Saturday 20 September 2014

खिलखिलाते खिलाड़ियों का प्रदेश

देश में खेलों का आईना बना मध्यप्रदेश
मुसाफिर वह है जिसका हर कदम मंजिल की चाहत हो,
मुसाफिर वह नहीं जो दो कदम चल कर के थक जाए।
समय बदला, खिलाड़ी खिलखिलाए और मध्य प्रदेश सारे मुल्क का खेल आईना बन  गया। खिलाड़ियों के प्रोत्साहन की दिशा में कांग्रेस शासन में खेल मंत्री रहे मुकेश नायक ने जो सपना खेलों के उत्थान का देखा था उसे मध्य प्रदेश में अमलीजामा पहनाने का काम शिवराज सरकार ने किया है। मध्य प्रदेश में खेलों के कायाकल्प की वह दिन-तारीख आज भी मेरे जेहन में है। जिला खेल परिसर कम्पू में 31 मार्च, 2006 को तत्कालीन खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने कई घोषणाएं की थीं। उस समय उनकी कही बातों पर यकीन नहीं हुआ था, पर आज खेलों में मध्य प्रदेश जिस मुकाम पर है उसका सारा श्रेय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और ग्वालियर की बिटिया यशोधरा राजे सिंधिया को ही जाता है। आज मध्य प्रदेश खेलों का विकासशील राज्य ही नहीं बल्कि मुल्क का खेल आईना है। शिवराज सरकार ने खेलों के उत्थान के लिए जो पौने दो अरब का बजट मुहैया कराया उससे खिलाड़ियों को प्रोत्साहन तो मिला ही राज्य ने खेल अधोसंरचना के क्षेत्र में भी मील का पत्थर स्थापित कर दिया है। बात खेल एकेडमियों की हो या मुकम्मल क्रीड़ांगनों की, इसका लाभ सिर्फ मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि समूचे देश के खिलाड़ियों को मिल रहा है। सच कहें तो खेलों में जो नजीर मध्यप्रदेश ने पेश की उसका अन्य राज्यों में बेहद अभाव है। मध्यप्रदेश आज सुधारवादी और खिलाड़ी हितैषी दृष्टिकोण लेकर चल रहा है, जिसका लाभ मध्यप्रदेश ही नहीं देश के दूसरे राज्यों की प्रतिभाएं भी उठा रही हैं। प्रदर्शन की दृष्टि से आज देश में हरियाणा बेशक अव्वल हो पर सुविधाओं में मध्य प्रदेश का कोई जवाब नहीं है।
परिवर्तन प्रकृति का नियम ही नहीं मनुष्य के लिए एक चुनौती भी है। जो चुनौतियों से पार पाता है वही सिकंदर कहलाता है। मध्यप्रदेश ने खेलों के समुन्नत विकास की चुनौती जहां स्वीकारी है वहीं उसके मुखिया शिवराज सिंह और खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया चाहते हैं कि खिलाड़ियों का प्रदर्शन कागजों की जगह मैदानों में दिखे। खेलों की बात जब भी होती है विघ्नसंतोषी खामियां गिनाने लगते हैं। इस दृष्टि से भी देखें तो मध्य प्रदेश में खामियों से कहीं अधिक अच्छाइयां हैं। मध्यप्रदेश खेलों में आज कहां है, इस सवाल का जवाब यदि चाहिए तो आठ साल पूर्व हम कहां थे, पर नजर डालना जरूरी हो जाता है। सच कहें तो वर्ष 2006 से पहले मध्य प्रदेश एक बीमारू राज्य था। क्रीड़ांगनों में यदा-कदा खिलाड़ियों का दमखम दिखता था। तब कोई नहीं चाहता था कि उसका बेटा-बेटी खिलाड़ी बने पर आज ऐसी बात नहीं है। अब लोगों में खेलों के प्रति दिलचस्पी जागी है। लोगों ने खेलों के महत्व को स्वीकारा है। वे अपने बच्चों को खिलाड़ी बनाना चाहते हैं। इस परिवर्तन की वजह पर गौर करें तो इसका सारा श्रेय प्रदेश भर में खेल अधोसंरचना पर होते मुकम्मल काम और डेढ़ दर्जन एकेडमियों की स्थापना को जाता है। प्रदेश में खेलों की कायाकल्प की वजह मुख्यमंत्री और खेलमंत्री की दिलचस्पी और इनका जुनून है।
