Wednesday 27 December 2017

बरसते रनों के बीच पदकों का अकाल


खेलों में भारत का बीता साल
श्रीप्रकाश शुक्ला
किसी राष्ट्र की प्रतिष्ठा खेलों में उसकी उत्कृष्टता से बहुत कुछ जुड़ी होती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलों में अच्छा प्रदर्शन केवल पदक जीतने तक सीमित नहीं होता बल्कि यह किसी राष्ट्र के स्वास्थ्य, मानसिक अवस्था एवं लक्ष्य के प्रति सजगता को भी सूचित करता है। समय गतिमान है, 2017 भी उम्मीदों के बीच काल के गाल में समा गया है। क्रिकेट को छोड़ दें तो बीते साल भी अन्य खेलों में भारत की सफलता अनाकर्षक ही रही। हां पेशेवर मुक्केबाज विजेन्दर सिंह, क्यू खिलाड़ी पंकज आडवाणी, शटलर पी.वी. सिन्धू, शटलर किदाम्बी श्रीकांत, भारोत्तोलक मीराबाई चानू, बाक्सर एम.सी. मैरीकाम आदि ने जरूर अपने पराक्रमी खेल से दुनिया भर में भारत को गौरवान्वित किया। यह प्रदर्शन सवा अरब की आबादी वाले भारत के लिए तालियां पीटने जैसी बात तो नहीं है, फिर भी इनके लिए तालियां पीटनी ही चाहिए क्योंकि इन जांबाजों ने खस्ताहाल सिस्टम के बीच खेलप्रेमियों को खुशी के लम्हे मुहैया कराए हैं। देखा जाए तो भारतीय खिलाड़ियों द्वारा ओलम्पिक में जीते पदकों से अधिक तो अकेले अमेरिकी तैराक माइकल फैल्प्स ने ही जीत दिखाए हैं। प्रत्येक ओलम्पिक और अन्य बड़े खेल आयोजनों के बाद सवाल उठता है कि क्या सवा अरब से अधिक आबादी वाले देश के खिलाड़ियों से अधिक पदकों की उम्मीद नहीं रखी जानी चाहिए। अफसोस बार-बार पूछे जाने वाले इस प्रश्न ने भी अब अपनी महत्ता लगभग खो दी है।
एक अरब तीस करोड़ की आबादी वाले देश में 15 प्रतिशत से भी कम लोगों को खेलने की सुविधा है। भारत में युवा जनसंख्या अपेक्षाकृत अन्य देशों की तुलना में अधिक है। इनमें शक्ति एवं ऊर्जा की भी कोई कमी नहीं है। बिना भेदभाव एवं राजनीति के अगर युवाओं को खेल के अवसर मिलें तो बहुत से युवाओं की ऊर्जा को एक सही राह मिल सकती है। देखा जाए तो दो दशक में भारत ने तेजी से आर्थिक प्रगति की है लेकिन खिलाड़ियों की मदद पर गरीबी का ही रोना रोया गया। खेलों में उत्कृष्टता के लिए राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक प्रतिबद्धता अनिवार्य है। इसके लिए दूरगामी सोच, सक्रिय योजनाएं एवं उनके क्रियान्वयन की आवश्यकता होती है। हम अपनी तुलना चीन से करने की हिमाकत तो करते हैं लेकिन उसके सिस्टम को अमल में लाने का प्रयास नहीं करते। खेलों में आज तक के भारतीय प्रदर्शन को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि इस खास विधा के लिए बनाया गया खास खेल मंत्रालय कुछ सार्थक कर पाया हो। आजादी के 70 साल बाद भारत को राज्यवर्धन सिंह राठौर के रूप में एक खिलाड़ी खेल मंत्री मिला है, लेकिन अकेला चना भाड़ फोड़ पाएगा इसमें संदेह है।
खैर, 2017 के खेल पन्ने पलटें तो भारतीय खिलाड़ियों ने खेल की दुनिया में क्रिकेट को छोड़कर यदा-कदा ही वाहवाही लूटी है। विराट कोहली के नेतृत्व में टीम इंडिया जहां क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में रनों की बरसात करती रही वहीं अन्य खेलों के खिलाड़ी एक-एक तमगे को तरसते नजर आए। खेल के सबसे अहम प्रारूप एथलेटिक्स को देखें तो भारत के लिए समय मानो थम सा गया है। ओलम्पिक में 100 साल के बाद भी हमारा कोई एथलीट पोडियम तक नहीं पहुंचा अलबत्ता दर्जनों खिलाड़ी डोप के कलंक से जरूर मुल्क को शर्मसार कर चुके हैं। एथलेटिक्स को भारतीय परिप्रेक्ष्य से देखें तो अंजू बाबी जार्ज के 2003 के पेरिस विश्व चैम्पियनशिप की लम्बी कूद में जीते कांस्य पदक के बाद से भारत की झोली खाली है। बीते साल लंदन में हुई विश्व एथलेटिक्स स्पर्धा में भालाफेंक खिलाड़ी नीरज चोपड़ा 25 भारतीयों के दल में सबसे बड़ी पदक की उम्मीद थे लेकिन जूनियर विश्व रिकार्डधारी चोपड़ा फाइनल दौर में भी नहीं पहुंच सके। भारत के गोविंद लक्ष्मणन ने 5000 मीटर रेस में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया लेकिन शॉटपुटर मनप्रीत कौर के डोप टेस्ट में पाजीटिव पाए जाने से मुल्क की प्रतिष्ठा तार-तार हो गई। बीते साल भारतीय एथलीटों ने भुवनेश्वर में हुई एशियन एथलेटिक्स स्पर्धा में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए चीन को तो पछाड़ दिया लेकिन विश्व मंच पर कोई भी खिलाड़ी करिश्मा नहीं दिखा सका।
बीते साल भारत के स्टार मुक्केबाज ओलम्पिक पदकधारी विजेन्दर सिंह ने पेशेवर मुक्केबाजी में अपना दबदबा कायम रखते हुए लगातार दसवीं जीत हासिल कर अपने डब्ल्यूबीओ एशिया पैसेफिक और ओरिएंटल सुपर मिडिलवेट खिताबों का सफलतापूर्वक बचाव किया। विजेन्दर ने बेहतर तकनीक और आक्रामकता का प्रदर्शन करते हुए जयपुर के सवाई मानसिंह स्टेडियम में दर्शकों को झूमने के लिए मजबूर कर दिया। भारतीय मुक्केबाज विजेन्दर सिंह ने अपने पेशेवर मुक्केबाजी करियर में लगातार 10वीं जीत दर्ज करते हुए घाना के अर्नेस्ट अमुजु को हराया। बत्तीस वर्ष के ओलंपिक कांस्य पदकधारी मुक्केबाज विजेन्दर का अभी तक का पेशेवर करियर शानदार है। यह मुक्केबाज 2018 में होने वाले राष्ट्रमण्डल और एशियाई खेलों में भारत को स्वर्णिम सफलता दिलाने की कूबत रखता है। विजेन्दर की ही तरह पांच बार की विश्व चैम्पियन एम.सी. मैरीकाम ने एशियन मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में स्वर्णिम सफलता हासिल कर अपने पुराने चावल होने का भान कराया। रिंग की महारानी तीन बेटों की मां मैरीकाम ने अब तक एक ओलम्पिक पदक, पांच विश्व खिताब, पांच एशियन खिताब अपनी झोली में डाले हैं। 2017 में सबसे बड़ी सफलता की बात करें तो मणिपुर की मीराबाई चानू ने विश्व स्तर पर भारोत्तोलन में 23 साल बाद स्वर्णिम सफलता हासिल कर दुनिया को हैरत में डाला है। चानू की इस सफलता ने भारत के माथे पर लगी डोपिंग की कालिख को भी साफ करने का काम किया है।  
