Tuesday, 2 August 2016

डोपिंगः बात अकेले नरसिंह की नहीं


वाराणसी के नरसिंह पंचम यादव पर लगे डोप के कलंक को बेशक राष्ट्रीय डोपिंग निगरानी एजेंसी (नाडा) ने साजिश करार दिया हो लेकिन भारतीय खिलाड़ी शक्तिवर्धक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं, इसे मिथ्या नहीं माना जा सकता। यदि इस कृत्य को देश से समूल नष्ट करना है तो भारतीय खेल तंत्र को खेलों में अनाप-शनाप पैसा खर्च करने से पहले खिलाड़ियों में यह भाव पैदा करना होगा कि वे खेलों में श्रेष्ठता को पैसे और शोहरत के ऊपर तरजीह दें। यह शर्मनाक ही नहीं चिन्ता की बात है कि 2009 में नाडा के अभ्युदय के बाद से हमारे 687 एथलीट डोपिंग में पकड़े जाने के बाद प्रतिबंधित किए जा चुके हैं। यह संख्या और अधिक होती यदि नाडा की छापामारी में भारतीय खेल प्राधिकरण के विभिन्न सेण्टरों से खिलाड़ी न भागे होते। भारतीय खिलाड़ियों में डोपिंग के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और हालात खतरनाक हद तक पहुंच चुके हैं। भारत का खेल मंत्रालय भी मानता है कि देश में डोपिंग को लेकर स्थिति बहुत खराब हो चुकी है। सबसे खराब बात तो यह है कि इनमें जूनियर लेवल पर खेलने वाले खिलाड़ी भी शामिल हैं।
अंतरराष्ट्रीय खेल मंचों पर जाने से पहले हर बार भारतीय खिलाड़ियों का डोपिंग में फंसना चिन्ता की बात भले ही हो लेकिन हर बार खेलों से जुड़े अधिकारी, खेल संघों और महासंघों के खेलनहार तथा भारतीय खेल प्राधिकरण के आला अफसर इस डर से खिलाड़ियों के नाम और उनकी संख्या उजागर नहीं करते कि कहीं गाज उनके ऊपर ही न गिर जाए। एथलेटिक्स, वेटलिफ्टिंग और पहलवानी जैसे खेलों में खेलकौशल के साथ-साथ ताकत की बड़ी भूमिका होती है, इसी पूर्ति की खातिर ही हमारे खिलाड़ी शक्तिवर्धक दवाओं का बार-बार इस्तेमाल करते हैं। विदेशी प्रशिक्षक हमारे यहां के खिलाड़ियों को ऐसा करने को प्रोत्साहित करते हैं, ऐसा रूसी प्रशिक्षकों पर सिद्ध भी हो चुका है। हालिया मामलों को ही लें तो भारत से ओलम्पिक दल में शामिल पहलवान नरसिंह के अलावा गोला फेंक खिलाड़ी इंद्रजीत सिंह भी डोप टेस्ट में पकड़े गये। इनके साथ ही उत्तर प्रदेश के तीन नेशनल खिलाड़ियों सहित एक और पहलवान पर डोपिंग का कलंक लगा। अकेले पहलवान नरसिंह ने ही नहीं गोला फेंक खिलाड़ी इन्द्रजीत ने भी इसे साजिश करार दिया था। हालांकि केवल नरसिंह को ही नाडा की डोपिंगरोधी संहिता की धारा 10.4 का लाभ मिला, जिसमें इस तरह की छूट साजिश के सम्बन्ध में देने का उल्लेख है।
सवाल यह उठता है कि ऐसी साजिशें हमारे खिलाड़ियों में ही क्यों बार-बार मुमकिन हो पा रही हैं? क्या इस पूरे प्रकरण में इस तथ्य की अनदेखी हो सकती है कि नरसिंह के भोजन में प्रतिबंधित दवा मिलाने की साजिश भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) की कैंटीन में फलीभूत हुई। नरसिंह के साथ जो कुछ हुआ उससे एक बार फिर यह सिद्ध हो गया कि ताकत बढ़ाने वाली प्रतिबंधित दवाएं खिलाड़ियों और उनके कोचों की पहुंच में हैं, यानि भारतीय खेल प्राधिकरण के विभिन्न सेण्टरों के पास यह गोरखधंधा फलीभूत हो चुका है। 2010 में जब नाडा ने भारतीय खेल प्राधिकरण के विभिन्न सेण्टरों पर छापामारी की थी तब टेस्ट से बचने के लिए खिलाड़ी न केवल भागे थे बल्कि वहां के मेडिकल स्टोरों से बड़ी मात्रा में प्रतिबंधित दवाएं भी बरामद हुई थीं। 
