Wednesday 11 February 2015

सिटी नहीं गांव बनें स्मार्ट

भारत गांवों का देश है। यहां के 5,93,731 गांवों में 72.2 फीसदी आबादी रहती है। मोदी सरकार आमजन को 100 स्मॉर्ट सिटी का सब्जबाग दिखा रही है। सरकार की मंशा जो भी हो पर इससे ग्रामीण पलायन बढ़ेगा। लोग फिर गांव और खेती-बाड़ी छोड़ेंगे। बेशक प्रधानमंत्री मोदी की अनेक महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में स्मार्ट सिटी प्रमुख हो पर समय को देखते हुए यदि सरकार यही पैसा गांवों के समुन्नत विकास यानी हर गांव को सड़क, शिक्षा और बिजली की सुविधा पर खर्च कर दे तो ग्रामीण जीवन खुशहाल हो सकता है। ग्रामीण पलायन से जहां शहरों पर बोझ बढ़ा है वहीं नई-नई समस्याएं भी पैदा हुई हैं।
मोदी सरकार देश में 100 स्मार्ट सिटी यानी ऐसे शहर बनाने जा रही है, जो चमचमाती सड़कों के साथ हरियाली, अपशिष्ट प्रबंधन की सुदृढ़ व्यवस्था, 24 घण्टे बिजली, पानी  और इन सबके साथ आधुनिकतम सूचना व संचार तकनीकी क्षमता से लैश होंगे। दूसरे शब्दों में कहें तो जीवनदाता किसान तो रोएगा पर  स्मार्ट सिटी के बाशिंदों को यह अहसास जरूर होगा कि वे सात सितारा जीवनशैली का आनंद उठा रहे हैं।  देश के नागरिक तरह-तरह के करों का भुगतान करते हैं। चुनावों में इस उम्मीद से मतदान करते हैं कि उनका जीवनस्तर थोड़ा और सुधरे। विदेशी शहरों की साफ-सफाई, यातायात व्यवस्था, सुन्दरता देखकर वहां के नागरिकों की किस्मत पर रश्क करते हैं कि हमारे देश में ऐसे शहर क्यों नहीं हैं। आम चुनावों में देश की जनता ने मोदी को भारी बहुमत अच्छे दिनों की उम्मीद पर दिया था, इसमें अच्छे  शहरों की लालसा भी दबी हो सकती है।
शिव की नगरी वाराणसी को जापान के क्योटो में तब्दील करने का सपना मोदीजी ने दिखाया है। पहले भी देश के कई शहरों को शंघाई, टोक्यो, लंदन न जाने किन-किन शहरों में बदलने का सपना राजनीतिज्ञ दिखा चुके हैं। शहरी सौंदर्यीकरण और यातायात व्यवस्था सुधारने के लिए हर साल सरकारी खर्च पर बड़े-बड़े अध्ययन दल विदेश दौरे करते रहे हैं। गर्मी  में यूरोपीय शहर तो सर्दियों में आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की यात्राएं सिर्फ पैसे का ही दुरुपयोग हैं। मोदी सरकार को सोचना होगा कि विभिन्न अध्ययनों का भारत के शहरों को क्या लाभ मिला। स्मार्ट सिटी परियोजना में कोई नई बात नहीं है। देश की सौ स्मार्ट सिटी में पहला नम्बर उस चंडीगढ़ का है, जोकि पहले से ही स्मार्ट है। उत्तरप्रदेश में नोएडा सौ स्मार्ट सिटी में शुमार है। स्मार्ट सिटी का हिन्दी तजुर्मा आधुनिक शहर होगा या आकर्षक शहर या सुन्दर शहर, नहीं  मालूम। शायद मोदी सरकार को इस अनुवाद की जरूरत भी न हो।
देखा जाए तो 1990 के दशक में जब भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया भारत में शुरू हुई तो समाज में नवधनाढ्यों, उच्च मध्यम वर्ग, निम्न मध्यमवर्ग, निम्न वर्ग, गरीबी रेखा से नीचे और गरीबी रेखा के ऊपर बसे लोगों के रूप में आर्थिक भेदभाव बढ़ा। इस बढ़ती आर्थिक खाई के कारण इण्डिया और भारत जैसे जुमले गढ़े गए। गांवों में बसता भारत बिजली संचालित सीढ़ियों से ऊपर-नीचे जाने की कला नहीं जानता। इण्डिया, जो शहरों में रहता है, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से आजीविका कमाकर, उसी के उत्पादों का उपभोग करता है। वह हायर एण्ड फायर की बोली समझता है, उसी से डरता भी है। देश में सौ स्मार्ट सिटी बन जाएंगी तो इण्डिया वालों का दबदबा अधिक होगा और भारत अपने आप को थोड़ा और हीन महसूस करने लगेगा। बेशक, सबका साथ, सबका विकास चाहने वाले नरेन्द्र मोदी सामाजिक भेदभाव