बीते साल बैडमिंटन में शटलर पीवी सिंधू और किदांबी श्रीकांत के करिश्माई प्रदर्शन के चलते दुनिया भर के कई खेल मंचों पर राष्ट्रगान की धुन सुनाई दी। किदांबी श्रीकांत ने साल भर बेहतरीन प्रदर्शन कर न केवल नई इबारत लिखी बल्कि सर्वाधिक टाइटल भी अपने नाम किए। पी.वी. सिंधू और श्रीकांत कई एलीट बैडमिंटन टूर्नामेंटों के फाइनल में पहुंचे। सिंधू ने जहां तीन खिताब और तीन रजत पदक के साथ विश्व की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के बीच अपना दावा पुख्ता किया वहीं श्रीकांत ने उम्मीदों से बेहतर प्रदर्शन करते हुए चार खिताब जीते और एक में वह उपविजेता रहे। इन दोनों शटलरों के अलावा बी. साई प्रणीत और एच.एस. प्रणय ने भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतर प्रदर्शन किया। साल का आकर्षण पी.वी. सिंधू के कुछ कड़े मैच रहे जिन्हें लम्बे समय तक भूला नहीं जा सकेगा। हैदराबाद की इस खिलाड़ी को विश्व चैम्पियनशिप, हांगकांग ओपन और दुबई सुपर सीरीज फाइनल के खिताबी मुकाबले में हार झेलनी पड़ी लेकिन वह दो सुपर सीरीज इंडिया ओपन तथा कोरिया ओपन और सैयद मोदी ग्रांप्री का खिताब जीतने में सफल रही। शटलर श्रीकांत एक सत्र में चार सुपर सीरीज जीतने वाले पहले भारतीय बने। उनसे पहले महान खिलाड़ी लिन डैन, ली चोंग वेई और चेन लोंग ही यह उपलब्धि हासिल कर पाए हैं।
साइना नेहवाल की जहां तक बात है इस शटलर ने मलेशिया मास्टर्स ग्रांप्री गोल्ड का खिताब जीतने के साथ ही विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य पदक से अपना गला सजाया। साइना ने राष्ट्रीय चैम्पियनशिप के फाइनल में सिंधू को पराजित कर इस बात के संकेत दिए कि फिट रहने पर वह अब भी सर्वश्रेष्ठ है। 2017 में सोलह साल के लक्ष्य सेन ने भी इंडिया इंटरनेशनल सीरीज और यूरेशिया बुल्गारिया ओपन का खिताब जीता जबकि टाटा ओपन इंडिया इंटरनेशनल में वह उप विजेता रहे। भारतीय शटलरों के शानदार प्रदर्शन से राष्ट्रीय कोच पुलेला गोपीचंद की प्रतिष्ठा में इजाफा हुआ लेकिन विश्व जूनियर चैम्पियनशिप की टीम में उनकी बेटी गायत्री के चयन को लेकर उन पर भेदभाव के आरोप भी लगे। 16 साल की गायत्री ने अण्डर 19 का राष्ट्रीय खिताब जीतकर इस बात के संकेत दिए कि उनमें भी समय आने पर ओलम्पिक पदक से मुल्क को गौरवान्वित करने की क्षमता है। 
इंडियन क्यू खेलों में साल 2017 भी पिछले कई वर्षों की तरह पंकज आडवाणी के ही नाम रहा। आडवाणी ने अपने अनगिनत विश्व खिताबों की कड़ी में बीते साल दो और खिताब जोड़ लिए। पिछले एक दशक से बिलियडर्स व स्नूकर दोनों में कामयाबी की नई कहानी लिख रहे 32 वर्ष के आडवाणी ने बीते साल भी अपेक्षाओं के अनुरूप खेल दिखाया। पंकज के नाम अब 18 विश्व खिताब हो गए हैं। जुलाई 2017 में आडवाणी की अगुआई में भारत ने पाकिस्तान को हराकर एशियाई टीम स्नूकर चैम्पियनशिप का स्वर्ण पदक भी अपने नाम किया था। आडवाणी बिलियर्ड्स और स्नूकर में राष्ट्रीय खिताब जीतने वाले पहले भारतीय पुरुष खिलाड़ी हैं। पंकज के अलावा 2017 में 40 साल की विद्या पिल्लै ने भी सिंगापुर में विश्व महिला स्नूकर चैम्पियनशिप में रजत पदक जीतकर अपने कौशल का शानदार आगाज किया।
बीता साल भारतीय कुश्ती के लिए उम्मीदों के अनुरूप नहीं रहा। साक्षी मलिक के प्रदर्शन में जहां निरंतरता की कमी रही वहीं लगातार दो बार के ओलम्पिक पदक विजेता सुशील कुमार ने दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आयोजित राष्ट्रमंडल कुश्ती प्रतियोगिता के 74 किलोग्राम फ्री स्टाइल वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर साबित किया कि उनमें अब भी देश को पदक दिलाने का दम है। तीन साल बाद मैट पर उतरे सुशील ने इंदौर में राष्ट्रीय चैम्पियनशिप का खिताब भी अपने नाम किया था। 2020 के टोक्यो ओलम्पिक खेलों को अपना लक्ष्य मानकर चल रहे सुशील ने राष्ट्रमण्डल कुश्ती चैम्पियनशिप में अपने सभी चारों मुकाबले जीते और स्वर्ण पदक अपने नाम किया।
सुशील कुमार की जोरदार वापसी के बावजूद कुश्ती की प्रगति पर सवालिया निशान लग गया है। देखा जाए तो बीजिंग ओलम्पिक 2008 से भारत को कुश्ती में पदक मिल रहे हैं लेकिन कुल मिलाकर यह खेल उस स्तर को बनाए रखने में नाकाम रहा है जो एक समय बना था और 2017 के दौरान यह जाहिर भी हो गया। अगस्त में हुई विश्व चैम्पियनशिप में साक्षी और एशियाई चैम्पियन बजरंग पूनिया की मौजूदगी के बावजूद कोई भारतीय पहलवान पदक दौर में भी जगह नहीं बना सका। भारत ने इससे पहले मई में अपनी मेजबानी में नई दिल्ली में एशियाई चैम्पियनशिप में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए एक स्वर्ण सहित 10 पदक जीते थे। पोलैंड के बिदगोज में अण्डर 23 विश्व चैम्पियनशिप में बजरंग विनोद, ओमप्रकाश और रितु फोगाट ने रजत पदक तो जीते लेकिन प्रतिस्पर्धा के स्तर को देखते हुए यह विश्व मंच पर उसके रुतबे को स्थापित करने के लिए काफी नहीं है।
