एम.पी. में महिला हॉकी की विकास यात्रा
श्रीप्रकाश
शुक्ला
आज हमारा देश क्रिकेट का दीवाना है किन्तु एक
समय ऐसा भी था जब लोगों में हॉकी के लिए इससे भी ज्यादा दीवानगी थी। 1928 से 1956 तक के 28 साल के लम्बे अन्तराल तक भारतीय हॉकी
दुनिया में सिरमौर रही। हॉकी की इसी उपलब्धि ने इस खेल को मुल्क के राष्ट्रीय खेल
का गौरव दिलाया। यह ग्वालियर-चम्बल सम्भाग के लिए गर्व और गौरव की ही बात है कि
भारतीय हॉकी फेडरेशन का गठन सन् 1925 में ग्वालियर में ही हुआ। इसके बाद सन् 1928 में भारतीय हॉकी फेडरेशन अंतरराष्ट्रीय हॉकी
महासंघ से जुड़ा। भारत अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ से सम्बद्ध होने वाला पहला गैर
यूरोपिन सदस्य देश रहा। जहां तक महिला हॉकी की बात है, विक्टोरियाई शासन में खेलों
में महिलाओं पर प्रतिबंध होने के बावजूद महिलाओं में हॉकी की लोकप्रियता चरम पर
थी। महिला हॉकी के इतिहास को देखें तो 1895 से ही महिला टीमें नियमित रूप से सद्भावना मुकाबलों में भाग लेती
रहीं लेकिन इनके बीच अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की शुरुआत 1970 के दशक तक नहीं हुई थी। 1974 में हॉकी का पहला महिला विश्व कप आयोजित किया
गया और 1980 में पहली बार महिला हॉकी मास्को ओलम्पिक
खेलों में शामिल की गई। इसे संयोग ही कहेंगे कि भारतीय महिला हॉकी टीम भी 1980 मास्को ओलम्पिक में पहली बार खेली इसके बाद
उसे 36 साल बाद ओलम्पिक खेलने का सौभाग्य मिला। महिला हॉकी संगठन की जहां तक बात
है, 1927 में अंतरराष्ट्रीय नियामक संस्था यानि
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ वूमेंस हॉकी एसोसिएशन का गठन हुआ।
परिवर्तन प्रकृति का नियम ही नहीं मनुष्य के
लिए एक चुनौती भी है। जो चुनौतियों से पार पाता है वही सिकंदर कहलाता है। मध्यप्रदेश
की शिवराज सिंह चौहान सरकार ने खेलों के समुन्नत विकास की जो चुनौती स्वीकारी है,
उसमें खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया का अप्रतिम योगदान है। हॉकी, खासकर महिला हॉकी
के अभ्युदय का काम 2006 में खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया
ने अपने हाथ लिया था। उन्होंने पुरुष हॉकी के लिए भोपाल तो महिला हॉकी के लिए
ग्वालियर को चुना। 12 साल पहले दूसरे राज्यों की प्रतिभाशाली खिलाड़ियों के सहारे
मध्यप्रदेश में चला हॉकी का कारवां आहिस्ते-आहिस्ते अपनी मंजिल की ओर अग्रसर है।
ग्वालियर के जिला खेल परिसर कम्पू में स्थापित देश की सर्वश्रेष्ठ महिला हॉकी
एकेडमी खिलाड़ियों की प्रथम पाठशाला ही नहीं आज ऐसी वर्णमाला है जिसके बिना महिला
हॉकी की बात ही पूरी नहीं होती। सच कहें तो यह खेलों की ऐसी कम्पनी है जहां खिलाड़ी
का खेल-कौशल ही नहीं निखरता बल्कि उसका जीवन भी संवरता है। 12 साल में इस एकेडमी ने मुल्क को जहां दर्जनों
नायाब खिलाड़ी दिए वहीं दर्जनों बेटियों को रेलवे में रोजगार भी मिला।
प्रतिद्वंद्विता सफलता का मूलमंत्र है। जिस
