Friday 26 July 2019

सफलता के सातवें आसमान पर चंद्राणी


सबसे कम उम्र की सांसद
क्षेत्र कोई भी हो सफलता उसे ही मिलती है जिसमें कुछ करने का जुनून हो। राजनीति की पथरीली राह बहुत कठिन होती है। लोग जीवन भर मशक्कत करने के बाद भी संसद की चौखट पर कदम नहीं रख पाते लेकिन इसके विपरीत चंद्राणी मुर्मू ने पहली बार में ही संसद की देहरी पर कदम रख सबको चौंका दिया। चंद्राणी मुर्मू सबसे कम उम्र में संसद तक पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला हैं।
किस्मत कैसे करवट लेती है, इसकी जीवंत मिसाल हैं ओड़िशा की चंद्राणी मुर्मू। मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बी.टेक. की पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद नौकरी के लिये तैयारी कर रही चंद्राणी के लिये अब नौकरी तलाशने की कोई जरूरत नहीं रह गई है। वह अब नौकरी बांटने वाली व्यवस्था का हिस्सा बन चुकी हैं। चंद्राणी मुर्मू सत्रहवीं लोकसभा के लिये ओड़िशा के केन्झार से सांसद बनी हैं। खास बात यह है कि वह सत्रहवीं लोकसभा में देश की सबसे कम उम्र की सांसद चुनी गई हैं। चंद्राणी पच्चीस साल ग्यारह महीने महीने में सांसद बनी हैं। पिछली लोकसभा में सबसे कम उम्र के सांसद हरियाणा के दुष्यंत चौटाला थे, जिनकी उम्र चुनाव के वक्त छब्बीस साल थी। यह बात अलग है कि उन्हें राजनीति विरासत में मिली है, वहीं चंद्राणी के पिता के परिवार में सक्रिय राजनीति में हाल-फिलहाल कोई नहीं है। हां, कभी नाना जरूर सक्रिय राजनीति में रहे। आदिवासी समाज में उनका नाम सम्मान से लिया जाता रहा है।
ओड़िशा ने देश को कई तरह के संदेश चुपचाप बिना किसी शोर-शराबे के दिये हैं। चक्रवाती तूफान को चकमा देने वाले ओड़िशा ने नवीन पटनायक को जहां लगातार पांचवीं बार राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया वहीं पहली बार राज्य ने 33 फीसदी महिलाओं को संसद में भेजने में सफलता हासिल की है। देखा जाए तो महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का अधिकार देने वाला बिल राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में संसद में दशकों से लटका हुआ है। तीसरा यह कि राज्य ने सबसे कम उम्र की एक आदिवासी लड़की को संसद में भेजा है। हम कह सकते हैं कि बड़े बदलाव बिना शोरगुल के भी होते हैं, ओड़िशा इसका साक्षी बना है।
नि:संदेह भुवनेश्वर से दिल्ली के रायसीना हिल्स तक पहुंचने का चंद्राणी का सफर एक परीकथा जैसा है। भुवनेश्वर से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करके नौकरी तलाश रही चंद्राणी की किस्मत अचानक ही बदल गई। उसके मामा ने पूछा कि क्या राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाना चाहती हो।उसने तुरंत हामी भर दी। दरअसल, पार्टी किसी पढ़ी-लिखी प्रत्याशी की तलाश में थी। बीजू जनता दल के मुखिया नवीन पटनायक ने उसे टिकट दिया और वह जीत भी गई। चंद्राणी के पिता सरकारी नौकरी करते हैं। सामान्य परिवार की चंद्राणी के पास न घर है, न गाड़ी और कोई बैंक बैलेंस भी नहीं, कुल रकम बीस हजार के आसपास। चंद्राणी का किसी भी कम्पनी में कोई शेयर और बीमा पॉलिसी भी नहीं है। हां, माता-पिता द्वारा दिये गये सौ ग्राम के सोने के जेवर जरूर हैं। इसके बावजूद लोगों का इतना प्यार मिला कि सांसद बन गईं। हां, उसके नाना हरिहर सोरेन सांसद रह चुके हैं। राजनीति में जो थोड़ी-बहुत दिलचस्पी रही, वह नाना के घर के राजनीतिक माहौल के चलते ही रही। आज भी लोग ओड़िशा में कहते सुने जाते हैं कि अरे ये हरिहर सोरेन की नातिन है। चंद्राणी अपनी सफलता का सारा श्रेय नवीन पटनायक को देती हैं, जिनके प्रयासों से उसे सांसद बनने का मौका मिला।
ओड़िशा की केन्झार सीट से जीती चंद्राणी ने इस चुनाव में राजनीति के अनुभवी भाजपा नेता व दो बार सांसद रह चुके अनंत नायक को हराया। आदिवासी बहुल इलाके में उनकी जीत का अंतर 66200 वोट का है। अब चंद्राणी मुर्मू अपने इलाके में शिक्षा को प्राथमिकता देना चाहती हैं। चंद्राणी मुर्मू का मानना है कि इस आदिवासी इलाके में सरकार की तमाम योजनाएं हैं, मगर शिक्षा के अभाव में लोग इन योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते। उन्हें अधिकारों व सुविधाओं के प्रति जागरूक बनाने की जरूरत है। कुल 21 सांसदों वाले राज्य में सात महिलाओं का चुना जाना नारी सशक्तीकरण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। एक को छोड़कर शेष छह महिला सांसद ठीक-ठाक पढ़ी-लिखी भी हैं। इनमें पांच महिला सांसद बीजू जनता दल से तो दो भारतीय जनता पार्टी से हैं। बीजू जनता दल की सांसदों में प्रमिला बिसोयी, मंजूलता मंडल, राजश्री मलिक, शर्मिष्ठा सेठी शामिल हैं वहीं भारतीय जनता पार्टी से चुनी गई सांसदों में भुवनेश्वर से जीती अपराजिता सडांगी तथा बलंगिरी से जीती संगीता कुमारी सिंहदेव शामिल हैं।
चंद्राणी अपने शैक्षिक अनुभवों से क्षेत्र के विकास को नई दिशा देना चाहती हैं। इनका कहना है कि मैं बड़ी-बड़ी घोषणाएं करने के बजाय जमीनी स्तर पर योजनाओं के क्रियान्वयन को प्राथमिकता दूंगी। चंद्राणी मुर्मू का लक्ष्य है कि क्षेत्र में युवाओं के रोजगार तथा महिलाओं और आदिवासियों की प्राथमिकताओं परध्यान केंद्रित किया जाये। चंद्राणी कहती हैं कि उनका क्षेत्र खनिज सम्पदा से भरपूर है, मगर इसके बावजूद बेरोजगारी नीतियों की विफलता को दर्शाती है।
बहरहाल, चंद्राणी अपनी नई पारी को लेकर खासी उत्साहित हैं। वह कहती हैं कि मैंने पढ़ाई के दौरान कभी नहीं सोचा था कि राजनीति में भविष्य तलाशूंगी। अब मौका मिला है तो कुछ नया करने का प्रयास रहेगा। संयुक्त परिवार में रहने वाली चंद्राणी के माता-पिता और दो बहनें उसकी सफलता से खासी प्रफुल्लित हैं। प्रफुल्लित होना भी चाहिए आखिर चंद्राणी ने सातवें आसमान पर कदम जो रखा है।

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