भारत के युवा निशानेबाजों ने शूटिंग रेंज पर अपनी प्रतिभा की बेमिसाल बानगी पेश करते हुए भविष्य के लिये उम्मीदें जगाई हैं। 2018 में राष्ट्रमंडल खेल, एशियाई खेल और विश्व चैम्पियनशिप को देखते हुए भारतीय नामी-गिरामी निशानेबाज अपने तमगों की तादाद बढ़ाने और उदीयमान शूटर अपनी छाप छोड़ने के इरादे से उतरेंगे। भारतीय निशानेबाजों में इलावेनिल वालारिवन, मेघना सज्जनार, मेहुली घोष, अनीश भानवाला, शपथ भारद्वाज ने उम्दा प्रदर्शन किया तो सौरभ चौधरी, अखिल शेरोन, यशस्विनी सिंह देसवाल और अंगद वीर सिंह बाजवा के प्रदर्शन ने साबित किया कि भारतीय निशानेबाजी का भविष्य उज्ज्वल है। सीनियर स्तर पर डबल ट्रैप निशानेबाज अंकुर मित्तल ने कामयाबी की नयी दास्तान लिखते हुए आईएसएसएफ विश्व कप में रजत और स्वर्ण पदक जीते।
लान टेनिस में बीते साल युवा खिलाड़ियों ने कुछ शीर्ष एकल प्रतिस्पर्धियों पर जीत दर्ज कर जहां अच्छे संकेत दिए वहीं रोहन बोपन्ना ने पहला ग्रैंडस्लैम अपने नाम किया। सानिया मिर्जा के शीर्ष से नीचे की ओर खिसकने की शुरुआत से महिला टेनिस की चमक कम होती दिखने लगी है। पिछले दो साल में शानदार प्रदर्शन करने वाली सानिया मिर्जा ने शीर्ष रैंकिंग गंवाई और अब वह शीर्ष दस में भी नहीं हैं। कुल मिलाकर भारतीय टेनिस के लिये बीता साल मिला-जुला रहा जिसमें न तो बुलंदियों के शिखर पर पहुंचे और न ही नाकामी की तोहमत लगी। युवाओं के जज्बे ने उम्मीदें कायम रखीं। युकी भांबरी, रामकुमार रामनाथन और सुमित नागल ने कुछ सफलतायें अर्जित कर टेनिस के प्रति भारतीयों के रुझान को जिन्दा रखा। बीते साल भारत में सिर्फ दो चैलेंजर टूर्नामेंट पुणे और बेंगलूरू में खेले गए। युकी ने पुणे चैलेंजर जीता और नागल ने बेंगलूरू में जीत दर्ज की। सवाल यह है कि एआईटीए देश में कम से कम पांच चैलेंजर टूर्नामेंट भी क्यों नहीं करा पा रहा। भारत में पुरुषों के सिर्फ नौ आईटीएफ फ्यूचर्स टूर्नामेंट और महिलाओं के छह आईटीएफ टूर्नामेंट खेले गए। भारतीय युवाओं ने पर्याप्त सहयोग नहीं मिलने के बावजूद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अच्छा प्रदर्शन किया। युकी भांबरी ने अमेरिका में एटीपी सिटी ओपन में दुनिया के 22वें नम्बर के खिलाड़ी गाएल मोंफिल्स को हराया वहीं रामकुमार रामनाथन ने दुनिया के आठवें नम्बर के खिलाड़ी डोमिनिक थियेम को तुर्की में अंताल्या ओपन में मात दी। दिविज शरण ने पूरव राजा से जोड़ी टूटने के बावजूद एटीपी यूरोपीय ओपन और चैलेंजर सर्किट पर दो खिताब जीते। लिएंडर पेस ने 2017 में लगातार दो चैलेंजर खिताब जीते लेकिन डेविस कप टीम से उन्हें बाहर रखा गया।
2016 के आखिर में जूनियर विश्व कप अपनी झोली में डालने वाली भारतीय हॉकी के लिए वर्ष 2017 मिली-जुली सफलता वाला रहा जिसमें दो स्वर्ण और तीन कांस्य पदक भारत के नाम रहे। बड़े टूर्नामेंटों की सफल मेजबानी से अंतरराष्ट्रीय हॉकी में भारत का रूतबा भी बढ़ा। भारतीय सीनियर पुरुष टीम ने 2017 में एशिया कप में पीला तमगा जीता जबकि अजलन शाह कप और भुवनेश्वर में हुए हॉकी विश्व लीग फाइनल में उसे कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा। महिला टीम ने 13 बरस बाद एशिया कप अपने नाम कर इतिहास रचा तो जूनियर टीम के हिस्से जोहोर बाहरू कप का कांस्य पदक आया। रियो ओलम्पिक में खराब प्रदर्शन का गम भुलाते हुए भारतीय टीम ने अप्रैल में अजलन शाह कप में न्यूजीलैंड को प्लेआफ में हराकर कांस्य पदक तो जरूर जीता लेकिन जून में लंदन में हॉकी विश्व लीग सेमीफाइनल में उसका प्रदर्शन निराशाजनक रहा। भारत कनाडा और मलेशिया जैसी कमजोर टीमों से हारकर छठे स्थान पर रहा और उसकी एकमात्र उपलब्धि पाकिस्तान पर मिली जीत रही।
अगस्त में यूरोप दौरे पर नौ जूनियर खिलाड़ियों को मौका दिया गया जो लखनऊ में पिछले साल विश्व कप जीतने वाली टीम का हिस्सा थे। भारत की इस युवा टीम ने नीदरलैंड को दो बार हराया। भारत ने ढाका में हुए एशिया कप में शानदार स्टिक वर्क का प्रदर्शन करते हुए फाइनल में मलेशिया को 2-1 से मात देते हुए एशिया कप अपने नाम किया। भुवनेश्वर में खेले गये हॉकी विश्व लीग फाइनल में भरोसेमंद मिडफील्डर सरदार सिंह को बाहर रखने का फैसला चौंकाने वाला रहा बावजूद इसके भारतीय जांबाज टोली ने इंग्लैंड और जर्मनी से हारने के बाद बेल्जियम जैसी दमदार टीम को क्वार्टर फाइनल में पेनल्टी शूटआउट में पराजित किया। भारतीय टीम सेमीफाइनल में रियो ओलम्पिक चैम्पियन अर्जेंटीना से एक गोल से हार गई लेकिन जर्मनी को प्लेआफ में हराकर कांस्य पदक से अपना गला सजाया। महिला हाकी टीम की जहां तक बात है कोच हरेन्द्र सिंह के टीम से जुड़ने के बाद भारतीय बेटियों ने 13 साल बाद चीन को पराजित कर एशिया कप जीता। 2018 भारतीय हॉकी के लिए दशा और दिशा तय करने वाला होगा जिसमें अप्रैल में ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में राष्ट्रमंडल खेल, अगस्त-सितम्बर में जकार्ता में एशियाई खेल और फिर नवम्बर-दिसम्बर में भुवनेश्वर में सीनियर हॉकी विश्व कप खेला जाना है।
