ओलम्पिक खेलों का मकसद खिलाड़ियों के जांबाज प्रदर्शन से कहीं अधिक विश्व बंधुत्व की भावना को मजबूत करने से रहा है। भारत की जहां तक बात है, वह ओलम्पिक खेलों के आगाज अवसर से ही इनमें शिरकत करता आ रहा है। ओलम्पिक खेलों में भारत के प्रदर्शन की बात करें तो आबादी के लिहाज से हम बहुत पीछे हैं। इन खेलों में छोटे-छोटे मुल्क जहां अपने पौरुष से खेलप्रेमियों का दिल जीत रहे हैं वहीं हमारे खिलाड़ी और खेलनहार सहभागिता को ही बड़ा कमाल मानने की भूल करते आ रहे हैं। इकलौती हाकी के आठ स्वर्ण पदकों को छोड़ दें तो दूसरा ऐसा खेल नहीं है जिसमें हमारे खिलाड़ियों ने एक से अधिक स्वर्ण पदक जीते हों। खैर, खेलों से इतर हमारा खेल महकमा भाई-भतीजावाद की जद से कभी बाहर नहीं निकल सका है। हमारी हुकूमतें मुल्क में खेलों का माहौल बनाने की लाख ढींगें हाकती हों लेकिन १०० साल से अधिक के ओलम्पिक इतिहास में हमारी झोली में १०० पदक भी नहीं आए हैं। एथलेटिक्स और तैराकी जिसमें सर्वाधिक पदक दांव पर होते हैं आज तक हमारा कोई सूरमा खिलाड़ी एक भी पदक नहीं जीत सका है।
अगस्त में ब्राजील के रियो डि जेनेरियो में होने जा रहे ओलम्पिक खेलों के तीन महीने पहले भारतीय ओलम्पिक संघ और खेलों से जुड़े खेलनहार यह बताने की स्थिति में भी नहीं हैं कि गोया भारतीय खिलाड़ी कितने पदक जीतेंगे। अलबत्ता विवादित सलमान खान को इन खेलों में भारतीय दल का सद्भावना दूत बनाकर खिलाड़ी जमात में विवाद के बीज बो दिए गये हैं। सलमान खान का विवादों से चोली-दामन का साथ है। सो खिलाड़ियों की तरफ से विरोध के स्वर मुखर होना ही था। खिलाड़ियों के तर्क-कुतर्कों पर यकीन करें तो सलमान खान का खेलों के उत्थान से किसी तरह का कोई लेना-देना नहीं रहा है। बेहतर होता यह जिम्मेदारी किसी नामचीन खिलाड़ी को दी जाती। फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह और उड़नपरी पी.टी. बेहतर विकल्प हो सकते थे। हालांकि इन दोनों खिलाड़ियों ने भी ओलम्पिक खेलों में कोई पदक तो नहीं जीता है लेकिन खेल दुनिया इनके शानदार प्रदर्शन से वाकिफ है।
आईओए के इस निर्णय का विरोध करने वालों का तर्क है कि जिन खिलाड़ियों ने ओलम्पिक खेलों में देश के लिए पदक जीते हैं, उनका हक सद्भावना दूत बनने में पहला है। जो खिलाड़ी एक पदक जीतने के लिए अपना पूरा जीवन लगा देता है, उसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। सच्चाई तो यह है कि खेलों की दुनिया में ग्लैमर का तड़का एक गलत परम्परा की ही शुरुआत है। भारत के अधिकांश खेल संघों में नौकरशाहों और राजनेताओं का कब्जा है ऐसे में अब फिल्मी सितारों की दखल खिलाड़ियों को उनके अधिकारों से ही वंचित करेगी। सलमान समर्थक लाख दलील दे रहे हों कि भारतीय दर्शकों में खिलाड़ियों के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिए ऐसा किया गया है, पर इसकी क्या गारंटी है कि सलमान के सद्भावना दूत बनने से भारतीय खेलों का नजारा बदल जाएगा। सलमान खान की जहां तक बात है, उन्हें इससे पहले भारतीय फुटबॉल महासंघ ने भी वर्ष २००९ में ब्रांड एम्बेसडर बनाया था।
