Friday 28 August 2015

विवादों में सानिया का खेलरत्न

क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न दिये जाने का मामला अभी खेलप्रेमियों के मानस से विस्मृत भी नहीं हुआ था कि टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा को दिये जाने वाला राजीव गांधी खेल रत्न विवादों की जद में आ गया है। खेल और विवाद भारत में एक-दूसरे के पर्याय हैं। 29 अगस्त, 1995 से खेल दिवस को देश के जांबाज खिलाड़ियों को सम्मानित किया जाना एक परम्परा बन गई है। प्रतिवर्ष सम्मान को लेकर बखेड़ा खड़ा होता है। जिस खिलाड़ी को सम्मान मिलता है, वह तो खुश होता है लेकिन जिसे सम्मान के काबिल नहीं समझा जाता या भेदभाव का शिकार होता है, वह आरोप लगाने से भी नहीं चूकता। सानिया मिर्जा महिला टेनिस में भारत की पहचान हैं। सानिया की उपलब्धियों को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता बावजूद इसके विकलांग ऊंचीकूद के ओलम्पिक पदकधारी एचएन गिरिशा को मलाल है कि राजीव गांधी खेलरत्न को लेकर उसके साथ भेदभाव हुआ है। गिरिशा का न्याय के लिए कर्नाटक हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना हैरत की बात नहीं है। ओलम्पिक इतिहास पर नजर डालें तो जो काम अशक्त गिरिशा ने किया है, वह काम तो हमारा कोई सशक्त एथलीट भी आज तक नहीं कर सका है।
खेलों के क्षेत्र में सर्वोच्च राजीव गांधी खेल रत्न सम्मान देने का चलन 1991-92 से शुरू हुआ है। शतरंज के बेताज बादशाह विश्वनाथन आनंद यह सम्मान पाने वाले भारत के पहले खिलाड़ी हैं। पिछले साल खेल मंत्रालय ने इस सम्मान के काबिल किसी खिलाड़ी को नहीं समझा था। टेनिस स्टार सानिया मिर्जा खेलरत्न पाने वाली 28वीं खिलाड़ी हैं। खेल मंत्रालय ने कर्नाटक हाईकोर्ट की रोक के बावजूद सानिया को खेलरत्न देने का ऐलान कर दिया है। हालांकि यदि कोर्ट का फैसला गिरिशा के पक्ष में गया तो सानिया को यह सम्मान वापस करना होगा। गिरिशा की याचिका पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना ने प्रतिवादियों को 15 दिन के अंदर नोटिस का जवाब देने को ताकीद किया है। स्विट्जरलैंड की मार्टिना हिंगिस के साथ इस साल जून में विम्बलडन महिला युगल का खिताब जीतकर इतिहास रचने वाली सानिया के नाम की सिफारिश सरकार से नियुक्त चयन पैनल ने देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार के लिये की है। सानिया के सम्मान पर खेल मंत्रालय भी सहमत है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी 29 अगस्त (आज) को राष्ट्रपति भवन में न केवल सानिया को खेलरत्न देंगे बल्कि खिलाड़ियों, प्रशिक्षकों और खेल प्रमोटरों को अर्जुन, द्रोणाचार्य और ध्यानचंद पुरस्कारों से भी नवाजेंगे।
लंदन परालम्पिक खेलों के रजत पदक विजेता गिरिशा की दलील है कि वह सानिया की तुलना में खेलरत्न पुरस्कार पाने का अधिक हकदार है क्योंकि उसके 90 अंक हैं और प्रदर्शन आधारित अंक प्रणाली में टेनिस स्टार सानिया उससे काफी पीछे है। गिरिशा का तर्क है कि सानिया का विम्बलडन युगल खिताब इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए विचार करने योग्य ही नहीं था क्योंकि सरकार द्वारा खेलरत्न पुरस्कार के लिए जारी अधिसूचना में शामिल खेल प्रतियोगिताओं में इसका जिक्र ही नहीं है। दरअसल खेल मंत्रालय को 2011 से ओलम्पिक, परालम्पिक, एशियाई खेल, राष्ट्रमण्डल खेल और विश्व चैम्पियनशिप में प्रदर्शन के आधार पर खिलाड़ी के नाम पर विचार करना चाहिए था, जोकि नहीं किया गया। सानिया मिर्जा की जहां तक बात है, उसने जब से पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक को अपने शौहर के रूप में स्वीकारा है, हिन्दू धर्मावलम्बी उसकी भारतीयता पर सवाल उठाने लगे हैं।
टेनिस की जहां तक बात है, सानिया मिर्जा की उपलब्धियों के इर्द-गिर्द भी कोई भारतीय महिला टेनिस खिलाड़ी नहीं दिखती। सानिया ने टेनिस कोर्ट पर ही नहीं ग्लैमर और सामाजिक क्षेत्र में भी कई नये आयाम स्थापित किये हैं। 15 नवम्बर,1986 को मुंबई में जन्मी भारतीय टेनिस स्टार सानिया मिर्जा के सफल करियर की बात करें तो वह 18 वर्ष की आयु में ही वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी थी। सानिया ने करियर की शुरुआत 1999 में विश्व जूनियर टेनिस चैम्पियनशिप से की, उसके बाद उसने कई अंतरराष्ट्रीय मैचों में हिस्सा लेते हुए अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। 2003 सानिया के जीवन का सबसे रोचक साल रहा, क्योंकि वह भारत की तरफ से वाइल्ड कार्ड एंट्री के बाद विम्बलडन के डबल्स मुकाबले में खेली और जीती भी। वर्ष 2004 में बेहतर प्रदर्शन के लिए उसे 2005 में अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया। सानिया को 2006 में जब पद्मश्री सम्मान प्रदान किया गया तो वह यह सम्मान पाने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ी बनी। सानिया को 2006 में अमेरिका में विश्व टेनिस की दिग्गज हस्तियों के बीच डब्ल्यूटीए का मोस्ट इम्प्रेसिव न्यू कमर एवार्ड प्रदान किया गया। वर्ष 2009 में वह भारत की तरफ से ग्रैंड स्लैम जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी बनी।
सानिया अपनी आत्मकथा भी लिख चुकी है, वह सचिन तेंदुलकर के बाद आत्मकथा लिखने वाली दूसरी भारतीय खिलाड़ी है। इस आत्मकथा में उसके छह साल की उम्र में टेनिस सीखने से लेकर बुलंदियों तक पहुंचने की दास्तां शामिल है। सानिया को 11 दिसम्बर, 2008 को चेन्नई में एमजीआर शैक्षिक और अनुसंधान संस्थान विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की तो लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तीकरण की दिशा में काम करने वाले संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठन संयुक्त राष्ट्र महिला ने उसे दक्षिण एशिया में अपना सद्भावना दूत भी नियुक्त किया। संयुक्त राष्ट्र महिला की तरफ से सद्भावना दूत बनने वाली सानिया मिर्जा पहली दक्षिण एशियाई महिला है। सानिया भारत ही नहीं दुनिया की चर्चित खिलाड़ी है। युगल में दुनिया की नम्बर एक खिलाड़ी सानिया पेशेवर टेनिस ही नहीं बल्कि भारत की तरफ से एशियाई और राष्ट्रमण्डल खेलों में सर्वाधिक पदक जीतने वाली खिलाड़ी भी है। टेनिस में अमृतराज बंधुओं, लिएंडर पेस और महेश भूपति की ही तरह सानिया मादरेवतन की शान है। भारत में खेलों के सम्मान को लेकर हमेशा विवाद हुए और होते रहेंगे। पुरस्कार चयन समिति पर तोहमत लगना कोई नई बात नहीं है।  

जीत के निहितार्थ


फटाफट क्रिकेट के दौर में टेस्ट मैचों की लोकप्रियता कम जरूर हुई है, लेकिन इन्हीं मैचों में खेल के हर पक्ष में प्रतिद्वंद्वी टीमों को जूझते देखा जा सकता है। खिलाड़ियों के कौशल, दमखम, ध्यान और संतुलन की क्षमता का सही आकलन टेस्ट मैचों के दौरान ही हो पाता है। यही वजह है कि इन मैचों के प्रदर्शन लम्बे समय तक याद रहते और रखे जाते हैं। भारत-श्रीलंका के बीच तीन टेस्ट मैचों की सीरीज में अब तक हुए दो मैच इस लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण हैं। गाले में भारत जीतते-जीतते हार गया था, पर कोलंबो के पी सारा ओवल स्टेडियम में भारतीय खिलाड़ी श्रीलंका पर न केवल हावी रहे बल्कि जीत हासिल करने के क्षण तक उन्होंने अपने संतुलन और नियंत्रण में कोई चूक नहीं होने दी। यूं तो खेल के गम्भीर प्रेमियों के लिए हर गेंद रोमांचक होती है और क्रिकेट एक टीम खेल है, परंतु यह मैच भारत की ओर से अजिंक्य रहाणे, लोकेश राहुल और रविचंद्रन अश्विन तथा श्रीलंकाई टीम की ओर से आर. हेराथ और ए. मैथ्यूज के शानदार प्रदर्शनों के लिए याद किया जायेगा। अश्विन ने इस मैच में भी पांच विकेट लेकर यह साबित किया कि अनिल कुम्बले के बाद भारत उनकी गेंदबाजी पर यकीन कर सकता है। अश्विन ने टेस्ट क्रिकेट में बारहवीं बार पांच या उससे अधिक विकेट लिये हैं। पिछले मैच में भी उन्होंने एक पारी में पांच विकेट चटकाये थे। दूसरी पारी में रहाणे के शतक और लम्बी भागीदारी ने भारत को बड़ी बढ़त दे दी थी। यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इस मैच में एक बड़ा प्रयोग करते हुए रहाणे को उनके स्थायी पांचवें स्थान से हटाकर तीसरे स्थान पर भेजा गया था। ऐसे में उनका शतक, जो उनके कैरियर का चौथा शतक है, नियंत्रण की उनकी क्षमता को सिद्ध करता है। अश्विन के साथ गेंदबाज अमित मिश्रा के लिए भी यह दौरा उपलब्धियों से भरा है। यह जीत पहले टेस्ट की निराशा से उबरने का मौका तो है ही, कप्तान विराट कोहली की बतौर कप्तान पहली जीत होने के कारण भी खास है। यह जीत एक साल से अधिक के इंतजार के बाद मिली है। क्रिकेट के इतिहास में इस मैच को मौजूदा दौर के महानतम खिलाड़ियों में शुमार होने वाले कुमार संगकारा के आखिरी मैच के रूप में याद किया जायेगा। अपनी टीम की हार से संगकारा को निराशा जरूर हुई होगी, लेकिन दोनों टीमों और दर्शकों की भाव-विह्वल विदाई को वे हमेशा याद रखेंगे। भारतीय कप्तान विराट कोहली उन्हें अपने प्रेरणास्रोतों में यदि गिनते हैं, तो वह उचित भी है। इस जीत के बाद भारत का आत्मविश्वास सकारात्मक और मनोबल ऊंचा होना चाहिये क्योंकि वह टेस्ट क्रिकेट रेटिंग में शिखर से छठे स्थान पर आ गया है। यह भारत की प्रतिष्ठा से मेल नहीं खाता।

धरती का सबसे तेज मानव
गैटलिन को हराकर बोल्ट का गोल्डन डबल
बीजिंग। धरती के सबसे तेज धावक जमैका के यूसेन बोल्ट ने 200 मीटर दौड़ में अपनी बादशाहत एक बार फिर कायम रखते हुये अपने प्रबल प्रतिद्वंद्वी अमेरिका के जस्टिन गैटलिन को फिर पछाड़ कर विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में अपना खिताब कायम रखा। बोल्ट का विश्व चैम्पियनशिप में यह 10वां स्वर्ण पदक है।
इस स्पर्धा में 19.19 सेकेण्ड का विश्व रिकॉर्ड अपने नाम रखने वाले बोल्ट ने 19.55 सेकेण्ड का समय लेकर स्वर्ण जीता। गैटलिन 19.74 सेकेण्ड का समय निकाल पाये और उन्हें रजत से संतोष करना पड़ा। दक्षिण अफ्रीका के अनासो जोबोतवाना ने 19.87 सेकेण्ड में कांस्य पदक जीता। बोल्ट ने इसके साथ ही विश्व चैम्पियनशिप में 100 और 200 मीटर का गोल्डन डबल पूरा कर लिया है। बोल्ट ने 2013 में पिछली विश्व चैम्पियनशिप में भी इन दोनों फर्राटा स्पर्धाओं के स्वर्ण पदक जीते थे। उन्होंने 100 मीटर दौड़ में गैटलिन को परास्त किया था और अब 200 मीटर में भी उन्होंने अमेरिकी धावक को जीतने का मौका नहीं दिया। बोल्ट विश्व चैम्पियनशिप से पहले इस वर्ष अपनी फार्म और फिटनेस में नहीं थे, जबकि गैटलिन ने 2015 में 100 और 200 मीटर दोनों ही रेसों में सबसे तेज समय निकाला था। लेकिन विश्व चैम्पियनशिप में गैटलिन जमैकाई धावक की श्रेष्ठता को चुनौती नहीं दे पाये। बोल्ट के नाम अब 6 ओलम्पिक खिताब और 10 विश्व चैम्पियनशिप स्वर्ण हो चुके हैं। 100 मीटर में 3 खिताब अपने नाम कर चुके बोल्ट का यह लगातार चौथा 200 मीटर का स्वर्ण पदक है। बोल्ट 2011 में देबू में हुयी विश्व चैम्पियनशिप में 100 मीटर में अयोग्य करार दिये गये थे जबकि उन्होंने 200 मीटर में स्वर्ण पदक जीता था।

