Friday 4 September 2015

क्या शीला दीक्षित और सुरेश कलमाड़ी भी जाएंगे जेल?-page-2


कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले में पांच को सजा
नई दिल्ली। भारत में स्वतंत्रता के बाद से लेकर अब तक कई घोटाले हुए हैं जिनसे राजनीतिक दिशा और दशा दोनों निर्धारित हुई हैं। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी वर्तमान केन्द्र सरकार को भी अगर घोटालों का प्रतिसाद कहा जाए तो गलत नहीं होगा।
पिछली यूपीए सरकार को उखाड़ फेंकने में जिन घोटालों का सबसे बड़ा सहयोग था उनमें कॉमनवेल्थ गेम्स भी एक है। कॉमनवेल्थ घोटाले के बाद कांग्रेस के सांसद व इंडियन ओलम्पिक एसोसिएशन के चेयरमैन सुरेश कलमाड़ी को लगभग नौ महीने की जेल भी काटनी पड़ी थी। कॉमनवेल्थ घोटाले के कारण ही दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार को जनता ने उखाड़ फेंका। अब पांच साल के बाद दिल्ली की एक अदालत ने इस घोटाले से जुड़े पांच अभियुक्तों को दंडित किया है। इस लिहाज से कॉमनवेल्थ घोटाले के इस प्रकरण में आया फैसला स्वागत योग्य है। फिर भी ऐसे कुछ प्रश्न उठते हैं जिन पर विचार करना भी आवश्यक है।
पहला यह कि क्या अभियुक्तों को दिए गए दण्ड से अगली बार इस तरह का अपराध करने वालों में भय उत्पन्न होगा? दूसरा यह कि जो हानि जनता की गाढ़ी कमाई की हुई है उसकी भरपाई क्या जुर्माने की राशि से हो पाएगी? पहले प्रश्न के उत्तर में हम कह सकते हैं कि अगली दफा ऐसा अपराध करने से पहले भय उत्पन्न होगा। लेकिन 1.42 करोड़ की क्षतिपूर्ति अदालत द्वारा लगाए गए जुर्माने से पूरी नहीं होगी। एक अन्य पहलू यह भी है कि प्रकरण में सीबीआई ने जो साक्ष्य अदालत के समक्ष प्रस्तुत किए हैं वे स्पष्ट और अपराधों की पुष्टि करने के लिए पर्याप्त हैं परंतु क्या यही सीबीआई शीला दीक्षित या सुरेश कलमाड़ी के विरुद्ध भी इतने ही स्पष्ट साक्ष्य प्रस्तुत कर सकेगी। इतिहास गवाह है कि ऐसे घोटालों में हमारे यहां न्याय के लिए लम्बा इंतजार करना पड़ता है। चारा घोटाले के आरोपी लालू यादव और पूर्व संचार मंत्री सुखराम हों या फिर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राशिद मसूद, सभी पर आरोप साबित होने में 20 साल से भी अधिक समय लग गया। इनके जैसे कई नेता हैं जिन पर लम्बे समय से प्रकरण लम्बित पड़े हैं। कुछ समय पूर्व ये मांग उठी थी कि राजनेताओं पर चल रहे मामलों का जल्द से जल्द निबटारा होना चाहिए, वर्तमान परिदृश्य में इसे लागू किया जाना अत्यावश्यक है। घोटालों से जुड़े बड़े नामों पर तय समयसीमा में फैसले आएंगे तभी हमारी न्यायप्रणाली और अधिक सुदृढ़ हो पाएगी। क्योंकि समय बीतने के बाद मिला न्याय, अन्याय कहलाता है। साथ ही भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी राशि भी आरोपियों से उनकी सम्पत्ति राजसात करके की जाना चाहिए। ऊपरी स्तर से व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करके ही छोटे कर्मचारियों को भ्रष्टाचार न करने का संदेश दिया जा सकता है। जो भी हो मोदी सरकार को छोटी मछलियों की बजाय भ्रष्टाचार में लिप्त बड़ी मछलियों को भी सिखाना चाहिए, यही समय की मांग है।

Thursday 3 September 2015

क्रिकेट में बदलाव की बयार

क्रिकेट में बदलाव की बयार
भारत की जोश से भरी युवा क्रिकेट टीम की श्रीलंका में शानदार विजय केवल इस मायने में महत्वपूर्ण नहीं है कि श्रीलंका को उसी की धरती पर टेस्ट सीरीज में हराने के लिए हम 22 साल से तरस रहे थे, बल्कि इससे निकले संकेत कहीं आगे तक ले जाते हैं। विराट कोहली के आक्रामक नेतृत्व में यह पहली टेस्ट सीरीज जीत हमें आश्वस्त करती है कि महान कप्तानों में शुमार महेंद्र  सिंह धोनी के दिसंबर, 2014 में टेस्ट क्रिकेट से अचानक संन्यास के बाद भी भारतीय टीम का भविष्य उम्मीदों से भरा है।
यह कप्तान कोहली व डायरेक्टर रवि शास्त्री के समन्वय भरे सकारात्मक सोच का ही नतीजा है कि पूरी टीम हर क्षेत्र में लय में दिखी। कई प्रमुख बल्लेबाजों और गेंदबाजों ने संघर्ष के नाजुक मौकों पर टीम को संभालने और श्रेष्ठ प्रदर्शन का जज्बा दिखाया। बल्लेबाजों में मुरली विजय और शिखर धवन के अलावा अब केएल राहुल भी ओपनर के रूप में खेलने के दावेदार हैं। मध्य क्रम में कोहली के अलावा अजिंक्य रहाणो और चेतेश्वर पुजारा की दावेदारी भी फिलहाल निर्विवाद नजर आ रही है।
 हाल तक टीम इंडिया की एक कमजोर कड़ी मानी जाने वाली गेंदबाजी आर अश्विन और अमित मिश्रा की फिरकी तथा इशांत शर्मा और उमेश यादव की कहर बरपाती गेंदबाजी के साथ विदेशी धरती पर तीन टेस्ट मैचों में सभी साठ विकेट चटका कर अब एक नये लय में दिख रही है। कप्तान कोहली ने सीरीज से पहले ही अपनी यह रणनीति जाहिर कर दी थी कि टेस्ट में विपक्षी टीम के सभी 20 विकेट लेने वाली टीम ही जीत की सही हकदार होती है। हालांकि पहले टेस्ट में जीत के करीब पहुंच कर हार जाने के बाद कोहली की इस रणनीति की आलोचना भी हुई। कई विशेषज्ञ कह रहे थे कि छह बल्लेबाज रखने की रक्षात्मक रणनीति को त्याग कर पांच गेंदबाजों के साथ खेलने का फैसला सही नहीं है। लेकिन, कोहली ने अपना फैसला बदलने के बजाय टीम को तालमेल के साथ बेहतर प्रदर्शन के लिए उत्साहित किया। इस जीत के साथ यह सोच भी पीछे छूटेगी कि भारतीय टीम विदेशी कोच के भरोसे ही विदेशी धरती पर अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। आधुनिक क्रिकेट की बारीक समझ रखने वाले रवि शात्री के नेतृत्व में भारतीय कोच की टीम ने साबित किया है कि वे भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतरीन नतीजे देने का माद्दा रखते हैं। कप्तान और कोच की अगली परीक्षा दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ घरेलू सीरीज में होगी। उम्मीद करनी चाहिए कि टीम इंडिया का यह उभार हमें आने वाले समय में भी गर्व करने के अनेक मौके मुहैया करायेगी।
भारत की जीत की दस बड़ी बातें
विराट कोहली की अगुआई में टीम इंडिया ने इतिहास रच डाला। श्रीलंकाई धरती पर टीम इंडिया ने 22 साल से कोई भी सीरीज नहीं जीत पायी थी, लेकिन कोहली की युवा ब्रिगेड ने 22 साल के बाद टेस्ट सीरीज जीत कर इतिहास बना दिया है। कोहली ने कई कप्तानों को पीछे छोड़ दिया है। जो कारनामा सौरव गांगुली, मोहम्मद अजहरुद्दीन और महेंद्र सिंह धोनी नहीं कर पाये वो कारनामा विराट कोहली ने कर दिखाया है। सीरीज में भारत की जीत के कई अहम मायने हैं। आइये जानें आखिर कैसे टीम इंडिया ने श्रीलंका को उसी की धरती पर पटकनी देकर 22 साल बाद सीरीज पर कब्जा किया।
1. श्रीलंका के खिलाफ टीम इंडिया ने तीन टेस्ट मैच खेले। सभी मैचों में भारतीय गेंदबाजों ने शानदार प्रदर्शन किया। कहा जाता है कि अगर किसी टीम को टेस्ट मैच जीतना है तो गेंदबाजों में 20 विकेट लेने की क्षमता होनी चाहिए। टीम इंडिया ने श्रीलंका के साथ खेलते हुए ऐसा ही कर दिखाया।
 2. श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट सीरीज में टीम इंडिया की बड़ी जीत में विराट कोहली की अहम भूमिका रही है। इस सीरीज में कोहली ने साबित कर दिया कि उन्होंने भी कप्तानी के सारे गुर सीख लिये हैं। जब महेंद्र सिंह धोनी ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास की घोषणा कर दी और कोहली को टेस्ट टीम का कप्तान बनाया गया, तो एक बार लगा कि यह फैसला कहीं टीम इंडिया के लिए घातक कदम न साबित हो क्योंकि मैदान में कोहली आक्रामक क्षवि के लिए जाने जाते हैं और कप्तान के लिए इसे सही नहीं माना जाता रहा है लेकिन श्रीलंका को उसी की धरती में पटकनी देकर कोहली ने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है।
 3. श्रीलंका के खिलाफ सीरीज जीत में भारतीय तेज गेंदबाज इशांत शर्मा की भूमिका भी अहम रही है। इशांत शर्मा ने पूरी सीरीज में शानदार गेंदबाजी की। इशांत ने तीन टेस्ट मैच में कुल 13 विकेट लिये। इसके साथ ही उन्होंने टेस्ट कैरियर में 200 विकेट भी पूरे कर लिये। 200 विकेट लेने वाले आठवें भारतीय बन गये हैं।
 4.  रविचन्द्रन अश्विन की फिरकी में श्रीलंकाई चीते इस तरह से फंसे कि फिर उससे बाहर निकलना मुश्किल हो गया। अश्विन ने पूरी सीरीज में अच्छी गेंदबाजी की। उन्होंने तीन टेस्ट मैच में कुल 21 विकेट लिये। पहले टेस्ट में अश्विन ने कुल 10 विकेट लिये। वहीं दूसरे टेस्ट में 7 विकेट और आखिरी टेस्ट मैच में 4 विकेट झटके।
 5. अमित मिश्रा ने भी अपने घूमती गेंदों पर श्रीलंकाई खिलाड़ियों को खूब नचाया। टीम इंडिया की सबसे बड़ी मजबूती उसकी स्पिन गेंदबाजी रही है। श्रीलंका के खिलाफ टेस्ट सीरीज में भी भारत की स्पिन आक्रमण काफी मजबूत रहा है। अश्विन के अलावा अमित मिश्रा ने भी शानदार गेंदबाजी की। अमित मिश्रा ने पूरी सीरीज में कुल 16 विकेट झटके।
 6.  भारतीय टीम ने सीरीज में सभी विभागों में शानदार प्रदर्शन किया। गेंदबाजों के अलावा बल्लेबाजों ने भी शानदार प्रदर्शन किया। पहले टेस्ट में शिखर धवन और कप्तान विराट कोहली ने शतक जमाकर अपनी बल्लेबाजी का लोहा मनवाया। धवन ने पहले टेस्ट में शानदार 134 रन बनाये, वहीं कप्तान कोहली ने 103 रनों की पारी खेली। हालांकि पहले टेस्ट में भारत को श्रीलंका से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन अगर ओवरआॅल देखा जाए तो जीत में बल्लेबाजों की भूमिका को भी नकारा नहीं जा सकता। आखिरी टेस्ट मैच में पुजारा ने पहली पारी में 145 रन बनाये थे वहीं दूसरी पारी में अश्विन ने आॅलराउंडर प्रदर्शन करते हुए 58 रन बनाये।
 7. भारत के खिलाफ दूसरे टेस्ट मैच के साथ ही कुमार संगकारा ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह दिया। संन्यास लेने के कारण संगकारा आखिरी टेस्ट में नहीं दिखे। संगकारा के नहीं रहने से श्रीलंकाई टीम की बल्लेबाजी काफी प्रभावित हुई और भारत को इसका फायदा मिला।
 8. मौजूदा सीरीज में श्रीलंकाई गेंदबाजों ने कोई खास असर नहीं डाला। अपनी ही धरती पर गेंदबाजों के औसत प्रदर्शन ने भारत को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई। पहले टेस्ट को अगर छोड़ दिया जाये तो श्रीलंकाई आक्रमण काफी कमजोर साबित हुआ।
 9. भारत के खिलाफ मौजूदा सीरीज में श्रीलंका की बल्लेबाजी काफी कमजोर साबित हुई। कमजोर बल्लेबाजी के कारण भारतीय गेंदबाज उन पर आक्रामक हुए। टीम इंडिया के गेंदबाजों को श्रीलंका के बल्लेबाजों ने हावी होने का मौका दिया।
 10.  टेस्ट मैच में बारिश का असर देखने को मिला। दूसरे टेस्ट और आखिरी टेस्ट में बारिश ने खलल डाला। बारिश होने से भारतीय स्पिनरों को काफी मदद मिली। पिच में नमी होने से स्पिनर काफी आक्रामक हो गये। अश्विन और अमित मिश्रा ने नमी का काफी फायदा उठाया।

फिट रही तो ओलम्पिक स्वर्ण मेरा: साइना नेहवाल

दुनिया की नम्बर एक खिलाड़ी फिटनेस के लिये कर रही जीतोड़ कोशिश
साइना नेहवाल केलोग्स के अभियान बड़े सपनों की सही शुरुआत से जुड़ी