2017 भारतीय क्रिकेट के नाम रहा। विराट सेना ने क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में अपनी बादशाहत कायम रखी। बीते साल भारतीय टीम ने तीनों प्रारूपों में कुल 53 मैच खेले जिनमें से 37 में उसने विजय का स्वाद चखा। भारत ने 2017 में 11 टेस्ट मैच खेले जिनमें से उसे सात में जीत और एक में हार मिली जबकि तीन टेस्ट ड्रा रहे। बीते कैलेंडर वर्ष में भारतीय विराट टोली ने जो 29 एकदिवसीय मैच खेले उनमें से 21 में उसे विजयश्री मिली। एकदिवसीय क्रिकेट में भारत को सात मुकाबलों में पराजय से दो-चार होना पड़ा। खेल के सबसे छोटे प्रारूप टी-20 में भारत ने 13 मैच खेले और नौ में जीत दर्ज की। यह जीत के लिहाज से भारत का किसी एक वर्ष में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। इससे पहले उसने 2016 में 46 मैचों में से 31 में जीत दर्ज की थी। किसी एक वर्ष में सर्वाधिक वनडे जीतने का भारतीय रिकार्ड 24 है जो उसने 1998 में बनाया था। अगर एक साल में जीत के भारतीय रिकार्ड को देखा जाए तो उसने 2010 और 2013 में 29-29 मैच जबकि 2007 में 28 मैच जीते थे। किसी एक वर्ष में सर्वाधिक मैच जीतने का विश्व रिकार्ड आस्ट्रेलिया के नाम पर है। उसने 2003 में 47 में से 38 मैचों में जीत हासिल की थी। भारत अब इस रिकार्ड की सूची में दूसरे नम्बर पर है।
बीते साल क्रिकेट में एक टीम के रूप में मिली अपार सफलताओं का श्रेय कप्तान विराट कोहली के नायाब प्रदर्शन को भी जाता है। भारतीय क्रिकेट को नयी ऊंचाइयों पर ले जाने की कवायद से लेकर रिकॉर्डतोड़ बल्लेबाजी, कोच बनाने को लेकर उठे विवाद से लेकर स्टारडम की पराकाष्ठा और स्टाइल आइकान से लेकर बॉलीवुड की सुपर स्टार से शादी तक वर्ष 2017 पूरी तरह से विराट कोहली के नाम रहा। भारतीय कप्तान विराट कोहली साल के हर लम्हे पर छाये रहे। बात चाहे मैदान की हो या मैदान से बाहर की, कोच अनिल कुंबले से विवाद की हो या फिर रवि शास्त्री के कोच बनने की, रिकार्डतोड़ बल्लेबाजी की हो या कप्तानी की, लाखों दिलों को तोड़ने की हो या अनुष्का शर्मा से हाई प्रोफाइल शादी की विराट हर भारतीय के दिलो-दिमाग पर छाये रहे। विराट कोहली अब उसी बादशाहत की तरफ बढ़ चले हैं जहां कभी सुनील गावस्कर, कपिल देव, सचिन तेंदुलकर और महेंद्र सिंह धोनी ने राज किया था। विराट का भारतीय क्रिकेट में एकछत्र साम्राज्य स्थापित हो चुका है और वह अपने नाम को पूरी तरह सार्थक कर रहे हैं। क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में भारतीय कप्तान की बल्लेबाजी अग्नि परीक्षा में कुंदन की तरह निखर कर सामने आयी है। विराट ने 2017 में जिस तरह रिकार्डतोड़ बल्लेबाजी की है उससे तो अब महान सचिन तेंदुलकर के रिकार्ड तक खतरे में नजर आने लगे हैं। बल्लेबाजी की नई इबारत गढ़ रहे विराट ने अपनी बल्लेबाजी से पूरे साल आंकड़ेबाजों को उलझाए रखा और अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में शतकों का पचासा तक पूरा कर डाला। विराट के टेस्ट में 20 और वनडे में 32 शतक हो चुके हैं। कप्तान के रूप में वह सर्वाधिक दोहरे शतकों का नया रिकार्ड भी बना चुके हैं। विराट कोहली की ही तरह रोहित शर्मा ने विदा लेते साल में अपनी याराना बल्लेबाजी से हर किसी को अपना मुरीद बना लिया है। एकदिवसीय क्रिकेट में तीन दोहरे शतक लगाने वाले इस जांबाज बल्लेबाज ने इंदौर में 35 गेंदों में शानदार सैकड़ा जमाकर दक्षिण अफ्रीकी गेंदबाजों को खतरे का पैगाम दिया है। भारतीय क्रिकेट टीम दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर है ऐसे में उसके मुरीदों को विराट सेना से सिर्फ जीत का तोहफा चाहिए। क्रिकेट में यदि भारतीय टोली वाकई ताकतवर है तो उसे दक्षिण अफ्रीका फतह करना ही चाहिए वरना उसे दुनिया घरू शेर ही कहेगी।


Thursday 21 December 2017

मां लक्ष्मी के नक्शेकदम पर चल रही गायत्री



आज की पीढ़ी को मिल रही हैं सुविधाएं
पुलेला जी होते मेरे कोच तो मैं भी जीतती ओलम्पिक मैडलः पीवीवी लक्ष्मी
                                        श्रीप्रकाश शुक्ला
देश में बैडमिंटन को पूरी तरह से समर्पित बस एक ही परिवार नजर आता है, वह है गुरु द्रोणाचार्य पुलेला गोपीचंद का। कहते हैं बेटी में अपनी मां के गुण होते हैं। इसी बात को प्रमाणित कर रही है पुलेला की बेटी गायत्री गोपीचंद। 14 साल की गायत्री ने कृष्णा खेतान ऑल इंडिया जूनियर रैंकिंग बैडमिंटन टूर्नामेंट के अंडर-19 वर्ग में महाराष्ट्र की पूर्वा को हराकर न केवल खिताब जीता बल्कि अपनी ही मां लक्ष्मी के रिकार्ड को भी ध्वस्त कर दिया। गायत्री की मां पीवीवी लक्ष्मी ने 26 साल पहले वर्ष 1991 में यह खिताब अपने नाम किया था।
लड़कियों के अंडर-19 वर्ग का फाइनल मैच बेहद रोमांचक रहा। गायत्री गोपीचंद ने कांटे के मुकाबले में महाराष्ट्र की पूर्वा बारवे को 23-21, 21-18 से हराया। पहले गेम में गायत्री और पूर्वा एक समय 18-18 की बराबरी पर थीं। इसके बाद स्कोर 21-21 भी हो गया। फिर गायत्री ने दो प्वाइंट बनाते हुए पहला सेट जीत लिया। दूसरे सेट में भी दोनों खिलाड़ियों ने शानदार खेल दिखाया और स्कोर बराबर ही चलता रहा। पहले स्कोर 14-14 और फिर 16-16 रहा। इसके बाद गायत्री पूर्वा पर भारी पड़ी और सेट 21-18 से जीतकर चमचमाती ट्रॉफी चूम ली। इस खिताबी मुकाबले के दौरान जहां दोनों बेटियां कोर्ट में अपना दमखम दिखाती रहीं वहीं मैदान के बाहर दो माताएं अपनी-अपनी बेटियों का हौसला बढ़ाती देखी गईं।