Thursday 27 August 2015

बिखरते परिवार, विलखता बचपन


परिवार, समाज और देश एक-दूसरे के पूरक हैं।  परिवारों का विघटन आज की एक ज्वलंत समस्या है। इस समस्या ने बुजुर्गों से न केवल उनके जीने का सहारा बल्कि आने वाली पीढ़ी से उसके संस्कार भी छीन लिये हैं। हमारे देश में संयुक्त परिवारों का लम्बा इतिहास है। आज लोगों की सोच के साथ न केवल परिवार बिखर रहे हैं बल्कि समाज में भी एक नीरसता देखी जा रही है। परिवारों के विघटन से क्या खो रहे हैं, इसका हमें भान ही नहीं है। परिवार, समाज तो समाज देश की ताकत होता है। लगातार टूटते परिवारों से न केवल भाईचारा प्रभावित हो रहा है बल्कि ढेरों सुख-सुविधाओं के बीच पलने वाले बच्चों में सहयोग और समर्पण आदि मूलभूत गुणों का भी क्षरण हो रहा है। परिवारों के विघटन पर हम सावधान न हुए तो भारत की स्थिति चीन से भी खराब हो सकती है। छोटे और एकल परिवारों के चलते चीन में बुजुर्गों की स्थिति इतनी खराब हो गई है कि वे अपनी हुकूमत से जीवन जीने के साधन नहीं अपितु इच्छा-मृत्यु मांग रहे हैं।
परिवारों के विघटन की मुख्य वजह विकास का झूठा आडम्बर है। एकल परिवार हमें अल्पशांति तो दे सकते हैं लेकिन इसके दीर्घगामी परिणाम कभी अच्छे नहीं हो सकते। परिवारों में बिखराव न हो इसके लिए चाहिए कि हम अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें और उन्हें सामाजिक बनाएं। परिवार न टूटें इसके लिए बचपन से ही बच्चों में विनम्रता व सहनशीलता जैसे गुणों का विकास किया जाना जरूरी है। आज जिस तेजी से परिवार टूट रहे हैं, इसके मुख्य कारण हैं- महिलाओं का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना, एकल परिवार, आपसी समझ की कमी व एक-दूसरे के लिए समय का अभाव। परिवारों के विघटन का असर हमारे बुजुर्गों पर ही नहीं बल्कि सभी पर पड़ रहा है। आज महिलाओं में अपने पैरों पर खड़े होने की ललक बढ़ी है, इसमें कोई बुराई भी नजर नहीं आती। समस्या अहंकार की है। आज हम अपने करियर व अहं को ऊपर रखते हुए परिवारों के बिखराव को बचाने के लिए कोई समझौता नहीं करना चाहते। इस अहंकार से न केवल परिवार टूट रहे हैं बल्कि नौबत पति-पत्नी में तलाक तक पहुंच रही है। दोनों में से किसी का भी ध्यान इस तरफ नहीं जाता कि वर्चस्व की लड़ाई में मासूम बच्चों का बचपन दम तोड़ रहा है। हमें सोचना होगा कि बच्चों के बचपन को खिलने से पहले ही मुरझाने की सजा क्यों मिल रही है? ऐसे टूटे परिवारों के बच्चे समाज और देश का निर्माण कैसे करेंगे यह एक विचारणीय प्रश्न है।
एक समय संयुक्तपरिवार भारतीय संस्कृति का सबसे मजबूत पक्ष था, जहां सभी सदस्य मिल-जुलकर प्रेम से रहते थे। लेकिन आज के दौर में ज्यादातर एकल परिवार रह गए हैं। जहां पति-पत्नी दोनों कामकाजी होते हैं। ऐसे माहौल में बच्चे स्वयं को उपेक्षित महसूस करने लगे हैं। आज पति-पत्नी के बीच पारस्परिक निर्भरता भी कम होती जा रही है, जिसके कारण उनके रिश्तों में दरार आ रही है। आॅफिस का टेंशन घरों की खुशहाली को अपनी जद में ले रहा है। ज्यादा काम होने की वजह से पति-पत्नी एक-दूसरे को समय ही नहीं दे पाते। ऐसे में परिवार व कामकाज के बीच संतुलन नहीं बना पाता। पति-पत्नी के सम्बन्धों में दूरी तभी आती है, जब उनके बीच विश्वास, समर्पण व निष्ठा में कमी आने लगती है। अगर पति-पत्नी दोनों घर और बाहर की जिम्मेदारी मिलकर उठाएं तथा एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने के बजाय आत्म मूल्यांकन करें, तो उनके बीच तनाव कम होगा और उनका दाम्पत्य जीवन भी सुखी रहेगा। पति-पत्नी की इस खुशहाली से ही परिवार एकसूत्र  में बंधे रह सकते हैं।
आज के भागमभाग भरे जीवन में हमें अपने परिवार के सदस्यों के बारे में सोचने की ही फुरसत नहीं है। हमारी इस भूल से परिवारों का टूटना स्वाभाविक है। पति-पत्नी के आपसी सहयोग बिना दाम्पत्य जीवन की गाड़ी का चलना कतई सम्भव नहीं है। हम न केवल अपनी रुचियों का ख्याल रखें बल्कि दूसरे की अपेक्षाओं को भी समझें। तू-तू, मैं-मैं के बजाय यदि हम की भावना हो तो परिवारों को टूटने से आसानी से बचाया जा सकता है। संसार का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जहां बिना सिखाए ही कोई सीख गया हो। मनुष्य को सब कुछ सीखना पड़ता है। सिखाने वाला तत्व बाहर का भी हो सकता है और आदमी के भीतर विद्यमान परमात्मा की सतत चेतना भी। माता-पिता तो संतान को जन्म देने के निमित्त बनते हैं, परन्तु गुरु हृदय रूपी गुफा में विद्यमान जन्म-जन्मांतर के अंधकार को दूर करने में सक्षम होता है। इस गुरु पद से हम माता-पिता को भी सम्बोधित कर सकते हैं, क्योंकि जीवन में कभी ऐसे भी क्षण आते हैं जब माता-पिता किन्हीं मार्मिक शब्दों से जीवन के अंदर व्याप्त तमस को दूर कर नई किरण का संचार कर देते हैं। देखना होगा कि हम अपने नौनिहालों को शिक्षा-दीक्षा के लिए आखिर कहां भेज रहे हैं। जहां भेज रहे हैं वहां हमारे बच्चे को संस्कार मिलते भी हैं या नहीं। बचपन से ही अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने का चलन भी परिवारों के बिखराव का एक कारण है। इससे बच्चे जहां अपने दादा-दादी से दूर हो रहे हैं वहीं मन की दूरियां भी लगातार बढ़ रही हैं। सामाजिक परिवर्तन में महिलाओं का आत्मनिर्भर होना जरूरी है, लेकिन देखने में आ रहा है कि आधी आबादी के बदलते सरोकारों से कोई दूसरा नहीं बल्कि उसका जीवनसंगी ही अधिक परेशानी महसूस करता है। टके भर का सवाल यह है कि यदि पति-पत्नी में ही सामंजस्य नहीं होगा तो भला परिवार टूटने से कैसे बचेंगे। हमारा नजरिया प्रगतिशील सोच का तो हो लेकिन उसमें अपनों का स्नेह समाहित होना जरूरी है।
रीभा तिवारी

आरक्षण का अंत कब?

जाट, मराठा और अब पटेलों की आरक्षण की चाह ने मुल्क को गहरी मुसीबत में डाल दिया है। इस बार आरक्षण की मांग उस गुजरात और उस पटेल समुदाय से उठी है जिसने अतीत में आरक्षण के खिलाफ बिगुल फूंका था। हमारे संविधान में आरक्षण  की व्यवस्था दलित-पिछड़े समाज के उत्थान के लिए की गई थी, लेकिन आज हर जाति-समुदाय से आरक्षण के लिए सड़कों पर उन्माद किया जा रहा है। गुजरात में जो कुछ हो रहा है, उसके लिए समूचे राजनीतिक तंत्र को कसूरवार ठहराना गलत न होगा। वैसे तो सेवायोजन, शिक्षा और विधायी संस्थाओं में लागू आरक्षण नीति की हर पांच साल में समीक्षा होनी चाहिए लेकिन आज स्थिति यह है कि यदि कोई इतना ही पूछ ले कि आखिर मुल्क से आरक्षण कब खत्म होगा, तो उसे तुरंत दलित विरोधी करार दिया जाता है।
देश में आरक्षण की आग लगे दो दशक बीत गये हैं। ऐसा कोई वर्ष नहीं जाता जब आरक्षण को लेकर संघर्ष न होता हो। आरक्षण के बवाल में गरीबों का भला तो नहीं होता,अलबत्ता मुल्क की अरबों की सम्पत्ति का नुकसान जरूर हो जाता है। पिछले कुछ वर्षों से मुल्क के विभिन्न क्षेत्रों से कुछ समुदाय अपने को अनुसूचित जाति या फिर पिछड़े वर्ग में शामिल करने को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। इनकी सामाजिक स्थिति पर गौर करें तो यह मांग आरक्षण की मूलभावना के पूर्णत: खिलाफ होने के बावजूद किसी राजनीतिक दल ने आज तक इसका प्रतिकार नहीं किया। अतीत में समाज के सबसे शोषित वर्ग को आगे बढ़ाने के लिए आरक्षण की व्यवस्था संविधान में की गयी थी। इसकी वजह सदियों से शोषित समुदाय को आरक्षण के जरिये समाज की मुख्यधारा में शामिल किया जाना था।
आज आरक्षण की मांग आर्थिक फायदे से जुड़ा ऐसा मसला बन गया है जिसके लिए कभी कोई भी समुदाय उठ खड़ा होता है। इसे विडम्बना कहें या राजनीतिक सोच का दिवालियापन कि जिस गुजरात में कभी आरक्षण के खिलाफ देश का पहला आंदोलन छिड़ा था, आज वही पटेल समुदाय अपने लाभ की खातिर आम जनजीवन तहस-नहस कर रहा है। आरक्षण मांगते लोग शासकीय सम्पत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं और निर्दोष लोगों की जानें जा रही हैं। गुजरात की आबादी में लगभग 20 फीसदी पटेल हैं। यह समाज खेती-किसानी, धन-दौलत से समृद्ध है। व्यापार और उद्योग में भी इस समाज का बोलबाला है। समूची दुनिया में बसे करीब 80 लाख अप्रवासी भारतीयों में पटेलों की संख्या सर्वाधिक है। गुजरात की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मजबूती में पटेलों का अमूल्य योगदान रहा है। पटेलों के रहमोकरम पर ही भारतीय जनता पार्टी गुजरात में डेढ़ दशक से लगातार सत्ता सुख भोग रही है।
गुजरात में पटेलों के आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व कर रहे युवा नेता हार्दिक पटेल को पता है कि वह तात्कालिक रूप से बेशक कमल दल का कोई अहित न कर सकें लेकिन जो मशाल लेकर वह चल निकले हैं उससे देर-सबेर भाजपा का नुकसान जरूर होगा। केन्द्र सरकार को चेताने के लिए ही हार्दिक पटेल ने आंदोलन की शुरुआत उस मेहसाना से की है जोकि सिर्फ मोदी ही नहीं बल्कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री आनंदी बेन का भी गृहक्षेत्र है। आनंदी बेन चाहकर भी पटेलों को कोई आश्वासन नहीं दे सकतीं क्योंकि संविधान ऐसे आरक्षण की अनुमति नहीं देता। गुजरात में जो कुछ हो रहा है उससे मोदी के आभामण्डल को फीका होता देख विपक्षी दल मन ही मन खुश तो हो रहे हैं लेकिन इस आंदोलन को समर्थन देने का जोखिम कोई भी दल उठाना नहीं चाहता।  इस आंदोलन के पीछे हार्दिक पटेल की दिली ख्वाहिश जो भी हो, पर स्वभाव से शांत रहने वाले गुजरातियों को जब तक सच्चाई का पता चलेगा तब तक हिंसा और आगजनी से सूबे का बड़ा नुकसान हो चुका होगा। गुजरात में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण के दायरे में फिलहाल 127 जातियां शामिल हैं।
समाज में रसूख का पर्याय पटेलों के इस आंदोलन को जाटों और मराठों की नकल कहना उचित होगा। प्रभावशाली समुदाय होते हुए भी जाट और मराठा भी पिछड़ों-दलितों का विशेषाधिकार हासिल करने को उत्पात मचा चुके हैं। राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय सामाजिक, आर्थिक रूप से काफी सम्पन्न है तो महाराष्ट्र में मराठा भी किसी मामले में कमजोर नहीं कहे जा सकते। गरीबी की जहां तक बात है, हर जाति-समुदाय में ऐसे लोग हैं जिन्हें सरकारी मदद की जरूरत है। मुल्क में आरक्षण का जो विषधर बार-बार फन फैला रहा है उसके लिए हमारी सरकारी नीातियां ही जिम्मेदार हैं। हमारी हुकूमतें राजनीतिक फायदे के लिए ही विभिन्न जातियों के आरक्षण की मांग को आजादी के बाद से लगातार हवा दे रही हैं जबकि भारतीय संविधान में इसकी व्यवस्था सिर्फ 10 साल के लिए ही की गयी थी। यदि आजादी के 10 साल बाद आरक्षण की समीक्षा की गई होती तो शायद हर जाति-सम्प्रदाय के लोग आज आरक्षण को लेकर सड़कों पर तमाशा नहीं कर रहे होते।
अगर आरक्षण के प्रावधानों को लेकर सख्त पाबंदी नहीं लगी तो इसका दायरा बढ़ता ही जायेगा। देखा जाये तो आज आरक्षण के मसले पर हर पार्टी और सरकार दबाव में है। सच्चाई यह है कि आज आरक्षण का विरोध वही समुदाय कर रहा है, जिसे लगता है कि उसके लिए सारे रास्ते बंद हैं। जिस जाति-समुदाय को थोड़ी भी उम्मीद दिखती है, वह आरक्षण के लिये कमर कस लेता है। सर्वोच्च न्यायालय यह स्पष्ट कर चुका है कि आरक्षण का कुल आंकड़ा 50 फीसदी से ऊपर नहीं जा सकता। यही कारण है कि पटेल समुदाय ओबीसी के दायरे में आरक्षण मांग रहा है, लेकिन यदि ऐसा हुआ तो ओबीसी में शामिल जातियां नाराज हो जायेंगी। जो भी हो इस आरक्षण के चक्रव्यूह को तोड़ने का रास्ता तो अब गुजरात सरकार को ही निकालना होगा। आंदोलन कोई भी हो उसका लाभ भोली-भाली जनता को कभी नहीं मिलता।

Tuesday 25 August 2015

एडोल्फ हिटलर ने ध्यान सिंह नहीं रूप सिंह की प्रशंसा की थी

कांग्रेस ने दी देश को खेल दिवस की सौगात
29 अगस्त, 1995 से किया जा रहा ध्यान सिंह को याद
आगरा। कांग्रेस ने बेशक भारत रत्न देने में कालजयी हॉकी खिलाड़ी ध्यान सिंह की अपेक्षा सचिन तेंदुलकर को


