Saturday, 7 October 2017

हरफनमौला मीनू ने लिखी संघर्ष की नई पटकथा


                  खेलों के साथ मिरर राइटिंग में गढ़ रहीं नित नए कीर्तिमान
                        मुसाफिर वह है जिसका हर कदम मंजिल की चाहत हो,
                        मुसाफिर वह नहीं जो दो कदम चल कर के थक जाए।
                                     श्रीप्रकाश शुक्ला
यह फौरी अल्फाज नहीं किसी कवि का संदेश है जिसे आत्मसात किया है भिवानी  जिले (हरियाणा) के जुईखुर्द गांव में जन्मीं और राजस्थान की बहुरिया बनीं मीनू पूनिया ने। जिस उम्र में लोग खेलों को अलविदा कहने का मन बना लेते हैं, उस उम्र में मीनू अथक मेहनत कर मादरेवतन का मान बढ़ाने की कोशिश में लगी हैं। सिर्फ खेल ही नहीं वह मिरर राइटिंग में अपनी बेटी काव्या के साथ एशिया बुक, लिम्का बुक और गिनीज बुक में रिकार्ड दर्ज कराने को तैयार हैं। राष्ट्रीय स्तर पर कभी अपनी तेज गेंदबाजी से बल्लेबाजों में खौफ पैदा करने वाली मीनू अब वुशू में भी कमाल का प्रदर्शन कर रही हैं। देखा जाए तो किसी भी देश की प्रतिष्ठा खेलों में उसकी उत्कृष्टता से बहुत कुछ जुड़ी होती है लेकिन हमारे देश में भाई-भतीजावाद की जड़ें इतनी गहरी पैठ बना चुकी हैं जिन्हें उखाड़ फेंकना असम्भव नहीं तो आसान बात भी नहीं है। मीनू को असम्भव शब्द से चिढ़ है। वह बेबाकी से कहती हैं कि संघर्ष से कुछ भी हासिल किया जा सकता है। उनकी राह में लाख बाधाएं खड़ी की गई हों लेकिन उनके पैर मंजिल की तरफ ही बढ़े हैं और बढ़ते रहेंगे।
हरियाणा का देश-दुनिया में नाम रोशन करने का सपना देखने वाली मीनू का जन्म आठ मई, 1989 को   भिवानी  जिले (हरियाणा) के जुईखुर्द गांव में हुआ। रेलवे में कार्यरत रहे मीनू के पिता और डाक्टर मां की ख्वाहिश रही कि उनकी बेटी खेल के क्षेत्र में भारत का नाम दुनिया में रोशन करे। तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी मीनू भारतीय सेना में रहे नाना को अपना आदर्श मानती हैं। अपने हक के लिए लड़ना, अनुशासित जिन्दगी जीना, आत्मविश्वास और सुदृढ़ता जैसे मूलमंत्र मीनू ने अपने नाना से ही सीखे हैं। मीनू के माता-पिता ने भी उसे लड़की होने का कभी एहसास नहीं होने दिया। कक्षा 12 तक की पढ़ाई गांव में ही करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए मीनू ने आदर्श महिला विश्वविद्यालय भिवानी में दाखिला लिया। अंग्रेजी और हिन्दी से परास्नातक मीनू का खेलों के प्रति रुझान भिवानी से ही परवान चढ़ा और उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ क्रिकेट में हाथ आजमाने शुरू कर दिए। अथक मेहनत और जुनून के चलते मीनू ने साल भर में ही अपनी तेज गेंदबाजी और मध्यक्रम में ठोस बल्लेबाजी के बूते आल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी टीम में अपना स्थान सुनिश्चित कर लिया। अपने याराना खेल से मीनू ने पहले साल ही इतनी शोहरत बटोर ली कि दूसरे साल उनके चयन में कोई संशय था ही नहीं लेकिन चयन समिति की नादरशाही के चलते यह कहकर उनका मनोबल तोड़ दिया गया कि आपने एक नेशनल खेल लिया अब इस साल किसी और को खेलने का मौका मिले। खेलों में ऐसा सिर्फ मीनू के साथ ही नहीं हुआ इस तरह के अनगिनत मामले भारतीय खेल इतिहास को मुंह चिढ़ा रहे हैं।
