हर मुसीबत का किया दिलेरी से सामना
सानिया मिर्जा, भारत का गौरव, टेनिस सनसनी, स्टाइल आइकान, न्यूकमर ऑफ द ईयर, नम्बर
वन प्लेयर ऑफ इन वूमंस डबल। सानिया
मिर्जा की इतनी खूबियां हैं, जिन्हें गिनवाने के लिए विशेषण कम पड़ जाते हैं। 15 नवम्बर, 1986 को मुम्बई में जन्मी सानिया मिर्जा 31 साल की
हो चुकी हैं। सानिया का जन्म बेशक मुम्बई में हुआ हो लेकिन उनका बचपन हैदराबाद में
बीता। हैदराबाद से ही सानिया ने टेनिस की शुरुआत की। सानिया के टेनिस करियर ने
अनेक उतार-चढ़ाव और चुनौतियों का सामना किया लेकिन कभी हिम्मत न हारने वाली सानिया
युवाओं के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत रही हैं। भारतीय टेनिस ने एक लम्बा सफर तय किया
है। साल 1921 से 1929 के बीच भारत ने डेविस कप में दिग्गज यूरोपीय
देशों को मात देकर अपनी छाप छोड़ी थी। फिर 1939 में गास मोहम्मद जब विम्बलडन क्वार्टर फाइनल में पहुंचे तब भी भारत
आजाद नहीं था लेकिन अंग्रेजों की जमीन पर एक भारतीय ने अपने दमखम से दिखा दिया कि
वह किसी से कम नहीं। भारतीय टेनिस का असल प्रभाव 1960 के दशक में पड़ा जब विम्बलडन में रामनाथन कृष्णन
ने चौथी वरीयता प्राप्त की। भारत लगातार जोनल चैम्पियन बना और 1966 के फाइनल में भी पहुंचा। तब से लेकर अब तक टेनिस
का सफर लम्बा रहा है लेकिन इस सफर में एक सबसे बड़ा बदलाव जो देखने को मिला वह रहा
भारतीय महिलाओं का टेनिस में सक्रिय होना और इसमें असल जान फूंकी सिर्फ और सिर्फ
एक खिलाड़ी सानिया मिर्जा ने, एक ऐसी खिलाड़ी जिसने तमाम विवादों के बीच भारतीय
टेनिस का इतिहास बदल डाला। सानिया मिर्जा बचपन में पत्रकार बनना चाहती थीं लेकिन इन्हें
रास टेनिस ही आई।
सानिया मिर्जा आज किसी पहचान की मोहताज नहीं
हैं। भारत में महिला टेनिस की शुरुआत तो काफी पहले हो चुकी थी लेकिन गूगल पर सर्च
करें तो पूरे इतिहास में बमुश्किल 30 भारतीय महिला टेनिस खिलाड़ियों के नाम ही नज़र आएंगे। इनमें भी ज्यादातर
ने राष्ट्रीय स्तर पर ही नाम कमाया है। सानिया कुछ अलग थीं। जब वह छह साल की थी तभी उसके हाथ में रैकेट थमा दिया गया
था। जन्म एक बिल्डर पिता इमरान मिर्जा के घर हुआ लेकिन उसी पिता के रूप में सानिया
को अपना पहला टेनिस कोच भी मिला। खानदान में खिलाड़ी का खून पहले से था। पूर्व
भारतीय क्रिकेट कप्तान गुलाम अहमद और पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेट कप्तान आसिफ इकबाल
उनके रिश्तेदारों में थे। जैसे-जैसे सानिया बड़ी हुईं उन्हें रोजर एंडरसन ने भी
टेनिस का पाठ पढ़ाना शुरू किया। स्कूल ने भी सानिया के हुनर को समझा और उसे सराहते
हुए आगे बढ़ने को प्रेरित किया।
कम उम्र में ही सफलता के झंडे का गाड़ने वाली
