Tuesday, 14 November 2017

रिंग की महारानी मैरीकॉम

सुपरमॉम मैरीकॉम ने मुक्केबाजी की दुनिया में बढ़ाया भारत का मान
श्रीप्रकाश शुक्ला
मैरीकॉम एक ऐसी भारतीय महिला, जो आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है। मैरीकॉम ने अपनी अदम्य इच्छाशक्ति से समाज में जो प्रतिमान स्थापित किए हैं, वह हर भारतीय के लिए गर्व और गौरव का सूचक हैं। जब-जब मैरीकॉम की महानता पर उंगली उठी उन्होंने अपने करिश्माई प्रदर्शन से उसे मिथ्या साबित कर दिखाया। पूर्वोत्तर भारत के एक पिछड़े जिले से आई मैरीकॉम ने जब पुरुषों के खेल बॉक्सिंग को चुना तो लोगों ने उनका मजाक उड़ाया, शादी हुई तो लोगों ने कहा अब हो चुकी बॉक्सिंग, मां बनीं तो ऐसी ही बातें कही गईं लेकिन मैरीकॉम ने पांच-पांच बार विश्व और एशिया चैम्पियन बनकर यह साबित किया कि वह मोम की नहीं बल्कि फौलाद की बनी हैं। बच्चों की परवरिश, अपने राज्य की ज्वलंत समस्याओं पर उनकी संजीदगी के साथ ही उनका काबिलेगौर तमाशाई प्रदर्शन हर किसी को अपना मुरीद बना लेता है।
सुपर बॉक्सर मैरीकॉम जो ठान लेती हैं, उसे हासिल करना उनकी जिद सी बन जाती है। एशियाई मुक्केबाजी चैम्पियनशिप से पूर्व किसी को उम्मीद नहीं थी कि लौह मैरीकॉम मादरेवतन को स्वर्णिम सफलता दिलाएंगी लेकिन तीन बच्चों की मां ने दिखा दिया कि मन में अगर सही लगन हो तो कुछ भी हासिल करना मुश्किल नहीं होता। एक समय था जब राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय खिलाड़ी बेटियां गिनी-चुनी ही थीं। सबसे पहली भारतीय महिला जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय खेल मंच पर भारत का नाम रोशन किया वह थीं उड़नपरी पीटी ऊषा। हमारे पुरुष प्रधान देश में आज दर्जनों खिलाड़ी बेटियां ऐसी हैं, जिन पर हम जीत का दांव लगा सकते हैं। पीटी ऊषा से सानिया मिर्जा तक, कर्णम मल्लेश्वरी से मैरीकॉम तक भारत ने खेल की दुनिया में एक लम्बा सफर तय किया है। भारतीय महिलाएं मुक्केबाजी, कुश्ती, क्रिकेट, हाकी आदि खेलों में आजकल सुर्खियां बटोर रही हैं। पी.टी. ऊषा जहां खेल के क्षेत्र में भारतीय महिलाओं का प्रेरणास्रोत हैं वहीं मैरी कॉम रिंग की महारानी।
मैंगते चंग्नेइजैंग मैरीकॉम का नाम सुनकर सबसे पहले दिल और दिमाग में एक निर्भीक और साहसी महिला की तस्वीर उभर आती है। मैरीकॉम का जन्म पूर्वोत्तर भारत के मणिपुर के चुराचांदपुर जिले के काड़थेइ गांव में हुआ। बचपन से ही मैरीकॉम को एथलेटिक्स में दिलचस्पी थी लेकिन सन् 2000 में डिंको सिंह ने उन्हें बॉक्सर बनने के लिए प्रेरित किया। एक किसान की बेटी के लिए बॉक्सिंग रिंग में अपना करियर बनाना कोई आसान काम नहीं था। मैरीकॉम ने जब बॉक्सिंग शुरू की थी तो उन्हें अपने घर से कोई समर्थन नहीं मिला। घर वाले नहीं चाहते थे कि मैरीकॉम रिंग में उतरे। लेकिन मैरीकॉम की जिद और जुनून ने घर वालों को झुकने के लिए मजबूर कर दिया। मैरी के गांव में न ही प्रैक्टिस को जगह थी, न ही अन्य सुविधाएं। एक बॉक्सर को जो डाइट चाहिए वह भी मैरीकॉम को बमुश्किल ही मिल पाती थी। लाख बाधाओं के बाद भी मैरीकॉम ने 2000 में अपना बॉक्सिंग करियर शुरू किया तथा तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद खुद को न केवल स्थापित किया बल्कि अपने लाजवाब प्रदर्शन से दर्जनों बार मुल्क को गौरवान्वित किया है। 2008 में इस महिला मुक्केबाज को मैग्नीफिशेंट मैरीकॉम की उपाधि मिली। बॉक्सिंग रिंग में भारत का नाम रोशन करने वाली मैरीकॉम की पूरी कहानी को फिल्मी परदे पर भी चित्रित किया गया और उस फिल्म में प्रियंका चोपड़ा ने उनकी भूमिका निभाई। 17 साल से रिंग में अपने मुक्कों का धमाल मचा रही मैरीकॉम ने 2014 एशियाई खेलों के बाद नवम्बर 2017 के पहले ही सप्ताह में एशियाई चैम्पियनशिप में स्वर्णिम सफलता हासिल कर इस बात के संकेत दिए कि उनमें अब भी काफी दम है। एशियाई चैम्पियनशिप का जहां तक सवाल है मैरीकॉम हर बार खिताबी दौर तक पहुंचीं और पांच बार सोने पर पंच लगाया। मैरी एक बार उपविजेता रहीं।  