नई दिल्ली। विश्व की नम्बर एक बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल का मानना है कि यदि वह शारीरिक रूप से फिट रही तो ओलम्पिक का स्वर्ण पदक उसका होगा। देश की यह शटलर  विश्व चैम्पियनशिप में पदक जीतने का अपना सपना पूरा कर चुकी है और अब उसकी निगाहें 2016 के रियो ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतने पर लगी हंै।
 सायना का कहना है कि ओलम्पिक स्वर्ण जीतने के लिए उन्हें अपनी फिटनेस और फार्म की निरंतरता को बनाए रखना होगा। सायना ने दो सितम्बर को केलोग्स के अभियान बड़े सपनों की सही शुरुआत से जुड़ने के बाद संवाददाता सम्मेलन में कहा, लंदन ओलम्पिक में कांस्य पदक और इस साल विश्व चैम्पियनशिप में रजत पदक जीतने के बाद निश्चित रूप से मेरा अगला लक्ष्य रियो ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतना है। लेकिन इसके लिए मुझे अपनी मौजूदा फार्म को अगले एक साल तक बरकरार रखना होगा। बैडमिंटन स्टार ने कहा, फार्म में निरंतरता के साथ साथ मुझे अपनी फिटनेस पर भी खास ध्यान रखना होगा। खिताब जीतने के लिए शत-प्रतिशत फिटनेस बहुत जरूरी है। मैं इसके लिए कड़ी मेहनत और ट्रेनिंग कर रही हूं और उम्मीद करती हूं कि अगले साल रियो ओलम्पिक तक चोटों से दूर रहूं।
सायना ने माना कि मौजूदा वर्ष उनके कॅरियर का सर्वश्रेष्ठ समय है। उन्होंने कहा, मैंने इस साल इंडियन ओपन और सैयद मोदी ग्रांप्री के खिताब जीते जबकि आॅल  इंग्लैंड तथा विश्व चैम्पियनशिप के फाइनल में जगह बनाई। विश्व रैंकिंग में मैं नम्बर एक बन गई हूं, किसी खिलाड़ी के लिए इससे बेहतर और क्या हो सकता है। सायना ने साथ ही कहा कि उनके लिए अपनी ट्रेनिंग को हैदराबाद से बेंगलुरू शिफ्ट करना बहुत फायदेमंद रहा। उन्होंने कहा, मैंने विमल सर से बात की थी और वह व्यक्तिगत तौर पर ट्रेनिंग देने के लिए तैयार हो गए थे। हैदराबाद में ग्रुप ट्रेनिंग के कारण मेरा खेल लगातार प्रभावित हो रहा था। लेकिन अब विमल सर के खास फोकस के कारण मेरे खेल में उल्लेखनीय सुधार आया है और इसके परिणाम भी दिखाई दे रहे हैं। साइना ने कहा, अगला वर्ष ओलम्पिक वर्ष है जो काफी मुश्किल होगा और हर कोई ओलम्पिक की कड़ी तैयारी करेगा। मैं खुद भी ओलम्पिक के लिए कड़ी मेहनत कर रही हूं।
ओलम्पिक हर चार साल बाद होते हैं और मैं खुद को खेलों के महाकुंभ में नया मुकाम हासिल करने के लिए तैयार करूंगी। पिछले पांच वर्ष से मैं विश्व चैम्पियनशिप में क्वार्टर फाइनल की बाधा पार नहीं कर पा रही थी लेकिन इस बार मैं फाइनल में पहुंची। चीन की दीवार तोड़ चुकी लेकिन अब स्पेन की कैरोलिना मारिन के रूप में नई दीवार का सामना कर रही सायना ने कहा, मारिन भी इस साल बहुत अच्छा खेल रही  है और मैं उन्हें अगले टूर्नामेंट में हराने की पूरी कोशिश करूंगी। मैंने चीन की सभी शीर्ष खिलाड़ियों को हराया है और मैं मारिन को भी परास्त कर सकती हूं। चीन के रियो ओलम्पिक में अप्रत्याशित रूप से किसी चौंकाने वाले खिलाड़ियों को उतारने के सवाल पर सायना ने कहा, मैं विश्व रैंकिंग में सभी शीर्ष चीनी खिलाड़ियों से खेल चुकी हूं और उन्हें हरा भी चुकी हूं। ओलम्पिक में विश्व रैंकिंग के लिहाज से प्रवेश मिलता है इसलिए कोई अनजाना खिलाड़ी सामने आए इसकी सम्भावना कम लगती है। लेकिन पहले राउण्ड में मुझे बहुत सतर्क रहने की जरूरत होगी।

महिला हॉकी 36 साल बाद खेलेगी ओलम्पिक

मेजर ध्यानचंद को मिला बर्थडे गिफ्ट

नई दिल्ली। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन और खेल दिवस के मौके पर खेल प्रशंसकों की खुशियां महिला हॉकी टीम के अगले वर्ष होने वाले रियो ओलम्पिक के लिये क्वालीफाई करने की खबर के साथ ही दोगुनी हो गयीं।
हॉकी वर्ल्ड लीग सेमीफाइनल्स में पांचवें स्थान पर आने के बाद महिला टीम से उम्मीद की जा रही थी कि वो रियो ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करेगी। यूरो हॉकी चैम्पियनशिप में इंग्लैंड और हॉलैंड के फाइनल में पहुंचने के साथ ही भारतीय टीम का रियो ओलम्पिक के लिए रास्ता खुल गया। इंग्लैण्ड ने यूरो हॉकी चैम्पियनशिप जीत ली।
 भारतीय महिला हॉकी टीम ने पहली बार वर्ष 1980 में ओलम्पिक में शिरकत किया था। 36 साल बाद अब वह दूसरी बार खेलों के महाकुंभ ओलम्पिक का हिस्सा बनेगी। जिसमें 12 टीमें शिरकत करेंगी। भारतीय महिला टीम के रियो ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करने पर अपनी खुशी जाहिर करते हुए खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा कि खेल दिवस के अवसर पर महिला हॉकी टीम के ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करने से इस मौके का महत्व बढ़ गया है। महिला हॉकी टीम की इस शानदार उपलब्धि पर मैं उनको बधाई देता हूं।
पुरुष हॉकी टीम पहले ही रियो के लिए क्वालीफाई कर चुकी है और अब महिला टीम ने भी रियो ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करके खेल दिवस के इस मौके को खास बना दिया है। हम उम्मीद करते हैं कि पुरुष और महिला टीम अगले वर्ष होने वाले ओलम्पिक में अपना शानदार प्रदर्शन करते हुए देश के लिए पदक जीतेगी।
महिला हॉकी टीम को उनकी शानदार उपलब्धि पर अपनी बधाई देते हुए हॉकी इंडिया के अध्यक्ष नरेंद्र ध्रुव बत्रा ने कहा कि महिला हॉकी टीम का ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करना हम सभी के लिए एक गौरवपूर्ण क्षण है। हमें 36 साल के लम्बे इंतजार के बाद यह खुशी मिली है। महिला टीम ने इसके लिए कड़ी मेहनत की थी और मैं उन्हें उनकी इस शानदार सफलता पर बधाई देता हूं। मैं उम्मीद करता हूं कि महिला टीम अपने इस बेहतरीन प्रदर्शन को जारी रखते हुए ओलम्पिक में देश के लिए पदक जीतेगी। बयान के अनुसार, यूरो हॉकी चैम्पियनशिप का विजेता इंग्लैण्ड यूरोपीय महाद्वीपीय विजेता के रूप में 2016 ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करेगा जिससे एक क्वालीफिकेशन स्थान बच गया जो भारत को हॉकी विश्व लीग सेमीफाइनल्स से क्वालीफाई नहीं करने वाली सबसे बेहतर रैंकिंग वाली टीम के रूप में मिला।
भारत अब पहले ही क्वालीफाई कर चुकी नौ अन्य टीमों के साथ ओलम्पिक में हिस्सा लेगा। इससे पहले दक्षिण कोरिया, अर्जेण्टीना, ग्रेट ब्रिटेन, चीन, जर्मनी, नीदरलैंड, आॅस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और अमेरिका रियो ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई कर चुके हैं। भारतीय महिला हॉकी टीम ने पिछली बार 1980 मास्को खेलों में हिस्सा लिया था जहां टीम चौथे स्थान पर रही थी। हॉकी इंडिया ने महिला हॉकी टीम की इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए सराहना की। हॉकी इंडिया के अध्यक्ष नरिंदर बत्रा ने कहा, यह हाकी इंडिया और पूरे देश के लिए गर्व की बात है। हम पिछले 36 साल से इसका इंतजार कर रहे थे और यह उपलब्धि हाल के समय की सभी पिछली उपलब्धियों में सबसे यादगार है। हॉकी इंडिया ने इस दौरान खिलाड़ियों और कोचिंग स्टाफ को भी बधाई दी। भारत रियो ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई करने वाली 10वीं टीम है। अंतिम दो टीमों का फैसला मिस्र में होने वाले 2015 अफ्रीका कप फोर नेशन्स और नवम्बर में न्यूजीलैंड में होने वाले 2015 ओसियाना कप से होगा।

Wednesday 2 September 2015

छत्तीसगढ़ में संतुलित खेल नीति की दरकार


हॉकी खिलाड़ी रेणुका यादव ने बढ़ाया प्रदेश का मान
ग्वालियर। रियो ओलम्पिक में भारतीय महिला हॉकी टीम ने अपना टिकट पक्का कर लिया है। यह उपलब्धि कई मायनों में महत्वपूर्ण है। पहला यह कि 36 साल के लम्बे अंतराल के बाद भारतीय महिला हॉकी टीम इस मुकाम तक पहुंचने में सफल हो सकी। दूसरे इस उपलब्धि को हासिल करने में छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव की रेणुका यादव ने भी अपनी अहम भूमिका निभाई।
रेणुका ने अपने खेल से टीम को एक मजबूत डिफेंस दिया। डिफेंस के कारण ही बेल्जियम के एंटवर्प में हुए हॉकी वर्ल्ड लीग सेमीफाइनल में भारतीय टीम पांचवें स्थान पर रही। रेणुका की इस सफलता के बहाने छत्तीसगढ़ में खेलों की ताजा स्थिति पर चर्चा जरूरी है। दरअसल, खिलाड़ी प्रतिभा और प्रशिक्षण का संयोग होता है। खिलाड़िय़ों की प्रतिभा तभी तराशी जा सकती है जब उन्हें उम्दा सुविधाएं और प्रशिक्षक मिलें और यह काम प्राथमिक शिक्षा के साथ-साथ शुरू हो जाता है। लेकिन प्रदेश के स्कूलों में खेल शिक्षक हैं लेकिन खेल की अन्य सुविधाओं का अभाव है। अधिकांश स्कूल-कॉलेजों में खेल के मैदान और खेल के जरूरी सााजो-सामान नहीं हैं। जाहिर है बिना मूलभूत सुविधाओं के न तो खिलाड़िय़ों की फौज तैयार की जा सकती है और न ही खेल का विकास हो सकता है। खेलों को लेकर प्रदेश दो भागों में विभाजित दिखता है। एक नगर और दूसरा गांव। नगर में खेल सुविधाओं को बढ़ाने में प्रदेश सरकार ध्यान दे रही है। कई स्टेडियम बनाए गए हैं । हाल में एक हॉकी अकादमी की भी शुरुआत की गई है। लेकिन इससे ठीक उलट गांवों की तस्वीर है। यहां खेल के नाम पर कुछ प्रतियोगिताएं भर होती हैं। बच्चों को खेल के लिए प्रोत्साहित करने के वातावरण का यहां अभाव दिखता है। ऐसी परिस्थितियों में खेल प्रतिभाओं को इस तरह तैयार नहीं किया जा सकता जो अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकें। ऐसा नहीं है कि प्रदेश में प्रतिभाओं की कमी है। जरूरत उन्हें तराशने की है। तीरंदाजी, हॉकी, बास्केटबॉल, फुटबॉल जैसे कम खर्चीले खेलों को यदि प्रोत्साहित किया जाए तो प्रदेश देश और दुनिया में अपनी अलग पहचान बना सकता है। अच्छे और प्रतिभावान खिलाड़िय़ों के लिए सरकार को अपनी खेल नीति को व्यापक और संतुलित बनाना होगा तभी रेणुका जैसी खिलाड़िय़ों का जन्म हो सकेगा।

टेनिस का हीरो सुमित नागल-Page-5


जैतपुर की जमीन से निकला सितारा
सुमित नागल को टेनिस के क्षेत्र में भारत का भविष्य कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा, क्योंकि कड़ी

मेहनत और लगन के बूते पर उसने जो मुकाम हासिल किया है, वह वाकई प्रेरणादायी है। सुमित की सफलता की बात हो तो यह ऐसे ही उसके हिस्से में नहीं आ गई। बेशक यह एक सच्ची कहानी है, लेकिन पटकथा पूरी फिल्मी जान पड़ती है। टेनिस से जुड़े उसके करिअर में कड़ी दर कड़ी जुड़ते हुए किरदारों ने उसका ऐसा साथ दिया कि लंदन की धरती पर विम्बलडन ग्रैंड स्लैम में सुमित ने भारत का नाम रोशन कर दिखाया।
फ्लैश बैक में जायें तो सुमित के पिता सुरेश कुमार नागल आर्मी से रिटायर होने के बाद दिल्ली में बतौर शिक्षक तैनात होकर 2003 में गांव छोड़कर चले गए थे। उनके मुताबिक प्रारंभ से ही उन्हें टेनिस देखने का शौक था। मूल रूप से ग्रामीण पृष्ठभूमि रखने वाले सुरेश कुमार खुद तो टेनिस नहीं खेल पाए, लेकिन बेटा सुमित जोकि बचपन से ही काफी एक्टिव था, को उन्होंने टेनिस का प्रशिक्षण दिलवाना प्रारंभ कर दिया। पिता की ओर से दिखाए गए विश्वास एवं स्नेह का परिणाम यह रहा कि सुमित ने इस मौके को हाथों-हाथ लिया। बचपन से लेकर अब तक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वह दर्जनों मेडल एवं ट्राफी जीत चुका है, लेकिन ग्रैंड स्लैम में उसकी दमदार मौजूदगी ने उसके करिअर में चार चांद लगाने का काम किया है। आज भी उसके पैतृक गांव में उसकी जीती ट्राफियां सहेज कर रखी हुई हैं।
नामी-गिरामी मुकाबलों में किया बेहतर प्रदर्शन
जिला मुख्यालय से करीब 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जैतपुर गांव में जन्मा 17 वर्षीय सुमित नागल अपने करिअर में कई नामी मुकाबलों में बेहतर प्रदर्शन कर चुका है। वर्ष 2015 के जनवरी माह में आस्ट्रेलिया में हुई प्रतियोगिता के पहले ही राउंड के लिए हुए बड़े मुकाबले में सुमित ने विश्व के सातवें नम्बर के माइकल ममोह को 6-2, 4-6, 6-4 से शिकस्त देते हुए प्रतियोगिता में बड़ा उलटफेर किया था। जबकि दूसरे राउंड में जापान के योसुके वातानुकी को 6-2, 6-3 के सीधे सेटों में मात देते हुए तीसरे राउंड में स्थान सुनिश्चित किया था। बेहतर प्रदर्शन के बलबूते पर ही सुमित नागल ने डबल्स विम्बलडन जीतकर झज्जर जिले का ही नहीं बल्कि पूरे देश का गौरव बढ़ाया है।
महेश भूपति ने दिया सहारा तो चमका सुमित
शिक्षक सुरेश नागल और माता कृष्णा देवी के पुत्र के भाग्य में कुछ बेहतर ही लिखा था। इसलिए ही दिल्ली में ही हुए एक टेस्ट में देश के प्रख्यात खिलाड़ी महेश भूपति की निगाह उस पर पड़ गई। बस उस दिन के बाद युवा खिलाड़ी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा है। वह लगातार पिछले छह साल से सीधे रूप से भूपति की देखरेख में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा है। खेल को लेकर होने वाला पूरा खर्च भी व्यक्तिगत तौर पर महेश भूपति उठा रहे हैं। आज उनका परिवार भी यह महसूस करता है कि महेश भूपति एवं सुमित नागल का जुड़ाव अवश्य ही भगवान का कोई वरदान उनके लिए साबित हुआ है, जो आज तक लाखों रुपये लगाकर वह उन्हें एक हीरे के रूप में तराशने का काम कर रहे हैं। महंगे खेल के रूप में आमजन के बीच अपनी पहचान रखने वाले सुमित नागल ने टेनिस का प्रशिक्षण महेश भूपति की मार्फत जर्मनी एवं यूरोप में हासिल किया है।
परिजन मोबाइल में रिकार्ड करते हैं मैच
सुमित के चचेरे भाई नरेंद्र नागल का कहना है कि भाई टेनिस का खेल तो इस्सा है कि हारे खूंड भी बिक जाते तो खर्चा पूरा नहीं पाट सकता था, लेकिन किस्मत ने सुमित और परिवार का ऐसा साथ दिया है कि आज माहौल बदला हुआ है। सुमित की भाभी मंजू देवी व ताई सावित्री देवी का कहना है कि वह उसके मैच को वह अपने मोबाइल में रिकॉर्ड कर लेते हैं और बाद में उसे देखते हैं। या जो भी लोग उस दौरान मैच नहीं देख पाए उन्हें बाद में दिखाते हैं। ताऊ सुंदर लाल का कहना है कि बचपन से ही वह काफी मेहनती है था, इस बात का सभी को पता है। चूंकि सुरेश की ओर से परिवार सहित दिल्ली चले जाने का निर्णय उसके करिअर के लिए काफी बढ़िया रहा, यह आज महसूस होता है। उनके मुताबिक दिल्ली राजधानी है और इस खेल से जुड़ी सुविधाएं वहां मुहैया हो सकती हैं। अगर सुमित जैतपुर में ही रह जाता तो शायद माहौल इतना सुखद नहीं रहता।
इच्छाशक्ति ने साधारण युवा को बनाया चैम्पियन
किसी भी खिलाड़ी की योग्यता, कड़ी चुनौतियों से जूझने की उसकी क्षमता के आधार पर आंकी जाती है। कोई भी व्यक्ति कुशल, तेज और दृढ़-प्रतिज्ञ हो सकता है, लेकिन ऊंचे स्तर पर सफलता तब तक मृग मरीचिका ही साबित होती है जब तक उसमें जीत के प्रति जज्बा न हो। ऐसे ही अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और समर्पण से कभी-कभी एक साधारण युवा भी चैम्पियन बन जाता है। भारतीय टेनिस के उभरते हुये खिलाड़ी सुमित नागल भी इसी श्रेणी में आते हैं। अपने अदम्य साहस, दृढ़ इच्छाशक्ति और जुझारूपन से उसने टेनिस के क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन किया है।

