वाह! तीन माह में सात स्वर्णिम निशाने
श्रीप्रकाश शुक्ला
तीन माह में मनमोहिनी मनु भाकर के सात अंतरराष्ट्रीय स्वर्णिम निशाने
न केवल हर भारतीय का मन पुलकित करते हैं बल्कि इस बात का संकेत देते हैं कि आने
वाला वैश्विक खेल मंच हिन्दुस्तानियों की बाट जोह रहा है। जिस देश में खेल
संस्कृति का पूर्णतः अभाव नजर आता हो, वहां 16 साल की उम्र में किसी भारतीय बेटी का
ऐसा कमाल कल्पना से परे लगता है। मनमोहिनी मनु अपने लिए कोई लक्ष्य तय नहीं करती
बल्कि तकनीक से काम लेती है। सीनियर और जूनियर विश्व कप में स्वर्णिम सफलता से
आगाज करने वाली गोरिया गांव की इस बेटी का आज हर कोई मुरीद है। आस्ट्रेलिया के
गोल्ड कोस्ट में हासिल स्वर्णिम सफलता कोई तुक्का नहीं है, बल्कि यह इस बेटी की
अदम्य इच्छाशक्ति का परिचायक है। मनु की तो यह अभी शुरुआत है।
दो साल पहले तक किसी ने सोचा भी न था कि झज्जर
के गोरिया गांव की मनु ऐसे निशाने साधेगी कि सोने की बरसात होने लगेगी। हां, यह
बेटी जन्मजात खिलाड़ी तो थी। कभी बॉक्सिंग में, कभी एथलेटिक्स, कभी टेनिस तो कभी
ताइक्वांडो में हाथ आजमाती रही। कभी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के नाम मनु से
प्रेरित होकर मां सुमेधा भाकर ने जब बेटी का नाम मनु रखा था तो वीरांगना के सपने
जरूर संजोये होंगे। मनु की मां सुमेधा स्वयं जीवट किस्म की महिला हैं। परम्परा के
चलते छोटी उम्र में शादी होने से वह अपने सपने तो पूरे न कर सकीं लेकिन उन सपनों
को बेटी मनु ने पंख जरूर दिये। मनु की मां ने ससुराल आकर परम्परागत समाज से लोहा
लेकर आगे की पढ़ाई की। जीवटता देखिये कि तड़के चार बजे मनु पैदा हुई और सुबह दस
बजे मां सुमेधा पेपर देने गईं। उन्होंने परीक्षकों से बड़ी मिन्नतें करके परीक्षा
दी।
यह वही झज्जर की मनमोहिनी मनु है, जिसे वर्ष
2017 में झज्जर के प्रशासन ने विदेश से पिस्तौल मंगवाने हेतु लाइसेंस देने में ढाई
महीने लगाये थे। मीडिया में मामला उछलने के बाद एक हफ्ते में लाइसेंस मिला। यह वही
झज्जर है जहां अब तक लिंगानुपात का अंतर हरियाणा में सबसे ज्यादा रहा है। यही वजह
है जब वह गोल्ड कोस्ट में मेडल जीतने की तैयारी में थी तो मां ने कहा- बेटी याद
रहे तुम्हें बाकी लड़कियों के लिये भी खेल व पढ़ाई की राह खोलनी है। मनु का सौभाग्य
यह था कि उसे जीवट के धनी मां-बाप मिले। पिता ने उसके लिये मर्चेंट नैवी की नौकरी
छोड़ दी तो कुछ खेल मनु को विरासत में भी मिले। मनु के दादा भारतीय सेना में थे और
कुश्ती के लिये क्षेत्र में विशिष्ट पहचान रखते थे। मगर शूटिंग में उनके परिवार से
कोई नहीं था।
शूटिंग एक महंगा खेल है, जिसके लिये एक साल में
माता-पिता ने दस लाख रुपये तक खर्च किये। एक पिस्तौल ही दो लाख तक की आती है। आजकल
मनु के माता-पिता एक स्कूल के जरिये गृहस्थी चला रहे हैं। अंग्रेजी माध्यम के इस सीबीएसई बोर्ड के
स्कूल में तीरंदाजी, कबड्डी और बाक्सिंग आदि खेलों की सुविधाएं उपलब्ध हैं। खास
बात यह है कि यहां झज्जर के आसपास की सैकड़ों खेल प्रतिभाओं को सीखने का मौका मिल
रहा है। हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए यदि इस गांव से कुछ और
मनु जल्दी ही करिश्मा दिखाती नजर आएं। गोल्ड कोस्ट में सोने पर निशाना साधने वाली मनु
