Friday 20 April 2018

भारत के भाल पर मनिका बत्रा का तिलक



राष्ट्रमंडल खेलों में जीते चार पदक
लक्ष्य स्पष्ट हो, कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो और प्रयास पूरे मनोयोग से हों तो सफलता जरूर कदम चूमती है। ऐसी खुशी परिवार-कुटुम्ब से लेकर पूरा देश महसूस करता है। सफलता की नई इबारत लिखने वाली मनिका बत्रा इसकी जीवंत मिसाल हैं। गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों में एक-दो नहीं पूरे चार पदक लेकर आई भारत की इस बेटी ने सोने, चांदी और कांसे के पदकों से न केवल अपना गला सजाया बल्कि मुल्क के भाल पर अपनी कामयाबी का ऐसा तिलक लगा दिया जिसे खेलप्रेमी असम्भव मान बैठे थे। टेबल टेनिस की जहां तक बात है यह खेल भारत में अपेक्षाकृत कम खेला जाता है। इस खेल में प्रायः सिंगापुर के खिलाड़ियों की ही तूती बोलती रही है। गोल्ड कोस्ट से पहले इस खेल में सिंगापुर राष्ट्रमंडल खेलों में कभी हारा ही नहीं था। खैर, समय दिन और तारीख देखकर आगे नहीं बढ़ता। भारत के दिल दिल्ली की बेटी ने आस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में ओलम्पिक विजेता और अपने से बहुत ऊंची रैंकिंग की खिलाड़ियों का मानमर्दन कर इस बात के संकेत दिए कि भारतीय बेटियां अब किसी से कम नहीं हैं। टेबल टेनिस के लिए मनिका ने बहुत कुछ खोया भी, मगर जो पाया वह किसी करिश्मे से कम नहीं है।
एक सामान्य पृष्ठभूमि से आने वाली मनिका के पांव पालने में ही नजर आने लगे थे। 15 जून, 1995 को जन्मी मनिका का परिवार दिल्ली के नारायण विहार में रहता है। उसने चार साल की उम्र में ही टेबल टेनिस खेलना शुरू कर दिया था। खेलते तो उसके भाई साहिल और बहन आंचल भी थे, मगर मनिका की बात ही कुछ और थी। वह जैसे इस खेल के लिए ही पैदा हुई हो। खेल के लिहाज से उसने स्कूल बदला और कोच की सलाह पर हंसराज मॉडल स्कूल में पढ़ाई पूरी की। वह जीसस एण्ड मैरी कॉलेज भी गई, मगर जल्दी ही उसे लगा कि खेल और पढ़ाई साथ-साथ नहीं चलेंगे। कॉलेज के लिए समय नहीं मिलता था सो इस बेटी ने पत्राचार से पढ़ाई पूरी की।
मनिका ने जो स्वर्णिम सफलता हासिल की, उसके लिए उसने बहुत कुछ खोया भी है। आकर्षक, मनमोहक व्यक्तित्व की धनी मनिका के लिए मॉडलिंग के प्रस्ताव भी आये। जब वह 16 साल की थी तो स्वीडन में पीटर कालर्सन अकादमी में प्रशिक्षण हेतु छात्रवृत्ति का प्रस्ताव मिला। मगर उसने ऐसे कई प्रस्ताव ठुकरा दिए। उसे अपना लक्ष्य पता था और अपना सौ प्रतिशत इसी को देना था। खेल में स्वर्णिम सफलता के लिए उसने कॉलेज और मॉडलिंग का त्याग किया, जिसके परिणाम सबके सामने हैं। आज वह भारत की नम्बर एक टेबल टेनिस खिलाड़ी है। कहते हैं पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं, मनिका बचपन से ही माणिक की भांति चमकने लगी थी। कड़ी मेहनत और लगन से मनिका बत्रा ने राज्यस्तरीय प्रतियोगिताओं से लेकर राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। वर्ष 2011 में मनिका ने चिली ओपन में अंडर-21 आयु वर्ग में रजत पदक जीतकर अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धाओं में दमखम दिखाया। वर्ष 2014 में ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों में उसने भारत का प्रतिनिधित्व किया, मगर उसकी पहुंच क्वार्टर फाइनल तक ही रही। इसी तरह वर्ष 2014 के एशियाई खेलों में वह तीसरे दौर तक ही पहुंच पाई लेकिन उसने अपनी खामियों को दूर करते हुए वर्ष 2015 में सम्पन्न राष्ट्रमंडल टेबल टेनिस चैम्पियनशिप में तीन पदक अपने नाम किए। इसमें टीम, एकल व युगल स्पर्धाएं शामिल थीं। इसी तरह मनिका ने वर्ष 2016 के दक्षिण एशियाई खेलों में मिश्रित युगल, टीम और महिला युगल वर्ग में तीन स्वर्ण पदक देश के नाम किए। इसके बाद मनिका ने वर्ष 2016 के ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक खेलों के लिए भी क्वालीफाई किया। इन तमाम पड़ावों से गुजरते हुए मनिका ने गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों में सर्वोत्तम प्रदर्शन का मार्ग प्रशस्त किया।