प्रमुखता दी हो लेकिन हॉकी के जादूगर के सम्मान में उसने कभी कोई कोताही नहीं बरती। ध्यान सिंह के जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किये जाने की घोषणा दिसम्बर 1994 में कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने की थी। 29 अगस्त, 1995 से देश में ध्यान सिंह के जन्मदिन को खेल दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। इसी दिन मुल्क के जांबाज खिलाड़ियों, प्रशिक्षकों और खेलों में योगदान देने वाली शख्सियतों को सम्मानित किया जाता है।
हॉकी के महान योद्धा ध्यान सिंह को अमरत्व प्रदान करने का सराहनीय प्रयास देश के किसी खिलाड़ी ने नहीं बल्कि झांसी के पूर्व सांसद और श्रीबैद्यनाथ आयुर्वेद समूह के संचालक पण्डित विश्वनाथ शर्मा ने किया था। श्री शर्मा ने 24 अगस्त, 1994 को लोकसभा में सरकार से ध्यान सिंह के जन्मदिन 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित करने का प्रश्न उठाया था। तब तत्कालीन खेल मंत्री मुकुल वासनिक ने प्रस्ताव का न केवल समर्थन किया था बल्कि भरोसा भी दिया था कि कांग्रेस यह पुनीत कार्य अवश्य करेगी। पण्डित विश्वनाथ शर्मा के प्रयास रंग लाये और दिसम्बर 1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस की न केवल घोषणा की बल्कि 29 अगस्त, 1995 को छह देशों की चैम्पियंस ट्राफी हॉकी प्रतियोगिता का आयोजन कराकर हॉकी के जादूगर के जन्मदिन को अविस्मरणीय बना दिया।
 यह सम्मान भारत रत्न से किसी भी मामले में कमतर नहीं कहा जा सकता। पहले ही खेल दिवस पर पण्डित विश्वनाथ शर्मा ने प्रधानमंत्री राव को ध्यान सिंह का विशाल चित्र भेंट कर दद्दा की धर्मपत्नी जानकी देवी के जीवन-यापन के लिए एक पेट्रोल पम्प की मांग भी की थी, जिसे स्वीकार करते हुए बाद में आवंटित कर दिया गया। भारत सरकार द्वारा जिस दिन से खिलाड़ियों को भारत रत्न देने की मंशा जताई गई उसी दिन से ध्यान सिंह को भारत रत्न दिये जाने की मांग की जा रही है। इस मांग के लिए दद्दा के पुत्र अशोक कुमार लगातार मुखर हैं, यह जानते हुए भी कि उनके चाचा कैप्टन रूप सिंह, जिनका हिटलर भी मुरीद था, को आज तक किसी सम्मान से नहीं नवाजा गया।
रूप सिंह तुम सा हॉकी योद्धा नहीं देखा: एडोल्फ हिटलर
एक लम्हा है, जो ठहर गया है। एक कोख के दो ध्रुव-तारों में एक के लिए भारत रत्न के लिए लड़ाई लड़ी जा रही, आंदोलन चलाये जा रहे हैं लेकिन दूसरे के सम्मान पर खेलप्रेमी गंूगे हैं। बात उस कैप्टन रूप सिंह की है, जिसे तानाशाही के प्रतिमान एडोल्फ हिटलर ने 15 अगस्त, 1936 को सिर आंखों पर बिठाया था। वह बर्लिन की शाम थी। हिटलर हॉकी के जादूगर ध्यान सिंह को सोने का तमगा पहना रहा था तो उसकी जुबां पर सिर्फ और सिर्फ रूप सिंह का नाम था। वह कह रहा था, रूप सिंह तुम विलक्षण हो, तुम सा सम्पूर्ण हॉकी योद्धा नहीं देखा। उस दिन ओलम्पिक के खिताबी मुकाबले में भारत ने जर्मनी का 8-1 से मानमर्दन किया था। उस मुकाबले में रूप सिंह ने चार और ध्यान सिंह ने तीन गोल किये थे। 1936 के ओलम्पिक में यद्यपि ध्यान सिंह और रूप सिंह ने 11-11 गोल किये थे लेकिन सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का सम्मान रूप सिंह को ही मिला था। 1932 के ओलम्पिक में भी यह दोनों भाई जमकर खेले और भारत को स्वर्ण मुकुट पहनाया, पर उस ओलम्पिक में भी 14 गोल करने के कारण रूप सिंह ही सर्वश्रेष्ठ रहे। लॉस एंजिल्स में खेले गये उस ओलम्पिक में भारत ने अमेरिका के खिलाफ 24-1 की जो धमाकेदार ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी उसमें रूप सिंह ने 12 और ध्यान सिंह ने सात गोल किये थे। भारतीय खेलप्रेमी और ध्यान सिंह का परिवार हॉकी मसीहा रूप सिंह को  बेशक भूल चुका हो पर जर्मनी हॉकी के हीरो को जन्म जन्मांतर तक याद रखने को संकल्पबद्ध है। 1972 में जर्मनी के म्यूनिख शहर में कैप्टन रूप सिंह मार्ग स्थापित किया जाना यही साबित करता है कि भारत ने हॉकी में कई ऐसे रत्न दिये हैं, जिन्हें भुला दिया गया है। ध्यान सिंह के अनुज रूप सिंह भी उन्हीं में से एक हैं।

भारत-श्रीलंका के मध्य ‘आॅक्सीजन कप-2015’ 20 सितम्बर से

पांच मैचों की सीरीज का पहला मैच 20 सितम्बर को आगरा में होगा
आगरा। भारत और श्रीलंका के शारीरिक रूप से विकलांग क्रिकेट खिलाड़ियों के बीच पांच मैचों की सीरीज वाले आॅक्सीजन कप 2015 का आयोजन 20 सितम्बर से किया जाएगा। सीरीज का पहला मुकाबला आगरा में खेला जायेगा।
डिसेबल्ड स्पोर्टिंग सोसाइटी के तत्वावधान में आयोजित पांच मैचों की सीरीज का पहला मैच 20 को आगरा में, दूसरा 21 को फिरोजाबाद में, तीसरा 22 को  इटावा में, चौथा  25 को रांची में और अंतिम व पांचवां मैच 28 को पूना में खेला जाएगा। यह जानकारी बाइपास रोड स्थित एक हॉस्पिटल में आयोजित वार्ता में समाजसेवी जितेन्द्र चौहान ने दी।
 चौहान ने बताया कि यह नि:शक्त खिलाड़ियों के हौसले और जज्बे की शानदार जंग है। उन्होंने श्रीलंका के खिलाड़ियों की तारीफ करते हुए कहा कि  श्रीलंका के लगभग सभी खिलाड़ियों का एक-एक पैर बम से उड़ा हुआ है उसके बावजूद वह आम खिलाड़ियों की तरह खेलते हैं ।  एक-एक रन बचाने को लम्बी डाइव लगाकर विपक्षी टीम के रनों की रफ्तार को रोकते हैं। वह बड़ा भावुक क्षण होता है जब दौड़ते समय खिलाड़ी का कृत्रिम पैर निकल जाता है उसका दूसरा साथी जल्दी से पुन: पैर को लगाता है और खिलाड़ी फिर पूरे जोश के साथ फील्डिंग को तैयार हो जाता है।  डिसेबल्ड स्पोर्टिंग के चेयरमैन अर्जुन सिंह लोधी ने बताया आगरा में होने वाले मैच के लिए मैदान का चुनाव किया जा रहा है। इस बार यह मैच ऐसे मैदान पर कराने का प्रयास है जिस जगह अधिक से अधिक संख्या में दर्शक मैच देखने आएं।
अलग-अलग खिलाड़ी को मिलेगा कप्तानी का मौका
सीरीज की आयोजन सचिव सारिका शर्मा ने बताया की इस बार खिलाड़ियों को सम्मान स्वरूप अलग -अलग मैचों की कप्तानी का अवसर दिया जाएगा।  आगरा में होने वाले पहले मैच की कप्तानी चंडीगढ़ निवासी लखबिंदर सिंह, फीरोजाबाद में खेले जाने वाले दूसरे मैच की कप्तानी जौनपुर निवासी वरिष्ठ खिलाड़ी आशीष श्रीवास्तव, तीसरे मैच की कप्तानी की बागडोर रविंदर पाल को सौंपी गयी है। चौथे मैच की कप्तानी रांची निवासी मुकेश कंचन करेंगे जबकि  अंतिम व पांचवें मैच की कप्तानी का जिम्मा पूना निवासी राजू मुझावर को सौंपा गया है। इस अवसर पर भारतीय टीम के कप्तान रविंदर पाल,  करन कौशल, लखबिंदर सिंह, मुकेश कंचन, मलकीत सिंह, कैलाश प्रसाद, प्रवीण सिकरवार, सरिता और दीपक काम्बोज आदि मौजूद रहे।
पाकिस्तान के साथ सीरीज रद्द    
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कौंसिल फॉर फिजिकली चैलेंज्ड के उपाध्यक्ष एवं डिसेबल्ड स्पोर्टिंग सोसाइटी के जनरल सेक्रेटरी हारुन रशीद ने बताया पाकिस्तान के साथ खेलने की तैयारी कर ली गयी थी लेकिन गुरदासपुर में हुए आतंकवादी हमले के विरोध में पाकिस्तानी टीम का आमंत्रण रद्द कर दिया गया।  श्रृंखला रद्द होने से दोनों  ही देशों के खिलाड़ियों के मनोबल पर गहरा असर पड़ा है ।
आॅक्सीजन की जर्सी में नजर आएगी भारतीय टीम
 आॅक्सीजन ग्रुप के जोनल हेड श्वेतांक पाठक ने बताया भारतीय विकलांग टीम अब आॅक्सीजन की जर्सी में नजर आएगी। आॅक्सीजन ग्रुप द्वारा दक्षिण अफ्रीका की क्रिकेट टीम को स्पांसर किया जाता है।  ग्रुप को जब शारीरिक रूप से विकलांग क्रिकेट खिलाड़ियों की भारतीय विकलांग क्रिकेट टीम के बारे में पता चला तो आॅक्सीजन ग्रुप के मैनेजिंग डाइरेक्टर राजपाल दुग्गल ने भारतीय विकलांग क्रिकेट टीम के सहयोगी के रूप में जुड़ने का फैसला किया। 

Monday 24 August 2015

राजनीति कभी नहीं: संगकारा

'अभी एक-डेढ़ साल और खेल सकता था, लेकिन...'
कोलंबो टेस्ट श्रीलंका के कुमार संगकारा का आखिरी टेस्ट था। संगा इस टेस्ट की दोनों पारियों में कुछ खास नहीं कर सके, लेकिन दुनिया इस बाएं हाथ के बल्लेबाज को जीनियस क्रिकेटर के तौर पर याद करती रहेगी। अपने रिटायरमेंट पर कुमार संगकारा का कहना है कि क्रिकेट ने मेरे जीवन में अहम भूमिका निभाई है, लेकिन जीवन के कुछ दूसरे पहलू भी होते हैं, इन्हें भी जीना होता है। जब रिटायरमेंट के बारे में सोचते हैं और इसकी तरफ बढ़ते हैं तो कुछ राहत तो मिलती है, लेकिन साथ में दुख भी होता है।
आप टॉप पर भी रिटायरमेंट ले सकते हैं। मैं एक-डेढ़ साल तक और अच्छा खेल सकता हूँ, लेकिन जब आप 38 साल की तरफ बढ़ रहे होते हैं तो अंदर से एक आवाज आती है कि बस बहुत हुआ। मैं विश्व कप के बाद ही रिटायर हो जाना चाहता था, लेकिन फिर इसे चार टेस्ट मैच के लिए आगे खिसका दिया। मुझे इस फैसले को लेकर कोई दुविधा नहीं है। मेरे पिता ने मुझसे कुछ साल पहले पूछा था कि तुम रिटायरमेंट के बारे में क्यों नहीं सोच रहे हो। तब मुझे हैरानी हुई थी, क्योंकि मैं अच्छा खेल रहा था। लेकिन फिर जब मैंने इस पर सोचा तो मुझे अहसास हुआ कि उनका सवाल तर्कसंगत था।
मैं मानता हूँ कि श्रीलंका क्रिकेट बहुत अच्छी तरह से चलेगी। मैं ही क्या मुरली, महेला, वास, अरविंद डीसिल्वा और कई अन्य खिलाड़ी आए और गए। ऐसा हमारे साथ ही नहीं है बल्कि दूसरे देशों के साथ भी होता है। श्रीलंका में कई प्रतिभावान क्रिकेटर हैं। इन खिलाड़ियों को अपनी भूमिका का मजा लेना चाहिए और जिÞम्मेदारी से खेलना चाहिए।
राजनीति पर पूछे सवाल पर कुमार संगकारा ने कहा राजनीति में तो नहीं जाऊँगा, इतना तय है। मैं उनमें से हूँ जो राजनीति के बारे में बात तो करते हैं, लेकिन इसमें उतरते नहीं हैं। मुझे क्रिकेट को कुछ लौटाने में दिलचस्पी है, फिर चाहे वो कोचिंग हो, प्रशासनिक रूप में या कमेंट्री। अभी सोचूँगा, फिर तय करूँगा। सबसे पहले तो मैं अपने परिवार और माता-पिता के साथ अधिक से अधिक समय गुजारना चाहता हूं। बैठकर सोचूँगा कि क्या किया जा सकता है। संगकारा ने कहा कि क्रिकेट के विकास के लिए जरूरी है कि छोटे देशों को बड़ा मंच दिया जाए। युवा खिलाड़ी इससे बहुत प्रभावित होते हैं कि उनकी टीम विश्व मंच पर कैसा प्रदर्शन कर रही है। टूर्नामेंट में सिर्फ नई टीमों को भरने से काम नहीं चलेगा, लेकिन अफगानिस्तान, आयरलैंड की टीमों को देखिए, उन्होंने विश्व कप में कितना शानदार प्रदर्शन किया। संगकारा ने कहा कि मेरी माहेला के साथ बेहतरीन समझदारी थी। उसकी वजह ये थी कि एक तो हम दोनों की उम्र लगभग एक है। जब मैं टीम में आया तब वो उप कप्तान थे। कुमार संगकारा ने कहा कि रिकॉर्ड के बारे में सुनना अच्छा लगता है, संतुष्टि मिलती है। आप उम्मीद करते हैं कि आपकी टीम का ही कोई खिलाड़ी आगे चलकर इन्हें तोड़े। लेकिन इससे बड़ी बात है कि हमने कितना अच्छा समय ड्रेसिंग रूम में गुजारा, टीम के अच्छे और बुरे दौर को देखा।
रिकार्डों में याद रहेंगे संगकारा
श्रीलंका के महान बल्लेबाज कुमार संगकारा ने क्रिकेट को अलविदा कह दिया है। अब वो मैदान पर तो नजर नहीं आयेंगे, लेकिन रिकार्डों में वह हमेशा लोगों के जेहन में रहेंगे। उन्होंने अपने 15 साल के लम्बे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कैरियर में कई रिकार्ड अपने नाम किये हैं। श्रीलंका ही नहीं बल्कि दुनिया के महान क्रिकेटरों में संगकारा हमेशा याद किये जाएंगे। श्रीलंका के इस चहेते सपूत की क्रिकेट से विदाई हालांकि जीत के साथ नहीं हुई। भारत के साथ खेले गये टेस्ट श्रृंखला के दूसरे मैच में संगकारा अपनी टीम को जीत नहीं दिला पाये और श्रीलंका की टीम 278 रनों से हार गयी। जीत के साथ संगकारा की विदाई नहीं हो सकी लेकिन उनकी उपलब्धियां हमेशा याद रहेंगी।
संगकारा के क्रिकेट कैरियर पर एक नजर
 * संगकारा ने 2000 में टेस्ट क्रिकेट और वनडे क्रिकेट दोनों में एक साथ कदम रखा। संगकारा ने जहां 20 जुलाई 2000 को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू किया वहीं 5 जुलाई, 2000 को पाकिस्तान के खिलाफ वनडे क्रिकेट में डेब्यू किया।
 * संगकारा ने अपने कैरियर में 134 टेस्ट और 404 वनडे मैच खेले।
 * 404 वनडे मैच में संगकारा ने 25 शतक और 93 अर्धशतक के साथ कुल 14234 रन बनाये वहीं 134 टेस्ट मैच में संगा ने 38 शतक और 52 अर्धशतक के दम पर 12400 रन बनाये।
 * संगकारा का टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक स्कोर 319 रन और वनडे में 169 रन है।
 * संगकारा वनडे में सबसे अधिक रन बनाने वाले दुनिया के दूसरे खिलाड़ी हैं। भारत के महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने वनडे में सबसे अधिक रन बनाये हैं। संगकारा केवल सचिन से पीछे हैं। सचिन ने 463 वनडे मैच में 18426 रन बनाये हैं, जबकि संगकारा ने 404 वनडे मैच में 14234 रन बनाये हैं।
 * संगकारा अच्छे बल्लेबाज के साथ-साथ दुनिया के बेहतरीन विकेटकीपर भी थे। संगकारा ने विकेट के पीछे 182 कैच और 20 स्टम्प किये हैं।
 * संगकारा टेस्ट क्रिकेट में दोहरा शतक जमाने वाले दुनिया के दूसरे खिलाड़ी हैं। संगकारा इस मामले में केवल आॅस्ट्रेलिया के महान बल्लेबाज सर डॉन ब्रेडमैन से पीछे हैं। संगकारा ने टेस्ट क्रिकेट में 11 दोहरे शतक जमाये, जबकि ब्रेडमैन के नाम 12 दोहरे शतक हैं।
 * जिस भारत के खिलाफ संगकारा ने अपना अंतिम टेस्ट मैच खेला उसी भारतीय टीम के खिलाफ उन्होंने अपना पहला टेस्ट शतक जमाया था। संगकारा ने 2001 में भारत के खिलाफ गॉले में 105 रनों की पारी खेली थी।
 * कुमार संगकारा को क्रिकेट में कई सम्मान मिले हैं। उन्हें 2012 में तीन-तीन आईसीसी पुरस्कार मिले। उन्हें साल का सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर, साल का बेस्ट टेस्ट क्रिकेटर और पीपुल्स च्वॉइस आॅफ द ईयर चुना गया था।
 * संगकारा ने टेस्ट और वनडे के अलावा 56 टी-20 मैच भी खेले। जिसमें उन्होंने आठ पचासे की मदद से 1382 रन बनाये।
 * संगकारा के नाम सबसे लम्बी साझेदारी का है रिकार्ड। संगकारा और श्रीलंका के महान बल्लेबाज माहेला जयवर्धने ने 2006 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ तीसरे विकेट के लिए रिकार्ड 624 रन की साझेदारी की थी। यह साझेदारी टेस्ट क्रिकेट में मील का पत्थर साबित हुई। 