भविष्य में उसके खेल में सुधार आए इसके लिए गायत्री गोपीचंद ने अपने सारे मैच रिकॉर्ड कराए हैं। मैच रिकॉर्डिंग के बारे में पीवीवी लक्ष्मी का कहना है कि बेटी गायत्री के खेल में सुधार आए इसीलिए इन मैचों को स्टडी के लिए रिकॉर्ड करवाया गया है। लक्ष्मी ने बताया कि 1991 में जब मैंने यह टूर्नामेंट जीता था तो उसका कोई रिकॉर्ड मेरे पास नहीं रहा इसीलिए गायत्री ने अपने मैच रिकॉर्ड करवाए हैं। लक्ष्मी कहती हैं कि गायत्री के मैचों की रिकार्डिंग पुलेला गोपीचंद को भी दिखाई जाएगी ताकि उनसे समय-समय पर टिप्स लिए जा सकें।
भारत के बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद की पत्नी पीवीवी लक्ष्मी कहती हैं कि बेटी गायत्री की जीत मेरी जीत से बड़ी है क्योंकि मैंने 17 साल की उम्र में यह टूर्नामेंट जीता था जबकि गायत्री अभी 14 साल की है। लक्ष्मी का कहना है कि आज का खिलाड़ी बेहद प्रोफेशनल है, वह कड़ी मेहनत करता है। गायत्री गोपीचंद की खिताबी जीत के बाद उसके कोच विजय कुमार का कहना था कि गायत्री इसलिए जीती है क्योंकि वह तकनीकी रूप से बेहद मजबूत है। इसके अलावा एकेडमी में वह अपने से सीनियर खिलाड़ियों से लगातार अभ्यास करती रहती है। खिताबी मैच में अपनी सीनियर खिलाड़ी पूर्वा का सामना करते हुए वह बिल्कुल शांत लग रही थी। गायत्री रोज सुबह 9 बजे से 11 बजे तक और शाम को 4 बजे से 6 बजे के बीच प्रैक्टिस करती है। इसके साथ ही उसकी फिटनेस पर भी बहुत ध्यान दिया जाता है। 14 साल की उम्र में राष्ट्रीय कार्तिमान अपने नाम करने वाली गायत्री का कहना है कि मैं सिर्फ अपने खेल पर ध्यान देती हूं। मैं अपनी पढ़ाई ज्यादातर ट्यूशन के जरिये करती हूं क्योंकि अभी मेरा पूरा फोकस बैडमिंटन पर है।
देखा जाए तो ओलम्पिक पदक विजेता पीवी सिंधु के कोच पुलेला गोपीचंद को तो लगभग सभी खेलप्रेमी जानते हैं लेकिन उनकी पत्नी पीवीवी लक्ष्मी के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। लोगों को तो यह भी नहीं पता कि वह भी एक शानदार बैडमिंटन खिलाड़ी रही हैं। 1996 के अटलांटा ओलम्पिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकीं लक्ष्मी पी.वी. सिंधु की कामयाबी का श्रेय अपने पति गोपीचंद को देते हुए कहती हैं कि सिंधु को जैसा कोच मिला है, वैसा मुझे नहीं मिल पाया वरना मैं भी ओलम्पिक मैडल जरूर जीतती। हैदराबाद में बैडमिंटन एकेडमी चलाने में पति की मदद करने वाली लक्ष्मी गोपीचंद के कड़े शेड्यूल का हवाला देते हुए कहती हैं कि जो हम आज नई पीढ़ी को दे रहे हैं, हमारे पास इसकी सुविधा नहीं थी। पुलेला गोपीचंद ने अब तक देश को दो ओलम्पिक मैडल विजेता दिए हैं। उन्हीं की एकेडमी में कोचिंग लेने वाली साइना नेहवाल ने 2012 के लंदन ओलम्पिक में कांस्य तो 2016 में पी.वी. सिन्धु ने रजत पदक जीता है।
पूर्व ओलम्पियन लक्ष्मी ओलम्पिक में अच्छा प्रदर्शन न कर पाने के लिए खिलाड़ियों की आलोचना को सही नहीं मानतीं। लक्ष्मी का कहना है कि हमारे यहां ढांचागत सुविधाओं का अभाव है। लक्ष्मी कहती हैं कि पुलेला गोपीचंद एकेडमी में ट्रेनिंग को आने वाले बच्चों की ऐसी कठिनाइयां दूर की जा रही हैं, जिनका हम दोनों को अपने खेल करियर में सामना करना पड़ा था। लक्ष्मी कहती हैं कि एक समय था जब मुख्य स्टेडियम खिलाड़ियों को राजनीतिक और सामाजिक कार्यक्रमों के चलते उपलब्ध नहीं होता था। एक बार पूरा स्टेडियम इसलिए बंद रखा गया था क्योंकि वहां बैलेट बॉक्स रखे थे।

दो बार नेशनल बैडमिंटन चैम्पियन रह चुकीं लक्ष्मी कहती हैं कि वह ऐसी महिला नहीं हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि एक पुरुष की कामयाबी में एक महिला का हाथ होता है। वह थोड़ी अलग हैं। लक्ष्मी एक साथ कई काम सम्हालती हैं। वह प्रोफेशनल हैं, मां हैं और एक हाउस वाइफ भी। वह पुलेला गोपीचंद के लिए सपोर्ट सिस्टम का काम करती हैं। लक्ष्मी सिर्फ अपने दो बच्चों की ही देखभाल नहीं करतीं बल्कि वह अपने पति के काम में भी सक्रिय सहयोग देती हैं। अविभाजित आंध्र प्रदेश की पहली महिला ओलम्पियन रहीं लक्ष्मी कहती हैं कि गोपीचंद की एकेडमी में खिलाड़ियों को फोकस करने और अपने टैलेंट पर भरोसा रखने की सीख दी जाती है। लक्ष्मी ने कहा कि हमने बैडमिंटन एकेडमी की शुरुआत इसलिए की ताकि उन कठिनाइयों को समाप्त किया जा सके जिनका हमें सामना करना पड़ा था। गोपीचंद चाहते हैं कि भविष्य के खिलाड़ियों को बेहतरीन सुविधाएं मिलें ताकि वे खेल की दुनिया में देश का नाम रोशन कर सकें। पुलेला की बेटी ही नहीं बेटा भी एक प्रतिभाशाली बैडमिंटन खिलाड़ी है। गायत्री का छोटा भाई साई विष्णु कई श्रेणियों में डबल्स के खिताब अपने नाम कर चुका है। गोपीचंद का पूरा परिवार ही बैडमिंटन को समर्पित है और परिवार में कड़ा अनुशासन है जो बच्चों के प्रदर्शन में साफ दिखाई देता है। सफलता और वह भी बैडमिंटन जैसे खेल की सफलता में कड़ी मेहनत तो लगती ही है। अपनी कड़ी मेहनत और लगन से अपने माता-पिता से एक कदम आगे निकल कर उनकी अपेक्षाओं पर खरा उतरना वाकई काबिलेतारीफ है। हम उम्मीद कर सकते हैं कि गायत्री गोपीचंद भी देर-सबेर ओलम्पिक मैडल जीत सकती है।

Wednesday 20 December 2017

मीनू ने मिरर राइटिंग में बनाया कीर्तिमान

विश्व के 100 रिकार्डों में शामिल, लंदन से डाक्टरेट करने का मिला आमंत्रण
