मत कर यकीन अपने हाथों की
लकीरों पर,
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते।
यह पंक्तियां कला को समर्पित धवल खत्री पर सही चरितार्थ होती हैं। जो लोग कभी उसको बेचारा कहते थे वे आज उसका
सम्मान करते नहीं थकते। जिन लोगों ने कभी उसकी बनाई पेंटिंग को दोयमदर्जे का बताया
वे आज अपने ड्राइंग रूम में उसकी पेंटिंग लगाने में गर्व महसूस करते हैं। जिन
लोगों ने उसको लाचार बताया था, वे आज उसकी हिम्मत की दाद देते नहीं थकते। यह है
कला साधक धवल खत्री का करिश्मा।
गुजरात के अहमदाबाद में रहने वाले युवा धवल खत्री की बनाई पेंटिंग्स की आज देश ही नहीं दुनिया भर में काफी डिमांड
है। धवल मिसाल हैं उन लोगों के लिये जो किसी हादसे के बाद टूट जाते हैं। धवल खत्री
ने साबित किया है कि हादसा रुकने का नाम नहीं बल्कि आगे बढ़ने का जरिया भी हो सकता
है। कॉमर्स से ग्रेजुएट धवल खत्री आज एक कामयाब पेंटर हैं। उनकी इस कामयाबी के
पीछे है उनका जिन्दगी जीने का नजरिया और कठिन मेहनत। जिस मुकाम पर आज वह हैं वहां
तक पहुंचना आम इंसान के बस की बात नहीं। खास बात यह है कि धवल ने यह सफलता दोनों
हाथों के बगैर पाई है। वह आज बड़ी कुशलता से बिना हाथों के ही काफी खूबसूरत
पेंटिंग्स बनाते हैं। धवल पैदाइशी दिव्यांग नहीं थे। धवल बताते हैं कि वह सुबह का
वक्त था और लोग उस समय सैर कर रहे थे। सैर करने वालों में एक डॉक्टर भी थे और जब धवल
के साथ यह घटना हुई तो उनके दिल ने धड़कना बंद कर दिया, लेकिन उन डॉक्टर की मदद से
धवल की धड़कनें वापस तो आ गईं परंतु उनकी हालत नाजुक थी। इसलिये उनको तुरंत पास के
एक अस्पताल ले जाया गया।
इस हादसे की वजह से धवल के दोनों हाथ काफी जल चुके थे। इस
कारण उनके दोनों हाथ काटने पड़े। ऐसे वक्त में उनके माता-पिता और बहन ने उनको काफी
सहारा दिया और जीने की हिम्मत दी। अस्पताल में धवल करीब ढाई महीने तक रहे। इस
दौरान धवल की मां उनको पेंसिल, पेन और ब्रश पकड़ने की ट्रेनिंग देती थीं और उनकी यह
ट्रेनिंग अस्पताल से घर वापस आने के बाद भी जारी रही। इस तरह धीरे-धीरे धवल दोनों
हाथों की मदद से पेंसिल और ब्रश पकड़ना सीख गये। यह सब सीखने में उन्हें करीब एक साल लग गया। इस कारण उनकी स्कूली पढ़ाई भी साल भर के लिए छूट गई।
साल भर बाद जब वह अपने स्कूल गये तो वहां के प्रिंसिपल ने
उनको स्कूल आने से मना कर दिया। तब उन्होंने दूसरे स्कूल में दाखिला लिया और यहां
पर उनके प्रिंसिपल ने उनकी पढ़ाई में काफी मदद की। धवल बताते हैं कि मैं इत्तफाक
से पेंटिंग की फील्ड में आया। मैं बचपन में पेंटिंग में बहुत अच्छा नहीं था लेकिन
अपने क्लास के दूसरे बच्चों से अच्छी पेंटिंग बना लेता था। धीरे-धीरे मेरी बनाई
पेंटिंग कई जगह प्रदर्शित की गईं। इससे मेरा रुझान इस ओर बढ़ा। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने गंभीरता से पेंटिंग की फील्ड में आने के बारे में
सोचा लेकिन उनको ऐसा कोई गुरू नहीं मिला जो उनकी कला को और निखार सकता था क्योंकि