वाराणसी ने जीता बालिका जूनियर कबड्डी का खिताब

रोमांचकारी फाइनल मैच में सहारनपुर को 21-20 से हराया
आगरा। खेल निदेशालय उत्तर प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश कबड्डी संघ के संयुक्त तत्वावधान में एकलव्य स्पोर्ट्स स्टेडियम में खेली गई प्रदेशीय समन्वय जूनियर बालिका कबड्डी प्रतियोगिता वाराणसी के बेटियों ने जीत ली। तीन दिन तक चली प्रतियोगिता का खिताबी मुकाबला 23 अगस्त को खेला गया जिसमें वाराणसी ने सहारनपुर मंडल को पराजित किया।
रविवार को प्रतियोगिता का पहला क्वार्टर फाइनल मैच सहारनपुर और  मेरठ के बीच  खेला गया। इस मैच में सहारनपुर ने मेरठ को 31-14 के अंकों से परास्त कर सेमीफाइनल में प्रवेश  किया। अगला क्वार्टर फाइनल  गोरखपुर और वाराणसी के मध्य खेला गया, जिसमें वाराणसी ने 40-18 से गोरखपुर पर विजय प्राप्त कर सेमीफाइनल में प्रवेश  किया। तीसरा क्वार्टर फाइनल आगरा और  झांसी के मध्य खेला गया।  मैच में आगरा ने झांसी को 23-01 अंक से पराजित कर सेमीफाइनल में जगह बनाई। अंतिम क्वार्टर फाइनल  इलाहाबाद और  कानपुर के मध्य खेला गया।  जिसमें इलाहाबाद ने कानपुर को 38-13 के अंकों से परास्त कर सेमीफाइनल में प्रवेश किया।
 प्रतियोगिता का पहला  सेमीफाइनल आगरा और सहारनपुर  के मध्य खेला गया। जिसमें सहारनपुर ने आगरा को 52-21 से हराकर फाइनल में प्रवेश किया। दूसरा सेमीफाइनल वाराणसी और इलाहाबाद के मध्य खेला गया।  मैच में वाराणसी ने इलाहाबाद को 24-08 से हराकर फाइनल में जगह बनाई। रोमांचकारी फाइनल मैच  में वाराणसी ने सहारनपुर को 21-20 से शिकस्त देकर प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिता का विजेता होने का गौरव हासिल किया। निर्णायक मंडल में राजेश कुमार सिंह, प्रेमप्रकाश चौरसिया, बीबी खान, पीके पाण्डेय, सुरेन्द्र सिंह, रामपाल और प्रेम सिंह यादव शामिल रहे। प्रतियोगिता की  विजेता-उपविजेता टीमों व निर्णायकों को मुख्य अतिथि पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर एवं भारतीय महिला क्रिकेट टीम की चयनकर्ता हेमलता काला ने पुरस्कृत किया। आरएसओ चंचल मिश्रा ने मुख्य अतिथि का बुके भेंट कर स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन उप क्रीड़ाधिकारी राहुल चोपड़ा ने किया। इस अवसर पर सुशील कुमार वार्ष्णेय, एसएस चौहान, अरविंद यादव, केसी श्रीवास्तव, प्रमिला भारती, अमिताभ गौतम सहित स्टेडियम के अनेक प्रशिक्षक व खेलप्रेमी मौजूद रहे। 

खेलों में अब 10 सम्भाग!


मध्यप्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग की चाह, अधिक से अधिक खिलाड़ी दिखाएं कमाल
खेलपथ विशेष
ग्वालियर। खेल एवं युवा कल्याण विभाग मध्यप्रदेश ने प्रदेश के अधिक से अधिक खिलाड़ियों को खेलों में प्रतिनिधित्व देने की खातिर अब 10 सम्भागों के सृजन का निर्णय लिया है। इससे पूर्व मध्यप्रदेश में सात सम्भाग अस्तित्व में थे।
खेल एवं युवा कल्याण विभाग मध्यप्रदेश प्रतिवर्ष युवा कल्याण की गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए ग्रामीण खेल, महिला खेल, युवा अभियान, युवा उत्सव आदि के आयोजन ब्लॉक, जिला, सम्भाग और राज्य स्तर पर करता रहा है। अभी तक खेल विभाग द्वारा प्रदेश के सात सम्भागों ग्वालियर, सागर, रीवा, जबलपुर, उज्जैन, इंदौर और भोपाल में खेल गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाता रहा है। इस व्यवस्था के चलते कई जिलों के खिलाड़ी सम्भाग और राज्य स्तर पर खेलने से वंचित रह जाते थे। इस समस्या के दृष्टिगत खेल एवं युवा कल्याण विभाग मध्यप्रदेश ने शासकीय पत्र क्रमांक-8361, दिनांक 20-10-2014 को सभी सम्भागायुक्तों, जिला कलेक्टरों, पुलिस अधीक्षकों तथा समस्त जिला खेल एवं युवा कल्याण अधिकारियों को प्रदेश में खेल गतिविधियों के विकास एवं विस्तार के लिए 10 खेल सम्भागों के सृजन का पत्र प्रेषित किया है।
नई व्यवस्था से पहले होशंगाबाद-भोपाल और ग्वालियर-चम्बल सम्भागों को एक-एक सम्भाग ही माना जाता रहा है। इतना ही नहीं गत वर्षों में नया सम्भाग बनाए गये शहडोल सम्भाग को भी पृथक न मानते हुए रीवा सम्भाग के अधीन ही शुमार किया जाता रहा। प्रदेश में प्रचलित इस व्यवस्था के चलते छोटे जिले भिण्ड, श्योपुर, हरदा, बैतूल, शहडोल, डिण्डौरी, उमरिया आदि के खिलाड़ी सम्भाग स्तर पर पिछड़ जाते थे और अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन राज्यस्तर पर नहीं कर पाते थे। इस समस्या से खिलाड़ियों को निजात दिलाने के लिए खेल एवं युवा कल्याण विभाग मध्यप्रदेश ने वर्ष 2014-15 से प्रदेश में 10 सम्भागों के सृजन का निर्णय लिया है। विभाग के इस प्रयास से अब अधिक से अधिक खिलाड़ी प्रदेश स्तर पर अपना खेल-कौशल दिखा सकेंगे। संचालक खेल उपेन्द्र जैन ने अपने पत्र के माध्यम से यह जानकारी सभी जिले के आलाधिकारियों को कर दी है। खेल एवं युवा कल्याण विभाग मध्यप्रदेश के इस निर्णय की खिलाड़ियों ने सराहना करते हुए खुशी जाहिर की है।
शिवपुरी होगा चम्बल सम्भाग का मुख्यालय
ग्वालियर-चम्बल सम्भाग में अब चम्बल सम्भाग के अस्तित्व में आने के बाद लोगों में इस बात की चर्चा है कि चम्बल का मुख्यालय मुरैना होगा या फिर शिवपुरी? भरोसेमंद सूत्रों की कही सच मानें तो खेल विभाग चम्बल सम्भाग का मुख्यालय शिवपुरी करने जा रहा है। इसके पीछे वजह शिवपुरी में शानदार खेल अधोसंरचना के साथ ही जिला खेल अधिकारी का होना है। दरअसल मुरैना में प्रतिभाएं तो हैं लेकिन यहां लम्बे समय से खेल अधिकारी नहीं होने से खेल गतिविधियों को पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है। जो भी हो शिवपुरी को मुख्यालय बनाना शायद ही नेतानगरी को रास आए।
पूर्व की व्यवस्था
सम्भाग का नाम सम्भाग में आने वाले जिले
1- ग्वालियर ग्वालियर, श्योपुर, मुरैना, भिण्ड, शिवपुरी, गुना, अशोक नगर, दतिया।
2- सागर सागर, दमोह, छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़।
3- रीवा  रीवा, सिंगरौली, सीधी, सतना, उमरिया, शहडोल, अनूपपुर।
4- जबलपुर जबलपुर, कटनी, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, सिवनी, मण्डला, बालाघाट, डिण्डौरी।
5- उज्जैन उज्जैन, देवास, रतलाम, शाजापुर, मंदसौर, नीमच, आगर।
6- इंदौर इंदौर, धार, अलीराजपुर, झाबुआ, खरगौन, बड़वानी, खण्डवा, बुरहानपुर।
7- भोपाल भोपाल, सीहोर, रायसेन, राजगढ़, विदिशा, बैतूल, होशांगाबाद, हरदा।
...........................................................
वर्तमान व्यवस्था
सम्भाग का नाम सम्भाग में आने वाले जिले
1- ग्वालियर ग्वालियर, गुना, अशोकनगर, दतिया
2- चम्बल श्योपुर, मुरैना, भिण्ड, शिवपुरी।
3- सागर सागर, दमोह, छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़।
4- रीवा रीवा, सिंगरौली, सीधी, सतना।
5- शहडोल शहडोल, उमरिया, अनूपपुर, डिण्डौरी।
6- जबलपुर जबलपुर, कटनी, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, सिवनी, मण्डला, बालाघाट।
7- उज्जैन उज्जैन, देवास, रतलाम, शाजापुर, मंदसौर, नीमच, आगर।
8- इंदौर इंदौर, धार, अलीराजपुर, झाबुआ, खरगौन, बड़वानी, खण्डवा, बुरहानपुर।
9- भोपाल भोपाल, सीहोर, राजगढ़, विदिशा।
10- नर्मदा बैतूल, होशंगाबाद, हरदा, रायसेन। 

दद्दा ध्यानचंद: न भूतो, न भविष्यति


ओलम्पिक के आठ स्वर्ण और एक विश्व खिताब का मदमाता गर्व हर भारतीय को कालजयी दद्दा ध्यानचंद की याद दिलाता है। नपे-तुले पास, चीते सी चपलता, दोषरहित ट्रेपिंग, उच्च स्तर का गेंद नियंत्रण और सटीक गोलंदाजी हॉकी के मूल मंत्र हैं, दद्दा ध्यानचंद की हॉकी भी मैदान में प्रतिद्वंद्वी को कुछ यही पाठ पढ़ाती थी। 29 अगस्त, 1905 को परतंत्र भारत के प्रयाग नगर में एक तंगहाल गली में सोमेश्वर दत्त सिंह के घर जन्मे ध्यानचंद अब इतिहास के पन्नों में दफन हैं, पर उनका असाधारण खेल कौशल आज भी जिन्दा है।
बचपन में पहलवानी का शौक रखने वाले दद्दा की हॉकी प्रतिभा के असल पारखी सूबेदार मेजर बाले तिवारी रहे। पिता सोमेश्वर सिंह और बड़े भाई मूलचंद के सेना में होने के चलते दद्दा ने 16 साल की उम्र में ही वर्ष 1922 में फर्स्ट ब्राह्मण रेजीमेंट में एक सिपाही से अपनी नौकरी प्रारम्भ की। सेना में बाले तिवारी ने न केवल दद्दा ध्यानचंद की छुपी खेल प्रतिभा को पहचाना बल्कि हॉकी के प्रारम्भिक गुर भी सिखाए। तिवारी की देख-रेख में कुछ समय में ही दद्दा की हॉकी में ऐसी तूती बोली कि दुनिया वाह-वाह कर उठी। दद्दा ध्यानचंद की हॉकी जब परवान चढ़ी तब भारत आजाद नहीं  था। तब हॉकी में ही एकाध लम्हे ऐसे आते थे, जब गुलाम भारत को गर्व और गौरव का अहसास होता था। इन्हीं लम्हों के बीच महसूस होता था कि इस मुल्क से जो सोने की चिड़िया उड़ गई है वह कभी-कभार भारतीय हॉकी के ऊपर आ बैठती है। समय बदल चुका है अब देश आजाद है पर हमारी हॉकी गुलाम हो चुकी है। अब हमारे पास कोई हॉकी का जादूगर नहीं है। एक लम्हा बर्लिन ओलम्पिक 1936 का, जब हिटलर का जलजला था लेकिन तब भी हॉकी में भारतीय बादशाहत का ही डंका पिटता था।  15 अगस्त, 1936 को बर्लिन ओलम्पिक हॉकी का खिताबी मुकाबला देखने तानाशाह हिटलर मैदान में आया था। हिटलर मैदान में इसलिए आया था कि जर्मनी जीतेगी और वह अपने खिलाड़ियों को सोने से मढ़ देगा लेकिन जादूगर दद्दा ध्यानचंद ब्रिगेड ने जर्मनी को 8-1 से ध्वस्त कर उसका गुरूर चूर-चूर कर दिया।
पराजय से स्तब्ध जर्मन जहां हिटलर के न्याय को ताक रहा था वहीं तानाशाह उमंगित था तो बस जादूगर की जादूगरी से। वाकई उस दिन दो भाइयों (ध्यान और रूप) की जोड़ी ने ही जर्मनी का मानमर्दन किया था। उस दिन दोनों भाइयों को हिटलर ने जर्मनी से खेलने का आमंत्रण भी दिया पर ध्यानचंद ने उसका टका सा जवाब दिया कि मुझे हॉकी से भी अधिक अपने देश और उसकी मिट्टी से प्यार है। यदि हॉकी खेलूंगा तो सिर्फ अपने वतन के लिए। हालांकि तब भारत ने कोई नई जमीन नहीं तोड़ी थी, इससे पूर्व एक्सटर्डम (1928) और लॉस एंजिल्स (1932) में भारत हॉकी का स्वर्ण तमगा गले लगा चुका था, फिर भी खुशी थी तो बस इसलिए कि परतंत्र भारत की स्वतंत्र हॉकी ने जहां लगातार तीसरी बार दुनिया जीती वहीं दद्दा ध्यानचंद ने भी तीन ओलम्पिक मजमों में बडेÞ ही शान से 33 गोलों का अद्भुत कीर्तिमान बना डाला।
उस बर्लिन की शाम को जब भारतीय तिरंगा फहराया गया तब वह 15 अगस्त की शाम थी। यह तिथि आज भी भारतीय गौरवगाथा और उसकी स्वतंत्रता का सूचक है। समय ठहर गया। दूसरे विश्व युद्ध की प्रतिछाया के चलते दुनिया ओलम्पिक में फिर जादूगर की जादूगरी नहीं देख सकी। भारत को हॉकी में अपनी चौथी फतह के लिए 12 वर्ष लम्बा इंतजार करना पड़ा। सच तो यह है कि दद्दा की दमदार हॉकी से ही पूरबी जादू और जादूगर जैसे विशेषण निकले। समय और उम्र कुदरत की नियामत है। समय बदला भारतीय परतंत्रता की बेढ़ियां कटीं लेकिन तब तक दद्दा बूढेÞ हो चुके थे और उन्होंने भी खेलभावना के साथ 1949 में प्रथम श्रेणी हॉकी को विश्राम दे दिया। देश आजाद हुआ पर दुनिया पर राज करने वाली हमारी हॉकी भारत-पाकिस्तान के बीच बंट गई। भारतीय हॉकी ने ओलम्पिक में चैम्पियन बने रहने का सिलसिला तो कायम रखा पर उसकी जादूगरी वाली बात फिर नजर नहीं आई। किशनलाल ने आजाद भारतीय हॉकी की कमान सम्भाली और भारत पहली बार ध्यानचंद के बिना भी जीता लेकिन दद्दा के शून्य की कमी कभी नहीं भरी जा सकी। हॉकी के चक्रवर्ती अभियान में पद्मभूषण दद्दा ने जर्मनी, स्पेन, मलेशिया, अमेरिका, इंग्लैण्ड, डेनमार्क आदि मुल्कों के साथ 133 मैच खेलकर जहां 307 गोल किए वहीं न्यूजीलैण्ड दौरे पर गई टीम की तरफ से मेजर ध्यानचंद ने 43 मैचों में ही 201 बार गोलंदाजी कर दुनिया को चकाचौंध कर दिया था।
लगभग ढाई दशक तक भारतीय हॉकी को अपने कंधों का सहारा देकर दद्दा ध्यानचंद तो अमर हो गए पर भारत से हॉकी की बादशाहत छिन गई। उम्मीद है कि मरती नहीं, हॉकी टीम के प्रदर्शन पर लोग चाहे लाख उंगलियां उठाएं लेकिन किसी खेल मजमे से पूर्व मन के किसी कोने में अपने पुराने चावल होने का भाव आज भी जिन्दा रहता है। दद्दा ध्यानचंद तीन दिसम्बर, 1979 को हमारे बीच से जुदा हो गए लेकिन उनकी हॉकी आज भी भारतीय हृदय को उन्मादित करती है। आज दद्दा ध्यानचंद के जन्मदिन पर एक बार पुन: भारतीय हॉकी का अतीत उनकी अमरता में खोजना पडेÞगा।