एक गरीब किसान की बेटी मैरीकॉम ने महिला मुक्केबाजी की दुनिया में भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में धूम मचाई है। मैरीकॉम ने अपनी लगन और कठिन परिश्रम से यह साबित किया कि प्रतिभा का अमीरी और गरीबी से कोई सम्बन्ध नहीं होता। एक मार्च, 1983 को मणिपुर के चुराचांदपुर जिले में एक गरीब किसान के घर जन्मीं मैरीकॉम का जीवन काफी कष्टों भरा रहा। मैरीकॉम की प्रारम्भिक शिक्षा लोकटक क्रिश्चियन मॉडल स्कूल तथा सेंट जेवियर स्कूल में हुई। इसके बाद उन्होंने कक्षा 9 और 10 की पढ़ाई इम्फाल के आदिम जाति हाईस्कूल से पूरी की लेकिन वह मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पास नहीं कर सकीं। मैट्रिकुलेशन की परीक्षा में दोबारा बैठने का उनका विचार नहीं था। इसलिए उन्होंने स्कूल छोड़ दिया और आगे की पढ़ाई नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग इम्फाल से की। उन्होंने स्नातक चुराचांदपुर कॉलेज से किया। मैरीकॉम को बचपन से ही खेलकूद का शौक रहने के कारण उनमें बॉक्सिंग का आकर्षण 1999 में उस समय उत्पन्न हुआ जब उन्होंने खुमान लम्पक स्पो‌र्ट्स कॉम्प्लेक्स में कुछ लड़कियों को बॉक्सिंग रिंग में लड़कों के साथ बॉक्सिंग करते देखा। उनके लिए यह काफी स्तब्ध करने वाला था। उन्होंने ठाना कि जब ये लड़कियां बॉक्सिंग कर सकती हैं तो मैं क्यों नहीं। साथी मणिपुरी बॉक्सर डिंको सिंह की सफलता ने भी उन्हें बॉक्सिंग की ओर आकर्षित किया।
बॉक्सिंग रिंग में उतरने का फैसला करने के बाद मैरीकॉम ने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। भले ही एक महिला होने के नाते उनका सफर मुश्किल भरे दौर से गुजरा पर हौसला उनका काफी बुलंद था। एक बार जो ठान लिया उसे करके ही दिखाया है। मैरीकॉम अकेली ऐसी महिला मुक्केबाज हैं जिन्होंने अपनी सभी छह विश्व प्रतियोगिताओं में पदक जीते इसी तरह एशियन महिला मुक्केबाजी प्रतियोगिता में भी उन्होंने पांच स्वर्ण और एक रजत पदक जीता है। महिला विश्व वयस्क मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में भी उन्होंने पांच स्वर्ण और एक रजत पदक जीता है। बॉक्सिंग की ही तरह उन्हें ओनलर कॉम से शादी पर भी कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा। मैरीकॉम ने 2005 में एक सच्चे जीवनसाथी के रूप में के. ओनलर कॉम के जीवन में प्रवेश किया। मैरी कहती हैं कि ओनलर उनके गाइड, फ्रैंड और फिलॉसफर हैं। मैरी का परिवार शादी के बाद तब पूरा हुआ जब उनके प्यार के बीच उनके बच्चों ने जगह ली। खेल और बच्चों के बीच के अंतराल को समझते हुए मैरी कहती हैं कि मैं अपने तीन बच्चों रेचुंगवर, खापूनीवर और प्रिंस चुंगथानग्लेन कॉम के लिए मैडल जीतना चाहती थी क्योंकि मेरे खिलाड़ी होने की कीमत मेरे बच्चे चुकाते हैं। उन्हें छुटपन में ही अपना मां से लम्बे समय तक दूर रहना होता है। मैरीकॉम देश के लिए एक आदर्श महिला और रोल माडल हैं। सच कहें तो भारतीय महिलाओं को महिला बॉक्सिंग में एक आदर्श मिल चुकी है।
लड़कियां दिल खोलकर बाक्सिंग में आएं- मैरीकॉम