ओलम्पिक में छाया भिवानी का छोरा-Page 5


स्पेशल ओलम्पिक में शटलर सचिन ने जीते तीन पदक
एक सचिन ने क्रिकेट में भारत को बुलंदियों पर पहुंचाया तो दूसरे सचिन ने बैडमिंटन में देश का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिख दिया। जिस सचिन की हम बात कर रहे हैं वो कोई सामान्य बालक नहीं, बल्कि स्पेशल चाइल्ड है जो बैडमिंटन में चैम्पियन बन गया।
कौन है वो सचिन व क्या है उसके चैम्पियन बनने की कहानी। महज छह साल की उम्र में उस बच्चे की मां भगवान को प्यारी हो गई तो परिवार के सामने दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। बाप अपने बच्चों को संभाले या खुद को संभाले, सवाल कई थे। उससे भी ज्यादा यह कि नन्हें मासूम को भारी सदमा लगा। उसका इलाज भी करवाया गया मगर कोई लाभ न मिला। उसका दिमाग न पढ़ाई में लगता न घर के दूसरे कामों में।
पिता ने घर में रखे पुराने रैकेट से बच्चे का मन बहलाना शुरू किया तो कहानी ही बदल गई। बच्चा खेल में रुचि लेने लगा व आज इस मुकाम तक पहुंच गया कि वर्ल्ड चैम्पियनशिप में एक नहीं तीन पदक जीत दिखाये। ये कहानी है सचिन शर्मा की। 16 साल के सचिन का सफर मुश्किलों भरा तो रहा, मगर उपलब्धियों को इस कदर उसने अपना बनाया कि अब देश का नाम विश्व के मानचित्र पर चमका दिया।
सबसे बड़ा योगदान पिता का
भिवानी जिले के गांव जाटू लुहारी निवासी सतीश शर्मा के छोटे बेटे सचिन शर्मा को इस मुकाम तक पहुंचाने में सबसे बड़ा योगदान उसके पिता का है, जिसने बेटे के खेल के लिए अपनी पूरी जिंदगी दांव पर लगा दी। एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में पूना में काम करने वाले सतीश ने बीवी की मौत के बाद बड़े बेटे को सीए की कोचिंग के लिए दिल्ली में भेज रखा है तो दूसरा बेटा सचिन खेल में नाम कमा रहा है। खेल की तैयारियों के लिए सतीश ने खेती छोड़ दी व पूना में ट्रांसपोर्ट कंपनी ज्वाइन कर ली। महज 10 हजार रुपये में बेटे को सीए की पढ़ाई करवाये, दूसरे बेटे को खिलाड़ी बनाए या परिवार का पेट पाले, लेकिन सतीश ने हिम्मत नहीं छोड़ी व जैसे-तैसे बेटे को प्रैक्टिस करवाई।
ठान लिया था गोल्ड मेडल ही जीतना है
पिछले साल महाराष्ट्र में नेशनल स्पेशल ओलंपिक्स में चैम्पियन बने बेटे ने भी ठान लिया था कि वो विश्व में देश का परचम लहराएगा। इसी साल मार्च माह में रोहतक कैम्प के दौरान अपने गांव जाटू लुहारी आए सचिन शर्मा ने अपनी प्रतिबद्धता दोहराई थी कि उसका मकसद देश के लिए गोल्ड मेडल लाना था। सचिन को इस मुकाम तक पहुंचने में जहां आर्थिक परेशानियों से दो-चार होना पड़ा, वहीं शारीरिक दिक्कतों ने भी उसको खूब परेशान किया।
ट्रायल से एक रात पहले हुआ था हादसा
लास एंजिल्स में 25 जुलाई से 2 अगस्त तक आयोजित स्पेशल ओलंपिक में जाने से 2 माह पूर्व जब चेन्नई में ट्रायल होनी थी तो एक रात अचानक सचिन के पेट में नस फट गई। रातों रात लाखों रुपये खर्च कर इलाज करवाया गया व चिकित्सकों ने सलाह दी कि वह डेढ़-दो माह आराम करे, मगर जिस मिशन के लिए सचिन व उसके पिता ने सपना संजोया था वो टूटते देख सचिन ने अपने जिंदगी की परवाह न करते हुए ट्रायल में हिस्सा लिया क्योंकि अगर ट्रायल में भाग न लेता तो शायद अमेरिका न जा पाता।
पैसे की कमी के कारण पिता साथ नहीं जा पाये
सचिन अकेला अमेरिका गया क्योंकि उसके पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह भी बेटे के साथ जा सकें। अमेरिका जाकर सचिन ने पूरे परिवार के सपनों को साकार कर डाला। उसने सिंगल्स मुकाबले में सोना, डबल्स में चांदी व मिक्स्ड डबल्स में कांस्य जीतकर देश का नाम रोशन किया। सचिन के गांव जाटू लुहारी स्थित आवास पर सभी खुश हैं आखिर खुशी हो भी क्यों न। सचिन ने विषम परिस्थितियों के बावजूद ऐसा काम कर दिखाया है जिसे शायद बड़े-बड़े सुविधाओं के बावजूद न कर पाएं।
परिजनों को गर्व, लेकिन मलाल भी
सचिन के ताऊ सुभाष शर्मा दादी फूलपति, सुरसती, ताई कुसुम, बहन व भाभी केला का कहना है कि उन्हें गर्व है कि सचिन ने उनका सपना साकार किया है, मगर मलाल ये है कि इतनी उपलब्धियों के बावजूद उसे कोई प्रोत्साहन नहीं मिला है। एक खास बात ये भी है कि सचिन को आहार विशेषज्ञों ने जो डाइट देने के लिए कहा था उस पर प्रतिदिन का खर्च 600 रुपये तक आता है, मगर पिता ने खर्च की परवाह न करते हुए उसे वही डाइट उपलब्ध करवाई व बेटा आज इस मुकाम तक पहुंच गया। मगर विडम्बना ये है कि सरकार की तरफ से कोई सहायता नहीं मिली है।
सचिन का रोल मॉडल सचिन
सचिन के पिता सतीश ने बताया कि उनका बेटा सचिन तेंदुलकर को अपना रोल मॉडल मानता है तथा सचिन से मिलने के बाद ही वह कोई जश्न मनाएगा।
सरकार से दरकार
बहरहाल बेटे की उपलब्धि पर सबको नाज है तो सरकार से सुविधाओं एवं सहायता की भी दरकार है। एक तरफ सरकार खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए करोड़ों खर्च करने की बात करती है वहीं दूसरी ओर सुविधाओं के अभाव के बावजूद सचिन सरीखे खिलाड़ी प्रदेश एवं देश का नाम रोशन कर रहे हैं तो जब उनको सुविधाएं मिलें तो शायद हालात ही बदल जायें। देखना होगा सरकार इस खिलाड़ी की कितनी सुध ले पाती है।


सानिया मिर्जा को मिला सर्वोच्च राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार-Page-4




नयी दिल्ली। टेनिस स्टार सानिया मिर्जा को राष्ट्रपति भवन में खेल दिवस पर भव्य समारोह में प्रतिष्ठित राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया जबकि जीतू राय सहित कई अन्य खिलाड़ियों ने अर्जुन पुरस्कार हासिल किये। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सानिया को पुरस्कार प्रदान किया। वह मैरून रंग की साड़ी और नीला ब्लेजर पहने हुए थीं। दरबार हाल में में तालियों की गड़गड़ाहट के बीच उन्होंने पुरस्कार प्राप्त किया। दरबार हाल में तब खेल मंत्री सर्बानंद सोनोवाल सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
लिएंडर पेस के बाद सानिया देश का सर्वोच्च खेल पुरस्कार पाने वाले दूसरी टेनिस खिलाड़ी हैं। उन्हें यह पुरस्कार तब दिया गया जब अदालत में उन्हें खेल रत्न दिये जाने को लेकर सवाल उठाये हैं। राष्ट्रपति ने इस अवसर पर अर्जुन पुरस्कार भी वितरित किये। क्रिकेटर रोहित शर्मा, मुक्केबाज मनदीप जांगड़ा और धाविका एमआर पूवम्मा पुरस्कार हासिल करने के लिए उपस्थित नहीं थे। सेवानिवृत न्यायाधीश वीके बाली की अगुवाई वाली समिति ने कुल 17 नामों को अर्जुन पुरस्कार देने की सिफारिश की थी। राष्ट्रपति भवन में उपस्थित लोगों की सबसे अधिक तालियां सानिया को मिलीं जिन्होंने पदक, प्रमाण-पत्र और 7.50 लाख रुपये का नकद पुरस्कार हासिल किया। अर्जुन पुरस्कार विजेताओं को अर्जुन की प्रतिमा, प्रमाण-पत्र और पांच लाख रुपये नकद दिये गये।
इस बार भी रही विवादों की साया
इस बार भी पुरस्कार विवादों से घिरे रहे। कुछ एथलीटों और कोचों ने मंत्रालय से नियुक्त पैनल की सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया। जब लग रहा था कि इस बार के समारोह से पहले कोई विवाद नहीं होगा तभी परा एथलीट एचएन गिरिशा ने सानिया को खेल रत्न देने की सिफारिश को कर्नाटक उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी। गिरिशा को अब भी पुरस्कार मिलने की उम्मीद है वहीं कुश्ती कोच विनोद कुमार का मामला अदालत में लंबित है। विनोद ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर करके दावा किया कि वह अनूप कुमार की तुलना में द्रोणाचार्य पुरस्कार पाने के अधिक हकदार है। सरकार से नियुक्त पैनल ने अनूप कुमार के नाम की सिफारिश की थी। यह अगले सप्ताह पता चलेगा कि उन्हें द्रोणाचार्य मिलेगा या नहीं। स्टार निशानेबाज जीतू राय के लिए यह गौरवशाली क्षण था जिन्होंने पिछले दो वर्षों में शानदार प्रदर्शन किया है। उनके अलावा राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला जिम्नास्ट दीपा करमाकर, हाकी स्टार पीआर श्रीजेश और पहलवान बबिता को भी अर्जुन पुरस्कार दिया गया।
 इन्हें किया गया सम्मानित
राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार: सानिया मिर्जा।
अर्जुन पुरस्कार 2015: पीआर श्रीजेश हॉकी, दीपा करमाकर  जिम्नास्ट, जीतू राय निशानेबाजी, संदीप कुमार तीरंदाजी, मनदीप जांगड़ा मुक्केबाजी, बबिता फोगाट कुश्ती, बजरंग कुश्ती, रोहित शर्मा क्रिकेट, के. श्रीकांत बैडमिंटन, स्वर्ण सिंह विर्क रोइंग, सतीश शिवालिंगम भारोत्तोलन, सांतोई देवी वुशू, शरत गायकवाड़ परा सेलिंग, एमआर पूवम्मा एथलेटिक्स, मनजीत छिल्लर कबड्डी, अभिलाषा महात्रे कबड्डी, अनूप कुमार यामा  रोलरस्केटिंग।
 द्रोणाचार्य पुरस्कार : नवल सिंह एथलेटिक्स परा खेल, अनूप सिंह कुश्ती, हरबंस सिंह एथलेटिक्स जीवनपर्यंत, स्वतंत्र राज सिंह मुक्केबाजी जीवनपर्यंत, निहार अमीन  तैराकी जीवनपर्यंत।
 ध्यानचंद पुरस्कार: रोमियो जेम्स हॉकी, शिवप्रकाश मिश्रा टेनिस, टीपीपी नायर वालीबाल।