की झोली में पिछले एक साल में प्रतिष्ठित स्पर्धाओं के दस स्वर्ण पदक आए हैं, सात अंतरराष्ट्रीय
स्वर्ण पदक तो इस बेटी ने तीन महीने में ही जीत दिखाए हैं। अब से दो साल पहले तक
जिस लड़की ने कभी पिस्तौल नहीं उठायी हो, वह तमाम अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में
सोने पर निशाना साधने लगे तो आश्चर्य होता है। मनु की किस्मत यह थी कि उसके
स्कूल के पास शूटिंग रेंज उपलब्ध थी। स्कूल में जब पहली बार मनु ने पिस्तौल उठायी
तो दस में से दस निशाने सटीक लगाए। उसके शिक्षक व कोच हैरत में पड़ गये। फिर इसके
बाद तो मनु ने पीछे
मुड़कर ही नहीं देखा। पिता नौकरी पर न जाकर उसे शूटिंग के लिये जगह-जगह लेकर जाते।
सोलह साल की होने के कारण वह वाहन नहीं चला सकती थी। सार्वजनिक वाहन में पिस्तौल
लेकर नहीं चल सकती थी, यही वजह रही कि पिता साये की तरह उसके साथ रहे।
होनहार बिरवान के होत चीकने पात की कहावत को
चरितार्थ करने वाली मनु बचपन से ही पढ़ने-लिखने और खेल में उम्मीद
जगाती नजर आती थी। वर्ष 2017 में हुई नेशनल शूटिंग चैम्पियनशिप में तो उसने मेडलों
की बरसात कर दी थी। तब उसने कुल 15 मेडल जीते थे। मनु दस मीटर एयर
पिस्टल श्रेणी में राष्ट्रीय चैम्पियन है। बीते साल उसने हिना सिद्धू को हराकर स्वर्ण पदक जीता था।
मैक्सिको में सम्पन्न इंटरनेशनल शूटिंग स्पोर्ट्स फेडरेशन में मनु ने दो स्वर्ण
पदक जीतकर देश का गौरव बढ़ाया। पहला स्वर्ण 10 मीटर एयर पिस्टल महिला वर्ग तो
दूसरा मिश्रित वर्ग में जीता। झज्जर के यूनिवर्सल स्कूल में ग्यारहवीं की छात्रा
मनु पढ़ाई में भी अव्वल है। निशानेबाजी के साथ मनु मेडिकल की पढ़ाई कर डॉक्टर बनने
का सपना भी देख रही है। उसकी पढ़ाई में स्कूल उसे पूरा सहयोग करता है मगर धीरे-धीरे
उसे एहसास हो चला कि शूटिंग और पढ़ाई साथ-साथ चलाना इतना आसान नहीं है। अभी तो मनु
को बहुत दूर और ऊंचाई तक जाना है। इस साल उसे यूथ ओलम्पिक
में भाग लेना है। फिर उसका सारा ध्यान 2020 के टोक्यो ओलम्पिक पर रहेगा।
अपनी बेटी की जीत से गौरवान्वित मनु के पिता
रामकिशन भाकर कहते हैं कि आस्ट्रेलिया जाने से पहले ही हमें उम्मीद थी कि मनु जीतेगी
क्योंकि वह कभी किसी टूर्नामेंट से खाली हाथ नहीं लौटी। अपने पहले ही कॉमनवेल्थ
गेम्स में गोल्ड जीतने वाली युवा निशानेबाज मनु भाकर के पिता अपनी 16 साल की बेटी
की सफलता से बेहद खुश और गर्व महसूस कर रहे हैं। श्री भाकर कहते हैं कि उन्होंने आस्ट्रेलिया
जाने से पहले मैंने मनु से कहा था कि खेल में हार-जीत होती रहती है। बस अच्छे से
खेलना और खेल का आनंद लेना। मुझे पता है कि मनु कभी दबाव नहीं लेती और हमेशा मस्ती
में खेलती है। वह कहती है- हार गए तो हार गए, जीत गए तो जीत गए। बस अच्छे से खेलना
है। वह हर शॉट पर फोकस करती है न कि पूरे गेम पर। वह अगला शॉट बेहतर करने के इरादे
से खेलती है। मनु को उसके स्कूल के सहपाठी ऑलराउंडर कहते हैं। वह पढ़ाई के साथ-साथ
तमाम खेलों में भी हाथ आजमाती है। घर पर मां के अनुशासन में वह मानसिक एकाग्रता के
लिये ध्यान व योग का सहारा लेती है। देश का मन जीतने वाली मनु से हमें ढेर सारी
उम्मीदें हैं। काश यह बेटी एशियाई खेलों के साथ टोक्यो ओलम्पिक में भी स्वर्णिम
सफलता हासिल कर मादरेवतन का मान बढ़ाए।
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