Thursday 13 August 2015

यहां जो भी आये, कामयाबी पर खिलखिलाये

उच्च गुणवत्ता है कुमार्स आईएएस कोचिंग सेण्टर की पहचान
प्रतिद्वन्द्विता नहीं क्वालिटी है पहचान: मुकेश कुमार
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
इन अल्फाजों को ही ब्रज मण्डल में हकीकत का धरातल देने का काम कुमार्स आईएएस कोचिंग सेण्टर के संचालक मुकेश कुमार कर रहे हैं। युवाओं के करियर को कामयाबी की राह दिखाने वाले मुकेश कुमार ने आज से कोई नौ साल पहले देश के दिल दिल्ली में अपनी मां स्वर्गीय कमला देवी के सपने को साकार करने का न केवल संकल्प लिया था बल्कि पूरी शिद्दत से उस काम को अंजाम देना शुरू किया जिसे प्राय: दुरूह कार्य माना जाता है। कामयाबी की मिसालें तो केवल प्रेरित करने भर का काम करती हैं। जो भी सफल होना चाहता है उसे नई राहों की मुश्किलों का सामना करके ही मंजिल पानी होती है।
दरअसल आज के समय में सफलता की विशेषताओं के बारे में जानना एवं विश्लेषण करना सरल है, परंतु इनको अपने व्यक्तित्व में समाहित करना एक वास्तविक चुनौती है। सफलता की विशेषताओं में सकारात्मक सोच, स्वयं पर विश्वास, साहस, लक्ष्य के प्रति समर्पण, कुशल समय और ऊर्जा प्रबंधन आदि गुण सम्मिलित होते हैं। इनसे एक सजग व्यक्ति भली-भांति परिचित होता है। वैसे तो हर व्यक्ति इन गुणों को स्वयं में उतारने एवं बनाए रखने का इच्छुक होता है किन्तु जब उसका वास्तविकता से सामना होता है, तो पता चलता है कि इनका अभ्यास करना कठिन है। ऐसा आकांक्षा एवं इच्छाशक्ति के बीच एक बड़ा अंतर होने की वजह से होता है। मुकेश कुमार का कहना है कि सफलता के कारकों की सूची काफी लम्बी हो सकती है, यदि इनको विभिन्न शीर्षकों-उपशीर्षकों में रखा जाए। सफलता के पहिए की चार तीलियां हैं-मस्तिष्क, समय, ऊर्जा एवं मानवीय सम्बन्ध। कुदरत द्वारा मनुष्य को प्रदान किए गए इन चार बेशकीमती उपहारों का कुशलतापूर्वक प्रबंधन कर ही सफलता हासिल की जा सकती है।
मुकेश कुमार ने वर्ष 2006 में दिल्ली में जब कुमार्स आईएएस कोचिंग सेण्टर का श्रीगणेश किया तो उनके मन में नाना प्रकार के खयालातों ने जन्म लिया। हर मनुष्य की तरह उनके मन में भी सफलता-असफलता को लेकर सवाल पैदा हुए पर उन्होंने कामयाबी का न केवल संकल्प लिया बल्कि अल्प समय में ही चार सैकड़ा से अधिक युवाओं को नई राह दिखाकर अपनी मां के संकल्प को पूरा करने की नायाब कोशिश की। मुकेश कुमार के पिता श्याम सिंह पुलिस सेवा में हैं। प्राय: माना जाता है कि पुलिस वालों की औलाद बिगड़ैल होती है, पर मुकेश जी ने इसे मिथ्या साबित कर दिखाया। मां की प्रेरणा का ही कमाल है कि वह दिल्ली, आगरा और मथुरा में लगातार अपनी प्रेरणादायी शिक्षा की लौ को लगातार प्रज्वलित किये हुए हैं। दरअसल, सफलता की शुरुआत मनुष्य के स्वयं की पहचान के साथ होती है। प्रत्येक व्यक्ति जीवन में सफलता, शांति एवं प्रसन्नता हासिल करने एवं उसका अभिवर्धन हासिल करने की असीम क्षमता के साथ ईश्वर का एक अद्वितीय सृजन होता है।
मुकेश कुमार जी का कहना है कि स्वयं की क्षमता एवं अद्वितीयता की समझ एवं पहचान एक अद्भुत अनुभव है। हरेक व्यक्ति का इस धरती पर आने का एक उद्देश्य होता है और हर व्यक्ति में अपने लक्ष्यों को हासिल करने के प्रति कुछ अद्वितीयता भी होती है। मुकेश कुमार को मलाल है कि ब्रज मण्डल में सब कुछ होते भी युवाओं को सही दिशा देने वालों की बेहद कमी है। इसी कमी को पूरा करने की खातिर ही उन्होंने अक्टूबर 2013 में कुमार्स आईएएस कोचिंग सेण्टर का शुभारम्भ किया। यह मुकेश जी की लगन और अथक मेहनत का ही कमाल है कि सिर्फ डेढ़ साल में ही उन्होंने ब्रज मण्डल को चार आईएएस और छह पीसीएस दे दिये हैं। आज के समय में जब पैसा ही सब कुछ माना जा रहा हो ऐसे समय में कुमार्स आईएएस कोचिंग सेण्टर का गरीब युवाओं को मुफ्त में तालीम देना अपने आप में एक मिसाल है। मुकेश जी कहते हैं कि उनकी मां चूंकि निरक्षर थीं सो उनकी इच्छा थी कि किसी गरीब का बेटा पैसे के अभाव में शिक्षा से वंचित न रहे।