सचिन को आउट करने वाला पाकिस्तानी गेंदबाज सिडनी में चला रहा है टैक्सी
नयी दिल्ली। क्रिकेट खेलने वाले तमाम गेंदबाजों की एक ही इच्छा होती है वह सचिन जैसे महान क्रिकेटर का विकेट ले।  ऐसी इच्छा रखने वालों में शेन वॉर्न से लेकर मुथैया मुरलीधरन तक शामिल रहे हैं। पाकिस्तान क्रिकेट टीम का एक महान गेंदबाज अरशद खान जो चमकने से पहले ही बुझ गया। उसने सचिन का विकेट लेकर दुनिया में अपनी पहचान बना ली थी लेकिन आज वह क्रिकेट की दुनिया से काफी दूर जा चुका है।
जी हां पाकिस्तान क्रिकेट टीम में सकलैन मुश्ताक जैसे महान स्पिनर के होने से अरशद को टीम में अधिक समय तक खेलने का मौका नहीं मिला। ढलती उम्र के कारण उसने बहुत जल्द क्रिकेट से संन्यास ले लिया। संन्यास के बाद अरशद की कोई खबर नहीं है। अचानक आॅस्ट्रेलिया के एक शख्स ने अपने फेसबुक वॉल पर अरशद की कार चलाती फोटो पोस्ट की और सोशल मीडिया में अरशद की चर्चा होने लगी। जी हां कभी पाकिस्तान की ओर से खेलते हुए सचिन तेंदुलकर का विकेट लेने वाला खिलाड़ी आज अपना पेट पालने के लिए सिडनी में कार चला रहा है।
 गणेश बिरले ने अरशद से बात की। बातचीत में उसने अपने को पाकिस्तानी बताया लेकिन कहा कि वह लम्बे समय से आॅस्ट्रेलिया में रह रहा है और उबर कैब चला रहा है। गणेश को अरशद ने बताया कि वह पाकिस्तान और इंडियन सुपर लीग में हैदराबाद के लिए खेल चुके हैं। यह सुन कर गणेश चकित रह गया। गौरतलब है कि अरशद खान ने पाकिस्तान की ओर से 9 टेस्ट और 56 वनडे मैच खेले हैं। अरशद ने अपना अंतिम टेस्ट और अंतिम वनडे भारत के खिलाफ खेला था। 56 वनडे में अरशद ने 32 विकेट और फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 601 विकेट लिये हैं। अरशद ने अपने पहले ही वनडे मैच में सचिन तेंदुलकर को आउट किया था।

कमाल के विराट कोहली-PAGE-3







विराट कोहली भारत के पहले कप्तान हैं, जिन्होंने विदेशी भूमि पर पिछड़ने के बाद सीरीज जीती है। भारत गॉले में खेले गए पहले टेस्ट में 63 रन से हार गया था। उसने पी सारा ओवल पर दूसरा टेस्ट 278 रन से जीतकर सीरीज में वापसी की और तीसरे टेस्ट की जीत के साथ इतिहास रच दिया। पहली सीरीज अजहर ने जीती थी। भारत ने विराट सेना की इस सीरीज जीत से पहले 1993 में श्रीलंका के खिलाफ उसके घर में सीरीज जीती थी, उस समय भारत के कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन थे। कुशाल परेरा और कप्तान मैथ्यूज के खेलने के समय बाजी भारत के हाथ से निकलती नजर आ रही थी। पर चाय के तत्काल बाद अश्विन ने परेरा को आउट करके मैच पर भारत की पकड़ बना दी और भारत ने दूसरी नई गेंद लेकर पांच ओवर में चार विकेट निकालकर जीत हासिल कर ली।
भारतीय कप्तान विराट कोहली श्रीलंकाई जमीन पर 22 साल के लम्बे अंतराल के बाद मिली ऐतिहासिक सीरीज जीत से इतने खुश हुए कि उन्होंने तीसरे टेस्ट में टीम इंडिया की 117 रन की जीत में नायक रहे बल्लेबाज चेतेश्वर पुजारा और गेंदबाज ईशांत शर्मा को मैच के बाद सबसे आगे चलने के लिये कहा। एसएससी मैदान में भारतीय टीम जब श्रीलंकाई टीम का मानमर्दन कर पैवेलियन की ओर लौट रही थी तो कप्तान विराट ने एक हाथ में स्टम्प ले रखा था और साथ ही उन्होंने पुजारा तथा ईशांत से कहा कि वह टीम में सबसे आगे चलें। विराट ने इस तरह अपनी कप्तानी की परिपक्वता का परिचय दिया कि वह अपने सभी खिलाड़ियों को साथ लेकर चलते हैं। यही वजह थी कि उन्होंने भारत की जीत के दो प्रमुख सूत्रधारकों से कहा कि वे टीम में सबसे आगे चलें।
मैन आॅफ द मैच बने पुजारा ने भारत की पहली पारी में नाबाद 145 रन बनाए थे जबकि ईशांत ने पहली पारी में पांच विकेट सहित कुल आठ विकेट हासिल किए। ईशांत ने कहा, पहला मैच हारने के बाद किसी भी टीम के लिए वापसी करना आसान नहीं होता। हमारे लिए सबसे अच्छी बात यही थी कि हम हमेशा सकारात्मक थे और अपनी योजना पर डटे रहे। गेंद मेरे हाथ से बढ़िया तरीके से निकल रही थी और मैं उम्मीद करता हूं कि जब मैं अगला मैच खेलूं तब भी ऐसा ही करूं।
अश्वनि की फिरकी में नाचे श्रीलंकाई
 विदेशी जमीन पर विकेट न ले पाने की आलोचनाओं को झेल रहे आॅफ स्पिनर रविचंद्रन अश्विन ने श्रीलंकाई जमीन पर ऐसा रिकार्ड तोड़ प्रदर्शन किया कि भारत ने 22 साल के अंतराल के बाद श्रीलंका में पहली सीरीज जीत ली। भारत की 2-1 की जीत में अश्विन की सफलता का बहुत बड़ा योगदान रहा। उन्होंने सीरीज के तीन मैचों में 18.09 के बेहतरीन औसत से सर्वाधिक 21 विकेट झटके और मैन आॅफ द सीरीज बन गए। अश्विन ने गॉले में पहले टेस्ट में 10 विकेट, पी सारा ओवल मैदान पर दूसरे टेस्ट में सात विकेट और एसएससी में तीसरे टेस्ट में चार विकेट हासिल किए। उन्होंने सीरीज में एक पारी में पांच विकेट दो बार और मैच में 10 विकेट एक बार हासिल किए। अश्विन ने श्रीलंकाई जमीन पर एक सीरीज में सर्वाधिक 16 विकेट लेने का हरभजन सिंह का रिकार्ड दूसरे टेस्ट में ही तोड़ दिया था। अश्विन को तीसरे टेस्ट की पहली पारी में कोई विकेट नहीं मिला लेकिन उन्होंने दूसरी पारी में चार विकेट लेकर भारत को 117 रन से जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मैन आॅफ द मैच पुजारा
पहली पारी में शतक (145) जमाकर भारत की जीत की भूमिका बनाने वाले चेतेश्वर पुजारा को मैन आॅफ द मैच चुना गया।
ईशांत को बर्थ डे गिफ्ट
तीसरे टेस्ट में 86 रन देकर 8 विकेट लेकर भारत को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले ईशांत शर्मा ने एंजेलो मैथ्यूज का विकेट लेकर अपनी बर्थ डे पर 200 टेस्ट विकेट पूरे कर लिए। यह उपलब्धि पाने वाले वह कपिल देव, श्रीनाथ और जहीर खान के बाद भारत के चौथे पेस गेंदबाज हैं।

टेस्ट में 200 विकेट लेने वाले भारतीय
गेंदबाज मैच विकेट औसत बेस्ट
अनिल कुंबले 132 619 29.65 10/74
कपिल देव 131 434 29.64 9/83
हरभजन सिंह 103 417 32.46 8/84
जहीर खान 92 311 32.94 7/87
बिशन सिंह बेदी 67 266 28.71 7/98
बी. चंद्रशेखर 58 242 29.74 8/79
जवागल श्रीनाथ 67 236 30.49 8/86
ईशांत शर्मा 65 200 36.51 7/74
   

श्रीलंका में भारत का डंका


संपादकीय
टीम इंडिया ने टेस्ट सीरीज में श्रीलंका को उसी के घर में हरा दिया है। यह कामयाबी कई मायनों में महत्वपूर्ण है। टीम इंडिया की कमान युवा विराट कोहली के हाथ में थी जिनका टेस्ट क्रिकेट में अनुभव बहुत अधिक नहीं है। लेकिन विराट और उनकी टीम ने 22 साल बाद श्रीलंका को उसकी धरती पर पटखनी देकर साबित कर दिया है कि युवा कप्तान और युवा टीम कामयाबी का डंका बजाने के लिए तत्पर है। अपनी कप्तानी में सीरीज जीतने की यह पहली सफलता यकीनन विराट का मनोबल बढ़ाएगी और उसका लाभ भविष्य में टीम को मिलेगा। सबसे अधिक तारीफ की बात यह है कि टीम इंडिया ने पहला टेस्ट हारने के बाद वापसी की और अगले दो मैच जीतने हुए सीरीज को हथियाने में कामयाबी पाई। यदि किस्मत साथ होती तो टीम तीनों मैच जीत सकती थी क्योंकि पहले मैच में भी खेल पर ज्यादातर समय दबदबा भारत का ही रहा था। लेकिन एक सत्र में खराब प्रदर्शन के कारण लगभग जीता हुआ मैच हाथ से चला गया। बहरहाल, इस कामयाबी ने टीम इंडिया के लिए विदेशी धरती पर हारने के कुछ वर्षों से जारी सिलसिले को तोड़ा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जीत की इस राह से भारतीय टीम आसानी से नहीं उतरेगी। विश्वास करने की वजह यह भी है कि श्रीलंका के विरुद्ध सीरीज  में टीम ने सामूहिक तौर पर प्रदर्शन किया। प्रत्येक मैच में अलग-अलग खिलाड़ी चमके और उन्होंने अपने प्रदर्शन से टीम को जीत के रास्ते पर डाला। एक ओर शिखर धवन, विराट कोहली, अजिंक्य रहाणे आदि ने शतक जमाए, तो दूसरी तरफ आखिरी मैच में मौका पाने वाले चेतेश्वर पुजारा ने अहम मौके पर शतक जड़कर खुद पर जताए गए टीम प्रबंधन के भरोसे को सही साबित किया। गेंदबाजी विभाग में अश्विन ने अगुआई की और अपने प्रर्दशन की बदौलत मैन आॅफ द सीरीज भी बने, लेकिन स्पिन विभाग को पैना करने में अमित मिश्रा ने भी उनका भरपूर साथ दिया। जहां तक पेस अटैक का सवाल है, ईशांत शर्मा श्रीलंकाई बल्लेबाजों पर कहर बरपाते नजर आए। उमेश यादव और स्टुअर्ट बिन्नी ने भी उनका बखूबी साथ दिया। माना जाता है कि उपमहाद्वीप में विकेट निकालने का मुख्य काम स्पिन गेंदबाजों का होता है और तेज गेंदबाज यदि शुरुआती एक-दो विकेट निकाल दें तो उनका काम पूरा मान लिया जाता है। लेकिन आखिरी मैच में, जहां तक गेंदबाजी का सवाल है, ईशांत शर्मा ने जीत की पटकथा लिखी। यह देखना भी सुखद रहा कि निचले क्रम के बल्लेबाजों ने कीमती योगदान करके कई मौकों पर टीम को मुसीबत से निकाला। अमित मिश्रा, अश्विन, साहा और नमन ओझा की पारियों ने अंत में मैच और सीरीज के नतीजे पर निर्णायक प्रभाव डाला। आगे टीम इंडिया को दक्षिण अफ्रीका से भिड़ना है जिसके पास दुनिया के चोटी के गेंदबाज हैं। उम्मीद है कि भारतीय टीम जीत का सिलसिला कायम रखेगी। बहरहाल, श्रीलंका के विरुद्ध सीरीज कुमार संगकारा की विदाई के लिए भी याद रखी जाएगी क्योंकि संगकारा जैसे खिलाड़ी रोज पैदा नहीं होते। क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है, यही वजह है कि इस खेल में अंतिम गेंद तक भविष्यवाणी करना जोखिमपूर्ण होता है। रविचन्द्रन अश्विन की बलखाती गेंदों की बदौलत श्रीलंकाइयों को 22 साल बाद उनकी ही पट्टियों पर मात देना भारतीय क्रिकेट का विशेष लम्हा है। विराट सेना क्लीन स्वीप भी कर सकती थी लेकिन पहले टेस्ट में तीन दिन तक दबदबा बनाये रखने के बाद भी टीम इण्डिया क्रिकेट की अनिश्चितता का शिकार हो गई। फटाफट क्रिकेट के दौर में टेस्ट मैचों की लोकप्रियता जरूर कम हुई है, लेकिन खिलाड़ियों के कौशल, दमखम, ध्यान और संतुलन की क्षमता का सही आकलन टेस्ट मैचों के दौरान ही हो पाता है। यही वजह है कि इन मैचों के प्रदर्शन लम्बे समय तक याद रखे जाते हैं। भारत-श्रीलंका के बीच तीन टेस्ट मैचों की सीरीज इस लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण थी। दरअसल दोनों ही टीमें फिलवक्त पुनर्निर्माण के दौर से गुजर रही हैं। गाले में भारत जीतते-जीतते हार गया था, लेकिन शेष दो टेस्ट मैचों में भारतीय खिलाड़ी श्रीलंका पर न केवल हावी रहे बल्कि जीत हासिल करने के क्षण तक उन्होंने अपना संतुलन और नियंत्रण बनाये रखने में कोई चूक नहीं की। भारत जिस तरह टेस्ट क्रिकेट में विदेशी पट्टियों पर मात खाता रहा है, उसे देखते हुए श्रीलंका से उसकी ही पट्टियों पर सीरीज फतह करना वाकई बड़ी बात है। इस सीरीज में विराट कोहली ने अपने प्रदर्शन की बजाय शानदार नेतृत्व की जो छाप छोड़ी है, उसे देखते हुए हम कह सकते हैं कि भारत को दूसरा सौरव गांगुली मिल गया है। भारतीय टीम की यह सफलता इस मामले में भी खास है क्योंकि यह विराट कोहली की बतौर कप्तान पहली सीरीज फतह है। विराट सेना ने टेस्ट क्रिकेट में एक साल के इंतजार के बाद भारतीय क्रिकेटप्रेमियों को जीत की जो सौगात भेंट की है, उसे लम्बे समय तक याद रखा जायेगा। यह सीरीज क्रिकेट इतिहास के महानतम बल्लेबाजों में शुमार कुमार संगकारा की विदाई के रूप में भी जानी जाएगी। इस जीत के बाद भारत का आत्मविश्वास सकारात्मक और मनोबल ऊंचा होना चाहिये क्योंकि शिखर से छठे स्थान पर आ जाना उसकी प्रतिष्ठा से मेल नहीं खाता।