नहीं बढ़ाना चाहते हों, पर आमजन को जापान, जर्मनी, स्वीडन, इजरायल, अमरीका, इंग्लैण्ड, हांगकांग, नीदरलैंड्स की उन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से क्या मिलेगा, जो भारत में स्मार्ट सिटी बनाने और बसाने के लिए कुछ हजार करोड़ खर्च करने की इच्छुक हैं। देश में सौ नहीं हजारों स्मार्ट सिटी बनें लेकिन गांवों का भी उसी तरह मुकम्मल विकास हो ताकि अंतरिक्ष से कुछ शहर ही नहीं सम्पूर्ण भारत सुन्दर नजर आए। देश के शहरों को स्मार्ट बनाने का काम तो सिंधु घाटी सभ्यता के समय से ही चल रहा है। अफसोस ऐतिहासिक विरासत की उपेक्षा की हमारी गलत आदत ने कई शहरों को विकृत रूप दे दिया है।
देश में स्मार्ट सिटी का राग अलापने से पहले आदर्श गांव का हो-हल्ला तो घर-घर शौचालय बनाने की बातें हुर्इं, पर  टके भर का सवाल यह है कि 100 स्मार्ट सिटी और कुछ सौ आदर्श गांवों से क्या वाकई उन जरूरतमंद लोगों की उदरपूर्ति हो जाएगी जोकि पेट की खातिर शहरों को पलायन करते हैं। हर घर में शौचालय भी हो सकते हैं, पर जब सरकार शहरी सीवर व्यवस्था को आज तक पटरी पर नहीं ला सकी  तो भला गांवों का मल-मूत्र कहां जाएगा। देश को स्मार्टनेस का पाठ पढ़ाने की बजाय मोदी सरकार को नागरिक बोध में सुधार के प्रयास करने चाहिए। यह शर्म की बात है कि आजादी के 68 साल बाद भी सरकार को अपनी जनता जनार्दन को विज्ञापनों के जरिए सिखाना पड़ता है कि सड़क के किस ओर चलें, कैसे चलें। कहीं भी कचरा न फैलाएं। खुले में मल-मूत्र का त्याग न करें। चुनावों के समय अवैध बस्तियों को वैधता दी जाती है ताकि वोट मिल सकें। इन बस्तियों से शहर की व्यवस्था में किस तरह की अड़चन हो रही है, उसे नहीं देखा जाता। कहीं गटर खुला होता है तो कहीं बिजली के तार लटकते  दिखते हैं। यातायात का हाल बेहाल है। एक बारिश में ही जीवन थम जाता है। देश के हर छोटे-बड़े शहर और कस्बे का यही हाल है। इन शहरों  के आसपास ही मोदी सरकार के स्वप्न को साकार करती स्मार्ट सिटी बनेंगी, जो टाट में मखमली पैबंद की तरह ही दिखेंगी। क्या बेहतर नहीं होता कि नयी स्मार्ट सिटी बनाने में अरबों रुपए खर्च करने की जगह पहले से बसे शहरों को सुनियोजित किया जाता। नागरिकों को उनका दायित्व समझाते हुए शैक्षणिक संस्थाओं के माध्यम से बच्चों में नागरिक बोध विकसित किया जाता।
जब भारत की जनता, प्रशासन और सरकार सभी नियम-कानून का पालन करेंगे, अपने नागरिक दायित्वों को निभाएंगे, जनता को मूलभूत सुविधाओं के साथ-साथ सामान्य शहरों के लोगों की तरह अत्याधुनिक तकनीकी सुविधाएं मयस्सर होंगी, तो अलग से स्मार्ट सिटी बनाने की जरूरत ही नहीं होगी। मोदी सरकार को यह सोचना होगा कि देश के विकास का रास्ता गांवों से होकर ही जाता है। ग्रामीण शहरों की ओर पलायन न करें इसके लिए मोदी सरकार को खेती-बाड़ी में नई तकनीक का इस्तेमाल करने के साथ ही हर घर में दुधारू पशुओं की व्यवस्था के साथ ही हर गांव को सड़कों से जोड़ना होगा। गांवों की माली हालत सुधारने के लिए बिजली-पानी और शिक्षा के साथ ही किसानों को उनकी उपज की गारंटी और उद्योगपतियों को ब्लॉक स्तर पर उद्योग-धंधे लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। कोई भी उद्योगपति ग्रामीण क्षेत्र में तभी उद्योग-धंधे लगाएगा जब सरकार उन्हें भयमुक्त वातावरण और कम से कम पांच साल तक हर कर में रियायत देगी। गांवों की किस्मत बदलने के लिए सरकार को मजबूत इच्छाशक्ति दिखानी होगी। उम्मीद है कि मोदी सरकार स्मार्ट सिटी के बजाय समृद्ध भारत की तरफ जरूर ध्यान देगी।
-डॉ. वीडी अग्रवाल

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