज्य की ज्वलंत समस्याओं पर उनकी संजीदगी के साथ ही उनका काबिलेगौर तमाशाई प्रदर्शन हर किसी को अपना मुरीद बना लेता है।
सुपर बॉक्सर मैरीकॉम जो ठान लेती हैं, उसे हासिल करना उनकी जिद सी बन जाती है। एशियाई मुक्केबाजी चैम्पियनशिप से पूर्व किसी को उम्मीद नहीं थी कि लौह मैरीकॉम मादरेवतन को स्वर्णिम सफलता दिलाएंगी लेकिन तीन बच्चों की मां ने दिखा दिया कि मन में अगर सही लगन हो तो कुछ भी हासिल करना मुश्किल नहीं होता। एक समय था जब राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय खिलाड़ी बेटियां गिनी-चुनी ही थीं। सबसे पहली भारतीय महिला जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय खेल मंच पर भारत का नाम रोशन किया वह थीं उड़नपरी पीटी ऊषा। हमारे पुरुष प्रधान देश में आज दर्जनों खिलाड़ी बेटियां ऐसी हैं, जिन पर हम जीत का दांव लगा सकते हैं। पीटी ऊषा से सानिया मिर्जा तक, कर्णम मल्लेश्वरी से मैरीकॉम तक भारत ने खेल की दुनिया में एक लम्बा सफर तय किया है। भारतीय महिलाएं मुक्केबाजी, कुश्ती, क्रिकेट, हाकी आदि खेलों में आजकल सुर्खियां बटोर रही हैं। पी.टी. ऊषा जहां खेल के क्षेत्र में भारतीय महिलाओं का प्रेरणास्रोत हैं वहीं मैरी कॉम रिंग की महारानी।
मैंगते चंग्नेइजैंग मैरीकॉम का नाम सुनकर सबसे पहले दिल और दिमाग में एक निर्भीक और साहसी महिला की तस्वीर उभर आती है। मैरीकॉम का जन्म पूर्वोत्तर भारत के मणिपुर के चुराचांदपुर जिले के काड़थेइ गांव में हुआ। बचपन से ही मैरीकॉम को एथलेटिक्स में दिलचस्पी थी लेकिन सन् 2000 में डिंको सिंह ने उन्हें बॉक्सर बनने के लिए प्रेरित किया। एक किसान की बेटी के लिए बॉक्सिंग रिंग में अपना करियर बनाना कोई आसान काम नहीं था। मैरीकॉम ने जब बॉक्सिंग शुरू की थी तो उन्हें अपने घर से कोई समर्थन नहीं मिला। घर वाले नहीं चाहते थे कि मैरीकॉम रिंग में उतरे। लेकिन मैरीकॉम की जिद और जुनून ने घर वालों को झुकने के लिए मजबूर कर दिया। मैरी के गांव में न ही प्रैक्टिस को जगह थी, न ही अन्य सुविधाएं। एक बॉक्सर को जो डाइट चाहिए वह भी मैरीकॉम को बमुश्किल ही मिल पाती थी। लाख बाधाओं के बाद भी मैरीकॉम ने 2000 में अपना बॉक्सिंग करियर शुरू किया तथा तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद खुद को न केवल स्थापित किया बल्कि अपने लाजवाब प्रदर्शन से दर्जनों बार मुल्क को गौरवान्वित किया है। 2008 में इस महिला मुक्केबाज को मैग्नीफिशेंट मैरीकॉम की उपाधि मिली। बॉक्सिंग रिंग में भारत का नाम रोशन करने वाली मैरीकॉम की पूरी कहानी को फिल्मी परदे पर भी चित्रित किया गया और उस फिल्म में प्रियंका चोपड़ा ने उनकी भूमिका निभाई। 17 साल से रिंग में अपने मुक्कों का धमाल मचा रही मैरीकॉम ने 2014 एशियाई खेलों के बाद नवम्बर 2017 के पहले ही सप्ताह में एशियाई चैम्पियनशिप में स्वर्णिम सफलता हासिल कर इस बात के संकेत दिए कि उनमें अब भी काफी दम है। एशियाई चैम्पियनशिप का जहां तक सवाल है मैरीकॉम हर बार खिताबी दौर तक पहुंचीं और पांच बार सोने पर पंच लगाया। मैरी एक बार उपविजेता रहीं।  