Tuesday 1 September 2015

विराट सेना की फतह




क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है, यही वजह है कि इस खेल में अंतिम गेंद तक भविष्यवाणी करना जोखिमपूर्ण होता है। रविचन्द्रन अश्विन की बलखाती गेंदों की बदौलत श्रीलंकाइयों को 22 साल बाद उनकी ही पट्टियों पर मात देना भारतीय क्रिकेट का विशेष लम्हा है। विराट सेना क्लीन स्वीप भी कर सकती थी लेकिन पहले टेस्ट में तीन दिन तक दबदबा बनाये रखने के बाद भी टीम इण्डिया क्रिकेट की अनिश्चितता का शिकार हो गई। फटाफट क्रिकेट के दौर में टेस्ट मैचों की लोकप्रियता जरूर कम हुई है, लेकिन खिलाड़ियों के कौशल, दमखम, ध्यान और संतुलन की क्षमता का सही आकलन टेस्ट मैचों के दौरान ही हो पाता है। यही वजह है कि इन मैचों के प्रदर्शन लम्बे समय तक याद रखे जाते हैं। भारत-श्रीलंका के बीच तीन टेस्ट मैचों की सीरीज इस लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण थी। दरअसल दोनों ही टीमें फिलवक्त पुनर्निर्माण के दौर से गुजर रही हैं। गाले में भारत जीतते-जीतते हार गया था, लेकिन शेष दो टेस्ट मैचों में भारतीय खिलाड़ी श्रीलंका पर न केवल हावी रहे बल्कि जीत हासिल करने के क्षण तक उन्होंने अपना संतुलन और नियंत्रण बनाये रखने में कोई चूक नहीं की। यूं तो खेल के गम्भीर प्रेमियों के लिए हर गेंद रोमांचक होती है और क्रिकेट एक टीम खेल है, परंतु यह सीरीज भारत की ओर से अजिंक्य रहाणे, चेतेश्वर पुजारा, लोकेश राहुल, अमित मिश्रा, रविचन्द्रन अश्विन तथा श्रीलंकाई टीम की ओर से आर. हेराथ व ए. मैथ्यूज के शानदार प्रदर्शनों के लिए हमेशा याद रखी जाएगी। अश्विन ने सम्पूर्ण सीरीज में कमाल का प्रदर्शन कर यह साबित किया कि अनिल कुम्बले के बाद भारत उनकी गेंदबाजी पर यकीन कर सकता है। अश्विन का शानदार गेंदबाजी के लिए सीरीज का सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी घोषित किया जाना इसी बात का सूचक है। भारत जिस तरह टेस्ट क्रिकेट में विदेशी पट्टियों पर मात खाता रहा है, उसे देखते हुए श्रीलंका से उसकी ही पट्टियों पर सीरीज फतह करना वाकई बड़ी बात है। इस सीरीज में विराट कोहली ने अपने प्रदर्शन की बजाय शानदार नेतृत्व की जो छाप छोड़ी है, उसे देखते हुए हम कह सकते हैं कि भारत को दूसरा सौरव गांगुली मिल गया है। भारतीय टीम की यह सफलता इस मामले में भी खास है क्योंकि यह विराट कोहली की बतौर कप्तान पहली सीरीज फतह है। विराट सेना ने टेस्ट क्रिकेट में एक साल के इंतजार के बाद भारतीय क्रिकेटप्रेमियों को जीत की जो सौगात भेंट की है, उसे लम्बे समय तक याद रखा जायेगा। यह सीरीज क्रिकेट इतिहास के महानतम बल्लेबाजों में शुमार कुमार संगकारा की विदाई के रूप में भी जानी जाएगी। इस जीत के बाद भारत का आत्मविश्वास सकारात्मक और मनोबल ऊंचा होना चाहिये क्योंकि शिखर से छठे स्थान पर आ जाना उसकी प्रतिष्ठा से मेल नहीं खाता।

Friday 28 August 2015

विवादों में सानिया का खेलरत्न

क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न दिये जाने का मामला अभी खेलप्रेमियों के मानस से विस्मृत भी नहीं हुआ था कि टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा को दिये जाने वाला राजीव गांधी खेल रत्न विवादों की जद में आ गया है। खेल और विवाद भारत में एक-दूसरे के पर्याय हैं। 29 अगस्त, 1995 से खेल दिवस को देश के जांबाज खिलाड़ियों को सम्मानित किया जाना एक परम्परा बन गई है। प्रतिवर्ष सम्मान को लेकर बखेड़ा खड़ा होता है। जिस खिलाड़ी को सम्मान मिलता है, वह तो खुश होता है लेकिन जिसे सम्मान के काबिल नहीं समझा जाता या भेदभाव का शिकार होता है, वह आरोप लगाने से भी नहीं चूकता। सानिया मिर्जा महिला टेनिस में भारत की पहचान हैं। सानिया की उपलब्धियों को सिरे से खारिज नहीं किया जा सकता बावजूद इसके विकलांग ऊंचीकूद के ओलम्पिक पदकधारी एचएन गिरिशा को मलाल है कि राजीव गांधी खेलरत्न को लेकर उसके साथ भेदभाव हुआ है। गिरिशा का न्याय के लिए कर्नाटक हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना हैरत की बात नहीं है। ओलम्पिक इतिहास पर नजर डालें तो जो काम अशक्त गिरिशा ने किया है, वह काम तो हमारा कोई सशक्त एथलीट भी आज तक नहीं कर सका है।
खेलों के क्षेत्र में सर्वोच्च राजीव गांधी खेल रत्न सम्मान देने का चलन 1991-92 से शुरू हुआ है। शतरंज के बेताज बादशाह विश्वनाथन आनंद यह सम्मान पाने वाले भारत के पहले खिलाड़ी हैं। पिछले साल खेल मंत्रालय ने इस सम्मान के काबिल किसी खिलाड़ी को नहीं समझा था। टेनिस स्टार सानिया मिर्जा खेलरत्न पाने वाली 28वीं खिलाड़ी हैं। खेल मंत्रालय ने कर्नाटक हाईकोर्ट की रोक के बावजूद सानिया को खेलरत्न देने का ऐलान कर दिया है। हालांकि यदि कोर्ट का फैसला गिरिशा के पक्ष में गया तो सानिया को यह सम्मान वापस करना होगा। गिरिशा की याचिका पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना ने प्रतिवादियों को 15 दिन के अंदर नोटिस का जवाब देने को ताकीद किया है। स्विट्जरलैंड की मार्टिना हिंगिस के साथ इस साल जून में विम्बलडन महिला युगल का खिताब जीतकर इतिहास रचने वाली सानिया के नाम की सिफारिश सरकार से नियुक्त चयन पैनल ने देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार के लिये की है। सानिया के सम्मान पर खेल मंत्रालय भी सहमत है। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी 29 अगस्त (आज) को राष्ट्रपति भवन में न केवल सानिया को खेलरत्न देंगे बल्कि खिलाड़ियों, प्रशिक्षकों और खेल प्रमोटरों को अर्जुन, द्रोणाचार्य और ध्यानचंद पुरस्कारों से भी नवाजेंगे।
लंदन परालम्पिक खेलों के रजत पदक विजेता गिरिशा की दलील है कि वह सानिया की तुलना में खेलरत्न पुरस्कार पाने का अधिक हकदार है क्योंकि उसके 90 अंक हैं और प्रदर्शन आधारित अंक प्रणाली में टेनिस स्टार सानिया उससे काफी पीछे है। गिरिशा का तर्क है कि सानिया का विम्बलडन युगल खिताब इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए विचार करने योग्य ही नहीं था क्योंकि सरकार द्वारा खेलरत्न पुरस्कार के लिए जारी अधिसूचना में शामिल खेल प्रतियोगिताओं में इसका जिक्र ही नहीं है। दरअसल खेल मंत्रालय को 2011 से ओलम्पिक, परालम्पिक, एशियाई खेल, राष्ट्रमण्डल खेल और विश्व चैम्पियनशिप में प्रदर्शन के आधार पर खिलाड़ी के नाम पर विचार करना चाहिए था, जोकि नहीं किया गया। सानिया मिर्जा की जहां तक बात है, उसने जब से पाकिस्तानी क्रिकेटर शोएब मलिक को अपने शौहर के रूप में स्वीकारा है, हिन्दू धर्मावलम्बी उसकी भारतीयता पर सवाल उठाने लगे हैं।
टेनिस की जहां तक बात है, सानिया मिर्जा की उपलब्धियों के इर्द-गिर्द भी कोई भारतीय महिला टेनिस खिलाड़ी नहीं दिखती। सानिया ने टेनिस कोर्ट पर ही नहीं ग्लैमर और सामाजिक क्षेत्र में भी कई नये आयाम स्थापित किये हैं। 15 नवम्बर,1986 को मुंबई में जन्मी भारतीय टेनिस स्टार सानिया मिर्जा के सफल करियर की बात करें तो वह 18 वर्ष की आयु में ही वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी थी। सानिया ने करियर की शुरुआत 1999 में विश्व जूनियर टेनिस चैम्पियनशिप से की, उसके बाद उसने कई अंतरराष्ट्रीय मैचों में हिस्सा लेते हुए अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। 2003 सानिया के जीवन का सबसे रोचक साल रहा, क्योंकि वह भारत की तरफ से वाइल्ड कार्ड एंट्री के बाद विम्बलडन के डबल्स मुकाबले में खेली और जीती भी। वर्ष 2004 में बेहतर प्रदर्शन के लिए उसे 2005 में अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया। सानिया को 2006 में जब पद्मश्री सम्मान प्रदान किया गया तो वह यह सम्मान पाने वाली सबसे कम उम्र की खिलाड़ी बनी। सानिया को 2006 में अमेरिका में विश्व टेनिस की दिग्गज हस्तियों के बीच डब्ल्यूटीए का मोस्ट इम्प्रेसिव न्यू कमर एवार्ड प्रदान किया गया। वर्ष 2009 में वह भारत की तरफ से ग्रैंड स्लैम जीतने वाली पहली महिला खिलाड़ी बनी।
सानिया अपनी आत्मकथा भी लिख चुकी है, वह सचिन तेंदुलकर के बाद आत्मकथा लिखने वाली दूसरी भारतीय खिलाड़ी है। इस आत्मकथा में उसके छह साल की उम्र में टेनिस सीखने से लेकर बुलंदियों तक पहुंचने की दास्तां शामिल है। सानिया को 11 दिसम्बर, 2008 को चेन्नई में एमजीआर शैक्षिक और अनुसंधान संस्थान विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की तो लैंगिक समानता एवं महिला सशक्तीकरण की दिशा में काम करने वाले संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठन संयुक्त राष्ट्र महिला ने उसे दक्षिण एशिया में अपना सद्भावना दूत भी नियुक्त किया। संयुक्त राष्ट्र महिला की तरफ से सद्भावना दूत बनने वाली सानिया मिर्जा पहली दक्षिण एशियाई महिला है। सानिया भारत ही नहीं दुनिया की चर्चित खिलाड़ी है। युगल में दुनिया की नम्बर एक खिलाड़ी सानिया पेशेवर टेनिस ही नहीं बल्कि भारत की तरफ से एशियाई और राष्ट्रमण्डल खेलों में सर्वाधिक पदक जीतने वाली खिलाड़ी भी है। टेनिस में अमृतराज बंधुओं, लिएंडर पेस और महेश भूपति की ही तरह सानिया मादरेवतन की शान है। भारत में खेलों के सम्मान को लेकर हमेशा विवाद हुए और होते रहेंगे। पुरस्कार चयन समिति पर तोहमत लगना कोई नई बात नहीं है।  

जीत के निहितार्थ


फटाफट क्रिकेट के दौर में टेस्ट मैचों की लोकप्रियता कम जरूर हुई है, लेकिन इन्हीं मैचों में खेल के हर पक्ष में प्रतिद्वंद्वी टीमों को जूझते देखा जा सकता है। खिलाड़ियों के कौशल, दमखम, ध्यान और संतुलन की क्षमता का सही आकलन टेस्ट मैचों के दौरान ही हो पाता है। यही वजह है कि इन मैचों के प्रदर्शन लम्बे समय तक याद रहते और रखे जाते हैं। भारत-श्रीलंका के बीच तीन टेस्ट मैचों की सीरीज में अब तक हुए दो मैच इस लिहाज से बहुत महत्वपूर्ण हैं। गाले में भारत जीतते-जीतते हार गया था, पर कोलंबो के पी सारा ओवल स्टेडियम में भारतीय खिलाड़ी श्रीलंका पर न केवल हावी रहे बल्कि जीत हासिल करने के क्षण तक उन्होंने अपने संतुलन और नियंत्रण में कोई चूक नहीं होने दी। यूं तो खेल के गम्भीर प्रेमियों के लिए हर गेंद रोमांचक होती है और क्रिकेट एक टीम खेल है, परंतु यह मैच भारत की ओर से अजिंक्य रहाणे, लोकेश राहुल और रविचंद्रन अश्विन तथा श्रीलंकाई टीम की ओर से आर. हेराथ और ए. मैथ्यूज के शानदार प्रदर्शनों के लिए याद किया जायेगा। अश्विन ने इस मैच में भी पांच विकेट लेकर यह साबित किया कि अनिल कुम्बले के बाद भारत उनकी गेंदबाजी पर यकीन कर सकता है। अश्विन ने टेस्ट क्रिकेट में बारहवीं बार पांच या उससे अधिक विकेट लिये हैं। पिछले मैच में भी उन्होंने एक पारी में पांच विकेट चटकाये थे। दूसरी पारी में रहाणे के शतक और लम्बी भागीदारी ने भारत को बड़ी बढ़त दे दी थी। यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि इस मैच में एक बड़ा प्रयोग करते हुए रहाणे को उनके स्थायी पांचवें स्थान से हटाकर तीसरे स्थान पर भेजा गया था। ऐसे में उनका शतक, जो उनके कैरियर का चौथा शतक है, नियंत्रण की उनकी क्षमता को सिद्ध करता है। अश्विन के साथ गेंदबाज अमित मिश्रा के लिए भी यह दौरा उपलब्धियों से भरा है। यह जीत पहले टेस्ट की निराशा से उबरने का मौका तो है ही, कप्तान विराट कोहली की बतौर कप्तान पहली जीत होने के कारण भी खास है। यह जीत एक साल से अधिक के इंतजार के बाद मिली है। क्रिकेट के इतिहास में इस मैच को मौजूदा दौर के महानतम खिलाड़ियों में शुमार होने वाले कुमार संगकारा के आखिरी मैच के रूप में याद किया जायेगा। अपनी टीम की हार से संगकारा को निराशा जरूर हुई होगी, लेकिन दोनों टीमों और दर्शकों की भाव-विह्वल विदाई को वे हमेशा याद रखेंगे। भारतीय कप्तान विराट कोहली उन्हें अपने प्रेरणास्रोतों में यदि गिनते हैं, तो वह उचित भी है। इस जीत के बाद भारत का आत्मविश्वास सकारात्मक और मनोबल ऊंचा होना चाहिये क्योंकि वह टेस्ट क्रिकेट रेटिंग में शिखर से छठे स्थान पर आ गया है। यह भारत की प्रतिष्ठा से मेल नहीं खाता।