मीनू ने हिम्मत हारने की बजाय कड़ी मेहनत व संघर्ष की बदौलत अंतर-जिला और राज्य स्तर पर अपनी तेज गेंदबाजी से हर किसी को दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर कर दिया बावजूद इसके उन्हें फिर उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। प्रतियोगिता समापन पर सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी का जो अवार्ड मीनू को मिलना था वह अवार्ड उस खिलाड़ी को दिया गया जोकि प्लेइंग एकादश में भी नहीं थी। लगातार उपेक्षा का दंश सहती मीनू की जगह कोई और होता तो खेल को विराम दे देता लेकिन हिम्मती मीनू ने हार मानने की बजाय अपने खेल पर फोकस करना ही मुनासिब समझा। मीनू महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी रोहतक से आल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी खेलीं। मीनू के शानदार खेल को देखते हुए उनका चयन अण्डर-19 राष्ट्रीय महिला क्रिकेट टीम में हुआ और उन्होंने यहां भी अपनी गेंदबाजी से सबका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। नेशनल खेलने के बाद मीनू ने हरियाणा पुलिस में भर्ती होने के प्रयास किए। अफसोस की बात है कि राष्ट्रीय स्तर पर शानदार खेल का आगाज करने वाली मीनू को अपने आपको क्रिकेटर साबित करने के लिए जिला क्रिकेट एसोसिएशन से फरियाद करनी पड़ी। इसके लिए मीनू अपने पिता के साथ भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के पूर्व चेयरमैन रणवीर महेन्द्रा से भी मिलीं लेकिन उन्हें वहां भी न्याय नहीं मिला।
महिलाओं का खेलों में सफलता हासिल करना पुरुषों की अपेक्षा अधिक परेशानी भरा सफर होता है। निराशा के भंवरजाल से निकलने में मीनू को कुछ वक्त लगा लेकिन उन्होंने हार नहीं मानीं। कहते हैं मेहनत कभी अकारथ नहीं जाती यह बात मीनू ने आल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी में महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी रोहतक को तीसरा स्थान दिलाकर सिद्ध कर दिखाया। मीनू को शानदार प्रदर्शन के लिए सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी का सम्मान प्रदान किया गया। इतना ही नहीं मीनू को पूर्व मुख्यमंत्री बनारसी दास गुप्ता तथा पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा की धर्मपत्नी द्वारा भी सम्मानित किया गया। मीनू ने स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद बीएड में दाखिला लिया उसी साल छह मई, 2011 को मीनू की शादी व्यवसायी राजेश पूनिया के साथ हो गई। अब मीनू चूरू जिले (राजस्थान) की सादुलपुर तहसील के जैतपुरा गांव की बहुरिया हैं। मीनू को 2012 में रेलवे में सेवा का अवसर भी मिलते-मिलते रह गया। रेलवे में नौकरी के लिए सात माह की प्रगनेंट होने के बावजूद मीनू ने अपने पति के साथ सादुलपुर स्टेडियम में कड़ी मेहनत की और दिल्ली में ट्रायल भी दिया लेकिन उसे मेडिकल अनफिट करार दिया गया। मीनू को नौकरी तो नहीं मिली लेकिन काव्या के रूप में एक प्यारी राजकुमारी जरूर मिल गई।