सानिया ने अपनी करियर की शुरुआत साल 1999 में की। उस समय सानिया की उम्र महज 14 साल थी, जब उन्होंने वर्ल्ड जूनियर टेनिस चैम्पियनशिप
में हिस्सा लिया था। साल 2000 में सानिया ने पाकिस्तान में खेले गए
इंटेल जूनियर चैम्पियनशिप जी-5 मुकाबले में सिंगल और डबल मुकाबले में जीत हासिल की।
डबल मुकाबलों में सानिया की जोड़ी पाकिस्तान के जाहरा उमर खान के साथ थी। जूनियर
खिलाड़ी के रूप में 10 सिंगल्स खिताब और 13 डबल्स खिताब जीतकर सानिया खलबली मचा चुकी थीं
और 2002 में एशियन गेम्स में भारत को मिक्स्ड
डबल्स का खिताब दिलाने में अपना योगदान देकर उन्होंने करोड़ों देशवासियों का दिल जीत
लिया। सानिया का असल धमाल बाकी था। 2003 में रूस की अलीसा क्लेबोनोवा को जोड़ी
बनाते हुए सानिया ने जैसे ही प्रतिष्ठित विम्बलडन ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट का
गर्ल्स खिताब अपने नाम किया सारी दुनिया में इनकी शोहरत की चर्चा होने लगी। इसी साल
सानिया को वाइल्ड कार्ड के जरिए पहली बार सिंगल्स टूर्नामेंट में भी खेलने का मौका
मिला।
साल 2005 के ऑस्ट्रेलियन ओपन में सिंगल्स खिलाड़ी के रूप में सानिया ने सिंडी
वॉटसन और पेट्रा मंडूला को हराकर पहले व दूसरे राउंड को तो पार कर लिया था लेकिन
वह इससे आगे नहीं बढ़ सकीं। फरवरी 2005 में सानिया डब्ल्यूटीए खिताब जीतने वाली
पहली भारतीय महिला बनीं। 2006 के ऑस्ट्रेलियन ओपन में वरीयता हासिल
करने और 2007 में विश्व रैंकिंग में टॉप-30 में पहुंचने
वाली सानिया मिर्जा पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं। इसके बाद भारतीय पुरुष
खिलाड़ी महेश भूपति के साथ वह सिंगल्स से डबल्स की तरफ कदम बढ़ाने निकलीं और देखते
ही देखते भारतीय महिला टेनिस की पहचान बन गईं। सानिया ने इसके बाद कभी पीछे मुड़कर
नहीं देखा और तमाम जोड़ीदारों के साथ खेलते हुए उन्होंने तीन ग्रैंड स्लैम डबल्स
खिताब तो तीन ग्रैंड स्लैम मिक्स्ड डबल्स खिताब भी अपने नाम किए। इसके अलावा 2014 और 2015 में विश्व टूर फाइनल्स भी जीता। साल 2015 में सानिया ने विश्व की नम्बर-एक डबल्स खिलाड़ी
बनकर नया इतिहास रचा।
एक खिलाड़ी के रूप में जहां सानिया मिर्जा ने
मादरेवतन का मान बढ़ाया वहीं वह विवादों में भी छाई रहीं। बीजिंग ओलम्पिक 2008 की ओपनिंग सेरेमनी परेड में सानिया और सुनीता
राव ड्रेस कोड का उल्लंघन करने के विवाद में फंसीं। 2008 में उनके उस बयान ने खलबली मचाई जिसमें
उन्होंने भारत में न खेलने का फैसला सुनाया। हालांकि बाद में सानिया भारतीय जमीन
पर खेलने जरूर उतरीं। लंदन ओलम्पिक 2012 में लिएंडर पेस के साथ उनकी जोड़ी बनाए
जाने पर भी सानिया ने विरोध किया जो एक बड़े विवाद के रूप में सामने आया। फिर उसी
ओलम्पिक खेलों की ओपनिंग सेरेमनी में वह बिना तिरंगे के नजर आईं। सानिया कपड़ों से