प्रो. कबड्डी लीग: यू मुम्बा बनी चैम्पियन

मुंबई। यू मुम्बा की टीम ने पिछली बार की कसक को पूरा करते हुये स्टार स्पोर्ट्स प्रो कबड्डी लीग के दूसरे संस्करण के फाइनल में बेंगलुरू बुल्स को 36-30 से हराकर खिताब अपने नाम कर लिया।



उतार-चढ़ाव से भरे इस रोमांचक मुकाबले में मुंबई की टीम ने बेंगलुरू को आखिरकार हराते हुये चैम्पियन का दर्जा हासिल कर लिया। टीम ने रैड से 17 और डिफेंस से 14 अंक बटोरे। मुंबई की तरफ से शबीर बापू ने सर्वाधिक दस और कप्तान अनूप कुमार ने सात अंक हासिल किये। वहीं बेंगलुरू ने रैड से 18 और डिफेंस से दस अंक जुटाये। टीम की तरफ से कप्तान मनजीत छिल्लर ने शानदार प्रदर्शन करते हुये 11 अंक और धर्मराज चेरालाथन ने चार अंक हासिल किये। हाफ टाइम तक मुंबई ने 13-7 की बढ़त हासिल कर ली थी। इसके बाद बेंगलुरू ने वापसी की शानदार कोशिश करते हुये मुकाबले में वापसी की भरपूर कोशिश की और 34वें मिनट तक टीम ने 23-23 की बराबरी भी हासिल कर ली थी। लेकिन अंतिम समय में बेहतरीन खेल का प्रदर्शन करते हुये मुंबई की टीम ने मैच को अपने पाले में खींच लिया।
इससे पहले तेलुगू टाइटंस ने पटना पाइरेट्स को 34-26 से पराजित कर टूर्नामेंट में तीसरा स्थान हासिल कर लिया। तेलुगू टाइटंस को तीसरे स्थान पर रहने के लिये 30 लाख रुपये की पुरस्कार राशि हासिल हुयी जबकि चौथे स्थान पर रहे पटना पाइरेट्स को 20 लाख रुपये मिले। टाइटंस ने रेड से 19 अंक जुटाकर तीसरा स्थान अपने नाम किया। पटना को रैड से 15 अंक मिले। डिफेंस में टाइटंस को सात और पटना को 10 अंक मिले। टाइटंस के लिये राहुल चौधरी ने सर्वाधिक 11 अंक, प्रशांत राय ने छह अंक और दीपक हुड्डा ने पांच अंक जुटाये। पटना के लिये कप्तान संदीप नरवाल ने 11 और सुनील कुमार ने छह अंक जुटाये। 

हे भगवान! कैसा सम्मान

भारतीय स्वतंत्रता के पावन मास की 29 तारीख हर खिलाड़ी के लिए खास होती है। इस दिन उन खिलाड़ियों के पराक्रम का सम्मान होता है जो अपने खेल कौशल से अपने जिले, प्रदेश और मादरेवतन की शान बढ़ाते हैं। खिलाड़ी का सम्मान अच्छी बात है, पर खिलाड़ी के एक दिन के सम्मान का अभिमान पालने से पहले हमें यह सोचने की भी दरकार है कि आखिर अपने वतन को गौरवान्वित करने वाले इन जांबाजों के साथ हर दिन क्या सलूक होता है?
भारत में हॉकी के कालजयी दद्दा ध्यानचंद के जन्मदिन को खेल दिवस के रूप में मनाते 20 साल हो गये हैं। खिलाड़ियों के सम्मान की यह तारीख हर साल कुछ सवाल छोड़ जाती है, जिनका निदान होना चाहिए, पर नहीं होता। फिलवक्त भारत के दिल दिल्ली से लेकर मुल्क के हर कोने तक पराक्रमी खिलाड़ियों की खोज-खबर ली जा रही है। दिल्ली में खेल सम्मान चयन समिति ने देश के खेल रत्न सानिया मिर्जा सहित 16 अर्जुनों पर अपनी सहमति की मुहर लगा दी है। देखा जाये तो खिलाड़ियों के सम्मान में हमेशा भेदभाव होता है। आजादी के बाद से ही भारत में खेल संस्कृति के उन्नयन की बजाय अपने मातहतों को उपकृत करने का घिनौना खेल चलता रहा है।
भारत ने आजादी के बाद बेशक तरक्की के नये आयाम स्थापित किए हों पर खेलों के लिहाज से देखें तो मुल्क को अपयश के अलावा कुछ भी नसीब नहीं हुआ। सट्टेबाजी और डोपिंग जैसे कुलक्षण आजाद भारत में ही पल्लवित और पोषित हुए हैं। पिछले पांच-छह साल में देश के पांच सौ से अधिक खिलाड़ियों का डोपिंग में दोषी पाया जाना चिन्ता की ही बात है। अफसोस डोपिंग का यह कारोबार भारत सरकार की मदद से चल रहे साई सेण्टरों के आसपास धड़ल्ले से हो रहा है। खेलों में जब तब आर्थिक तंगहाली का रोना रोया जाता है जबकि केन्द्र सरकार प्रतिवर्ष अरबों रुपये  खेल-खिलाड़ियों के नाम पर निसार कर रही है। सच तो यह है कि आजाद भारत में खेल पैसे के अभाव में नहीं बल्कि लोगों की सोच में खोट के चलते दम तोड़ रहे हैं। आज मुल्क तो आजाद है पर भारतीय खिलाड़ी परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। वह उनका हुक्म मानने को मजबूर है जोकि खिलाड़ी न होते हुए भी सब कुछ हैं।
खेलों में हमारा लचर प्रदर्शन सवा अरब आबादी को मुंह चिढ़ाता है तो दूसरी तरफ खेल तंत्र बड़े-बड़े आयोजनों के लिए अंतरराष्ट्रीय खेल संघों के सामने मिन्नतें करता है। आज मुल्क का खिलाड़ी अंधकूप में है, उसके साथ इंसाफ नहीं हो रहा। खिलाड़ी सम्मान के नाम पर फरेब चरम पर है। हर साल की तरह इस साल भी कई खिलाड़ी सम्मान न मिलने से आहत-मर्माहत हैं। खिलाड़ियों के सम्मान से इतर दद्दा ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग भी हुई लेकिन पूर्ववर्ती सरकारों के ही नक्शेकदम पर चलते हुए मोदी सरकार ने भी कालजयी से आंखें फेर लीं। देखा जाये तो सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न मिलते ही कालजयी हॉकी महानायक मेजर ध्यानचंद लोगों की चिरस्मृतियों में पुन: जीवंत हो उठे हैं। हर खिलाड़ी चाहता है कि दद्दा को देश का सर्वोच्च सम्मान मिले क्योंकि गुलाम भारत में हॉकी का गौरव उनकी जादूगरी से ही सम्भव हो सका। कुछ इस तरह जैसे क्रिकेट में सचिन तेंदुलकर के अभ्युदय से आजाद भारत ने महसूस किया।
भारतीय सरजमीं हमेशा शूरवीरों के लिए जानी जाती रही है। बात खेलों की करें तो अंतरराष्ट्रीय खेल क्षितिज पर भारतीय हॉकी के नाम आठ ओलम्पिक और एक विश्व खिताब का मदमाता गर्व है तो क्रिकेट में भी हमने तीन बार दुनिया फतह की है। क्रिकेट और हॉकी टीम खेल हैं लिहाजा इन विश्व खिताबों के लिए कुछेक खिलाड़ियों पर सरकार की मेहरबानी खेलभावना से मेल नहीं खाती। मुल्क की कोख से कई नायाब सितारे पैदा हुए हैं, जोकि सर्वोच्च नागरिक सम्मान के हकदार हैं। बेहतर होगा कि मुल्क में एक पारदर्शी व्यवस्था कायम हो ताकि किसी खिलाड़ी को पछतावे के आंसू न रोना पड़ें। आज ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मुखालफत तो की जा रही है लेकिन उनके अनुज कैप्टन रूप सिंह को पूरी तरह से बिसरा दिया गया है। अचूक स्कोरर, रिंग मास्टर और 1932 तथा 1936 की ओलम्पिक चैम्पियन भारतीय हॉकी टीम के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी रूप के स्वरूप को भारत सरकार तो क्या हॉकी बिरादर भी भूल चुकी है। 1932 और 1936 की ओलम्पिक हॉकी में एक कोख के दो लाल साथ-साथ खेले थे पर रूप सिंह ने बर्लिन में अपने पौरुष का डंका पीटते हुए न सिर्फ सर्वाधिक गोल किये बल्कि जर्मन तानाशाह हिटलर का भी दिल जीत लिया था। रूप सिंह के इसी नायाब प्रदर्शन के चलते 1978 में म्यूनिख में उनके नाम की सड़क बनी। अफसोस जिस खिलाड़ी को आज तक जर्मन याद कर रहा है उसे ही भारत सरकार तो क्या उसका भतीजा भी भूल चुका है।
भारतीय हॉकी दिग्गजों में बलबीर सिंह सीनियर का भी शुमार है। 91 बरस के इस नायाब हॉकी योद्धा ने भी भारत की झोली में तीन ओलम्पिक स्वर्ण पदक डाले हैं। बलबीर उस भारतीय टीम के मुख्य प्रशिक्षक और मैनेजर रहे जिसने 1975 में भारत के लिये एकमात्र विश्व कप जीता था। वर्ष 1896 से लेकर अब तक सभी खेलों के 16 महानतम ओलम्पियनों में से एक बलबीर को 2012 लंदन ओलम्पिक के दौरान अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति ने सम्मानित किया था पर भारत सरकार अतीत के इस सितारे को भारत रत्न का हकदार नहीं मानती। हॉकी और क्रिकेट के अलावा भारत को गौरवान्वित करने वाले खिलाड़ियों में पहलवान केडी जाधव का नाम भी आज भूल-भुलैया हो चुका है। जाधव ने 1952 हेलसिंकी ओलम्पिक की कुश्ती स्पर्धा में पहला व्यक्तिगत कांस्य पदक भारत की झोली में डाला था, पर मुल्क के ओलम्पिक पदकधारियों में एकमात्र केडी जाधव ही हैं जिन्हें पद्म पुरस्कार तक नहीं मिला, जबकि वर्ष 1996 के बाद से भारत के लिये व्यक्तिगत ओलम्पिक पदक जीतने वाले सभी खिलाड़ियों को पद्म पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। मोदी सरकार से खिलाड़ियों को पारदर्शी व्यवस्था की उम्मीद थी लेकिन जिस तरह से अंधों ने रेवड़ियां बांटी हैं उससे खेल बिरादर सकते में है।
दशा-दिशा और लक्ष्यविहीन खिलाड़ी तब भी खेलते थे और मोदी सरकार में भी यही हो रहा है। ग्रामीण अंचल के खिलाड़ियों का तो और भी बुरा हाल है। वे पसीना तो खूब बहाते हैं लेकिन उन्हें नहीं पता कि वे क्या कर रहे हैं, क्या करना चाहते हैं और क्यों कर रहे हैं। सारा माजरा उनको समय पर और सही शिक्षक द्वारा मार्गदर्शन न दिए जाने के कारण हो रहा है। हां, कुर्सियों पर बैठे मंत्री आए दिन बड़ी-बड़ी घोषणाएं जरूर कर रहे हैं, लेकिन कभी झांक कर नहीं देखा जा रहा कि जितना पैसा जिस मकसद के लिए लगाया गया है वो लगा भी कि नहीं, फायदा हुआ कि नहीं और खर्च किया जाए या नहीं। वर्ष 2009 से देश भर की ग्राम पंचायतों को खेलगांव देने की सरकारी हसरतों पर राज्य सरकारें पानी फेर रही हैं, लेकिन सब चुप हैं। देश के खिलाड़ियों के चेहरे पर सम्मान के चोचले से एक दिन तो मुस्कान लाई जा सकती है लेकिन इससे न खिलाड़ी का भला होगा और न ही खेलों का।