कहते हैं कि कोई काम नामुमकिन नहीं होता बशर्ते करने वाले में जोश और जुनून हो। अलवर की खिलाड़ी बेटी मीनू पूनिया को ही लें उन्होंने शौक-शौक में ऐसा कीर्तिमान गढ़ दिया है जिसकी सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में प्रशंसा हो रही है। हर इंसान के अपने-अपने शौक होते हैं, मीनू को बचपन से ही उल्टे-सीधे तरीके से लिखने का शौक था। अपने इस शौक के लिए उन्हें माता-पिता से डांट-फटकार भी मिलती थी लेकिन मीनू ने अपने इसी शौक से एक नई पहचान और नया मुकाम हासिल कर लिया है। मीनू की मिरर राइटिंग के हुनर को अब भारत ही नहीं भारत से बाहर भी खूब सराहना मिल रही है।
द अलवर सेण्ट्रल कापरेटिव बैंक लिमिटेड अलवर के प्रधान कार्यालय में बैंकिंग सहायक के पद पर कार्यरत राजस्थान की खिलाड़ी बेटी मीनू पूनिया ने मिरर राइटिंग के क्षेत्र में समूची दुनिया में अलवर को एक नई पहचान दी है। मीनू ने देश के राष्ट्रगान को सबसे कम समय में मिरर राइटिंग में लिखकर पहले तो इंडिया बुक आफ रिकार्ड में अपना नाम दर्ज कराया, अब इस रिकार्ड को विश्व के सर्वश्रेष्ठ 100 रिकार्डों में भी शामिल कर लिया गया है। मीनू के इस करिश्माई प्रदर्शन को देखते हुए यूनाइटेड किंगडम यूनिवर्सिटी लंदन ने उन्हें डाक्टरेट करने का आमंत्रण दिया है। यूनाइटेड किंगडम यूनिवर्सिटी लंदन ने सिर्फ 20 सर्वश्रेष्ठ रिकार्डधारियों को ही डाक्टरेट करने का आफर किया है। नेशनल रिकार्डधारी मीनू को ब्रेकिंग रिकार्ड के आधार पर आन लाइन थीसिस पूरी करने की छूट दी गई है। मीनू अपनी थीसिस मिरर राइटिंग में पूरी करेंगी। मीनू को इस शानदार उपलब्धि के लिए सितम्बर 2017 में दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येन्द्र जैन ने भी सम्मानित किया था।
गौरतलब है कि सैम्बो की राष्ट्रीय खिलाड़ी मीनू पूनिया अपने पति और प्रशिक्षक राजेश पूनिया के मार्गदर्शन तथा प्रोत्साहन से सिर्फ खेल ही नहीं मिरर राइटिंग में भी नित नई सफलताएं हासिल कर रही हैं। 30 अक्टूबर को बिहार के गया में आयोजित सीनियर नेशनल सैम्बो चैम्पियनशिप में मीनू ने राजस्थान का प्रतिनिधित्व करते हुए स्वर्ण पदक से अपना गला सजाया था। अपने लाजवाब प्रदर्शन से उत्साहित मीनू अब अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी भारत के भाल को ऊंचा करने का सपना देख रही हैं। मीनू पूनिया अब तक के अपने सफर से खुश हैं। मीनू का कहना है कि मैं आज जो भी हूं उसमें मेरे पति राजेश पूनिया का ही सबसे बड़ा योगदान है।     



नूतन ने पाई मुश्किलों पर फतह

पहले मां तो अब मिल रहा पति का भरपूर सहारा
कब इनायत होगी उत्तर प्रदेश सरकार की नजर
श्रीप्रकाश शुक्ला
भारत में बेटियों के लिए खेलना और खेल के क्षेत्र में करियर बनाना कभी आसान नहीं रहा। इसकी मुख्य वजह परिवार और समाज की दकियानूसी परम्पराएं तथा देश में खेल संस्कृति का अभाव माना जा सकता है। भारतीय बेटियां भी खेलना चाहती हैं। वह भी अंतरराष्ट्रीय फलक पर मादरेवतन का मान बढ़ाने का सपना देखती हैं लेकिन उनका सफर कभी आसान नहीं होता। खिलाड़ी बेटियों का सफर अगर बीच में ही थम जाए तो फिर वह सपनों में तब्दील हो जाता है। कानपुर की नूतन शुक्ला (अब दुबे) को ही देखें जिन्होंने अपने अधूरे सपनों को न केवल पंख दिये बल्कि अब उड़ान भी भर रही हैं। जिस उम्र में प्रायः एथलीट संन्यास ले लेते हैं उस उम्र में नूतन ने पारिवारिक जवाबदेही के बोझ की परवाह किए बिना उत्तर प्रदेश एथलेटिक्स मास्टर मीट में दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीतकर 21 से 25 फरवरी तक बेंगलूर में होने वाली नेशनल मास्टर एथलेटिक्स मीट के लिए क्वालीफाई किया है।
यह कहानी है एक संघर्ष की, एक जिद की जिसने अपनी अधूरी ताबीर को पूरा करने के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया। कहने को नूतन दुबे संगीत गायन में प्रभाकर हैं लेकिन उनके मन में दिन के हर पहर सिर्फ और सिर्फ खेलों के समुन्नत विकास की ही धुन सवार रहती है। 28 जुलाई, 1979 को वीरेन्द्र नाथ-शशिकला के घर जन्मी नूतन के मन में खेलों की ललक थी तो उनका तन भी एक नजर में ही उनके नायाब खिलाड़ी बनने का संकेत देता है। हर लड़की की तरह नूतन के लिए भी खेलों का हम-सफर बनना आसान नहीं था। जब नूतन 14 साल की थीं तब विद्यालय की एक शिक्षिका ने उनकी कद-काठी को देखते हुए खेलों में हाथ आजमाने को प्रोत्साहित किया। यहां तक कि नूतन के माता-पिता से भी बेटी को खिलाड़ी बनाने की मोहलत मांगी लेकिन वीरेन्द्र नाथ शुक्ला को यह बात जरा भी नहीं जंची, उन्होंने तपाक से बेटी के नहीं खेलने का फैसला सुना दिया। नूतन खेलना चाहती है, इस बात को मां शशिकला ने न केवल पढ़ा बल्कि बेटी की पीठ ठोकते हुए कहा कि तू जरूर खेलेगी। मैं तेरा साया बनकर साथ दूंगी। मां शशिकला ने जो कहा सो किया भी। मां के प्रोत्साहन से नूतन ने न केवल घर से मैदानों की तरफ रुख किया बल्कि देखते ही देखते सबकी आंखों का नूर बन गईं। फिर क्या पिता वीरेन्द्र नाथ शुक्ला भी बेटी की बेशुमार सफलताओं से उसकी बलैयां लेने लगे और हर किसी से बस एक ही बात कहते कि मेरी बेटी नहीं ये तो मेरा बेटा है। ज्ञातव्य है कि नूतन के एक बड़े भाई भी हैं जोकि खेल की बजाय बतौर शिक्षक संगीत शिक्षा में बच्चों को पारंगत करते हैं।
