Saturday, 25 February 2017

आंख का अंधा नाम नयनसुख


भारतीय खेल प्राधिकरण
श्रीप्रकाश शुक्ला
आंख का अंधा नाम नयनसुख। जी हां, मुल्क में खेलों के अलम्बरदार भारतीय खेल प्राधिकरण की तथा-कथा, कामकाज का तरीका तथा सिफर परिणाममूलक उपलब्धियों पर नजर डालें तो यह कहावत पूरी तरह से सही चरितार्थ होती है। भारतीय खेल प्राधिकरण के देशभर में संचालित सेण्टर खेल प्रतिभाओं की पाठशाला नहीं बल्कि आलाधिकारियों के आरामगाह हैं। भ्रष्टाचार-कदाचार, भाई-भतीजावाद और खेल-खिलाड़ियों से खेलवाड़ के अनगिनत मामलों के बाद भी इस मूक हाथी पर कोई असर नहीं होता। यह निरंकुश गजधर आर्थिक रूप से कमजोर देश के लिए खेलों में पैसे की फिजूलखर्ची का भी जिम्मेदार है। आज हमारे प्रशिक्षक अल्पवेतन और भूखे पेट खिलाड़ी निखार रहे हैं वहीं साई की कृपा से विदेशी प्रशिक्षक अरबों रुपये पाकर भारतीय खिलाड़ियों को बिगाड़ रहे हैं। भारतीय खिलाड़ियों में डोपिंग का डंक लगना विदेशी प्रशिक्षकों की ही नापाक कारगुजारी है। हाल ही कुछ खिलाड़ियों ने भारतीय खेल प्राधिकरण पर जो आरोप लगाए हैं उन्हें मिथ्या नहीं कहा जा सकता।
खेलों के खैरख्वाह भारतीय खेल प्राधिकरण की स्थापना भारत सरकार ने जनवरी, 1984 में एक पंजीकृत सोसाइटी के रूप में की थी। प्रारम्भ में इसका उद्देश्य 1982 में एशियाड के दौरान दिल्ली में निर्मित खेलकूद की बुनियादी सुविधाओं के कारगर रख-रखाव तथा उनके अधिकतम उपयोग को सुनिश्चित करना था। अब यह देश में खेलों के विस्तार तथा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलों में विशेष उपलब्धि के लिए खिलाड़ियों के प्रशिक्षण की भी नोडल एजेंसी बन गई है। खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए शीर्ष पर एक ही एजेंसी स्थापित करने के उद्देश्य से एक मई, 1987 को राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा और खेलकूद सोसाइटी (एस.एन.आई.पी.ई.एस.) का भारतीय खेल प्राधिकरण में विलय कर दिया गया। इसके बाद नेताजी सुभाष चंद बोस राष्ट्रीय खेलकूद संस्थान (एन.एस.एन.आई.एस.) पटियाला और बेंगलूरु, कोलकाता तथा गांधीनगर में इसके केन्द्र तथा तिरुअनंतपुरम का लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक व्यायाम शिक्षा विद्यालय भी भारतीय खेल प्राधिकरण के अंतर्गत आ गए। अब इसके छह क्षेत्रीय केन्द्र बेंगलूरु, गांधीनगर, कोलकाता, चंडीगढ़, भोपाल और इम्फाल में हैं और दो उप-केन्द्र गुवाहाटी (असम) और लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में हैं। इनकी बुनियादी खेल सुविधाएँ अब सोनीपत में जुटाई जा रही हैं। भारतीय खेल प्राधिकरण शिलारू (हिमाचल प्रदेश) में एक हाई एल्टीट्यूड ट्रेनिंग सेण्टर भी संचालित करता है।
