पर्यावरण के लिए जगाई अलख
आज एक दुबली-पतली बिटिया सबकी प्रिय है। उम्र बेशक बहुत कम हो लेकिन संदेश ऐसे
दिए कि भारत ही नहीं दुनिया वाह-वाह करने लगी। यह सहज विश्वास नहीं होता कि कक्षा
दो में पढ़ने वाली सात साल की बच्ची ‘ग्लोबल वार्मिंग’ और ‘क्लाइमेट चेंज’ जैसे मुद्दे पर पूरी दुनिया का ध्यान खींच सकती है, वह भी
उस पूर्वोत्तर के मणिपुर से जो मीडिया की मुख्यधारा से हमेशा ही अलग-थलग रहता है।
मणिपुर की लिसिप्रिया कंगुजम दुनिया के कई बड़े मंचों को सम्बोधित कर चुकी है। वह
स्विट्जरलैंड में जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में आयोजित ग्लोबल
प्लेटफॉर्म फॉर डिजास्टर रिस्क रिडक्शन-2019 के छठे सत्र को सम्बोधित कर आई है। यह कार्यक्रम इसी साल 13 से 17 मई के बीच
आयोजित किया गया था। वह संयुक्त
राष्ट्र और स्विट्जरलैंड सरकार की ओर से आमंत्रित सबसे कम उम्र की प्रतिभागी थी।
उसने वहां एशिया और प्रशांत क्षेत्र के बच्चों का प्रतिनिधित्व किया।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर लिसिप्रिया ने एपीएसी क्षेत्र के बच्चों की चिन्ताओं का
प्रतिनिधित्व करते हुए 140 देशों के नुमाइंदों और तीन हजार अन्य प्रतिनिधियों को सम्बोधित
कर एक नई पटकथा लिख दी। मई में लिसिप्रिया
के आने-जाने की वह खबर तो आई-गई हो गई लेकिन उसने देश का ध्यान तब खींचा जब वह 21 जून को हाथ में पर्यावरण
संरक्षण के नारे लिखी तख्ती लिये संसद भवन के बाहर प्रदर्शन करती नजर आई। उसने
प्रधानमंत्री व सांसदों से अपील की कि वे क्लाइमेट
चेंज पर कानून बनाकर हमारा भविष्य सुरक्षित करें।
दरअसल, जेनेवा में हुआ कार्यक्रम
संयुक्त राष्ट्र और स्विट्जरलैंड सरकार द्वारा आपदा जोखिम न्यूनीकरण के लिये चेतना
जगाने के लिए आयोजित किया गया था। लिसिप्रिया कंगुजम अंतरराष्ट्रीय युवा समिति (आईवाईसी)
में बाल आपदा जोखिम न्यूनीकरण के प्रतीकात्मक चेहरे के रूप में काम कर रही है।
संसद पर प्रदर्शन के दौरान लिसिप्रिया कहती हैं कि जब मैं प्राकृतिक आपदा मसलन भूकम्प,
सुनामी व बाढ़ आदि के कारण निर्दोष लोगों को
मरते हुए देखती हूं तो भयभीत हो जाती हूं। बच्चों को अपने माता-पिता को खोते देख
मेरा दिल भर आता है। समाज के जिम्मेदार लोगों से आग्रह करती हूं कि वे दिल-दिमाग
से क्लाइमेट चेंज के प्रभावों को कम करने के लिये प्रयास करें ताकि हम एक बेहतर
दुनिया का निर्माण कर सकें। दरअसल, जेनेवा में
आयोजित कार्यक्रम में दुनिया के सरकारी, गैर सरकारी संगठनों, रेडक्रास के अलावा संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न संगठनों ने
भागीदारी की। यह पहला मौका नहीं था जब लिसिप्रिया को किसी वैश्विक कार्यक्रम में
भाग लेने को आमंत्रित किया गया था। इससे पहले वह वर्ष 2018 में मंगोलिया के
उलानबटार में आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु आयोजित एशिया मंत्रीस्तरीय सम्मेलन में
भाग ले चुकी है। सात साल की छोटी-सी उम्र में लिसिप्रिया कंगुजम अब तक
पर्यावरण चेतना जगाने के लिए आठ देशों का दौरा कर चुकी है।
नि:संदेह, लिसिप्रिया
कंगुजम की सक्रियता को देखकर आश्चर्य होता है कि खेलने-खाने की उम्र में वह सारी
दुनिया की फिक्र लिये घूमती रहती है। इस उम्र में बच्चों को कहां दुनिया के गम्भीर
विषयों से जुड़ाव होता है। ऐसे में सवाल यह भी उठता कि क्या वाकई यह बिटिया अपना
स्वाभाविक बचपन जी पा रही है? मगर, पर्यावरण के प्रति उसकी चिन्ताओं से सहमत होना
पड़ता है कि बच्चे यदि अभी से जागरूक होंगे तभी तो हमारा कल सुधरेगा। बच्चों को
देखकर बड़ों को भी सक्रिय होना पड़ेगा।
संसद भवन के बाहर तख्ती लिये लिसिप्रिया ने कहा, ‘प्रिय मोदी जी व सांसदों, जलवायु परिवर्तन कानून बनाकर सजगता दिखाएं। समुद्र का जलस्तर
बढ़ रहा है। धरती गर्म हो रही है। हमारा भविष्य बचाने के लिये हमें समस्या की
जड़ों पर जल्दी ध्यान देना होगा। हमारे भविष्य को बचा लीजिए। बेहतर दुनिया बनाने
के लिये हमें जुनून से जुड़ना होगा।’ यह संयोग ही है कि पिछले दिनों पर्यावरण संरक्षण के लिये मुहिम चलाती एक अन्य
छात्रा पूरी दुनिया में सुर्खियों में थी। स्वीडन में सोलह साल की ग्रेटा को
दुनिया के 25 प्रभावशाली टीनएजर्स में शामिल किया गया। यह छात्रा हर शुक्रवार को स्कूल
छोड़कर स्वीडन की संसद के बाहर धरना देती रही है। वह वहां बहुचर्चित पोस्टर ‘क्लाइमेट चेंज के लिये स्कूल हड़ताल’ लेकर बैठी रहती है।
‘भारतीय ग्रेटा’ लिसिप्रिया बहुत
छोटी है मगर उसके इरादे बड़े हैं। उम्र से भले ही वह बच्ची हो, मगर उसकी पहल बड़े लोगों को भी प्रेरणा देने
वाली है। नि:संदेह क्लाइमेट चेंज का सबसे ज्यादा शिकार बच्चे ही होते हैं। अब चाहे
प्राकृतिक आपदाओं की तबाही हो या खाद्य श्रृंखला टूटने से उत्पन्न कुपोषण की
भयावहता हो, मगर बच्चों का
मुद्दा गम्भीरता से नहीं लिया जाता। नि:संदेह यदि यह जागरूकता बचपन में आयेगी तो
आगे चलकर वे एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका निभाकर पर्यावरण संरक्षण में महती योगदान
दे सकते हैं। ऐसे में लिसिप्रिया कंगुजम की पहल को नई पीढ़ी का प्रेरणादायक कहा जा
सकता है। हमें छोटी लेकिन बढ़ा उद्देश्य लेकर दुनिया को संदेश देती बिटिया का
हौसला बढ़ाना चाहिए ताकि समाज से और लिसिप्रिया आगे आएं।
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