Sunday 28 October 2012

पंच प्यारे हुए नकारे


वर्षों से रूठे हैं सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग, गौतम गम्भीर, सुरेश रैना व  महेंद्र सिंह धोनी के बल्ले

भारतीय पंच प्यारे सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग, गौतम गम्भीर, सुरेश रैना व  महेंद्र सिंह धोनी लम्बे समय से नकारा साबित हो रहे हैं। इनके बल्ले इनसे इस कदर रूठे हैं कि गौतम गंभीर पिछले 34 महीने से, सुरेश रैना 28 महीने से, वीरेंद्र सहवाग दो साल से, सचिन तेंदुलकर 22 महीने से और कप्तान महेंद्र सिंह धोनी एक साल से टेस्ट क्रिकेट में शतक नहीं लगा पाये हैं। यह आंकडेÞ इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इंग्लैण्ड के खिलाफ 15 नवम्बर से शुरू होने वाली चार टेस्ट मैचों की शृंखला में इन बल्लबाजों पर भारतीय टीम का बड़ा दारोमदार रहेगा। 

पिछले साल इंग्लैण्ड दौरे में 4-0 की करारी हार का बदला लेने के लिये उत्सुक भारत के लिये इस महत्वपूर्ण शृंखला से पहले इस तरह के खराब आंकडेÞ हमारे बांकुरों के लिए सचमुच में चिन्ता का विषय हो सकते हैं। भारत के पास पिछले सात साल से गंभीर और सहवाग के रूप में एक अदद सलामी जोड़ी है और मुख्य समस्या यही है कि टीम के पास इनका कोई विकल्प भी नहीं है। गंभीर इस बात को समझते हैं। उन्होंने कहा कि अब भी सलामी जोड़ी के रूप में हमारा औसत 53 है और मुझे लगता है कि जब विश्व क्रिकेट में ओपनिंग की बात आती है तो मैं समझता हूं कि यह सर्वश्रेष्ठ में एक है। यदि 53 का औसत अच्छा नहीं है तो मैं नहीं जानता कि क्या अच्छा है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि गंभीर पिछले 22 मैच की 40 पारियों में शतक नहीं लगा पाये हैं जबकि सहवाग बिना शतक के 16 टेस्ट और 29 पारियां खेल चुके हैं। गंभीर ने अपना आखिरी शतक जनवरी, 2010 में बांग्लादेश के खिलाफ चटगांव में और सहवाग ने नवम्बर 2010 में न्यूजीलैंड के खिलाफ अहमदाबाद में लगाया था। गंभीर ने आखिरी शतक जड़ने के बाद जो 40 पारियां खेली हैं उनमें उन्होंने 28.36 की औसत से 1078 रन बनाये हैं। सहवाग का अहमदाबाद टेस्ट मैच के बाद 29 पारियों में औसत 35 रन प्रति पारी है। उन्होंने इन मैचों में केवल 980 रन बनाये हैं। इन दोनों ने इस बीच नौ-नौ पचासे जरूर जमाये। गंभीर औसत की बात करते हैं लेकिन किसी भी टीम के लिये 28 या 35 के औसत से रन बनाने वाले बल्लेबाजों को सलामी जोड़ी के रूप में उतारना आसान नहीं होगा। यह सभी जानते हैं कि तेंदुलकर को अपने सौवें शतक के लिये लम्बा इंतजार करना पड़ा था।
आखिर में उन्होंने इस साल 16 मार्च को बांग्लादेश के खिलाफ एकदिवसीय मैच में शतक लगाकर महाशतक पूरा किया था लेकिन यह स्टार बल्लेबाज भी पिछली 24 पारियों से टेस्ट मैचों में शतक नहीं लगा पाया है। तेंदुलकर ने आखिरी शतक दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ जनवरी 2011 में केपटाउन में जमाया था। इसके बाद अगले 13 टेस्ट मैच में वह तिहरे अंक में भी नहीं पहुंचे। तेंदुलकर ने इन मैचों में 35.04 की औसत से 841 रन बनाये हैं। वह दो अवसरों पर नर्वस नाइंटीज का शिकार बने। इस बीच वेस्टइंडीज के खिलाफ मुंबई में खेली गयी 94 रन की पारी उनका सर्वाेच्च स्कोर है। कप्तान धोनी के लिये भी लम्बी अवधि के मैचों में शतक जमाना आसान नहीं रहा है। उन्होंने पिछले साल वेस्टइंडीज के खिलाफ कोलकाता में 144 रन की पारी खेली थी लेकिन इसके बाद अगली 11 टेस्ट पारियों में उनका उच्चतम स्कोर 73 रन रहा। धोनी ने इस बीच 34 रन प्रति पारी की दर से 306 रन बनाये। राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण के संन्यास लेने के बाद धोनी ने मध्यक्रम में रैना पर विश्वास जताया पर बायें हाथ के इस बल्लेबाज ने टेस्ट क्रिकेट में अपना एकमात्र शतक अपने पहले टेस्ट मैच (जुलाई 2010) में बनाया था। इसके बाद 16 टेस्ट मैच की 28 पारियों में उन्होंने 24.92 के औसत से 648 रन बनाये हैं। उनके नाम पर इस बीच सात पचासे जरूर दर्ज हैं। रैना का स्थान हालांकि युवराज सिंह को मिल सकता है। इन दोनों को भारत ए की तरफ से इंग्लैंड के खिलाफ अभ्यास मैच में अच्छा प्रदर्शन करना होगा। वैसे मध्यक्रम में भारत का भरोसा दो युवा बल्लेबाजों पर रहेगा जो अच्छी फार्म में चल रहे हैं। चेतेश्वर पुजारा और विराट कोहली दोनों ने ही न्यूजीलैंड के खिलाफ अगस्त में हुई टेस्ट शृंखला में शतक जमाये थे। इसके बाद भी इन दोनों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। पुजारा नम्बर तीन पर बल्लेबाजी के लिये आ सकते हैं जबकि कोहली को पांचवें नम्बर की जिम्मेदारी सम्हालनी पड़ेगी लेकिन छठे नम्बर के लिये युवराज और रैना में किसी एक को ही चुना जा सकता है।