तर्क-कुतर्क पर उलझने की बजाय हमें इस बात पर तो गौर करना ही चाहिए कि २००९ के बाद भारतीय फुटबाल में कौन सा क्रांतिकारी बदलाव आया है। सच्चाई तो यह है कि भारत की दुनिया के नम्बर एक खेल फुटबाल में न तो लोकप्रियता बढ़ी और न ही विश्वस्तरीय रैंकिंग में कोई सुधार ही आया है। खेलों को ग्लैमर के बाजार का हिस्सा बनाना आर्थिक सम्बल तो प्रदान कर सकता है लेकिन इसे खेलों और खिलाड़ियों के हित में कदाचित उचित नहीं कहा जा सकता। दरअसल खेलों का प्रतीक पुरुष ऐसा होना चाहिए जोकि न केवल खेल बिरादरी का प्रतिनिधित्व करता हो बल्कि नये खिलाड़ियों का प्रेरणास्रोत भी हो। सलमान पर सियासत करने की बजाय भारतीय ओलम्पिक संघ को अपनी गलती स्वीकारनी चाहिए। सियासत की वजह से ही ओलम्पिक खेलों में भारत का अब तक का प्रदर्शन थू-थू करने वाला है।
सलमान खान ने बेशक फिल्मों के जरिए दर्शकों के दिलों पर राज किया है। वह अपने एनजीओ के जरिए समाज कल्याण के कार्य भी करते हों लेकिन खेलों में उनका क्या योगदान है, यह देश अब तक नहीं जानता। सलमान खान को ओलम्पिक खेलों में भारतीय दल का सद्भावना दूत बनाए जाने का एकमात्र कारण यही नजर आता है कि शीघ्र ही उनकी फिल्म सुल्तान आने वाली है, जिसमें वे पहलवान की भूमिका अदा कर रहे हैं। माना कि फिल्मी सितारे अपनी फिल्मों के प्रमोशन की जबर्दस्त ब्रांडिंग करते हैं, हर जगह जाते हैं लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सलमान खान अपनी फिल्मों की तरह ओलम्पिक खेलों की भी ब्रांडिंग करेंगे। सवाल यह भी कि क्या अब ओलम्पिक का मंच भी फिल्म प्रमोशन के लिए इस्तेमाल किया जाएगा?
सलमान खान को ओलम्पिक का सद्भावना दूत बनाने पर जिन खिलाड़ियों ने नाराजगी जताई है, वह अपनी जगह पर सही हैं। आखिर खिलाड़ी ही कठिन समय में मादरेवतन का नाम रोशन करता है। सलमान के पक्ष में बेशक फिल्मी दुनिया के लोग एकजुट हुए हों लेकिन खेलों पर इस तरह की सियासत मुल्क के लिए अच्छी बात नहीं है। सलमान समर्थकों ने पहलवान योगेश्वर दत्त पर लाख भड़ास निकाली हो लेकिन क्या वे यह बता सकते हैं कि सलमान खान को रियो ओलम्पिक का सद्भावना दूत क्यों बनाया गया है। यह सही है कि किसी अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजन का दूत बनने के लिए खिलाड़ी होने की योग्यता किसी कानून में नहीं लिखी है। लेकिन यह दायित्व तो कई योग्यताओं का समावेश होने पर ही निभाया जा सकता है। माना कि सलमान खान जनता के बीच खासे लोकप्रिय हैं। वह योग्य भी हैं लेकिन उनकी लाखों खूबियां भी उन्हें ओलम्पिक खेलों में भारतीय दल का सद्भावना दूत बनाने के लिए नाकाफी हैं। वह १३ साल बाद हिट एण्ड रन मामले में बेशक बरी हो गये लेकिन यह कैसे भूला जा सकता है कि वे अभी १९९८ के चिंकारा शिकार मामले से बरी नहीं हुए हैं। क्या भारत में लोकप्रिय, प्रतिभाशाली, योग्य व्यक्तियों का इतना अकाल है कि अकेले सलमान खान ही मिले, जिन्हें रियो ओलम्पिक खेलों में भारतीय दल का सद्भावना दूत बनाया गया है।
भारत पिछले चार साल में रियो ओलम्पिक के नाम पर अरबों रुपये पानी की तरह बहा चुका है। यह खुशी की बात है कि अब मुल्क में क्रिकेट के साथ-साथ अन्य खेलों में भी खिलाड़ी विश्वस्तर पर नाम कमा रहे हैं और इस वजह से भारतीय दर्शकों की दिलचस्पी दूसरे खेलों में भी बढ़ी है। गगन नारंग, राज्यवर्धन सिंह राठौड़, अभिनव बिंद्रा, मैरीकाम, साइना नेहवाल, सुशील कुमार, विजेंदर सिंह, योगेश्वर दत्त जैसे खिलाड़ियों के कारण विश्व खेल बिरादर में भारत का न केवल नाम हुआ है बल्कि हम ओलम्पिक की पदक तालिका में अपना नाम दर्ज होने की खुशफहमी पालने में सफल हुए हैं। बेशक सवा अरब की आबादी में ओलम्पिक पदक विजेताओं के नाम उंगलियों पर गिने जाने लायक हों लेकिन देश में साधारण पृष्ठभूमि के खिलाड़ियों के लिए संसाधनों और सुविधाओं का जो स्तर है, उसे देखते हुए इस उपलब्धि को कमतर आंकना गलत होगा।
