वाह! तीन माह में सात स्वर्णिम निशाने
श्रीप्रकाश शुक्ला



यह वही झज्जर की मनमोहिनी मनु है, जिसे वर्ष
2017 में झज्जर के प्रशासन ने विदेश से पिस्तौल मंगवाने हेतु लाइसेंस देने में ढाई
महीने लगाये थे। मीडिया में मामला उछलने के बाद एक हफ्ते में लाइसेंस मिला। यह वही
झज्जर है जहां अब तक लिंगानुपात का अंतर हरियाणा में सबसे ज्यादा रहा है। यही वजह
है जब वह गोल्ड कोस्ट में मेडल जीतने की तैयारी में थी तो मां ने कहा- बेटी याद
रहे तुम्हें बाकी लड़कियों के लिये भी खेल व पढ़ाई की राह खोलनी है। मनु का सौभाग्य
यह था कि उसे जीवट के धनी मां-बाप मिले। पिता ने उसके लिये मर्चेंट नैवी की नौकरी
छोड़ दी तो कुछ खेल मनु को विरासत में भी मिले। मनु के दादा भारतीय सेना में थे और
कुश्ती के लिये क्षेत्र में विशिष्ट पहचान रखते थे। मगर शूटिंग में उनके परिवार से
कोई नहीं था।
शूटिंग एक महंगा खेल है, जिसके लिये एक साल में
माता-पिता ने दस लाख रुपये तक खर्च किये। एक पिस्तौल ही दो लाख तक की आती है। आजकल
मनु के माता-पिता एक स्कूल के जरिये गृहस्थी चला रहे हैं। अंग्रेजी माध्यम के इस सीबीएसई बोर्ड के
स्कूल में तीरंदाजी, कबड्डी और बाक्सिंग आदि खेलों की सुविधाएं उपलब्ध हैं। खास
बात यह है कि यहां झज्जर के आसपास की सैकड़ों खेल प्रतिभाओं को सीखने का मौका मिल
रहा है। हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए यदि इस गांव से कुछ और
मनु जल्दी ही करिश्मा दिखाती नजर आएं। गोल्ड कोस्ट में सोने पर निशाना साधने वाली मनु
की झोली में पिछले एक साल में प्रतिष्ठित स्पर्धाओं के दस स्वर्ण पदक आए हैं, सात अंतरराष्ट्रीय
स्वर्ण पदक तो इस बेटी ने तीन महीने में ही जीत दिखाए हैं। अब से दो साल पहले तक
जिस लड़की ने कभी पिस्तौल नहीं उठायी हो, वह तमाम अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में
सोने पर निशाना साधने लगे तो आश्चर्य होता है। मनु की किस्मत यह थी कि उसके
स्कूल के पास शूटिंग रेंज उपलब्ध थी। स्कूल में जब पहली बार मनु ने पिस्तौल उठायी
तो दस में से दस निशाने सटीक लगाए। उसके शिक्षक व कोच हैरत में पड़ गये। फिर इसके
बाद तो मनु ने पीछे
मुड़कर ही नहीं देखा। पिता नौकरी पर न जाकर उसे शूटिंग के लिये जगह-जगह लेकर जाते।
सोलह साल की होने के कारण वह वाहन नहीं चला सकती थी। सार्वजनिक वाहन में पिस्तौल
लेकर नहीं चल सकती थी, यही वजह रही कि पिता साये की तरह उसके साथ रहे।

अपनी बेटी की जीत से गौरवान्वित मनु के पिता
रामकिशन भाकर कहते हैं कि आस्ट्रेलिया जाने से पहले ही हमें उम्मीद थी कि मनु जीतेगी
क्योंकि वह कभी किसी टूर्नामेंट से खाली हाथ नहीं लौटी। अपने पहले ही कॉमनवेल्थ
गेम्स में गोल्ड जीतने वाली युवा निशानेबाज मनु भाकर के पिता अपनी 16 साल की बेटी
की सफलता से बेहद खुश और गर्व महसूस कर रहे हैं। श्री भाकर कहते हैं कि उन्होंने आस्ट्रेलिया
जाने से पहले मैंने मनु से कहा था कि खेल में हार-जीत होती रहती है। बस अच्छे से
खेलना और खेल का आनंद लेना। मुझे पता है कि मनु कभी दबाव नहीं लेती और हमेशा मस्ती
में खेलती है। वह कहती है- हार गए तो हार गए, जीत गए तो जीत गए। बस अच्छे से खेलना
है। वह हर शॉट पर फोकस करती है न कि पूरे गेम पर। वह अगला शॉट बेहतर करने के इरादे
से खेलती है। मनु को उसके स्कूल के सहपाठी ऑलराउंडर कहते हैं। वह पढ़ाई के साथ-साथ
तमाम खेलों में भी हाथ आजमाती है। घर पर मां के अनुशासन में वह मानसिक एकाग्रता के
लिये ध्यान व योग का सहारा लेती है। देश का मन जीतने वाली मनु से हमें ढेर सारी
उम्मीदें हैं। काश यह बेटी एशियाई खेलों के साथ टोक्यो ओलम्पिक में भी स्वर्णिम
सफलता हासिल कर मादरेवतन का मान बढ़ाए।
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