यह अलग बात है कि अब तक मनिका की पहचान भारतीय खेलप्रेमियों में मेरीकॉम, साइना नेहवाल, सानिया मिर्जा, पी.वी. सिंधु जैसी नहीं है मगर राष्ट्रमंडल खेलों के बाद उसने अपनी अलग पहचान जरूर बना ली है। एक बात यह भी कि अब तक टेबल टेनिस बहुत लोकप्रिय खेलों में शुमार नहीं रहा लेकिन अब जब मनिका ने महिला एकल में टेबल टेनिस का पहला स्वर्ण पदक भारत को दिला ही दिया तो बच्चे-बच्चे की जुबान पर उसका नाम है। यह विडम्बना ही है कि सरकार और खेल संघ प्रतिभाओं को निखारने में अपने दायित्वों का ईमानदारी से निर्वाह नहीं कर रहे। मनिका के खेल में जो निखार राष्ट्रमंडल खेलों में नजर आया, उसमें खेलों से पहले जर्मनी में ली गई एक महीने की स्पेशल ट्रेनिंग की भी बड़ी भूमिका है। वहां उसने खेल में तेज सर्विस, स्मैश और गेंद को नियंत्रित करने का कड़ा अभ्यास किया। इसका बहुत अधिक प्रभाव उसके खेल में नजर आया। यही वजह है कि राष्ट्रमंडल खेलों में टेबल टेनिस शुरू होने से ही अपराजेय मानी जाने वाली सिंगापुर की टीम को भारत ने हराकर एक साथ कई मिथक तोड़ दिए।
गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों में चार पदक जीतने वाली भारत की टेबल टेनिस खिलाड़ी मणिका बत्रा को यदि इन खेलों की पदक तालिका में अकेले रखा जाए तो उन्हें 18वां स्थान मिलता। मणिका ने गोल्ड कोस्ट में महिला एकल का स्वर्ण पदक, महिला टीम स्पर्धा का स्वर्ण, महिला युगल टीम में मौमा दास के साथ रजत पदक और जी. साथियान के साथ मिश्रित युगल में कांस्य पदक जीता। भारत की टेबल टेनिस टीम ने कुल सात पदक अपने नाम किये जिसमें चार पदक मणिका के हैं। मणिका इस तरह इन खेलों में सर्वाधिक चार पदक जीतने वाली सबसे सफल भारतीय खिलाड़ी बन गईं।
गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों में शानदार प्रदर्शन कर सुर्खियां बटोरने वाली मणिका बत्रा को उम्मीद है कि अब देश में टेबल टेनिस में क्रांति जरूर आएगी। 23 साल की इस खिलाड़ी ने राष्ट्रमंडल खेलों में अपनी सभी चार स्पर्धाओं में पदक जीते जिसमें महिला एकल और टीम चैम्पियनशिप के ऐतिहासिक स्वर्ण पदक भी शामिल हैं। इस उपलब्धि पर मणिका का कहना है कि चार पदक जीतना मेरे आत्मबल में जरूर इजाफा करेगा। उम्मीद करती हूं कि यह प्रदर्शन हमारे खेल को बैडमिंटन की राह पर ले जाने के लिए पर्याप्त साबित हो। अगर यह भारत में टेबल टेनिस को उस राह पर ले जाता है तो यह उपलब्धि मेरे लिए और अधिक महत्वपूर्ण होगी।
अपनी इस उपलब्धि के दौरान मणिका ने तीन बार की ओलम्पिक पदक विजेता और दुनिया की चौथे नम्बर की खिलाड़ी सिंगापुर की फेंग तियानवेई को दो बार हराया। फेंग को दो बार हराने के बारे में मनिका कहती हैं कि उसे दो बार हराना संतोषजनक रहा और ऐसा करने के लिए दोनों ही मैचों में मुझे अपना खेल बदलना पड़ा। इससे मेरे आत्मविश्वास में काफी इजाफा हुआ है। मनिका की विश्व रैंकिंग 58वीं है। एक अच्छी बात है कि भारतीय खिलाड़ी ऐसे खेलों में दस्तक देकर सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं जो भारत में कम ही खेले जाते हैं। ये खेल नये खिलाड़ियों के लिए भविष्य की राह खोल रहे हैं। इन नये खेलों में दमखम दिखाने वाले खिलाड़ियों में देश के लिए कुछ कर गुजरने का दमखम है। मैच के दौरान मनिका के नाखूनों में तिरंगे का अक्स कुछ यही बयां कर रहा था। भारत की यह बेटी इस खेल को वैश्विक मंच पर और शोहरत प्रदान करे यही देश का हर खेलप्रेमी चाहता है।

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