सफलता के कई माई-बाप होते हैं। इसे हम भारतीय खेल पृष्ठभूमि में बखूबी देख सकते हैं। प्रायः यह देखा गया है कि अपनी प्रतिभा और इधर-उधर से मिली मदद के बाद जब कोई खिलाड़ी किसी मुकाम पर पहुंच जाता है, तब केन्द्र और राज्य सरकारों की ओर से उन्हें बड़ी-बड़ी घोषणाओं के साथ सहायता दी जाती है। जिमनास्ट दीपा करमाकर इसका ताजातरीन उदाहरण है। भारत की इस बेटी ने ओलम्पिक क्वालीफाइंग प्रतियोगिता में इतिहास रचते हुए रियो ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई किया है। दीपा के करिश्माई प्रदर्शन के बाद उससे ओलम्पिक में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीदें थोड़ी और बढ़ गई हैं। यूं तो इस महिला जिमनास्ट ने कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं जीती हैं, लेकिन यह पहला मौका है जब किसी भारतीय महिला जिमनास्ट ने ओलम्पिक में जाने का टिकट हासिल किया हो। दीपा के अलावा जीतू राय, शिव थापा, अभिनव बिंद्रा, योगेश्वर दत्त, संदीप तोमर जैसे कुछेक नए व पुराने खिलाड़ी ओलम्पिक खेलों के लिए चयनित हुए हैं, साथ ही हाकी में पुरुष टीम के साथ-साथ महिला टीम पर भी दर्शकों की निगाहें रहेंगी, जिसे ३६ साल बाद ओलम्पिक में खेलने का अवसर मिला है। जाहिर है रियो ओलम्पिक भारतीय खेलप्रेमियों के लिए रोमांच और उम्मीदों से भरा होगा।
आईओए का क्या कहना
आईओए महासचिव राजीव मेहताः- आईओए महासचिव राजीव मेहता ने कहा, च्च्हम सलमान की पेशकश के लिये शुक्रगुजार हैं और खुश हैं कि उन्होंने इस देश में ओलम्पिक खेलों के सहयोग के लिये पेशकश की। यह जुड़ाव महज एक संकेत है इसमें धन संबंधित कोई भी चीज नहीं है। ज्ज् उन्होंने कहा, च्च्उन्हें बोर्ड में लाने का हमारा मुख्य उद्देश्य अधिक से अधिक लोगों को इससे जोड़ना है, जिसके कारण ज्यादा से ज्यादा लोग इसे देखें। इससे अंतत: देश में ओलम्पिक खेलों को लोकप्रिय बनाने में मदद मिलेगी। हम अन्य जगह जैसे संगीत, क्रिकेट, कला संस्कृति और ओलंपिक खेलों आदि से भी और आइकन नियुक्त करेंगे। ज्ज् मेहता ने कहा, च्च्सलमान खान बॉलीवुड वर्ग से नियुक्त किये गये हैं और हम संगीत और क्रिकेट से भी दो बड़े नामों को शामिल करने के लिये बात कर रहे हैं। हम काफी आइकन रखने के इच्छुक हैं जिसमें अंजू बाबी जॉर्ज और पी.टी. ऊषा भी शामिल हैं, जिनके अंदर देश में ओलम्पिक खेलों को लोकप्रिय करने की कूबत और क्षमता है। ज्ज्
अनिल विज :- हरियाणा के मंत्री अनिल विज ने फैसले से असहमति जताते हुए कहा कि कोई च्फिल्मी हीरो' देश के लिए मेडल नहीं लाएगा। विज ने कहा कि योगेश्वर दत्त को ब्रांड एम्बेसडर बनाया जाना चाहिए था। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, च्योगेश्वर दत्त सलमान खान को भूल जाएं। आप एक सच्चे हीरो हैं, सलमान एक फिल्मी हीरो हैं। फिल्मी हीरो नहीं बल्कि वास्तविक हीरो देश के लिए पदक लाएंगे।' विज का मानना है कि आईओए को किसी प्रसिद्ध भारतीय खिलाड़ी को नियुक्त करना चाहिए था। उन्होंने कहा कि योगेश्वर दत्त ने कुश्ती में देश का नाम रोशन किया है।
सर्बानंद सोनोवाल: केंद्रीय खेल राज्य मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा कि सलमान की नियुक्ति का विरोध कर रहे खिलाड़ियों की भावनाओं से आईओए को अवगत करा दिया गया है। खेल मंत्री ने कहा कि मंत्रालय विभिन्न क्षेत्रों की प्रतिष्ठित हस्तियों को देश में खेलों को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करता है।