लेकर ऐड शूट तक विवादों में घिरी रहीं। इतना ही जब सानिया ने पाकिस्तानी क्रिकेटर
शोएब मलिक को शौहर के रूप में स्वीकारा तब भी उन्हें काफी विरोध का सामना करना
पड़ा था। अपने करियर में सानिया मिर्जा ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं लेकिन कभी हार
न मानने वाली सानिया निरंतर टेनिस की दुनिया में नाम और शोहरत कमाती रहीं। पद्मभूषण
और पद्मश्री से सम्मानित सानिया एक किताब भी लिख चुकी हैं।
सानिया मिर्जा देश की पहली ऐसी महिला बनीं
जिसने वूमन टेनिस एसोसिएशन का खिताब जीता। 2005 में उन्हें न्यूकमर ऑफ द ईयर का
खिताब मिला। सानिया भारतीय टेनिस इतिहास की पहली ऐसी महिला हैं जो 10 लाख अमेरिकी
डॉलर से ज्यादा रुपए कमाती हैं। सानिया मिर्जा का नाम अक्टूबर 2017 में टाइम
पत्रिका ने टॉप 50 हीरोज में शामिल किया। 2010 में सानिया मिर्जा का नाम इकोनामिक्स
टाइम ने उन 33 महिलाओं में शामिल किया, जिन्होंने भारत का गौरव बढ़ाया। उनकी आत्म
कथा एस अगेंस्ट ऑड को बॉलीवुड स्टार शाहरुख खान और सलमान खान ने हैदराबाद में रिलीज
किया था। ग्रैंड स्लैम की बात करें तो सानिया ने सबसे पहले साल 2009 में
ऑस्ट्रेलियन ओपन का मिक्स डबल्स खिताब जीता था इसके बाद साल 2012 में फ्रेंच ओपन
मिक्स डबल्स का खिताब, 2014 में यूएस ओपन मिक्स डबल्स खिताब और 2015 में विम्बलडन
का युगल खिताब भी अपने नाम किया। सानिया
मिर्जा ने एफ्रो एशियाई, एशियाई और कॉमनवेल्थ गेम्स खेलों को मिलाकर कुल 12 मैडल्स
अपने नाम किए। एफ्रो एशियाई खेलों में सानिया ने कुल चार गोल्ड मैडल जीते तो एशियाई
खेलों में सानिया ने एक गोल्ड, तीन सिल्वर और दो कांस्य जीते हैं। सानिया ने कॉमनवेल्थ
गेम्स में एक सिल्वर और एक ब्रॉन्ज मैडल जीता है।
सानिया मिर्जा अपनी बोल्ड स्टाइल की वजह से
युवाओं में बेहद लोकप्रिय हैं। वह स्पोर्ट्स ब्रांड एडीडास की ब्रांड एम्बेसेडर
रही हैं। उनकी ड्रेसिंग सेंस और स्पंकी एटीट्यूट का हर कोई दीवाना है। सानिया चाहे
परंपरागत भारतीय कपड़े पहनें या वेस्टर्न ड्रेसेस उनकी खूबसूरती हमेशा बनी रहती है।
जब सानिया ने टेनिस खेलना शुरू ही किया था तब उनकी कानों का बालियां और नाक की नथ
काफी लोकप्रिय हुई थी। टेनिस मैचों के दौरान छोटी ड्रेस पहनने के कारण
सानिया मिर्जा को कई बार मुस्लिम संगठनों की आलोचना और रंज का भी सामना करना पड़ा।
2008 में सानिया पर तिरंगे के अपमान के भी आरोप लगे और कहा गया कि उन्होंने एक
समारोह के दौरान तिरंगे को पैरों से छुआ। इस मामले में उन पर केस भी दर्ज हुआ। सानिया
मिर्जा कभी किसी विवाद से विचलित नहीं हुईं और हर कठिनाई का बखूबी सामना किया और उससे
बाहर भी निकलीं।
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