खेल के साथ सरकारी सेवा का सपना संजोने वाली मीनू 2013 में राजस्थान पटवार भर्ती की लिखित परीक्षा उत्तीर्ण कर दस्तावेज जांच के लिए जब उदयपुर गईं तो उनसे कहा गया कि यह पद तो अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी के लिए है जबकि भर्ती विज्ञप्ति में राज्य और राष्ट्रीय खिलाड़ियों का जिक्र था। मीनू की बदकिस्मती कहें या कुछ और वह तीसरी बार सरकारी सेवा से वंचित रह गईं। अपनी पत्नी के साथ हुई इस नाइंसाफी के खिलाफ राजेश पूनिया ने जयपुर हाईकोर्ट में वाद दायर किया जिस पर आज भी सुनवाई चल रही है। साल 2015 मीनू के लिए काफी कामयाबी भरा रहा। इस साल उन्हें रोमित पूनिया के रूप में एक बेटा तो 95 एफ.एम. तड़का जयपुर की तरफ से स्पोर्ट्स स्टार अवार्ड से नवाजा गया। अप्रैल 2016 में द अलवर सेण्ट्रल को-आपरेटिव बैंक की तरफ से मीनू को बैंकिंग सहायक के पद पर सेवा का अवसर प्रदान किया गया। वह न केवल पूर्ण मनोयोग से बैंक की सेवा कर रही हैं बल्कि दिसम्बर 2016 में डूंगरपुर (राजस्थान) में आयोजित राज्यस्तरीय को-आपरेटिव बैंक स्पोर्ट्स की बैडमिंटन और दौड़ स्पर्धा में क्रमशः पहला और दूसरा स्थान हासिल कर अपने शानदार हरफनमौला खिलाड़ी होने का सुबूत पेश किया। मीनू को शानदार प्रदर्शन के लिए सहकारिता एवं गोपालन मंत्री राजस्थान अजय सिंह किलक द्वारा सम्मानित किया गया।
मीनू अब अपने आपको न केवल मार्शल आर्ट खेलों में पारंगत कर रही हैं बल्कि प्रतियोगिताओं में पदक भी जीत रही हैं। मीनू ने मई 2017 में हनुमानगढ़ में आयोजित राजस्थान सीनियर वुशू चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीतकर अपने जिले को गौरवान्वित किया। मीनू एशियन गेम्स, राष्ट्रमण्डल खेल और ओलम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व करने का सपना देख रही हैं। मीनू बहुआयामी प्रतिभा की धनी हैं। वह न सिर्फ एक शानदार खिलाड़ी हैं बल्कि मिरर राइटिंग में भी नित नए कीर्तिमान रच रही हैं। सितम्बर 2017 में मीनू ने देश के राष्ट्रगान को सबसे कम समय में मिरर राइटिंग में लिखकर इंडिया बुक आफ रिकार्ड में अपना नाम दर्ज कराया। मीनू की बेटी काव्या भी मिरर राइटिंग में नित नई सफलताएं हासिल कर रही है। मीनू कविताएं लिखने और रक्तदान करने में भी रुचि लेती हैं। वह हर छह महीने में एक बार रक्तदान अवश्य करती हैं। दो विषयों (अंग्रेजी और हिन्दी साहित्य) में परास्नातकोत्तर की डिग्री हासिल कर चुकी मीनू अब योगा में भी मास्टर डिग्री हासिल करने जा रही हैं। मीनू एक पुस्तक मेरे अहसास भी लिख चुकी हैं।  

मीनू अपनी सफलता का श्रेय अपने पति को देते हुए कहती हैं कि राजेश पूनिया जी ने न केवल हर पल मेरा हौसला बढ़ाया बल्कि हर मुश्किल समय में साथ भी दिया। मीनू अपने सास-ससुर का आभार मानते हुए कहती हैं कि इन्होंने मुझे हमेशा अपनी बेटी की तरह माना और प्रोत्साहित किया। मीनू अब अपनी बेटी काव्या के साथ मिरर राइटिंग में एशिया बुक, लिम्का बुक और गिनीज बुक में रिकार्ड दर्ज कराने की तैयारी कर रही हैं। मुश्किल से लाखों में कोई एक सफल हो पाता है। उसके पीछे कितना संघर्ष, कितनी मेहनत छुपी होती है, इसका अहसास बहुत कम लोगों को होता है। मीनू जिस लगन और मेहनत के साथ मंजिल दर मंजिल हासिल कर रही हैं, उससे अन्य महिलाओं को नसीहत लेनी चाहिए।

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