अजय माकन क्यों बने बलि का बकरा?

लम्बे समय से प्रतीक्षित केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में आज बदलाव की जो बयार बही उसमें राहुल गांधी की मंशा का विशेष ख्याल रखा गया। अब देश के खेल परिदृश्य को बदलने की जवाबदेही निशानेबाज जीतेन्द्र सिंह को सौंपी गई है। जो भी हो युवाओं को तरजीह देने के नाम पर अजय माकन को इसलिए बदला गया ताकि दागी खेलनहार पुन: खेलों की गंगोत्री में डुबकी लगा सकें। 
देखा जाए तो खेल के क्षेत्र में अजय माकन का कार्यकाल न केवल पारदर्शी रहा बल्कि उन्होंने खिलाड़ियों के मर्म को करीब से देखा और उनकी परेशानी दूर करने के समुचित प्रयास भी किये। माकन ने कई खिलाड़ी हितैषी योजनाओं को मूर्तरूप देते हुए उन खेलनहारों को सबक सिखाया जिनके चलते खेलों की गंगोत्री पूरी तरह से मैली हो चुकी थी। अजय माकन ने पंचायत युवा क्रीड़ा और खेल अभियान (पायका) के जरिये गांव-गांव में खेल मैदान की जहां मजबूत नींव रखी वहीं उन्होंने खेल संघों की पारदर्शिता और जवाबदेही सम्बन्धी विधेयक के जरिये लम्बे समय से खेल संघों में बिराजे खेलनहारों को कुर्सी छोड़ने को भी मजबूर किया।
श्री माकन ने खेल संघ पदाधिकारियों पर नकेल कसने के साथ ही भारतीय क्रिकेट कण्ट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) को सूचना के अधिकार के दायरे में लाने की पुरजोर कोशिश भी की। माकन के इस प्रयास की देश भर में सराहना भी हुई। यही सराहना व अजय माकन का खेल एवं युवा कल्याण विभाग की सूरत बदलना उनकी पार्टी के लोगों को नागवार गुजरा। दरअसल अजय माकन के नेक प्रयासों के चलते ही सुरेश कलमाड़ी जैसे खेल सत्यानाशी जेल सींखचों तक पहुंचे तो कांग्रेस के कई अन्य दिग्गजों पर भी गाज गिरती दिखी। दरअसल केन्द्र ने श्री माकन को इस फेरबदल के तहत प्रोन्नत कर बेशक आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्री के रूप में कैबिनेट का झुनझुना थमाया हो पर खेल की दुनिया में तो इस बात के संकेत जा रहे हैं कि भारतीय खेल महासंघ के चुनाव से पहले माकन का बदला जाना कांग्रेस की नाक का सवाल था। यदि माकन नहीं बदले जाते तो कई कांग्रेसी खेलनहार हमेशा हमेशा के लिए खेल संघों में खेलने से वंचित रह जाते तो कई लोगों की शेष जिन्दगी जेल में गुजरती।
निशानेबाज जितेन्द्र सिंह बने नये खेल मंत्री
राजस्थान के अलवर से सांसद जितेन्द्र सिंह को केन्द्र सरकार में आज हुए फेरबदल के तहत खेल एवं युवा कल्याण मामलों के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में नियुक्त किया गया है। अब तक केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री के रूप में काम कर रहे श्री सिंह खेल एवं युवा कल्याण मामलों के मंत्रालय में अजय माकन का स्थान लेंगे। अलवर राजघराने से ताल्लुक रखने वाले 41 वर्षीय जीतेन्द्र सिंह खुद एक निशानेबाज रहे हैं और राष्ट्रीय स्तर की कई प्रतियोगिताओं में उन्होंने पदक भी जीते हैं। दो बार राजस्थान विधानसभा में विधायक रहने के बाद वह 2009 में पहली बार सांसद बने।