भारतीय खेल प्राधिकरण राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्टता प्राप्ति के लिए राष्ट्रीय खेल प्रतिभा (एन.एस.टी.सी.), आर्मी ब्वायज स्पोर्ट्स कम्पनी (ए.बी.एस.सी.), भारतीय खेल प्राधिकरण प्रशिक्षण केन्द्र (एस.टी.सी.) तथा विशेष क्षेत्रीय खेल (एस.ए.जी.) जैसी योजनाओं का संचालन करता है। भारतीय खेल प्राधिकरण ने विशेष प्रतिभा सम्पन्न खिलाड़ियों के लिए अपने सभी क्षेत्रीय केन्द्रों तथा राष्ट्रीय खेलकूद संस्थान पटियाला में उत्कृष्टता केंद्र (सी.ओ.ई.) स्थापित किए हैं। एक नजर में देखा जाए तो इस मतवाले हाथी का काम खिलाड़ियों को उत्कृष्टता के उस पायदान तक ले जाना है, जहां से वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मादरेवतन का मान बढ़ाए लेकिन अफसोस यह हाथी खिलाड़ियों की रसद खाने के साथ ही उनके अरमान चूर-चूर कर रहा है। हाल ही कई खिलाड़ियों ने साई सेण्टरों के आलाधिकारियों पर कई गम्भीर आरोप लगाए हैं। खिलाड़ियों ने यह आरोप किसी की शह पर नहीं लगाए बल्कि भारतीय खेल प्राधिकरण के सेण्टरों में हालात इससे भी ज्यादा बदतर हैं।
भारतीय खेल प्राधिकरण पर आरोप-प्रत्यारोपों की लम्बी फेहरिश्त है। इन आरोप-प्रत्यारोपों की जांच को स्वांग भी रचे जाते हैं लेकिन परिणाम हमेशा खिलाड़ियों के खिलाफ ही गए हैं। साई सेण्टरों में क्या-क्या होता है, यह किसी से छिपा नहीं है। लगभग तीन साल पहले की ही बात है जब केरल के अलप्पुझा साई सेण्टर में चार खिलाड़ी बेटियों ने एक साथ जीवनलीला समाप्त करने की कोशिश की थी। भारतीय खेल प्राधिकरण के जल क्रीड़ा केन्द्र में प्रशिक्षु चार खिलाड़ियों ने सीनियरों द्वारा कथित तौर पर उत्पीड़न के चलते एक जहरीला फल (ओथालांगा) खाकर आत्महत्या करने की कोशिश की जिनमें से एक अपर्णा रामचंद्रन की मौत हो गई। मृतक अपर्णा रामचंद्रन के रिश्तेदार का कहना था कि साई छात्रावास के प्रशिक्षुओं को शारीरिक यातनाएं दी जा रही थीं। यहां तक कहा गया था कि एक लड़की को दो दिन पहले कोच ने चप्पू से मारा था जिसकी वजह से वह न खड़ी हो पा रही थी और न ही बैठ पा रही थी। इस गम्भीर मामले पर तब भारतीय खेल प्राधिकरण के तत्कालीन महानिदेशक श्रीनिवास और खेलमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का दम्भ भरा था। अफसोस प्रतिभाशाली खिलाड़ी अपर्णा तो मर गई लेकिन खेलनहार अब भी जिन्दा हैं।
2012 में साई की हिटलरशाही के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले भारतीय महिला कुश्ती प्रशिक्षक और भारतीय कुश्ती की पहचान, अर्जुन अवॉर्डी, कृपाशंकर बिशनोई को 2014 के ग्लास्गो राष्ट्रमण्डल खेलों में मुश्किल हालातों का सामना करना पड़ा, उन्हें भारतीय खेल प्राधिकरण की नादरशाही के चलते खेलगांव में प्रवेश नहीं मिला और पुलिस भी बेवजह परेशान करती रही। कृपाशंकर को खेलगांव में प्रवेश से क्यों रोका गया इसकी कोई ठोस वजह नहीं थी बावजूद इसके वे महिला पहलवानों के पास नहीं जा सके। यह सब तब हुआ जब खिलाड़ियों को प्रोत्साहन की दरकार थी। कोच कृपाशंकर का दोष सिर्फ इतना था कि उन्होंने खिलाड़ियों के हक यानि डाइट की बात साई से की थी। यह मामला 2012 का है। सवाल यह उठता है कि यदि महिला कुश्ती प्रशिक्षक से कोई गिला-शिकवा थी तो उसे ग्लास्गो क्यों भेजा गया। कोच की नियुक्ति कुश्ती संघ का मामला था। इस मामले में भारतीय खेल प्राधिकरण को दखल देने का कोई अधिकार नहीं था फिर भी उसने कुश्ती प्रशिक्षक पर आपराधिक