एक गरीब किसान की बेटी मैरीकॉम ने महिला मुक्केबाजी की दुनिया में भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में धूम मचाई है। मैरीकॉम ने अपनी लगन और कठिन परिश्रम से यह साबित किया कि प्रतिभा का अमीरी और गरीबी से कोई सम्बन्ध नहीं होता। एक मार्च, 1983 को मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में एक गरीब किसान के घर जन्मीं मैरीकॉम का जीवन काफी कष्टों भरा रहा। मैरीकॉम की प्रारम्भिक शिक्षा लोकटक क्रिश्चियन मॉडल स्कूल तथा सेंट जेवियर स्कूल में हुई। इसके बाद उन्होंने कक्षा 9 और 10 की पढ़ाई इम्फाल के आदिम जाति हाईस्कूल से पूरी की लेकिन वह मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पास नहीं कर सकीं। मैट्रिकुलेशन की परीक्षा में दोबारा बैठने का उनका विचार नहीं था। इसलिए उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और आगे की पढ़ाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग इम्फाल से की। उन्होंने स्नातक चुराचांदपुर कॉलेज से किया। मैरीकॉम को बचपन से ही खेलकूद का शौक रहने के कारण उनमें बॉक्सिंग का आकर्षण 1999 में उस समय उत्पन्न हुआ जब उन्होंने खुमान लम्पक स्पो‌र्ट्स कॉम्प्लेक्स में कुछ लड़कियों को बॉक्सिंग रिंग में लड़कों के साथ बॉक्सिंग करते देखा। उनके लिए यह काफी स्तब्ध करने वाला था। उन्होंने ठाना कि जब ये लड़कियां बॉक्सिंग कर सकती हैं तो मैं क्यों नहीं। साथी मणिपुरी बॉक्सर डिंको सिंह की सफलता ने भी उन्हें बॉक्सिंग की ओर आकर्षित किया।
बॉक्सिंग रिंग में उतरने का फैसला करने के बाद मैरीकॉम ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। भले ही एक महिला होने के नाते उनका सफर मुश्किल भरे दौर से गुजरा पर हौसला उनका काफी बुलंद था। एक बार जो ठान लिया उसे करके ही दिखाया है। मैरीकॉम अकेली ऐसी महिला मुक्केबाज हैं जिन्होंने अपनी सभी छह विश्व प्रतियोगिताओं में पदक जीते इसी तरह एशियन महिला मुक्केबाजी प्रतियोगिता में भी उन्होंने पांच स्वर्ण और एक रजत पदक जीता है। महिला विश्व वयस्क मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में भी उन्होंने पांच स्वर्ण और एक रजत पदक जीता है। बॉक्सिंग की ही तरह उन्हें ओनलर कॉम से शादी पर भी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। मैरीकॉम ने 2005 में एक सच्चे जीवनसाथी के रूप में के. ओनलर कॉम के जीवन में प्रवेश किया। मैरी कहती हैं कि ओनलर उनके गाइड, फ्रैंड और फिलॉसफर हैं। मैरी का परिवार शादी के बाद तब पूरा हुआ जब उनके प्यार के बीच उनके बच्चों ने जगह ली। खेल और बच्चों के बीच के अंतराल को समझते हुए मैरी कहती हैं कि मैं अपने तीन बच्चों रेचुंगवर, खापूनीवर और प्रिंस चुंगथानग्लेन कॉम के लिए मैडल जीतना चाहती थी क्योंकि मेरे खिलाड़ी होने की कीमत मेरे बच्चे चुकाते हैं। उन्हें छुटपन में ही अपना मां से लम्बे समय तक दूर रहना होता है। मैरीकॉम देश के लिए एक आदर्श महिला और रोल माडल हैं। सच कहें तो भारतीय महिलाओं को महिला बॉक्सिंग में एक आदर्श मिल चुकी है।
लड़कियां दिल खोलकर बाक्सिंग में आएं- मैरीकॉम
मैरीकॉम को हिन्दी फिल्मों के गीत सुनने और गाने का भी बड़ी शौक है। अपनी सफलता का श्रेय मैरी अपने पति को देती हैं। बकौल मैरी जब भी मैं टूर्नामेंट्स और कैम्प के लिए ट्रैवल करती हूं तब ओनलर के साथ न होने पर भी मेंटली सिक्योर फील करती हूं। मैं बहुत लकी हूं कि मुझे इतना सपोर्ट करने वाला पति मिला है। घर का तनाव मुझे उन्होंने कभी नहीं दिया। बच्चों को अकेले सम्हालते हैं और मुझे खेलने भेजते हैं। पिछले कुछ सालों से मैरीकॉम साल के तीन सौ दिन नेशनल कैम्प में बिताती हैं। अपने घर इम्फाल से हजारों किलोमीटर दूर जहां उनके बच्चे अपने पापा के साथ रहते हैं, ऐसे में ओनलर उन्हें हर रोज फोन पर बच्चों के बारे में बताते रहते हैं। मैरी कहती हैं कि कई बार मैं अपने बच्चों की छोटी-छोटी बातों और शरारतों को बहुत मिस करती हूं। आखिर उन्हें इस उम्र में बढ़ते हुए देखने का अलग ही सुकून होता है।