कुमार्स आईएएस कोचिंग सेण्टर के संचालक मुकेश कुमार का कहना है कि सफलता की कला वास्तव में हमारे मस्तिष्क के दक्षतापूर्ण संचालन की एक कला है। यहां, यह समझना महत्वपूर्ण है कि साक्षरता एवं शिक्षा में बहुत बड़ा अंतर होता है। एक व्यक्ति बिना साक्षर हुए भी पूर्ण रूप से शिक्षित हो सकता है। अकबर महान इसका एक सर्वोत्तम उदाहरण हैं। बहुत से संत-महात्मा एवं धार्मिक गुरु निरक्षर थे, किंतु वे काफी ज्ञानी थे। दूसरी ओर, हमारे देश में या विश्व में कहीं भी साक्षर और उच्च डिग्री प्राप्त लोगों की संख्या काफी अधिक है, लेकिन उन लोगों की संख्या काफी कम है जो उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने तथा इस विश्व को कुछ अर्थपूर्ण योगदान दिये जाने के लिए वास्तविक रूप से स्वयं को शिक्षित होने का दावा करते हैं। सच्चे अर्थ में शिक्षा का सीधा सम्बन्ध आत्मबोध से होता है। अकादमिक शिक्षा हमें साक्षर और सूचनाओं एवं ज्ञान से समृद्ध बना सकती है, लेकिन उनका इस्तेमाल एवं अर्थवत्ता हमारी वास्तविक शिक्षा की शक्ति पर ही निर्भर करती है।
एक सच्चा शिक्षक वही है, जो अपने विद्यार्थी के मस्तिष्क की मौलिकता को मारे नहीं, बल्कि उसे आत्मानुभूति करने में सहायता प्रदान करे। कुमार्स आईएएस कोचिंग सेण्टर का भी यही मकसद है। बकौल मुकेश कुमार ब्रज मण्डल के अधिकांश छात्रों की यही मनोदेशा है कि भारतीय सिविल सेवा परीक्षाओं में उत्तीर्ण होना साधारण व्यक्ति के वश की बात नहीं है और सिर्फ असाधारण बौद्धिक क्षमता वाले लोग ही इसमें सफल होते हैं। मुकेश कुमार ऐसा नहीं मानते। उनका कहना है कि धैर्य के साथ लगातार सुव्यवस्थित तरीके से तैयारी करने वाले साधारण छात्र भी सिविल सेवा परीक्षाओं में उत्तीर्ण हो सकते हैं। अभी तक एक सोच थी कि इन परीक्षाओं में अधिकांश बच्चे बड़े-बड़े अधिकारियों के ही उत्तीर्ण होते हैं। आज यह धारणा भी पूरी तरह से गलत साबित हो रही है। चूंकि यह परीक्षा हमारे देश के लिए बड़े अधिकारी वर्ग को पैदा करती है, इसलिए देश का हर युवा अपने दिल में यह अभिलाषा संजोकर चलता है कि वह भी भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में उत्तीर्ण हो। अत: यह ध्यान देना आवश्यक है कि आखिर इसमें क्या जरूरी है तथा तैयारी करने के लिए क्या योजनाएं बनानी पड़ती हैं? मुकेश जी कहते हैं कि भारतीय सिविल सेवा के लिए यदि धैर्य के साथ लगातार सुव्यवस्थित तरीके से तैयारी की जाए तो सफलता अवश्य ही मिलती है। मुकेश जी को असफलता से चिढ़ है। उनका कहना है कि वह कभी नहीं चाहते कि कोई बिना लड़े ही हार मान ले। वे कहते हैं कि यदि युवाओं का संकल्प पुख्ता हो तो उन्हें कुछ खोने की बजाय पाने पर विश्वास करना चाहिए। वह कहते हैं कि जो युवा अपने हौसले को उच्च स्तर पर बनाए रखता है तथा सकारात्मक मन:स्थिति को सम्पोषित करने में सक्षम होता है, उसी के सफलता कदम चूमती है। सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी युद्ध के समान है। कोई भी युद्ध तभी फतह किया जा सकता जब उसके लिए पहले ही एक फुलप्रूफ योजना बनाई जाए और उस योजना के तहत तैयारी की जाए। कुमार्स आईएएस कोचिंग सेण्टर में युवाओं की मानसिक दृढ़ता पर न केवल ध्यान दिया जाता है बल्कि उन्हें बिल्कुल पारिवारिक माहौल भी उपलब्ध कराया जाता है।
कुमार्स आईएएस कोचिंग सेण्टर: कब-कहां
वर्ष 2006 -दिल्ली
अक्टूबर 2013- आगरा
फरवरी 2015- मथुरा
नौ साल में चार सौ से अधिक युवाओं को मिली कामयाबी 

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