डोपिंग का यह दोष भारत ही नहीं पूरी दुनिया को अपने आगोश में ले चुका है। रूस के अधिकांश खिलाड़ियों पर ओलम्पिक में शिरकत करने पर लगी रोक इसी बात का प्रमाण है। रूसी दल के दर्जनों खिलाड़ी डोप टेस्ट में पकड़े गए और उनका रियो पहुंचने का सपना चूर-चूर हो गया। आज खिलाड़ियों के अलावा उनके प्रशिक्षक भी जानते हैं कि कौन-कौन सी दवाएं शक्ति बढ़ाने में कारगर हैं। ईमामदार खिलाड़ी हमेशा इनके सेवन से बचते हैं लेकिन बेईमान खिलाड़ी और प्रशिक्षक प्रदर्शन सुधारने तथा पदक तालिका में स्थान बनाने के मकसद से नए-नए तरीकों से इन दवाओं का इस्तेमाल करते हैं। असल में, वर्ष 2009 में देश में नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी (नाडा) का इस मकसद से गठन किया गया था कि विदेशी स्पर्धाओं में हिस्सा लेने जा रहे खिलाड़ियों का वह डोप टेस्ट करे ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी भारतीय खिलाड़ी विदेशी जमीन पर डोप का आरोपी साबित न हो और देश बदनामी से बच सके। नाडा द्वारा अब तक हजारों खिलाड़ियों का डोप टेस्ट लिया जा चुका है, जिसमें 60 फीसदी से अधिक खिलाड़ी डोपिंग में पकड़े गये और उन पर प्रतिबंध भी लगाया गया। हैरत ही नहीं चिन्ता की बात है कि पिछले दो साल में कई स्कूल नेशनल खिलाड़ी भी डोपिंग में पकड़े जा चुके हैं, यानि भारत में यह दोष छोटे स्तर तक पहुंच चुका है। एंटी डोपिंग डिसिपिलिनरी पैनल (एडीडीपी) द्वारा प्रतिबंधित कई खिलाड़ी प्रतिबंध की अवधि समाप्ति के बाद पुनः मैदान में आ उतरे हैं, लेकिन अब वे शक्तिवर्धक दवाएं नहीं लेंगे इसकी कोई गारण्टी नहीं है।
खेलों के नाम पर भारत में जो हो रहा है उसकी तुलना पूर्वी जर्मनी के शासन-प्रायोजित कार्यक्रम से तो नहीं की जा सकती, जिसमें खुद सरकार उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए खिलाड़ियों, उनके प्रशिक्षक और खेल संगठनों के अधिकारियों को डोपिंग के लिए प्रेरित करती रही है। खिलाड़ियों का दोष इतना भर नहीं है कि प्रतिबंधित शक्तिवर्धक दवाइयां लेकर वे व्यक्तिगत प्रदर्शन सुधारने की कोशिश करते हैं, बल्कि उनका अपराध यह है कि इस तरह वे जीत के असल हकदार को शोहरत से वंचित करते हैं। मामला सात बार के टूअर डि फ्रांस का खिताब जीतने और कैंसर को मात देने वाले मशहूर साइकिलिस्ट लांस ऑर्मस्ट्रांग का हो, जिन्होंने आखिरकार स्वीकार ही लिया था कि उन्होंने प्रतिबंधित दवाओं का सेवन कर ही खिताबी सफलताएं हासिल कीं। एथलेटिक्स, वेटलिफ्टिंग ही नहीं अन्य खेलों में भी शक्तिवर्धक दवाएं लेने की कोशिशें हुई हैं। रूसी टेनिस सनसनी मारिया शारापोवा को ही लें जो 26 जनवरी, 2016 को ऑस्ट्रेलियाई ओपन के दौरान डोपिंग में पकड़ी गई। शारापोवा का कहना था कि डायबिटीज के कारण वह 2006 से ही मेल्डोनियम दवा का सेवन कर रही थी। यही वजह है कि पांच बार की ग्रैंड स्लैम चैम्पियन रह चुकी इस खिलाड़ी को तत्काल प्रभाव से निलम्बित कर दिया गया।
शक्तिवर्धक दवाओं के सहारे खेलों में अपना प्रदर्शन सुधारने की ऐसी नापाक कोशिश करते अब तक कई क्रिकेटर भी पकड़े जा चुके हैं। कुछ वर्ष पहले शेन वॉर्न का डोपिंग में फंसना चर्चा का विषय बना था, तो भारतीय क्रिकेटर मनिन्दर सिंह पर भी संदेह की जद में आए थे। भारतीय मध्यम दूरी की धाविका सुनीता रानी को नेंड्रोलॉन नामक दवा के सेवन के संदेह में बुसान एशियाड के दो पदकों की वापसी की जलालत सहनी पड़ी थी तो डिस्कस थ्रोवर सीमा अंतिल भी डोप टेस्ट में फंस चुकी है। प्रतिबंध की अवधि पूरी कर सीमा अंतलि पूनिया रियो ओलम्पिक में देश का प्रतिनिधित्व करेंगी। आज जिस तरह डोपिंग के मामले सामने आ रहे हैं, इसके सेवन के नए-नए तरीके भी ईजाद हो रहे हैं। पिछले कुछ दशकों से किसी बीमारी के इलाज या उससे बचाव के लिए जीन थेरेपी इस्तेमाल में लाई जा रही है। एक तरीका ब्लड डोपिंग का भी है। डोपिंग को लेकर जिस तरह भारत बार-बार शर्मसार हो रहा है उसे देखते हुए भारतीय खेल प्राधिकरण के साथ-साथ खेल संगठनों को भी इसके पुख्ता इंतजाम करने होंगे कि खिलाड़ियों के भोजन-पानी और दवा आदि से जुड़ी चीजों में कोई बाहरी मिलावट न हो। झूठे नाम और शोहरत से बेहतर है कि हमारे खिलाड़ी ईमानदारी से सद्भावना की अलख जगाएं ताकि मादरेवतन की साख को बट्टा न लगे।


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