हेमा मालिनी : भाजपा सांसद व अभिनेत्री हेमामालिनी ने कहा च्च्लोग उन्हें इतना ज्यादा प्यार करते हैं। इसलिए अगर उन्हें सद्भावना दूत बनाया गया है तो समस्या क्या है.' उनके हिट एंड रन मामले में कथित रूप से शामिल रहने के बारे में सवाल किए जाने पर हेमा ने संसद भवन परिसर में संवाददाताओं से कहा कि वह च्च्उनकी जिंदगी का एक हिस्सा था। उनकी लोकप्रियता को अच्छे मकसद के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।'
मिल्खा सिंहः- अपनी आगामी फिल्म च्च्सुल्तान' में पहलवान की भूमिका अदा कर रहे सलमान की नियुक्ति पर सवाल करते हुए फ्लाइंग सिख मिल्खा सिंह ने कहा कि आईओए को च्बॉलीवुड से किसी व्यक्ति' को आयातित करने की बजाय पी.टी. ऊषा जैसी खेल हस्तियों के नाम पर विचार करना चाहिए था।
सलीम खान : सलमान के पिता सलीम खान ने ट्विटर पर लिखा, च्च्सलमान खान ने भले ही प्रतियोगिताओं में हिस्सा न लिया हो लेकिन वह ए लेवल के तैराक, साइकिलिस्ट और भारोत्तोलक हैं। हमारे जैसे खेलप्रेमियों की वजह से ही खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन करते हैं। मिल्खा के जीवन पर कुछ साल पहले च्भाग मिल्खा भाग' फिल्म बनी थी जो काफी सफल रही थी। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सलीम ने कहा, च्च्मिल्खा जी यह बॉलीवुड नहीं बल्कि भारतीय फिल्म उद्योग है और वह भी दुनिया में सबसे बड़ा है.' उन्होंने कहा, च्च्यह वही फिल्म उद्योग है जिसने आपको गुमनामी में जाने से बचाया है।'
ऐश्वर्या राय बच्चनः- सलमान खान को भारतीय ओलम्पिक दल का सद्भावना दूत बनाये जाने पर ऐश्वर्या राय ने कहा, च्कोई भी व्यक्ति जो अच्छा कर रहा है देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए उपयुक्त है। वो कोई भी हो, चाहे उसका व्यवसाय खेल, कला या संगीत ही क्यों न हो। मुझे लगता है यह शानदार है और इसे मान्यता दी जानी चाहिए।
खेल दुनियाः- सुनील गावस्कर और विश्वनाथन आनंद जैसे दिग्गजों ने जहां सलमान का समर्थन किया है वहीं गौतम गंभीर, मिल्खा सिंह, योगेश्वर दत्त के साथ ही मेजर ध्यानचंद के बेटे और पूर्व ओलम्पिक हॉकी खिलाड़ी अशोक कुमार सरीखे आला दर्जे के खिलाड़ियों ने इसका विरोध किया है।
सांसद किरन खेरः- च्यह काफी अच्छा फैसला है। मुझे सलमान खान पर काफी गर्व है। जो भी लोग कह रहे हैं कि केवल एक खिलाड़ी को सद्भावना दूत बनाया जाना चाहिए, मैं उन लोगों से अलग रहना चाहूंगी। यह सोचने की कोई जरूरत नहीं है कि केवल एक खिलाड़ी ही देश का प्रतिनिधित्व कर सकता है। हमें प्रेरित करने वाला कोई प्रतिष्ठित व्यक्तित्व ब्रांड एम्बेसडर बन सकता है।ज् च्मैं खेल जगत से और भी अधिक उदार होने का अनुरोध करूंगी। अच्छे दिल वाले इंसान बनें और सलमान को भी सम्मान दें। हम कलाकार भी मेहनती होते हैं और बेहतरीन काम करते हैं।ज्
सूरज बड़जात्याः- च्यह बहुत ही खुशी की बात है, क्योंकि उनके जैसा समर्थक कोई नहीं। वह हमेशा से ही खेलप्रेमी रहे हैं और अच्छा क्रिकेट, फुटबॉल खेलते हैं और साथ ही एक अच्छे साइकिलिस्ट हैं। मैं उन्हें काफी करीब से जानता हूं और उनके लिए काफी खुश हूं।ज्
अभिनेता सूरज पंचोलीः- च्मुझे लगता है कि यह एक अच्छा फैसला है, क्योंकि वह काफी लोकप्रिय हैं और वह कुश्ती पर एक फिल्म भी कर रहे हैं, तो हो सकता है इस वजह से भी फैसला लिया गया हो.ज्
No comments:
Post a Comment