आठ साल पहले यशोधरा राजे सिंधिया ने विभिन्न खेलों की एकेडमियां खोले जाने का न केवल निर्णय लिया था बल्कि उसी साल उन्होंने भोपाल और ग्वालियर में एक दर्जन से अधिक खेल एकेडमियों को मूर्तरूप भी दिया। खेलों की इन नर्सरियों में न केवल खिलाड़ियों को उचित परवरिश मिल रही है बल्कि अच्छे परिणाम भी सामने आ रहे हैं। आज स्थिति यह है कि महिला हॉकी, जलक्रीड़ा, निशानेबाजी, घुड़सवारी आदि खेलों में मध्य प्रदेश की देश में पहचान है। लोग अपनों के लिए जीते हैं जबकि मध्यप्रदेश खेल एवं युवा कल्याण विभाग ने प्रत्येक राज्य के प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को प्रोत्साहन दिया है। महिला हॉकी में आज मध्य प्रदेश देश की मजबूत ताकत है। आठ साल पहले हमारे राज्य में खिलाड़ियों का अकाल था। एकेडमी में प्रवेश के लिए हमारे पास प्रतिभाएं खोजे से भी नहीं मिल रही थीं। तब हमने दूसरे राज्यों की प्रतिभाशाली खिलाड़ियों से ग्वालियर में एकेडमी का श्रीगणेश किया था। प्रदेश में महिला हॉकी का यह कारवां आहिस्ते-आहिस्ते ही सही अपनी मंजिल की ओर अग्रसर है। ग्वालियर के जिला खेल परिसर कम्पू में स्थापित देश की सर्वश्रेष्ठ महिला हॉकी एकेडमी खिलाड़ियों की प्रथम पाठशाला ही नहीं ऐसी वर्णमाला है जिसके बिना महिला हॉकी की बात भी पूरी नहीं होती। सच कहें तो यह खेलों की ऐसी कम्पनी है जहां खिलाड़ी का खेल कौशल तो निखरता ही है उसका जीवन भी संवरता है। आठ साल में हॉकी की इस नर्सरी से दर्जनों बेजोड़ खिलाड़ी निकली हैं। इस संस्थान ने मुल्क को न केवल दर्जनों नायाब खिलाड़ी दिए बल्कि लगभग तीन दर्जन बेटियों को रेलवे में रोजगार भी मिला है, इनमें पांच बेटियां मध्यप्रदेश की भी हैं।
जुलाई, 2006 में ग्वालियर में खुली राज्य महिला हॉकी एकेडमी के शुरूआती दो साल तक मध्यप्रदेश में प्रतिभाओं का अकाल सा था। तब लग रहा था कि आखिर प्रदेश किराये की कोख से कब तक काम चलाएगा। अब यह बात नहीं है। शिवराज सिंह की महत्वाकांक्षी हॉकी फीडर सेण्टर योजना का लाभ पुरुष हॉकी एकेडमी को बेशक न मिला हो पर महिला हॉकी एकेडमी को इसका जबर्दस्त लाभ मिला है। इस एकेडमी में अब अपनी बेटियां न सिर्फ प्रवेश पा रही हैं बल्कि दूसरे राज्यों की खिल्ली भी उड़ा रही हैं। इस सफलता में ग्वालियर के दर्पण मिनी स्टेडियम का जहां सर्वाधिक योगदान है। सिर्फ ग्वालियर ही नहीं  प्रदेश के दूसरे जिलों से भी प्रतिभाएं एकेडमी में प्रवेश पा रही हैं। मध्यप्रदेश की इस आशातीत सफलता से हरियाणा, उड़ीसा, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश आदि को रश्क हो रहा है। इन राज्यों की समझ में नहीं आ रहा कि अनायास मध्यप्रदेश महिला हॉकी का गढ़ कैसे बन गया।
