Monday, 23 April 2018

मध्य प्रदेश में रंग ला रही है संविदा हाकी प्रशिक्षकों की मेहनत


 अब प्रदेश की बेटियों से होगी महिला हाकी एकेडमी गुलजार
                                     श्रीप्रकाश शुक्ला
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा महिला हाकी के उत्थान की दिशा में किए गये कार्यों के नतीजे अब दिखने लगे हैं। 12 साल पहले जहां खोजने से भी प्रतिभाएं नहीं मिल रही थीं वहीं आज स्थिति बिल्कुल अलग है। अब सिर्फ ग्वालियर ही नहीं दमोह, मंदसौर, मुरैना, बालाघाट, नीमच, सिवनी, होशंगाबाद आदि जिलों के फीडर सेण्टरों से भी प्रतिभाएं निकल कर आ रही हैं। हम कह सकते हैं कि सरकार ने संविदा प्रशिक्षकों को बेशक उनका वाजिब हक न दिया हो लेकिन उनकी मेहनत रंग लाने लगी है। संविदा प्रशिक्षकों की लगन से तैयार हुई प्रतिभाशाली बालिकाओं की यह पौध अब मध्य प्रदेश महिला हाकी एकेडमी में रोपी जाएगी। मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग की मंशा है कि अब महिला हाकी एकेडमी में प्रदेश के फीडर सेण्टरों की बेटियों को ही अधिकाधिक मौका मिले। खेल विभाग के इन प्रयासों को अमलीजामा पहनाया जाए इससे पहले जरूरी है कि संविदा प्रशिक्षकों को नियमित कर फीडर सेण्टरों को और सुविधाएं मयस्सर कराई जाएं।
अब मध्य प्रदेश की बेटियां हाकी उठा चुकी हैं। उनकी प्रतिभा भी परवान चढ़ने लगी है। प्रदेश की हाकी बेटियों का कारवां आहिस्ते-आहिस्ते टीम इण्डिया की तरफ बढ़ रहा है। आज प्रदेश सरकार यदि खिलाड़ियों को सुविधाएं मुहैया करा रही है तो उसके अच्छे परिणाम भी मिलने लगे हैं। 12 साल पहले शून्य से शुरू हुआ महिला हाकी के उत्थान का सफर अब प्रदेश की बेटियों की सफलता का पैगाम साबित हो रहा है। 12 साल पहले देश की 23 प्रतिभाशाली खिलाड़ियों से ग्वालियर में खुली महिला हाकी एकेडमी आज हिन्दुस्तान की सर्वश्रेष्ठ हाकी पाठशाला है। ग्वालियर में जब यह एकेडमी खुली थी उस समय मध्य प्रदेश में हाकी बेटियों का अकाल सा था लेकिन अब ऐसी बात नहीं है। आज मध्य प्रदेश में इतनी प्रतिभाएं हैं कि हर आयु समूह की टीमें तैयार हो सकती हैं।
कभी मध्य प्रदेश की हाकी एकेडमी को चलाने के लिए प्रशिक्षकों को उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मणिपुर, मिजोरम, दिल्ली, झारखण्ड आदि राज्यों की हाकी बेटियों का मुंह ताकना पड़ता था लेकिन मध्य प्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा हर जिले में खोले गए फीडर सेण्टरों से स्थिति में आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिल रहा है। यद्यपि फीडर सेण्टरों की प्रतिभाओं को वह सारी सुविधाएं नहीं मिल रहीं जिनकी कि घोषणा की गई थी। दरअसल हाकी जैसे खेल में गरीब-मध्यवर्गीय परिवारों की बेटियां ही रुचि लेती हैं। ऐसे में यदि इन बेटियों को एक हाकी किट की बजाय खेल विभाग दो-दो किट मयस्सर कराने के साथ इन्हें प्रतिदिन कुछ पौष्टिक आहार भी प्रदान करे तो सच मानिए मध्य प्रदेश की बेटियां भी मादरेवतन का मान बढ़ा सकती हैं।