होने के आरोप लगाए। कृपाशंकर बिशनोई इससे पूर्व भी साई के षड्यंत्र का शिकार हो चुके थे। साई की बेवजह की दखलंदाजी के चलते पूर्व में कृपाशंकर को अमेरिका और इटली जाने से रोका गया था। मध्य प्रदेश ही नहीं समूचा देश इस बात को जानता है कि पहलवान और कोच कृपाशंकर बिशनोई एक भद्र शख्सियत हैं, वे किसी को बंदूक तो क्या उंगली भी नहीं दिखा सकते। कुश्ती प्रशिक्षक कृपाशंकर पर 2013 में साई की रीजनल डायरेक्टर राधिका सामंत की शह पर एक कर्मचारी ने बंदूक दिखाकर धमकाने का आरोप लगाया था, जबकि कृपाशंकर के पास कोई लाइसेंसी हथियार ही नहीं था। खैर, पुलिस जांच के बाद कृपाशंकर निर्दोष साबित हुए और खिलाड़ियों के हक की बात पुनः उठाते हुए मामला अदालत तक ले गये। इस बीच साई ने उन्हें तरह-तरह के प्रलोभन भी दिए लेकिन इस पहलवान ने साफ कह दिया कि बेटियों के हक पर वह कतई डाका नहीं डालने देंगे।
18 दिसम्बर, 2015 को बॉक्सिंग के खेल में दस्तावेजों के फर्जीवाड़े का मामला उजागर होने के बाद देशभर में बड़ा विवाद खड़ा हुआ। भिवानी, हिसार और सोनीपत साई सेण्टर्स से लेकर नई दिल्ली स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण के मुख्यालय और केंद्रीय खेल मंत्रालय तक खलबली मच गई। आरटीआई कार्यकर्ता चरण सिंह को सूचना के अधिकार से मिली जानकारी से, देशभर के 10 स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इण्डिया सेंटर्स के 260 महिला और पुरुष बॉक्सरों पर फर्जी स्कूल सर्टिफिकेट, बर्थ सर्टिफिकेट के सहारे पदक बटोरने और सरकारी नौकरी हासिल करने का सच उजागर हुआ, इनमें 76 हरियाणा से हैं। मामले की गम्भीरता को देखते हुए खेलमंत्री अनिल विज ने आनन-फानन में जांच के आदेश दिए तो साई ने खिलाड़ियों के प्रवेश के वक्त दस्तावेजों के वेरीफिकेशन को अनिवार्य करने का आदेश दिया। 19 दिसम्बर, 2015 को बॉक्सरों के फर्जीवाड़े मामले की सच्चाई जानने और दस्तावेजों की सत्यता पता करने के लिए खेलमंत्री अनिल विज ने जांच के आदेश दिए लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात निकला। भिवानी बोर्ड के खुलासे के बाद कई अंतरराष्ट्रीय स्तर के बॉक्सरों पर तलवार लटकी है। साई के दस्तावेजों में वर्ष 2006 से 2008 के बीच प्रवेश लेने वाले खिलाड़ियों में से कई की मार्कशीट पर 8वीं और 10वीं में अलग-अलग इनरोलमेंट नम्बर हैं। इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर वर्तमान में ये खिलाड़ी भारतीय रेलवे, सेना और पुलिस विभाग में बड़े पदों पर कार्यरत हैं। इन सारे हालातों को देखकर अफसोस तो होता ही है, साथ ही खिलाड़ियों एवं खेल कमेटी पर भी प्रश्नचिह्न उठते हैं।  