ज्यादातर लोगों का मानना था कि बिना हाथों के वह पेंटिंग नहीं कर सकते। बावजूद
उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपना सारा ध्यान पेंटिंग सीखने में लगा दिया। इसके
लिए उन्होंने अपने घर पर ही कड़ी मेहनत की और अपने अंदर पेंटिंग स्किल को निखारने
का काम किया।
धवल की जिन्दगी में सबसे बड़ा बदलाव साल 2011 में तब आया जब वह पहली बार एक रियलिटी शो एंटरटेनमेंट
के लिए कुछ भी करेगा में दिखाई दिये। यहां पर उनको टीवी पर अपना हुनर दिखाने का
मौका मिला। उनके इस हुनर से काफी लोग प्रभावित हुए। तब उन्होंने तय किया कि अब
पढ़ाई बहुत कर ली अब उन्हें पेंटिंग के क्षेत्र में ही अपना करियर बनाना है। इसके
बाद कई दूसरे टेलीविजन शो में भी दिखाई देने लगे। इसके बाद लोग उनके काम को पहले
के मुकाबले ज्यादा इज्जत की नजर से देखने लगे। इतना ही नहीं उनको देश-विदेश से
पेंटिंग बनाने के लिये कई आर्डर भी मिलने लगे। धवल की पेंटिंग्स के अमेरिका, ब्रिटेन,
आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया और ऑस्ट्रिया भी मुरीद हैं। अपने काम को विस्तार देने के लिए
उन्होंने सोशल मीडिया के अलावा अपनी वेबसाइट भी बनाई है। इसके अलावा वह समय-समय पर
लाइव पेंटिंग शो भी करते हैं। इस दौरान आम लोग उनका काफी सपोर्ट करते हैं। धवल अब
तक तीन सौ से ज्यादा पेंटिंग बना चुके हैं। उनकी बनाई पेंटिंग की तारीफ पूर्व
राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर और अभिनेत्री किरण
खैर जैसी शख्सियतें भी कर चुकी हैं। धवल अब अपने इस हुनर को दूसरे लोगों को भी सिखाना
चाहते हैं। कुछ समय पहले तक वह काफी बच्चों को पेंटिंग की ट्रेनिंग देते थे लेकिन
अब व्यस्तता के कारण कुछ ही बच्चों को अपनी कला की बारीकी सिखा पाते हैं। धवल कहते
हैं कि पेंटिंग मुझे भगवान की दी हुई सौगात है और सौगात को जितना बांटो उतनी बढ़ती
है। अगर इंसान दिल से किसी काम को करे तो वह उसी काम में सफलता पा सकता है। आज के
दौर में काफी लोग पेंटिंग में भी अपना करियर बना रहे हैं। यह देखकर धवल को बहुत
खुशी होती है कि लोगों की सोच बदली है क्योंकि पहले ज्यादातर लोग पढ़ाई-लिखाई के
अलावा दूसरी चीजों की ओर ध्यान नहीं देते थे। अपने शुरुआती दौर की परेशानियों के
बारे में धवल बताते हैं कि लोग पहले उन्हें लाचारी की नजर से देखते थे। जबकि धवल
का मानना है कि लोगों को ऐसा करने की बजाय दिव्यांग लोगों को अपने पैरों पर खड़े
होने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए क्योंकि दिव्यांग जानते हैं कि उनमें क्या कमी
है। उस कमी को बार-बार दोहराने से कोई फायदा नहीं। हालांकि आज धवल की सफलता को देखते
हुए वही लोग उनको काफी सम्मान की नजर से देखते हैं। धवल चाहते हैं कि वह पेंटिंग
के क्षेत्र में अपना अलग मुकाम हासिल करें जहां तक उनके जैसा कोई नहीं पहुंच पाया
और भविष्य में लोग उनको एक मशहूर पेंटर के तौर पर याद करें।
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