धरती का सबसे तेज मानव
गैटलिन को हराकर बोल्ट का गोल्डन डबल
बीजिंग। धरती के सबसे तेज धावक जमैका के यूसेन बोल्ट ने 200 मीटर दौड़ में अपनी बादशाहत एक बार फिर कायम रखते हुये अपने प्रबल प्रतिद्वंद्वी अमेरिका के जस्टिन गैटलिन को फिर पछाड़ कर विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में अपना खिताब कायम रखा। बोल्ट का विश्व चैम्पियनशिप में यह 10वां स्वर्ण पदक है।
इस स्पर्धा में 19.19 सेकेण्ड का विश्व रिकॉर्ड अपने नाम रखने वाले बोल्ट ने 19.55 सेकेण्ड का समय लेकर स्वर्ण जीता। गैटलिन 19.74 सेकेण्ड का समय निकाल पाये और उन्हें रजत से संतोष करना पड़ा। दक्षिण अफ्रीका के अनासो जोबोतवाना ने 19.87 सेकेण्ड में कांस्य पदक जीता। बोल्ट ने इसके साथ ही विश्व चैम्पियनशिप में 100 और 200 मीटर का गोल्डन डबल पूरा कर लिया है। बोल्ट ने 2013 में पिछली विश्व चैम्पियनशिप में भी इन दोनों फर्राटा स्पर्धाओं के स्वर्ण पदक जीते थे। उन्होंने 100 मीटर दौड़ में गैटलिन को परास्त किया था और अब 200 मीटर में भी उन्होंने अमेरिकी धावक को जीतने का मौका नहीं दिया। बोल्ट विश्व चैम्पियनशिप से पहले इस वर्ष अपनी फार्म और फिटनेस में नहीं थे, जबकि गैटलिन ने 2015 में 100 और 200 मीटर दोनों ही रेसों में सबसे तेज समय निकाला था। लेकिन विश्व चैम्पियनशिप में गैटलिन जमैकाई धावक की श्रेष्ठता को चुनौती नहीं दे पाये। बोल्ट के नाम अब 6 ओलम्पिक खिताब और 10 विश्व चैम्पियनशिप स्वर्ण हो चुके हैं। 100 मीटर में 3 खिताब अपने नाम कर चुके बोल्ट का यह लगातार चौथा 200 मीटर का स्वर्ण पदक है। बोल्ट 2011 में देबू में हुयी विश्व चैम्पियनशिप में 100 मीटर में अयोग्य करार दिये गये थे जबकि उन्होंने 200 मीटर में स्वर्ण पदक जीता था।

Thursday 27 August 2015

बिखरते परिवार, विलखता बचपन


परिवार, समाज और देश एक-दूसरे के पूरक हैं।  परिवारों का विघटन आज की एक ज्वलंत समस्या है। इस समस्या ने बुजुर्गों से न केवल उनके जीने का सहारा बल्कि आने वाली पीढ़ी से उसके संस्कार भी छीन लिये हैं। हमारे देश में संयुक्त परिवारों का लम्बा इतिहास है। आज लोगों की सोच के साथ न केवल परिवार बिखर रहे हैं बल्कि समाज में भी एक नीरसता देखी जा रही है। परिवारों के विघटन से क्या खो रहे हैं, इसका हमें भान ही नहीं है। परिवार, समाज तो समाज देश की ताकत होता है। लगातार टूटते परिवारों से न केवल भाईचारा प्रभावित हो रहा है बल्कि ढेरों सुख-सुविधाओं के बीच पलने वाले बच्चों में सहयोग और समर्पण आदि मूलभूत गुणों का भी क्षरण हो रहा है। परिवारों के विघटन पर हम सावधान न हुए तो भारत की स्थिति चीन से भी खराब हो सकती है। छोटे और एकल परिवारों के चलते चीन में बुजुर्गों की स्थिति इतनी खराब हो गई है कि वे अपनी हुकूमत से जीवन जीने के साधन नहीं अपितु इच्छा-मृत्यु मांग रहे हैं।
परिवारों के विघटन की मुख्य वजह विकास का झूठा आडम्बर है। एकल परिवार हमें अल्पशांति तो दे सकते हैं लेकिन इसके दीर्घगामी परिणाम कभी अच्छे नहीं हो सकते। परिवारों में बिखराव न हो इसके लिए चाहिए कि हम अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें और उन्हें सामाजिक बनाएं। परिवार न टूटें इसके लिए बचपन से ही बच्चों में विनम्रता व सहनशीलता जैसे गुणों का विकास किया जाना जरूरी है। आज जिस तेजी से परिवार टूट रहे हैं, इसके मुख्य कारण हैं- महिलाओं का आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना, एकल परिवार, आपसी समझ की कमी व एक-दूसरे के लिए समय का अभाव। परिवारों के विघटन का असर हमारे बुजुर्गों पर ही नहीं बल्कि सभी पर पड़ रहा है। आज महिलाओं में अपने पैरों पर खड़े होने की ललक बढ़ी है, इसमें कोई बुराई भी नजर नहीं आती। समस्या अहंकार की है। आज हम अपने करियर व अहं को ऊपर रखते हुए परिवारों के बिखराव को बचाने के लिए कोई समझौता नहीं करना चाहते। इस अहंकार से न केवल परिवार टूट रहे हैं बल्कि नौबत पति-पत्नी में तलाक तक पहुंच रही है। दोनों में से किसी का भी ध्यान इस तरफ नहीं जाता कि वर्चस्व की लड़ाई में मासूम बच्चों का बचपन दम तोड़ रहा है। हमें सोचना होगा कि बच्चों के बचपन को खिलने से पहले ही मुरझाने की सजा क्यों मिल रही है? ऐसे टूटे परिवारों के बच्चे समाज और देश का निर्माण कैसे करेंगे यह एक विचारणीय प्रश्न है।
एक समय संयुक्तपरिवार भारतीय संस्कृति का सबसे मजबूत पक्ष था, जहां सभी सदस्य मिल-जुलकर प्रेम से रहते थे। लेकिन आज के दौर में ज्यादातर एकल परिवार रह गए हैं। जहां पति-पत्नी दोनों कामकाजी होते हैं। ऐसे माहौल में बच्चे स्वयं को उपेक्षित महसूस करने लगे हैं। आज पति-पत्नी के बीच पारस्परिक निर्भरता भी कम होती जा रही है, जिसके कारण उनके रिश्तों में दरार आ रही है। आॅफिस का टेंशन घरों की खुशहाली को अपनी जद में ले रहा है। ज्यादा काम होने की वजह से पति-पत्नी एक-दूसरे को समय ही नहीं दे पाते। ऐसे में परिवार व कामकाज के बीच संतुलन नहीं बना पाता। पति-पत्नी के सम्बन्धों में दूरी तभी आती है, जब उनके बीच विश्वास, समर्पण व निष्ठा में कमी आने लगती है। अगर पति-पत्नी दोनों घर और बाहर की जिम्मेदारी मिलकर उठाएं तथा एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने के बजाय आत्म मूल्यांकन करें, तो उनके बीच तनाव कम होगा और उनका दाम्पत्य जीवन भी सुखी रहेगा। पति-पत्नी की इस खुशहाली से ही परिवार एकसूत्र  में बंधे रह सकते हैं।
आज के भागमभाग भरे जीवन में हमें अपने परिवार के सदस्यों के बारे में सोचने की ही फुरसत नहीं है। हमारी इस भूल से परिवारों का टूटना स्वाभाविक है। पति-पत्नी के आपसी सहयोग बिना दाम्पत्य जीवन की गाड़ी का चलना कतई सम्भव नहीं है। हम न केवल अपनी रुचियों का ख्याल रखें बल्कि दूसरे की अपेक्षाओं को भी समझें। तू-तू, मैं-मैं के बजाय यदि हम की भावना हो तो परिवारों को टूटने से आसानी से बचाया जा सकता है। संसार का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है, जहां बिना सिखाए ही कोई सीख गया हो। मनुष्य को सब कुछ सीखना पड़ता है। सिखाने वाला तत्व बाहर का भी हो सकता है और आदमी के भीतर विद्यमान परमात्मा की सतत चेतना भी। माता-पिता तो संतान को जन्म देने के निमित्त बनते हैं, परन्तु गुरु हृदय रूपी गुफा में विद्यमान जन्म-जन्मांतर के अंधकार को दूर करने में सक्षम होता है। इस गुरु पद से हम माता-पिता को भी सम्बोधित कर सकते हैं, क्योंकि जीवन में कभी ऐसे भी क्षण आते हैं जब माता-पिता किन्हीं मार्मिक शब्दों से जीवन के अंदर व्याप्त तमस को दूर कर नई किरण का संचार कर देते हैं। देखना होगा कि हम अपने नौनिहालों को शिक्षा-दीक्षा के लिए आखिर कहां भेज रहे हैं। जहां भेज रहे हैं वहां हमारे बच्चे को संस्कार मिलते भी हैं या नहीं। बचपन से ही अपने बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने का चलन भी परिवारों के बिखराव का एक कारण है। इससे बच्चे जहां अपने दादा-दादी से दूर हो रहे हैं वहीं मन की दूरियां भी लगातार बढ़ रही हैं। सामाजिक परिवर्तन में महिलाओं का आत्मनिर्भर होना जरूरी है, लेकिन देखने में आ रहा है कि आधी आबादी के बदलते सरोकारों से कोई दूसरा नहीं बल्कि उसका जीवनसंगी ही अधिक परेशानी महसूस करता है। टके भर का सवाल यह है कि यदि पति-पत्नी में ही सामंजस्य नहीं होगा तो भला परिवार टूटने से कैसे बचेंगे। हमारा नजरिया प्रगतिशील सोच का तो हो लेकिन उसमें अपनों का स्नेह समाहित होना जरूरी है।
रीभा तिवारी

आरक्षण का अंत कब?

जाट, मराठा और अब पटेलों की आरक्षण की चाह ने मुल्क को गहरी मुसीबत में डाल दिया है। इस बार आरक्षण की मांग उस गुजरात और उस पटेल समुदाय से उठी है जिसने अतीत में आरक्षण के खिलाफ बिगुल फूंका था। हमारे संविधान में आरक्षण  की व्यवस्था दलित-पिछड़े समाज के उत्थान के लिए की गई थी, लेकिन आज हर जाति-समुदाय से आरक्षण के लिए सड़कों पर उन्माद किया जा रहा है। गुजरात में जो कुछ हो रहा है, उसके लिए समूचे राजनीतिक तंत्र को कसूरवार ठहराना गलत न होगा। वैसे तो सेवायोजन, शिक्षा और विधायी संस्थाओं में लागू आरक्षण नीति की हर पांच साल में समीक्षा होनी चाहिए लेकिन आज स्थिति यह है कि यदि कोई इतना ही पूछ ले कि आखिर मुल्क से आरक्षण कब खत्म होगा, तो उसे तुरंत दलित विरोधी करार दिया जाता है।
देश में आरक्षण की आग लगे दो दशक बीत गये हैं। ऐसा कोई वर्ष नहीं जाता जब आरक्षण को लेकर संघर्ष न होता हो। आरक्षण के बवाल में गरीबों का भला तो नहीं होता,अलबत्ता मुल्क की अरबों की सम्पत्ति का नुकसान जरूर हो जाता है। पिछले कुछ वर्षों से मुल्क के विभिन्न क्षेत्रों से कुछ समुदाय अपने को अनुसूचित जाति या फिर पिछड़े वर्ग में शामिल करने को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। इनकी सामाजिक स्थिति पर गौर करें तो यह मांग आरक्षण की मूलभावना के पूर्णत: खिलाफ होने के बावजूद किसी राजनीतिक दल ने आज तक इसका प्रतिकार नहीं किया। अतीत में समाज के सबसे शोषित वर्ग को आगे बढ़ाने के लिए आरक्षण की व्यवस्था संविधान में की गयी थी। इसकी वजह सदियों से शोषित समुदाय को आरक्षण के जरिये समाज की मुख्यधारा में शामिल किया जाना था।
आज आरक्षण की मांग आर्थिक फायदे से जुड़ा ऐसा मसला बन गया है जिसके लिए कभी कोई भी समुदाय उठ खड़ा होता है। इसे विडम्बना कहें या राजनीतिक सोच का दिवालियापन कि जिस गुजरात में कभी आरक्षण के खिलाफ देश का पहला आंदोलन छिड़ा था, आज वही पटेल समुदाय अपने लाभ की खातिर आम जनजीवन तहस-नहस कर रहा है। आरक्षण मांगते लोग शासकीय सम्पत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं और निर्दोष लोगों की जानें जा रही हैं। गुजरात की आबादी में लगभग 20 फीसदी पटेल हैं। यह समाज खेती-किसानी, धन-दौलत से समृद्ध है। व्यापार और उद्योग में भी इस समाज का बोलबाला है। समूची दुनिया में बसे करीब 80 लाख अप्रवासी भारतीयों में पटेलों की संख्या सर्वाधिक है। गुजरात की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मजबूती में पटेलों का अमूल्य योगदान रहा है। पटेलों के रहमोकरम पर ही भारतीय जनता पार्टी गुजरात में डेढ़ दशक से लगातार सत्ता सुख भोग रही है।
गुजरात में पटेलों के आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व कर रहे युवा नेता हार्दिक पटेल को पता है कि वह तात्कालिक रूप से बेशक कमल दल का कोई अहित न कर सकें लेकिन जो मशाल लेकर वह चल निकले हैं उससे देर-सबेर भाजपा का नुकसान जरूर होगा। केन्द्र सरकार को चेताने के लिए ही हार्दिक पटेल ने आंदोलन की शुरुआत उस मेहसाना से की है जोकि सिर्फ मोदी ही नहीं बल्कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री आनंदी बेन का भी गृहक्षेत्र है। आनंदी बेन चाहकर भी पटेलों को कोई आश्वासन नहीं दे सकतीं क्योंकि संविधान ऐसे आरक्षण की अनुमति नहीं देता। गुजरात में जो कुछ हो रहा है उससे मोदी के आभामण्डल को फीका होता देख विपक्षी दल मन ही मन खुश तो हो रहे हैं लेकिन इस आंदोलन को समर्थन देने का जोखिम कोई भी दल उठाना नहीं चाहता।  इस आंदोलन के पीछे हार्दिक पटेल की दिली ख्वाहिश जो भी हो, पर स्वभाव से शांत रहने वाले गुजरातियों को जब तक सच्चाई का पता चलेगा तब तक हिंसा और आगजनी से सूबे का बड़ा नुकसान हो चुका होगा। गुजरात में 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण के दायरे में फिलहाल 127 जातियां शामिल हैं।
समाज में रसूख का पर्याय पटेलों के इस आंदोलन को जाटों और मराठों की नकल कहना उचित होगा। प्रभावशाली समुदाय होते हुए भी जाट और मराठा भी पिछड़ों-दलितों का विशेषाधिकार हासिल करने को उत्पात मचा चुके हैं। राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट समुदाय सामाजिक, आर्थिक रूप से काफी सम्पन्न है तो महाराष्ट्र में मराठा भी किसी मामले में कमजोर नहीं कहे जा सकते। गरीबी की जहां तक बात है, हर जाति-समुदाय में ऐसे लोग हैं जिन्हें सरकारी मदद की जरूरत है। मुल्क में आरक्षण का जो विषधर बार-बार फन फैला रहा है उसके लिए हमारी सरकारी नीातियां ही जिम्मेदार हैं। हमारी हुकूमतें राजनीतिक फायदे के लिए ही विभिन्न जातियों के आरक्षण की मांग को आजादी के बाद से लगातार हवा दे रही हैं जबकि भारतीय संविधान में इसकी व्यवस्था सिर्फ 10 साल के लिए ही की गयी थी। यदि आजादी के 10 साल बाद आरक्षण की समीक्षा की गई होती तो शायद हर जाति-सम्प्रदाय के लोग आज आरक्षण को लेकर सड़कों पर तमाशा नहीं कर रहे होते।
अगर आरक्षण के प्रावधानों को लेकर सख्त पाबंदी नहीं लगी तो इसका दायरा बढ़ता ही जायेगा। देखा जाये तो आज आरक्षण के मसले पर हर पार्टी और सरकार दबाव में है। सच्चाई यह है कि आज आरक्षण का विरोध वही समुदाय कर रहा है, जिसे लगता है कि उसके लिए सारे रास्ते बंद हैं। जिस जाति-समुदाय को थोड़ी भी उम्मीद दिखती है, वह आरक्षण के लिये कमर कस लेता है। सर्वोच्च न्यायालय यह स्पष्ट कर चुका है कि आरक्षण का कुल आंकड़ा 50 फीसदी से ऊपर नहीं जा सकता। यही कारण है कि पटेल समुदाय ओबीसी के दायरे में आरक्षण मांग रहा है, लेकिन यदि ऐसा हुआ तो ओबीसी में शामिल जातियां नाराज हो जायेंगी। जो भी हो इस आरक्षण के चक्रव्यूह को तोड़ने का रास्ता तो अब गुजरात सरकार को ही निकालना होगा। आंदोलन कोई भी हो उसका लाभ भोली-भाली जनता को कभी नहीं मिलता।