मां से बढ़कर कभी कोई नहीं हो सकता। मां के प्रोत्साहन और सहयोग का ही कमाल था कि एथलेटिक्स में स्कूल से विश्वविद्यालय स्तर तक नूतन ने अपनी सफलता की शानदार गाथा लिखी। नूतन जिस भी प्रतियोगिता में उतरीं, उसमें मैडल जरूर जीते। नूतन विश्वविद्यालय स्तर पर चैम्पियन आफ द चैम्पियन एथलीट रहीं तो अन्य प्रतियोगिताओं में भी इनके दमखम की तूती बोली। नूतन की पसंदीदा प्रतिस्पर्धाएं तो 400 मीटर दौड़ और 400 मीटर बाधा दौड़ थीं लेकिन इस खिलाड़ी बेटी ने 200 और 800 मीटर दौड़ में भी अनगिनत सफलताएं अर्जित कीं। आल इंडिया यूनिवर्सिटी की बात हो या फिर अन्य राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं- नूतन ने सफलता की नई इबारत लिखी। अफसोस राष्ट्रीय स्तर पर दमदार प्रदर्शन करने वाली नूतन का अंतरराष्ट्रीय खेल मंचों में देश के लिए खेलना सपना ही रह गया। नूतन देश के लिए तो नहीं खेल सकीं लेकिन उन्होंने मिलिट्री साइंस से मास्टर डिग्री हासिल करने के साथ-साथ संगीत गायन में प्रभाकर की उपाधि हासिल की। अपनी मां और अपने अधूरे ख्वाबों को अंजाम तक पहुंचाने की खातिर नूतन ने भोपाल के बरकत उल्ला विश्वविद्यालय से बीपीएड की डिग्री हासिल करने के बाद खिलाड़ी प्रतिभाओं को निखारने का संकल्प लिया।
सच कहें तो खेलों में नूतन का अगर कोई गाड-फादर होता तो वह आज शासकीय सेवा में होतीं। खैर, नूतन अपने साथ हुई नाइंसाफी को किस्मत का खेल मानते हुए एक नामचीन निजी विद्यालय हुददर्द हाईस्कूल कानपुर में बतौर स्पोर्ट्स टीचर सेवाएं दे रही हैं। नूतन कहती हैं कि अंतरराष्ट्रीय एथलीट न बन पाने का मुझे मलाल तो है लेकिन अब मैं अपना यह ख्वाब बेटियों के जरिए पूरा करना चाहती हूं। मैं चाहती हूं कि मुझसे प्रशिक्षण हासिल करने वाली कोई कानपुर की बेटी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एथलेटिक्स में देश का नाम रोशन करे। जीवन में आए उतार-चढ़ावों से नूतन दुबे जरा भी विचलित नहीं हैं। वह इसे समय का फेर मानते हुए कहती हैं कि मुझमें अभी भी खेलने का जुनून है। नूतन के जुनून का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि हाल ही उन्होंने उत्तर प्रदेश एथलेटिक्स मास्टर मीट में दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीतकर कानपुर सम्भाग को चैम्पियन बनाया है। 38 साल की नूतन दुबे ने शाटपुट और हैमर थ्रो में स्वर्ण तो डिस्कस थ्रो में चांदी का पदक जीता है। नूतन कहती हैं कि शादी से पहले यदि मां ने मेरा हर मुमकिन सहयोग किया तो आज मेरे पति (सुनील दुबे) मेरा हमसाया बनकर हौसला बढ़ा रहे हैं। मैं 21 से 25 फरवरी तक बेंगलूर में होने वाली नेशनल मास्टर एथलेटिक्स मीट में अपने अधूरे सपनों को पूरा करना चाहती हूं। इसे खेलों की विडम्बना ही कहेंगे कि शासकीय सेवा में कार्यरत कर्मचारियों को जहां अच्छे प्रदर्शन पर पैसा, शोहरत और शाबासी मिलती है वहीं अशासकीय सेवकों को पैसा तो पैसा सवैतनिक छुट्टी मिलने में भी तरह-तरह की परेशानियां उठानी पड़ती हैं। काश नूतन बेंगलूर में नया अध्याय लिखें ताकि हमारी हुकूमतों की नजर उन पर पड़े।



Friday 15 December 2017

नादिया एक्सप्रेस झूलन का कमाल

महिला क्रिकेट की कपिल देव
भारत में क्रिकेट को धर्म और क्रिकेटर को भगवान का दर्जा प्राप्त है लेकिन सिक्के के दूसरे पहलू यानि महिला क्रिकेट की बात करें तो वह अभी भी संघर्ष कर रही है। ऐसा भी नहीं कि भारतीय क्रिकेटर बेटियां किसी से कम हैं। शांता रंगास्वामी, डायना एडुलजी, संध्या अग्रवाल आदि ने विश्व क्रिकेट में अपने सदाबहार खेल से देश का नाम रोशन किया लेकिन इन्हें बहुत ही कम लोग जानते हैं। आज मिताली राज और झूलन गोस्वामी विश्व क्रिकेट में भारत की पहचान हैं। तेज गेंदबाज झूलन गोस्वामी को यदि हम महिला क्रिकेट का कपिल देव कहें तो अतिश्योक्ति न होगी। झूलन ने 15 साल की उम्र से क्रिकेट खेलना शुरू किया। झूलन गोस्वामी को नादिया एक्सप्रेस के नाम से भी जाना जाता है, उन्हें प्यार से लोग कोजी भी कहते हैं। झूलन के माता-पिता तो चाहते थे कि उनकी बेटी पढ़ाई में दिलचस्पी ले लेकिन झूलन में क्रिकेटर बनने का ही जुनून सवार था। झूलन गोस्वामी शानदार हरफनमौला खिलाड़ी ही नहीं एक नेकदिल इंसान भी हैं। झूलन को चाइनीज फूड, फिल्मों में थ्री इडियट्स, अभिनेताओं में आमिर खान तो खिलाड़ियों में फुटबॉलर डिएगो माराडोना बेहद पसंद हैं। तेज गेंदबाज के तौर पर झूलन आज महिला क्रिकेट में इतना बड़ा नाम बन चुकी हैं कि पाकिस्‍तान की कायनात इम्तियाज ने उन्‍हें अपना आदर्श मानते हुए क्रिकेट को अपना करियर बनाया है।