बोल्ट फिर बने दुनिया के सबसे तेज धावक


बीजिंग । दुनिया के सबसे तेज धावक जमैका के यूसेन बोल्ट ने विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में अपनी बादशाहत कायम रखते हुए 23 अगस्त रविवार को अपने सबसे कड़े प्रतिद्वंद्वी अमेरिका के जस्टिन गैटलिन को पछाड़ते हुए 9.79 सेकेंड में 100 मीटर दौड़ जीतकर अपना खिताब बरकरार रखा। रेस पूरी होने के बाद गैटलिन सकते में थे और उन्हें अपनी हार पर विश्वास नहीं हो रहा था। 21 अगस्त को 29 बरस के हुए बोल्ट ने कहा, मैं रिलेक्स था, कोई तनाव नहीं था और जीतने में सफल रहा। यह रेस दौड़ने और जीतने का मामला है। मेरा लक्ष्य संन्यास लेने तक नम्बर एक बने रहना है। गैटलिन की 29 रेसों में यह पहली हार है। वह इस रेस से पहले पिछले लगभग दो साल से किसी रेस में नहीं हारे।
ओलम्पिक और विश्व रिकॉर्डधारी बोल्ट ने इस साल की अपनी फिटनेस परेशानी को दरकिनार रखते हुए दुनिया के सबसे तेज धावक की अपनी प्रतिष्ठा को बरकरार रखा। पिछले दो वर्षों से जबरदस्त फॉर्म में चल रहे गैटलिन 9.80 सेकेंड के साथ रजत पदक ही हासिल कर पाए। अमेरिका के ट्रेवोन ब्रोमेल 9.92 सेकेंड के साथ तीसरे स्थान पर रहे। मौजूदा ओलम्पिक चैम्पियन बोल्ट 2007 से लेकर अब तक 100 या 200 मीटर में छह बड़ी चैम्पियनशिप में एक बार भी पराजित नहीं हुए हैं। हालांकि वह 2011 में देगू विश्व चैम्पियनशिप में 100 मीटर दौड़ में अयोग्य करार दिए गए थे। बोल्ट अब बीजिंग में बर्ड्स नेस्ट स्टेडियम में 100 और 200 मीटर का डबल पूरा करने के लक्ष्य के साथ उतरेंगे। बोल्ट 100 मीटर में तीसरी बार विश्व खिताब जीतने के साथ ही अमेरिका के महान धावकों कार्ल लुईस और मौरिस ग्रीन की विशिष्ट श्रेणी में पहुंच गए हैं जिन्होंने तीन बार इस रेस में विश्व खिताब हासिल किए थे। इस बीच ओलम्पिक चैम्पियन ब्रिटेन की जेसिका एनिस हिल ने हेप्टाथलान का अपना विश्व खिताब बरकरार रखा। वर्ष 2009 में बर्लिन में विश्व खिताब जीतने वाली हिल ने 6669 अंकों के साथ विश्व खिताब अपने नाम किया। कनाडा की ब्रायन थिएसन ईटन ने 6554 अंकों के साथ रजत और लातविया की एल इकोनीस अल्मीदीना ने 6516 अंकों के साथ कांस्य पदक जीता। तार गोला फेंक का स्वर्ण पदक पोलैंड के पावेल फाजडैक ने चौथे प्रयास में 80.88 मीटर की दूरी नापकर अपना विश्व खिताब कायम रखा।
सर्वाधिक स्वर्ण जीतने वाले एथलीट
एथलीट स्वर्ण रजत कांस्य कुल
उसैन बोल्ट 09 02 00 11
कार्ल लुईस 08 01 01 10
एलायसन फेलिक्स 08 01 01 10
माइकल जॉनसन 08 00 00 08
लाशॉन मेरिट 06 00 00 06
सर्जेई बुबका 06 00 00 06

     

Saturday 22 August 2015

आकाश नंदवाल को दोहरा खिताब

दूसरी मध्य प्रदेश राज्य रैंकिंग टेनिस प्रतियोगिता
पुरुष युगल में यश शर्मा और हर्ष पण्डोले की जोड़ी बनी चैम्पियन
ग्वालियर। इंदौर के आकाश नंदवाल ने पुरुष एकल और अण्डर-18 बालक वर्ग का खिताब जीतकर मध्य प्रदेश

टेनिस में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। आकाश ने पुरुष एकल में ग्वालियर के हर्ष पण्डोले तथा अण्डर-18 बालक वर्ग में भोपाल के आर्यन अग्रवाल पर फतह हासिल की। बालकों के अण्डर 14 आयु वर्ग में भोपाल के गौरांग मिश्रा ने ग्वालियर के मुदित शर्मा तथा अण्डर 12 बालक वर्ग में इंदौर के दीप मुनीम ने ग्वालियर के ही कुश अरजरिया को पराजित कर खिताबी जश्न मनाया। बालिकाओं की अण्डर 14 आयु वर्ग में होशंगाबाद की आध्या तिवारी ने भोपाल की तुषिता सिंह पर खिताबी जीत दर्ज की। पुरुषों के युगल मुकाबले में यश शर्मा और हर्ष पण्डोले की जोड़ी चैम्पियन बनी। फाइनल में इस जोड़ी ने दुष्यंत वर्मा और सूर्यांश यादव की जोड़ी को पराजित किया। प्रतियोगिता का पारितोषिक वितरण ग्वालियर के पुलिस कप्तान हरिनारायण चारी मिश्रा के करकमलों से किया गया।
 ग्वालियर चम्बल टेनिस एसोसिएशन के सौजन्य से सिटी सेण्टर स्थित टेनिस परिसर में खेली गई दूसरी मध्य प्रदेश राज्य रैंकिंग टेनिस प्रतियोगिता के फाइनल मुकाबले अपेक्षानुरूप ही रहे। पुरुष एकल में आकाश नंदवाल ने हर्ष पण्डोले को 6-2, 6-3 से पराजित किया। अण्डर-18 बालक वर्ग में भी आकाश नंदवाल विजेता बने। फाइनल में आकाश ने भोपाल के आर्यन अग्रवाल को कांटे के मुकाबले में 5-7, 7-5, 6-2 से पराजित किया। पुरुष युगल में ग्वालियर के यश शर्मा और हर्ष पण्डोले की जोड़ी ने दुष्यंत वर्मा और सूर्यांश यादव की जोड़ी को 6-4, 7-6 से पराजित किया। बालकों के अण्डर 14 आयु वर्ग में भोपाल के गौरांग मिश्रा ने ग्वालियर के मुदित शर्मा को 6-3, 7-5 से पराजित किया। बालकों के अण्डर 12 आयु वर्ग में इंदौर के दीप मुनीम ने ग्वालियर के कुश अरजरिया को कश्मकश भरे मुकाबले में 6-7, 6-2, 6-3 से पराजित किया।  बालिकाओं की अण्डर 14 आयु वर्ग में होशंगाबाद की आध्या तिवारी ने भोपाल की तुषिना सिंह को 6-2, 6-1 से पराजित कर खिताब पर कब्जा जमाया।
प्रतियोगिता के पुरुष एकल के पहले सेमीफाइनल मुकाबले में इंदौर के आकाश नंदवाल ने ग्वालियर के यश शर्मा को सहजता से 6-1, 6-2 तथा दूसरे सेमीफाइनल में ग्वालियर के हर्ष पण्डोले ने ग्वालियर के ही आशीष मुखर्जी को 6-4, 6-2 से पराजित कर खिताबी दौर में जगह बनाई थी। बालकों के अण्डर 18 आयु वर्ग के पहले सेमीफाइनल में इंदौर के आकाश नंदवाल ने इंदौर के ही निशांत जादौन को 6-2, 6-1 तथा दूसरे सेमीफाइनल में भोपाल के आर्यमन अग्रवाल ने बैतूल के पुष्पित वर्मा को 6-1, 6-0 पराजित किया। बालकों के अण्डर 14 आयु वर्ग के पहले सेमीफाइनल में ग्वालियर के मुदित शर्मा ने ग्वालियर के ही प्रांजल तिवारी को 6-1, 3-6, 6-0 तथा दूसरे सेमीफाइनल में भोपाल के गौरांग मिश्रा ने इंदौर के दीप मुनीम को 6-1, 6-3 से पराजित कर फाइनल में जगह सुनिश्चित की थी। बालकों के अण्डर 12 आयु वर्ग के पहले सेमीफाइनल में ग्वालियर के कुश अरजरिया ने खण्डवा के प्रथम बाथम को 7-5, 6-3 तथा दूसरे सेमीफाइनल में इंदौर के दीप मुनीम ने ग्वालियर के आयुष्मान अरजरिया को 6-4, 6-4 से पराजित किया था। बालिकाओं के अण्डर 14 आयु वर्ग के पहले सेमीफाइनल में होशंगाबाद की आध्या तिवारी ने ग्वालियर की प्रकृति मालवीय को 6-1, 6-1 तथा दूसरे सेमीफाइनल में भोपाल की तुषिता सिंह ने ग्वालियर की आयुषी नरवरिया को 6-1, 6-1 से चलता किया था।
प्रतियोगिता का पारितोषिक वितरण मुख्य अतिथि ग्वालियर के पुलिस कप्तान हरिनारायण चारी मिश्रा के करकमलों से किया गया। इस अवसर पर उन्होंने विजेता खिलाड़ियों को जहां शाबासी दी वहीं उपविजेता खिलाड़ियों को पुन: प्रयास करने को कहा। इस अवसर पर रामलाल वर्मा, अतुल सिंह, रवि पाटनकर, डॉ. अजय उपाध्याय विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। अतिथियों का स्वागत ग्वालियर चम्बल टेनिस एसोसिएशन के सचिव अनुराग ठाकुर, रजनीश शर्मा, टेनिस प्रशिक्षक प्रफुल्ल अरजरिया और विकास पाण्डेय ने किया। अनुराग ठाकुर ने मुख्य अतिथि और एमपीटीए के आब्जर्वर सुरेन्द्र नारायण पहलवान को मोमेंटो भेंट किया। कार्यक्रम का संचालन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कमेंटेटर नवीन श्रीवास्तव ने किया।
अंतिम आठ में ये रहे खिलाड़ी
पुरुष एकल- आकाश नंदवाल, उत्कर्ष तिवारी, यश शर्मा, कुणाल सिंह, आशीष मुखर्जी, दुष्यंत वर्मा, हर्ष पण्डोले, दिव्यांश शर्मा।
बालक अण्डर 18- आर्यमन अग्रवाल, प्रागवंश शर्मा, पुष्पित वर्मा, दिव्यांश शर्मा, आकाश नंदवाल, उत्कर्ष तिवारी, निशांत जादौन, अनमोल यादव।
बालक अण्डर 14- मुदित शर्मा, प्रथम बाथम, प्रांजल तिवारी, प्रखर चौहान, गौरांग मिश्रा, मनप्रीत सिंह, दीप मुनीम, अथर्व नीमा।
बालक अण्डर 12- आयुष्मान अरजरिया, अक्षत रावत, दीप मुनीम, रीतेश वर्मा, प्रथम बाथम, परंताप भदौरिया, कुश अरजरिया, ओम गोवल।

हँसिए मगर हँसी का मजा हमसे पूछिए?

एक पल में एक सदी का मजा हमसे पूछिए
दो दिन की जिन्दगी का मजा हमसे पूछिए।
भूले हैं रफ्ता-रफ्ता उन्हें मुद्दतों में हम
किस्तों में खुदकुशी का मजा हमसे पूछिए।
आगाजे-आशिकी का मजा आप जानिए
अंजामे-आशिकी का मजा हमसे पूछिए।
जलते दीयों में जलते घरों जैसी लौ कहाँ,
सरकार रोशनी का मजा हमसे पूछिए।
वो जान ही गए कि हमें उनसे प्यार है,
आँखों की मुखबिरी का मजा हमसे पूछिए।
हँसने का शौक हमको भी था आप की तरह
हँसिए मगर हँसी का मजा हमसे पूछिए?

मुहब्बत के शहर में माही की जांबाजी

बच्चों खूब खेलो, खूब पढ़ो
महेन्द्र सिंह धोनी ने एक पखवाड़े में सीखा अनुशासन
आगरा। कैप्टन कूल महेन्द्र सिंह धोनी ने मुहब्बत की नगरी के आस्मां में अपनी जांबाजी की दास्तां लिखते हुए न केवल पैराट्रूपर का तमगा हासिल किया बल्कि छात्र-छात्राओं को खूब खेलने और खूब पढ़ने की नसीहत भी दी। जब वह आगरा आये तो ताजनगरी के लोगों के मन में इस बात का संशय था कि गोया माही आकाश से