कल तक मध्यप्रदेश महिला हॉकी पर बात न करने वाले राज्य आज मध्यप्रदेश की तरफ ताक रहे हैं। उन्हें मध्यप्रदेश से ईर्ष्या हो रही है। आज मध्यप्रदेश की 1-2 बेटियां नहीं बल्कि लगभग तीन दर्जन प्रतिभाशाली लाड़लियां मादरेवतन को ललकार रही हैं।  इनकी इस ललकार में दम न होता तो वे राष्ट्रीय स्तर पर कभी चैम्पियन न बनतीं। मध्यप्रदेश की ये बेटियां अपने राज्य के साथ हिन्दुस्तान का भी स्वर्णिम भविष्य हैं। कुछ बेटियां टीम इण्डिया के दरवाजे पर दस्तक दे चुकी हैं तो कुछ के पदचाप सुनाई देने लगे हैं। मध्यप्रदेश में खेलों के प्रति आई जागृति सुखद लम्हा है। कामयाबी के इस सिलसिले को जारी रखने के लिए प्रदेश की आवाम को नकारात्मक सोच से परे इन बेटियों का करतल ध्वनि से इस्तकबाल करना चाहिए क्योंकि इन्होंने खेलों को अपना करियर बनाने की जो ठानी है। अभी जश्न मनाने का समय नहीं आया, मंजिल अभी कुछ दूर है। मंजिल मिलेगी और जरूर मिलेगी क्योंकि अपनी बेटियों ने न केवल हॉकी थामी है बल्कि जीत का संकल्प भी लिया है। मध्यप्रदेश में प्रतिवर्ष उत्कृष्ट खिलाड़ियों को दी जा रही खेलवृत्ति से जहां  माहौल बदला है वहीं ग्रीष्मकालीन शिविरों ने खेलों की ऐसी अलख जगाई है जिसकी नजीर किसी और राज्य में नहीं मिलती।  भोपाल का तात्या टोपे नगर स्टेडियम और ग्वालियर का जिला खेल परिसर कम्पू खिलाड़ियों का तीर्थस्थल बन चुके हैं। मध्य प्रदेश ने खेलों में बेहतरी के लिए बतौर प्रशिक्षक कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों की सेवाएं लेकर अपने पेशेवराना अंदाज का ही परिचय दिया है।
खेलों से वास्ता या यूं कहें नजदीकी नजर न रखने वाले प्राय: यह सवाल करते हैं कि प्रदेश में स्थापित विभिन्न खेल एकेडमियों से मध्यप्रदेश को क्या मिला? मेरा सवाल है कि हमने खोया क्या है? शुरुआती दौर में विभिन्न एकेडमियों में दीगर राज्यों के खिलाड़ियों से हमारे खिलाड़ियों को प्रतिद्वन्द्वी मिले तो अन्य खिलाड़ियों में खेलों के प्रति दिलचस्पी भी जागी। प्रतिद्वंद्विता सफलता का मूलमंत्र है। दूसरे राज्यों के खिलाड़ियों के प्रवेश को अपने हकों के खिलाफ मानना नासमझी भरी बात है। दूसरे राज्यों के खिलाड़ियों से मध्यप्रदेश के खिलाड़ियों को प्रतिद्वंद्विता ही नहीं सफलता का मंत्र भी मिला, जोकि जरूरी था। आज स्थितियां पूरी तरह से बदल चुकी हैं, एकेडमियों में प्रवेश को मध्यप्रदेश के ही खिलाड़ियों में होड़ सी मची हुई है। हमें बाहरी राज्यों की तरफ ध्यान देने की भी अब जरूरत नहीं रही। महिला हॉकी की बात करें तो आज मध्यप्रदेश की प्रतिभाशाली जूनियर और सब जूनियर बेटियां राष्टÑीय क्षितिज पर अपना गौरवशाली इतिहास लिख रही हैं। सिर्फ महिला हॉकी ही नहीं अन्य खेलों में भी हमारे खिलाड़ी तरक्की कर रहे हैं। देशा में अकेले मध्यप्रदेश में जितने कृत्रिम हॉकी मैदान हैं उतने तो सम्पूर्ण देश में भी नहीं हैं। मध्यप्रदेश ने खेलों में जो तरक्की की है उस पर मीन-मेख निकालने से बेहतर होगा कि हम सब एकजुट होकर न केवल खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करें बल्कि जश्न भी मनाएं।







   

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