Wednesday, 16 August 2017

गीता ने पहलवानी में लिखी नई पटकथा



महिला पहलवानों की बनीं आदर्श
कर्णम मल्लेश्वरी की जीत से महावीर को मिली प्रेरणा
श्रीप्रकाश शुक्ला
हरियाणा के भिवानी जिले में एक छोटा सा गांव है बिलाली। एक वक्त था जब इस गांव में बेटी का होना अभिशाप माना जाता था। बेटी के पैदा होते ही खुशियों की जगह दुःख का मातम छा जाता था। इतना ही नहीं लड़कियों का स्कूल जाना भी मना था। इन विकट परिस्थितियों के बीच 15 दिसम्बर, 1988 को बिलाली गांव में गीता फोगाट का जन्म हुआ। आज भी हमारे देश में केवल बेटों की चाह रखने वालों की कमी नहीं है। शुरुआत में कुछ ऐसी ही सोच गीता के माता-पिता की भी थी। बेटे की चाह में फोगाट दम्पति भी चार बेटियों के पिता बन गए, जिनमें गीता सबसे बड़ी हैं। लेकिन बाद में गीता के पिता महावीर सिंह फोगाट को एहसास हुआ कि बेटियां भी बेटों से कम नहीं होतीं और उन्होंने अपनी बेटियों को उस राह पर चलाने का फैसला कर लिया जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। महावीर सिंह फोगाट गीता और उसकी बहनों को पहलवान बनाने में जुट गए। महावीर सिंह फोगाट अपने इस प्रयास में न केवल सफल हुए बल्कि उनकी बड़ी बेटी गीता फोगाट भारत की तरफ से ओलम्पिक कुश्ती में उतरने वाली पहली महिला होने का गौरव भी हासिल हुआ। गीता और बबिता ही नहीं महावीर फोगाट की सभी बेटियां पहलवान हैं। यहां तक कि उनकी भतीजी और राष्ट्रमण्डल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता विनेश फोगाट तो सबसे अधिक प्रतिभाशाली है। विनेश में तो ओलम्पिक में भी पदक जीतने की काबिलियत है।
महावीर सिंह फोगाट जब अपनी बेटियों को अखाड़े की तरफ ले जाते तो समाज के लोग कहते देखो कितना बेशर्म पिता है। बेटी को ससुराल भेजने के बजाय उनसे कुश्ती लड़वाता है। इस पर महावीर सिंह फोगाट कहते जब लड़की देश की प्रधानमंत्री बन सकती है तो पहलवान क्यों नहीं बन सकती। गीता फोगाट का बचपन बहुत संघर्ष भरा रहा। पर कहते हैं न कि अगर इरादे मजबूत हों और हौंसले बुलंद हों तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती। गीता और उनके पिता को भी कोई नहीं रोक पाया और आगे चलकर गीता ने कुश्ती में वह कीर्तिमान स्थापित किए जोकि इसके पहले किसी अन्य भारतीय महिला ने नहीं कायम किये थे। सिडनी ओलम्पिक में जब कर्णम मल्लेश्वरी ने वेटलिफ्टिंग में कांस्य पदक जीता तो वह ओलम्पिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं। कर्णम मल्लेश्वरी की इसी जीत का गीता के पिता महावीर सिंह फोगाट पर गहरा असर हुआ उन्हें लगा जब कर्णम मैडल जीत सकती है तो मेरी बेटियां भी मैडल जीत सकती हैं और यहीं से उन्हें अपनी बेटियों को चैम्पियन बनाने की प्रेरणा मिली। इसके बाद ही उन्होंने गीता-बबिता को पदक जीतने के लिए तैयार करना शुरू कर दिया। महावीर ने कसरत से लेकर खाने-पीने की हर चीज के नियम बना दिए और गीता-बबिता को पहलवानी के गुर सिखाने लगे। गीता के पिता 1980 के दशक के एक बेहतरीन पहलवान थे और अब वह गीता के लिए एक सख्त कोच भी थे। गीता बताती हैं कि पापा मुझसे अक्सर कहते थे कि तुम जब लड़कों की तरह खाती-पीती हो तो फिर लड़कों की तरह कुश्ती क्यों नहीं लड़ सकती। इसलिए मुझे कभी नहीं लगा कि मैं पहलवानी नहीं कर सकती।