Tuesday 25 August 2015

एडोल्फ हिटलर ने ध्यान सिंह नहीं रूप सिंह की प्रशंसा की थी

कांग्रेस ने दी देश को खेल दिवस की सौगात
29 अगस्त, 1995 से किया जा रहा ध्यान सिंह को याद
आगरा। कांग्रेस ने बेशक भारत रत्न देने में कालजयी हॉकी खिलाड़ी ध्यान सिंह की अपेक्षा सचिन तेंदुलकर को


प्रमुखता दी हो लेकिन हॉकी के जादूगर के सम्मान में उसने कभी कोई कोताही नहीं बरती। ध्यान सिंह के जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किये जाने की घोषणा दिसम्बर 1994 में कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने की थी। 29 अगस्त, 1995 से देश में ध्यान सिंह के जन्मदिन को खेल दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। इसी दिन मुल्क के जांबाज खिलाड़ियों, प्रशिक्षकों और खेलों में योगदान देने वाली शख्सियतों को सम्मानित किया जाता है।
हॉकी के महान योद्धा ध्यान सिंह को अमरत्व प्रदान करने का सराहनीय प्रयास देश के किसी खिलाड़ी ने नहीं बल्कि झांसी के पूर्व सांसद और श्रीबैद्यनाथ आयुर्वेद समूह के संचालक पण्डित विश्वनाथ शर्मा ने किया था। श्री शर्मा ने 24 अगस्त, 1994 को लोकसभा में सरकार से ध्यान सिंह के जन्मदिन 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित करने का प्रश्न उठाया था। तब तत्कालीन खेल मंत्री मुकुल वासनिक ने प्रस्ताव का न केवल समर्थन किया था बल्कि भरोसा भी दिया था कि कांग्रेस यह पुनीत कार्य अवश्य करेगी। पण्डित विश्वनाथ शर्मा के प्रयास रंग लाये और दिसम्बर 1994 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस की न केवल घोषणा की बल्कि 29 अगस्त, 1995 को छह देशों की चैम्पियंस ट्राफी हॉकी प्रतियोगिता का आयोजन कराकर हॉकी के जादूगर के जन्मदिन को अविस्मरणीय बना दिया।
 यह सम्मान भारत रत्न से किसी भी मामले में कमतर नहीं कहा जा सकता। पहले ही खेल दिवस पर पण्डित विश्वनाथ शर्मा ने प्रधानमंत्री राव को ध्यान सिंह का विशाल चित्र भेंट कर दद्दा की धर्मपत्नी जानकी देवी के जीवन-यापन के लिए एक पेट्रोल पम्प की मांग भी की थी, जिसे स्वीकार करते हुए बाद में आवंटित कर दिया गया। भारत सरकार द्वारा जिस दिन से खिलाड़ियों को भारत रत्न देने की मंशा जताई गई उसी दिन से ध्यान सिंह को भारत रत्न दिये जाने की मांग की जा रही है। इस मांग के लिए दद्दा के पुत्र अशोक कुमार लगातार मुखर हैं, यह जानते हुए भी कि उनके चाचा कैप्टन रूप सिंह, जिनका हिटलर भी मुरीद था, को आज तक किसी सम्मान से नहीं नवाजा गया।
रूप सिंह तुम सा हॉकी योद्धा नहीं देखा: एडोल्फ हिटलर
एक लम्हा है, जो ठहर गया है। एक कोख के दो ध्रुव-तारों में एक के लिए भारत रत्न के लिए लड़ाई लड़ी जा रही, आंदोलन चलाये जा रहे हैं लेकिन दूसरे के सम्मान पर खेलप्रेमी गंूगे हैं। बात उस कैप्टन रूप सिंह की है, जिसे तानाशाही के प्रतिमान एडोल्फ हिटलर ने 15 अगस्त, 1936 को सिर आंखों पर बिठाया था। वह बर्लिन की शाम थी। हिटलर हॉकी के जादूगर ध्यान सिंह को सोने का तमगा पहना रहा था तो उसकी जुबां पर सिर्फ और सिर्फ रूप सिंह का नाम था। वह कह रहा था, रूप सिंह तुम विलक्षण हो, तुम सा सम्पूर्ण हॉकी योद्धा नहीं देखा। उस दिन ओलम्पिक के खिताबी मुकाबले में भारत ने जर्मनी का 8-1 से मानमर्दन किया था। उस मुकाबले में रूप सिंह ने चार और ध्यान सिंह ने तीन गोल किये थे। 1936 के ओलम्पिक में यद्यपि ध्यान सिंह और रूप सिंह ने 11-11 गोल किये थे लेकिन सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का सम्मान रूप सिंह को ही मिला था। 1932 के ओलम्पिक में भी यह दोनों भाई जमकर खेले और भारत को स्वर्ण मुकुट पहनाया, पर उस ओलम्पिक में भी 14 गोल करने के कारण रूप सिंह ही सर्वश्रेष्ठ रहे। लॉस एंजिल्स में खेले गये उस ओलम्पिक में भारत ने अमेरिका के खिलाफ 24-1 की जो धमाकेदार ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी उसमें रूप सिंह ने 12 और ध्यान सिंह ने सात गोल किये थे। भारतीय खेलप्रेमी और ध्यान सिंह का परिवार हॉकी मसीहा रूप सिंह को  बेशक भूल चुका हो पर जर्मनी हॉकी के हीरो को जन्म जन्मांतर तक याद रखने को संकल्पबद्ध है। 1972 में जर्मनी के म्यूनिख शहर में कैप्टन रूप सिंह मार्ग स्थापित किया जाना यही साबित करता है कि भारत ने हॉकी में कई ऐसे रत्न दिये हैं, जिन्हें भुला दिया गया है। ध्यान सिंह के अनुज रूप सिंह भी उन्हीं में से एक हैं।

भारत-श्रीलंका के मध्य ‘आॅक्सीजन कप-2015’ 20 सितम्बर से

पांच मैचों की सीरीज का पहला मैच 20 सितम्बर को आगरा में होगा
आगरा। भारत और श्रीलंका के शारीरिक रूप से विकलांग क्रिकेट खिलाड़ियों के बीच पांच मैचों की सीरीज वाले आॅक्सीजन कप 2015 का आयोजन 20 सितम्बर से किया जाएगा। सीरीज का पहला मुकाबला आगरा में खेला जायेगा।
डिसेबल्ड स्पोर्टिंग सोसाइटी के तत्वावधान में आयोजित पांच मैचों की सीरीज का पहला मैच 20 को आगरा में, दूसरा 21 को फिरोजाबाद में, तीसरा 22 को  इटावा में, चौथा  25 को रांची में और अंतिम व पांचवां मैच 28 को पूना में खेला जाएगा। यह जानकारी बाइपास रोड स्थित एक हॉस्पिटल में आयोजित वार्ता में समाजसेवी जितेन्द्र चौहान ने दी।
 चौहान ने बताया कि यह नि:शक्त खिलाड़ियों के हौसले और जज्बे की शानदार जंग है। उन्होंने श्रीलंका के खिलाड़ियों की तारीफ करते हुए कहा कि  श्रीलंका के लगभग सभी खिलाड़ियों का एक-एक पैर बम से उड़ा हुआ है उसके बावजूद वह आम खिलाड़ियों की तरह खेलते हैं ।  एक-एक रन बचाने को लम्बी डाइव लगाकर विपक्षी टीम के रनों की रफ्तार को रोकते हैं। वह बड़ा भावुक क्षण होता है जब दौड़ते समय खिलाड़ी का कृत्रिम पैर निकल जाता है उसका दूसरा साथी जल्दी से पुन: पैर को लगाता है और खिलाड़ी फिर पूरे जोश के साथ फील्डिंग को तैयार हो जाता है।  डिसेबल्ड स्पोर्टिंग के चेयरमैन अर्जुन सिंह लोधी ने बताया आगरा में होने वाले मैच के लिए मैदान का चुनाव किया जा रहा है। इस बार यह मैच ऐसे मैदान पर कराने का प्रयास है जिस जगह अधिक से अधिक संख्या में दर्शक मैच देखने आएं।
अलग-अलग खिलाड़ी को मिलेगा कप्तानी का मौका
सीरीज की आयोजन सचिव सारिका शर्मा ने बताया की इस बार खिलाड़ियों को सम्मान स्वरूप अलग -अलग मैचों की कप्तानी का अवसर दिया जाएगा।  आगरा में होने वाले पहले मैच की कप्तानी चंडीगढ़ निवासी लखबिंदर सिंह, फीरोजाबाद में खेले जाने वाले दूसरे मैच की कप्तानी जौनपुर निवासी वरिष्ठ खिलाड़ी आशीष श्रीवास्तव, तीसरे मैच की कप्तानी की बागडोर रविंदर पाल को सौंपी गयी है। चौथे मैच की कप्तानी रांची निवासी मुकेश कंचन करेंगे जबकि  अंतिम व पांचवें मैच की कप्तानी का जिम्मा पूना निवासी राजू मुझावर को सौंपा गया है। इस अवसर पर भारतीय टीम के कप्तान रविंदर पाल,  करन कौशल, लखबिंदर सिंह, मुकेश कंचन, मलकीत सिंह, कैलाश प्रसाद, प्रवीण सिकरवार, सरिता और दीपक काम्बोज आदि मौजूद रहे।
पाकिस्तान के साथ सीरीज रद्द    
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कौंसिल फॉर फिजिकली चैलेंज्ड के उपाध्यक्ष एवं डिसेबल्ड स्पोर्टिंग सोसाइटी के जनरल सेक्रेटरी हारुन रशीद ने बताया पाकिस्तान के साथ खेलने की तैयारी कर ली गयी थी लेकिन गुरदासपुर में हुए आतंकवादी हमले के विरोध में पाकिस्तानी टीम का आमंत्रण रद्द कर दिया गया।  श्रृंखला रद्द होने से दोनों  ही देशों के खिलाड़ियों के मनोबल पर गहरा असर पड़ा है ।
आॅक्सीजन की जर्सी में नजर आएगी भारतीय टीम
 आॅक्सीजन ग्रुप के जोनल हेड श्वेतांक पाठक ने बताया भारतीय विकलांग टीम अब आॅक्सीजन की जर्सी में नजर आएगी। आॅक्सीजन ग्रुप द्वारा दक्षिण अफ्रीका की क्रिकेट टीम को स्पांसर किया जाता है।  ग्रुप को जब शारीरिक रूप से विकलांग क्रिकेट खिलाड़ियों की भारतीय विकलांग क्रिकेट टीम के बारे में पता चला तो आॅक्सीजन ग्रुप के मैनेजिंग डाइरेक्टर राजपाल दुग्गल ने भारतीय विकलांग क्रिकेट टीम के सहयोगी के रूप में जुड़ने का फैसला किया। 