मैरीकॉम को हिन्दी फिल्मों के गीत सुनने और गाने का भी बड़ी शौक है। अपनी सफलता का श्रेय मैरी अपने पति को देती हैं। बकौल मैरी जब भी मैं टूर्नामेंट्स और कैम्प के लिए ट्रैवल करती हूं तब ओनलर के साथ न होने पर भी मेंटली सिक्योर फील करती हूं। मैं बहुत लकी हूं कि मुझे इतना सपोर्ट करने वाला पति मिला है। घर का तनाव मुझे उन्होंने कभी नहीं दिया। बच्चों को अकेले सम्हालते हैं और मुझे खेलने भेजते हैं। पिछले कुछ सालों से मैरीकॉम साल के तीन सौ दिन नेशनल कैम्प में बिताती हैं। अपने घर इम्फाल से हजारों किलोमीटर दूर जहां उनके बच्चे अपने पापा के साथ रहते हैं, ऐसे में ओनलर उन्हें हर रोज फोन पर बच्चों के बारे में बताते रहते हैं। मैरी कहती हैं कि कई बार मैं अपने बच्चों की छोटी-छोटी बातों और शरारतों को बहुत मिस करती हूं। आखिर उन्हें इस उम्र में बढ़ते हुए देखने का अलग ही सुकून होता है।
मैरी कहती हैं कि मेरा बचपन अपने पैरेंट्स के साथ खेतों में काम और छोटे भाई-बहनों की देखभाल करते बीता है। तमाम अचीवमेंट्स के बावजूद मैं आज भी पुराने अहसास के साथ ही जीती हूं। मैं अंदर से आज भी सीधी-सादी गांव की लड़की हूं। आज भी अपने गांव में जाती हूं और उन दिनों को याद करके इमोशनल हो जाती हूं। मैरी कहती हैं कि मैं नहीं चाहतीं कि किसी भी गरीब बच्चे को रिंग में आगे आने के लिए उनकी तरह संघर्ष करना पड़े। मैरीकॉम की मणिपुर में बॉक्सिंग एकेडमी है जिसके जरिए वह अगली मैरी बनाने का सपना देख रही हैं। मैरी चाहती हैं कि लड़कियां दिल खोलकर बॉक्सिंग में आएं। वह कहती हैं हरियाणा, मणिपुर, केरल और असम की लड़कियां तो बॉक्सिंग में आगे आ रही हैं लेकिन उत्तर प्रदेश और पंजाब की लड़कियां कम हैं। मैरी कहती हैं कि लड़कियों की सेल्फ डिफेंस के लिए बॉक्सिंग बेहद काम की चीज है।
मैरीकॉम को सुपरमॉम के नाम से भी जाना जाता है। 35 वर्षीय मैरीकॉम के तीन बच्चे हैं लेकिन इसके बावजूद उन्होंने बॉक्सिंग करना नहीं छोड़ा। मैरीकॉम की फिटनेस देखकर कोई नहीं कह सकता कि वह तीन बच्चों की मां हैं। 35 साल की उम्र में भी बॉक्सिंग रिंग के अंदर उनकी फिटनेस और तेजी देखने लायक होती है। विरोधी पर मैरीकॉम पंच की बरसात करती हैं तो बहुत ही तेजी से खुद को उसके प्रहारों से भी बचाती हैं। यही वजह है कि उनके ज्यादातर मुकाबले एकतरफा होते हैं। पांच बार की वर्ल्ड चैम्पियन, पांच बार की एशियन चैम्पियन सुपरमॉम मैरी ने लंदन ओलम्पिक में कांस्य पदक तो एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक जीता है। मैरीकॉम अपनी फिटनेस के लिए कड़ी मेहनत करती हैं। वह कहती भी हैं कि जब तक मैं फिट रहूंगी रिंग में हिट रहूंगी।
सुपरमॉम मैरीकॉम हर भूमिका में सर्वश्रेष्ठ हैं। वह ममतामयी मां के साथ ही राज्यसभा सांसद भी हैं। उन पर कभी भी राज्यसभा में अनुपस्थिति को लेकर सवाल नहीं उठे। मैरीकॉम का परिवार, पॉलिटिक्स और बॉक्सिंग रिंग से तारतम्य गजब का है। वह मां के रूप में जहां बच्चों के लिए काफी वक्त निकालती हैं वहीं राज्य सभा में सिर्फ खेल ही नहीं बल्कि मणिपुर के ज्वलंत मुद्दों को भी बेबाकी से उठाती हैं। एशियाई मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के बाद देश की उम्मीदें और भी बढ़ गई हैं। खेलप्रेमियों को मैरीकॉम से कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियाई गेम्स में मैडल जीतने की पूरी उम्मीद है। सच कहें तो जो उपलब्धियां मैरीकॉम ने हासिल की हैं उन तक पहुंचना किसी भी भारतीय महिला खिलाड़ी के लिए आसान बात नहीं है।
मैरीकॉम की उपलब्धियां-
2012 के ओलम्पिक में कांस्य पदक
एशियन महिला मुक्केबाजी प्रतियोगिता में पांच स्वर्ण, एक रजत पदक
एशियाई खेलों में एक स्वर्ण और दो रजत पदक
मैरीकॉम को साल 2003 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
2006 में पद्मश्री, 2013 में पद्म भूषण और 2009 में राजीव गाँधी खेल रत्न अवार्ड मिले

मैरीकॉम पर फिल्म बनी जिसमें प्रियंका चोपड़ा ने मैरीकॉम की भूमिका निभाई

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