कहते हैं होनहार बिरवान के होत चीकने पात- गांव के दंगल से आगे बढ़ते हुए गीता ने जिला और राज्य स्तर तक कुश्ती में सभी को पछाड़ा और नेशनल व इंटरनेशनल मुकाबलों के लिए खुद को तैयार करने लगीं। गीता कहती है कि मेरे पिता ने हमेशा मुझे इस बात का एहसास कराया कि मैं लड़कों से कम नहीं हूँ। गांव वालों को बेटियों का पहलवानी करना कतई पसंद नहीं था लेकिन पापा ने कभी उनकी परवाह नहीं की। महावीर सिंह की कोचिंग और गीता की कड़ी मेहनत का ही परिणाम था कि जालंधर में 2009 में राष्ट्रमंडल कुश्ती चैम्पियनशिप में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद गीता ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और कुश्ती का अपना सफर जारी रखते हुए साल 2010 में दिल्ली के राष्ट्रमंडल खेलों में फ्रीस्टाइल महिला कुश्ती के 55 किलोग्राम कैटेगरी में गोल्ड मैडल हासिल किया और ऐसा करने वाली वह पहली भारतीय महिला पहलवान बन गईं। गीता ने 2012 में एशियन चैम्पियनशिप में स्वर्ण जीतकर इतिहास रच दिया।
बिलाली हरियाणा के उन दकियानूसी गाँवों में आता है जो जन्म से पहले ही बेटी की भ्रूण हत्या के लिए बदनाम है। ऐसे गाँव की बेटी होने के बावजूद गीता ने जो किया वह किसी करिश्मे से कम नहीं है। कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मैडल जीतकर जब गीता पहली बार गाँव पहुंचीं तो वही लोग जो कभी उसे ताना मारने से नहीं थकते थे, बैंडबाजे और फूलों का हार लेकर खड़े थे। गीता की जीत ने गाँव वालों की दकियानूसी सोच को भी हरा दिया। गीता की दादी जो लड़की के जन्म को बोझ समझती थीं वह भी अब कहती हैं कि ऐसी बेटियां भगवान सौ दे दे तो भी कम है। अब बिलाली ही नहीं हरियाणा के सैकड़ों गाँव बदल चुके हैं। अब यहाँ बेटियों को लोग प्यार करने लगे हैं। बेटी के जन्म पर जश्न मनाए जाते हैं और लड़कियों को भी लड़कों की तरह खेलने-कूदने और घूमने की आजादी दी जाने लगी है। गीता फोगाट के जीवन पर आधारित फिल्म दंगल को भारतीय दर्शकों ने जिस तरह सराहा उससे लगने लगा है कि अब समाज बदल रहा है। अंतरराष्ट्रीय कुश्ती में गीता के योगदान को देखते हुए ही 18 अक्टूबर, 2016 में इन्हें हरियाणा पुलिस का डिप्टी सुपरिंटेंडेंट बनाया गया। आज पूरे देश को गीता पर गर्व है। महावीर सिंह फोगाट और गीता की सफलता की ये कहानी करोड़ों हिन्दुस्तानियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। यह संघर्षगाथा यही साबित करती है कि चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं अगर इंसान के अन्दर दृढ़ इच्छाशक्ति है तो वह उसके बल पर असम्भव को भी सम्भव बना सकता है। अगर आपका भी कोई सपना है जो आज असम्भव लगता है तो उसे सम्भव बनाने में जुट जाइए क्योंकि असम्भव कुछ भी नहीं।