Monday 24 August 2015

राजनीति कभी नहीं: संगकारा

'अभी एक-डेढ़ साल और खेल सकता था, लेकिन...'
कोलंबो टेस्ट श्रीलंका के कुमार संगकारा का आखिरी टेस्ट था। संगा इस टेस्ट की दोनों पारियों में कुछ खास नहीं कर सके, लेकिन दुनिया इस बाएं हाथ के बल्लेबाज को जीनियस क्रिकेटर के तौर पर याद करती रहेगी। अपने रिटायरमेंट पर कुमार संगकारा का कहना है कि क्रिकेट ने मेरे जीवन में अहम भूमिका निभाई है, लेकिन जीवन के कुछ दूसरे पहलू भी होते हैं, इन्हें भी जीना होता है। जब रिटायरमेंट के बारे में सोचते हैं और इसकी तरफ बढ़ते हैं तो कुछ राहत तो मिलती है, लेकिन साथ में दुख भी होता है।
आप टॉप पर भी रिटायरमेंट ले सकते हैं। मैं एक-डेढ़ साल तक और अच्छा खेल सकता हूँ, लेकिन जब आप 38 साल की तरफ बढ़ रहे होते हैं तो अंदर से एक आवाज आती है कि बस बहुत हुआ। मैं विश्व कप के बाद ही रिटायर हो जाना चाहता था, लेकिन फिर इसे चार टेस्ट मैच के लिए आगे खिसका दिया। मुझे इस फैसले को लेकर कोई दुविधा नहीं है। मेरे पिता ने मुझसे कुछ साल पहले पूछा था कि तुम रिटायरमेंट के बारे में क्यों नहीं सोच रहे हो। तब मुझे हैरानी हुई थी, क्योंकि मैं अच्छा खेल रहा था। लेकिन फिर जब मैंने इस पर सोचा तो मुझे अहसास हुआ कि उनका सवाल तर्कसंगत था।
मैं मानता हूँ कि श्रीलंका क्रिकेट बहुत अच्छी तरह से चलेगी। मैं ही क्या मुरली, महेला, वास, अरविंद डीसिल्वा और कई अन्य खिलाड़ी आए और गए। ऐसा हमारे साथ ही नहीं है बल्कि दूसरे देशों के साथ भी होता है। श्रीलंका में कई प्रतिभावान क्रिकेटर हैं। इन खिलाड़ियों को अपनी भूमिका का मजा लेना चाहिए और जिÞम्मेदारी से खेलना चाहिए।
राजनीति पर पूछे सवाल पर कुमार संगकारा ने कहा राजनीति में तो नहीं जाऊँगा, इतना तय है। मैं उनमें से हूँ जो राजनीति के बारे में बात तो करते हैं, लेकिन इसमें उतरते नहीं हैं। मुझे क्रिकेट को कुछ लौटाने में दिलचस्पी है, फिर चाहे वो कोचिंग हो, प्रशासनिक रूप में या कमेंट्री। अभी सोचूँगा, फिर तय करूँगा। सबसे पहले तो मैं अपने परिवार और माता-पिता के साथ अधिक से अधिक समय गुजारना चाहता हूं। बैठकर सोचूँगा कि क्या किया जा सकता है। संगकारा ने कहा कि क्रिकेट के विकास के लिए जरूरी है कि छोटे देशों को बड़ा मंच दिया जाए। युवा खिलाड़ी इससे बहुत प्रभावित होते हैं कि उनकी टीम विश्व मंच पर कैसा प्रदर्शन कर रही है। टूर्नामेंट में सिर्फ नई टीमों को भरने से काम नहीं चलेगा, लेकिन अफगानिस्तान, आयरलैंड की टीमों को देखिए, उन्होंने विश्व कप में कितना शानदार प्रदर्शन किया। संगकारा ने कहा कि मेरी माहेला के साथ बेहतरीन समझदारी थी। उसकी वजह ये थी कि एक तो हम दोनों की उम्र लगभग एक है। जब मैं टीम में आया तब वो उप कप्तान थे। कुमार संगकारा ने कहा कि रिकॉर्ड के बारे में सुनना अच्छा लगता है, संतुष्टि मिलती है। आप उम्मीद करते हैं कि आपकी टीम का ही कोई खिलाड़ी आगे चलकर इन्हें तोड़े। लेकिन इससे बड़ी बात है कि हमने कितना अच्छा समय ड्रेसिंग रूम में गुजारा, टीम के अच्छे और बुरे दौर को देखा।
रिकार्डों में याद रहेंगे संगकारा
श्रीलंका के महान बल्लेबाज कुमार संगकारा ने क्रिकेट को अलविदा कह दिया है। अब वो मैदान पर तो नजर नहीं आयेंगे, लेकिन रिकार्डों में वह हमेशा लोगों के जेहन में रहेंगे। उन्होंने अपने 15 साल के लम्बे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कैरियर में कई रिकार्ड अपने नाम किये हैं। श्रीलंका ही नहीं बल्कि दुनिया के महान क्रिकेटरों में संगकारा हमेशा याद किये जाएंगे। श्रीलंका के इस चहेते सपूत की क्रिकेट से विदाई हालांकि जीत के साथ नहीं हुई। भारत के साथ खेले गये टेस्ट श्रृंखला के दूसरे मैच में संगकारा अपनी टीम को जीत नहीं दिला पाये और श्रीलंका की टीम 278 रनों से हार गयी। जीत के साथ संगकारा की विदाई नहीं हो सकी लेकिन उनकी उपलब्धियां हमेशा याद रहेंगी।
संगकारा के क्रिकेट कैरियर पर एक नजर
 * संगकारा ने 2000 में टेस्ट क्रिकेट और वनडे क्रिकेट दोनों में एक साथ कदम रखा। संगकारा ने जहां 20 जुलाई 2000 को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट क्रिकेट में डेब्यू किया वहीं 5 जुलाई, 2000 को पाकिस्तान के खिलाफ वनडे क्रिकेट में डेब्यू किया।
 * संगकारा ने अपने कैरियर में 134 टेस्ट और 404 वनडे मैच खेले।
 * 404 वनडे मैच में संगकारा ने 25 शतक और 93 अर्धशतक के साथ कुल 14234 रन बनाये वहीं 134 टेस्ट मैच में संगा ने 38 शतक और 52 अर्धशतक के दम पर 12400 रन बनाये।
 * संगकारा का टेस्ट क्रिकेट में सर्वाधिक स्कोर 319 रन और वनडे में 169 रन है।
 * संगकारा वनडे में सबसे अधिक रन बनाने वाले दुनिया के दूसरे खिलाड़ी हैं। भारत के महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने वनडे में सबसे अधिक रन बनाये हैं। संगकारा केवल सचिन से पीछे हैं। सचिन ने 463 वनडे मैच में 18426 रन बनाये हैं, जबकि संगकारा ने 404 वनडे मैच में 14234 रन बनाये हैं।
 * संगकारा अच्छे बल्लेबाज के साथ-साथ दुनिया के बेहतरीन विकेटकीपर भी थे। संगकारा ने विकेट के पीछे 182 कैच और 20 स्टम्प किये हैं।
 * संगकारा टेस्ट क्रिकेट में दोहरा शतक जमाने वाले दुनिया के दूसरे खिलाड़ी हैं। संगकारा इस मामले में केवल आॅस्ट्रेलिया के महान बल्लेबाज सर डॉन ब्रेडमैन से पीछे हैं। संगकारा ने टेस्ट क्रिकेट में 11 दोहरे शतक जमाये, जबकि ब्रेडमैन के नाम 12 दोहरे शतक हैं।
 * जिस भारत के खिलाफ संगकारा ने अपना अंतिम टेस्ट मैच खेला उसी भारतीय टीम के खिलाफ उन्होंने अपना पहला टेस्ट शतक जमाया था। संगकारा ने 2001 में भारत के खिलाफ गॉले में 105 रनों की पारी खेली थी।
 * कुमार संगकारा को क्रिकेट में कई सम्मान मिले हैं। उन्हें 2012 में तीन-तीन आईसीसी पुरस्कार मिले। उन्हें साल का सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटर, साल का बेस्ट टेस्ट क्रिकेटर और पीपुल्स च्वॉइस आॅफ द ईयर चुना गया था।
 * संगकारा ने टेस्ट और वनडे के अलावा 56 टी-20 मैच भी खेले। जिसमें उन्होंने आठ पचासे की मदद से 1382 रन बनाये।
 * संगकारा के नाम सबसे लम्बी साझेदारी का है रिकार्ड। संगकारा और श्रीलंका के महान बल्लेबाज माहेला जयवर्धने ने 2006 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ तीसरे विकेट के लिए रिकार्ड 624 रन की साझेदारी की थी। यह साझेदारी टेस्ट क्रिकेट में मील का पत्थर साबित हुई। 

वाराणसी ने जीता बालिका जूनियर कबड्डी का खिताब

रोमांचकारी फाइनल मैच में सहारनपुर को 21-20 से हराया
आगरा। खेल निदेशालय उत्तर प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश कबड्डी संघ के संयुक्त तत्वावधान में एकलव्य स्पोर्ट्स स्टेडियम में खेली गई प्रदेशीय समन्वय जूनियर बालिका कबड्डी प्रतियोगिता वाराणसी के बेटियों ने जीत ली। तीन दिन तक चली प्रतियोगिता का खिताबी मुकाबला 23 अगस्त को खेला गया जिसमें वाराणसी ने सहारनपुर मंडल को पराजित किया।
रविवार को प्रतियोगिता का पहला क्वार्टर फाइनल मैच सहारनपुर और  मेरठ के बीच  खेला गया। इस मैच में सहारनपुर ने मेरठ को 31-14 के अंकों से परास्त कर सेमीफाइनल में प्रवेश  किया। अगला क्वार्टर फाइनल  गोरखपुर और वाराणसी के मध्य खेला गया, जिसमें वाराणसी ने 40-18 से गोरखपुर पर विजय प्राप्त कर सेमीफाइनल में प्रवेश  किया। तीसरा क्वार्टर फाइनल आगरा और  झांसी के मध्य खेला गया।  मैच में आगरा ने झांसी को 23-01 अंक से पराजित कर सेमीफाइनल में जगह बनाई। अंतिम क्वार्टर फाइनल  इलाहाबाद और  कानपुर के मध्य खेला गया।  जिसमें इलाहाबाद ने कानपुर को 38-13 के अंकों से परास्त कर सेमीफाइनल में प्रवेश किया।
 प्रतियोगिता का पहला  सेमीफाइनल आगरा और सहारनपुर  के मध्य खेला गया। जिसमें सहारनपुर ने आगरा को 52-21 से हराकर फाइनल में प्रवेश किया। दूसरा सेमीफाइनल वाराणसी और इलाहाबाद के मध्य खेला गया।  मैच में वाराणसी ने इलाहाबाद को 24-08 से हराकर फाइनल में जगह बनाई। रोमांचकारी फाइनल मैच  में वाराणसी ने सहारनपुर को 21-20 से शिकस्त देकर प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिता का विजेता होने का गौरव हासिल किया। निर्णायक मंडल में राजेश कुमार सिंह, प्रेमप्रकाश चौरसिया, बीबी खान, पीके पाण्डेय, सुरेन्द्र सिंह, रामपाल और प्रेम सिंह यादव शामिल रहे। प्रतियोगिता की  विजेता-उपविजेता टीमों व निर्णायकों को मुख्य अतिथि पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर एवं भारतीय महिला क्रिकेट टीम की चयनकर्ता हेमलता काला ने पुरस्कृत किया। आरएसओ चंचल मिश्रा ने मुख्य अतिथि का बुके भेंट कर स्वागत किया। कार्यक्रम का संचालन उप क्रीड़ाधिकारी राहुल चोपड़ा ने किया। इस अवसर पर सुशील कुमार वार्ष्णेय, एसएस चौहान, अरविंद यादव, केसी श्रीवास्तव, प्रमिला भारती, अमिताभ गौतम सहित स्टेडियम के अनेक प्रशिक्षक व खेलप्रेमी मौजूद रहे। 

खेलों में अब 10 सम्भाग!


मध्यप्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग की चाह, अधिक से अधिक खिलाड़ी दिखाएं कमाल
खेलपथ विशेष
ग्वालियर। खेल एवं युवा कल्याण विभाग मध्यप्रदेश ने प्रदेश के अधिक से अधिक खिलाड़ियों को खेलों में प्रतिनिधित्व देने की खातिर अब 10 सम्भागों के सृजन का निर्णय लिया है। इससे पूर्व मध्यप्रदेश में सात सम्भाग अस्तित्व में थे।
खेल एवं युवा कल्याण विभाग मध्यप्रदेश प्रतिवर्ष युवा कल्याण की गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए ग्रामीण खेल, महिला खेल, युवा अभियान, युवा उत्सव आदि के आयोजन ब्लॉक, जिला, सम्भाग और राज्य स्तर पर करता रहा है। अभी तक खेल विभाग द्वारा प्रदेश के सात सम्भागों ग्वालियर, सागर, रीवा, जबलपुर, उज्जैन, इंदौर और भोपाल में खेल गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाता रहा है। इस व्यवस्था के चलते कई जिलों के खिलाड़ी सम्भाग और राज्य स्तर पर खेलने से वंचित रह जाते थे। इस समस्या के दृष्टिगत खेल एवं युवा कल्याण विभाग मध्यप्रदेश ने शासकीय पत्र क्रमांक-8361, दिनांक 20-10-2014 को सभी सम्भागायुक्तों, जिला कलेक्टरों, पुलिस अधीक्षकों तथा समस्त जिला खेल एवं युवा कल्याण अधिकारियों को प्रदेश में खेल गतिविधियों के विकास एवं विस्तार के लिए 10 खेल सम्भागों के सृजन का पत्र प्रेषित किया है।
नई व्यवस्था से पहले होशंगाबाद-भोपाल और ग्वालियर-चम्बल सम्भागों को एक-एक सम्भाग ही माना जाता रहा है। इतना ही नहीं गत वर्षों में नया सम्भाग बनाए गये शहडोल सम्भाग को भी पृथक न मानते हुए रीवा सम्भाग के अधीन ही शुमार किया जाता रहा। प्रदेश में प्रचलित इस व्यवस्था के चलते छोटे जिले भिण्ड, श्योपुर, हरदा, बैतूल, शहडोल, डिण्डौरी, उमरिया आदि के खिलाड़ी सम्भाग स्तर पर पिछड़ जाते थे और अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन राज्यस्तर पर नहीं कर पाते थे। इस समस्या से खिलाड़ियों को निजात दिलाने के लिए खेल एवं युवा कल्याण विभाग मध्यप्रदेश ने वर्ष 2014-15 से प्रदेश में 10 सम्भागों के सृजन का निर्णय लिया है। विभाग के इस प्रयास से अब अधिक से अधिक खिलाड़ी प्रदेश स्तर पर अपना खेल-कौशल दिखा सकेंगे। संचालक खेल उपेन्द्र जैन ने अपने पत्र के माध्यम से यह जानकारी सभी जिले के आलाधिकारियों को कर दी है। खेल एवं युवा कल्याण विभाग मध्यप्रदेश के इस निर्णय की खिलाड़ियों ने सराहना करते हुए खुशी जाहिर की है।
शिवपुरी होगा चम्बल सम्भाग का मुख्यालय
ग्वालियर-चम्बल सम्भाग में अब चम्बल सम्भाग के अस्तित्व में आने के बाद लोगों में इस बात की चर्चा है कि चम्बल का मुख्यालय मुरैना होगा या फिर शिवपुरी? भरोसेमंद सूत्रों की कही सच मानें तो खेल विभाग चम्बल सम्भाग का मुख्यालय शिवपुरी करने जा रहा है। इसके पीछे वजह शिवपुरी में शानदार खेल अधोसंरचना के साथ ही जिला खेल अधिकारी का होना है। दरअसल मुरैना में प्रतिभाएं तो हैं लेकिन यहां लम्बे समय से खेल अधिकारी नहीं होने से खेल गतिविधियों को पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है। जो भी हो शिवपुरी को मुख्यालय बनाना शायद ही नेतानगरी को रास आए।
पूर्व की व्यवस्था
सम्भाग का नाम सम्भाग में आने वाले जिले
1- ग्वालियर ग्वालियर, श्योपुर, मुरैना, भिण्ड, शिवपुरी, गुना, अशोक नगर, दतिया।
2- सागर सागर, दमोह, छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़।
3- रीवा  रीवा, सिंगरौली, सीधी, सतना, उमरिया, शहडोल, अनूपपुर।
4- जबलपुर जबलपुर, कटनी, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, सिवनी, मण्डला, बालाघाट, डिण्डौरी।
5- उज्जैन उज्जैन, देवास, रतलाम, शाजापुर, मंदसौर, नीमच, आगर।
6- इंदौर इंदौर, धार, अलीराजपुर, झाबुआ, खरगौन, बड़वानी, खण्डवा, बुरहानपुर।
7- भोपाल भोपाल, सीहोर, रायसेन, राजगढ़, विदिशा, बैतूल, होशांगाबाद, हरदा।
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वर्तमान व्यवस्था
सम्भाग का नाम सम्भाग में आने वाले जिले
1- ग्वालियर ग्वालियर, गुना, अशोकनगर, दतिया
2- चम्बल श्योपुर, मुरैना, भिण्ड, शिवपुरी।
3- सागर सागर, दमोह, छतरपुर, पन्ना, टीकमगढ़।
4- रीवा रीवा, सिंगरौली, सीधी, सतना।
5- शहडोल शहडोल, उमरिया, अनूपपुर, डिण्डौरी।
6- जबलपुर जबलपुर, कटनी, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, सिवनी, मण्डला, बालाघाट।
7- उज्जैन उज्जैन, देवास, रतलाम, शाजापुर, मंदसौर, नीमच, आगर।
8- इंदौर इंदौर, धार, अलीराजपुर, झाबुआ, खरगौन, बड़वानी, खण्डवा, बुरहानपुर।
9- भोपाल भोपाल, सीहोर, राजगढ़, विदिशा।
10- नर्मदा बैतूल, होशंगाबाद, हरदा, रायसेन।