ग्वालियर-चम्बल सम्भाग में 12 साल पहले एक भी महिला हॉकी खिलाड़ी
नहीं थी वहां आज दर्जनों बेटियां राष्ट्रीय तो लगभग आधा दर्जन खिलाड़ी भारतीय टीम
की चौखट पर दस्तक दे रही हैं। ग्वालियर की करिश्मा यादव ग्वालियर-चम्बल सम्भाग की
पहली अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हैं। इसी शहर की नेहा सिंह और इशिका चौधरी भी भारतीय
प्रशिक्षण शिविर में शिरकत कर रही हैं। 2006 में ग्वालियर में स्थापित महिला हॉकी एकेडमी से पूर्व यहां तीन
राष्ट्रीय महिला हॉकी प्रतियोगिताएं तो हुई थीं लेकिन उनमें इस अंचल की किसी भी
बेटी को सहभागिता का मौका नहीं मिला था। जुलाई, 2006 में ग्वालियर में स्थापित
महिला हॉकी एकेडमी की पहली प्रशिक्षक अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी अविनाश कौर सिद्धू को
बनाया गया था। एकेडमी का आगाज लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा संस्थान से
हुआ। उसके बाद जिला खेल परिसर कम्पू में फ्लड-लाइटयुक्त कृत्रिम हॉकी मैदान आबाद
हुआ।
एकेडमी में ग्वालियर की प्रतिभाओं को भी मौका
मिले इसके लिए सरकार ने जिला खेल परिसर कम्पू के साथ-साथ दर्पण मिनी स्टेडियम का
भी कायाकल्प किया। यही वह मैदान है जिसमें पहली दफा ग्वालियर की बेटियों को हॉकी
का ककहरा सीखने का मौका मिला। बेटियों की प्रतिभा निखारने का दुरूह काम प्रशिक्षक
अविनाश भटनागर (एनआईएस) के कंधों पर डाला गया।
प्रशिक्षक भटनागर ने इस काम को सही अंजाम देकर यह सिद्ध किया कि लगन और मेहनत से
काम हो तो एकेडमी को बाहरी खिलाड़ियों की जरूरत ही न पड़े। एकेडमी में प्रशिक्षणरत
करिश्मा यादव, नेहा सिंह, इशिका चौधरी, नीरज राणा, प्रतिभा आर्य और राखी प्रजापति
सहित दर्जनों बेटियां दर्पण मैदान का ही दर्पण हैं।
मध्य प्रदेश सरकार द्वारा महिला हॉकी के उत्थान
की दिशा में किए गए सराहनीय कार्य का ही परिणाम है कि अब हमारे प्रदेश की बेटियां
भी हॉकी उठा चुकी हैं। उनकी प्रतिभा न केवल परवान चढ़ रही है बल्कि कई हॉकी
बेटियों के कदम आहिस्ते-आहिस्ते टीम इण्डिया की तरफ बढ़ रहे हैं। लम्बे अंतराल बाद
मध्य प्रदेश से भारतीय टीम में दस्तक देने वाली पहली बेटी ग्वालियर की करिश्मा
यादव ही है। ग्वालियर की यह बिटिया अपने नाम के अनुरूप ही अपने करिश्माई खेल से सभी
की चहेती बनी हुई है। आस्ट्रेलिया से तीन मैचों की हॉकी सीरीज खेली करिश्मा मध्य
प्रदेश की तरफ से देश का मान बढ़ाने वाली सातवीं खिलाड़ी है। सीनियर टीम में
प्रवेश से पूर्व मिडफील्डर करिश्मा को न्यूजीलैण्ड के खिलाफ भारतीय जूनियर हॉकी
टीम से भी खेलने का मौका मिला था। करिश्मा यादव और नेहा सिंह के लाजवाब प्रदर्शन
को देखते हुए ही इन्हें प्रदेश सरकार के खेल एवं युवा कल्याण विभाग द्वारा पहली
बार एकलव्य अवार्ड से नवाजा गया।
12 साल पहले देश की 23 प्रतिभाशाली खिलाड़ियों
से ग्वालियर में खुली महिला हॉकी एकेडमी आज मुल्क की सर्वश्रेष्ठ हॉकी पाठशाला बन