सफल छलांग लगा पायेंगे या नहीं? धोनी की दीवटता से परिचित लोगों को अटूट विश्वास था कि वह ऐसा जरूर कर पायेंगे। धोनी ने अपने मुरीदों को निराश नहीं किया। तय समय में सफल छलांग लगाकर  उन्होंने सिद्ध किया कि संकल्प पक्का हो, तो कुछ भी नामुमकिन नहीं। माही  के साहसी कमाल को आगरा ने ही नहीं उनकी धर्मपत्नी साक्षी और बिटिया ने भी देखा।
धोनी सात अगस्त को एयरफोर्स के मलपुरा स्थित  पैरा ट्रेनिंग स्कूल  में दाखिल हुए थे। शुक्रवार यानि 21 अगस्त को उनकी ट्रेनिंग पांचवीं छलांग के साथ पूरी हो गई। धोनी अब पैराट्रूपर बन गए हैं। उनकी वर्दी पर फ्लाइंग बर्ड का चिह्न लग चुका है। धोनी पहले क्रिकेटर हैं, जिन्होंने ये तमगा हासिल किया है। धोनी ट्रेनिंग के साथ-साथ स्कूल, एनसीसी, एडीआरडीई और मिलिट्री पुलिस के साथ गतिविधियों में भी जुड़े रहे। आठ अगस्त को धोनी एयरफोर्स स्टेशन परिसर स्थित केन्द्रीय विद्यालय गए थे। उस समय उन्होंने आर्मी ड्रेस पहन रखी थी, लेकिन वहां उनके अंदर थोड़ी झिझक दिखी थी। बच्चों से वह बिल्कुल कूल होकर बात कर रहे थे। यही नहीं उनके साथ ड्यूटी दे रहे जवानों के साथ भी वह दोस्त की तरह ही व्यवहार कर रहे थे।
धोनी में दिखा लेफ्निेंट कर्नल का रौब
धोनी की उस समय की तस्वीरों पर गौर करें तो उनके शरीर में हल्का झुकाव था, लेकिन एक हफ्ते बाद जब धोनी एनसीसी एयर विंग पहुंचे तो उनमें थोड़ी गंभीरता नजर आई। उनके चेहरे पर बहुत कम ही मुस्कुराहट देखने को मिली। कोई एक पखवाड़ी आगरा में रहे धोनी जब आर्मी पब्लिक स्कूल पहुंचे तो वह सीधे तनकर चल रहे थे। कुर्सी पर भी वह तनकर बैठे। उनके चेहरे पर गंभीरता साफ झलक रही थी। एक अधिकारी ने कहा कि धोनी अब पूरी तरह मिलिट्री अफसर के रूप में आ चुके हैं। पहले वह जवानों की इच्छा जाहिर करने से पहले ही हाथ मिलाने को तैयार हो जाते थे लेकिन अब वह लेफ्टिनेंट कर्नल के रौब में हैं। सवाल यह भी कि क्या वह टीम इण्डिया में यही रौब पैदा कर पाएंगे? 21 अगस्त को सैन्य अधिकारियों की अनुमति के बाद धोनी वायुसेना के मालवाहक विमान एएन-32 पर सवार हुए और कुछ देर बाद ही मलपुरा स्थित पैरा ड्रॉपिंग जोन में 1250 फीट की ऊंचाई से छलांग लगाई।  पैराजम्पिंग स्कूल के नियम के मुताबिक धोनी को कुल पांच जंप करना करना था। चूंकि शनिवार और रविवार को स्कूल में अवकाश रहता है, इसलिए धोनी ने गुरुवार को दो बार छलांग लगाई। सेना में आॅरेनरी लेफ्टिनेंट कर्नल महेंद्र सिंह धोनी 22 अगस्त को खूब व्यस्त रहे।
 जम्प की साक्षी बनी पत्नी और बिटिया
लेफ्टिनेंट कर्नल महेंद्र सिंह धोनी की जम्प की ‘साक्षी’ उनकी पत्नी साक्षी भी बनी। साक्षी सुबह आगरा पहुंची। माही की आसमान से छलांग के दौरान साक्षी अपनी बिटिया के साथ मौजूद रहीं। साक्षी के आगमन को देखते मलपुरा ड्रॉपिंग जोन में सेना का सुरक्षा घेरा बढ़ा दिया गया था।
धोनी डरे भी लेकिन कामयाब
पहली कामयाब पैरा जम्प लगाने के बाद दूसरी जम्प में धोनी हिल गये। मलपुरा ड्रॉपिंग जोन में लैंडिंग के दौरान तेज हवाओं के चलते उनका पैराशूट जमीन पर कई मीटर घिसटता चला गया। धोनी भी काफी दूर तक जमीन से रगड़ खा गए। धोनी ने माना कि दूसरी छलांग सबसे खतरनाक थी। उस्तादों (प्रशिक्षक) को बताया कि यह ऐसी छलांग थी, जिसमें तेज हवा ने मुश्किलों को बढ़ा दिया था। इससे दिल व दिमाग हिल गया। डर पर किसी तरह काबू पाया।
धोनी के अलावा इन्हें मिल चुकी उपाधि
कैप्टन कूल के  अलावा अपनी कप्तानी के दौरान कपिल देव को भारतीय सेना लेफ्टिनेंट कर्नल की मानद उपाधि से सम्मानित कर चुकी है। धोनी की तरह कपिल ने भी भारतीय क्रिकेट टीम को 1983 में विश्व कप दिलाया था। कपिल ने सितंबर 2008 में टेरीटोरियल आर्मी ज्वाइन की थी लेकिन कपिल ने पैराजम्पिंग जैसी किसी गतिविधि में भाग नहीं लिया। वहीं, मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर लड़ाकू विमान सुखोई में बैठ चुके हैं। भारतीय वायुसेना ने सचिन को वर्ष 2012 में ग्रुप  कैप्टन की मानद उपाधि दी थी। वह एकमात्र खिलाड़ी हैं, जिन्हें विमानन क्षेत्र की कोई जानकारी के बिना इस तरह का उच्चस्तरीय सम्मान दिया गया।
बच्चों राष्ट्र की प्रगति में सहायक बनिये
धोनी 22 अगस्त को सुबह 11 बजे केंद्रीय विद्यालय नम्बर- तीन पहुंचे। प्रायार्य प्रभा गौड़ ने उनका स्वागत किया। स्काउट गाइड की कलर पार्टी ने उनको स्कार्ट करने सभा कक्ष तक पहुंचाया, जहां उनका स्वागत केंद्रीय विद्यालय संगठन जयपुर संभाग के उपायुक्त जयदीप दास व आगरा संभाग के सहायक आयुक्त डॉ. अनुराग यादव ने किया। इस दौरान  बच्चे उत्साहपूर्वक धोनी-धोनी के नारे लगाते रहे। धोनी  भी बच्चों को हाथ हिलाकर उत्साहित नजर आए। कैप्टन कूल ने बच्चों से कहा कि वह अपने गुरुओं का सम्मान करें। यदि जीवन में उन्हें तरक्की करनी है तो उसके लिए ‘खूब पढ़िये और खूब खेलिए’ और राष्ट्र की प्रगति में सहायक बनिये । जब भी आपको कुछ दिखाने का अवसर मिले तो उसका भरपूर फायदा उठाइये। इस अवसर पर विद्यालय की वाइस प्रिंसिपल बीएस राजपूत ,संभाग की वित्त अधिकारी शिवानी सुनेजा, स्पोर्ट्स टीचर एसके मौर्या आदि मौजूद रहे।
कैप्शन: केंद्रीय विद्यालय नम्बर-3 की प्राचार्य प्रभा गौड़ इंडियन टीम के कै प्टन एमएस धोनी को स्मृति चिह्न भेंट करते हुए।
कैप्शन- केंद्रीय विद्यालय नम्बर-3 में छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते धोनी।

Friday 21 August 2015

दुविधा में सरकार

भय गति सांप छछूंदर जैसी। जी हां, पाकिस्तान के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर पर 23-24 अगस्त को होने वाली बातचीत को लेकर मोदी सरकार दुविधा में है। सरकार की समझ में ही नहीं आ रहा कि इस मामले को वह कैसे सुलझाये। पाकिस्तान से सम्बन्धों को लेकर मोदी सरकार की भ्रम और अनिर्णय की स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने गुरुवार को तीन हुर्रियत नेताओं को उनके घरों में ही नजरबंद कर लिया लेकिन कुछ ही घंटों में उनकी नजरबंदी खत्म कर दी गई। कश्मीर और भारत सरकार के न चाहने के बावजूद सरताज अलगाववादी नेताओं से मिलने को बेताब हैं। पिछले साल भी पाकिस्तानी राजनयिकों के दिल्ली में हुर्रियत नेताओं से मिलने के चलते भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत नहीं हो पाई थी। मोदी सरकार को बातचीत के मौके को अकारथ नहीं करना चाहिए, भले ही पाकिस्तानी राजनयिक हुर्रियत नेताओं से क्यों न मिलें। पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज यदि हुर्रियत नेताओं से मिलते भी हैं तो आखिर उसमें हर्ज क्या है? सैयद अली गिलानी, मीरवाइज उमर फारुक और यासिन मलिक भारतीय नागरिक हैं, यदि इन्होंने अपराध किए हैं तो फिर इन्हें जेल में क्यों नहीं डाला जाता? इन पर कानूनी शिकंजा क्यों नहीं कसा जाता? दरअसल, ये तीनों भारतीय कश्मीरी हैं, यदि मोदी सरकार पाकिस्तानी राजनयिकों से इन्हें नहीं मिलने देती तो यह उसकी कश्मीर को लेकर कमजोरी ही कही जायेगी। सच्चाई तो यह है कि भारत प्रशासित कश्मीर में अंदरूनी समस्या की बजाय सबसे बड़ी समस्या नियंत्रण रेखा के पार से आने वाले चरमपंथी हैं। मोदी सरकार की असली समस्या तीन अलगाववादी नहीं बल्कि वह यह दिखाना चाहती है कि कश्मीर में कोई विवाद ही नहीं है,जबकि हमारा पड़ोसी कश्मीर राग अलाप कर भारत में चरमपंथ को ही बढ़ावा देना चाहता है। टके भर का सवाल यह है कि क्या आज के संदर्भ में भारत-पाकिस्तान के बीच वाकई कश्मीर कोई मुद्दा नहीं है? मौजूदा हालातों को देखते हुए मोदी सरकार को जज्बातों में बहने की बजाय कूटनीति से काम लेना चाहिए। अलगाववादी किसी से भी मिलें उससे भारत की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। भारत का मुख्य मुद्दा चूंकि चरमपंथ है लिहाजा उसे पाकिस्तान से सिर्फ इसी बारे में बात करनी चाहिए। हम चरमपंथ का जवाब चरमपंथ से नहीं दे सकते क्योंकि हमारे यहां चरमपंथ के ठौर-ठिकाने नहीं हैं। भारत के लिए बेहतर यही होगा कि वह पड़ोसी पाकिस्तान से खुलकर बात करे। कश्मीर मामले में भी हमें बात करने से नहीं डरना चाहिए। भारत और पाकिस्तान चूंकि दोनों ही मुल्क परमाणु हथियारों से लैश हैं लिहाजा समस्या का समाधान युद्ध की बजाय बातचीत से ही सम्भव होगा।

न्याय न मिला तो जान दे दूंगी: मीनाक्षी-page-5

मुख्यमंत्री और प्रमुख सचिव के निर्देश के बाद भी नहीं मिला आवास
अंतरराष्ट्रीय पॉवर लिफ्टर की दुखद दास्तान
राजपाल सिंह आर्य
अलीगढ़। गरीबी और असमय पति की मौत ने अंतरराष्ट्रीय पॉवर लिफ्टर मीनाक्षी की हिम्मत, हौसला और जज्बा तीनों को परास्त कर दिया है। गुरबत की मारी यह खिलाड़ी अपने जीवन से कुछ इस तरह परेशान है कि उसके मन में कई बार पुत्र और पुत्री के साथ आत्महत्या तक का विचार पैदा हो चुका है। ऐसा नहीं होना चाहिए, यदि हुआ तो खेलों से खिलाड़ियों का विश्वास हमेशा हमेशा के लिए उठ जायेगा।



देश में खिलाड़ियों पर सुविधाओं और इनामों की बारिश की तमाम घोषणाओं के बीच एक स्याह सच यह है कि एशियाई खेलों समेत कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मुल्क का सिर ऊंचा करने वाली भारोत्तोलक मीनाक्षी रानी गौड़ और उसका परिवार भुखमरी की कगार पर है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और प्रमुख सचिव के निर्देश के बाद भी शासकीय तंत्र की अकर्मण्यता के चलते न ही उसे नौकरी मिली और न ही एक अदद मकान। 8 जुलाई, 1970 को सासनी (अलीगढ़) में नत्थूलाल-सोमवती गौड़ के घर जन्मी मीनाक्षी को वेटलिफ्टिंग का जुनून अपने पिता को पहलवानी करते देख पैदा हुआ। मीनाक्षी के पिता नत्थूलाल गौड़ ने 1955 में बदायूं में हुई कुश्ती प्रतियोगिता में दारा सिंह से दो-दो हाथ किये थे। नत्थूलाल भी चाहते थे कि उनकी बेटी खेलों में मुल्क का नाम रोशन करे।
सात बहनों और दो भाइयों में पांचवें नम्बर की मीनाक्षी रानी ने अपने माता-पिता के सपने को साकार करने के लिए न केवल अथक मेहनत की बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर एक स्वर्ण 18 चांदी के तमगे जीतकर उत्तर प्रदेश और अलीगढ़ का मान भी बढ़ाया। मीनाक्षी ने मुसीबतों से पार पाते हुए 1996 में दिल्ली में हुई एशियन वेटलिफ्टिंग प्रतियोगिता में कांसे का तमगा जीतकर यह साबित किया कि यदि उसे पर्याप्त प्रोत्साहन मिले तो वह ओलम्पिक में भी भारत का मान बढ़ा सकती है। मीनाक्षी का चयन 1998 में चीनी ताइपे में हुई वर्ल्ड चैम्पियनशिप के लिए भी हुआ लेकिन तंगहाली के चलते वह प्रतियोगिता में शिरकत नहीं कर सकी। गरीब की यह बेटी सिर्फ खिलाड़ी ही नहीं बल्कि प्रशिक्षक भी है। इसने एनआईएस कोर्स करने के साथ ही मूर्तिकला में भी दक्षता डिप्लोमा हासिल किया है।
गरीबी बुरी बला है। जब समय खराब हो तब इंसान ही नहीं गरीब की भगवान भी खूब परीक्षा लेता है। 1992-93 से वेटलिफ्टिंग को अपना करियर  बनाने का सपना देखने वाली मीनाक्षी की जून 2002 में अलीगढ़ निवासी दीपक कुमार से शादी हो गई। पति दीपक कुमार भी चाहता था कि मीनाक्षी वेटलिफ्टिंग में उस मुकाम को छुए जिस तक कोई भारतीय महिला वेटलिफ्टर आज तक नहीं पहुंची। मीनाक्षी आहिस्ते-आहिस्ते अपनी मंजिल की तरफ बढ़ ही रही थी कि 13 अगस्त, 2011 को उस पर वज्राघात हो गया। सड़क दुर्घटना में उस दिन मीनाक्षी ने न केवल अपनी मांग का सिन्दूर खोया बल्कि उसका और उसकी बेटी परी का पैर भी टूट गया। पति की मौत के सदमे से आहत-मर्माहत मीनाक्षी को मदद के आश्वासन तो खूब मिले लेकिन  मदद किसी ने नहीं की। 11 साल के प्रखर और सात साल की उत्कृषा (परी) के जीवन-यापन को लेकर आज अंतरराष्ट्रीय वेटलिफ्टर मीनाक्षी चाय बेचने को मजबूर है।
किराये के मकान में रह रही अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी मीनाक्षी को उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार ने मदद का भरोसा दिया था लेकिन अकर्मण्य प्रशासन ने इस गरीब की आज तक सुध नहीं ली। नौकरी और एक अदद मकान इस दुखियारी का जीवन बदल सकता है लेकिन जब प्रशासन और समाज के पहरुआ ही कुम्भकर्णी नींद सो रहे हों तो भला उन्हें जगाये भी तो कौन? न्याय के लिए न केवल मीनाक्षी दर-दर की ठोकरें खा रही है बल्कि अक्टूबर, 2013 में वह विधान सभा के सम्मुख भूख-हड़ताल भी कर चुकी है। मीनाक्षी की भूख-हड़ताल से उत्तर प्रदेश सरकार बेशक न चेती हो पर इस दुखियारी को सुनील गावस्कर के रूप में एक भगवान जरूर मिल गया है।
मैं अपने भगवान से मिलना चाहती हूं
मीनाक्षी की ऊपर वाला बेशक पल-पल और पग-पग परीक्षा ले रहा हो लेकिन उसके जीवन का असली भगवान तो सुनील गावस्कर ही हैं। रोती-बिलखती मीनाक्षी कहती है कि मैं अपने भगवान से मिलना चाहती हूं। मैंने सुनील गावस्कर से मिलने की बहुत कोशिश की लेकिन मुलाकात नहीं हो सकी। गौरतलब है कि मीनाक्षी जब 2013 में लखनऊ में भूख-हड़ताल कर रही थी उस समय सरकार बेशक उसकी गरीबी पर नहीं पसीजी लेकिन पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान और उद्घाटक बल्लेबाज सुनील गावस्कर का दिल जरूर द्रवित हो गया था। उन्होंने मीनाक्षी की मदद का न केवल संकल्प लिया बल्कि उसी समय से वह प्रतिमाह साढ़े सात हजार रुपये उसके खाते में डाल रहे हैं। इन्हीं साढ़े सात हजार रुपयों से मीनाक्षी और उसके दो बच्चों का भरण-पोषण हो रहा है। मीनाक्षी की गरीबी का आलम यह है कि उसके पास आज नौ हजार रुपये भी नहीं हैं कि वह अपने पूर्व मकान मालिक को शेष किराया भुगतान कर अपना सामान हासिल कर सके। काश कोई दानदाता मीनाक्षी की मदद को आगे आये ताकि वह अपना न सही अपने बेटे प्रखर और बेटी परी को उचित तालीम दिला सके।
गुरबत की मारी मीनाक्षी बेचारी
गुरबत की मारी अंतरराष्ट्रीय वेटलिफ्टर मीनाक्षी अब अपने लिये नहीं बल्कि अपने दो बच्चों की परवरिश को लेकर चिन्तित है। वह रुंधे गले से कहती है कि कई बार ऐसा लगता है कि दोनों बच्चों के साथ जान दे दूं। मैं चाहती हूं कि जो काम मैं नहीं कर सकी वे मेरे बच्चे साकार करें लेकिन मुझे कहीं से उम्मीद नहीं दिख रही। मुझे मोदी सरकार पर भरोसा है कि वह एक न एक दिन मुझ दुखियारी की मदद जरूर करेगी।
केन्द्र के परवाने से उम्मीदों को लगे पर
उत्तर प्रदेश सरकार ने मीनाक्षी की बेशक कोई मदद न की हो लेकिन केन्द्र की मोदी सरकार ने उसे आर्थिक सहायता देने का मन बना लिया है। केन्द्र सरकार के अवर सचिव एसपी सिंह तोमर ने मीनाक्षी को लिखे पत्र में कहा है कि आपने एक जनवरी, 2015 को आर्थिक सहायता का जो आवेदन दिया है, उसे स्वीकार कर लिया गया है। कृपया आप अपना आवेदन राष्ट्रीय कल्याण योजना के निर्धारित प्रपत्र में भरकर भेजें। मीनाक्षी ने आर्थिक सहायता के लिए केन्द्र सरकार से आये आवेदन फार्म को भरकर राष्ट्रीय कल्याण योजना  को भेज दिया है। अब देखना यह है कि इस दुखियारी को मदद कब और कैसे मिलती है।
मीनाक्षी की छोटी बहन भी खिलाड़ी
खिलाड़ी बाप की खिलाड़ी बेटी मीनाक्षी की छोटी बहन रुचि गौड़ भी वेटलिफ्टर है। रुचि वेटलिफ्टिंग ही नहीं बल्कि हैमरथ्रो में राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीत चुकी है। पुलिस में कार्यरत रुचि भी विभागीय उपेक्षा के चलते आज तक पदोन्नति से वंचित है।