भारतीय खेल प्राधिकरण से इतर देश में खेलों की गंगोत्री को नापाक करने वालों की भी कमी नहीं है। समय समय पर खिलाड़ी बेटियां अपने प्रशिक्षकों पर कुदृष्टि की बातें सार्वजनिक करती रही हैं लेकिन किसी भी मामले में उन्हें इंसाफ नहीं मिला। 2008 में कबड्डी कोच जे. उदय कुमार पर महिला टीम खिलाड़ी के साथ अभद्र व्यवहार करने का आरोप लगा था। खिलाड़ी शर्मी उलाहनन ने ट्रेन यात्रा के दौरान कोच पर अभद्रता का आरोप लगाया था। जिसके बाद कोच को हटना पड़ा था, हालांकि बाद में वह दोबारा टीम में आ गए। 2009 में लंदन में टी-20 विश्व कप के समय महिला क्रिकेट टीम के मैनेजर वी. चामुंडेश्वरनाथ के खिलाफ महिला क्रिकेटरों को टीम में शामिल करने के बदले यौन शोषण का आरोप लगा था। चांमुडेश्वरनाथ उस समय आंध्र प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव थे। आंध्र प्रदेश महिला क्रिकेट टीम की कप्तान सविता कुमारी ने तो यहां तक कहा था कि चामुंडेश्वरनाथ ट्रेनिंग कैम्पों में महिला खिलाड़ियों के साथ अभ्रद व्यवहार करते थे। आखिर न्याय न मिलने से आहत चामुंडेश्वरनाथ के खिलाफ केस करने वाली पूर्व रणजी क्रिकेटर दुर्गा भवानी ने आत्महत्या कर ली थी। इसी साल राष्ट्रीय स्तर की युवा बॉक्सर एस. अमरावती ने कथित तौर पर अपने कोच ओमकार यादव के साथ झगड़े के चलते आत्महत्या का रास्ता चुना था।
जुलाई, 2010 में भारतीय हॉकी में उस समय भूचाल आ गया जब सीनियर महिला खिलाड़ी टी.एस. रंजिता ने प्रशिक्षक एम.के. कौशिक पर शारीरिक शोषण का आरोप लगाया। महिला टीम के कोच रहे कौशिक ने उस समय इस्तीफा दे दिया और बाद में आरोप से बरी हो गए। 2014 की बात है जब पांच बार की वर्ल्ड चैम्पियन मुक्केबाज एमसी मैरीकॉम ने बताया था कि जब वह 18 साल की थीं, चर्च के बाहर एक रिक्शा चालक ने उनसे छेड़छाड़ की, बाद में उन्होंने उसे वहीं गिरा दिया। सितम्बर, 2014 में दक्षिण कोरिया के इंचियोन शहर में एशियन खेलों के दो दिन पहले भारतीय जिम्नास्ट टीम विवादों के घेरे में आ गई थी। 29 वर्षीय एक महिला जिम्नास्ट ने टीम के कोच मनोज राणा और एक खिलाड़ी चंदन पाठक पर यौन शोषण का आरोप लगाया था। इसके बाद पुलिस ने राणा और पाठक को यौन उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार कर प्रकरण दर्ज किया था।
भारतीय महिला फुटबॉल टीम की पूर्व कप्तान सोना चौधरी की किताब गेम इन गेम में कई सनसनीखेज और चौंकाने वाले खुलासे हुए। सोना चौधरी ने दावा किया कि महिला टीम के कोच और सेक्रेटरी खिलाड़ियों को समझौता करने के लिए मजबूर करते थे। विदेशी टूर पर कोच रात को सोने के लिए खुद का बिस्तर हमारे कमरे में लगवा देते, यदि कोई महिला खिलाड़ी इसका विरोध करती तो उसे अनहक परेशान किया जाता था। चौधरी के अनुसार राज्य की टीम हो या फिर राष्ट्रीय टीम कई लड़कियों को कई स्तर पर समझौता करने के लिए मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। हरियाणा की रहने वाली सोना चौधरी ने 1995 में राष्ट्रीय टीम में जगह बनाई थी। राइट बैक पोजीशन पर खेलने वाली सोना ने 1996-97 तक मुल्क की कप्तानी भी सम्भाली। हम दावे से कह सकते हैं कि मुल्क में खेलों का माहौल तब तक नहीं सुधरेगा जब तक कि हर साख पर उल्लू बैठे रहेंगे। सवा अरब की आबादी वाले भारत को यदि खेलों में सिरमौर बनना है तो उसे अपने सिस्टम को सुधारने के साथ ही उन भेड़ियों को दण्ड देना होगा जोकि खेलों से खेलवाड़ के दोषी हैं। अब देखना यह है कि बिल्ली के गले में घण्टी कौन बांधता है।


No comments:

Post a Comment