चुकी है। इसी पाठशाला की होनहार खिलाड़ी करिश्मा यादव के माता-पिता नहीं चाहते थे
कि उनकी बेटी हॉकी खेले। यद्यपि उनके घर के पास ही दर्पण मिनी स्टेडिटम में एक ऐसा
शख्स खिलाड़ियों को निखार रहा था जिसकी रग-रग में हॉकी समाई हुई थी। अपनी धुन के
पक्के एनआईएस अविनाश भटनागर के प्रयासों से ही करिश्मा यादव को हॉकी खेलने की
इजाजत मिली। करिश्मा को हॉकी का ककहरा भी श्री भटनागर ने ही सिखाया। करिश्मा यादव
को भारतीय टीम का सदस्य बनाने में एकेडमी की सुविधा और तालीम के साथ-साथ अविनाश भटनागर
का योगदान भी कमतर नहीं है। करिश्मा का भारतीय टीम में प्रवेश कोई तुक्का नहीं है।
इस मिडफील्डर ने इसके लिए कड़ी मेहनत की है। करिश्मा की कड़ी मेहनत और निरंतर अभ्यास
का ही परिणाम है कि हॉकी इण्डिया ने उसकी प्रतिभा को न केवल पहचाना बल्कि पहले
जूनियर और फिर सीनियर स्तर पर उसे भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करने का मौका दिया।
करिश्मा को 2014 में जहां भारतीय जूनियर टीम से न्यूजीलैण्ड का दौरा करने का मौका
मिला वहीं नवम्बर 2016 में सीनियर टीम से आस्ट्रेलिया के खिलाफ खेलने का मौका
मिला।
ग्वालियर के भीकम सिंह-सुषमा यादव की इस
प्रतिभाशाली बेटी ने लगातार राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर अपने दमदार प्रदर्शन से
अपनी टीम को दर्जनों बार विजेता और उपविजेता होते देखा है। सब-जूनियर, जूनियर और
सीनियर चैम्पियनशिप की बात करें तो करिश्मा राष्ट्रीय स्तर पर बीस से अधिक बार खेल
चुकी है। करिश्मा जूनियर नेहरू हाकी प्रतियोगिता में लगातार चार साल खेली। 2011 और
2012 में उसकी टीम ने स्वर्णिम सफलता हासिल की तो 2013 में रजत और 2014 में कांस्य
पदक जीता। हॉकी की यह बिटिया कहती है कि लड़कियों में खेल प्रतिभा की कोई कमी नहीं
है, जरूरत है उन्हें सही दिशा एवं मार्गदर्शन की। करिश्मा कहती हैं कि ग्वालियर अब
हॉकी का हब बन चुका है, जिसमें महिला हॉकी खिलाड़ियों के लिए अपार सम्भावनाएं हैं।
मध्यप्रदेश की महिला हॉकी बेहतरी में कुछ ऐसे
लोगों का भी योगदान है जोकि राष्ट्रीय स्तर पर बेशक बड़े गुरुज्ञानी न माने जाते
हों पर उन्होंने इस खेल की बेहतरी के लिए दिन-रात एक कर साबित किया कि मेहनत से
कुछ भी हासिल करना सम्भव है। मध्यप्रदेश राज्य महिला हॉकी एकेडमी में बतौर
प्रशिक्षक अविनाश कौर सिद्धू, पूबालन, द्रोणाचार्य अवार्डी गुरुदयाल सिंह भंगू
अपनी सेवाएं दे चुके हैं। अब यह गुरुतर कार्य परमजीत सिंह बरार, वंदना उइके और
रजनी सेंगर के हाथों में है। परमजीत सिंह बरार महिला हॉकी के वह शख्स हैं
जिन्होंने मुश्किल हालातों में भी न केवल स्थानीय खिलाड़ियों के महत्व को स्वीकारा
बल्कि कोशिश की कि मध्यप्रदेश की बेटियां हर आयु वर्ग में राष्ट्रीय चैम्पियन
बनें। टीम इण्डिया के दरवाजे पर दस्तक देने वाली ग्वालियर की करिश्मा यादव, नेहा
सिंह, इशिका चौधरी के साथ ही साथ भोपाल की डिफेण्डर सीमा वर्मा भी देश की उदीयमान
खिलाड़ियों में शुमार हैं। देखा जाए तो ग्वालियर में यदि महिला हॉकी एकेडमी न होती