मध्य प्रदेश की प्रतिभाओं को खेलों की तरफ आकर्षित करने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की पहल पर प्रतिवर्ष ग्रीष्मकालीन खेल प्रशिक्षण शिविर के आयोजन के साथ दर्जनों हाकी के फीडर सेण्टर खोले गये लेकिन खेल विभाग की अनिच्छा के चलते इस महत्वाकांक्षी योजना का जो लाभ मिलना चाहिए वह नहीं मिल रहा। दरअसल, खेल वर्ष भर चलने वाली प्रक्रिया है। हाकी हो या दीगर खेल यदि विभाग के पास बारहमासी खेल नीति नहीं होगी तो बेहतर परिणाम कभी नहीं मिलेंगे। महिला हाकी और फीडर सेण्टरों की जहां तक बात है ग्वालियर के अविनाश भटनागर, संगीता दीक्षित, मंदसौर के अविनाश उपाध्याय, रवि कोपरगांवकर जैसे प्रशिक्षकों के जुनून के चलते ही प्रतिभाशाली हाकी बेटियों ने मैदानों की तरफ रुख किया है। इसमें विभाग के क्वार्डिनेटरों के योगदान को भी नकारा नहीं जा सकता।
सिवनी की क्वार्डिनेटर सुषमा डेहरिया का कहना है कि लड़कियों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है, जरूरत है उन्हें सही दिशा एवं अवसर प्रदान करने की। सुषमा कहती हैं कि सरकार के प्रयासों से अब मध्य प्रदेश हाकी का हब बन रहा है, इस खेल में अपार सम्भावनाएं हैं। इसलिए लड़कियों को हाकी में बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रयास किये जाने चाहिए। संविदा प्रशिक्षकों के साथ ही खेलों से जुड़े अन्य लोगों को नियमित किया जाना भी जरूरी है। सुषमा कहती हैं कि फीडर सेण्टरों में हाकी बेटियों को कुछ डाइट मिलना भी जरूरी है। मंदसौर के स्पोर्ट्स टीचर रवि कोपरगांवकर का भी कहना है कि मध्य प्रदेश की प्रतिभाओं में खेल कौशल की कमी नहीं है। यदि खिलाड़ियों को कुछ पौष्टिक आहार मिलने लगे तो हमारे खिलाड़ी किसी भी टीम से लोहा ले सकते हैं।
मध्य प्रदेश के फीडर सेण्टरों से निकलने वाली हाकी बेटियों के बारे में एकेडमी के मुख्य प्रशिक्षक परमजीत सिंह बरार का कहना है कि ग्वालियर को छोड़ दें तो दमोह, मंदसौर, मुरैना, बालाघाट, नीमच, सिवनी और होशंगाबाद के फीडर सेण्टरों से ट्रायल देने आई प्रतिभाओं ने जहां मुझे काफी प्रभावित किया है वहीं इनका शारीरिक दमखम सोचनीय बात है। हाकी में दमखम की जरूरत होती है। बेहतर होगा फीडर सेण्टरों के खिलाड़ियों को प्रतिदिन कुछ न कुछ पौष्टिक आहार दिया जाए। मध्य प्रदेश और अन्य प्रदेशों की प्रतिभाओं के प्रश्न पर श्री बरार का कहना है कि हाकी ही नहीं खेल कोई भी हो जब तक प्रतिस्पर्धा नहीं होगी परिणाम सकारात्मक नहीं मिल सकते। खुशी की बात है कि अब मध्य प्रदेश के पास भी प्रतिभाएं हैं, जिन्हें अवसर की दरकार है।
                               जबलपुर में हाकी का गिरता ग्राफ  
भारतीय महिला हाकी को छह अंतरराष्ट्रीय महिला खिलाड़ी देने वाले जबलपुर में महिला हाकी का गिरता ग्राफ चिन्ता की बात है। जबलपुर की जहां तक बात है यहां की अविनाश कौर सिद्धू, गीता पण्डित, कमलेश नागरत, आशा परांजपे, मधु यादव, विधु यादव ने भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया है। मधु यादव हाकी में एकमात्र मध्य प्रदेश की महिला अर्जुन अवार्डी हैं। स्वर्गीय एस.आर. यादव की बेटी मधु ने लम्बे समय तक मुल्क की महिला हाकी का गौरव बढ़ाया। वह 1982 एशियन गेम्स की स्वर्ण पदक विजेता टीम का सदस्य भी रहीं। मधु यादव के परिवार की जहां तक बात है इस यदुवंशी परिवार की रग-रग में हाकी समाई हुई है। मधु और विधु ने भारत का प्रतिनिधित्व किया तो इसी घर की बेटी वंदना यादव ने भारतीय विश्वविद्यालयीन हाकी में अपना कौशल दिखाया। छह अंतरराष्ट्रीय महिला हाकी खिलाड़ी देने वाले जबलपुर की गीता पंडित, कमलेश नागरत तथा आशा परांजपे भारत छोड़ विदेश जा बसी हैं। संस्कारधानी जबलपुर में हाकी का गिरता ग्राफ चिन्ता की ही बात है।


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