सुविधाएं बढ़ीं, खेल में आई गिरावट-page-1

हाल-ए-मध्य प्रदेश टेनिस
एस.एस. दीक्षित, अनिल धूपड़ और अनुराग ठाकुर ने बढ़ाया प्रदेश का मान
1980 का दशक है मध्य प्रदेश टेनिस का स्वर्णिम दौर
ग्वालियर। आज मध्य प्रदेश टेनिस एसोसिएशन न केवल खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने में सक्षम है बल्कि उन्हें खेलने को बड़े मंच मिलें इसके भी प्रयास हो रहे हैं। सुविधायें भी कमतर नहीं कही जा सकतीं लेकिन अफसोस खिलाड़ियों में खेल के प्रति समर्पण और इच्छाशक्ति के अभाव के चलते टेनिस में जिस स्थान पर आज मध्य प्रदेश को होना चाहिये उससे वह बहुत पीछे है। टेनिस को लेकर यह चिन्ता सिर्फ एसोसिएशन की ही नहीं बल्कि हर उस शख्स की है जो इस खेल से थोड़ा-बहुत भी लगाव रखता है। टेनिसप्रेमी मध्य प्रदेश टेनिस के गौरवशाली इतिहास से रू-ब-रू हों और अतीत के नायाब खिलाड़ियों के कौशल को जानें इसके लिए खेलपथ ने









उस शख्स से बात की जिसने मध्य प्रदेश की टेनिस को न केवल करीब से देखा है बल्कि 45 साल इसी खेल के लिए जिया है। जी हां, हम सीहोर निवासी सुरेन्द्र नारायण पहलवान की ही बात कर रहे हैं जिन्होंने मध्य प्रदेश की टेनिस को इतना करीब से देखा है कि दूसरा देख ही नहीं सकता।
मध्य प्रदेश टेनिस के जीवंत दस्तावेज पहलवान सर की भावभंगिमा को देखकर लगा कि वह मौजूदा दौर की टेनिस से खासे व्यथित हैं। वह कहते हैं कि एक वह समय था जब सुविधायें शून्य थीं और प्रतियोगितायें बहुत कम होती थीं बावजूद मध्य प्रदेश के खिलाड़ियों का खेल लाजवाब होता था। पहलवान सर के पसंदीदा खिलाड़ियों में खरगोन के एस.एस. दीक्षित, इंदौर के अनिल धूपड़ और ग्वालियर के अनुराग ठाकुर का शुमार है। वह कहते हैं कि 37 साल की उम्र में रैकेट को हाथ लगाने वाले एस.एस. दीक्षित सा दक्ष और फिट खिलाड़ी मैंने दूसरा नहीं देखा। बिना बैक हैण्ड मारे भी कोई खिलाड़ी नम्बर वन हो सकता है, यह सिर्फ दीक्षित की दक्षता से ही सम्भव हुआ। दीक्षित का कोर्ट कवरेज चीते की फुर्ती को भी मात देता था। 1980 के दशक को मध्य प्रदेश टेनिस का स्वर्णिम काल मानने वाले  सुरेन्द्र नारायण पहलवान का कहना है कि अनिल धूपड़ का ओवरहेड लाजवाब था। सच कहें तो धूपड़ जैसा ओवरहेड लगाते मैंने दूजा नहीं देखा।  पहलवान सर कहते हैं कि मध्य प्रदेश टेनिस एसोसिएशन के मौजूदा सचिव अनिल धूपड़ के प्रयासों का ही नतीजा है कि मध्य प्रदेश टेनिस को बड़े-बड़े आयोजन मिल रहे हैं। देश-विदेश के खिलाड़ी भी इंदौर और ग्वालियर की टेनिस सुविधाओं तथा यहां की शानदार मेजबानी की तारीफ करते नहीं अघाते।
मध्य प्रदेश टेनिस के सबसे बड़े चितेरे पहलवान सर का कहना है कि अनुराग ठाकुर के खेल में जो सम्पूर्णता दिखी वह प्रदेश के किसी खिलाड़ी में नजर नहीं आई। अफसोस की ही बात है कि अनुराग ठाकुर का उस समय टेनिस में अभ्युदय हुआ जब राष्ट्रीय स्तर पर बहुत ही कम प्रतियोगिताएं खेली जा रही थीं, जो प्रतियोगिताएं होती भी थीं उससे मध्य प्रदेश के खिलाड़ी अनजान होते थे। तब सुविधाएं नगण्य थीं तो प्रोत्साहन देने वालों का भी अभाव था। एस.एस. दीक्षित, अनिल धूपड़ और अनुराग ठाकुर के खेल-कौशल को बताते-बताते पहलवान सर मायूसी भरे लहजे में प्रतिप्रश्न करते हैं कि आज मध्य प्रदेश में क्या नहीं है? सब कुछ होने के बाद भी आज खिलाड़ियों का खेल नीरसता की ही झलक दिखाता है। खिलाड़ी न केवल मेहनत से जी चुराते हैं बल्कि सफलता के लिए शॉर्टकट रास्ते का सहारा लेना उनकी फितरत सी बनती जा रही है। यही वजह है कि हमारे पास प्रतिस्पर्धी खिलाड़ियों का अभाव है। मौजूदा दौर के खिलाड़ियों में पहलवान सर को भोपाल के भावेश गौड़ में टेनिस के प्रति जुनून दिखता है। लड़कियों की टेनिस की जहां तक बात है पहलवान सर को अतीत में ग्वालियर की अपर्णा यादव तो वर्तमान में भोपाल की अंजली ठाकुर ने खासा प्रभावित किया है। ऐश्वर्या अग्रवाल के खेल पर टेनिस के सूक्ष्मदर्शी पहलवान सर कहते हैं कि वह बैक हैण्ड और फोर हैण्ड दोनों हाथ से मारती थी। मुझे उसके खेल में काफी खामियां दिखीं।
इन पर टिका है मध्य प्रदेश का भविष्य
1969-70 से मध्य प्रदेश टेनिस से जुड़े पहलवान सर को भोपाल की सारा यादव (जूनियर) और होशंगाबाद की आध्या तिवारी (सब जूनियर) से काफी उम्मीदें हैं। श्री पहलवान कहते हैं कि ग्वालियर के प्रांजल तिवारी, कुश अरजरिया और आयुष्मान अरजरिया में भी अच्छी सम्भावनायें हैं। वह आकाश नंदवाल के खेल स्तर में भी सुधार की झलक देखते हैं। वह कहते हैं कि इन खिलाड़ियों पर अभी से ध्यान देने की जरूरत है। पहलवान सर का मंत्र है कि अपनी पहली जीत के बाद आराम से मत बैठो क्योंकि यदि आप दूसरी बार विफल हुए तो लोग कहेंगे कि आपको पहली जीत किस्मत से मिली थी।
प्रशिक्षकों की कोई समस्या नहीं
मध्य प्रदेश में क्या अच्छे प्रशिक्षकों का अभाव है? इस सवाल पर पहलवान सर का कहना है कि मैं यह नहीं मानता। हमारे पास साजिद लोधी जैसे प्रशिक्षक हैं। साजिद आज भारत की अण्डर-19 आयु वर्ग का प्रशिक्षक है। दरअसल हमेशा प्यासे को पानी के पास जाना होता है लेकिन हमारे खिलाड़ी इस बात से अनजान हैं। खिलाड़ी में जब तक खेल के प्रति जुनून और समर्पण नहीं होगा दुनिया का अच्छे से अच्छा प्रशिक्षक भी कुछ नहीं कर सकता। यदि मध्य प्रदेश के खिलाड़ियों को इस खेल में कुछ करना है तो उन्हें खेल के प्रति समर्पित होना होगा। यदि खिलाड़ी ऐसा नहीं कर सकता तो उसे खेल में हाथ नहीं आजमाना चाहिये।
पैसे के अभाव में शिवप्रसाद दीक्षित नहीं खेल पाये विम्बलडन
बैडमिंटन में जीते थे तीन गोल्ड मैडल, डेनमार्क में बढ़ाया था भारत का मान
ग्वालियर। समय दिन-तारीख देख कर आगे नहीं बढ़ता। मध्य प्रदेश के आला बैडमिंटन और टेनिस खिलाड़ी शिवप्रसाद शिवरतनप्रसाद दीक्षित (एसएस दीक्षित) अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका शानदार खेल कौशल लोगों के जेहन में आज भी जिन्दा है। गरीबी के चलते एसएस दीक्षित टेनिस में भारत का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर सके लेकिन बैडमिंटन में उन्होंने तीन स्वर्ण पदक जीतकर मादरेवतन का मान जरूर बढ़ाया। आज जब एक अदने से खिलाड़ी के पास 15 हजार कीमत का रैकेट होना आम बात है वहीं इतने ही रुपये न होने के चलते एसएस दीक्षित वेटरंस में विम्बलडन प्रतियोगिता खेलने से वंचित रह गये।
1975-76 के दो साल सिर्फ एसएस दीक्षित के लिये ही नहीं मध्य प्रदेश टेनिस के लिए भी खास थे। किसी खिलाड़ी का लगातार दो साल दो प्रतियोगिताओं में भारतीय टीम से चयन होना और उसका उन प्रतियोगिताओं में पैसे के अभाव में न खेल पाना नि:संदेह दुखद बात है। अतीत में मध्य प्रदेश के खिलाड़ियों को ऐसे अनगिनत जख्म मिले जहां उनका खेल कौशल पैसे के अभाव में भारतीयों को देखने को ही नसीब नहीं हुआ। खेलपथ को मिले दस्तावेज इस बात का गवाह हैं कि एसएस दीक्षित के पास यदि पैसा होता तो वह 1975-76 में अमेरिका में खेले गये स्टीवेंस कप और लंदन में खेली गई विम्बलडन प्रतियोगिता में शिरकत करने वाले मध्य प्रदेश के पहले खिलाड़ी होते। पाठकों को हम बता दें कि कालांतर में मध्य प्रदेश के एस.एस. दीक्षित का विम्बलडन डबल्स में भारतीय टीम में चयन हुआ लेकिन गुरबत में जी रहा यह खिलाड़ी अथक प्रयासों के बाद भी लंदन जाने के वास्ते 15 हजार रुपये नहीं जुटा सका। दीक्षित हर उस जगह मदद को गये जहां से उम्मीद थी लेकिन वह पैसे के अभाव में विम्बलडन में भारत का प्रतिनिधित्व करने से वंचित रह गये।
मूलत: उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले से ताल्लुक रखने वाला दीक्षित परिवार बहुत पहले राजस्थान के कोटा आकर बस गया। यहीं 1928 में शिवरतन प्रसाद दीक्षित के घर शिवप्रसाद का जन्म हुआ। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के चलते शिवप्रसाद अपने मामा के घर महेश्वर (मध्य प्रदेश) आ गये। उन्होंने यहां आकर न केवल तालीम ली बल्कि कुश्ती, बैडमिंटन सहित कई खेलों में दक्षता हासिल कर अपने उज्ज्वल भविष्य का संकेत भी दिया। श्री दीक्षित की काबिलियत को देखते हुए उन्हें गवर्नमेंट कॉलेज खरगोन में पीटीआई की नौकरी मिल गई। इसी पद पर रहते हुए 35 साल की उम्र में उन्होंने टेनिस खेलने का न केवल मन बनाया बल्कि अल्प समय में ही वह मध्य प्रदेश के नम्बर एक खिलाड़ी बन गये। श्री दीक्षित आठ साल प्रदेश के नम्बर एक खिलाड़ी रहे। वह सिर्फ मध्य प्रदेश ही नहीं देश के नम्बर वन खिलाड़ी भी रहे। श्री दीक्षित की मुल्क भर में एक आला खिलाड़ी की ख्याति के चलते उन्हें 1975 और 1976 में टेनिस की सबसे महत्वपूर्ण टेनिस प्रतियोगिता विम्बलडन में खेलने का अवसर भी मिला लेकिन गरीबी ने उनसे यह अवसर छीन लिया। प्रदेश की नई तरुणाई बेशक दीक्षित की काबिलियत से परिचित न हो लेकिन इस शख्स को अतीत के सभी खिलाड़ी जानते हैं। वर्ष 2000 में उनका निधन हो गया। उनके बेटे प्रमोद दीक्षित अपने पिता की यादों को जीवंत रखने की खातिर प्रदेश की राजधानी भोपाल में पिछले 15 साल से टेनिस प्रतियोगिता का आयोजन कर रहे हैं। श्री शिवप्रसाद दीक्षित बेशक हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका लाजवाब खेल खेलप्रेमियों के जेहन में आज भी जिन्दा है। गरीबी ने जो खेल एस.एस. दीक्षित के साथ खेला, ऐसा किसी और खिलाड़ी के साथ न हो आओ इसकी दुआ करें।