झूलन गोस्वामी 25 नवम्बर, 1982 को पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के एक छोटे से गांव में पैदा हुईं। वह एक फुटबॉल प्रशंसक के रूप में बड़ी हो रही थीं कि संयोग से 1997 का महिला विश्व कप फाइनल झूलन के होम ग्राउंड ईडन गार्डन कोलकाता में खेला गया। यह मुकाबला ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच था। यहां झूलन ने बॉल-पिकर के रूप में काम किया। इस मैच में बेलिंडा क्लार्क, डेबी हॉकी और कैथरीन फिट्जपैट्रिक जैसी बड़ी खिलाड़ियों को देखकर उन्होंने तय किया कि वह भी क्रिकेट को ही अपना करियर बनाएंगी। पांच फुट 11 इंच लम्बी झूलन की मां का नाम झरना तथा पिता का नाम निशित गोस्वामी है। झूलन के तेज गेंदबाजी शुरू करने की कहानी कम दिलचस्‍प नहीं है। बचपन में वे पड़ोस के लड़कों के साथ क्रिकेट खेला करती थीं। उस समय बेहद धीमी गेंदबाजी करने के कारण झूलन का मजाक उड़ाया जाता था। इससे उन्हें तेज गेंदबाज बनने की प्रेरणा मिली। उन्‍होंने तेज गेंदबाजी में हाथ आजमाया और जल्‍द ही अपनी गेंदों की गति से लड़कों को भी चौंकने पर मजबूर करने लगीं। युवा झूलन ने हर मुश्किल का सामना करते हुए क्रिकेट को चुना। वह ऐसे परिवार से आईं जहां यह मान्यता थी कि क्रिकेट लड़कियों के लिए एक अच्छा प्रोफेशन नहीं है। झूलन ने अपने जुनून और शानदार परफॉरमेंस इस बात को मिथ्या साबित कर दिखाया। झूलन सही मायने में युवा खिलाड़ियों की प्रेरणा हैं।
झूलन की कद-काठी तेज गेंदबाजी के लिहाज से आदर्श है। वनडे में सबसे अधिक विकेट (196) लेने वाली गेंदबाज झूलन गति के बावजूद गेंदों की लाइन-लेंथ पर नियंत्रण रखती हैं। उनकी छवि बेहद सटीक तेज गेंदबाज की है। क्रिकेट के लिए झूलन गोस्वामी सुबह 4.30 बजे उठकर नादिया से दक्षिण कोलकाता के विवेकानंद पार्क तक लोकल ट्रेन से जाया करती थीं। जहां कोच उन्हें क्रिकेट की ट्रेनिंग दिया करते थे। एक दिन क्रिकेट खेलकर रात को देर से घर पहुंचने पर उनकी मां ने उन्हें कई घंटे घर के बाहर खड़े रखा। अपनी शानदार गेंदबाजी से वह कई बार भारत को अप्रत्याशित जीत दिला चुकी हैं। झूलन के खेल की जहां तक बात है 2006 में इंग्लैंड दौरे पर महिला टीम को पहली जीत दिलाने में झूलन का अहम योगदान रहा। इंग्लैंड में महिला टीम पहली बार टेस्ट मैच जीती थी। उस टेस्ट में झूलन ने दोनों पारियों में पांच-पांच विकेट लेकर एक अप्रत्याशित जीत भारत की झोली में डाली थी। कैथरीन फिट्जपैट्रिक के बाद झूलन दुनिया की सबसे तेज गेंदबाज बनीं। 5 फीट 11 इंच की झूलन लगातार 120 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से गेंदें फेंकने की कूबत रखती हैं।
झूलन ने जितने भी विकेट लिए हैं उनमें सबसे ज्यादा विकेट इंग्लैंड के खिलाफ हैं। इंग्लैंड के खिलाफ खेले 44 एकदिवसीय मैचों में झूलन ने 63 विकेट लिए हैं। इंग्लैंड के खिलाफ ही 16 रन पर 5 विकेट उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। सटीक गेंदबाजी के साथ-साथ झूलन एक बेहतरीन फील्डर भी हैं। वह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 72 कैच ले चुकी हैं। तेज गेंदबाज झूलन गोस्‍वामी को इस बात का अफसोस है कि भारतीय महिला क्रिकेट टीम विश्व कप के फाइनल में पहुंचने के बावजूद खिताब नहीं जीत सकी। झूलन कहती हैं कि जब तक हमारी टीम कोई बड़ी प्रतियोगिता नहीं जीत लेती तब तक उन्हें इंग्लैण्ड से फाइनल में मिली नौ रन की हार परेशान करती रहेगी। झूलन का ध्‍यान अब महिला टी-20 वर्ल्‍डकप में टीम और अपने अच्‍छे प्रदर्शन पर टिका हुआ है।
झूलन ने क्रिकेटप्रेमियों से अनुरोध किया कि क्रिकेट के खेल को महिला और पुरुष के टैग में नहीं बांधा जाए और जो भी अच्छा प्रदर्शन करे, उसकी सराहना की जाए। पुराने दिनों को याद करते हुए झूलन ने बताया कि शुरुआत में लोग उन जैसी महिला क्रिकेटरों से कहते थे क्‍यों खेल में समय बर्बाद करती हो। झूलन कहती हैं कि मैं शुक्रगुजार हूं भारतीय पुरुष क्रिकेटरों की जिन्होंने मुझ महिला क्रिकेटरों को प्रोत्साहित किया। झूलन कहती हैं कि राहुल द्रविड़, जहीर खान, इरफान पठान और मोहम्मद शमी जैसे क्रिकेटरों ने हमारे प्रदर्शन की जमकर सराहना की और हमेशा हमारा हौसला बढ़ाया। भारतीय तेज गेंदबाज झूलन गोस्वामी एकदिवसीय महिला क्रिकेट में सबसे ज्यादा विकेट लेने वाली गेंदबाज हैं। नादिया एक्सप्रेस ने कैथरीन फिट्जपैट्रिक के 180 विकेटों के आंकड़े को पार कर यह कीर्तिमान अपने नाम किया है। झूलन गोस्वामी को 2007 में आईसीसी क्रिकेटर ऑफ द ईयर चुना गया, इसके बाद उन्हें भारतीय टीम की कप्तानी भी सौंपी गई। भारत सरकार द्वारा झूलन को 2010 में अर्जुन पुरस्कार तो 2012 में पद्मश्री अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है।
भारत और पाकिस्‍तान के बीच खेल सम्बन्धों की बात आती है तो आमतौर पर पुरुष क्रिकेटर ही इसमें बाजी मारते नजर आते हैं। दोनों देशों की टीमों के बीच मैदान के बाहर का दोस्‍ताना व्‍यवहार मीडिया की सुर्खियां बनता रहा है। महिला वर्ल्‍डकप क्रिकेट 2017 में पाकिस्‍तान की भारतीय टीम के हाथों करारी हार के बाद पड़ोसी देश की तेज गेंदबाज कायनात इम्तियाज ने एक दिल को छूने वाला पोस्‍ट किया था। कायनात ने भारत की महिला तेज गेंदबाज झूलन गोस्‍वामी के साथ अपना फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए बताया कि झूलन की गेंदबाजी ने किस तरह उन्‍हें तेज गेंदबाजी में हाथ आजमाने के लिए प्रेरित किया। कायनात कहती हैं कि वर्ष 2005 में पाकिस्‍तान में आयोजित हुए एशिया कप के दौरान मैंने पहली बार भारतीय महिला टीम को देखा था। टूर्नामेंट के दौरान मैं बाल-पिकर थी। इसी दौरान मैंने झूलन गोस्‍वामी को देखा। वह उस समय सबसे तेज गेंदबाजी करने वाली महिला खिलाड़ी थीं। झूलन से प्रेरित होकर ही मैंने करियर के लिहाज से क्रिकेट खासकर तेज गेंदबाजी को चुना। मेरे लिए यह गौरव का विषय है कि 12 साल बाद मैं 2017 में महिला वर्ल्‍डकप में खेली जहां मेरी आदर्श झूलन गोस्वामी भी खेल रही थीं।