मैरी कहती हैं कि मेरा बचपन अपने पैरेंट्स के साथ खेतों में काम और छोटे भाई-बहनों की देखभाल करते बीता है। तमाम अचीवमेंट्स के बावजूद मैं आज भी पुराने अहसास के साथ ही जीती हूं। मैं अंदर से आज भी सीधी-सादी गांव की लड़की हूं। आज भी अपने गांव में जाती हूं और उन दिनों को याद करके इमोशनल हो जाती हूं। मैरी कहती हैं कि मैं नहीं चाहतीं कि किसी भी गरीब बच्चे को रिंग में आगे आने के लिए उनकी तरह संघर्ष करना पड़े। मैरीकॉम की मणिपुर में बॉक्सिंग एकेडमी है जिसके जरिए वह अगली मैरी बनाने का सपना देख रही हैं। मैरी चाहती हैं कि लड़कियां दिल खोलकर बॉक्सिंग में आएं। वह कहती हैं हरियाणा, मणिपुर, केरल और असम की लड़कियां तो बॉक्सिंग में आगे आ रही हैं लेकिन उत्तर प्रदेश और पंजाब की लड़कियां कम हैं। मैरी कहती हैं कि लड़कियों की सेल्फ डिफेंस के लिए बॉक्सिंग बेहद काम की चीज है।
मैरीकॉम को सुपरमॉम के नाम से भी जाना जाता है। 35 वर्षीय मैरीकॉम के तीन बच्चे हैं लेकिन इसके बावजूद उन्होंने बॉक्सिंग करना नहीं छोड़ा। मैरीकॉम की फिटनेस देखकर कोई नहीं कह सकता कि वह तीन बच्चों की मां हैं। 35 साल की उम्र में भी बॉक्सिंग रिंग के अंदर उनकी फिटनेस और तेजी देखने लायक होती है। विरोधी पर मैरीकॉम पंच की बरसात करती हैं तो बहुत ही तेजी से खुद को उसके प्रहारों से भी बचाती हैं। यही वजह है कि उनके ज्यादातर मुकाबले एकतरफा होते हैं। पांच बार की वर्ल्ड चैम्पियन, पांच बार की एशियन चैम्पियन सुपरमॉम मैरी ने लंदन ओलम्पिक में कांस्य पदक तो एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीता है। मैरीकॉम अपनी फिटनेस के लिए कड़ी मेहनत करती हैं। वह कहती भी हैं कि जब तक मैं फिट रहूंगी रिंग में हिट रहूंगी।
सुपरमॉम मैरीकॉम हर भूमिका में सर्वश्रेष्ठ हैं। वह ममतामयी मां के साथ ही राज्यसभा सांसद भी हैं। उन पर कभी भी राज्यसभा में अनुपस्थिति को लेकर सवाल नहीं उठे। मैरीकॉम का परिवार, पॉलिटिक्स और बॉक्सिंग रिंग से तारतम्य गजब का है। वह मां के रूप में जहां बच्चों के लिए काफी वक्त निकालती हैं वहीं राज्य सभा में सिर्फ खेल ही नहीं बल्कि मणिपुर के ज्वलंत मुद्दों को भी बेबाकी से उठाती हैं। एशियाई मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के बाद देश की उम्मीदें और भी बढ़ गई हैं। खेलप्रेमियों को मैरीकॉम से कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियाई गेम्स में मैडल जीतने की पूरी उम्मीद है। सच कहें तो जो उपलब्धियां मैरीकॉम ने हासिल की हैं उन तक पहुंचना किसी भी भारतीय महिला खिलाड़ी के लिए आसान बात नहीं है।
मैरीकॉम की उपलब्धियां-
2012 के ओलम्पिक में कांस्य पदक
एशियन महिला मुक्केबाजी प्रतियोगिता में पांच स्वर्ण, एक रजत पदक
एशियाई खेलों में एक स्वर्ण और दो रजत पदक
मैरीकॉम को साल 2003 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
2006 में पद्मश्री, 2013 में पद्म भूषण और 2009 में राजीव गाँधी खेल रत्न अवार्ड मिले

मैरीकॉम पर फिल्म बनी जिसमें प्रियंका चोपड़ा ने मैरीकॉम की भूमिका निभाई