तो मध्यप्रदेश की रैना यादव, जहान आरा बानो, निहारिका सक्सेना, रीना राठौर, प्रीति
पटेल जैसी हाकी बेटियां कहीं गुमनामी के अंधेरे में ही खो गई होतीं। मध्यप्रदेश में
खेलों के कायाकल्प की वह दिन-तारीख आज भी मेरे जेहन में है। जिला खेल परिसर कम्पू
में 31 मार्च, 2006 को तत्कालीन खेल मंत्री यशोधरा राजे
सिंधिया ने हॉकी को लेकर कई घोषणाएं की थीं। उस समय उनकी कही बातों पर यकीन नहीं
हो रहा था लेकिन आज खेलों में मध्यप्रदेश जिस मुकाम पर है उसका सारा श्रेय
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और ग्वालियर की बिटिया यशोधरा राजे सिंधिया को ही
जाता है।
भारतीय महिला हॉकी को छह अंतरराष्ट्रीय महिला
खिलाड़ी देने वाले जबलपुर के बिना हॉकी की वर्णमाला पूरी नहीं होती। महाकौशल के
कौशल को सलाम करना होगा कि जब सुविधाएं नहीं थीं तब यहां की एक दो नहीं आधा दर्जन
बेटियों ने भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया। इनमें अविनाश कौर सिद्धू, गीता
पण्डित, कमलेश नागरत, आशा परांजपे, मधु यादव और विधु यादव के साथ अब ग्वालियर की करिश्मा
यादव का नाम भी जुड़ गया है। मधु यादव हॉकी में एकमात्र मध्य प्रदेश की महिला अर्जुन
अवार्डी हैं। स्वर्गीय एस.आर. यादव की बेटी मधु ने लम्बे समय तक मुल्क की महिला हॉकी
का गौरव बढ़ाया। वह 1982 एशियन गेम्स की स्वर्ण पदक विजेता टीम का सदस्य भी रहीं। मधु
यादव के परिवार की जहां तक बात है इस यदुवंशी परिवार की रग-रग में हॉकी समाई हुई
है। मधु और विधु ने भारत का प्रतिनिधित्व किया तो इसी घर की बेटी वंदना यादव ने
भारतीय विश्वविद्यालयीन हॉकी में अपना कौशल दिखाया। छह अंतरराष्ट्रीय महिला हॉकी
खिलाड़ी देने वाले जबलपुर की गीता पंडित, कमलेश नागरत तथा आशा परांजपे भारत छोड़
विदेश जा बसी हैं लेकिन अविनाश कौर सिद्धू, मधु और विधु यादव आज भी गाहे-बगाहे ही
सही हॉकी को लेकर चिन्तातुर रहती हैं।
महिला हॉकी का गढ़ बन चुका ग्वालियर अब तक तीन
बार राष्ट्रीय जूनियर महिला हॉकी प्रतियोगिता की मेजबानी कर चुका है। ग्वालियर में
पहली बार 1969-70 में राष्ट्रीय जूनियर महिला हॉकी प्रतियोगिता हुई थी। तब खिताबी
मुकाबले में पेप्सू ने पंजाब को पराजित किया था। ग्वालियर में 1976-77 में दूसरी
बार हुई राष्ट्रीय जूनियर महिला हॉकी प्रतियोगिता में केरल ने कर्नाटक को हराकर
खिताब जीता था। तीसरी और अंतिम बार यहां 1982-83 में राष्ट्रीय जूनियर महिला हॉकी
प्रतियोगिता हुई। इस वर्ष खिताबी मुकाबले में पंजाब ने बाम्बे का मानमर्दन किया था।
ग्वालियर में हॉकी की मेजबानी का पुराना इतिहास है। यहां लम्बे समय से चल रही
सिंधिया गोल्ड कप हॉकी प्रतियोगिता को भला कौन नहीं जानता। यह बात अलग है कि 1958-59
को छोड़कर ग्वालियर कभी विजेता तो क्या फाइनल तक भी नहीं पहुंच सका। उम्मीद है कि
महिला हॉकी के गढ़ ग्वालियर की करिश्मा यादव के बाद अब दूसरी बेटियां भी मादरेवतन
का मान बढ़ाएंगी।