फोगाट बहनों पर बनी फिल्म दंगल बेशक कामयाबी के झंडे गाड़ रही हो पर इसको लेकर कहीं न कहीं अन्य महिला पहलवानों में रंज भी है। देखा जाए तो दंगल फिल्म की कहानी इतनी काल्पनिक नहीं है क्योंकि गीता फोगाट और बबिता फोगाट ने साल 2010 में दिल्ली में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में अपना जलवा स्वर्ण और रजत पदक जीतकर तो दिखाया ही था। दंगल फिल्म में दिखाया गया है कि गीता और बबिता के पिता महावीर फोगाट की राष्ट्रीय कोच से कुश्ती के दांव-पेच को लेकर तकरार चलती रहती है। महावीर फोगाट खुद एक राष्ट्रीय स्तर के पहलवान रह चुके हैं। यहां तक कि फिल्म के क्लाइमेक्स में दिखाया गया है कि महावीर फोगाट को एक कमरे में बंद कर दिया जाता है ताकि फाइनल मुक़ाबले में वे अपनी ही कोचिंग देना न शुरू कर दें लेकिन हकीकत इससे अलग है। साल 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों के दौरान भारतीय महिला पहलवान टीम के चीफ कोच रहे प्यारा राम सोंधी का कहना है कि महावीर फोगाट बेहद सज्जन व्यक्ति हैं और उन्हें कमरे में बंद करने वाली बात पूरी तरह से गलत है। उन्होंने कभी भी नेशनल कैम्प के दौरान गीता और बबिता की ट्रेनिंग को लेकर कोई वाद-विवाद नहीं किया। यहां तक कि फिल्म में गीता और कोच के बीच दिखाए गए मतभेद की बात से भी सोंधी इनकार करते हैं।
कोच प्यारा राम सोंधी के मुताबिक महावीर फोगाट अमूमन चुपचाप रहने वाले व्यक्ति हैं। इसके अलावा गीता और बबिता ने ट्रेनिंग कैम्प के दौरान कभी कोई फिल्म सिनेमा हॉल जाकर नहीं देखी। प्यारा राम सोंधी कहते हैं कि महावीर फोगाट तो नहीं लेकिन एक दूसरे पूर्व पहलवान प्रशिक्षकों की गैरमौजूदगी में अपनी बेटी को ट्रेनिंग देने के कुछ अलग तरीके जरूर बताते थे। आखिरकार उन्हें समझाया गया कि गांव-देहात की कुश्ती प्रतिस्पर्धाओं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली प्रतियोगिताओं की ट्रेनिंग में बहुत अंतर है। बाद में वह भी मान गए कि सच क्या है। प्यारा राम सोंधी कहते हैं कि उनकी कभी भी महावीर फोगाट से बहस तो क्या लम्बी बातचीत तक नहीं हुई। यहां तक कि जब गीता और बबिता कामयाबी की दास्तान लिख रही थीं तब उन्हें यह तक पता नहीं था कि महावीर फोगाट दर्शकों के बीच कहां बैठे हैं। उन दिनों तो पूरी भारतीय महिला टीम और कोच खेलगांव में ठहरे थे। महावीर फोगाट और उनका परिवार एक दर्शक के रूप में ही स्टेडियम में मौजूद था। लड़कों से लड़कियों की ट्रेनिंग की बात को लेकर प्यारा राम सोंधी ने कहा की जब उन्होंने विदेशों में ऐसा देखा तो उनके भी विचार बदले लेकिन बड़े वजन की लड़कियों की ट्रेनिग कम वजन के पहलवानों से कराई जाती थीं। प्यारा राम सोंधी इस बात को स्वीकार करते हैं कि गीता और बबिता को लड़कों के साथ बचपन से मुकाबला करने की आदत ने बड़ा पहलवान बनाया। इसका सीधा सा कारण है कि लड़कों के पास लड़कियों के मुकाबले बेहतर तकनीक होती है। सोंधी यह भी बताते हैं कि गीता और बबिता ट्रेनिंग के दौरान शाकाहारी थीं। हालांकि फिल्म में उन्हें प्रोटीन के लिए नॉनवेज खाते हुए दिखाया गया है।


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